गाय के किस अंग में कौन देवता होते हैं | हिन्दू धर्म के 33 करोड़ देवी-देवताओं का असली सच | gau mata -

गाय के किस अंग में कौन देवता होते हैं | हिन्दू धर्म के 33 करोड़ देवी-देवताओं का असली सच | gau mata -


 गाय का पूरा शरीर देव भूमि है जहां 33 कोटि देवी देवता निवास करते हैं क्या यह सत्य है गाय के किस अंग में है कौन से देवता का वास कहते हैं कि जो मनुष्य प्रातः स्नान करके गौ स्पर्श करता है वोह पापों से मुक्त हो जाता है संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद हैं और वेदों में भी गाय की महत्ता और उसके अंत प्रत्यंग में दिव्य शक्तियां होने का वर्णन मिलता है गाय में 33 कोटि देवी देवता निवास करते हैं कोटि शब्द को ही बोलचाल की भाषा में करोड़ में बदल दिया गया इसीलिए मान्यता प्रचलित हो गई कि कुल 33 करोड़ देवी देवता है 33 कोटि देवी देवताओं में आठ वसु 11

(00:44) रुद्र 12 आदित्य इंद्र और प्रजापति शामिल हैं कुछ शास्त्रों में इंद्र और प्रजापति के स्थान पर दो अश्विनी कुमारों को 33 कोटि देवताओं में शामिल किया गया है गाय के गोबर में लक्ष्मी गोमूत्र में भवानी चरणों के अग्रभाग में आकाश चारी देवता रमाने की आवाज में प्रजापति और थन में समुद्र प्रतिष्ठित है मान्यता है कि गौ के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक करने से तीरथ स्नान का पुण्य मिलता है यानी सनातन धर्म में गौ को दूध देने वाला एक निरा पशु ना मानकर सदा से ही उसे देवताओं की प्रतिनिधि माना गया है गाय के अंगों में देवी देवताओं का निवास पद्म पुराण के

(01:27) अनुसार गाय के मुख में चारों वेदों का निवास है उसके सिंगो में भगवान शंकर और विष्णु सदा विराजमान रहते हैं गाय के उदर में कार्तिके मस्तक में ब्रह्मा ललाट में रुद्र सीगो के अग्र भाग में इंद्र दोनों कानों में अश्विनी कुमार नेत्रों में सूर्य और चंद्र दांतों में गरुर जैवा में सरस्वती अपान गदाब में सारे तीरथ मूत स्थान में गंगाजी रोम कुपो में ऋषि गण पृष्ठ भाग में यमराज दक्षिण पार्श्व में वरुण एवं कुबेर वा पार्श्व में महाबली यक्ष मुख के भीतर गंधर्व नासिका के अग्रभाग में सर खरों के पिछले भाग में अप्सराएं स्थित हैं भविष्य पुराण स्कंद

(02:10) पुराण ब्रह्मांड पुराण महाभारत में भी गौ के अंग प्रत्यंग में देवी देवताओं की स्थिति का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है गायों का समूह जहां बैठकर आराम से सांस लेता है उस स्थान की ना केवल शोभा बढ़ती है बल्कि वहां का सारा पाप नष्ट हो जाता है तीर्थों में स्नान दान करने से ब्राह्मणों को भोजन कराने से व्रत उपवास और जप तप और हवन यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है वही पुण्य गौ को चारा या हरी घास खिलाने से प्राप्त हो जाता है गौ सेवा से दुख दुर्भाग्य दूर होता है और घर में सुख समृद्धि आती है जो मनुष्य गौ की श्रद्धापूर्वक पूजा सेवा करते हैं देवता

(02:53) उस पर सदैव प्रसन्न रहते हैं जिस घर में भोजन करने से पूर्व गौ ग्रास निकाला जाता है उस परिवार में अन्न धन की कभी कमी नहीं होती है भारत देश हमेशा से कृषि प्रधान देश रहा है और इसी कारण वह सभी साधन जिसमें गाय भी प्रमुख है कृषि कार्य में सहायक रहे पूजनीय माने गए वैदिक समय से गाय को अर्थव्यवस्था की रीढ माना गया था गाय के आर्थिक चिकित्सकीय और वैज्ञानिक लाभ देखते हुए यह बहुत जरूरी था कि इस निरीह पशु का संरक्षण और संवर्धन किया जाए साधारण मानव के मनो मस्तिष्क में इस बात को सरलता से समझाने के लिए गाय के महत्व को धर्म के साथ संबंधित कर दिया गया

(03:38) धार्मिक दृष्टि से गाय को सर्वोच्च स्थान दिया गया यह माना जाता है कि गाय का शरीर देवभूमि है जहां 33 कोटि देवी देवता का निवास है आइए देखें क्या वास्तव में गाय का शरीर देवभूमि है देवस्थान या मात्र एक शरीर पूरे विश्व में केवल हिंदू धर्म ही एक धर्म है जिसमें मानव को ही नहीं बल्कि पशु को भी मान सम्मान दिया जाता है इसी कारण गाय को एक साधारण पशु ना मानते हुए माता का स्थान दिया जाता है यहां 33 कोटि से तात्पर्य 33 प्रकार के देवी देवता से है जो हिंदू धर्म के आधार स्तंभ माने जाते हैं भविष्य पुराण के अनुसार गाय के पृष्ठ

(04:20) भाग में ब्रह्मा जी का गर्दन में विष्णु जी का और मुख वाले भाग में महादेव का वास है शेष सभी देव देवता का निवास स्थान गाय के शरीर का मध्य भाग है गाय के हर रोम में महर्षि का निवास है तो पूछ में अनंत नाग का घर है ब्रह्मांड के पर्वत गाय के खुरो में है तो गोमूत्र में गंगा और शेष नदियां गोबर में लक्ष्मी जी का वास है सूरज और चांद दोनों नेत्र हैं इस प्रकार गाय का शरीर सकल जगत का प्रतिरूप है वैज्ञानिक सच क्या है एक कहते हैं कि देसी गाय की गर्दन का उभरा हुआ भाग शिवलिंग है जबक वास्तविकता यह है कि इसमें सूर्यकेतु नाम की नाड़ी होती है जो सूर्य की ऊष्मा को

(05:06) अपनी ओर आकर्षित करती है इससे गाय की दूध में शक्ति आती है दो श्याम वर्ण की गाय का दूध वात संबंधी रोगों के निवारण में सहायक होता है पीले रंग की गाय का दूध पेत और वात रोग को दूर करने वाला माना गया है तीन गाय के गोबर से खाद और विटामिन बी12 की प्रचुर मात्रा मिलती है इसी गोबर के गंडे जलाने से कीटाणु और मच्छर आदि का नाश होता है चार गोमूत्र से लीवर और मधुमेह संबंधी बीमारियां बहुत आसानी से दूर होती हैं पांच गाय के रं भाने से वातावरण शुद्ध होता है इसलिए इसे पर्यावरण की संरक्षिका भी कहा गया है वैज्ञानिक इस बात पर भी सहमत है कि गाय ही एक ऐसा प्राणी है जो ना

(05:54) केवल ऑक्सीजन ग्रहण करती है बल्कि छोड़ती भी है छह गाय के दूध दही घी मूत्र और गोबर से तैयार पंचगव्य अनेक रोगों के इलाज में लाभदायक होता है इसके उपयोग से शरीर की रोग निरोधक क्षमता में विकास किया जा सकता है इसके प्रयोग से कैंसर के इलाज के पेटेंट तो भारत ने यूएस से प्राप्त भी कर लिए हैं सबसे पहले गोपालक श्री कृष्ण जी का एक नाम गोविंद भी उनके गौ प्रेम के कारण प्रसिद्ध हुआ था शायद इसलिए गाय की सेवा सभी देवताओं की सेवा के बराबर है संसार में पृथ्वी और गौ से अधिक क्षमावाणी में मंत्रों का निवास है और गाय में हविष्य स्थित है गाय को सर्व तीर्थम

(06:42) कहा गया है गाय को लोक में मुक्ति दिलाकर परलोक में शांति दिलाने का माध्यम माना गया है श्री कृष्ण की बाल लीला का मुख्य पात्र गए ही थी श्री कृष्ण का गाय चराने जाना उनकी मधुर वंशी ध्वनि पर गायों का उनकी ओर भागते चले आना श्री कृष्ण का छोटी उम्र में हट कर के गाय का दूध दूना सीखना एवं प्रसन्न होना गाय का माखन चुराना आदि नंद बाबा के पास 9 लाख गोए थी श्री कृष्ण कुछ बड़े हुए तो उन्होंने गचार के लिए मां यशोदा से आज्ञा मांगी माता यशोदा का हृदय तो धक धक करने लगा कि इतनी दूर वन में मेरा प्राणधन अकेला कैसे जाएगा उन्होंने बहुत समझाया कि बेटा अभी तुम छोटे हो पर

(07:28) कृष्ण की जिद के आगे वह हार मान ही गई कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गो चारण का मुहूर्त निकला माता यशोदा ने प्रातः काल ही सब मंगल कार्य किए और श्री कृष्ण को नहला करर सुसज्जित किया सिर पर मोर मुकुट गले में माला तथा पीतांबर धारण करवाया हाथ में बेद तथा नरसिंहा दिया फिर पैरों में जूतियां पहनाने लगी तो कृष्ण ने जूते पहनने से मना कर दिया और मां से कहा यदि तू मेरी सारी गव को जूती पहना दे तो मैं इनको पन लूंगा जब गया धरती पर नंगे पांव चलेगी तो मैं भी नंगे पाव जाऊंगा श्री कृष्ण जब तक ब्रज में रहे उन्होंने ना तो सिले वस्त्र पहने ना जूते पहने और

(08:12) ना ही कोई शस्त्र उठाया श्री कृष्ण ने गोमाता की दावानल से रक्षा की ब्रह्मा जी से छुड़ाकर लाए इंद्र के कोप से रक्षा की गायों को श्री कृष्ण से कितना सुख मिलता है यह अवनीय है जैसे ही गाय कृष्ण को देखती वे उनके शरीर को चाटने लगती हैं हर गाय का अपना एक नाम है कृष्ण हर गाय को उसके नाम से पुकारते हैं तो वह गाय उनके पास दौड़ी चली आती है और उसके नों से दूध छूने लगता है समस्त गाय उनसे आत्म चल्य प्रेम करती थी गौ के बिना जीवन नहीं गौ के बिना कृष्ण नहीं कृष्ण भक्ति भी नहीं जो व्यक्ति अपने को कृष्ण भक्त मानता है और शारीरिक व मानसिक रूप से वृंदावन में वास

(08:59) करता है उन्हें तो विशेष रूप से कृष्ण की प्रसन्नता के लिए गोपालन गोरक्षा व गोसम वर्धन पर ध्यान देना चाहिए दोस्तों आपको यह जानकारी कैसी लगी कृपया कमेंट करके जरूर बताएं वीडियो पसंद आया हो तो लाइक करें और ऐसे ही और भी बहुत सारी कहानियों को सुनने के लिए चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें धन्यवाद सब्सक्राइब टू  कहानियां नई कहानियां हर दिन


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