शिव जी की कहानियां | Shiv Ji Ki Kahaniyan | Hindi Kahani | Moral Stories | Bhakti Stories | Story -

 शिव जी की कहानियां | Shiv Ji Ki Kahaniyan | Hindi Kahani | Moral Stories | Bhakti Stories | Story - 


एक समय की बात है श्रीपुर नाम के गांव में रामेश्वर नाम का एक ब्राह्मण अपनी मां के साथ रहता था वह दिन रात भगवान शिव की भक्ति किया करता था शिव नाम का जाप सदैव उसके मुख पर रहता था ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय रामेश्वर बेटा आज भी तूने मुझे नहीं उठाया खुद ही उठकर घर के सारे काम कर लिए खीर भी भोग लगा दी तूने तो हां मां मैंने सोचा फटाफट से काम करके खीर बना लेता हूं शिवजी भी खीर के इंतजार में बैठे होंगे यह लो भोग की खीर खाकर बताओ कैसी बनी है रामेश्वर बेटा इस खीर को तू बचपन से शिवजी को खिलाता आ रहा है जब तेरे बापू

(00:54) जिंदा थे तब वो प्रसाद की खीर खिलाते थे और उनके जाने के बाद तूने यह नियम बना लिया तेरी खीर बहुत ही स्वादिष्ट बनती है बेटे और मुझे पता है भगवान शिव भी तेरे हाथों की खीर खाने के इंतजार में रहते होंगे तभी तो मैं सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले खीर ही बनाता हूं ताकि भगवान शिव को भोग लगा सकूं रामेश्वर का नियम था रोजाना सुबह जल्दी उठकर घर के सारे काम निपटाना और फिर भगवान शिव के भोग के लिए खीर का प्रसाद बनाना यह कार्य पहले उसके पिता करते थे और पिता के जाने के बाद शिवजी की सेवा और खीर भोग की पूरी जिम्मेदारी रामेश्वर ने उठा ली रामेश्वर को विश्वास

(01:34) था कि भगवान शिव उसके द्वारा खिलाई गई खीर को रोजाना ही खाते हैं इसी विश्वास पर वह रोजाना खीर का भोग लगाता था और अपने भक्त के द्वारा भोग लगाई गई खीर को कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान शिव बहुत चाव से खाते थे स्वामी क्या बात है आपको तो आनंद ही आनंद है आपके भक्त आपको प्रेम से इतने स्वादिष्ट व्यंजन खिलाते हैं और आपका भक्त रामेश्वर तो नियम के अनुसार आपको खीर का भोग लगाता है लाइए थोड़ी सी खीर मुझे भी दे दीजिए रामेश्वर के हाथों की खीर बहुत ही स्वादिष्ट होती है हां देवी पार्वती रामेश्वर इतनी स्वादिष्ट खीर का भोग लगाता

(02:14) है कि मन प्रसन्न हो जाता है तभी नंदी और समस्त शिव गण वहां जाते हैं महादेव यह लीजिए हम भांग और धतूरा ले आए हैं नंदी अभी तो हम स्वादिष्ट खीर का आनंद ले रहे हैं ऐसा करो भांग और धतूरे को वहां छोटे पर्वत पर रख दो हम कुछ समय के बाद उसे ग्रहण करेंगे अरे नंदी महादेव तो हमारी ओर देख तक नहीं रहे उनका सारा ध्यान तो रामेश्वर की बनाई हुई खीर पर है ऐसे कब तक चलेगा नंदी हां मैं भी यही देख रहा हूं इतने प्रेम से हम भांग और धतूरा पीस कर लाए और महादेव ने हमें इसे रखने के लिए बोल दिया अरे नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है महादेव ने बोला है कि हम उसे वहां रख दें

(02:57) वो कुछ देर बाद उसे ग्रहण करेंगे महादेव रोजाना रामेश्वर की भोग लगाई हुई खीर को बहुत चाव से खाते हैं नंदी मैं तो कई बार सोचता हूं कि रामेश्वर की खीर में ऐसा क्या है कि भोलेनाथ सबसे पहले उसकी भोग लगाई खीर को ही खाते हैं और फिर और किसी तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता तभी तो हम भांग धतूरा लेकर आए और उन्होंने बिना देखे ही इसे रखने के लिए बोल दिया हां कह तो तुम ठीक रहे हो भैरव महादेव को भांग धतूरा इतना प्रिय है पर रामेश्वर की खीर से ज्यादा उन्हें इस समय कुछ भी प्रिय नहीं लग रहा तो क्या किया जाए नंदी कि महादेव का ध्यान अपने भक्त रामेश्वर से हटकर

(03:34) हमारी ओर आ जाए एक रास्ता है नंदी ने सभी गणों के कान में कुछ कहा उसके पश्चात सभी गण पृथ्वी लोक पर आ गए और सबने ब्राह्मण रूप ले लिया और सब लोग रामेश्वर के पास पहुंचे रामेश्वर शिवजी को खीर का भोग लगाने के लिए बाजार से सामान खरीद रहा था ब्राह्मण वेश में नंदी ने रामेश्वर से कहा रामेश्वर तुम हमें नहीं जानते पर हम तुम्हें बहुत अच्छे से जानते हैं तुम भगवान श शिव के भक्त हो और रोजाना उन्हें खीर का भोग लगाते हो हां ब्राह्मण देव आप तो सब कुछ जानते हैं हां रामेश्वर हम सब जानते हैं इसीलिए तो हम तुम्हारे पास आए हैं हमें पता है कि तुम महादेव के परम

(04:13) भक्त हो पर तुम्हें पता है महादेव अब रोजाना खीर खाकर ओब गए हैं इसलिए अब तुम कुछ दिनों के लिए खीर का भोग रोक दो तुम एक काम क्यों नहीं करते तुम महादेव को सप्ताह में एक दिन खीर का भोग लगाया करो जिससे महादेव को और अधिक स्वाद आएगा अब महादेव को इतने सारे भक्त पूछते हैं महादेव भी तो इतने सारे भक्तों के द्वारा दिए भोग को ग्रहण करते हैं उनका पेट बहुत भर जाता है अगर तुम उनको सप्ताह में एक दिन खीर का भोग लगाओगे तो उन्हें तुम्हारी खीर का इंतजार रहेगा और वह और अधिक आनंद से खीर खाएंगे क्यों हम सही कह रहे हैं ना यह तो आप ठीक कह रहे हैं ब्राह्मण देव इस

(04:48) विषय में तो मैंने कभी सोचा ही नहीं अब मैं एक काम करता हूं मैं सप्ताह में एक दिन ही भगवान को खीर का भोग लगाया करूंगा ताकि वह और भी भक्तों का प्रसाद ग्रहण कर सके और फिर उन्हें मेरी ीर का बेसब्री से इंतजार रहे भोला भाला रामेश्वर शिव गणों की बातों में आ गया शिव गण खुशी-खुशी कैलाश वापस लौट आए अब शिवजी रोजाना रामेश्वर की खीर का इंतजार करने लगे कि कब रामेश्वर उन्हें भोग लगाए और कब व खीर का भोग खाए पर कुछ दिनों तक रामेश्वर ने खीर का भोग बनाया ही नहीं तो शिवजी को खीर कहां से मिलती अब सप्ताह में एक दिन रामेश्वर ने खीर का भोग लगा दिया तो शिवजी

(05:26) ने खीर खा ली फिर उसके बाद कुछ दिन और खीर नहीं मिली तो भगवान शिव सोच में पड़ गए उन्होंने अपने नेत्र बंद किए और उन्हें सारी सच्चाई पता लग गई और भगवान शिव को गुस्सा आ गया शिवजी को गुस्से में आया देख सभी गण उनके समक्ष हाथ जोड़कर खड़े हो गए नंदी श्रृंगी वीरभद्र भैरव तुम सभी गण जानते भी हो कि तुमने क्या किया है मेरे भक्त रामेश्वर के द्वारा भोग में अर्पित की गई खीर मुझे कितनी प्रिय है और तुमने उसे खीर का भोग रोजाना लगाने के लिए मना कर दिया महादेव हमें क्षमा कर दीजिए हमसे भूल हो गई महादेव जब हम आपको खीर खाता हुआ देखते थे तो हम यही सोचते थे कि आप हमारी

(06:08) ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं अच्छा तो यह कारण है पर तुम सब यह नहीं जानते कि मेरा प्रेम अपने सभी भक्तों पर एक समान है मैं भला तुम्हें कैसे भूल सकता हूं तुम तो मेरे हृदय में वास करते हो तुम सब तो मेरी ही शक्तियों द्वारा उत्पन्न हुए हो संसार में मेरा प्रत्येक भक्त मुझे एक समान प्रिय है और प्रत्येक भक्त के हृदय में में मैं ही विद्यमान हूं इसलिए मेरा प्रेम कभी भी कम या ज्यादा नहीं हो सकता माता-पिता के लिए तो उनके सभी बच्चों में प्रेम एक समान होता है फिर तुम यह भूल कैसे सकते हो भगवान शिव की बातें सुनकर सभी शिव गण समझ गए कि उन्होंने कितनी बड़ी

(06:46) भूल कर दी सचमुच महादेव का प्रेम तो अपने सभी भक्तों के लिए एक समान रहता है इसके बाद सभी शिवकरण फिर से एक बार रामेश्वर के पास गए रामेश्वर हमें भगवान शिव का संदेशा आया है वह कह रहे थे कि तुम्हारी खीर इतनी स्वादिष्ट होती है कि वह सप्ताह भर की प्रतीक्षा नहीं कर सकते सप्ताह में एक दिन भोग से उनका मन ही नहीं भरता इसलिए उनकी आज्ञा है कि तुम रोजाना ही उन्हें खीर का भोग लगाया करो आप सच कह रहे हैं ब्राह्मण देव भगवान शंकर को मेरे हाथों की बनी खीर इतनी प्रिय है ठीक है फिर मैं रोजाना उन्हें खीर का भोग लगाऊंगा यह सुनकर रामेश्वर बहुत खुश हुआ अब एक बार फिर

(07:25) रामेश्वर रोजाना खीर बनाकर भगवान शिव को भोग लगाने लगा अब तो समस्त शिव गण भी भगवान शिव के साथ रामेश्वर द्वारा भोग लगी प्रसाद की खीर का आनंद लेते और खूब भर पेट खीर को खाते भगवान शिव और देवी पार्वती दोनों सभी गणों को इस प्रकार खीर खाता देख मंद मंद मुस्कुराने लगे भगवान शिव ने अपने परम भक्त रामेश्वर को सभी सुख सुविधाओं से पूर्ण रखा उसके जीवन में कभी भी कोई कठिनाई नहीं आई रामेश्वर का विवाह एक बहुत ही सुशील कन्या के साथ हुआ उसके घर में दो बच्चों का जन्म हुआ अपने परिवार के साथ संपूर्ण जीवन खुशी-खुशी व्यतीत करके रामेश्वर अंत में

(08:05) मोक्ष को प्राप्त हुआ मां पार्वती ने भगवान शिव से एक प्रश्न पूछा जिसके बाद भोलेनाथ ने एक कथा सुनाई और अमर हो गया कबूतर का जोड़ा उसी अमर कथा से जुड़ी है यह पौराणिक कथा एक बार नारद मुनि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से मिलने पहुंचे नारायण नारायण प्रणाम माते आइए देवर्ष नारद कैसे आना हुआ माते मैं तो भगवान शिव और आपके दर्शन करने आया हूं पर महादेव कहीं दिखाई नहीं दे रहे वे तो भ्रमण के लिए गए हैं कुछ देर में लौटेंगे देवर्षी नारद मां पार्वती से वार्तालाप करने लगे तभी उन्होंने मां पार्वती से पूछा माते क्या आप अमर कथा के बारे में जानती हैं अमर कथा वो कौन कथा है

(09:00) उसके बारे में तो मैं नहीं जानती नारायण नारायण माते जब भगवान भोलेनाथ आएंगे तब आप उनसे इस बारे में पूछना अच्छा माते मैं चलता हूं नारायण नारायण पार्वती माता सोच में पड़ गई कि ऐसी कौन सी कथा है जो स्वामी ने मुझसे नहीं कही तभी भोलेनाथ कैलाश पर लौट आते हैं माता पार्वती उनसे इस बारे में चर्चा करती हैं प्रभु आपने मुझे कभी अमर कथा के बारे में क्यों नहीं बताया मुझे आज और अभी अमर कथा सुननी है ठीक है देवी मैं आपको आज अमर कथा सुनाऊंगा परंतु उसके कुछ नियमों का पालन आपको करना पड़ेगा अमर कथा के दौरान आपको एक क्षण के लिए भी सोना नहीं है आप बीच-बीच में हुंकार भरती

(09:45) रहना ताकि मुझे आभास रहे कि आप कथा सुन रही हैं क्योंकि मेरे नेत्र भी उस क्षण बंद रहेंगे ठीक है स्वामी मैं ऐसा ही करूंगी भगवान शंकर ने माता पार्वती से एकांत और गुप्त स्थान पर अम अमर कथा सुनने को कहा जिससे कि अमर कथा कोई अन्य जीव ना सुन पाए क्योंकि जो कोई भी इस अमर कथा को सुन लेता है वह अमर हो जाता इसके पश्चात शिवजी देवी पार्वती को अमर कथा कहने एक गुफा मिले गए पुराणों में कहा जाता है शिवजी ने देवी पार्वती को अमरनाथ की गुफा में अपनी साधना की अमर कथा सुनाई थी जिसे हम अमृत्व कहते हैं प्रचलित कथा के अनुसार भगवान भोलेनाथ ने अपनी सवारी नंदी को पहल

(10:28) गांव पर छोड़ दिया जटाओं से चंद्रमा को चंदनवाड़ी में अलग कर दिया और गंगा जी को पंचतरणी में तथा कंठा भूषण सर्पों को शेष नाग पर छोड़ दिया इस प्रकार इस पड़ाव का नाम शेष नाग पड़ा अगला पड़ाव गणेश पड़ता है इस स्थान पर भोलेनाथ ने अपने पुत्र गणेश को भी छोड़ दिया था जिसको महागुण का पर्वत भी कहा जाता है पिस्सू घाटी में पिस्सू नामक कीड़े को भी त्याग दिया इस प्रकार महादेव ने जीवन दयनी पांचों तत्त्वों को भी अपने से अलग कर दिया इसके बाद मां पार्वती सहित उन्होंने गुप्त गुफा में प्रवेश किया और अमर कथा मां पार्वती को सुनाने लगे शिव शभ

(11:12) शभ पर कथा सुनते सुनते देवी पार्वती को नींद आ गई और वह सो गई जिसका शिव जी को पता नहीं चला भगवान शिव अमर होने की कथा सुनाते रहे उस समय दो सफेद कबूतर शिवजी से कथा सुन रहे थे और बीच-बीच में गू गू की आवाज निका रहे थे शिवजी को लगा कि माता पार्वती कथा सुन रही है और बीच-बीच में हुंकार भर रही है इस तरह दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली थी कथा समाप्त होने पर शिव जी का ध्यान देवी पार्वती की ओर गया जो सो रही थी अरे देवी पार्वती तो गहरी निद्रा में है तो फिर यह हंकार कौन भर रहा था अचानक महादेव की दृष्टि अमर कथा को सुनते उन कबूतरों पर

(11:55) पड़ी तो भी क्रोधित हो गए और उन्हें मारने के लिए आगे बढ़े मेरे क्रोध से तुम दोनों को कोई नहीं बचा सकता तुम्हें इसका दंड अवश्य मिलेगा हे प्रभु हमें क्षमा कीजिए हमने अनजाने में ही भूल की पर हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी इस पर भगवान शिव का क्रोध शांत हो गया प्रभु इन दोनों का इसमें कोई दोष नहीं मैं गहरी निद्रा में सो गई थी मैंने आपके आदेश का पालन नहीं किया इसलिए इन दोनों को क्षमा कर दीजिए भगवान शिव जानते थे कि अनजाने सही पर कबूतरों ने अमर कथा को सुन लिया था इसलिए वे दोनों अमर हो चुके हैं

(12:34) इस पर महादेव ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया भगवान शिव के आशीर्वाद से वह कबूतर का जोड़ा अजर अमर हो गया कहते हैं आज भी इन दोनों कबूतरों का दर्शन भक्तों को इस गुफा में प्राप्त होता है और तब से यह गुफा अमर कथा की साक्षी हो गई व इसका नाम अमरनाथ गुफा के नाम से प्रसिद्ध हो [संगीत] गया पृथ्वी की रक्षा और जन कल्याण के हित के लिए अनेकों बार भगवान विष्णु की भाति भगवान शिव ने भी अवतार लिया है भगवान शिव द्वारा लिया गया ऐसा ही एक अवतार है बटुक अवतार बटुक का अर्थ होता है छोटा बच्चा पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मां पार्वती की पुत्री अशोक सुंदरी ने हुंड नामक दैत्य

(13:24) को अपनी बाल्यावस्था में एक श्राप दिया था कि उसकी मृत्यु अशोक सुंदरी के होने वाले पति नहुष के हाथों ही होगी इसलिए बाल्यावस्था में ही हुंड ने नहुष का वध करने की योजना बनाई मैं अशोक सुंदरी के श्राप को सिद्ध होने से पहले ही नष्ट कर [संगीत] दूंगा मैं बाल्यावस्था में ही नहुष और अशोक सुंदरी का वध कर दूंगा मुझे यह बात माता श्री को बतानी होगी माता श्री माता श्री आप कहां हो मेरा हृदय व्याकुल हो रहा है क्या हुआ अशोक सुंदरी आप इतनी घबराई हुई क्यों हो पुत्री माता श्री हुंड राक्षस नहुष को मारने के लिए निकल चुका है वो नहुष का वध करने वाला

(14:10) है उसको रोक लीजिए माता श्री नहीं तो अनर्थ हो जाएगा ंड राक्षस की इतनी हिम्मत कि व नहुष की हत्या करने का साहस कर बैठा आज हुंड दैत्य को मेरे हाथों से कोई नहीं बचा सकता देवता ऋषि मुनि सब हुंड के प्रकोप से तंग आ चुके हैं अब मुझे उसका संघार करना ही होगा देखते ही देखते मां पार्वती मां काली के रूप में आ जाती हैं उनका क्रोध बढ़ रहा था वह हाथों में खडग लिए हुंड के वध के लिए निकल पड़ती हैं किंतु यदि वह हुंड का वध कर देती तो वह प्रकृति के खिलाफ हो जाता क्योंकि हुंड दैत्य का वध नहुष के हाथों ही लिखा था इसलिए मां काली को रोकना जरूरी था पर उनके

(14:51) क्रोध को कौन रोकेगा यही समस्या थी नारायण नारायण प्रभु मां काली तो क्रोध में आकर हुंड का वध करने निकल चुकी है अब इनके क्रोध को कौन शांत करेगा कौन इन्हें रोकेगा आप सही कह रहे हैं देवर्षि नारद मां काली को यदि रोका नहीं गया तो अनर्थ हो जाएगा अब तो सिर्फ महादेव ही उनके क्रोध को शांत कर सकते हैं जिस प्रकार उन्होंने पहले भी कई बार मां काली के मार्ग में आकर उनके क्रोध को शांत किया है आप तो जानते ही हैं देवर्ष नारद जब देवी पार्वती अत्यंत क्रोधित होती हैं तो वह महाकाली का रूप कर लेती है और फिर उनके क्रोध को शांत करना असंभव हो जाता है इतनी

(15:35) देर में सभी देवी देवता भगवान विष्णु के पास प्रकट होते हैं प्रभु देवी काली अत्यंत क्रोधित हो चुकी है संसार भय से काप रहा है प्रभु कुछ कीजिए प्रभु कुछ कीजिए आप चिंतित मत होए देव राजेंद्र हम सब भगवान शिव के पास चलते हैं महादेव सभी देवी देवता आपके पास विनती हेतु आए हैं इनकी सहायता कीजिए मैं आपकी क्या सहायता कर स सकता हूं ब्रह्मदेव आखिर क्या हुआ है महादेव हुंड दैत्य को पता चल चुका है कि भविष्य में उसका वध आपके होने वाले जमाता नहुष के हाथों ही होगा इसलिए वह उसकी हत्या हेतु निकला है देवी पार्वती इसी कारण क्रोध में आ गई है और उन्होंने मां

(16:13) काली का रूप धारण कर लिया है अब उनके क्रोध को केवल आप ही शांत कर सकते हैं देवाधिदेव काली के क्रोध को शांत करने के लिए मुझे उनके सामने जाना होगा सभी देवी देवताओं को आश्वासन देकर भगवान भोलेनाथ देवी काली के समक्ष प्रकट होते हैं देवी काली क्रोध की अग्नि में जल रही थी वो भगवान शिव को अपने सामने देखकर विशाल रूप धारण कर लेती हैं और उनका क्रोध अत्यधिक बढ़ जाता है शिव जी भी उन्हें रोकने के लिए अपना विशाल रूप धारण कर लेते हैं रुक जाओ देवी पार्वती शांत हो जाओ नहीं अब मेरा क्रोध तभी शांत होगा जब मैं हुंड दैत्य का वध करूंगी देवी पार्वती यदि आपने

(16:51) हुंड का वध कर दिया तो हमारी पुत्री अशोक सुंदरी द्वारा दिए गए उस श्राप का क्या होगा वो श्राप व्यर्थ से जाएगा आप उस श्राप की मर्यादा को कैसे भंग कर सकती हो आप जानते हैं प्रभु हुंड ने हमारी पुत्री और होने वाले जमाता को मारने का दुस्साहस किया है और आप कहते हैं कि मैं शांत हो जाऊं नहीं देवी पार्वती आसमान की ओर देखिए सभी देवी देवता आपके इस रौद्र रूप को देखकर घबरा रहे हैं शांत हो जाओ पार्वती यही संसार के हित में है नहीं अब मुझे कोई शांत नहीं कर सकता आप मेरे मार्ग से हट जाइए मैं आज नहीं पर रुकिए देवी पार्वती हमारी पुत्री अशोक

(17:32) सुंदरी और न होश दोनों ही सकुशल है उन्हें कुछ नहीं हुआ नारायण नारायण अब क्या होगा प्रभु माता तो क्रोध की अग्नि में आगे बढ़ चुकी है अब महादेव माता को कैसे शांत करेंगे उन्होंने तो महादेव की बात को मानने से भी इंकार कर दिया है देवर्षि नारद भगवान शिव के होते हुए हमें चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है वह देवी काली के क्रोध को शांत अवश्य करेंगे आप निश्चिंत रहिए मां काली क्रोध में आगे बढ़ती जा रही थी तभी उन्हें एक बालक के रोने की आवाज सुनाई दी वास्तव में वह बालक कोई और नहीं बल्कि महादेव का ही अवतार था जो हूबहू दिखने में महादेव की तरह ही था

(18:15) अपने बाल रूप में महादेव रोए जा रहे थे उनका रोना बंद नहीं हो रहा था लगातार रोते बच्चे की आवाज को सुनकर मां काली रुक जाती है बच्चे का रोना मां काली से देखा नहीं गया वो उस बालक के पास जाती है छोटे से बालक को रोता हुआ देख मां काली से रहा नहीं जाता और वह उस बालक को गोद में उठा लेती है यह बालक क्यों रो रहा है यह बालक तो चुप ही नहीं हो रहा लगता है मेरे इस रूप को देखकर यह डर रहा है मुझे अपने वास्तविक रूप में आ जाना चाहिए बालक की करुण आवाज को सुनकर मां काली अपना क्रोध भूल जाती है और वह अपने वास्तविक रूप में आ जाती है और बच्चे को खिलाने लगती हैं

(18:55) बालक भी चुप हो जाता है तभी वहां पर देव नारद और भगवान विष्णु सभी देवताओं के साथ प्रकट होते हैं देवी पार्वती ध्यान से इस बालक की तरफ देखिए आपके क्रोध को शांत करने के लिए ही महादेव ने इस बालक का रूप धरा है और यह जो रो रहे थे वो इनकी पीड़ा थी यह जानते थे कि आप इस समय अत्यंत दुखी है और आपने अपने क्रोध को और आपने अपने दुख को क्रोध में परिवर्तित कर लिया है और क्रोध विनाशकारी होता यह तो आपको परिचित है देवी पार्वती इसलिए आपके क्रोध को शांत करने के लिए ही महादेव ने इस बालक का रूप धरा था आज यह सिद्ध हो गया कि अत्यंत क्रोध को अत्यंत प्रेम भाव

(19:42) से ही शांत किया जा सकता है महादेव आज से आपके इस बाल रूप को बटुक अवतार के रूप में जाना जाएगा सभी देवी देवता भगवान शिव और माता पार्वती पर फूलों की वर्षा करने लगे उस दिन से भगवान शिव के बटु अवतार को भक्त गण पूजने ल शिवपुर गांव में एक बहुत ही पुराना पेड़ था जिस पर एक कौवा और कोयल दोनों रहते थे एक बार दूसरे गांव से आए दो युवक उस पेड़ के नीचे आकर बैठ गए कोयल अपनी मधुर आवाज में गाने लगी वाह कितनी मधुर आवाज है इस कोयल की इसके गाने ने तो मानो हमारी सारी थकान पल भर में ही गायब कर दी कितना आनंद आ रहा है इसका गीत सुनकर ऐसा लग रहा है यह

(20:27) सारा दिन ऐसे ही गाती रहे और हम इसके मधुर गीतों में खोए रहे कुछ देर गाने के बाद कोयल चुप हो जाती है तभी कौवा कायकाय करना शुरू कर देता है इस कौवे ने तो सारा मजा ही गरगरा कर दिया कौवे की कर्कश आवाज सुनकर उन दोनों राहगीरों ने पेड़ पर पत्थर मारना शुरू कर दिया कौवा डर कर वहां से भाग गया कुछ देर बाद जब वोह दोनों वहां से चले गए तब कौवा आकर उस पेड़ पर वापस बैठ गया कौवा रोते हुए कोयल से कहने लगा भगवान ने मेरे साथ बड़ा ही अन्याय किया है ऐसा क्यों कहते हो तुम्हारे साथ कौन सा अन्याय हुआ है देखो ना बहन एक तो भगवान ने मुझे

(21:08) इतना काला रंग दे दिया और ऊपर से आवाज भी कर्कश वाली दे दी जहां भी बैठकर कुछ बोलना चाहूं तो लोग आवाज सुनकर पत्थर मारने लगते हैं और एक तुम हो भले ही तुम्हारा रंग काला हो लेकिन बोली इतनी मीठी है कि तुम्हें सभी सुनना चाहते हैं तुम्हें कोई नहीं भगाता यही तो विधाता का खेल है मेरे भाई व जिसे जैसा बनाता है उसे वैसे ही स्वीकार करना पड़ता है तुम मुझे कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे कि मेरी भी तुम्हारी तरह मधुरा आवास हो जाए यह तो कोई नहीं कर सकता कि तुम्हें कोयल बना दे सिवाय उस शिवजी भगवान के विधि विधान को बदलने की क्षमता तो केवल शिव जी के ही पास है एक वही है जो

(21:52) ब्रह्मा जी के लेख में परिवर्तन कर सकते हैं अगर तुम कैलाश जाकर शिव जी से प्रार्थना ना करो तो वह तुम्हारी सहायता जरूर करेंगे कौवा वहां से उड़कर दो दिन का सफर तय करके कैलाश शिवजी के पास पहुंच जाता है प्रणाम प्रभु काग्र आज कैलाश किस कारण वशा ना हुआ इसके बाद कौवे ने अपनी सारी व्यथा शिवजी को सुना दी उसकी कहानी सुनने के बाद शिवजी बोले हे काग्र तुम इतने दुखी ना हो तुम जैसा चाहते हो मैं तुम्हें वैसा बना दूंगा किंतु मैं चाहता हूं कि कोयल बनने से पहले तुम एक बार कोयल से जाकर पूछ लो कि वह कितनी सुखी है शिवजी की बात सुनकर कौआ कोयल के पास जा पहुंचा

(22:38) और उसको अपनी और शिवजी के बीच हुई सारी बात बता दी फिर कोयल उससे कहने लगी भैया मेरी आवाज भले ही मीठी है पर रंग काला है अंधेरे में मैं दिखाई नहीं देती मुझसे अच्छी जिंदगी तो हंस की है जो कितना सफेद है सभी देखना चाहते हैं उसे सारा दिन सरोवर में रहता कितना सुंदर लगता है हर कोई उसे देखना चाहता है कोयल की बातें सुनकर कवे का मन बदल गया और वह फिर शिवजी के पास पहुंचा प्रभु अब मुझे कोयल नहीं बनना वह तो अपनी जिंदगी से खुश नहीं है किंतु हंस जरूर अपनी जिंदगी से खुश होगा ठीक है मैं तुम्हें जरूर हंस बना दूंगा पर एक बार जाकर तुम हंस से पूछ कर आओ कि वो कहीं

(23:25) अपनी जिंदगी से दुखी तो नहीं है कौवा एक बार फिर उड़कर हंस के पास पहुंचा भाई मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूं पूछो भाई क्या पूछना चाहते हो तुम तो अपनी जिंदगी में बहुत खुश होग ना नहीं भाई मुझे हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं कोई मेरा शिकार ना कर ले लेकिन तुम्हारा शिकार कौन करेगा आजकल हर कोई पानी में रहने वाले पशु पक्षियों को मारकर खा लेते हैं मुझे तो हर समय यही डर लगा रहता है कि कहीं कोई मुझे मार ना दे यही मेरी जिंदगी है सच कहूं तो जिंदगी तो तोते की अच्छी होती है हरा हरा रंग और लाल लाल चोंच हंस की बात सुनकर कौवा तोता

(24:08) बनने की ख्वाहिश पाल लेता है और वह शिवजी के पास जाकर कहता है प्रभु मुझे तोता बना दीजिए काग राज तुम एक बार तोते से जाकर पूछो कि कहीं उसको भी अपनी जिंदगी से कोई शिकायत तो नहीं है उसके बाद कौवा तोते के पास चला जाता है और उससे पूछ दोस्त तुम तो अपनी जिंदगी में बहुत खुश हो गए तुम्हें कोई शिकायत नहीं होगी तुम अपनी इस चोत से स्वादिष्ट खाना खाते हो हरा हरा सा खूबसूरत रंग है तुम्हारा लाल लाल सुंदर सुंदर चोंच है तुम्हारी देखने में कितने सुंदर हो सब लोग तुम्हें मिट्ठू कहकर बुलाते हैं दोस्त मेरी सुंदरता ही तो मेरी जान का कारण है मुझे हमेशा डर सताता रहता

(24:57) है कि कहीं कोई मुझे पकड़कर पिंजरे में ना बंद कर दे मेरी आजादी ना छीन ले असली सुंदरता तो मोर के पास है सुंदर सुंदर पंख और जब वह नृत्य करता है तो कितना सुंदर लगता है तोते की बात सुनने के बाद कौवा शिवजी के पास गया और बोला प्रभु ना ही मुझे हंस बनना है और ना ही तोता कृपा करके मुझे मोर बना दीजिए मोर तो अपनी जिंदगी से बहुत खुश होगा काग राज तुम एक बार मोर से भी पूछ लो उसे कहीं अपनी जिंदगी से कोई शिकायत तो नहीं है कौवा मोर को ढूंढने गया लेकिन वो उसे कहीं दिखाई नहीं दिया फिर वो उसे चिड़िया घर में मिलता है भाई तुम दिखने में कितने सुंदर हो जब तुम नाचते हो

(25:47) तो तुम्हारी खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं लोग तो तुम्हारे साथ फोटो खींचने में कितने खुश रहते हैं और एक मैं काला क लूटा अगर मैं किसी की छत पर भी बैठ जाऊं तो वह मुझे वहां से भगा देते हैं अरे काहे की सुंदरता इसी सुंदरता के कारण तो आज मैं पिंजरे में कैद हूं अगर बाहर रहता हूं तो हर समय डर रहता है कि कब ना जाने कौन आकर मेरे पंख नोच ले कहीं कोई मेरा शिकार ना कर ले सबसे अच्छी जिंदगी तो तुम्हारी है ना ही तुम्हें कोई पकड़ता है और ना ही तुम्हारा शिकार करता है अपनी आजादी में रहते हो लेकिन फिर भी ना जाने क्यों तुम्हें खुद से शिकायत रहती है कि कि

(26:26) तुम्हारा रंग काला है और आवाज बेकार है सच कहूं तो यही तुम्हारा सुरक्षा कवच है मैं तो ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि अगले जन्म में मुझे कौवा ही बनाए मोर की बातों को सुनकर अब कौवे को समझ में आ चुका था कि ईश्वर वही करता है जो तुम्हारे लिए अच्छा होता है ना कि वह जो तुम्हें पसंद हो यह सोचकर कौवा फिर शिव जीी के पास पहुंचा और कहने लगा प्रभु मुझे ना तो तोता बनना है ना कोयल ना हंस और ना मोर ना जैसा हू मैं वैसा ही ठीक हूं प्रभु शिवजी उसकी बातें सुनकर हंसते हैं और कहते हैं काग्र यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता था हमें किसी से

(27:09) खुद की तुलना नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह हमेशा दुख का कारण ही बनती है और हर कोई अपने आप में श्रेष्ठ है अब कौवे को सारी बात समझ आ चुकी थी वह शिवजी से आज्ञा लेकर खुशी खुशी वापस कोयल के पास लौट जाता है [संगीत] भगवान शिव को यह बात पता नहीं थी कि उनका एक पुत्र है जिसका निर्माण माता पार्वती ने किया है भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आने वाले होते हैं यह खबर सुनकर माता पार्वती स्नान करने चली जाती हैं लेकिन उस समय कोई गुण उपस्थित ना होने के कारण वह गणेश को बाहर पहरेदारी के लिए खड़ा करके जाती हैं कि कोई अन्य अंदर प्रवेश ना कर सके इसके पश्चात भगवान शिव

(27:55) वहां पहुंचते हैं और अपनी गुफा में जाने का प्रयास करते हैं गणेश जो द्वार पर पहरेदारी कर रहे होते हैं वह शिवजी को अंदर जाने से रोकते हैं शिवजी को आश्चर्य होता है कि यह बालक कौन है जो उन्हें उनके ही निवास स्थान पर जाने से रोक रहा है कौन हो तुम धूर्त बालक जो इस तरह से बात कर रहे हो हम स्वयं ही भीतर जाकर देवी पार्वती से पूछते हैं यह कौन बालक हमारे द्वार पर हमारा रास्ता रोक कर खड़ा है रुकिए आपको भीतर जाने की अनुमति नहीं है मेरी माता श्री का आदेश है कि भी भीतर ना जाने पाए और जब तक वह नहीं कहती मैं किसी को भी इस महल के भीतर नहीं जाने दूंगा

(28:35) बालक हमें क्रोध मत दिलाओ हमारे सामने से हट जाओ वरना हमारे क्रोध को तुम नहीं जानते हो और आप मुझे नहीं जानते मेरे होते हुए इस द्वार को कोई नहीं लांग सकता तो फिर आज हमारे हाथों तेरा वध होगा ले बचा अपने आप को हमारे इस वार से अच्छा तो आप युद्ध करना चाहते हैं तो यह भी हो जाए इसी बात पर गणेश जी और शिवजी में य प्रारंभ हो जाता है युद्ध में भगवान शिव अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धर से अलग कर देते हैं सभी देवता भी वहां उपस्थित होते हैं और उन्हें भी इस बात का अंदाजा नहीं होता है कि गणेश कौन है सबकी आवाजें सुनकर माता पार्वती

(29:13) बाहर आती हैं और यह देखती हैं कि उनके पुत्र का धड़ अलग और सिर अलग है माता पार्वती क्रोध से भर गई और शेर सवारी मां दुर्गा के रूप में आ गई उन्होंने अपनी सभी शक्तियों को प्रकट कर प्रलय म ने का आदेश दिया शैल पुत्री ब्रह्मचारिणी कुष्मांडा स्कंद माता कात्यायनी कालरात्रि महागौरी सिद्धिदात्री मेरे नौ रूप मेरी नौ शक्तियां प्रकट हो देखते ही देखते मां दुर्गा के नौ रूप नौ देवियां प्रकट हो गई मेरी शक्तियों सारे संसार में प्रलय मचा दो सबसे पहले उनका विध्वंस करो जो मेरे पुत्र को मारकर आनंद मना रहे हैं विजय उत्सव मना रहे हैं स्वजन परिजन का भेद

(29:57) भुलाकर जो मिले उन्हें तुरंत यमपुरी पहुंचा दो जो आज्ञा मातेश्वरी सभी देवी शक्तियां संपूर्ण कैलाश सहित पूरे ब्रह्मांड में विध्वंस करने लगे संपूर्ण ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया सभी ऋषि गण और देवता गण माता से प्रार्थना करने लगे हे मातेश्वरी शांत हो जाइए नहीं तो अनर्थ हो जाएगा ये पूरी सृष्टि आपके क्रोध की ज्वाला से भस्म हो जाएगी जब तक मेरा पुत्र जीवित नहीं हो जाता तब तक चारों ओर ऐसी ही तबाही मची रहेगी अब तो भगवान भोलेनाथ ही कुछ कर सकते हैं हम सभी को उनके पास जाना चाहिए सभी देवता गण और ऋषि गण भगवान भोलेनाथ के पास जाते हैं हे महादेव मां

(30:35) पार्वती का क्रोध बढ़ता ही जा रहा है उनकी नौ शक्तियां पूरे ब्रह्मांड का विध्वंस कर देंगी कुछ कीजिए प्रभु उनका क्रोध शांत करने के लिए कुछ कीजिए मां पार्वती ने कहा है जब तक गणेश को पुनर्जीवन नहीं मिल जाता तब तक उनका क्रोध शांत नहीं होगा अगर गणेश को पुनर्जीवन नहीं मिला तो सर्वनाश हो जाएगा आप चिंता मत कीजिए मैं इस समस्या का समाधान सोच चुका हूं पर महादेव आप बालक गणेश को पुनर्जीवित कैसे करेंगे बालक गणेश का मस्तक तो आपके त्रिशूल के प्रहार से क्षत विक्षत हो गया है होगा अवश्य होगा हे मधुसूदन आप उत्तर दिशा की ओर जाइए और जो

(31:14) भी प्राणी आपको सबसे पहले दिखाई दे उसका मस्तक काट कर ले आइए भगवान श्री हरि विष्णु उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान करते हैं उत्तर दिशा का अवलोकन करने पर भगवान श्री हरि विष्णु को सबसे पहले दिखाई देने वाला प्राणी एक हाथी था जो वास्तव में देवराज इंद्र का श्रापित हाथी ऐरावत था श्री हरि विष्णु मुस्कुराए और उस हाथी के समीप गए हाथी ने विष्णु जी को नमस्कार किया मानो वो खुद भी श्राप से मुक्त होने की कामना कर रहा हो श्री हरि विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका शीष काटकर उसे मुक्ति प्रदान की ऐरावत हाथी श्राप से मुक्त हो गया और अपने असली रूप में आकर

(31:56) स्वर्ग लौट गया भगवान विष्णु हाथी का मस्तक लेकर कैलाश लौट आए उसके पश्चात भगवान शिव गणेश के धर से हाथी का मस्तक जोड़ देते हैं भगवान गणेश जीवित हो जाते हैं और माता पार्वती का क्रोध शांत हो जाता है सभी देवी देवता भगवान गणेश को अपना अपना आशीर्वाद देते हैं पुत्र गणेश मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि संसार में अब से तुम प्रथम पूजनीय कहलाओगे कोई भी मंगल कार्य शुरू करने के लिए प्रथम पूजा तुम्हारी होगी श्री गणेश के प्रथम पूजन के बिना कोई भी मंगल कार्य पूजा पाठ जब तप व्रत धर्म आदि का फल प्राप्त नहीं होगा आज से गणेश को सभी का

(32:42) अध्यक्ष घोषित किया जाता है प्रथम पूज्य होने के कारण आज से तुम मेरे सभी गणों के भी अध्यक्ष बनोगे मेरा आशीर्वाद है संसार में कोई भी तुम्हारा सामना नहीं कर सकेगा और फिर सभी देवी देवता बालक गणेश को अपना अपना आशीर्वाद देते हैं बालक गणेश सभी देवी देवताओं को नमन करते हैं भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती बालक गणेश को अपने हृदय से लगा लेते हैं उस दिन से गौरी पुत्र गणेश प्रथम पूजनीय हो गए संसार में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेश की पूजा होती है उसके पश्चात ही कोई मंगल कार्य की शुरुआत होती है एक बार मां पार्वती कैलाश पर भ्रमण कर रही

(33:32) थी तभी उनकी नजर पृथ्वी लोक पर पड़ी सेठ जी यह माल गाड़ी में से उतार दिया है यह ले तेरे आज की कमाई के 00 पूरा दिन मेहनत करके सिर्फ यह 00 ही कमाई हुई है अब इसमें से 50 दूध के 50 सब्जी के बाकी बचे ₹ जो पूरे ती दिन चलाने हैं आह यह हो गए पूरे 0000 इन्हें तिजोरी में रख देता हूं नहीं भैया यह बहुत महंगी साड़ी है कोई सस्ती सी दिखा दो हां यह 50 वाली ठीक है भैया यह तीनों साड़ी पैक कर दो यह लो 000 मां पार्वती गरीब और अमीर दोनों को देख रही थी आखिर जिसे जो चाहिए उसे मिलता नहीं और जिसके पास पहले से हो उसे और मिल जाता है इस प्रश्न का उत्तर तो महादेव ही

(34:36) दे सकते हैं धरती का यह नजारा देखकर मां पार्वती भगवान शंकर के पास जाती है महादेव मैंने देखा है कि धरती पर जो व्यक्ति पहले से ही गरीब और दुखी है उसे और ज्यादा दुख मिलता है और जो सुख में है आप उसे दुख नहीं देते ऐसा क्यों भगवन यह आपकी कौन सी लीला है देवी पार्वती इस बात का उत्तर जानने के लिए आपको हमारे साथ धरती पर चलकर वहां के प्राणियों का हालचाल जानना होगा वहीं इस प्रश्न का उत्तर आपको प्राप्त होगा भगवान शिव के कहे अनुसार कुछ समय बाद मां पार्वती उनके साथ मृत्युलोक में प्राणियों का हालचाल जानने के लिए चल पड़ी तभी रा में उन्हें गरीब पति-पत्नी

(35:28) जाते दिखाई दिए उर्मिला कुछ समझ नहीं आ रहा हमारी गरीबी के दिन कब दूर होंगे वो चंदन ने फिर एक नई जमीन खरीद ली सबका भाग्य एक सा नहीं होता है जी उसके भाग्य में अमीर बनना लिखा है हमारे में नहीं भगवान की इच्छा होगी तो हम भी अमीर बन जाएंगे पता नहीं कौन से पिछले जन्मों के कर्मों की सजा भुगतनी पड़ रही है ना जाने कौन से बुरे पाप किए थे हे महादेव आप इन दोनों पति-पत्नी को कुछ ही पलों में अमीर बना सकते हैं मेरे कहने पर आप इन्हें अमीर बना दीजिए यह बेचारी कितने दुखी हैं देवी पार्वती इन दोनों के भाग्य में अभी अमीर बनना नहीं लिखा है

(36:14) महादेव जब हम इन्हें धन दे देंगे तो इनकी गरीबी दूर हो जाएगी फिर यह भी अमीर और सुखी हो जाएंगे कृपया करके आप इनकी मदद कीजिए प्रभु देवी पार्वती मैं तुम्हारी इच्छा सार इन्हें धन प्रदान कर देता हूं पर उसका मिलना या ना मिलना कर्मों पर निर्भर करता है पार्वती जी के कहने पर भगवान शिव ने सोने की अशर्फियां से भरी एक पोटली उस रास्ते में डाल दी पोटली से कुछ दूरी पर उर्मिला की नजर गुजरते हुए एक अंधे व्यक्ति पर पड़ी सुनो जी हम तो गरीब हैं इसलिए दुखी हैं पर यह सामने व्यक्ति तो नेत्रहीन है एक बात समझ नहीं आई ये नेत्रहीन लोग कैसे जीवन व्यतीत करते होंगे

(36:59) हां बड़ी मुश्किल होती होगी उर्मिला इन बेचारे नेत्रहीन लोगों को चलो आज हम भी अंधों की तरह चलकर देखते हैं देखें यह कैसे जीवन जीते हैं उर्मिला और सूरज आंखें बंद कर एक दूजे का हाथ था में चलने लगे सोने की अशर्फियां की पोटली रास्ते में ही पड़ी रह गई और वे दोनों करीब से गुजर गए भगवान शिव बोले देखा देवी पार्वती इनके भाग्य में अभी गरीब ही लिखी है हम कुछ दिन धरती पर ही रहेंगे यहां मनुष्य रूप में रहकर मैं तुम्हारे मन की सभी शंकाओं को दूर करना चाहता हूं भगवान शिव और देवी पार्वती ने मनुष्य का रूप धारण किया और पति-पत्नी के रूप में एक गांव के पास डेरा

(37:48) जमाया शाम के समय देवी पार्वती भगवान शिव से बोली स्वामी मैं रसोई की तैयारी शुरू करती हूं यहां पृथ्वी लो में यदि हम रहने आ ही चुके हैं तो हमें भोजन की भी व्यवस्था करनी होगी मैं चूल्हा बनाने की तैयारी करती हूं आप तब तक भोजन बनाने की सामग्री ले आइए मां पार्वती चूल्हा बनाने के लिए बाहर से ईट लेने गई चूल्हा बनाने के लिए मुझे ईटों की जरूरत है यह एक जरजर और टूटा मकान दिखाई दे रहा है इसकी ईट मेरे काम आ जाएंगी यही ले लेती हूं चूल्हा तो तैयार कर लिया महादेव आते ही होंगे अरे आप आ यह देखिए मैंने चूल्हा तैयार कर लिया पर आप खाली हाथ क्यों लौटाए स्वामी भोजन कैसे

(38:33) बनेगा देवी पार्वती अब सामग्री की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि जिस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए आप आई थी वो आपको स्वयं मिल गया मैं कुछ समझी नहीं स्वामी मेरे प्रश्न का उत्तर मेरे समक्ष ही है हां देवी पार्वती आप यही जानना चाहती है ना कि इस पृथ्वी पर क्यों गरीब लोग ज्यादा परेशान होते रहते हैं अच्छा यह बताइए आप इस चूल्हे को बनाने के लिए टे कहां से लेकर आई हो प्रभु इस गांव में बहुत से ऐसे घर भी हैं जिनका रखरखाव सही ढंग से नहीं हो रहा है उन पुराने घरों की जरजर हो चुकी दीवारों में से मैं ईट निकाल कर ले आई इसका मतलब जो घर पहले से खराब थे आपने

(39:26) उन्हें और खराब कर दिया जबकि आप मजबूत घरों की दीवारों से भी तो ईट ला सकती थी प्रभु जो घर अच्छे और सुंदर दिख रहे थे उस घर के लोगों ने अपने घरों का रखरखाव बहुत अच्छी तरह किया है ऐसे में उन सुंदर घरों को बिगाड़ना मुझे उचित नहीं लगा देवी पार्वती कुछ दिन पहले पूछे आपके प्रश्न का उत्तर भी यही है जिन लोगों ने अपने जीवन को अच्छे कर्मों से सुंदर बना रखा है उन्हें दुख कैसे हो सकता है इस संसार में हर मनुष्य अपने कर्मों का ही फल पाता है सबके पास सब कुछ नहीं होता मनुष्य के पिछले जन्मों का कर्म उसे इस जन्म में भुगतना ही पड़ता है और यदि वो अपने इस

(40:22) जन्म और आने वाले अन्य जन्मों को सुखी बनाना चाहता है तो हमें सदैव ही पुण्य कार्य करते रहना चाहिए ताकि हमारे कर्म उसमें जुड़ते रहे आपको ज्ञात है वह मार्ग में उस दिन एक नेत्रहीन व्यक्ति हां स्वामी मुझे ज्ञात है वह देखिए देवी पार्वती उसके पास धन दौलत ऐशो आराम की कोई कमी नहीं है परंतु उसकी आंखों का इलाज नामुमकिन है यह उसके पिछले जन्म के कर्मों से जुड़ा है उसने पिछले जन्म में जानबूझकर किसी निर्दोष की आंखों की रोशनी छीन ली थी इसलिए यह इस जन्म में नेत्रहीन हो गया पर इसके कुछ पुण्य कार्यों की वजह से यह अमीर बना और वो गरीब पति पत्नी स्वामी देवी वो

(41:25) दोनों पिछले जन्म में एक कंजूस अमीर सेठ सेठानी थे जो कभी भी कोई दान पुण्य नहीं करते थे इसलिए इस जन्म में उन्हें गरीबी और दुख मिला पर इन दोनों के अच्छे कर्म इनका आगे का जीवन सुखी बना सकते हैं इस पृथ्वी पर कोई भी मनुष्य पूरी तरह से सुखी नहीं है देवी हर मनुष्य के पास कोई ना कोई दुख और समस्या है मुझे उत्तर मिल गया है स्वामी इस पृथ्वी पर सुख पूर्वक जीवन यापन करने के लिए मनुष्य को अपने द्वारा अच्छे कर्म करने चाहिए ताकि उसे उसके पिछले बुरे कर्मों का फल ना भुगतना पड़े और फिर अपने प्रश्नों का उत्तर पाकर देवी पार्वती भगवान शंकर के

(42:20) साथ अपने रूप में आकर कैलाश वापस लौट गई


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