Hanumanji Aur Kanjus Seth | हनुमान जी ने कंजूस सेठ का पैर पकड़ा | Hindi Kahani | Moral Stories -

 Hanumanji Aur Kanjus Seth | हनुमान जी ने कंजूस सेठ का पैर पकड़ा | Hindi Kahani | Moral Stories -  


प्यारी दोस्तों नमस्ते कहानी सुनने जा रही हूं बहुत समय पहले की बात है एक गांव में भगवान श्री राम की परम भक्ति शुभंकर रहते थे वह दिन रात राम नाम की जाप करते रामायण का पाठ करते और राम की भक्ति में ही वो अपना जीवन यापन कर रहे थे वो मां के काफी सच्चे और आदर्शवादी थे वो जहां कहानी भी जाते किसी राम मंदिर में ही ठहरते और उसे मंदिर में रामायण की कथा जरूर करते फिर चाहे कोई आदमी कथा सुनने वाला हो या फिर ना हो ऐसे में एक बार वो नारायणपुर नाम के गांव में गए और इस गांव के राम मंदिर में रुकने का विचार किया और मंदिर के पुजारी से बोले

(00:44) पुजारी जी अगर आपकी आजा हो तो मैं 9 दिन के लिए इस मंदिर में रुक कर राम कथा करना चाहता हूं माफ कीजिए महाराज आप मंदिर में रहेंगे तो मुझे कोई एतराज नहीं होगा यह तो भगवान राम का दरबार है जहां उनके किसी भी भक्ति को ठहरने के लिए मुझे इजाजत मांगने की आवश्यकता नहीं है लेकिन महाराज इस गांव के लोगों को कथा सुनने में कोई दिलचस्प नहीं रहती कहानी भी किसी भी भगवान की कथा क्यों ना हो पर उसे कोई भी सुनने नहीं जाता अगर ऐसे में आप यहां रामायण की कथा करेंगे तो कोई उसे सुनने नहीं आएगा कोई बात नहीं पुजारी जी मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता की कोई इंसान मेरी कथा

(01:30) सुना चाहता है या नहीं क्योंकि मुझे इस बात का विश्वास है की स्वयं प्रभु श्री राम बजरंगबली और भगवान शिवा मेरी कथा जरूर सुनते हैं इसलिए आप इस बात की तनक भी चिंता ना करें की कोई मेरी कथा सुनने आएगा या नहीं भगवान राम के इस परम भक्ति की बात को सुनकर पुजारी जी को इस बात का एहसास हो चुका था की वो भगवान राम की सच्चे भक्ति है ऐसे में पुजारी जी ने उनसे कहा महाराज आप जितने दिन भी रुकना चाहें आप रुक सकते हैं मैं मंदिर के प्रांगण में ही राहत हूं आप भी वहीं रहे और जितने भी वक्त आप मंदिर में पूजा पाठ और रामायण कथा करना चाहे आप

(02:13) कर सकते हैं मैं आपकी सेवा में हमेशा तत्पर रहूंगा ऐसे में भगवान राम की वह परम भक्ति वहां रुक जाते हैं है और अगले ही दिन से रामायण की कथा प्रारंभ करते हैं पहले दिन की कथा समाप्ति की और होती है लेकिन कोई श्रोता कथा सुनने नहीं आते यहां तक की मंदिर की पुजारी भी मंदिर की साफ सफाई करके चले गए लेकिन वो कथा सुनने नहीं आए दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ इसी तरह पांच दिन बीट गए कथा सुनने कोई नहीं आया लेकिन वो सच्चे मां से अपनी कथा सुनते रहे वही सोच कर सच्ची और पवित्र मां से कथा सुनते की भगवान राम हनुमान जी और शिवा जी उनकी कथा सुन रहे हैं

(02:56) आठवी दिन एक कंजूस सेठ जी मंदिर में भगवान को प्रणाम करने आते हैं जैसे वो प्रणाम करने के लिए झुकते हैं भगवान राम की मूर्ति से आवाज आई है सेठ जी आवाज सुनकर चौक जाते हैं और इधर उधर देखने लगता हैं की तभी फिर से आवाज आई है हनुमान जी की मूर्ति से आवाज आई हैरान हो जाते हैं और सोने लगता हैं की क्या भगवान की मूर्तियां आपस में बातें कर रही हैं ऐसा भला कैसे हो सकता है वो काफी सोने पद जाते हैं और वही खड़े र जाते हैं की तभी फिर से भगवान राम की मूर्ति से आवाज आई है लेकिन कोई कथा सुनने नहीं आता लेकिन तुम रोज कथा सुनते हो क्या तुम्हें नहीं लगता

(03:56) की मेरे इस वक्त को दक्षिण में कुछ मिलन चाहिए हनुमान जी की मूर्ति से आवाज आई है यह सुनकर कंजूस सेठ जी के मां में लालच ए जाता है और फिर सोने ग जाते हैं वाचन को 50 सिक्के देकर 101 सिक्के रख लो तो मुझे क्या बन से कोका फायदा हो जाएगा और ये सोच कर सीची वही कथा खत्म होने की इंतजार में बैठ जाते हैं और जब कथा समाप्त होती है तो वो राम भक्ति से कहते हैं महाराज अब कथा तो कहते हैं लेकिन कोई सुनने नहीं आता ऐसे में आपको दक्षिण कैसे मिलेगी कोई बात नहीं सेठ जी मैं दक्षिण के लालच में कथा नहीं कर रहा हूं मैं तो अपने प्रभु श्री राम के लिए उनकी कथा का गुणगान

(04:52) करता हूं इससे मेरे मां को अपार शांति और तृप्ति के अनुभूति होती है जो किसी भी दक्षिण से बहुत बढ़कर है वह तो आपका बड़प्पन है महाराज जी ठीक है अगर ऐसा है तो मैं आपको दक्षिण स्वरूप 50 सिक्के दे देता हूं और बदले में आपको अंत में जितनी भी दक्षिण मिलेगी वो आप मुझे दे देना मुझे कोई आपत्ती नहीं है सेठ जी मुझे जो भी दक्षिण मिले उसे आप रख लेना ऐसा कहकर सेठजी वहां से चली जाते हैं और फिर नवे दिन मंदिर में सुबह-सुबह पहुंच जाते हैं और कथा सुनने लगता हैं लेकिन उन्हें उसे वक्त का इंतजार था जब कोई दक्षिण के रूप में पैसे देंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं कथा

(05:43) समाप्त हो गई लेकिन किसी ने भी दक्षिण नहीं दिया पंडित राम भक्ति अपनी कथा समाप्त करके वहां से प्रस्थान करने के लिए अपना समाज समेटने लगे तब सेठ जी ने उसे बोला महाराज आपको जो दक्षिण मिली वो आप मुझे दे दें मुझे कोई दक्षिण नहीं मिली सेठ जी तो फिर मैंने आपको जो सिक्के दिए थे वो मुझे वापस कर दे लेकिन सेठ जी मैंने तुम सिक्कों से भगवान के लिए प्रसाद बना कर उसे भोग लगा दिया और लोगों में बांट दिया अब मेरे पास कोई पैसे नहीं है लेकिन जहां बैठकर मैं कथा कर रहा था वहां पर थोड़े बहुत पैसे पड़े हैं आप चाहे तो वह ले लेने इतना का कर राम भक्ति वहां से चल देते हैं

(06:28) इधर सेठ जी भगवान की मूर्ति के करीब जाकर देखने जाते हैं की वह कितने पैसे हैं देखा तो वहां पर मंत्र ₹11 ही थे अब तो सेठ जी बहुत परेशान हो गए उन्हें तो इस बात की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी ऐसे में वह भगवान की मूर्ति के पास गए और बोलने लगे आपने तो कहा था की जब कथा समाप्त होगी तो आप उन्हें दक्षिण के रूप में 101 सिक्के देंगे लेकिन आपने तो कुछ भी नहीं दिया जो मेरे 50 सिक्के थे वो भी चले गए सब आपकी वजह से हुआ है [संगीत] और 50 सिक्के गवाने की वजह से वो गुस्से से बड़बड़ाने ग जाते हैं और उनका गुस्सा इतना बेकाबू हो जाता है की वो अपना पर जोर

(07:09) से हनुमान जी की मूर्ति के पास पटकते हैं ऐसे में हनुमान जी तुरंत उनके पर को पकड़ लेते हैं की तभी राम जी की मूर्ति से आवाज आई है [संगीत] वह चले जाएंगे मुझे उनके पास जान दो मुझे उनसे अपने पैसे लेने हैं इस बात की खबर पहुंच गई सारे गांव वाले मंदिर के पास इकट्ठा हो गए सेठ जी के बेटे भी वहां ए गए [संगीत]

(08:13) [प्रशंसा] उनसे माफी मांगते हुए उन्हें 51 से और दिए तब जाकर हनुमान जी ने सेठ जी के पर को छोड़ दिया अब सेठ जी को भी अपनी गलती का एहसास हो चुका था उन्होंने भगवान से एक क्षमा मांगी और आगे से ऐसी गलती ना दोहराने का वचन दिया सारे गांव वालों के मां में भी भगवान राम और हनुमान के लिए भक्ति की भावना जग उठी आगे से अब जहां कहानी भी राम कथा होती तो सारे गांव वाले कथा सुनने जान लगे दोस्तों इस कहानी से हमें यही सिख मिलती है की हमें बिना किसी स्वार्थ के सच्ची श्रद्धा से भगवान की भक्ति करनी चाहिए उन पर विश्वास करना चाहिए ऐसे में वो हमारी जरूर का ध्यान खुद

(09:01) रख लेते हैं दोस्तों आपको यह कहानी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं ऐसी और कहानी सुनने के लिए इसे लाइक और शेर जरूर करें धन्यवाद


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