भगवान शंकर और कंजूस सेठ | Bhagwan Shankar | Hindi Kahani | Moral Stories | Bhakti Stories | Kahaniya

 भगवान शंकर और कंजूस सेठ | Bhagwan Shankar | Hindi Kahani | Moral Stories | Bhakti Stories | Kahaniya


 बृजपाल गांव में बड़ा ही धनी से धनपत राहत था लेकिन स्वभाव से वह बड़ा ही कंजूस था सेठ की राशन की दुकान थी एक दिन धनपत सेठ पास के ही गांव में किसी कम से गए थे कम खत्म होने के बाद वो जब अपने गांव वापस ए रहे थे तो उनको बड़ी तेज भूख लगी उसे जंगल में कड़कड़ाती धूप में उन्हें कुछ भी खाने को नजर नहीं ए रहा था तभी कुछ दूर चलने पर उन्हें आम के पेड़ पर बहुत सारे आम लगे दिखाई दिए भूख में वो जल्दी से पेड़ पर चढ़ गए भूखे पेट तो उनको वो ऊंचे पेड़ भी छोटे ही दिखाई दिए पेड़ पर चढ़कर उसने पेट भरने तक डॉन आम खाएं लेकिन जब उनका पेट भर

(00:51) गया और वो नीचे की तरफ देखने लगे तो उनको चक्कर ए गए भगवान मैं कब इस पेड़ पर आकर बैठ गया मुझे तो पता ही नहीं चला फिर वो डर भागने के लिए राम नाम जपने लगे बड़ी हिम्मत करके वह एक कम नीचे उतरते फिर कहते और फिर कहते जैसे ही उन्होंने तीसरा कम नीचे रखा उनका पर फिसलने लगा और उन्होंने झट से कहा और हमारा फिर से एक धन पत्नी भगवान शिवा को याद करते हुए कहा है भगवान भोग में मैं कब नीचे से ऊंचाई पर ए गया मुझे तो पता ही नहीं चला अब मुझे आप जल्दी से नीचे उतारिए प्रभु मुझे तो ऊंचाई से बहुत ही डर लगता है अब आप मुझे नीचे उतारिए या फिर मुझे

(01:33) इतनी हिम्मत दीजिए की मैं खुद ही नीचे उतार सुकून फिर वो थोड़ा नीचे उतरा और खाने लगा अगर आपने मुझे नीचे उतारने में मदद की तो मैं आपके मंदिर में जाकर पूरे सो नारियल मंदिर में चढ़ाऊंगा फिर थोड़ा और नीचे आकर बोले भोलेनाथ अगर आपने मुझे नीचे उतारने में मदद की तो पूरे 50 नारियल आकर मैं मंदिर में चढ़ाऊंगा इस तरह वो थोड़ा और नीचे उतार गया और फिर खाने लगा है भगवान मुझे बस थोड़ा सा और नीचे उतार दो मैं पूरे 10 नारियल मंदिर में चढ़ाऊंगा साथ ही 5 ब्राह्मण को घर बुलाकर 56 भोग उन्हें खिलाऊंगा मुझे अब सुरक्षित जमीन पर उतार दो तो आपके

(02:10) मंदिर में आकर एक नारियल और एक ब्राह्मण को सात्विक भजन कराऊंगा धरती पर जब यह सब हो रहा था तो ऊपर कैलाश में बैठे भोलेनाथ ये सब देख रहे थे वही उनके साथ नारद मनी भी थे उन्होंने भोलेनाथ से कहा भोलेनाथ ये सेठ धनपत तो कितना बड़ा स्वार्थी है जैसे ही उसके जीवन में उसकी समस्याओं का स्टार बड़ा होता है वो नीचे झुक जाता है और जैसे ही उसकी समस्याओं का स्टार घटना है तो वो उतना ही रियल बन जाता है और कंजूसियत की तो साड़ी सीमाएं ही पर कर दी उसने भोलेनाथ तक को नहीं छोड़ नारद इंसान को उसके कर्म करने के पीछे जो मंशा छुपी हुई होती है उसके आधार पर फल मिलता

(02:53) है ना की उसके दिखावे के कर्म के आधार पर अभी आप आगे-आगे देखिए आप सब समझ जाएंगे तीन धन पर घर आकर अपनी पत्नी सदला को साड़ी बात बताता है अगले दिन सुबह वो दोनों मंदिर के लिए निकाल पड़े मंदिर पहुंचने ही फूल माला नारियल अगरबत्ती आदि की दुकान मंदिर के बाहर लगी हुई थी तभी एक दुकानदार ने उससे कहा आप मंदिर जा रहे हैं तो जितने भी आवश्यक पूजा सामग्री है वह आप मुझे ले लीजिए नहीं नहीं इस सब की कोई जरूर नहीं है मैं नारियल अपने साथ लाया हूं लेकिन सुनिए ये भाई साहब सही का रहे हैं सिर्फ नारियल चढ़ाएंगे क्या पूजा की पुरी थाली बावा लेते मैंने भोलेनाथ को

(03:33) सिर्फ एक नारियल और एक ब्राह्मण को भोज करने को कहा था अगर उससे ज्यादा चढ़ाएंगे तो भोलेनाथ तो हमसे नाराज हो जाएंगे इसके बाद वो दोनों मंदिर के अंदर जाते हैं जहां पहुंचकर सेठ वह नारियल पंडित को देता है और कहता है पंडित जी इस नारियल को शिवा जी के चरणों में फोड़कर नारियल आप मुझे वापस कर दो पंडित को समझते डर नहीं लगी की देखने से तो ये बड़ा ही अमीर मालूम होता है लेकिन है एक नंबर का कंजूस आदमी पंडित जैसी सोच में दुबे हुए थे की तभी सेठ धनपत ने पंडित जी से कहा पंडित जी कृपा करके आप कल मेरे घर पर भजन के लिए पढ़ा रहे हैं जो

(04:05) एक नारियल को भगवान पर चढ़कर वापस ले ले भला वो एक ब्राह्मण को क्या भोज खिलाएगा वैसे आप कितना खाना खाता हैं पंडित जी बस थोड़े से चावल दो रोटियां एक गिलास दूध और हां एक दो फल बस इतना ही ये सुनकर सेठ धन पर बहुत खुश हुआ की चलो ज्यादा खर्चा नहीं आएगा थोड़ा पैसा लगाकर कम बन जाएगा धनपत अपनी पत्नी सरल को लेकर वहां से चला गया अगले दिन पंडित जी उनके घर पधारे प्रणाम पंडित जी आई अरे सरल पंडित जी ए गए हैं उन्हें भजन परोस दो सदानी पंडित जी के परोसती पंडित जी हाथ धोकर खाने के लिए बैठे पहले उन्होंने प्रभु को प्रणाम किया और फिर पहले निवाला उनको परोस दिया उसके

(04:46) बाद खुद खाने लगे जैसे उन्होंने दो रोटियां खाई तो सरल ने पंडित जी से पूछा पंडित जी और रोटी ले आऊं अरे सरल क्यों तुम पंडित जी का पेट खराब करने पर टोली हुई हो कल ही तो उन्होंने कहा था की उनका पेट दो रोते में भर जाता है फिर क्यों जबरदस्ती कर रही हो बेचारे पंडित जी का और रोटी खाने का मां तो था लेकिन धनपत की बात सुनकर वो और रोटी ना ले सके भजन के बाद सरल सब और केला लेकर आई और पंडित जी को खाने को दिया तो उसने पूछा पंडित जी कुछ और फल भी लेकर तुम क्या कर रही हो तुम भूल गई क्या कल पंडित जी ने कहा था की वो केवल दो फल ही

(05:24) खाता हैं इसके बाद सरल दूध का गिलास पंडित को देती है दूध पीने के बाद पंडित जी उन दोनों को दुआएं देकर वहां से चले जाते हैं हालांकि पंडित ने वहां आधा पेट ही भजन किया था ऊपर कैलाश में बैठकर नारद जी और भगवान शिवा जी यह सब देख रहे थे तभी नारद बोले नारायण भोलेनाथ इस धनपत सेठ की कंजूसी तो कोई हद नहीं है कमाने को तो यह बहुत कमाते हैं लेकिन वो सब सिर्फ अपने तिजोरियों में ही जमा करके रखते हैं किसी को भर पेट भजन करवाने तक की हिम्मत इनमें नहीं है ना ही वो कभी किसी भूखे को खाना खिलाने हैं ना भिखारी में दान करता है और ना ही कभी

(06:04) मंदिरों में चढ़ावा चढ़ता है अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ बड़ा होता है यह तो मैंने सुना है लेकिन आज तो मैं भी इस कंजूस सेठ को इसके कर्मों का फल मिलते देखना चाहता हूं यह तो संसार का नियम है जो जैसा करेगा वह वैसा भरेगा ऐसी कुछ दिन बीट गए अधिकारियों से वंचित है हमने सभी उपाय करने लेकिन अभी तक कोई लाभ नहीं हुआ आप ही कोई रास्ता दिखाई महाराज 2 किलो चांदी और साल भर का राशन किसी साधु का दान करना होगा तभी आपको फल मिलेगा मां बने अपनी तिजोरी से सोनी के गने चांदी और डॉन नोट एक थैली में भरकर उसे साधु के सामने रख दिया महाराज आप एक साधु हैं और ये सभी

(07:10) दान आप स्वीकार कीजिए साथ ही हमें आशीर्वाद दीजिए की हमें एक बच्चा हो जाए साधु की भेस में आए उसे डाकू ने तुरंत वो थैला उठाया और उसे लेकर रफू चक्कर हो गया रात को जब सेठ धनपत घर आए तो उन्होंने सरल को एक किस्सा बताया था तो मैंने दो डाकुओं की बात सनी वापस में बात कर रहे थे की बृजपाल गांव में आज ल कर तो मजा ही ए गया ना जान वो लुटेरे किसको ल कर चले गए क्या तुम्हें इस बड़े में कोई जानकारी है की उन्हें कोई बेवकूफ औरत मिल गई थी जिसने अपने हाथों से उन्हें एक थैली में सोना चांदी और रुपए दिए हैं पता नहीं किसने सब आप कर्म किया है इस गांव में जो की वो घर

(07:50) खुद ही लूटने को तैयार हो गया और सर माल उन डाकुओं के हाथ ग गया अपनी पत्नी के मुंह से ये सब बातें सुनकर धनपत के होश उड़ गए और वो सोफे पर अपना सर पकड़ कर बैठ गया कैलाश में नारद और शिवा जी यह सब देख रहे थे तभी नारद जी ने हंसते हुए कहा भोलेनाथ जी की जय हो आज मैंने देख लिया जैसे को तैसा ही मिलता है जो जैसा करेगा वो वैसा भरेगा इस कहानी से हमें सिख मिलती है यह हमें कंजूसी छोड़कर अपनी कमाई का कुछ हिस्सा दान पुण्य में भी लगाना चाहिए सुंदरवन गांव में सुधा नाम की महिला अपने 3 साल के बेटे मा और भाई नीरज के साथ रहती थी तकरीबन साल भर पहले सुधा के पति का

(08:56) देहांत हो गया था वह अपने भाई के साथ मिलकर उसके छोटे से खेत में कम करती थी बड़ी ही मुश्किलों से उनका जीवन यापन हो का रहा था सुधा का बेटा मा अपने मामा नीरज से बहुत प्यार करता था नीरज भी मा को उतना ही चाहता था वह दोनों एक साथ खाना खाता खेलने और सोते थे ऐसी कुछ दिन बीट जाते हैं फिर एक रोज नीरज को किसी कम से दूसरे शहर जाना पड़ा उसे ज्यादा देख मा से गले लगकर खूब रोटा है और कहता है मामा आप कहां जा रहे हो और कब वापस आओगे मुझे आपकी बहुत याद आएगी मा बेटे मैं किसी जरूरी कम से दूसरे शहर जा रहा हूं मामा जल्दी लोट कर आना मुझे आपकी बहुत याद आएगी बस मेरे

(09:37) बच्चे जैसे ही कम खत्म होगा मैं तुरंत वापस लोट आऊंगा मा और सुधा से अलविदा लेकर नीरज वहां से चला जाता है काफी समय बीट गया लेकिन ना तो नीरज आए और ना ही उसकी कोई खबर सुधा और मा को दिन-रात उसकी चिंता सताती थी मा अक्सर अपने मामा को याद करता और रोटी हुए कहता मामा मेरे मामा कब आएंगे मुझे उनकी बहुत याद आई है मां तू परेशान मत हो मेरे बच्चे वो जल्दी वापस आएंगे और तू देखना वो तेरे लिए बहुत साड़ी खिलौने और मिठाइयां भी वापस लेंगे ऐसी कुछ महीने बीट गए एक दिन मा उदास बैठा हुआ था तभी सुधा उससे कहती है मा बेटा तुम्हें जो भी बात कहानी हो वो तुम शिवाजी से का सकते हो

(10:19) वह तुम्हारी हर बात तुम्हारी नीरज मामा तक पहुंच देंगे इसके बाद मा ने ठीक वैसा ही किया जब भी उसे अपने मामा तक कोई बात पहुंच नहीं होती तो वह शिवाजी के मंदिर पहुंच जाता मा हर वक्त शिवाजी से बातें करता राहत था ऐसे ही समय बीता गया फिर एक दिन सुधा बहुत बीमा हो गए और उसने बिस्तर पकड़ लिया अपनी बीमारी के चलते सुधा इतनी कमजोर हो गई की वह खाना तक बनाने की हालात में थी बिचारी दोनों मां बेटे दो दिन तक भूखे रहे फिर तीसरी दिन सुबह मा पड़ोस के गांव में खाने की तलाश में गया मा चला रहा कुछ डर चलने पर उसने देखा गांव के बीच में एक पेड़ है जिसमें कई सारे पैक

(11:02) हुए आम लगे हैं अरे वह इतने सारे आम मुझे तो बहुत भूख लगी है इससे तो मेरा और मां का पेट भर जाएगा लेकिन मैंने तोड़ो कैसे तभी उसका ध्यान पेड़ के नीचे रखें शिवलिंग पर जाता है वह उसके ऊपर पर रखकर पेड़ पर चढ़ जाता है और उन नाम को तोड़ने लगता है उसकी पसीने की बंदे एक-एक करके शिवलिंग पर गिरने लगी लेकिन काफी डर तक कोशिश करने के बाद भी मा के हाथों नमो तक नहीं पहुंचे तभी वहां गांव के कुछ लोग कठे हो गए और मा पर चिल्लाने लगे ये तू क्या कर रहा है रे अरे शिवलिंग पर पर क्यों रखा तूने अरे मूर्ख बच्चे तूने भोलेनाथ का किया है तुझे ऐसा नहीं करना

(11:46) चाहिए था की करण हम सभी गांव वालों को शिवा जी के गुस्से का शिकार होना पड़ेगा मा जोर-जोर से रन लगा फिर सभी गांव वाले उससे नाराज होकर वहां से चले गए उन गांव वालों की बातें सुनकर मा डर गया और डर के मारे रन लगा और रोटी हुए शिवलिंग को अपने गले लगाकर खाने लगा मुझे माफ कर दीजिए शिवा जी मुझे बहुत बड़ी गलती हो गई मैंने यह जानबूझकर नहीं किया खाली पेट कुछ समझ नहीं आया उसकी इतना कहती शिवाजी वहां प्रकट हो गए मा बेटे उदास मत हो तुमने कुछ गलत नहीं किया तुमने जो भी किया वह मजबूरी में किया और मैं तुमसे क्रोधित नहीं हूं बल्कि मैं

(12:28) तो तुमसे बहुत प्रश्न हूं आज तुम्हारे पसीने की बूंद से मेरा अभिषेक हुआ है तुम्हारा मां सचमुच में बहुत पवित्र है और इसी कारणवश आज मुझे तुम्हें दर्शन देने पड़े बताओ पुत्र आखिर तुम्हारी क्या इच्छा है और तुम्हें क्या वरदान चाहिए अपना मेरी मां को जल्दी से ठीक कर दो वह बहुत बीमा है अरे बस इतनी सी बात तुम्हें अगर कुछ और भी चाहिए तो मुझे मांग सकते हो प्रभु फिर आप मेरे मामा को जल्दी से वापस भेज दो पुत्र तुम्हारे मामा बहुत जल्दी तुम्हारे पास लोट आएंगे यह लो यह आम तुम घर ले जो और अपनी मां के साथ मिलकर का लेना मा खुशी खुशी वो फल लेकर जल्दी से अपने घर पहुंच

(13:12) जहां उसे देखा की उसकी मां बिल्कुल ठीक हो गई है और वह रसोई में खाना बना रही है मामा तुम ठीक हो गई मां हां मेरे बच्चे अब मैं बिल्कुल ठीक हूं ना जान मेरे अंदर कौन सी शक्ति आई और मैं पुरी तरह ठीक हो गई मां यह सब भोले बाबा का चमत्कार है मा ने सुधा को साड़ी बात बताई मां तुम जानती हो उन्होंने मुझे कहा की मेरे मामा जल्दी घर वापस ए जाएंगे और फिर एक दिन मा बेटा मा कहां है तू तुझे देखने के लिए मेरी आंखें तरस गई थी दूर खड़ी सुधा उसे देख हैरान र गई जबकि मा बहुत खुश हुआ मेरे मामा ए गए मेरे मामा ए गए अब मैं आपको कहानी भी नहीं जान दूंगा मामा मेरे भांजे

(14:04) ये देख तो मैं तेरे लिए शहर से क्या-क्या लाया हूं उसके लिए देर सारे नए कपड़े चॉकलेट चिप्स नए-नए खिलौने और भी डॉन पहाड़ लाया था जिसे देख मा बहुत खुश होता है सर दिन अपने मामा के साथ खेल कर मा रात को खाना खाकर जब सो जाता है तब सुधार जा कर नीरज के पर पकड़ लेती है और रोटी हुए कहती है आप ही अपना किया हुआ वादा पूरा करने आए हैं ना मैं जानती हूं प्रभु क्योंकि सच तो यह है की मेरा भाई तो बहुत पहले ही इस दुनिया से जा चुका है नहीं देख सका और इससे अपना वादा पूरा करने चला आया लेकिन ध्यान रहे इस बात का पता मा को ना चले कुछ दिन शिवा जी मा के साथ रहकर ही

(14:55) उसके साथ खूब खेलने मस्ती करते और उसकी सभी इच्छाओं को पूरा करते और फिर एक दिन अच्छा मा अब मुझे शहर नौकरी पर वापस जाना होगा मैं बीच-बीच में तुमसे मिलने आता रहूंगा मामा अब आप फिर जा रहे हो अब फिर आप वापस कब आओगे भांजे तू चिंता मत कर मैं समय समय पर यहां आता रहूंगा इस प्रकार निक दिल मा की सच्ची भक्ति से शिवाजी और मा के बीच जीवन भर का संबंध बन गया अब शिवा जी हर महीने नीरज का विश्व बनाकर मा के साथ कुछ दिन रहने चले आते उसके लिए डॉन समाज ले आते और सुधा को भी कुछ पैसे दे देते धीरे-धीरे सुधा के घर की स्थिति काफी अच्छी हो गई और मा और सुधा अच्छे से अपना

(15:39) जीवन यापन करने लगे [संगीत]


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