भगवान का आशीर्वाद।।hindi story #funney story

 भगवान का आशीर्वाद।।hindi story#funney story 


भगवान का आशीर्वाद एक बार भगवान नारायण और माता लक्ष्मी लोगों की परीक्षा लेने के लिए ठंड के मौसम में मुसला धार बरसती हुई संध्या में अत्यंत बूढ़े स्त्री पुरुष का रूप धारण करके पृथ्वी लोक पर आए नगर के एक धनी सेठ के द्वार पर जाकर वे फाटक खटखटाने लगे दरवाजा खोलकर सेठ जी ने जब यह देखा तो बिगड़ कर बोला अरे कीचर सने पाव से सारे दालान में मिट्टी फैला दी भागो यहां से सेठ जी हम इस रात में कहां जाए वृद्धा गिर गिराई ठंड से प्राण निकल रहे हैं कहीं ठहरने भर को जगह दे दो परंतु सेठ ने द्वार बंद कर लिया उन दोनों को प्रकाश में सेठ

(00:41) के महल के पास ही एक टूटा फूटा सा घर दिखाई पड़ा उसके टूटे की वार से डीए के प्रकाश की एक किरण दिखाई पड़ी बूढ़े ने बूढ़ी से कहा आओ चलो उस घर में ही आश्रय मांग कर देखें बूढ़ी ने कहा जब इतने बड़े सेठ ने अपने यहां स्थान नहीं दिया तो यह कंगाल क्या देंगे और ठहरने को जगह मिल भी गई तो रात भर में बिना ओढ़ने बि छोले के इस पटे भीगे कपड़ों में तो प्राण ही निकल जाएंगे वृद्ध बोले कुछ भी हो मुझसे तो अब और चला नहीं जाता और उन्होंने आगे बढ़कर द्वार थपथपा दूसरे ही शन हाथ में दिया था में मैली फटी सड़ी पहने एक स्त्री ने द्वार खोला उन दोनों की दशा देखते ही वह

(01:22) करुणा भरे स्वर में बोली हाय हाय आप लोग इस अंधेरी रात में कहां से भटकते आ रहे हैं आइए आइए भीतर आ जाइए उन्हें सहारा देकर वह भीतर ले गई छोटी सी कोटरी में दो टूटी फूटी चार पाइयां पड़ी थी उनमें से एक को खाली करके स्त्री ने उनसे बैठने को कहा दोनों के कपड़ों से जल चुकर कोठरी गीली हो रही थी परंतु उस स्त्री ने उसकी तनिक भी चिंता ना करके जल्दी जल्दी अंगीठी में आग सुलगा करर उन्हें ताप को कहा फिर अर गनी पर से दो पुराने परंतु धुले हुए कपड़े लाकर बोली बाबा आप लोग अपने भी के कपड़े उतार कर इन्ह लपेट लो क्या करूं मैं बहुत गरीब

(02:01) इसलिए इन्हीं दो कपड़ों में गुजर करनी होगी आपके कपड़े में निचोड़ कर फैला दूंगी उन्हें कपड़े बदलवा करर वह दलान में गई और दो पीतल की छोटी छोटी थालियां में बथुए का साग तथा बाजरे की रोटियां रख के ले आई माता जी उसने वृद्धा से कहा आज मेरे घर में यही भगवान का प्रसाद है मुझे बहुत दुख है कि ना तो घर में घी है ही दूध और ना ही चीनी कोई बात नहीं बेटी हमें तो यह भोजन बड़ा स्वादिष्ट लगा मैं दोनों हुए बोले थोड़ी देर में उस स्त्री का पति भी आ गया वह बेचारा भी रोजगार की तलाश में दिन भर घूमकर अब थका मारा लौटा था पत्नी ने अतिथियों को भोजन खिला देने के बाद चुपके

(02:42) से द्वार पर ही अपने पति को सब कुछ बता दिया सुनकर वह भी बड़ा प्रसन्न हुआ फिर दोनों ने अपने बिछोना उन दोनों बों को लेकर उन्हें तो खाट पर सुलाया और खुद दोनों एक फटा टाट ओड़कर धरती पर लेट गए राता काल ही जब बारिश बंद हो गई तो वे बुजुर्ग जाने लगे स्त्री ने हाथ जोड़कर सूरज निकलने तक रोका फिर घर में जो कुछ चने पड़े थे उन्हें पीसकर आटा गंधा रोटियां बनाई उनके लिए बांध दी और फिर बोली माता हम निर्धन है इसी से जैसी सेवा करनी चाहिए थी वैसी करना सकी आशा है आप क्षमा करेंगी बूढ़ी बनी मा लक्ष्मी ने उत्तर दिया बेटी हम गरीबों की

(03:22) जो तूने सेवा की है उसका कल तुझे भगवान देंगे आज तू जो चीज छु एगी वह दिन भर खाली ना होगी वे लोग ले गए तो स्त्री को अपनी बथुए की हांडी को साफ करने की याद आई रसोई में जाकर उसने हांडी उठाई तो देखकर आश्चर्य से भर उठी उस हांडी में अशर्फियां भरी हुई थी अब जो उसने उसे उलट कर रखा तो वह दोबारा भर गई वह उन अशर्फियां को उठाकर रखती और हांडी में दूसरी भर जाती दिन भर में उसकी कोठरी अशरफियां से भर गई बस फिर तो उसके पति ने उन अशर्फियां को बेचकर बढ़िया मकान ले लिया एक कपड़े की दुकान खोल ली घोड़ा गाड़ी खरीद ली और वे सुख पूर्वक रहने लगे

(04:01) उस सेठ को जब यह समाचार मिली कि उसके निर्धन पड़ोसी एक रात में ही अमीर हो गए हैं तो उसने उस स्त्री तथा उसके पति को बुलाकर कारण पूछा स्त्री ने सरलता पूर्वक सब कथा सुना दी अब तो सेठ और सेठानी को दिन रात यही चिंता रहने लगी की किसी प्रकार वे करामाती बूढ़े बुढ़िया मिल जाए तो वे घर भी असफिया प्राप्त कर ले प्रभु तो लोग की इच्छा करते ही मनुष्य के हृदय की बात जान लेते हैं एक रात जब बहुत जोरों की बारिश हो रही थी और भी प रहे थे तो वही बूढ़े बूढ़ी फिर उसी सेठ के द्वार पर पहुंचे द्वार पर खटखट सुनते ही सेठ ने बिजली के प्रकाश में से झांक कर देखा और

(04:38) उन्हें पहचान लिया फिर जल्दी जल्दी सेठानी को उन्हें लेने भेजा बिजली बुझाकर एक दिया हाथ में लेकर सेठानी बाहर आई और झूटी ममता दिखाकर बोली हाय हाय बाबा तुम कहां भटक रहे हो आओ अंदर आ जाओ फिर घर की सबसे टूटी चारपाई पर उन्हें बैठा दिया घर में अनेकों गर्म वस्त्र होते हुए भी वह उनके लिए दो फटे पुराने वस्त्र ले आई और बोली बाबा घर में इस समय यही उपस्थित है फिर उनसे बिना पूछे ही घर की सबसे घिसी पुरानी थाली में बथुए का साग तथा बाजरे की रोटी भी ले आई उड़ने को दो फटे कंबल भी कहीं से मांग कर दिए फिर सेठ सेठानी भी उसी कमरे में गद्दे

(05:17) बिछाकर धरती पर ही लेट गए सवेरे अंधेरे ही जब दोनों बुजुर्ग जाने लगे तो सेठानी ने चना पीसकर रोटी बनाई और उनके लिए बांध दी और बोली माता हम बड़े दरिद्र हैं आपकी सेवा ना कर सके आशा है हमें क्षमा करेंगी बुरी ने कहा बेटी जैसी सेवा तूने की उसका फल तुम्हें भगवान देगा हां आज तू जिस काम को हाथ में लेगी वह दिन भर समाप्त ना होगा उन लोगों के जाते ही सेठ सेठानी में झगड़ा हो गया सेठ चाहता था कि बथुए की हांडी मैं खोलू और सिखानी चाहती थी कि मैं खोलू अंत में दोनों ने एक साथ हांडी पकड़ी इस छीना झपटी में हांडी टूट गई और कमरे में बथुआ

(05:54) ही बथुआ बिखर गया सिनी झाड़ू लेकर कमरा धोने लगी जब वह कमरा साफ करती कमरे में तुरंत ही बहुत सारा बथुआ फिर बिखर जाता सवेरे से संध्या तक उसे कमरा साफ करना पड़ा तो ठीक ही तो है जिसकी जैसी नियत होती है भगवान


कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.