कीलक स्तोत्र ( हिंदी )/keelak stotra/kilak stotra/keelak stotra in hindi

 


दुर्गा
सप्तशती में आता है कीलक स्तोत्र, जानिये इसका महत् एवं पाठ करने से क्या हैं लाभ

विद्वानों के द्वारा देवी कवच , अर्गला स्तोत्र , कीलक और तीनों रहस्यये ही दुर्गा सप्तशती के छः अङ्ग माने गये हैं। इनके पाठ के क्रम में भी मतभेद है। अनेक तन्त्रों के अनुसार सप्तशती के पाठ का क्रम अनेक प्रकार का उपलब्ध होता है। ऐसी दशा में अपने क्षेत्र में पाठ का जो क्रम पहले से प्रचलित हो, उसी का अनुसरण करना अच्छा है।

चिदम्बरसंहिता में पहले अर्गला फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है। किंतु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है। उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक संज्ञा दी गयी है।
जिस प्रकार सब मन्त्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति का तथा अन्त में


कीलक का उच्चारण होता है, उसी प्रकार हमें पहले कवचरुप बीज का, फिर अर्गलारूपा शक्ति का तथा अन्त में कीलकरूप कीलक का क्रमशः पाठ करना चाहिये।

कहा गया है कि कीलक मंत्र को जानना चाहिए। देवी मंत्रों का उच्च स्वर से पाठ करने से अधिक फल की प्राप्ति होती है।

श्री दुर्गा सप्तशती में अर्गला स्तोत्र के बाद कीलक स्तोत्र के पाठ करने का विधान है। कीलक का अर्थ है तंत्र देवता और किसी के भी प्रभाव को नष्ट करने वाला मंत्र। देवी भगवती के अनेकानेक मंत्र हैं। संपूर्ण दुर्गा सप्तशती के मंत्रों में तीन तत्वों की प्रधानता है। वशीकरण, सम्मोहन और मारण। यानी तीनों ही दृष्टि से ये मंत्र उच्चाटन और कीलक की श्रेणी में आते हैं। कई बार शंका होती है कि कीलक को समझे बिना यदि श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाए तो क्या होगा? किसी अनिष्ट की आशंका से लोग ग्रस्त रहते हैं। श्री दुर्गा सप्तशती में भगवान शंकर ने समस्त देवी पाठ को ही कीलक कर दिया यानी गुप्त कर दिया। इसको केवल विद्वान ही जान सकता है। विद्वान कौन है। जो देवी की शरण में चला गया, वह विद्वान है। जिसने देवी के आगे समर्पण कर दिया, वह विद्वान है। जिसने देवी को अपना लिया और जिसको देवी ने अपना लिया, वह विद्वान है। इसके लिए पोथी पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। मंत्रों के निर्माण के समय भगवान शंकर ने समस्त मंत्र बांट दिए। अपने पास रखा सिर्फ हौं मंत्र. तभी राम का देवी के साधक थे। चैत्र नवरात्रि हों या आश्विन नवरात्रि दोनों ही अवसरों पर भगवान राम के पर्व पड़ते हैं। चैत्र में राम नवमी होती है और आश्विन में विजय दशमी। भगवान शंकर ने राम नाम मंत्र को अपने पास रखकर देवी भगवती के समस्त मंत्रों को गुप्त कर दिया। गुप्त मंत्र में कौन से मंत्र आते हैं? जितने भी बीज मंत्र हैं, वह गुप्त हैं। दश महाविद्याओं के बीज मंत्र कीलक हैं। ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मंत्र भी गुप्त है

इसलिए, कहा गया है कि कीलक मंत्र को जानना चाहिए। देवी मंत्रों का उच्च स्वर से पाठ करने से अधिक फल की प्राप्ति होती है। इसका अर्थ है कि मंत्रों का अधिक उच्चारण करोगे-जोर से उच्चारण करोगे तो योगिक क्रियाएं जाग्रत होंगी। योग की तीनों अवस्थाओं को प्राप्त करोगे। श्री दुर्गा सप्तशती स्वास्थ्य शास्त्र है। यह स्वर विज्ञान का शास्त्र है।जो काम स्वर करते हैं, वही कार्य देवी के मंत्र करते हैं। देवी मंत्रों को करने से शरीर का प्राणायाम होगा। मानसिक संताप दूर होंगे। शरीर हृष्ट और पुष्ट होगा।कीलक मंत्र कैसे करें कीलक मंत्र इक्कतीस बार करें तो बहुत अच्छा। इससे लाभ ही लाभ अन्यथा तीन बार करें कीलक मंत्र पहली बार मन ही मन करें, फिर मध्यम स्वर में और फिर उच्च स्वर में कीलक मंत्र को करने से पहले भगवान शंकर का अवश्य ध्यान कर लें

यथासंभव भगवान शंकर के किसी मंत्र का संपुट लगाने या ऊं के उच्चारण मात्र से करने से भी कीलक का फल हजार गुना मिलता है।कीलक मंत्र के बिना श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं करना चाहिए। कीलक मंत्र भगवान शंकर ने भगवान राम को दिया, विष्णु जी को दिया ( श्रीमद्भागवत) और पार्वती जी को प्रदान किया। माँ कह रही है-''मैंने स्वीकार किया'अब तू इसे प्रसाद रूप समझ कर संसार यात्रा के निर्वाह में सदूपयोग कर। इस प्रकार माँ की आज्ञा लेकर, प्रसाद समझ कर धर्म शास्त्रों के अनुसार उसका सदुपयोग करते हुए जीवन यापन करे। सम्पूर्ण समर्पण की भावना के आभव में भगवती रुष्ट हो जाएँगी तथा भगवती के रुष्ट हो जाने पर विनाश अवश्यम्भावी है। संपूर्ण कीलक स्तोत्र अथ कीलक स्तोत्रम्

कीलक स्तोत्र

 


महर्षि मर्कण्डजी बोले- निर्मल ज्ञानरूपी शरीर धारण करने वाले, देवत्रीय रूप दिव्या तीन नेत्र वाले, जो कल्याण प्राप्ति दे हेतु है तथा अपने मस्तक पर अध्र्चन्द्र धारण करने वाले है उन भगवान शंकर को नमस्कार है, जो मनुष्य इन कीलक मंत्रो को जानते है, वही पुरुष कल्याण को प्राप्त करता है, जो अन्य मंत्रो  को जप कर केवल सप्तशती स्त्रोत से ही देवी की स्तुति करता है उसको इससे ही देवी की सिद्धि हो जाती है, उन्हें अपने कार्य की सिद्धि की लिए दूसरे की साधना करने की आवश्यकता नहीं रहती बिना जप के ही उनके उच्चाटन आदि सब काम सिद्ध हो जाते है। लोगों के मन में शंका थी की केवल सप्तशती की उपासना से अथवा सप्तशती को छोड़ का अन्य मंत्रों की उपासना से भी समान रूप से सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं, तब इनमें कौनसा श्रेष्ठ साधना है? लोगों की इस शंका को ध्यान में रखकर भगवान शंकर ने अपने पास आए हुए जिज्ञासुओं को समझाया कि यह सप्तशतीनामक सम्पूर्ण स्त्रौत ही कल्याण को देने वाला है। इसके पच्छात भगवान शंकर ने चण्डिका के सप्तशती नामक स्त्रौत को गुप्त कर दिया। 

 अतः मनुष्य इसको बड़े पुण्य से प्राप्त करता है। जो मनुष्य कृष्ण पक्ष की चौदस अथवा अष्टमी को एकाग्रचित होकर देवी को अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है और फिर उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करता है, उस पर दुर्गा प्रसन्न होती है अन्यथा नहीं होती। इस प्रकार सिद्धि के प्रतिबंधक रूप कीलक के द्वारा भगवान शंकर ने इस स्त्रौत की कीलित कर रखा है जो  पुरुष इस सप्तशती को निष्कीलन करके नित्य पाठ करता है वह सिद्ध हो जाता है वही देवों का पाषर्द होता है और वह गंधर्व होता है। सर्वत्र विचरते रहने पर भी उस मनुष्य को इस संसार में कहीं कोई दर नहीं होता। वह आप मृत्यु के वश में नहीं पड़ता और मरकर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, किन्तु इस कीलक की विधि को जान कर ही सप्तशती का पाठ करना चहिये। जो ऐसा नहीं करता वह नष्ट हो जाता है। कीलन और निष्कीलन संबंधी जानकारी के पच्छात ही यह स्त्रौत निर्दोष होता है और विद्वान पुरुष इस निर्दोष स्त्रौत का ही पाठ आरम्भ करते हैं। स्त्रियों में जो कुछ सौभाग्य आदि दिखाई देता है वह सब इस पाठ की ही कृपा है, इसलिए इस कल्याणकारी स्त्रौत का सदा पाठ करना चाहिए। इस स्त्रौत का धीरे धीरे पथ करने से भी स्वल्प फल की प्राप्ति होती है इस लिए उच्च स्वर से ही इसका पाठ आरंभ करना चाहिए। जिस देवी के प्रसाद से ऐशवर्य, सौभाग्य, आरोग्य, सम्पति, शत्रुनाश तथा परम मोक्ष की प्राप्ति होती है, उस देवी की स्तुति मनुष्य को अवश्य करनी चाहिए। 

कीलक स्तोत्र के निम्नलिखित मंत्र का मात्र 31 बार जप करने से आश्चर्यजनक रूप से मन की शांति का आभास होता है और विचारों में सकारात्मकता आती है। लेकिन शर्त यही है कि पहले गणेशजी के किसी भी सरल मंत्र की एक माला करें। तत्पश्चात इस मंत्र को पूर्ण एकाग्र होकर जपें। जब तक आंखें बंद करने पर कोई एक विशेष रंग नजर ना आने लग जाए मन को ध्यानस्थ ना मानें। जब मन एक बिंदु पर आकर स्थिर हो जाए तब मंत्र का 31 बार जाप करें और चमत्कार स्वयं देखें।   

मंत्र-



' विशुद्धज्ञान देहाय त्रिवेदी दिव्य चक्षुषे।

श्रेय: प्राप्तिनिमित्ताय नम: सोमार्ध धारिणे।।'



ज्ञान, भक्ति, शांति तथा मोक्ष प्राप्त करने में यह मंत्र प्रभावशाली असर देता है।



इति कीलक स्त्रोत्रं समाप्तम

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'

 

 

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.