जगन्नाथ जी बने भिखारी | Jagannath Ji Bane Bhikhari | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Bhakti Stories -

 जगन्नाथ जी बने भिखारी | Jagannath Ji Bane Bhikhari | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Bhakti Stories - 


 प्राचीन पौराणिक कथाओं में से लिखित एक कथा के अनुसार एक दिन मां लक्ष्मी लोगों की पूजा देखने के लिए सूर्योदय की पूजा से पहले ही मंदिर से बाहर चली गई वे चांडाल जाति की एक महिला श्रेया की दिव्य पूजा की तैयारियों और अलौकिक भक्ति भावना को देखकर आश्चर्य चकित रह गई और वे उसके सामने प्रकट हुई तथा उस महिला को एक लाख गाय संतान सुख धन वैभव तथा लंबी आयु का वरदान देती हैं चांडाल नामक एक समुदाय जो शवों को ठिकाने लगाकर अपना जीवन यापन करता था सबसे अधिक बहिष्कृत समुदाय था बलराम जी को माता लक्ष्मी का चांडाल जाति की स्त्री के

(01:02) घर जाना अच्छा नहीं लगा और वे मां लक्ष्मी जी से नाराज हो गए यह देवी लक्ष्मी चांडाल समुदाय से मिलने गई है जो समाज से दूषित है अब लक्ष्मी मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती भैया इस बार लक्ष्मी को माफ कर दो मैं लक्ष्मी को समझाऊ कि वह आगे से ऐसा ना करें लक्ष्मी की भूल क्षमा योग्य नहीं है अगर तुमने लक्ष्मी को मंदिर में प्रवेश करने दिया तो मैं मंदिर छोड़कर चला जाऊंगा मैं मंदिर में में प्रवेश नहीं करूंगा बलराम जी अपनी बात पर अड़े रहे और कहा कि अगर जगन्नाथ जी ऐसा नहीं करेंगे तो वो मंदिर में प्रवेश नहीं करेंगे जगन्नाथ जी अपने भाई के बहुत आज्ञाकारी थे इसलिए

(01:43) उन्होंने लक्ष्मी को बुलाया और बताया कि बलराम के आदेश के अनुसार उन्हें मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है लक्ष्मी बलराम भैया तुम पर बहुत क्रोधित है क्योंकि तुम चांडाल समुदाय के लोगों से मिलकर आई हो इसलिए वह चाहते हैं कि तुम मंदिर में प्रवेश ना करो अन्यथा वह मंदिर में प्रवेश नहीं करेंगे स्वामी आपके ऐसे शब्दों से मुझे बहुत दुख पहुंचा है विवाह के समय आपने पिता श्री से वादा किया था कि आप मेरे अपराधों को क्षमा कर देंगे और फिर यह कोई पाप या अपराध नहीं है फिर भी मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है आप मेरा अपमान कर रहे हैं मैंने अपने भक्तों पर दया की

(02:22) है उनके दुखों को दूर किया है यह मेरा अपराध नहीं है मेरे लिए मेरे सभी भक्त बराबर हैं मैं अपने अपमान के लिए आपको और बलराम जी को कभी क्षमा नहीं करूंगी मां लक्ष्मी बहुत क्रोधित हुई उन्होंने जगन्नाथ जी और बलराम जी को 12 सालों तक इतना गरीब रहने का श्राप दिया कि वे भोजन तक भी प्राप्त ना कर सके जगन्नाथ जी का भोजन भंडार रत्न भंडार सब कुछ गायब हो गया दोनों भाइयों ने भिक्षा मांगी ताकि वे अपनी भूख शांत कर सके परंतु वे जिस घर का भी भोजन खाते उस घर का भोजन समाप्त हो जाता इसलिए लोगों ने उन्हें भिक्षा देना भी बंद कर कर दिया माता लक्ष्मी के क्रोध

(03:02) में दिए गए श्राप के कारण भगवान जगन्नाथ और बलराम जी कई वर्षों तक भूखे रहे 12 साल तक भटकने और हर दरवाजे पर जाने के बाद दोनों भाइयों ने देखा कि कुछ लोग एक दिशा से आ रहे थे उनके चेहरे पर संतुष्टि थी पूछताछ करने पर भाइयों को एक घर के बारे में पता चला जो भोजन दान कर रहा था और उन्होंने चांडाल समुदाय क्षेत्र की ओर इशारा किया लगता है उस घर से कोई दान प्राप्ति हो रही है हमें भी उस ओर चलना चाहिए हो सकता है हमें कुछ खाने को मिल जाए हां भैया चलो हम उस ओर देखते हैं दोनों भाई उस दिशा में आगे बढ़े गृह स्वामी उने भोजन कराने में प्रसन्न था

(03:46) लेकिन चूंकि यह डालि का घर था इसलिए बलराम डालि के हाथ का बना खाना नहीं खाना चाहते थे बल्कि उन्होंने भोजन सामग्री और खाना पकाने की सुविधा की मांग की ताकि वे स्वयं खाना बनाकर खा सके भगवान बलराम की मांग के अनुसार उनके लिए भोजन की तैयारी की गई खाना बनाने की तैयारी पूरी होने के बाद बलराम नहाने चले गए और उन्होंने जगन्नाथ जी से खाना बनाने को कहा इस बीच जगन्नाथ जी ने खाना बनाना शुरू कर दिया लेकिन वे खाना बनाने के लिए लकड़ियां नहीं जला पा रहे थे बलराम जी खुशी-खुशी खाना बनाने के बारे में सोच रहे थे लेकिन उन्होंने देखा कि जगन्नाथ जी ने

(04:25) कुछ भी नहीं बनाया है तुमने तो अभी तक भोजन बनाने के लिए लकड़ियां भी नहीं जलाई है मैं स्नान करके लौट भी आया भैया मैं बहुत देर से आग उत्पन्न करने की कोशिश कर रहा हूं किंतु लकड़ियों में आग लग ही नहीं रही यह सब भूख से हो रहा है भूख के कारण तुम्हारे हाथों की शक्ति क्षीण हो गई है लाओ लकड़ियां मैं जला लेता हूं बलराम जी ने लकड़ियां जलाने की कोशिश की पर लकड़ियां उनसे भी नहीं जल रही थी और कुछ देर बाद कमरे में धुआं भर गया इससे दोनों भाइयों की आंखों में जलन होने लगी आंखों से पानी निकलता देख पर कमरे से बाहर निकल आए भैया लगता है लकड़ियां गेली थी तभी धुआ

(05:07) पकड़ गया हमें भिक्षा में पका हुआ भोजन ही ले लेना चाहिए कम से कम हमारी भूख तो शांत होगी नहीं तो यह भोजन भी हाथ से चला जाएगा हां अब तो हमारे पास और कोई रास्ता भी नहीं है ठीक है हम उस घर से पका हुआ भोजन लेते हैं तब भगवान जगन्नाथ और भगवान बलराम ने घर के मा से पका हुआ भोजन मांगा घर के मालिक ने सहमति जताई और नौकरों से उन्हें भोजन परोसने को कहा जब उन्होंने खाना शुरू किया तो उन्हें यह बहुत स्वादिष्ट लगा वास्तव में उन्हें भोजन वैसा ही लगा जैसा माता लक्ष्मी मंदिर में पकाती थी भगवान जगन्नाथ और बलराम को एहसास हुआ कि यह

(05:48) लक्ष्मी जी ही है जो इस घर के भीतर निवास करती हैं हमें लक्ष्मी से क्षमा मांगनी चाहिए हमने लक्ष्मी के साथ बहुत गलत किया आप ठीक कह रहे हो भैया हम लक्ष्मी से क्षमा मांगेंगे बलराम जी और जगन्नाथ जी को भोजन उसी घर से प्राप्त हुआ जिस घर को उन्होंने दूषित कहा था आज उसी घर में उनकी 12 वर्षों की भूख मिटी थी बलराम जी और जगन्नाथ जी दोनों को अपनी भूल का एहसास हुआ वे लक्ष्मी जी के पास गए और उनसे क्षमा मांगी तथा उन्हें मंदिर ले आए वास्तव में यह सब लीला जगन्नाथ जी बलराम जी और लक्ष्मी जी के द्वारा रची गई थी इस पूरी घटना के द्वारा वे तीनों मानव जाति

(06:32) को यह संदेश देना चाहते थे कि भगवान के लिए कोई भी जाति ऊंची नीची नहीं होती उनके लिए सभी भक्त एक समान है भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर में दर्शन के लिए कोई भी भक्त जा सकता है उनके मंदिर के पट सदैव अपने सभी भक्तों के लिए खुले रहते हैं 


जगन्नाथपुरी मंदिर भगवान जगन्नाथ उनके भाई भगवान बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ समर्पित एक पवित्र मंदिर है भगवान श्री कृष्ण की अनेक मधुर लीलाएं हैं जिनका शास्त्रों में वर्णन किया गया है ऐसी ही जगन्नाथ पुरी की एक अद्भुत चमत्कारी लीला करने के कारण भगवान जगन्नाथ को भोजन के बाद पान खिलाने की प्रथा का आरंभ हुआ

(07:24) हिंदू कथाओं के आधार पर कहते हैं कि जगन्नाथ पुरी के सिंह द्वार के पास प्रभु दास नाम के एक पान वाले का घर था प्रभु दास पान बनाकर बेचते थे शाम के समय प्रभुदास भगवान जगन्नाथ के मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते थे वह देखते थे कि भगवान जगन्नाथ को प्रतिदिन बहुत से व्यंजन का भोग लगाया जाता है किंतु उन्हें पान का भोग क्यों नहीं लगाया जाता उनके मन में सदैव यही विचार आता था प्रभुदास भगवान जगन्नाथ से सदैव प्रार्थना करते हुए इसी बारे में सोचते रहते थे कि ना याने उन्हें प्रभु की सेवा का अवसर कब प्राप्त होगा एक रात जब प्रभुदास अपनी कुटिया में सोने की

(08:05) तैयारी कर रहे थे तभी वहां दो सुंदर नौजवान जिनके घुंघराले बाल थे कानों में कुंडल थे उनके वस्त्र चमक रहे थे इतना सलोना रूप था कि कोई भी उनके दर्शन करके मंत्र मुक्त हो जाए ऐसा उनका स्वरूप था वे दोनों प्रभुदास की कुटिया में आए और उनसे पान खाने के लिए बोले कई दिनों तक वे दोनों युवक पान खाने प्रभुदास की कुटिया पर आते रहे और प्रभु दास उन्हें पान खिलाते रहे एक दिन मंदिर के सेवक बलराम दास जी जो कि भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे वह मध्य रात्रि के समय मंदिर के उसी सिंह द्वार के पास प्रभु नाम का भजन करते हुए टहल रहे थे तभी उनकी नजर उन दो

(08:47) नौजवानों पर पड़ गई अरे यह दो नौजवान कौन है जो इतनी रात में प्रभु दास की कुटिया से निकल रहे हैं इन्हें पहले तो मंदिर के आसपास नहीं देखा उस दिन तो बलराम दस ने इस ओर ध्यान नहीं दिया पर अब तो रोजाना ही बलराम दास की नजर उन पर पड़ने लगी अब उन्होंने पूछना ही उचित समझा और प्रभु दास की कुटिया में गए और उन नौजवान युवकों के आने के बारे में पूछा तब उन्हें पता चला कि प्रभु दास तो उन्हें बिना दाम के ही रोजाना पान दे रहे हैं बलराम दास जी इसका कारण तो मुझे भी नहीं पता न जाने उनके सलोने रूप में ऐसी क्या बात है कि मैं उनसे अपनी नजरें हटा ही नहीं पाता और उनके

(09:27) मनमोहक रूप को देखकर मैं में खो जाता हूं और उनसे दाम लेना भूल जाता हूं और इतनी देर में वो दोनों युवक कब गायब हो जाते हैं मुझे इस बात का आभास ही नहीं होता बलराम दास प्रभु दास की बातों को सुनकर हैरान रह गए और बोले अरे प्रभुदास तुम्हारी बातों को सुनकर मैं हैरान हूं इतने दिनों से तुम उन युवकों को पान खिला रहे हो और उसके बदले दाम भी नहीं लेते हो यह तो मैं पहली बार सुन रहा हूं कि दुकानदार अपना सामान बिना दाम लिए ही किसी अनजान को दे रहा है ऐसे में तो तुम्हारा कितना नुकसान हो जाएगा प्रभुदास कह तो आप ठीक रहे हैं बलराम दास जी मैंने तो इस

(10:04) बारे में सोचा ही नहीं अब अब मैं क्या करूं करना क्या है अगर कल अब वो दोनों युवक पान खाने के लिए आए तो तुम उनसे दाम मांगना यदि वह ना दे तो बदले में उन दोनों की चादर बंधक के रूप में अपने पास रख लेना और कहना कि जब तक वह दाम नहीं देंगे उन दोनों की चादर आपके पास रहेगी बलराम दास जी की बात प्रभुदास को जंच गई अगले दिन दोनों युवक फिर से आए तो उन्हें पान देने के पश्चात प्रभुदास ने उनसे बदले में दाम मांगा तुम दोनों इतने समय से पान खाकर जा रहे हो पर मुझे याद ही नहीं रहता कि मैंने तुमसे दाम भी लेना है आज तुम मुझे दाम दिए

(10:40) बिना नहीं जा सकते मैंने तुम्हें बहुत दिनों तक ऐसे ही बिना दाम लिए पान दिया है पर हमारे पास अभी धन नहीं है कल हम आएंगे तो ढेर सारा धन ले आएंगे अभी हमें जाना है नहीं नहीं मैं तुम दोनों को ऐसे नहीं जाने दूंगा अब तो मुझे दाम तो देकर ही जाना पड़ेगा नहीं तो मैं तुम दोनों को यहां से नहीं जाने दूंगा ऐसा कैसे हो सकता है हमारा जाना अति आवश्यक है हम तुम्हें कल बहुत सारा धन लाकर देंगे हम पर विश्वास करो तो ठीक है अगर तुम दोनों बिना दान दिए अभी जाना चाहते हो तो तुम दोनों को अपनी चादर मेरे पास रखनी होगी कल जब तुम दाम लेकर आओगे मैं तुम दोनों को तुम्हारी चादर

(11:20) वापस कर दूंगा हां और फिर प्रभु दास के कहने पर उन दोनों युवकों ने अपने अपने कंधे से चादर उतार कर प्रभुदास को दे दी और फिर वहां से चले अगले दिन जब भगवान जगन्नाथ के मंदिर के द्वार खुले तो पुजारी जी हैरान रह गए भगवान जगन्नाथ और बलभद्र जी के ऊपर से श्वेत चादर गायब थी यह देखकर पुजारी बाबा हैरान रह गए कि रात में जो चादर भगवान को उड़ाई थी वह गायब कैसे हो गई यह बात चारों ओर फैल गई और राजा प्रताप रुद्रदेव तक पहुंची उन्होंने जितने भी मंदिर के सेवक हैं उन्हें दंड देने के लिए बुलाया अब भगवान अपने भक्तों को कैसे दंड मिलने दे

(11:57) सकते थे भगवान जग नाथ ने बलराम दास जी के स्वप्न में दर्शन दिए और उन्हें सारी बात कही बलराम दास जी उठे और उन्होंने राजा प्रताप रुद्रदेव के पास जाकर सपने की सारी बात बताई राजा प्रताप रुद्रदेव यह सुनकर हैरान रह गए और उन्होंने आदेश दिया बलराम दास जी आज के बाद मंदिर में भगवान के भोजन के पश्चात पान खिलाने की प्रथा शुरू की जाए अब से भगवान जगन्नाथ को रात्रि के भोजन के पश्चात पान का भोग लगाया जाएगा और प्रभुदास से मिलने हम स्वयं जाएंगे राजा प्रताप रुद्रदेव प्रभु दास से मिलने उसकी कुटिया में जाते हैं प्रभु दास को जब इस बारे में पता चलता है तो उसकी आंखों से

(12:40) अश्रु की धारा बहने लगती है उन्होंने साक्षात भगवान  जगन्नाथ और भगवान बलभद्र के दर्शन किए थे उन्हें पान खिलाया था उनकी प्रार्थना भगवान जगन्नाथ ने सुन ली थी और भोजन के पश्चात पान को ग्रहण किया था इसके पश्चात भक्त प्रभुदास स्वयं भगवान जगन्नाथ और भगवान बलभद्र को वो चादर उड़ाने जाते हैं सब लोग प्रभुदास की भक्ति देखकर हैरान रह जाते हैं कि उन्होंने कितने अच्छे कर्म किए जो उन्हें साक्षात भगवान के दर्शन हुए कहा जाता है उस दिन से लेकर आज तक भगवान जगन्नाथ के मंदिर में रात्रि के भोजन के पश्चात पान खिलाने की प्रथा है भगवान

(13:20) जगन्नाथ के चमत्कार जिनका जितना वर्णन किया जाए उतना ही कम है और फिर प्रभु तो अपने भक्तों के प्रेम के एक निवाले से भी प्रसन्न हो जाते हैं कहते हैं भक्त यदि प्रेम पूर्वक प्रार्थना करता है तो ईश्वर तक वह प्रार्थना अवश्य पहुंचती है इसलिए हमें सदैव ईश्वर का स्मरण करते रहना चाहिए तो भक्तों को किसी भी रूप में दर्शन देकर भगवान भक्तों का उद्धार कर देते हैं


कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.