भगवान शिव कहते हैं जो मनुष्य सबसे ज्यादा चिंता करते हैं वो इस इस कहानी को अवश्य सुनें | हिंदी -

 भगवान शिव कहते हैं जो मनुष्य सबसे ज्यादा चिंता करते हैं वो इस इस कहानी को अवश्य सुनें | हिंदी - 


एक बार भगवान शिव पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने के लिए गए तो उन्होंने एक युवक को देखा वह युवक ईश्वर को दोष देता जा रहा था वह अपने जीवन से निराश था दुखी था यह सब देखकर भगवान शिव एक महात्मा का रूप धारण करके उस युवक को असली दुख के बारे में ज्ञान देते हैं तो चलिए इस कहानी के माध्यम से समझते हैं कि असली दुख क्या होता है अगर आप यह कहानी सुन रहे हैं तो पूरा सुनि इस कथा को आधा अधूरा छोड़कर जाने की गलती मत करिएगा क्योंकि इस कथा को सुनने वाले को मन चाहे फल की प्राप्ति होगी सुख और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू है सुख और दुख हमारे जीवन में लगातार आते

(00:44) ही रहते हैं और हमें लगता है कि हमारे जीवन में हजारों दुख है हजारों समस्याएं हैं लेकिन अगर आप वास्तविक तौर पर देखें और अगर आप इस बात को अच्छी तरह से समझे तो आप यह समझ पाएंगे कि हमारे जीवन में केवल एक ही दुख होता है और वह कौन सा दुख है और उस दुख का नि कारण क्या है उस दुख का समाधान क्या है हम यही जानने की कोशिश कर गए इस कहानी के माध्यम से एक समय की बात है एक गांव में एक व्यक्ति रहता था उसका नाम हरिहर था वह बड़ा आलसी था और अपने जीवन से बहुत निराश था उसका कारण यह था कि उसने अब तक अपने जीवन में कुछ भी हासिल नहीं किया था वह कुछ भी नहीं करता था उसके

(01:25) घर वाले भी इस बात से बहुत परेशान रहते थे वह चाहते थे कि वह बाहर जाकर कुछ अच्छा काम करें कोई अच्छी नौकरी करें लेकिन वह उनकी एक नहीं सुनता था उसके घर वाले दूसरों का उदाहरण देकर उसे ताने मारते थे उसे तरह-तरह की बातें कहते थे लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था जबकि उसके सारे मित्र कामयाब हो चुके थे कोई अच्छा व्यापार कर रहा था तो कोई अच्छी नौकरी कर रहा था जिस कारण जब भी वह लोग मिलते तो वे लोग अपनी बढ़ चढ़कर बढ़ाई किया करते थे लेकिन हरहर कुछ करता नहीं था जिस कारण जब भी कोई उससे पूछता कि तुम क्या कर रहे हो तो वह कुछ करता तो था नहीं इसलिए वह हमेशा

(02:06) सबसे केवल एक ही बात कहता था कि मैं कोशिश कर रहा हूं लेकिन उसकी कोशिशों का कोई भी फल किसी को नजर नहीं आ रहा था देखते ही देखते अब ऐसा समय आ चुका था कि हर हर सभी से मुंह छुपाता रहता था ताकि उससे कोई यह ना पूछ ले कि तुम क्या करते हो इसलिए वह कभी किसी के सामने भी नहीं आता था धीरे-धीरे उसका मन दुखी होने लगा था हरिहर अब बहुत निराश रहने लगा था मानो वह धरती पर बोझ है इसलिए वह अपने आप को बहुत अकेला महसूस करता था एक दिन उसके मन में यह विचार उत्पन्न होने लगे कि मेरे हाथों में कुछ नहीं है तो मैं क्या कर सकता हूं अकेले बैठकर वह रोता रहा और भगवान को दोष

(02:46) देता रहा एक दिन छुपता छुपाता हुआ घर से निकलकर कहीं जा रहा था तभी उसने रास्ते मैं देखा कि एक महात्मा लोगों को प्रवचन दे रहे हैं और प्रवचन में वह दुख की बातें कर रहे हैं हर हर अपना मोह छुपाकर वहीं पर खड़ा हो गया ताकि उसे कोई देख ना ले और चुपचाप उन महात्मा जी की बातें सुन रहा था महात्मा जी सभी को प्रवचन में कह रहे थे कि दुख हमारा सबसे बड़ा साथ ही है हमें दुख अपने जीवन के बारे में समझाता है और हमें सही जीने का तरीका बताता है दुख हमारे गुरु की तरह है जिससे हमें सीखना चाहिए आप चाहे तो अपने जीवन में अपने दुखों को अपना गुरु बना सकते हैं और उससे

(03:31) सीख सकते हैं या फिर आप चाहे तो अपने दुखों पर बैठकर रो सकते हैं लेकिन इससे आपको कोई लाभ नहीं मिलेगा बल्कि आप दिन प्रतिदिन दिन और कमजोर होते जाएंगे निराश होते जाएंगे हरे हर छुप-छुपकर उन महात्मा जी की बातें सुन रहा था जैसे ही उपदेश खत्म हुआ हरे हर उन महात्मा जी के पास पहुंचा और कहने लगा हे महात्मा जी अभी आप कुछ देर पहले दुख को गुरु बता रहे थे आप कह रहे थे कि दुखों से हमें सीखना चाहिए हमें उन्हें अपना गुरु बनाना चाहिए लेकिन मैं भी तो अपने दुखों से परेशान हूं अपने जीवन से परेशान हूं मैंने अब तक जो दुख छले हैं मुझे तो कभी ऐसा प्रतीत नहीं हुआ

(04:08) कि मेरे दुख मुझे कुछ सिखा रहे हैं बल्कि मुझे तो हमेशा यही लगता है कि वह मुझे पीड़ दे रहे हैं तकलीफ दे रहे हैं और दुख की पीड़ा बहुत भयंकर होती है ऐसा लगता है जैसे अब इसके बाद हमारा जीवन समाप्त हो जाएगा इसके बाद हमें कुछ नहीं मिलने वाला और यहां तक कि हमें मृत्यु भी उसके सामने कम लगने लगती है जब लोग ताने मारते हैं जब लोग यह कहते हैं कि तुम क्या कर रहे हो तो मन को बहुत ठेस पहुंचती है और मैं उनसे कुछ नहीं कह पाता हूं हरि हर की बातों को सुनकर महात्मा जी कहते हैं बेटा तुम्हें क्या दुख है और तुम दुख के बारे में ऐ बातें क्यों कर रहे हो हरिहर ने अपने ऊपर

(04:50) विती हुई सारी बातें उन महात्मा जी को बता दी और कहने लगा हे महात्मा क्या आपके पास मेरे दुख का कोई समाधान है हरि हर की बातें सुनकर महात्मा जी मुस्कुराए और कहने लगे बेटा जब तुम्हारे जीवन में असली दुख आए तो तुम मेरे पास आना मैं तुम्हारे दुख का समाधान अवश्य बताऊंगा उन महात्मा जी की बातें सुनकर हरे हर जज में पड़ गया उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि क्या उसने अब तक जो दुख झेले हैं वह असली दुख नहीं है उसने जो अब तक पीड़ा झेली लोगों के ताने सहे हैं और जो तकलीफें उठाई है क्या वह असली दुख नहीं है आगे वह मन ही मन अपने आप से कहता

(05:28) है कि जब मुझे अपने नहीं समझ पाए तो यह महात्मा जी मुझे क्या समझेंगे इतना सोचकर हरे हर वहां से अपने घर की ओर चला अब हरे हर लोगों के ताने सुन सुनकर बहुत थक चुका था व बहुत निराश हो चुका था जिस कारण उसने निर्णय लिया कि वह अब कुछ करके दिखाएगा उसने अपने पिता से थोड़ा सा रुपया लिया और उस रुपए से उसने एक व्यापार शुरू किया उसके पिता बहुत खुश थे कि कम से कम मेरा बेटा कुछ करने का प्रयास तो कर रहा है लेकिन उसे व्यापार में कोई सफलता नहीं मिल रही थी जिसका कारण वह बहुत ही हताश हो चुका था वह बहुत निराश हो चुका था हरे हर को यह समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें

(06:09) किस तरह से अपने व्यापार को आगे बढ़ाए तभी उसके पिता ने उससे कहा बेटा कोई बात नहीं इसी तरह से प्रयास करते रहो आज नहीं तो कल सफलता अवश्य मिलेगी हरिहर ने अपने पिता की बात मानी हरिहर अब अपने व्यापार में और भी कड़ी मेहनत करने लगा धीरे-धीरे उसे सफलता मिलने लगी और फिर उसने रफ्तार पर पकड़ ली देखते ही देखते केवल दो साल के अंदर वह एक बहुत बड़ा व्यापारी बन गया अब उसके पास धन दौलत की कोई कमी नहीं थी जो लोग हरहर को पहले ना पसंद किया करते थे वही लोग अब उसे पसंद करते थे उसकी चिंता करते थे उसके कार्यों की सराहना करते थे उसके माता-पिता

(06:49) भी अब अपने बेटे से बहुत खुश थे और उसकी सफलता से अत्यंत प्रसन्न भी थे धीरे-धीरे हरिहर के मित्रों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी हरिहर के कुछ मित्र ने उसे यह भी सलाह दी कि उसे अपना व्यापार और तेजी से बढ़ाना चाहिए उसे अपने व्यापार को और फैलाना चाहिए जब तुम आज केवल इस नगर के सबसे बड़े व्यापारी हो तब तुम इतना खुश हो तुम्हारे साथ बहुत सारे लोग हैं वहीं पर तुम सोचो कि जब तुम इस राज्य के सबसे बड़े व्यापारी बन जाओगे तब तुम्हारे यहां पर लोगों की भीड़ लग जाएगी लोग तुमसे मिलने के लिए समय निकालेंगे यहां तक कि इस राज्य

(07:25) का राजा भी तुमसे मिलना चाहेगा तुम्हारी तारीफ करेगा और यदि कभी ऐसी जरूरत आ पड़ी तो वह तुमसे धन भी उधार लेने के लिए अवश्य आएगा हरे हर को अपने दोस्तों की यह बात बहुत पसंद आय हरिहर ने सोचा कि मेरे मित्र सही कह रहे हैं मुझे अपने व्यापार को और बड़ा करना चाहिए और फैलाना चाहिए तभी तो हर कोई मेरे बारे में जान सकेगा हर कोई मुझे पहचान सकेगा उसने बिना देरी किए समय को बिना गवाए अपने व्यापार में और मेहनत करने लगा लेकिन अबकी बार उसके मन में धैर्य नहीं था जिस कारण उसने कुछ अनुचित कदम उठाए ताकि उसका व्यापार जल्दी से जल्दी और बड़ा हो जाए उसने कई लोगों से

(08:06) अधिक मात्रा में धन उधार ले लिया जिससे उसके ऊपर काफी कर्ज बढ़ चुका था और इतना ही नहीं वह यहां पर नहीं रुका उसने अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में अपने माल की गुणवत्ता को भी खराब कर दिया जिससे अब उसके माल में वह बात नहीं रह गई थी जो पहले हुआ करती थी लेकिन वह अपने मित्रों की बात सुनता रहा जैसा उसके मित्र कहते थे वह वैसा ही करता चला राजा रहा था यहां तक कि उसने अपने व्यापार को और भी तीव्रता से बढ़ाने के लिए अपने दूसरे छोटे व्यापारियों के खिलाफ षड्यंत्र भी रचना शुरू कर दिया जिस कारण उसके मन में अब पहले जैसा वह सुकून नहीं था उसे अब रातों

(08:46) को नींद नहीं आती थी अब उसके मन में केवल एक ही विचार रहता किस तरह से उसका व्यापार पूरे राज्य में फैल जाए और वह इस राज का सबसे बड़ा व्यापारी बन जाए इसलिए वह दिन रात केवल इसी मेहनत में लगा रहता कि उसका व्यापार जल्दी से जल्दी और बड़ा हो जाए हरहर के पास नौकर चाकर सभी सुख सुविधाएं थी लेकिन उसके बावजूद भी उन चीजों का लाभ नहीं उठा पा रहा था क्योंकि उसका पूरा ध्यान केवल अपने व्यापार को और उन्नति पर ले जाना था एक दिन हरिहर एक मार्ग से होकर गुजर रहा था तभी रास्ते में हरिहर को उन महात्मा का आश्रम दिखाई पड़ा यह देखकर वह

(09:25) उन महात्मा जी के पास गया और उनसे कहने लगा हे महात्मा जी आपने कहा था कि जब मेरे जीवन में कोई असली दुख आए तब मैं आपके पास आऊं आज इसलिए मैं यहां पर आया हूं आज मैं बहुत दुखी हूं मैं रातों को सो नहीं पाता मेरे पास सब कुछ होते हुए भी मैं उनका लुप्त नहीं उठा पाता उसने अपनी सारी बातें महात्मा जी को बताई महात्मा जी हरहर से कहते हैं बेटा जब तुम पहली बार आए थे तब भी तुम बहुत दुखी थे लेकिन तब तुमने अपने दुख से क्या सीखा महात्मा जी की बातें सुनकर हरि हर बोला हे महात्मा जी जब मैं अपने जीवन में कुछ नहीं कर पा रहा था तब मैंने अपने दुखों से यही सीखा था कि केवल

(10:07) सोचने मात्र से कुछ नहीं होगा उसके लिए हमें कुछ करना भी पड़ेगा और केवल कोई कर्म करना ही सफलता नहीं है उस कर्म को उसके अंजाम तक पहुंचाना हमें सफल बनाता है फिर चाहे रास्ता कैसा भी हो फिर चाहे परिस्थितियां कैसी भी क्यों ना हो फिर चाहे कितनी ही बधाई आपके रास्ते में क्यों ना आ जाए चाहे ऐसा क्यों ना लगने लगे कि अब हमारे जीवन में कुछ नहीं बचा हम कुछ नहीं कर सकते तब भी हौसला बनाए रखो उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए और अपने कार पर डटे रहना चाहिए यह सोचकर कि जब तक मैं अपने कार्य को सफल नहीं कर लेता जब तक मैं अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाता तब तक मैं इस

(10:44) कार्य को करता रहूंगा मैं इस कार्य में अवश्य ही सफल होकर रहूंगा क्योंकि लोग केवल सफल लोगों को महत्व देते हैं उनके कर्मों को नहीं हरे हर की यह सारी बातें सुनकर वह महात्मा जी कहने लगे बेटा जब तुम्हारे जीवन में असली दुख तब तुम मेरे पास आना मैं तुम्हारी समस्या का समाधान अवश्य करूंगा इतना कहकर महात्मा जी वहां से चले गए हरे हर फिर से उनकी यह बातें सुनकर आश्चर्य चकित रह गया उसे अभी यह समझ नहीं आ रहा था कि उसने जो तकलीफें अभी तक झेली है क्या यह असली दुख नहीं है हरे हर के मन में अब एक सवाल उत्पन्न होने लगा कि असली दुख क्या है और इसकी पहचान क्या है

(11:27) और मुझे कैसे पता चलेगा कि इस समय मैं असली दुख में हूं लेकिन उसने कुछ नहीं कहा तभी वह महात्मा हरिहर के पास एक बड़ा सा घड़ा लेकर पहुंच जाते हैं उस घड़े के अंदर सोने के सिक्के थे उस घड़े को देते हुए वह महात्मा हरे हर से कहते हैं बेटा तुम इसे उस पेड़ के नीचे मिट्टी में दबा क्योंकि यह में किसीम नहीं है जब मुझ इसकी जरूरत पड़गी तब मैं वहां से खोदकर इसे निकाल लूंगा लेकिन अभी के लिए इसे वहां पर मिट्टी के नीचे दबा दो हरिहर ने महात्मा जी की बात मान ली और वह घड़ा मिट्टी में दबा दिया इतना सब करके हरिहर उन महात्मा जी को प्रणाम करता है और वहां से वापस

(12:08) अपने घर की ओर लौट जाता है धीरे-धीरे समय बीतता गया समय के साथ-साथ हरिहर व्यापार में और भी ज्यादा उन्नति कर चुका था लेकिन माल की गुणवत्ता अच्छी ना होने के कारण अब उसके व्यापार में घाटा होने लगा और धीरे-धीरे ऐसा समय आया कि उसका व्यापार पूरी तरह से चौपट हो गया अब उसके पास कुछ नहीं बचा था हरिहर ने अपने दोस्तों से जो कर्ज लिए थे वह कर्ज भी उसे चुकाने थे लेकिन हरहर यह सोचकर निश्चिंत था कि उसने वह कर्ज अपने मित्रों से लिए हैं जिस कारण वह उन्हें लौटाने में थोड़ी देर अवश्य कर सकता है वह तो यह सोच रहा था कि उसके मित्र उसका बुरे समय पर साथ देंगे लेकिन

(12:49) सबसे पहले उसके मित्र ही उससे अपना कर्ज वापस लौटाने की मांग करने लगे तब हरिहर को एहसास हुआ कि कोई भी अपना नहीं है उसने अपने मित्रों से उस कर्ज को लौटाने के लिए थोड़ी सी मोहलत मांगी लेकिन हरहर के किसी भी मित्र ने उसे कर्ज को लौटाने के लिए मोहलत नहीं दी बल्कि वे लोग उसे जान से मारने की धमकी देने लगे अपने मित्रों के मुंह से यह सब सुनकर हरे हर बहुत ही आश्चर्य चकित रह गया वह जो कुछ सोच रहा था उसके साथ सब कुछ उल्टा हो रहा था व्यापार के चलते उसके बहुत मित्र और शुभ चिंतक बने थे पर वह सब उससे दूर जाने लगे थे हर कोई उससे पीछा छुड़ाना चाहता था कोई भी उसका

(13:33) साथ नहीं देना चाहता था था धीरे-धीरे उसकी सारी संपत्ति नीलाम हो गई अब उसके पास कुछ नहीं बचा था वह सड़क पर आ चुका था एक दिन हरिहर ने अपने पिताजी से कहा पिताजी मेरी मदद कीजिए मेरे ऊपर बहुत कर्ज है मुझे उसे लौटाना है कृपा करके मुझे थोड़ा सा धन दे दीजिए इस पर हरिहर के पिता ने हरिहर से कहा बेटा मेरे पास यही एक छोटा सा घर है अगर यह अभी मैं तुम्हें दे दूं तो मैं और तुम्हारी मां कहां रहेंगे हमें भी दर्द की ठोकरें खानी पड़ेगी ले देकर अब हमारे पास केवल यही संपत्ति बची है इसलिए मैं तुमसे क्षमा मांगता हूं अपने माता-पिता के मुख

(14:09) से यह सुनकर हरिहर चुपचाप वहां से चला आया और मन ही मन बह सोच रहा था कि मेरे पास अब कुछ नहीं बचा है मेरे पास जो कुछ था वह सब कुछ तो लूट चुका मेरा सब कुछ तो अब बाबाद हो चुका है भला अब मैं जीकर भी क्या करूंगा अब मेरे पास केवल एक ही रास्ता है जिससे मैं अपने कर्जदार से अपना पीछा छुड़ा सकता हूं यह सोचता हुआ वह एक ऊंची पहाड़ी की ओर पहुंचा वह पहाड़ी पर चढ़ने ही वाला था कि तभी उसे याद आया कि उन महात्मा जी ने कहा था कि जब तुम पर असली दुख आए तभी तुम मेरे पास आना मैं तुम्हारी समस्या का समाधान अवश्य करूंगा यह सोचकर हरि हर के मन में एक बार फिर उम्मीद की

(14:54) लहर दौड़ पड़ी हरहर दौड़ता हुआ उन महात्मा जी के पास पहुंचा और हरिहर ने उन्हें प्रणाम करके अपने ऊपर बीती हुई हर एक बात उन्हें बता दी और कहने लगा हे महात्मा आपने कहा था कि जब मेरे ऊपर असली दुख आए तब आप उसका समाधान अवश्य करेंगे तभी वह महात्मा जी हरे हर की इस बात को सुनकर मुस्कुराने लगे और कहते हैं बेटा कहां है असली दुख जब तुम्हारे जीवन में असली दुख आएगा तो मैं उसका समाधान अवश्य करूंगा उन महात्मा जी के मुख से यह सुनकर हरे हर के सब्र का बांध टूट गया और हरे हर ने उन महात्मा जी से कहा कि क्या मैंने आज तक जो भी दुख झेला है

(15:30) जो भी तकलीफ छली है क्या यह दुख नहीं है क्या इसे दुख नहीं कहते तभी वह महात्मा हरिहर से कहते हैं बेटा पहले तुम मुझे यह बताओ कि तुमने अपने दुख से क्या सीखा है इसका जवाब देते हुए हरिहर उन महात्मा से कहता है हे महात्मा मैंने तो यही सीखा है कि जो लोग तुम्हारी तरक्की में तुम्हारा पीछा करते हैं वह लोग अवश्य ही तुम्हें धोखा देंगे क्योंकि ऐसे लोग बुरे समय पर तुम्हारा साथ नहीं देने वा बल्कि तुम्हारा फायदा उठाने का ही वह प्रयास करेंगे इसलिए ऐसे लोगों पर भरोसा ना करें बल्कि जो लोग तुम्हारी असफलता के समय पर तुम्हारे बुरे

(16:09) समय पर तुम्हारे साथ खड़े हैं वही तुम्हारे असली मित्र है और वही तुम्हारे साथ रहते हैं और ऐसे लोग तुम्हें बहुत कम मिलते हैं जिन्हें भी ऐसे लोग मिलते हैं उन्हें हमेशा उनकी कद्र करनी चाहिए जब तुम कोई कार्य कर रहे हो तो उसे पूरी ईमानदारी से करो धैर्य रखो लालच ना ना करो क्योंकि ऐसा करने से तुम्हारे साथ ही बुरा होगा और तुम हमेशा नुकसान में रहोगे हरे हर कि यह सारी बातें सुनकर महात्मा उसे उस घड़े के पास ले गए जहां उस घड़े को उन्होंने मिट्टी में दबाया था उन्होंने गड्ड खोदा वह घड़ा हरिहर के हाथ में थमा हुए महात्मा जी ने हरिहर से कहा यह लो अभी इससे तुम

(16:49) अपना काम चलाओ और जब तुम्हारे जीवन में असली दुख आए तब तुम मेरे पास आना मैं उसका समाधान अवश्य करूंगा हरे हर महात्मा जी की बात सुनकर बड़ी अचरज में पड़ गया उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह असली दुख क्या है लेकिन उसने अपने हाथों में पकड़े उस घड़े को देखा जिसके अंदर सोने के सिक्के थे यह देखकर उसे मन ही मन यह लगा कि चलो अब तो थोड़ी सी राहत अवश्य हो जाएगी मैं अपने मित्रों का वह कर्ज लौटा स सकूंगा और एक नया व्यापार भी फिर से आरंभ कर सकूंगा यही सोचते हुए हरिहर ने उन साधु महात्मा को प्रणाम किया उनका धन्यवाद किया और वहां से चल पड़ा हरिहर ने उन सोने के

(17:31) सिक्कों से सभी का कर्ज लौटा दिया और अपने लिए एक बार फिर से नया व्यापार शुरू किया व्यापार छोटा था लेकिन अबकी बार हरे हर बहुत खुश था उसने अपने व्यापार पर काम और देखते ही देखते एक बार फिर से वह एक बड़ा व्यापारी बन गया लेकिन अबकी बार वह बहुत खुश था क्योंकि इस बार उसने कोई लालच नहीं किया ना ही किसी के लिए षड्यंत्र रचा बल्कि उसने पूरी ईमानदारी और मेहनत के के साथ अपने व्यापार पर काम किया लेकिन जैसे-जैसे आप धनी होते जाते हैं जैसे-जैसे आप अमीर बनते जाते हैं आपके मन में एक डर और उत्पन्न होने लगता है और वह डर है अपनी दौलत को ना खो देने का जिस कारण आप लोग

(18:11) दान पुण्य करना शुरू कर देते हैं लोगों की मदद करते हैं ताकि आपके जीवन में कभी कोई दुख ना आए लेकिन यह जीवन सुख और दुख का संगम है जिस कारण हर किसी को सुख और दुख से होकर गुजरना ही पड़ता है इसी वजह से एक बार फिर से हरे हर के जीवन में एक और दुख का आगमन हुआ अबकी बार उसके माता और पिता दोनों की मृत्यु हो गई हरे हर अपने माता-पिता से बहुत प्रेम करता था इसलिए उसके मन को बहुत गहरा आघात पहुंचा जब आखिरी बार वह उन्हें देख रहा था तो उसके मन में हजारों सवाल उत्पन्न होने लगे उसने सोचा कि जिस संपत्ति के लिए वह हमेशा लड़ते झगड़ते रहते थे आज उसकी देखभाल के

(18:51) लिए कोई नहीं था उसके माता पिता ने जो भी मेहनत की जो भी अपने जीवन में इकट्ठा किया सब यही रह गया लेकिन अब सब कुछ खत्म हो चुका था हरहर का मन अब बहुत बेचैन हो रहा था उसके मन में हजारों सवाल उत्पन्न हो रहे थे और वह अपने आप को बहुत अकेला महसूस कर रहा था उसे बहुत खाली समय महसूस हो रहा था उसने इधर-उधर देखा लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया तभी उसे उन महात्मा जी की याद आए वह तुरंत ही भागा भागा उन महात्मा के पास पहुंचा उसे देखते ही उन महात्मा ने हरहर से पूछा कि क्या बात है बेटा कोई फिर से दुख आ पड़ा है क्या तभी हरिहर ने कहा नहीं गुरुदेव अब तो

(19:34) सब ठीक है लेकिन आज मेरे माता-पिता की मृत्यु हो गई और मैं बहुत अकेला महसूस कर रहा हूं मैं बहुत दुखी महसूस कर रहा हूं महात्मा जी हरिहर से कहते हैं बेटा इसमें दुखी होने वाली क्या बात है यह तो जीवन है यहां पर कोई भी रहने नहीं आया और ना ही कोई रहेगा हम सब एक ना एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो ही जाएंगे और मृत्यु कब आएगी यह किसी को नहीं पता हो सकता है कि तुम्हारी मृत्यु कल ही हो जाए मैं तो अभी जवान हूं और मुझे तो अभी अपनी पूरी उम्र जीना है मैं तो कुछ करना चाहता हूं और आप कह रहे हैं कि मैं कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता हूं मृत्यु कभी

(20:11) किसी की उम्र देखकर नहीं आती और ना ही किसी को बताकर आती है सारी बातें सुनकर हरिहर और भी ज्यादा बेचैन हो गया और वह चुपचाप वहां से चला आया उसके मन का वह खालीपन अभी वैसे ही था हरिहर अपने आप को बहुत अकेला महसूस कर रहा था उसके बाद से उसका मन अपने व्यापार में भी नहीं लग रहा था जब भी वह कोई कार्य करने ललता तो उसके मन में बहुत सारे प्रश्न उठने लगते कि वह क्या कर रहा है क्यों कर रहा है और उसने इस कार्य को क्यों किया उसके मन में अब एक और प्रश्न उत्पन्न होने लगा था कि क्या हम यहां पर केवल इसीलिए आते हैं कि इस जीवन को भोगे

(20:53) और एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाए जीवन का असली मतलब क्या है उसने कई विद्वान से पूछा अपनी तरफ से जो मुमकिन हो सकता था खोजबीन की लेकिन उसे कोई संतोष पूर्ण जवाब नहीं मिल पा रहा था और जब उसे कोई जवाब नहीं मिला तो उसका दुख और भी बढ़ गया जिस कारण उसके मन की बेचैनी और भी बढ़ चुकी थी और उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें कहां जाए किससे पूछे तभी उसे फिर से उन महात्मा जी की याद आई हरे हर फिर से उन महात्मा जी के पास पहुंचा और उसने अपने मन की सारी बातें उन महात्मा जी को बताई महात्मा जी हरे हर से कहते हैं बेटा आज

(21:29) पहली बार तुम्हारे जीवन में असली दुख उत्पन्न हुआ है जिसे हम दुख कह सकते हैं जो दुख कहलाने लायक है कि हमें पता ही नहीं कि हम क्या कर रहे हैं कहां जा रहे है क्यों जा रहे हैं वह कौन है क्या है क्यों है हम क्या करना चाहते हैं तभी हरे हर उन महात्मा से कहता है हे महात्मा जी आप मेरे इस दुख का निवारण कीजिए महात्मा जी हरि हर से कहते हैं हम सबके अंदर क्रोध लालच लोभ जैसी कई वासना हमारे अंदर घर करके बैठ जाती है जिस कारण हम अपने जीवन को टुकड़ों में जीते हैं और हमारी चेतना कभी एक नहीं हो पाती हम कभी एक जगह सोच नहीं पाते समझ नहीं पाते और हमारी ऊर्जा

(22:12) शक्ति भी पूरी तरह छिन्न भिन्न हो जाती है और आजकल के इस दौर में हमारे पास तो इतना भी समय नहीं है कि हम एक पल निकाल कर के एक पल के लिए मुड़कर अपने आप को देख सके अपने आप को समझ सके की वास्तविकता में हर कोई य पर अपने जीवन भर केवल दुख दुख कहकर चिल्लाता रहता है उसका समाधान निकालने का हर मुमकिन प्रयास करता है लेकिन जिसे हम दुख समझते हैं वह तो दुख है ही नहीं तो इसका समाधान आपको कहां से मिलेगा यह तो परिस्थितियां है जिसके कारण हम अपने आप को दुखी समझते हैं अपने आप को तकलीफ में समझते हैं जैसे ही हम एक परिस्थिति से निकलते हैं हम किसी दूसरी परिस्थिति में

(22:54) फंस कर रह जाते हैं जिस प्रकार हम पहली समस्या का सामना करते हैं उसी हम दूसरी समस्या का भी सामना करते रह जाते हैं और जब हम इन परिस्थितियों से हार मान लेते हैं जब हमें लगता है कि अब हम सामने कोई रास्ता नहीं बचा तब हमारे सामने हमें केवल एक ही रास्ता नजर आता है और वह है मृत्यु लेकिन यह कोई समाधान नहीं है यह कोई रास्ता नहीं है इसलिए यदि आप सचमुच अपनी समस्याओं का समाधान चाहते हैं तो अपने आप को इकट्ठा करना सीखें अपनी ऊर्जा को इकट्ठा कीजिए और अपने ऊपर ध्यान लगाकर मृत्यु से पहले अपने आप को पहचानो अपने आप को जानो अपने आपको बिखरने मत दो तभी हरि

(23:33) हर उन महात्मा जी से कहता है हे गुरुदेव क्या फिर हमें इस जीवन को नहीं जीना चाहिए क्या हमें अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं करना चाहिए महात्मा जी हरि हर से कहते हैं बेटा हमें किसी से भी लगाव नहीं रखना चाहिए हमें अपनी इच्छाओं को मार देना चाहिए हमें ज्यादा संपत्ति इकट्ठा नहीं करनी चाहिए क्योंकि हम मनुष्य की इच्छाएं कामनाएं ऐसी होती है जैसे मानो कि एक पर्वत से गिरता हुआ झरना जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं है सिवाय देखते रहने के और परेशान होने के लेकिन जब तुम अपने ऊपर ध्यान देने लगते हो तब तुम अपने आप को पहचान जाते हो समझ जाते

(24:12) हो तब तुम इस पर नियंत्रण पा सकते हो तब इच्छाएं भी तुम्हारे बस में होती है और यदि तुम चाहो तो उन इच्छाओं की पूर्ति अवश्य कर सकते हो महात्मा जी की यह सभी बातें सुनकर हरिहर ने महात्मा जी से कहा हे गुरुदेव आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपने मेरी सबसे बड़ी समस्या का आज कर दिया है तो मित्रों अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो कमेंट में हर हर महादेव अवश्य लिखिए धन्यवाद


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