परमात्मा की लाठी में आवाज नही होती || परमात्मा की लाठी || कर्म फल की कहानी || शिक्षाप्रद कहानी - 

परमात्मा की लाठी में आवाज नही होती || परमात्मा की लाठी || कर्म फल की कहानी || शिक्षाप्रद कहानी - 


परमात्मा की ला किसी गांव में एक किसान रहा करता था उसके दो पुत्र थे जिनके नाम सोमदत और विष्णु दत्त थे खेतीबाड़ी करते हुए उनके दिन बड़े ही सुख पूर्वक बीत रहे थे एक दिन वह बूढ़ा किसान बहुत ज्यादा बीमार पड़ गया और उसने अपने दोनों बेटों को अपने पास बुलाया और उसे क मे बच्चों अब शद मेरा समय है मैं यह चाहूं कि मेरे मरने के बाद तुम दोनों भाई आपस में मिलजुल कर रहो और सुख शांति के साथ अपनी जिंदगी गुजारो मैंने बुरे वक्त के लिए कुछ अशर्फियां इकट्ठी की थी जिन्हें मैंने घर के पिछवाड़े में आम के वृक्ष के नीचे गाड़ रखा है अब वह तुम्हारे काम

(00:50) आएंगी लेकिन मेरे बच्चों तुम मुझसे यह वादा करो कि तुम दोनों आवश्यकता पड़ने पर ही उसे बाहर निकालो वह दोनों कहने लगे हम वादा करते हैं पिताजी जैसा आप कहेंगे हम वैसा ही करेंगे इतना कहते ही बूढ़े किसान ने अपने प्राण त्याग दिए थोड़े समय बाद ही उस बूढ़े किसान का अंतिम संस्कार कर दिया गया लेकिन बड़े भाई विष्णु दत्त को अपने पिताजी के मरने का जरा भी दुख नहीं था उसकी आंखों के सामने तो सिर्फ अशरफिया ही घूम रही थी उस रात को विष्णु दत्त को नींद नहीं आ रही थी वह बार-बार करवट बदल रहा था आधी रात के बाद भोर होने से पहले ही वह उठकर बैठ गया

(01:40) और सोचने लगा कि सोमदत्त के उठने से पहले मुझे अपना काम पूरा कर लेना चाहिए वरना फिर कभी ऐसा मौका नहीं मिलेगा यह सोचकर उसने अपनी कुदाल उठाई और घर के पिछवाड़े उस पेड़ के नीचे जा पहुंचा जहां पर अशर्फियां गड़ी हुई थी कुछ क्षणों में उसने जमीन को खोदकर वहां से अशर्फियां बाहर निकाल ली अशर्फियां को देखकर वह बहुत खुश हुआ वह कहने लगा वह इतनी सारी अशर्फियां अब लगता है मुझे जिंदगी में कभी भी किसी चीज की कोई कमी नहीं होगी उसने तुरंत ही वह अशर्फियां का घड़ा उठाया और दूसरे पेड़ के नीचे गाड़ दिया और फिर आराम से घर में जाकर अपने स्थान पर

(02:28) दोबारा लेट गया जब सुबह हुई तो छोटा भाई सोमदत्त अपने बड़े भाई विष्णु दत्त को जोर-जोर से आवाज लगाकर उठा रहा था बड़े भैया भैया जल्दी उठो गजब हो गया भैया घर के पिछवाड़े में आम के पेड़ के नीचे की जमीन खुदी पड़ी है भैया वहां से सारी अशर्फियां भी गायब है मुझे लगता है कि कोई चोर हमारी सारी अशर्फियां चोरी करके निकल गया है विष्णु दत्त बोला क्या बोल रहा है मूर्ख चल मैं देखता हूं जब दोनों भाई उस जगह पर पहुंचे तो सच में ही वह जमीन खुदी पड़ी थी छोटे भाई सोमदत्त ने कहा अब क्या करें भैया मेरे विचार से हमें पहले कोतवाली में जाकर सूचना देनी चाहिए विष्णु दत्त बोला

(03:20) ठहरो सोमदत्त कोतवाली जाने की कोई जरूरत नहीं है सोमदत्त बोला लेकिन क्यों भैया विष्णु दत्त ने कहा मैं अच्छी तरह जानता हूं कि चोर कौन है जिसने दबी हुई अशरफिया निकाली है सोमदत्त ने चौक कर पूछा भैया क्या आप जानते हैं वह कौन है विष्णु दत्त बोला तुम जानना चाहते हो तो सुनो वह चोर तुम ही हो यह सुनकर सोमदत्त बोला भैया यह आप क्या कह रहे हो नहीं भैया मैं और चोर नहीं मैंने कोई चोरी नहीं की विष्णु दत कहने लगा अब फालतू बोलो मत तुम्हारे और मेरे अलावा इन अशर्फियां के बारे में और कोई नहीं जानता था इसलिए अब यह बात साफ है कि तुम अकेले

(04:08) ही सारी अशर्फियां हड़पना चाहते हो सोमदत्त ने यह सुनकर कहा आप ऐसा मत कहो भैया मैं सच कहता हूं मैंने कोई अशरफी नहीं चुराई मैं कुछ नहीं जानता विष्णु दत्त बोला या तो तुम मुझे वह अशरफिया लौटा दो नहीं तो तुम इस घर के दरवाजे अपने लिए हमेशा हमेशा के लिए बंद समझो सोमदत्त उदास होकर बोला ठीक है भैया यदि आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो मैं यह घर ही क्या यह गांव भी छोड़कर चला जाऊंगा सोमदत्त दुखी मन से तुरंत ही वहां से चल पड़ा वह सोचने लगा कि सच्चाई जाने बिना ही बड़े भैया ने मेरे साथ ऐसा सुलूक क्यों किया अब बदनाम होने से अच्छा है कि

(04:55) मैं यह गांव छोड़कर ही चला जाऊं जबकि पर बैठा विष्णु दत्त बड़े आराम से यह सोच रहा था कि वाह कितनी आसानी से यह कांटा अपने आप ही निकल गया अब सारी अशर्फियां सिर्फ मेरी है दूसरी तरफ सोमदत्त दुखी मन लेकर वहां से चलता ही जा रहा था चलते चलते उसके मन में कई तरह के विचार उत्पन्न हो रहे थे उसके मन में एक विचार यह भी आया कि कहीं भैया ने सारा धन हटाने के लिए यह कोई चाल तो नहीं च वह अपने विचारों में मगन होकर लगातार चलता ही जा रहा था कि तभी वह एक बड़ी सी चट्टान के ऊपर जा पहुंचा अब रात हो चुकी थी और चारों ओर अंधेरा छाने लगा था उलझन में

(05:46) पड़ा सोमदत्त यह सारी बातें सोच ही रहा था कि तभी उसके कानों में कुछ आवाज आई यह 2000 तुम्हारे और यह 2000 मेरे वो सोचने लगा कि यह आवाजें कैसी हैं सच्चाई जानने के लिए सोमदत्त नीचे की ओर झुका उसने देखा कि दो आदमी वहां पर थे और वह दोनों धन का बंटवारा कर रहे थे सोमदत्त को यह समझने में देर ना लगी कि यह दोनों चोर हैं और यह दोनों चोरी का माल आपस में बांट रहे हैं तभी अचानक से सोमदत्त का पैर फिसल गया और वह उन चोरों के बीच में जाकर गिर गया अंधेरा होने के कारण चोरों को कुछ भी दिखाई नहीं दिया और वह डर गए और डर के भागने लगे और कहने लगे भागो भागो भागो भाई

(06:38) यहां से लगता है कि यह राजा का कोई गुप्तचर या फिर उनका कोई सिपाही है भागो चोर कहने लगा हां भाई तुम ठीक कहते हो चलो भागो यहां से चोर अपना चोरी का माल छोड़कर डर के मारे वहां से भाग गए जब सोमदत की नजर उन अशरफिया पर पड़ी तो वह मन ही मन बहुत खुश हुआ लेकिन तभी उसके मन में एक दूसरा विचार आया कि यह स्वर्ण मुद्राएं चोरी की है इन्हें साथ में ले जाना ठीक नहीं होगा इन्हें मैं यहीं पर गाड़ देता हूं और जरूरत पड़ने पर इनको ले जाऊंगा यही सोचकर सोमदत्त ने वह सारी मुद्राएं एक पेड़ के नीचे गाड़ दी और और रात वहीं बिता के सुबह अपने रास्ते पर

(07:29) चलने लगा दोपहर होते होते वह एक जंगल से गुजरा तभी कुछ लुटेरों ने उसको घेर लिया और लुटेरों का सरदार उससे बोला खबरदार जो कुछ भी तुम्हारे पास है वह निकालकर हमें दे दो नहीं तो जान से मार दिए जाओगे सोमदत्त बोला भाइयों मैं तो खुद ही एक मुसीबत में हूं मेरे पास धन भला कहां से आएगा लुटे रो का सरदार बोला यह झूठ बोल रहा है इसकी तलाशी लो तलाशी लेने के बाद जब सोमदत्त के पास वास्तव में उन्हें कोई भी वस्तु प्राप्त नहीं हुई तो सरदार क्रोध से चिल्ला उठा और बोला कोई बात नहीं अगर इसके पास पैसे नहीं है तो भी यह हमारे काम आएगा इसे अपने अड्डे पर ले चलो देवी मां

(08:28) को इसकी बलि चढ़ाई जाएगी यह बात सुनते ही सोमदत्त के होश उड़ गए डाकू सोमदत्त को उठाकर अपने अड्डे पर ले गए परंतु उनके अड्डे तक पहुंचते पहुंचते सोमदत्त को एक उपाय सूट ही गया अड्डे पर पहुंचने के बाद उसने डाकुओं के सरदार से कहा अगर तुम मुझे अपने दल में शामिल कर लेने का वचन दो तो मैं तुम्हें 4000 स्वर्ण मुद्राओं का पता बता सकता हूं यह सुनकर लुटेरों का सरदार बोला क्या कहा 4000 स्वर्ण मुद्राएं यदि तुम सच कहते हो तो हमें यह शर्त मंजूर है जल्दी से हमें उन स्वर्ण मुद्राओं का पता बताओ सोमदत्त बोला देखो भाई अभी तो रात होने वाली है इस समय वहां पर जाना ठीक

(09:22) नहीं है कल सुबह होते ही मैं तुम लोगों को वहां पर लेकर चलूंगा लुटेरों का सरदार बोला ठीक है लेकिन खबरदार हमारे साथ कोई भी चालाकी करने की कोशिश मत करना वरना अंजाम बहुत ही बुरा होगा सोमदत बोला निश्चिंत रहो सरदार मैं तुमसे कोई भी धोखा नहीं करने वाला अगली सुबह सोमदत उन चोरों को उसी जगह पर ले गया जहां पर उसने वह सोने की मुद्राएं दबाई हुई थी सरदार के आदेश पर तुरंत ही उसके आदमियों ने उस जगह को खोदा और शीघ्र ही वह स्वर्ण मुद्राएं उनके सामने थी स्वर्ण मुद्राओं को देखकर वह सभी बहुत ही खुश हो गए वह स्वर्ण मुद्राओं को अपनी थैली में भरकर अपने अड्डे की ओर चल पड़े

(10:18) परंतु सोमदत्त के दिमाग में अभी भी कोई दूसरी योजना चल रही थी वह सोच रहा था कि यह स्वर्ण मुद्राएं एक तरह से तो मेरे काम में ही आई है लेकिन मैं जल्दी ही इनके मौत का कारण बन जाऊंगा इस घटना के बाद सोमदत्त उन लुटेरों के गिरो के साथ ही रहने लगा और वह लुटेरों के सरदार का सबसे विश्वसनीय आदमी बन चुका था कुछ समय बाद सोमदत्त ने उन लुटेरों के सरदार से कहा सरदार मैं एक सप्ताह के लिए अपने घर जाना चाहता वहां पर मेरी बूढ़ी मां है और एक बार मैं उनसे मिलना चाहता हूं सरदार जो सोमदत्त की योजना से बिल्कुल ही अनजान था वह सोमदत्त को अपना सबसे विश्वास

(11:09) योग्य आदमी मानता था और उसने सोमदत्त को एक सप्ताह के लिए अपने घर पर जाने की आज्ञा दे दी सोमदत्त अपने घर जाने के लिए रवाना तो हुआ परंतु वह अपने घर जाने की बजाय राजा के महल की तरफ चला गया उधर राज महल में महाराज पहले ही उस डाकू के आतंक से बहुत परेशान थे वह अपने महामंत्री से कह रहे थे मंत्री जी आखिर वह डाकू कब पकड़ा जाएगा पूरा देश उसके आतंक से परेशान हो रहा है मंत्री जी बोले मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा हूं महाराज वह आतंकी जल्दी ही आपको कारागार में नजर आएगा उसी समय वहां पर एक पहरेदार आया और बोला महाराज की जय हो महाराज एक व्यक्ति

(12:02) आपसे डाकू जगीरा के संबंध में मिलना चाहता है महाराज बोले अच्छा तो उसे तुरंत यहां पर लेकर आओ कुछ समय बाद ही वह पहरेदार सोमदत्त को राजा के सामने लेकर आया सोमदत्त बोला महाराज को मेरा प्रणाम मेरा नाम सोमदत्त है महाराज राजा बोला कहो नौजवान तुम जगीरा के बारे में क्या जानते हो सोमदत बोला क्षमा करें महाराज मैं आपसे एकांत में बात करना चाहता हूं मंत्री ने कहा दुष्ट क्या तुम जानते नहीं यहां राजा के सम्मानित और विश्वास पात्र व्यक्ति मौजूद है जो कहना चाहते हो तुम वह सबके सामने ही कहो राजा बोला ठहर महामंत्री जी यदि यह हमसे एकांत में बात करना चाहता है तो हम

(12:56) इससे एकांत में ही बात करेंगे आप लोग जाइए उसके बाद सोमदत्त ने राजा को अकेले में पूरा किस्सा कह सुनाया और आगे बोला महाराज इस तरह मैं उस डाकू का विश्वसनीय आदमी बन चुका हूं और अब मैंने उसे अपने जाल में फंसा लिया है अब बस उसे और उसके साथियों को पकड़ने के लिए मुझे आपकी सहायता की आवश्यकता है यह सुनकर राजा बोला बहुत खूब नौजवान तुम्हारी चतुराई और साहस से मैं बहुत ही प्रसन्न हूं उन भयानक डाकुओ को पकड़ने के लिए जो भी सहयोग चाहिए मैं करने को तैयार हूं कह क्या करना होगा सोमदत बोला महाराज परसों रात को आप कम से कम अपने 500 सिपाहियों को मेरे साथ

(13:49) भेजे मैं उन सभी को उन डाकुओं के अड्डे पर ले जाऊंगा जहां पर वह सैनिक उन डाकुओं पर आक्रमण कर देंगे और उन डाकुओ को गिरफ्तार कर लिया जाएगा राजा बोला बिल्कुल ठीक नौजवान तुम्हारी सलाह बिल्कुल उचित है तो तय रहा कि हम परसों रात को हमारे सैनिकों को तुम्हारे साथ भेजेंगे तब तक तुम यही राज महल में हमारे शाही मेहमान बनकर रहो उसके दो दिन बाद सोमदत्त अपनी योजना के अनुसार सैनिकों को लेकर डाकुओं के अड्डे पर पहुंच गया सैनिकों की टुकड़ी ने उन डाकुओं पर आ आक्रमण कर दिया कुछ ही समय में सैनिकों ने उन डाकुओं को गिरफ्तार कर लिया और उनमें

(14:36) से कुछ डाकू मारे भी गए और जो बचे हुए थे उनको महाराज के सामने पेश किया गया वहां पर सोमदत्त को देखकर डाकुओं का सरदार मन ही मन सोचने लगा उफ कितना बड़ा धोखा हो गया इस सोमदत्त ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा अगले दिन दरबार में सभी दरबारियों और मंत्री से विचार विमर्श करने के बाद राजा जयसिंह ने उन सभी डाकुओं को एक ही सजा सुनाई इन सभी खूनी दरिंदों को हम सजाए मौत देते हैं सैनिको अब तुम इन्हे ले जाओ और अगली अमावस के दिन इन्हें फांसी पर लटका देना उसके बाद राजा जयसिंह ने कहा सोमदत्त तुम्हारी बहादुरी से हम बहुत ही प्रसन्न है आज से हम तुम्हें अपना सेना

(15:29) नियुक्त करते हैं सोमदत्त ने यह सुनकर कहा आपका धन्यवाद महाराज जो आपने मुझे देश की सेवा करने के लायक समझा उधर दूसरी तरफ सोमदत्त का बड़ा भाई विष्णु दत्त अपने पिता की मेहनत की कमाई को बुरे कामों में बर्बाद कर रहा था उसे जुआ खेलने की बुरी लत लग चुकी थी वह शराब और जुए में अपना सारा पैसा बर्बाद कर चुका था उसकी हालत इतनी बुरी हो चुकी थी कि अब उसके पास खाने के लिए अन्न तक भी नहीं था पूरे गांव में वह इतना बदनाम हो चुका था कि अब उसे गांव में कहीं भी कोई भी काम नहीं मिल रहा था इसीलिए उसने यह निश्चित किया कि इस गांव में भूख मरने से

(16:17) अच्छा है कि मैं किसी दूसरे गांव में जाकर कोई काम धंधा ढूंढूं इसी तरह वह चलता चलता उसी राज्य में आ पहुंचा जहां पर उसका भाई सोमदत्त सेनापती था उसी नगर में वह किसी सेठ जी की दुकान पर गया और उससे पूछने लगा सेठ जी क्या मुझे कोई काम मिलेगा तो सेठ जी ने उससे कहा अरे भाई तुम तो चेहरे से ही चोर उचक्के के लगते हो तुम्हें भला कोई क्या काम देगा इसीलिए मुझे माफ करो भाई और यहां से जाओ विष्णु दत्त सोचने लगा ईमानदारी से शायद मुझे यहां पर कोई काम नहीं देगा अब तो पेट भरने के लिए मुझे चोर उचक्का ही बनना पड़ेगा तभी उसकी नजर सेठ जी के पास रखी

(17:06) हुई एक थैली पर पड़ी उसे लगा कि यह स्वर्ण मुद्राओं की थैली है उसने वहां से वह थैली उठा ली और तुरंत ही वहां से भाग गया और सेठ को उसे पकड़ने का मौका ही नहीं मिला वह तो बस चोर चोर चिल्लाता ही रह गया बाजार के कुछ लोग उसके पीछे-पीछे भागे लेकिन वह विष्णु दत्त को नहीं ढूंढ पाए और मायूस होकर वह लोग वापस लौट गए इधर सेनापति बन चुका सोमदत्त अपना काम बड़ी ही ईमानदारी से कर रहा था एक दिन महाराज ने सोमदत्त को बुलाया और कहा सोमदत्त तुम एक बहुत ही बहादुर बुद्धिमान और नेक आदमी हो मैं चाहता हूं कि मेरी बेटी निशा के साथ तुम्हारा विवाह कर दिया जाए कहो इस पर तुम

(17:59) क्या जवाब देते हो सोमदत्त ने कहा महाराज यदि आपकी यही इच्छा है तो मैं इंकार नहीं कर सकता मुझे यह विवाह स्वीकार है कुछ ही दिनों में एक शुभ मुहूर्त देखकर दोनों का विवाह संपन्न करा दिया गया विवाह को अभी कुछ ही दिन बीते थे और महाराज ने सोमदत्त को कहा बेटा सोमदत अब हम बूढ़े हो चुके हैं और इसलिए हम चाहते हैं कि अब राज्य की बागडोर तुम संभाल लो अगले ही दिन सोमदत्त का राज तिलक कर दिया गया महाराज जयसिंह अब तीर्थ यात्रा को निकल चुके थे कुछ महीनों के बाद जो सबसे बड़ी समस्या सोमदत्त के सामने आई वह थी विष्णु चोर की जो उसी का सगा भाई

(18:50) विष्णु दत्त था और अब तक वह नामी और खतरनाक चोर बन चुका था सैनिकों ने काफी प्र किया लेकिन वह उसे पकड़ ना सके चोर उसी जंगल में एक पेड़ के खोखर में रहा करता था एक रात वह बैठा सोच रहा था कोई ऐसी तरकीब लगाई जाए कि मुझे बार-बार चोरी करने की आवश्यकता ही ना पड़े अगर मैं एक बार राज खजाने पर हाथ साफ कर लू तो मुझे दोबारा कभी भी भूखे मरने की नौबत नहीं आएगी और ना ही कभी मुझे चोरी करने की जरूरत पड़ेगी और फिर मैं किसी दूसरे देश में जाकर अपनी आगे की जिंदगी बड़े आराम से गुजार सकता हूं अगली रात राज खजाने की चोरी करने के उद्देश्य से विष्णु दत्त राज महल के पीछे

(19:41) जा पहुंचा हाथों में रस्सी लिए हुए वह दीवार पर चढ़ने की सोच रहा था और दूसरी तरफ संयोग से उस चोर के बारे में सोच सोच कर राजा को नींद नहीं आ रही थी उस समय वह महल की छत के ऊपर घूम रहे थे जैसे ही विष्णु दत्त रस्सी के सहारे छत के ऊपर चढ़ा वहां पर मौजूद राजा सोमदत्त ने उसे देख लिया राजा सोमदत्त ने अपनी तलवार निकाली और साथ ही अपने सिपाहियों को आवाज लगाई कुछ ही पलों में सैनिक वहां पर पहुंच गए राजा ने सैनिकों से कहा सैनिकों गिरफ्तार कर लो इसे विष्णु दत्त ने वहां से भागने की पूरी कोशिश की लेकिन वह भागने में सफल नहीं हो पाया और सैनिकों ने उसे

(20:30) पकड़ ही लिया सोमदत्त उसे देखकर बोला तुम तो विष्णु दत्त हो मेरे भाई लेकिन एक नामी चोर मैं यह सपने में भी नहीं सोच सकता था कि मेरा भाई इतना बड़ा चोर निकलेगा उसने आदेश दिया सैनिकों ले जाओ उसे और कारागार में डाल दो सुबह ही दरबार में हम इसकी सुनवाई करेंगे विष्णु दत्त को अब कारागार में डाल दिया गया अब वह मन ही मन अपने किए पर पछता रहा था और सोच रहा था कि मेरी बुरी नियत ने मुझे आज पतन की इतनी गहराई में धकेल दिया जबकि सोमदत जिसे मैंने बेईमान बनाकर धक्के मारकर अपने घर से निकाला था अपनी ईमानदारी और नेकी की वजह से एक राजा बन गया और मैं

(21:22) जिसके पास सब कुछ था एक चोर बनकर आज उसके बंदी ग्रह में पड़ा हूं इधर सोम की आंखों में भी नींद का नामो निशान नहीं था वह सोच रहा था कि कल का दिन मेरी जिंदगी का बहुत ही कठिन दिन होगा मुझे एक बहुत ही भयानक अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा क्या इस परीक्षा में मैं कामयाब हो पाऊंगा मुझे भी समझ में नहीं आ रहा काश महाराज ने मुझे राज पाठ ना सौपा होता अगले दिन दरबार में चोर विष्णु दत्त को पेश किया गया महाराज ने उससे कहा विष्णु दत्त तुम्हारे ऊपर लगाए गए सारे चोरी के इल्जाम प्रमाणित हो चुके हैं क्या अब तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है विष्णु दत्त

(22:11) बोला बस इतना ही कहना चाहता हूं महाराज की मुझ जैसे शैतान को आप इतनी कठोर से कठोर सजा दे कि भविष्य में चाकर भी कोई चोरी ना कर सके सोमदत्त ने कहा ठीक है हम तुम्हें ऐसी ही सजा देंगे सैनिकों ले जाओ इस चोर को और इसका एक हाथ और एक पैर काट दिया जाए और उसके बाद इसे देश की सीमा से बाहर निकाल दिया जाए सोमदत्त का यह इंसाफ देखकर उसकी प्रजा और उसके मंत्री सब उसकी जय जयकार करने लगे राजा की आज्ञा का पालन किया गया और चोर विष्णु दत्त का एक हाथ और एक पैर काटकर उसे राज्य की सीमा से बाहर निकाल दिया गया जब वह देश छोड़कर जा रहा था तो तभी उसके

(23:01) सामने राजा सोमदत्त आ गए सोमदत्त को देखकर विष्णु दत्त बोला महा महाराजा काश आपने मेरा हाथ और एक पैर काटने की बजाय मुझे मौत की सजा दी होती ऐसा करके तो आपने मुझे तड़प तड़प कर मरने के लिए इस दुनिया में छोड़ दिया है सोमदत्त ने कहा उस समय तो मैं एक राजा था परंतु अब आपके सामने राजा सोमदत्त नहीं बल्कि आपका छोटा भाई सोमदत्त खड़ा है एक राजा होकर मैंने एक चोर को सजा देकर अपने धर्म का पालन किया है और अब एक भाई अपने भाई के पास अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करने के लिए आया है विष्णु दत्त ने कहा मैं को समझा नहीं सोमदत्त बोला भैया मैं जानता हूं कि

(23:52) एक हाथ और एक पैर कटने की वजह से आप कभी भी कोई काम नहीं कर पाएंगे और इसके लिए आज मैं आपको कुछ धन देकर जाऊंगा इस थैले में कुछ स्वर्ण मुद्राएं हैं जो कि मेरी मेहनत की कमाई हुई है मुझे विश्वास है कि इतने धन के साथ आप किसी दूसरे देश में अपना जीवन आराम से व्यतीत कर सकते हैं लेकिन भैया आप इंकार मत करिए नहीं तो कभी भी मैं अपने आप को माफ नहीं कर पाऊंगा यह सुनकर विष्णु बोला तुम कितने महान हो सोमदत्त ईश्वर हमेशा तुम्हें इसी तरह से खुश रखे फिर दोनों ने आपस में गले लगकर एक दूसरे से बड़े ही भारी मन से विदा ली बड़ा भाई छोटे भाई से कहने लगा मेरी ईश्वर से यही

(24:44) विनती है कि मुझे हर जन्म में तुम्हारे जैसा ही भाई मिले और दोनों भाई अपनी अपनी राह पर वापस चले गए और उसके बाद उस देश में विष्णु दत्त को दोबारा किसी ने भी देखा और राजा सोमदत्त भी अपनी प्रजा का पालन करते हुए एक सुखमय जीवन बिताने लगा जय श्री हरि विष्णु अगर वीडियो पसंद आई तो हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें धन्यवाद


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