भक्त और भगवान का झगड़ा | Shiv Mahima | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Bhakti Stories | Moral Stories 

 भक्त और भगवान का झगड़ा | Shiv Mahima | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Bhakti Stories | Moral Stories 



 मदनपुर गांव में दीनानाथ नाम के एक पंडित जी रहा करते थे दीनानाथ भगवान शिवा के परम भक्ति वे अपना अधिकतर समय भगवान शंकर के मंदिर में व्यतीत किया करते थे और भगवान शंकर से उनका इतना अधिक प्रेम था की वह किसी बात पर भगवान शंकर से रूठ भी जय करते थे दीनानाथ जी की पुत्री आनंदी बड़ी हो गई थी उनकी पत्नी उमा को आनंदी के विवाह की चिंता थी वह जब भी विवाह की बात करती तो पंडित जी हमेशा यही कहते चिंता मत करो भगवान शिवा सब प्रबंध कर देंगे आनंदी हमारी नहीं भगवान शिवा की पुत्री है और उन्हें के आशीर्वाद से हुई है भगवान शिवा

(00:54) सब संभल लेंगे तुम समय तो आने दो ठीक हैठीक हैजैसी भोलेनाथ की इच्छा कुछ समय खराब अनंदी का रिश्ता एक संपन्न परिवार में ते हो गया अब समय आने लगा ओमान देखा दीनानाथ जी रोजाना ही का देते थे की सब हो जाएगा पर अभी तक विवाह की कोई भी तैयारी नहीं हुई थी सुनो जी दो दिन बाद आपकी पुत्री का विवाह है पर अभी तक कुछ भी तैयारी नहीं हुई है मैं आपको इतने दोनों से सचेत करती ए रही हूं की पुत्री का विवाह है कुछ तो समाज इकट्ठा कर लो कुछ थोड़ा-बहुत पैसा तो कर्ज में ले लो आपको लोग दे भी देंगे पर आप मानते ही नहीं हो उमा मैंने तुम्हें कहा है ना मुझे किसी से पैसा मांगना पसंद नहीं है मैं परमात्मा के

(01:32) आश्रित हूं मैं अपने भगवान शिवा से जिदकरके सब कुछ मांग सकता हूं संपूर्ण जीवन में तुमने देखा है ना तुमने जो जो कागज पर मुझे लिख कर दिया है मैंने भगवान के श्री चरणों में रखा और भगवान शंकर ने हमारी साड़ी मनोकामना पूर्ण की है तो अब क्यों चिंता करती हो अभी भी तुम्हें जी चीज की आवश्यकता है मुझे लिख कर दो भगवान शंकर स्वयं पूर्ण करेंगे अरे खाने पिनेकी बात लग है वोवह तो कोई भी भक्ति दे जाता है पर इस समय कन्या के विवाह के लिए दहेज की आवश्यक उसमें सोना भी लगेगा वस्त्र भी लगेंगे अन्य पदार्थ की भी आवश्यकता पड़ेगी कौन देकर जाएगा भाग्यवान तुम फिर चिंता कर रही

(02:10) हो जब मैंने तुम्हें कहा है ना भगवान शंकर जी सदा मेरे साथ हैं फिर क्यों चिंता करती हो तुम मुझे कागज पर लिख कर दे दो शुरू से ही पंडित जी कागज पर लिखवाकर समाज ले जाते थे और मंदिर में भगवान शंकर के समक्ष रखते थे और वो समाज भगवान शंकर के चमत्कार से अपने आप पूरा हो जाता था इस बार भी दीनानाथ जी को पूरा विश्वास था की उनकी पत्नी उमा कागज पर जो भी लिखेंगे भगवान शंकर उसे मनोकामना को पूरा जरूर करेंगे उमा ने कागज में दहेज का सर समाज लिखकर दे दिया वैसे तो एक कागज बंता था आज आठ कागज बनकर तैयार हो गए दीनानाथ जी ने कागज की लिस्ट भगवान शंकर के समक्ष रख दी और

(02:48) प्रार्थना करते हुए खाने लगे है प्रभु मैंने तो आपके ऊपर सदा सच्चे मां से यकीन किया है आपके प्रति मेरे निष्ठा भी सच्ची है मेरा विश्वास भी सच्चा है दो दिन बाद मेरी कन्या का विवाह जिसके लिए दहेज की आवश्यकता है अब इसे पूर्ण कीजिए इस प्रकार आंखों में आंसू भरकर दीनानाथ ने कागज भगवान शंकर के नजदीक रख दिया और अपनी सेवा में व्यस्त हो गए दीनानाथ जी तो यहां पर भगवान शंकर की सेवा में व्यस्त हो गए उधर एक संपन्न सेठ दीनानाथ जी के घर पहुंचे मिलन है मेरे घर आए थे उन्होंने कहा उनके कन्या का विवाह है उन्हें पैसों की आवश्यकता है अब

(03:24) मैं तो दीनानाथ जी को बचपन से जानता हूं उनकी कन्या मेरी कन्याएं आपने जितने समाज की लिस्ट उनको बनाकर दी थी वो सर समाज मैं लेकर आया हूं मैंने सोचा की हो सकता है यह सेठ जी मेरे पति देव के मित्र हूं शाम को जब दीनानाथ जी घर आए तो उमा ने उन्हें सर समाज दिखाए और साड़ी बात बताई दीनानाथ जी समझ गए की भगवान शंकर स्वयं मेरी पुत्री के विवाह का समाज देकर गए अपनी पत्नी की बातें सुनकर उनकी आंखों में आंसू ए गए और वो रोटी हुए बोले शंकर हमारे साथ है वो कभी हमारे जीवन में कोई कमी नहीं रखते हैं अब एक बात सुन लो मां जब तक भगवान शंकर मेरी पुत्री के

(04:00) विवाह में मेरे साथ नहीं कर लेंगे मैं तुम्हारे साथ शादी में नहीं चलूंगा विवाह का दिन आया पर दीनानाथ जी मंदिर में बैठ गए की मैं भगवान को लेकर ही विवाह में जाऊंगा तभी भगवान शंकर की मूर्ति से एक आवाज आई अपने कन्या का विवाह कर कर आओ अरे भगवान मैंने तो साड़ी उम्र आपकी सेवा की है आपको तो पता है ना आप मेरे पिता तुल्य है और मैं आपसे हर बात पर ज़िद करता हूं पर आप मेरी हर ज़िद पूर्ण करते हो आपको जब पता है मैं आपके बिना नहीं जा सकता हूं तो आपको चलना ही पड़ेगा वरना मेरा आपसे झगड़ा हो जाएगा फिर मैं आपसे कभी बात नहीं करूंगा दीनानाथ की प्रार्थना सुनकर भगवान

(04:37) भोलेनाथ प्रकट होते हैं [संगीत] बस करता हूं इसलिए मैं तुम्हारे साथ हर जगह मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है भगवान तो भक्ति के वाश में होते हैं तुम विवाह में जो मैं पीछे पीछे आता हूं मुझमें पर विश्वास करो भगवान भोलेनाथ पर विश्वास करके दीनानाथ अपने परिवार के साथ विवाह में पहुंचता है तभी वह देखा है की विवाह में सेठ जी सेठानी की और बच्चों के साथ विराजमान है पंडित जी समझ जाते हैं की साक्षात भगवान शिवा पूरे शिवा परिवार के साथ विवाह में सम्मिलित हो चुके हैं दीनानाथ और उमा की खुशी का ठिकाना नहीं था दीनानाथ भगवान शंकर और माता पार्वती के

(05:17) रूप में आई उन सेठ सेठानी के हाथों से अपनी पुत्री का कन्यादान करवाते हैं थोड़ी डर बाद जब विदाई का समय आता है तो वो सीट सेठानी वहां से अदृश्य हो चुके थे दीनानाथ जी समझ जाते हैं की भगवान ने दीनानाथ से किया वादा निभाया और दर्शन देने विवाह में सम्मिलित हो गए यह सच है भगवान अपने भक्तों को कभी नाराज नहीं करते भक्ति तुमसे जितनी मर्जी लड़ाई करें उनसे जितनी मर्जी शिकायत करें पर भगवान हमारी जीवन डाटा है वह हमसे कभी भी नहीं रूठते वो तो हमारी पालनहार है और सदैव हमारा भला सोचते हैं और सच्चे मां से की गई प्रार्थना को स्वीकार करके सदैव हमारी रक्षा करते हैं

(05:57) भोलापुर गांव में बृजपाल नाम का एक ब्राह्मण राहत था जो की बहुत ही आलसी स्वभाव का था घर में उसकी पत्नी सुनीता और बेटी गुड्डी उसके साथ रहती थी बृजपाल सर दिन खाट पर ही पड़ा राहत था बृजपाल दिनभर में बस एक ही कम करता था और वह भगवान शंकर की पूजा वो हर रोज सुबह शाम शंकर भगवान की पूजा करता उनके नाम की माला जप्त फिर सो जाता अपने आलस के करण सर दिन सोए रहने की वजह से अक्सर बृजपाल और उसकी पत्नी में खटपट होती रहती अब उठ भी जो जी कितना सूज चलो अब खाना खाकर खेत चले जो फसल काटने का समय हो गया है और हां वापसी में आते हुए नदी किनारे लगे सरसों का साथ

(06:41) तोड़ कर ले आना घर में बनाने के लिए कोई सब्जी नहीं है और हां भूलना मत नहीं तो आज खाना नहीं बनाऊंगी अपनी बीबी की बटन को नजर अंदाज कर बृजपाल फिर से चादर टैंकर सोचा जाता है सुनीता गुस्से में लाल पीली हो जाति है उधर कैलाश में बैठी मां प्रति शंकर भगवान से कहती हैं जो आपकी भक्ति के अलावा और कुछ कम नहीं करता बस अपने आलसी शरीर के करण खाट पर ही पड़ा राहत है कोई कर्म नहीं करता आपको तो ऐसे भक्ति का मार्गदर्शन करना चाहिए देवी इसमें इसकी कोई गलती नहीं ये सर किया इसके पिछले जन्म का है तब यह एक आलसी गधा हुआ करता था जो सर दिन मेरे मंदिर के बाहर

(07:29) लेटर राहत था मंदिर में जब भी मेरे नाम का उच्चारण भक्तगण करते तो उसका स्रोत उसके कानों में गूंजता और उसे नींद में भी मेरा ही नाम सुने देता फिर एक रोज श्रवण मास में यह चल बस और फिर अगले चारों में इसने मनुष्य रूप में जन्म लिया लेकिन इसके पिछले जन्म के आलसी स्वभाव ने इसका पीछा नहीं छोड़ जब सही समय आएगा तब है इसे ज्ञान दूंगा है भगवान क्या करूं मैं इस आदमी का यह तो फिर से लेट गए कब से का रही हूं उठ जो खेतों में फसल बड़ी हो गई है अगर समय रहते उसे नहीं काटा तो उसे जानवर चढ़ जाएंगे और कोई चूड़ा लगा सुन रहे हो ना मैं क्या का

(08:13) रही हूं है शिवा जी ना जान इनका आलस कब खत्म होगा इनके अलसी तो मैं टांग ए चुकी हूं सुनीता लगातार बड़बड़े जा रही थी लेकिन आलसी ब्राह्मण के सर पर तो जून तक नारंगी वो तो बस चुपचाप अपनी खाट पर लेट हुआ था बृजपाल को ना उठाता देख सुनीता गुस्से में ए जाति है और बाहर आंगन में रखिए पानी की बाल्टी उठा कर लाती है और बृजपाल के ऊपर गिरा देती है और वह गुस्से में उठकर उससे लड़ने लगता है काफी डर तक दोनों में खूब कहा सनी होती है फिर वो गुस्से में घर से निकाल कर शंकर भगवान के मंदिर में चला जाता है और वहां पहुंचकर शंकर जी से कहता है

(08:51) है शंकर भगवान अपनी पत्नी की रोज-रोज की जिक जिक से मैं टांग ए चुका हूं अगर मेरी भक्ति ने आपको प्रश्न किया है तो मुझे आप दर्शन दीजिए प्रभु इतना कहती वो जोर-जोर से रन लगता है अपने प्रति उसका प्यार और श्रद्धा देखकर शंकर भगवान उसको दर्शन देते हैं और कहते हैं बृजपाल तुम्हारी भक्ति ने मुझे प्रश्न किया है तुम सचमुच मेरे परम भक्ति हो कहो तुम्हें मुझे क्या वरदान चाहिए है प्रभु मुझे ऐसी कोई चीज दीजिए जो मेरी हर बात मैन और मेरा सर कम कर दे यह लो मेरा यह छोटा त्रिशूल तुम इस त्रिशूल को जहां भी रखोगे वह अपना कम खुद ही करने

(09:38) ग जाएगा और कम पूरा होने के बाद हीरो के लेकिन हां अगर तुमने इसे कम के लिए माना किया तो यह हमेशा हमेशा के लिए भौगढ़ वापस मेरे पास ए भगवान शंकर उसको त्रिशूल देकर अंतर्ध्यान हो जाते हैं त्रिशूल देखकर बृजपाल यह सोचकर बड़ा खुश हो जाता है की अब से उसे कुछ भी कम नहीं करना पड़ेगा इसके बाद वो त्रिशूल लेकर घर पहुंचता है और अपनी पत्नी और बेटी को त्रिशूल के बड़े में साड़ी बात बताता है अगले दिन सुबह ही बृजपाल ने भगवान शंकर का नाम लेकर उसे त्रिशूल का इस्तेमाल शुरू कर दिया वो जैसी त्रिशूल को घर के बीचों-बीच रखना सारे घर में अपने आप ही सफाई हो जाति वो जी भी चीज

(10:23) पर उसे त्रिशूल को रख देता वो अपने आप कम करने ग जाता खेतों में रख देता तो अपने आप ही साड़ी फसल कट जाति ऐसे ही कई दिन बीट जाते हैं एक रोज जब सुनीता गुड्डी के साथ अपने मायके गई होती है तो बृजपाल त्रिशूल को गैस के पास रखकर कहता है मेरे लिए जल्दी से स्वादिष्ट सब भजन तैयार कर दो और उसमें खुद ही तेल मसाले पढ़ने ग जाते हैं देखते ही देखते स्वादिष्ट पकवान बनकर तैयार हो जाते हैं जिन्हें बृजपाल बड़े ही चटकारो लेकर खाता है ए है है वह मजा ही ए गया वह वह क्या स्वाद है रोज भगवान रोज भाग्यवान के हाथों का भजन करके तुम्हें परेशान ही हो गया था सच

(11:10) में कमल का है यह त्रिशूल खाना खाकर ब्रिज पाल आराम से गहरी नींद में सो जाता है और फिर जब अगली सुबह जगत है तो केन के पास जाकर उसे त्रिशूल से कहता है जल्दी से मेरे नहाने के लिए केन में से पानी निकाल कर इस बाल्टी में भारत जाए केन में से पानी निकालना हो पौधों को पानी देना हो साफ-सफाई कपड़े बर्तन सभी तरह के कम वो त्रिशूल बृजपाल के कहते ही कर देता बृजपाल बगीचे में पड़ी पाइप के पास जाता है और अपने त्रिशूल को उससे छुट्टे हुए कहता है जल्दी से इस बगीचे में लगे पेड़ पौधों को अच्छे से पानी दे दो टाइप अपने पौधों में पानी देने ग जाति है फिर आलसी ब्राह्मण

(11:50) खुश होते हुए आराम से सोनी चला जाता है लेकिन सोनी के कुछ डर बाद ही लाइट चली जाति है फिर वो अपने त्रिशूल को हाथ रेखा पर रखते हुए कहता है जब तक लाइट नहीं ए जाति तुम मुझे इस पंख से हवा करो उसकी ये कहते ही है पंखा उसे हवा करने लगता है कुछ डर बाद जैसे ही लाइट आई है तो वो हद पंखा बैंड हो जाता है एक दिन बृजपाल को बड़ी तेज भूख ग रही होती है उसने खाली थाली अपने सामने राखी और जमीन पर बैठ गया फिर त्रिशूल को थाली पर लगाकर खाने लगा अब इसमें से जल्दी-जल्दी स्वादिष्ट पकवान निकाल कर आते जाए कुछ ही डर में कई तरह के पकवान थाली में आते गए

(12:30) कितना अच्छा होता अगर मुझे अपने आप खाना खाना पड़े और खुद ही मेरे मुंह में सर खाना चला जाए ऐसा का कर उसने त्रिशूल को अपनी प्लेट पर लगाया और खाने लगा अच्छे-अच्छे भगवान जल्दी से मेरे मुंह में ए जाए उसके ऐसा कहती थाली में से तरह-तरह के पकवान निकालकर उसके मुंह में जान लगे और वो बड़ी चटकारो लेकर उनको खाने लगा पर यह मजाक कुछ डर तक का ही था कुछ डर में उसका पेट भर गया और वो का नहीं का रहा था लेकिन पकवान थे जो की उसके मुंह में लगातार जाति जा रहे थे उसका पेट और मां पुरी तरह भर चुका था वो जैसे ही उन्हें रोकने की बात सोचता है तो उसे भगवान शंकर

(13:11) की कहानी वो बात याद आई जिसमें उन्होंने कहा था की अगर त्रिशूल को कम करते हुए रॉक गया तो ये वरदान वही समाप्त हो जाएगा और त्रिशूल फिर से शंकर भगवान के पास पहुंच जाएगा तभी वहां सुनीता गुड्डी के साथ अपने मायके से लोट कर पहुंच जाति है वो दोनों ये सब देखकर हैरान र जाति हैं सुनिए जी देखिए तो आपका पेट कितना फूलता जा रहा है जल्दी से इस त्रिशूल को रुकने के लिए कहिए ब्रिज पाल शंकर भगवान के लिए वरदान को कोना नहीं चाहता था लेकिन फिर भी वो ठक्कर का ही देता है रुक जो उसके इतना कहते ही खाना रुक जाता है लेकिन साथ ही वो त्रिशूल

(13:47) विवाह से गायब हो जाता है त्रिशूल को गावकर वह बड़ा ही दुखी हुआ लेकिन अब वो कुछ भी नहीं कर सकता था शंकर भगवान के लिए वरदान को अब वह को चुका था एक बृजपाल ने जितने भी कम त्रिशूल को दिए थे वो सब कब रोकने हैं ये उसने साथ में ही बता दिया था लेकिन खाना खाता हुए कब रुकना है ये कहना वो भूल गया था जिसका रन खाना बिना रुक ही उसके मुंह में आता ही जा रहा था साड़ी बात समझना के बाद ब्रिज पाल खाने लगा है महादेव मैं समझ गया ये वरदान आपने मुझे सबक से खाने के लिए दिया था सचमुच में मैं कितना मूर्ख था जो हर छोटे-छोटे गांव के लिए भी आलस दिखता था और अब मुझे

(14:28) सिख मिल चुकी है की छोटे-छोटे कम के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहने से कितनी बड़ी मुसीबत ए शक्ति है उसे दिन के बाद से बृजपाल ने हमेशा हमेशा के लिए आलस्याग दिया और हर रोज खेत जान लगा अपने सभी कम खुद करने लगा और दिन में दो बार भगवान शंकर की पूजा भी करता अब उसका जीवन पुरी तरह से सफल हो गया


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