शंकर जी के नंदी और कृष्ण जी की खेती | Bhagwan Shankar | Hindi Kahaniya | Bhakti Kahani | Stories

 शंकर जी के नंदी और कृष्ण जी की खेती | Bhagwan Shankar | Hindi Kahaniya | Bhakti Kahani | Stories - 


एक बार भगवान शंकर तपस्या से उठे तो मां पार्वती उनके पास आई और बोली स्वामी आप सर दिन पर्वत पर बैठे रहते हो और मैं सर दिन घर का कामकाज करती हूं आप कुछ नहीं कमाते हो मैं क्या खाऊं क्या बच्चों को ध्यान भी दिया की परिवार कैसे चलेगा मां पार्वती की बातें भगवान शंकर ध्यान से सुन रहे थे आप मेरी एक बात मानो की स्वामी मैंने साथ वचन निभाना का वादा किया था तुम कहो तो मैं तुम्हारी बात अवश्य मानूंगा उसे ले आना कुछ तो कम चलेगा लेकिन एक बात का ध्यान रहे स्वामी आप वहां जाकर कन्हैया

(01:06) से कहना की आप खेती ऊपर की लोग और नीचे का हिस्सा कन्हैया [संगीत] घर बैठकर और कन्हैया जी के पास जान लगे रास्ते में नदी बेल उनसे बोला प्रभु हम जा तो रहे हैं लेकिन ये कन्हैया बहुत चालक है बहुत तेज है कोई नहीं जो होगा सो देखा जाएगा मैंने पार्वती को वचन दिया है की अब मैं खेती करके हिलाऊंगा और फिर एक नदी के साथ कृष्णा जी के द्वारा पहुंचे और अपना शंकर बजाने लगे शंकर की आवाज सुनकर कृष्णा जी द्वारा खोलने हैं तो उनके सामने भगवान शंकर खड़े थे कृष्णा जी भगवान शंकर को प्रणाम करते हैं भोलेनाथ आप आई भीतर पधारिए अचानक कैसे आना हुआ मुझे

(01:56) संदेश भेज देते मैं आपसे मिलने ए जाता कन्हैया मेरा एक कम है जो केवल तुम ही कर सकते हो हां हां बताइए मैं आपकी किस प्रकार सहायता कर सकता हूं मुझे आपके खेतों पर खेती करनी है एक बेल मेरे पास है और एक बेल आप अपना दे दो और अपने खेत पर मुझे खेती करने के लिए दे दो क्यों भैया आपका क्या विचार है भगवान शंकर हमारे खेतों पर खेती करना चाहते हैं हां तो कोई बात नहीं अच्छी बात है हमें भी बनी बनाई फसल मिल जाएगी पर मेरी एक शर्ट है खेती में आप जो भी मुझे बोलने को खाओगे वो मैं बोल दूंगा पर खेती का ऊपरी हिस्सा मैं रखूंगा तो आप बताओ मैं क्या बोलूं ठीक है

(02:35) मुझे मंजूर है एक कम करो अपना आलू बोडो ठीक है फिर मैं फसल तैयार होने के बाद ही आपसे मिलेगा इसके बाद शंकर जी बैलों को लेकर खेती करने चले गए उन्होंने खूब मेहनत से खेती की और आलू का है कुछ दोनों में आलू की फसल पर कर तैयार हो गई शर्ट के मुताबिक शंकर जी और नंदिनी ने मिलकर आलू के ऊपर की फसल आलू की पेट कटे और गठरी में भरकर कैलाश ले गए शंकर जी ने बहुत खुशी से पार्वती मैया को वो कट रही थी पार्वती मैया ने जब कतरी को खोलकर देखा तो वो हैरान हो गई उसे गठरी में तो पेट ही पेट थे प्रभु आप यह क्या उठा ले हो खेती कहां है जो आपने की थी मैंने तो वैसा ही किया

(03:16) जैसा तुमने मुझे कहा मैंने ऊपर की खेती का हिस्सा लिया और कैलाश लोट आया मुझे कुछ नहीं पता प्रभु अब मैं इन पत्तों का क्या करूं यह पेट किसी कम के नहीं है अब आप दोबारा जो और दोबारा खेती करके लो और हां अब की बार आप नीचे की खेती मांगना एक बार फिर भगवान शंकर नदी के साथ वृंदावन जान लगे में नंदिनी ने उन्हें फिर समझाया की कान्हा बहुत चतुर है तो आप सावधान रहना शंकर जी ने फिर से वही कहा की जो होगा देखा जाएगा मुझे आपके बेल और खेत फिर से चाहिए मुझे एक बार फिर खेती करनी है पर इस बार मेरी शर्ट ये है की मैं खेती नीचे की लूंगा ऊपर की आप रखना बताओ मैं क्या बोलूं

(03:59) ठीक है फिर तो आप बाजार बोल दो कृष्णा जी के खाने पर शंकर जी ने बाज रब दिया और खेती की उसकी अच्छे से रखवाली की और कुछ ही समय में बहुत अच्छी बाजरे की फसल उगाई शंकर जी बाजरे के नीचे की डांडियां तोड़कर कैलाश ले गए बाजार सर कृष्णा जी और यशोदा मैया घर ले गए कैलाश पहुंच कर जब शंकर जी ने माता पार्वती को बाजरे के नीचे की डंडियों से भारी गठरी दिखाई तो वो फिर से क्रोधित हो गई अरे आप यह क्या ले आए यह तो घास फस है इनका मैं क्या करूंगी इसमें बाजरे के दानी कहां है मुझे तो तुमने कहा की मुझे कुछ नहीं पता मैं क्या बनाऊं और क्या

(04:45) खिलौने आप एक बार फिर से जो और इस बार कन्हैया से कहना की ऊपर और नीचे दोनों की खेती आपकी रखोगे ठीक है पार्वती जैसा तुम कहो मैं फिर से जाता हूं चलो नदी शंकर जी कन्हैया के द्वारा पर पहुंचे और उनसे फिर से खेती करने के लिए कहा इस बार ऊपर और नीचे दोनों की खेती में ही लूंगा बताओ मुझे क्या बोलना है ठीक है इसमें मुझे कोई आपत्ती नहीं है आप इस बार मक्का बोलो इस बार आप ऊपर और नीचे की खेती ले लेना और जो बचेगा वो मैं रख लूंगा शंकर जी फिर से खेती करने लगे कुछ ही समय में मक्का की बहुत अच्छी फसल उगाई कृष्णा जी यशोदा मैया के साथ मिलकर बीच का हिस्सा यानी की मक्का

(05:24) तोड़कर घर ले गए और ऊपर और नीचे की फसल भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर ले आए इस बार नदी और भगवान शंकर बहुत खुश थे की ऊपर और नीचे की दोनों खेती देखकर माता पार्वती बहुत खुश होगी पर जैसे ही उन्होंने मां पार्वती को खेती की गठरी पकड़े जिसे देखकर मां पार्वती अपना सर पकड़ कर बैठ गई अरे ऊपर और नीचे की फसल तो ले आए पर इसमें भुट्टा कहां है [संगीत] अब मैं भोला भला जैसा तुमने मुझे कहा मैंने वैसा ही किया तभी कृष्णा जी आते हैं मां पार्वती भोलेनाथ बिल्कुल उचित का रहे हैं भोलेनाथ को तभी तो भक्ति भोले बाबा कहते हैं भोलेनाथ तो भाव के भूखे हैं

(06:13) प्रेम से जो भी इनको कुछ भी अर्पित करता है वे ग्रहण कर लेते हैं अब धन्य है भोलेनाथ मां पार्वती भोलेनाथ के द्वारा की हुई खेती मैं ले आया हूं इसे स्वीकार कीजिए ना पार्वती देखते हैं की भगवान भोलेनाथ ने तो बहुत ही बढ़िया खेती करके आलू बाजरो और मक्काओं का आया था वो खुशी से फूली नहीं समाती कुछ भी कहिए स्वामी पर आपने नदी और कान्हा के बैलों के साथ मिलकर बहुत बढ़िया खेती की है भोलापुर गांव में बृजपाल नाम का एक ब्राह्मण राहत था जो की बहुत ही आलसी स्वभाव का था घर में उसकी पत्नी सुनीता और बेटी गुड्डी उसके साथ रहती थी बृजपाल सर दिन खाट पर ही पड़ा राहत था

(06:56) बृजपाल दिन भर में बस एक ही कम करता था और वो था भगवान शंकर की पूजा वह हर रोज सुबह शाम शंकर भगवान की पूजा करता उनके नाम की माला जप्त फिर सो जाता अपने आलस के करण सर दिन सोए रहने की वजह से अक्सर बृजपाल और उसकी पत्नी में खटपट होती रहती अब खाना खाकर खेत चले जो फसल काटने का समय हो गया है और हां वापसी में आते हुए नदी किनारे लगे सरसों का साथ तोड़ कर ले आना घर में बनाने के लिए कोई सब्जी नहीं है और हां भूलना मत नहीं तो आज खाना नहीं बनाऊंगी अपनी बीबी की बटन को नजरअंदाज कर बृजपाल फिर से चादर टैंकर सोचता है सुनीता गुस्से में लाल पीली हो जाति है उधर कैलाश में

(07:42) बैठी मां पार्वती शंकर भगवान से कहती हैं फिर नाथ की आपका कैसा भक्ति है जो आपकी भक्ति के अलावा और कुछ कम नहीं करता बस अपने आलसी शरीर के करण खाट पर ही पड़ा राहत है कोई कर्म नहीं करता आपको तो ऐसे भक्ति का मार्गदर्शन करना चाहिए [संगीत] इसके पिछले जन्म का है तब ये एक आलसी गधा हुआ करता था जो सर दिन मेरे मंदिर के बाहर लेटर राहत था मंदिर में जब भी मेरे नाम का उच्चारण भक्तगण करते तो उसका स्रोत उसके कानों में गूंजता और उसे नींद में भी मेरा ही नाम सुने देता फिर एक रोज श्रवण मास में यह चल बस और फिर अगले चारों में इसने उच्च रूप में जन्म लिया लेकिन इसके पिछले

(08:36) जन्म के आलसी स्वभाव ने इसका पीछा नहीं छोड़ जब सही समय आएगा तब मैं इसे ज्ञान दूंगा है भगवान क्या करूं मैं इस आदमी का यह तो फिर से लेट गए कब से का रही हूं उठ जो खेतों में फसल बड़ी हो गई है अगर समय रहते उसे नहीं काटा तो उसे जानवर चढ़ जाएंगे और कोई चूड़ा लगा सुन रहे हो ना मैं क्या का रही हूं है शिवा जी ना जान इनका आलस कब खत्म होगा इनके अलसी तो मैं अब टांग ए चुकी हूं सुनीता लगातार बड़बड़ाए जा रही थी लेकिन आलसी ब्राह्मण के सर पर तो जून तक नारंगी वह तो बस चुपचाप अपनी खाट पर लेट हुआ था बृजपाल को सुनीता गुस्से में ए जाति है और बाहर आंगन में रखिए पानी की

(09:18) बाल्टी उठा कर लाती है और बृजपाल के ऊपर गिरा देती है और वह गुस्से में उठकर उससे लड़ने लगता है काफी डर तक दोनों में खूब कहा सनी होती है फिर वो गुस्से में घर से निकाल कर शंकर भगवान के मंदिर में चला जाता है वहां पहुंचकर शंकर जी से कहता है अगर मेरी भक्ति ने आपको प्रश्न किया है तो मुझे आप दर्शन दीजिए प्रभु इतना कहती है अपने प्रति उसका प्यार और श्रद्धा देखकर शंकर भगवान उसको दर्शन देते हैं और कहते हैं बृजपाल तुम्हारी भक्ति ने मुझे प्रश्न किया है तुम सचमुच मेरे परम भक्ति हो कहो तुम्हें मुझे क्या वरदान चाहिए है प्रभु मुझे ऐसी कोई चीज दीजिए जो मेरी हर बात

(10:12) मैन और मेरा सर कम कर दे यह लो मेरा यह छोटा त्रिशूल तुम इस त्रिशूल को जहां भी रखोगे वह अपना कम खुद ही करने ग जाएगा और कम पूरा होने के बाद हीरोकेगा लेकिन हां अगर तुमने इसे कम के लिए माना किया है तो यह हमेशा हमेशा के लिए गायब होकर वापस मेरे पास ए जाएगा भगवान शंकर उसको त्रिशूल देकर अंतर्ध्यान हो जाते हैं त्रिशूल देखकर बृजपाल यह सोचकर बड़ा खुश हो जाता है की अब से उसे कुछ भी कम नहीं करना पड़ेगा इसके बाद वो त्रिशूल लेकर घर पहुंचता है और अपनी पत्नी और बेटी को त्रिशूल के बड़े में साड़ी बात बताता है अगले दिन सुबह ही बृजपाल ने भगवान शंकर का

(10:59) नाम लेकर उसे त्रिशूल का इस्तेमाल शुरू कर दिया वो जैसी त्रिशूल को घर के बीचों-बीच रखना सारे घर में अपने आप ही सफाई हो जाति वो जी भी चीज पर उसे त्रिशूल को रख देता वो अपने आप कम करने ग जाता खेतों में रख देता तो अपने आप ही साड़ी फसल कट जाति ऐसे ही कई दिन बीट जाते हैं एक रोज जब सुनीता गुड्डी के साथ अपने मायके गई होती है तो बृजपाल त्रिशूल को गैस के पास रखकर कहता है मेरे लिए जल्दी से स्वादिष्ट सब भजन तैयार कर दो और उसमें खुद ही तेल मसाले पड़ा ने ग जाते हैं देखते ही देखते स्वादिष्ट पकवान बनकर तैयार हो जाते हैं जिन्हें बृजपाल बड़े ही

(11:40) चटकारो लेकर खाता है ए है है वह मजा ही ए गया वह वह क्या स्वाद है रोज भगवान रोज भाग्यवान के हाथों का भजन करके तुम्हें परेशान ही हो गया था सच में कमल का है यह त्रिशूल खाना खाकर ब्रिज पाल आराम से गहरी नींद में सो जाता है और फिर जब अगली सुबह जगत है तो केन के पास जाकर उसे त्रिशूल से कहता है जल्दी से मेरे नहाने के लिए केन में से पानी निकाल कर इस बाल्टी में भारत जाए केन में से पानी निकालना हो पौधों को पानी देना हो साफ-सफाई कपड़े बर्तन सभी तरह के कम वो त्रिशूल बृजपाल के कहते ही कर देता बृजपाल बगीचे में पड़ी पाइप के पास जाता है और

(12:24) अपने त्रिशूल को उससे छुट्टे हुए कहता है जल्दी से इस बगीचे में लगे पेड़ पौधों को अच्छे से पानी दे दो टाइप अपने पौधों में पानी देने ग जाति है फिर आलसी ब्राह्मण खुश होते हुए आराम से सोनी चला जाता है लेकिन सोनी के कुछ डर बाद ही लाइट चली जाति है फिर वो अपने त्रिशूल को हाथ रेखा पर रखते हुए कहता है जब तक लाइट नहीं ए जाति तुम मुझे इस पंख से हवा करो उसकी यह कहते ही है पंखा उसे हवा करने लगता है कुछ डर बाद जैसे ही लाइट आई है तो वह हाथ पंखा बैंड हो जाता है एक दिन बृजपाल को बड़ी तेज भूख ग रही होती है उसने खाली थाली अपने सामने राखी और जमीन

(13:05) पर बैठ गया फिर त्रिशूल को थाली पर लगाकर खाने लगा अब इसमें से जल्दी-जल्दी स्वादिष्ट पकवान निकाल कर आते जाए कुछ ही डर में कई तरह के पकवान थाली में आते गए कितना अच्छा होता अगर मुझे अपने आप खाना खाना पड़े और खुद ही मेरे मुंह में सर खाना चला जाए ऐसा का कर उसने त्रिशूल को अपनी प्लेट पर लगाया और खाने लगा अच्छे-अच्छे भगवान जल्दी से मेरे मुंह में ए जाए उसके ऐसा कहती थाली में से तरह-तरह के पकवान निकालकर उसके मुंह में जान लगे और वो बड़ी चटकारो लेकर उनको खाने लगा पर यह मजाक कुछ डर तक का ही था कुछ डर में उसका पेट भर गया और वो का नहीं का रहा था

(13:45) लेकिन पकवान थे जो की उसके मुंह में लगातार जाति जा रहे थे उसका पेट और मां पुरी तरह भर चुका था वो जैसे ही उन्हें रोकने की बात सोचता है तो उसे भगवान शंकर की कहानी वो बात याद आई जिसमें उन्होंने कहा था की अगर त्रिशूल को कम करते हुए रॉक गया तो ये वरदान वही समाप्त हो जाएगा और त्रिशूल फिर से शंकर भगवान के पास पहुंच जाएगा तभी वहां सुनीता गुड्डी के साथ अपने मायके से लोट कर पहुंच जाति है वो दोनों ये सब देखकर हैरान र जाति हैं सुनिए जी देखिए तो आपका पेट कितना फूलता जा रहा है जल्दी से इस त्रिशूल को रुकने के लिए कहिए ब्रिज पाल शंकर भगवान के लिए वरदान को

(14:23) कोना नहीं चाहता था लेकिन फिर भी वो ठक्कर का ही देता है रुक जो उसके इतना कहते ही खाना रुक जाता है लेकिन साथ ही वो त्रिशूल विवाह से गायब हो जाता है त्रिशूल को गावकर वह बड़ा ही दुखी हुआ लेकिन अब वो कुछ भी नहीं कर सकता था शंकर भगवान के लिए वरदान को अब वह को चुका था एक बृजपाल ने जितने भी कम त्रिशूल को दिए थे वो सब कब रोकने हैं ये उसने साथ में ही बता दिया था लेकिन खाना खाता हुए कब रुकना है ये कहना वो भूल गया था जिसका रन खाना बिना रुक ही उसके मुंह में आता ही जा रहा था साड़ी बात समझना के बाद ब्रिज पाल खाने लगा है महादेव मैं समझ गया ये वरदान आपने

(15:03) मुझे सबक से खाने के लिए दिया था सचमुच में मैं कितना मूर्ख था जो हर छोटे-छोटे गांव के लिए भी आलस दिखता था और अब मुझे सिख मिल चुकी है की छोटे-छोटे कम के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहने से कितनी बड़ी मुसीबत ए शक्ति है उसे दिन के बाद से बृजपाल ने हमेशा हमेशा के लिए आलस्याग दिया और हर रोज खेत जान लगा अपने सभी कम खुद करने लगा और दिन में दो बार भगवान शंकर की पूजा भी करता अब उसका जीवन पुरी तरह से सफल हो गया


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