सावन के सोमवार की कथा जो एक बार सुन लेता है वह कभी गरीब नहीं रहता है!

 सावन के सोमवार की कथा जो एक बार सुन लेता है वह कभी गरीब नहीं रहता है!


मित्रों आज हम आपको दुख दरिद्रता का नाश करने वाली भगवान शिव जी की अत्यंत पावन कथा का श्रवण कराने वाले हैं जिसका वर्णन शिव पुराण में भी मिलता है और कहा जाता है कि जो भी मनुष्य इस कथा को पूरे सच्चे मन से शुरू से लेकर अंत तक पूरा सुनता है तो उसके घर में कभी भी दरिद्रता नहीं आती है इस कथा का श्रवण करने के बाद रोगी व्यक्ति को अपने सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है और आपको इस कथा के माध्यम से यह भी बताने वाले हैं कि सावन में भगवान शिव जी की कथाओं का श्रवण करने से कौन सा फल मिलता है इसलिए आप सभी लोग इस कथा का श्रवण शुरू

(00:40) से लेकर अंत तक पूरा करना और अगर कोई भी व्यक्ति भगवान शिव जी और माता पार्वती जी की इस कल्याणकारी कथा का श्रवण करता है तो उसकी भक्ति भगवान शिव जी के प्रति 100 गुना अधिक बढ़ जाती है अगर आप भगवान शिव जी के भक्त हैं तो आप भगवान शिव जी का अनादर ना करें इस पावन कथा को शुरू करने से पहले अगर आप सभी लोगों ने अभी तक वीडियो को लाइक नहीं किया है तो वीडियो को लाइक अवश्य करें और कमेंट बॉक्स में हर हर महादेव लिखें मित्रों आप लोगों का ज्यादा समय नष्ट ना करते हुए कथा को शुरू करते हैं मित्रों एक समय की बात है किसी नगर में एक पंडित रहता था वह जन्म से ही बहुत

(01:23) गरीब था और वह पंडित अपनी पत्नी और अपने पुत्र के साथ रहता था उसके पुत्र का नाम सोमनाथ था वह पंडित प्रतिदिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद तुलसी के पौधे पर जल चढ़ाता था और वह प्रतिदिन उस नगर के सभी घरों में जाकर कथाएं सुनाता था लेकिन उस पंडित द्वारा किए गए यह सभी कार्य उसकी पत्नी को बिल्कुल भी पसंद नहीं थे क्योंकि उस पंडित की पत्नी कई वर्षों से भगवान भोलेनाथ का पूजा पाठ किया करती थी और सावन के सभी सोमरों को उपवास भी रखती थी लेकिन इतना सब कुछ करने के बाद भी उसे गरीबी का ही सामना करना पड़ रहा था इसलिए वह पंडित

(02:01) की पत्नी भगवान भोलेनाथ से बहुत ही नाराज हो गई और उनका पूजा पाठ करना सब कुछ छोड़ दिया इसी तरह से वह पंडित जब तक युवा था तब तक वह कहीं ना कहीं से भगवान भोलेनाथ की कथा सुनाकर या पूजा पाठ करने के बाद उसे जो धन मिलता था उसी धन से वह अपने परिवार का पालन पोषण करता था फिर एक दिन उस पंडित की पत्नी ने दोबारा भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करना शुरू कर देती है वह अपने मन में यह सोचकर भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना किया करती थी कि एक दिन तो ऐसा जरूर आएगा जब मेरी भी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी मेरी भी गरीबी दूर होगी लेकिन उसके द्वारा इतनी पूजा पाठ करने के बाद भी

(02:45) उसे अपने पूजा पाठ करने का कोई फल नहीं मिल पा रहा था जिससे वह बहुत ही दुखी हो जाती है और मन ही मन अपने आप को कोसने लगती है कि हमने ऐसा कौन सा पाप किया है जिसकी वजह से हमें इतनी गरीबी का सामना करना पड़ रहा है अब धीरे-धीरे वह पंडित और उसकी पत्नी दोनों ही बहुत बूढ़े हो चुके थे और अब उस पंडित के शरीर में इतनी शक्ति भी नहीं बची थी कि वह किसी नगर में भगवान भोलेनाथ की कथा करने के लिए जा सके अब वह पंडित भी हमेशा बीमार रहने लगा था क्योंकि उसे कई बीमारियों ने घेर लिया था और उसके घर को चलाने वाला कोई नहीं था इसलिए वह पंडित भी चिंतित रहने लगा था धीरे-धीरे से

(03:28) उसके घर में कुछ नहीं बचा उसे दाने-दाने के लिए झुंझ पड़ गया था तब वह पंडित की पत्नी बहुत ही क्रोधित हो जाती है और एक बार फिर से क्रोध में आकर भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करना छोड़ देती है और अपने पति से भी भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करने से मना करने लगती हैं लेकिन वह पंडित भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करना नहीं छोड़ता है तब एक दिन वह क्रोधित होकर अपने पति से कहती है हे नाथ हम दोनों यह कब तक भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते रहेंगे क्योंकि भगवान शिव शंभू की पूजा अर्चना करते-करते हम दोनों बहुत ही बूढ़े हो चुके

(04:05) हैं लेकिन अभी भी हमें इतनी पूजा पाठ करने का कोई फल प्राप्त नहीं हुआ है हम इतनी गरीबी से जूं रहे हैं यहां तक हमारी गरीबी दूर ही नहीं हुई है बल्कि हम इसके उल्टा पहले से और भी ज्यादा गरीब हो गए हैं पहले तो कुछ ठीक भी था लेकिन अब तो दाने-दाने के लिए रोना पड़ रहा है उस पंडित की पत्नी उस पंडित से आगे कहती है हे नाथ मैं ही मूर्ख हूं जो मैंने एक बार भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करना बंद करके दोबारा से शुरू कर दी और मैंने सावन के सभी सोमवार को ना तो दिन देखा ना रात देखी दिन से रात तक भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की और

(04:43) उपवास भी रखा प्रतिदिन जप तप करके अपने ही शरीर को कमजोर कर लिया यह सब करने के बाद भी मुझे इसका कोई फल नहीं मिला और अब तुम्हारा शिव क्या देगा जो तुम प्रतिदिन शिवलिंग पर जल अर्पित करते हो मित्रों अपनी पत्नी की बात सुनकर वह पं उसे कुछ भी नहीं कहता है क्योंकि उसे अपने आराध्य भगवान भोलेनाथ पर पूरा विश्वास था उधर उसका पुत्र सोमनाथ अभी शिक्षा ग्रहण कर रहा था और कुछ ही दिनों में उसकी शिक्षा दीक्षा पूरी हो गई वह अपनी शिक्षा दीक्षा पूरी करके अपने घर आ गया और जब उसने अपने माता-पिता को कष्ट में देखा तब वह अपने आने वाले भविष्य के बारे में ज्यादा ना

(05:24) सोचकर उसने अपने माता-पिता की सेवा करनी शुरू कर दी उनकी सभी मनोकामनाएं को पू करना शुरू कर दिया और घर का सारा बोझ अपने कंधों पर ले लिया वह अपने पिता की तरह नगर नगर जाकर भगवान भोलेनाथ की कथाओं को सुनाने लगा और कथा सुनाने पर मिली दक्षिणा से अपने परिवार का पालन पोषण करने लगा ऐसे ही कई वर्ष गुजर जाते हैं लेकिन एक दिन की बात है सोमनाथ उस नगर के भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिर में पूजा अर्चना करने के बाद वहां पर उपस्थित शिव भक्तों को भगवान भोलेनाथ की पावन कथा का श्रवण कराते हुए कहता है कि जो भी भगवान भोलेनाथ की इस पावन कथा को सच्चे मन से श्रवण करता है

(06:07) उनकी भगवान भोलेनाथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं सोमनाथ की यह बात उस नगर का राजा उस मंदिर में आए हुआ था वही इस बात को राजा सुन लेता है और उसे यह बात बहुत ही अच्छी लगती है इसीलिए वह सोमनाथ के पास पहुंचकर उससे कहता है मुझे तुम्हारी यह कथा बहुत ही अच्छी लगी किंतु क्या तुम आज से प्रति दिन राजकुमारी को भगवान भोलेनाथ की कथाओं को श्रवण कराओ ग क्योंकि मैं चाहता हूं कि मेरी पुत्री को अच्छा वर मिले और इसके लिए मैं तुमको प्रतिदिन दक्षिणा के रूप में ढेर सारा धन दूंगा राजा की ऐसी बातों को सुनकर सोमनाथ बहुत ही प्रसन्न हो जाता है और राजकुमारी को

(06:50) प्रतिदिन कथाओं का श्रवण कराने के हामी भर देता है फिर उसके बाद राजा ने सोमनाथ को अपने राज महल में राजकुमारी को प्रतिदिन कथाओं का श्र वण कराने के नियुक्त कर लिया और अब सोमनाथ प्रतिदिन उस नगर के राजा की पुत्री को कथा सुनाने लगा और राजकुमारी को कथा का श्रवण कराने पर दक्षिणा के रूप में जो कुछ धन मिलता था उसी धन से वह अपने परिवार का पालन पोषण करने लगा किंतु सोमनाथ की माता को यह बात अच्छी नहीं लगती थी और वे इस पर प्रसन्न भी नहीं रहती थी क्योंकि उन्हें अपने पुत्र के आने वाले भविष्य की चिंता थी इसीलिए वे प्रतिदिन इस

(07:29) बात को लेकर बहुत ही चिंतित रहती थी फिर एक दिन पंडित की पत्नी अपने पति से कहती है हे नाथ मुझे अपने पुत्र के भविष्य की चिंता हो रही है क्योंकि हमारा जीवन तो किसी तरह से कट गया है लेकिन मुझे हमारे पुत्र के आने वाले भविष्य की चिंता है हमारे मरने के बाद उसका क्या होगा क्या हमारी भक्ति पूजा पाठ का कभी कोई फल नहीं मिलेगा क्या भगवान भोलेनाथ को हमारा दुख दिखाई नहीं देता है हमारा पुत्र राजा के महल से दक्षिणा में जो धन लाता है माना कि उस धन से हमारे पूरे परिवार का पालन पोषण हो जाता है लेकिन बाकी की सभी मनोकामनाएं का क्या वे कैसे पूरी होंगी अब क्या हम

(08:10) सिर्फ अपना पेट भरने के लिए ही जिए ईश्वर ने अपनी आंखें क्यों बंद कर रखी हैं क्या हमारे पुत्र को हमारी तरह ही जीवन भर गरीब रहना पड़ेगा मित्रों जब माता पार्वती जी ने उस पंडित की पत्नी की करुण पुकार को सुनी तब वे शीघ्र ही भगवान भोलेनाथ के पास जा पहुंची तब भगवान भोलेनाथ जी ने पूछा कि हे देवी पार्वती आज आप बहुत चिंतित लग रही हैं फिर माता पार्वती जी भगवान भोलेनाथ जी से कहती हैं हे शिवशंभू आप तो त्रिकाल दर्शी हैं आपको तो सब कुछ पता होता है किंतु आप फिर भी यह प्रश्न कर रहे हैं चलिए मैं आपको बता देती हूं कि मैं इतना चिंतित क्यों हूं मेरी चिंता का कारण है

(08:50) वह पंडित और उसकी पत्नी आप उन दोनों की परीक्षा क्यों ले रहे हैं हे प्रभु वह पंडित तो आपका परम भक्त है लेकिन आपने सिर्फ उसके जीवन को कठिनाइयों सेही ही भरा है उसे कभी भी उसके द्वारा पूजा करने का फल नहीं दिया इसलिए मेरी आपसे विनती है कि अब आप उसके जीवन के सभी दुखों का नाश करें अन्यथा कहीं ऐसा ना हो कि वह पंडित और उसकी पत्नी आपका पूजा पाठ करना ही बंद कर दें और कहीं उसके मन में आपके प्रति श्रद्धा विश्वास समाप्त ना हो जाए माता पार्वती जी की इन सभी बातों को सुनकर भगवान भोलेनाथ माता पार्वती जी से कहते हैं हे देवी पार्वती आप चिंतित मत होइए

(09:29) क्योंकि हमने उस ब्राह्मण के भाग्य के उदय का बीज बो दिया है अब हम दोनों को उस पंडित के घर जाने का समय आ गया है और पृथ्वी लोक पर जाकर हमें शिव लीला करनी है इतना कहकर भगवान भोलेनाथ जी माता पार्वती जी के साथ पृथ्वी लोक की ओर चल देते हैं और पृथ्वी लोक पर पहुंचकर दोनों साधु का रूप धारण कर लेते हैं साधु का रूप धारण करने के बाद उस पंडित के घर के समीप पहुंच जाते हैं और जोर-जोर से आवाज लगाते हुए कहते हैं अलख निरंजन घर में कोई है तब उनकी आवाज सुनकर वह बूढ़ा पंडित घर से बाहर निकलता है और उन्हें प्रणाम करते हुए कहता है हे मुनिवर आपका स्वागत है बताइए

(10:12) मैं आपकी किस तरह से मदद कर सकता हूं तब साधु का रूप धारण किए हुए भगवान भोलेनाथ ने उस पंडित से कहा कि आज की रात्रि में हम आपके घर पर विश्राम करना चाहते हैं तब वह पंडित अपने मन में सोचने लगा कि यह तो हमारे अतिथि है मुझे इन्हें मना नहीं करना चाहिए क्योंकि अगर इन्हें बुरा लग गया तब यह मेरे पूरे परिवार सहित श्राप दे सकते हैं लेकिन मैं किस तरह से इनका अतिथि सत्कार करूंगा क्योंकि जैसे-तैसे करके मेरा पुत्र जो धन लेकर आता है उससे किसी तरह से हमारे परिवार का पालन पोषण होता है और कुछ भी नहीं बच पाता है इसलिए मैं इनके भोजन का प्रबंध कैसे कर सकता हूं अपने मन

(10:49) में इतना सोचकर उसने कहा कि हे मुनिवर मेरा पुत्र इस नगर के राजा की पुत्री को कथा सुनाकर दक्षिणा में जो भी धन लाता है उसी से एक वक्त के लिए हम तीनों के भोजन की पूर्ति होती है इसलिए मैं कुछ भी करके सिर्फ एक समय के लिए ही भोजन का प्रबंध कर सकता हूं तब साधु का रूप धारण किए हुए भगवान भोलेनाथ जी ने उस पंडित को एक पात्र देकर उससे कहा हे पुत्र आज से तुम अपनी पत्नी से कह देना कि इस पात्र में भोजन बनाया करो तो हम सभी के लिए दोनों वक्त का भोजन बन जाया करेगा फिर इस प्रकार से उस पात्र में भोजन बनाने से सभी के लिए दोनों वक्त के भोजन की पूर्ति हो जाती है यह

(11:32) दृश्य देखकर तीनों बहुत ही आश्चर्य में पड़ गए थे और बहुत ज्यादा भय भीत भी हो गए थे मित्रों उसके अगले दिन सुबह उठकर सोमनाथ राजकुमारी को कथा सुनाने के लिए जा ही रहा था कि तभी अचानक से साधु का रूप धारण किए हुए भगवान भोलेनाथ जी ने सोमनाथ से पूछा कि हे पुत्र तुम कहां जा रहे हो तब सोमनाथ उनसे कहता है हे मुनिवर मैं तो अब इस नगर के राजा की पुत्री को कथा का श्रवण कराने के लिए जा रहा हूं तब साधु का रूप धारण किए हुए भगवान भोलेनाथ जी ने सोमनाथ से कहा कि हे पुत्र आज जब तुम राजकुमारी को कथा का श्रवण कराने के लिए जाओ तो तुम उससे पूछना कि वह अपनी किस

(12:16) मनोकामना की पूर्ति होने के लिए प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ की कथा का श्रवण करती है यह सुनकर सोमनाथ राजमहल में पहुंच जाता है और राजकुमारी को कथा का श्रवण कराने लगता है राजकुमारी को कथा का श्रवण कराने के बाद सोमनाथ उसी प्रश्न को राजकुमारी से पूछता है कि तुम अपनी किस मनोकामना की पूर्ति होने के लिए प्रतिदिन कथा का श्रवण करती हो तब राजकुमारी सोमनाथ से कहती है मैं अपनी इस मनोकामना की पूर्ति होने के लिए प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ की कथाओं का श्रवण करती हूं जिससे मुझे ऐसा कोई वर मिले जिसकी चर्चा पूरे नगर में सभी करें उसके मस्तक पर चंद्र और सूरज हो और उसका भाग्य

(12:57) इतना अच्छा हो कि उसके घर में किसी भी चीज की कोई कमी ना हो वह ऐसी बारात लेकर आए जैसी अभी तक किसी ने देखी ना हो राजकुमारी की इन बातों को सुनकर सोमनाथ घर वापस लौट आता है और घर पर पहुंचकर साधु रूपी भगवान भोलेनाथ को सारी बातें बता देता है तब भगवान भोलेनाथ सोमनाथ से कहते हैं हे पुत्र ठीक है अब अगले दिन जब तुम राजकुमारी को कथा का श्रवण कराने के लिए जाना तब फिर से वही प्रश्न पूछना अगर राजकुमारी तुम्हें फिर से कल वाली बातें बताए तब तुम मुझसे शीघ्र यह कह देना कि तुम्हें जैसा वर चाहिए वैसा सिर्फ मैं ही हूं इतना कहकर वहां से भाग आना तब सोमनाथ

(13:37) उस साधु रूपी भगवान भोलेनाथ जी से कहता है हे मुनिवर कहां मैं एक गरीब पंडित और कहां वह इस नगर के राजा की पुत्री भला हमारा विवाह कैसे हो सकता है और मेरा घर तो उसके द्वारा दी दक्षिणा पर चलता है लेकिन जब यह बात राजा को पता चलेगी कि मैं उसकी पुत्री से विवाह करना चाहता हूं तो वह मुझे मेरे पूरे परिवार के साथ मृत्युदंड दे देगा इसलिए आप मुझे क्षमा कर दीजिए क्योंकि मैं ऐसा नहीं कर सकता हूं सोमनाथ की बात सुनकर साधु रूपी भगवान भोलेनाथ जी ने सोमनाथ से कहा कि हे पुत्र ठीक है हम अभी तुम्हें तुम्हारे पूरे परिवार के साथ अपने अभिशाप

(14:15) से भस्म कर देते हैं वैसे ही सोमनाथ पहले से ही उनके चमत्कार से बहुत भयभीत था उनकी ऐसी बातों को सुनकर और ज्यादा भयभीत हो गया था और अपने मन में सोचने लगा कि मुझे और मेरे परिवार सहित राजा साहब तो बाद में मृत्युदंड देंगे उससे पहले यह तो अभी ही अपने श्राप से भस्म कर देंगे अपने मन में इतना सोचकर फिर उसने ऐसा करने का उन्हें विश्वास दिलाया और राजकुमारी को भगवान भोलेनाथ जी की कथा का श्रवण कराने के लिए राजमहल की तरफ निकल गया राजमहल पहुंचकर वह राजकुमारी को भगवान भोलेनाथ जी की कथा का श्रवण कराने लगा उसके बाद उसने राजकुमारी

(14:54) से फिर से पूछा कि आप अपनी किस मनोकामना की पूर्ति के लिए भगवान भोलेनाथ जी की कथा का श्रवण करती हो तब राजकुमारी ने फिर वही जवाब दिया जो उसने पहले दिन दिया था उसके बाद सोमनाथ ने राजकुमारी से कहा कि हे राजकुमारी तुम्हें जैसा वर चाहिए वैसा वर मैं ही हूं इतना कहकर सोमनाथ शीघ्र राजमहल से भागकर अपने घर आ गया लेकिन सोमनाथ की ऐसी बातों को सुनकर राजकुमारी बहुत ही क्रोधित हो गई फिर उसने अपनी एक दासी को बुलाकर उसे सब कुछ बता दिया और कहा कि मेरी यह पूरी बात पिताजी को बता देना फिर जब यह बात राजा को पता चली तब वह भी सोमनाथ पर बहुत क्रोधित हो गया और उसने

(15:37) राजकुमारी को भरोसा दिलाया कि उस उदंड पंडित को इसके लिए अवश्य सजा मिलेगी फिर राजा ने शीघ्र ही अपने मंत्रियों को दरबार में बुला लिया और उनसे विचार विमर्श करने लगा तभी उसके महामंत्री ने उस राजा से कहा कि हे राजन उसने अपराध तो फांसी दिए जाने वाला किया है लेकिन वह तो एक पंडित है क्योंकि अगर आप उसे फांसी दे देते हो तब आपको एक ब्रह्म हत्या का घोर पाप लगेगा इसलिए हमें उसे कुछ अलग से दंडित करना चाहिए जिससे आपको ब्रह्म हत्या का घोर पाप भी ना लगे मित्रों फिर राजा काफी देर तक विचार विमर्श किया और अपने कुछ सैनिकों को बुलाकर उनसे कहा कि उस पंडित के घर जाओ और

(16:19) उससे कह देना कि राजा साहब तुम्हारे साथ अपनी पुत्री का विवाह करने के लिए तैयार हैं लेकिन उनकी कुछ शर्तें हैं जिन्हें अगर आप पूरा नहीं कर पाए तो तुम्हें और तुम्हारे पूरे परिवार के साथ मृत्युदंड दे देंगे राजा साहब की पहली शर्त है कि सभी बारातियों के ठहरने के लिए कई सारे बारात घर बनाए जाएं सभी बारात घर बारातियों से भरे होने चाहिए कोई भी बारात घर खाली नहीं बचना चाहिए दूसरी शर्त यह है कि बारातियों के अतिथि सत्कार में बनाया गया भोजन बचना नहीं चाहिए तीसरी शर्त यह है कि ऐसी अद्भुत बारात होनी चाहिए जिसकी प्रशंसा इस नगर के सभी लोग करें

(16:59) और अगर बारात के पहुंचने पर हमारी कोई भी शर्त अधूरी पाई जाती है तब बारात में आए हुए सभी बारातियों को भी मृत्युदंड दे दिया जाएगा राजा का आदेश पाकर वे सैनिक सोमनाथ के घर की तरफ निकल जाते हैं उधर सोमनाथ घर पहुंचकर साधु रूपी भगवान भोलेनाथ जी को सारी बात बता देता है कि आपके कहे अनुसार कहने पर राजकुमारी बहुत ही क्रोधित हो गई थी अब शीघ्र ही फांसी का संदेश पहुंचने ही वाला है इतने में राजा के वे सैनिक जोर-जोर से दरवाजा खटखटाने लगते हैं दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनकर सोमनाथ के पिता दरवाजा खोलते हैं तब वे सैनिक उसके पिता से कहते हैं क्या

(17:41) तुम्हारा ही पुत्र राजकुमारी से विवाह करना चाहता है चलो ठीक है राजा साहब ने भी अपनी पुत्री से विवाह करने के लिए अनुमति दे दी है लेकिन राजा साहब की कुछ शर्तें हैं जिन्हें पूरा करना ही पड़ेगा नहीं तो तुम्हारे पूरे परिवार को मृत्युदंड दे दिया जाएगा उन सैनिकों की बात सुनकर सोमनाथ के पिता बहुत ही भयभीत हो जाते हैं और उनसे कहते हैं हे सैनिकों हमें राजा साहब की किन शर्तों को पूरा करना पड़ेगा उन शर्तों हमें बताने का कष्ट करें तब राजा के वे सैनिक सोमनाथ के पिता से कहते हैं हे ब्राह्मण राजा साहब की पहली शर्त है कि सभी बारातियों के ठहरने के लिए कई

(18:20) सारे बारात घर बनाए जाए सभी बारात घर बारातियों से भरे होने चाहिए कोई भी बारात घर खाली नहीं बचना चाहिए दूसरी शर्त है कि बारातियों के अतिथि सत्कार में बनाया गया भोजन बचना नहीं चाहिए तीसरी शर्त यह है कि ऐसी अद्भुत बारात होनी चाहिए जिसकी प्रशंसा इस नगर के सभी लोग करें और अगर बारात के पहुंचने पर हमारी कोई भी शर्त अधूरी पाई जाती है तब बारात में आए हुए सभी बारातियों को भी मृत्युदंड दे दिया जाएगा राजा के सैनिकों की बात सुनकर सोमनाथ और उसके पिता बहुत ही भयभीत हो जाते हैं यहां तक कि उनके हाथ पैर तक कांपने लगते हैं तब साधु रूपी भगवान

(19:02) भोलेनाथ जी ने उनसे कहा कि तुम मत डरो बल्कि अपना उत्तर देकर राजा के सैनिकों को विदा करो कि आप विवाह की तैयारी शुरू करें हम बारात वाले दिन बारात लेकर पहुंच जाएंगे फिर सोमनाथ ने अपना उत्तर उन सैनिकों को बताकर उन्हें विदा कर दिया और वह सैनिक राजमहल पहुंचकर राजा को सारी बातें सुना देते हैं लेकिन जब राजा को सोमनाथ की तरफ से सकारात्मक उत्तर प्राप्त होता है तब वह बड़े ही आश्चर्य में पड़ जाता है और वह अपने मन में सोचने लगता है आखिर वह गरीब पंडित किसके भरोसे पर इतनी दुर्लभ शर्त के बावजूद भी मेरी पुत्री से विवाह करने के लिए तैयार है क्या मेरा कोई

(19:44) दुश्मन उसका साथ दे रहा है इसी तरह के कई विचार उसके मन में उठते रहते थे उसके बाद उसने उस नगर के कई घरों को बारात घर की तरफ सजवा दिया और कई सारे तंबू का प्रबंध भी कर दिया राजा य सब यह सोच कर कर रहा था कि कहां वह पंडित इतने अधिक बारातियों को ला पाएगा और जब अधिक बाराती ना आने पर वह मेरी शर्त हार जाएगा फिर वह उसे पूरे परिवार सहित मृत्युदंड दे देगा इधर सोमनाथ उस नगर में जिसे भी अपनी बारात में चलने के लिए कहता था वह उसे यह कहकर मना कर देता था कि नहीं मुझे इतनी जल्द नहीं मरना है तुम्हारा तो अंतिम समय निकट आ गया है इसलिए हम तुम्हारे साथ बारात में मरने के

(20:27) लिए क्यों जाए उन सभी की ऐसी बातों को सुनकर सोमनाथ बहुत ही परेशान रहने लगा था क्योंकि अभी तक उसके साथ बारात में चलने के लिए कोई भी व्यक्ति तैयार नहीं हुआ था फिर विवाह का दिन भी आ गया और विवाह वाले दिन सोमनाथ और भी ज्यादा चिंतित था जब साधु रूपी भगवान भोलेनाथ जी ने सोमनाथ को बहुत परेशान देखा तब वे सोमनाथ से बोले कि हे पुत्र आज तो तुम्हारा विवाह है और आज के दिन भी तुम इतना परेशान हो रहे हो बताओ तुम किसी बात को लेकर इतना चिंतित हो रहे हो तुम हमारे रहते हुए चिंतित मत हो हम तुम्हारे साथ हैं तब सोमनाथ ने भगवान भोलेनाथ जी से कहा कि हे मुनिवर क्या

(21:10) फायदा आपको बताने का मेरा तो भाग्य ही खराब है वैसे भाग्य में जो लिखा होता है वही होता है यही कहकर तैयार होकर उनके साथ राजमहल की तरफ चल देता है मित्रों फिर भगवान भोलेनाथ जी ने सोमनाथ की बारात में चलने के लिए सभी देवताओं भूत प्रेतों और गंधर्व को मनुष्य रूप में सोमनाथ की बारात में चलने के लिए आमंत्रित कर लिया और सोमनाथ की बारात में शामिल कर लिया जिसके कारण सभी बारात नाचते हुए बारात घर पहुंच गए जब सोमनाथ की बारात पहुंची तब इतने सारे बाराती आए हुए थे कि राजा द्वारा सजवा गए सभी बारात घर और यहां तक कि सभी तंबू बारातियों से भर गए और कुछ बारात तो

(21:51) बिना तंबू के बाहर ही रह गए फिर जब राजा के पास सूचना भिजवाई गई कि बारातियों के ठहरने के लिए बारात घर और तंबू में जगह नहीं बची है ठहरने के लिए और प्रबंध कराया जाए तब राजा अपने मन में सोचने लगा कि अभी तो कोई भी उसके साथ बारात में आने के लिए तैयार नहीं था और अब कहां से इतने बाराती आ गए हैं मुझे एक बार चलकर देखना चाहिए इतना सोचकर राजा तुरंत ही वहां पहुंच गया और जब भगवान भोलेनाथ जी ने राजा को बारात में आया हुआ देखा तब उन्होंने शुक्र और शनि देव को बच्चा का रूप धारण करवा दिया और उन्हें भूख के कारण विलाप करवा दिया इधर जब उस राजा ने दोनों बच्चों को

(22:33) जोर-जोर से विलाप करते हुए देखा तब उसने भगवान भोलेनाथ जी के पास पहुंचकर उनसे पूछा कि हे महात्मा यह बच्चे इतना विलाप क्यों कर रहे हैं तब साधु रूपी भगवान भोलेनाथ जी ने उस राजा को जवाब देते हुए कहा कि यह दोनों बच्चे बहुत भूखे हैं इसलिए यह इतना विलाप कर रहे हैं फिर राजा ने उन दोनों बच्चों को भोजन करने वाले स्थान पर भेज दिया उसके कुछ ही देर बाद राजा के सैनिकों ने उनके पास आकर बताया कि हे राजन वे दोनों बच्चों ने तो सारा भोजन समाप्त कर दिया है और फिर भी वे दोनों जोर-जोर से चिल्ला रहे हैं कि उन्हें भूख लगी है अपने सैनिकों की ऐसी बातों को

(23:15) सुनकर राजा बहुत ही परेशान हो जाता है क्योंकि अब उसका सारा अहंकार चूर-चूर हो गया था फिर वह साधु रूपी भगवान भोलेनाथ जी के चरणों में अपने दोनों हाथों को जोड़कर बैठ गया और उनसे कह कहने लगा कि हे साधु महाराज अब मेरी लाज आपके ही हाथ में है तब भगवान भोलेनाथ जी ने उस राजा से कहा कि कोई बात नहीं सब कुछ ठीक हो जाएगा आप राजमहल जाकर बारात की अगुवानी की तैयारी शुरू कीजिए फिर राजा ने उस नगर के सभी घरों को अच्छी तरह से सजवा और पूरे नगर को एकदम दुल्हन की तरह सजाया गया सोमनाथ भी विवाह की पोशाक में किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था सोमनाथ के सेहरे को चांद

(23:59) और सूरज से सजाया गया था और अगुवानी के समय सोमनाथ एक सुंदर से रथ में बैठकर राजमहल की तरफ जाने लगा उस रथ के आगे कई सारे बाराती बैंड बाजे नाच रहे थे और कई बाराती हाथ में मुद्राएं लेकर एक दूसरे पर न्यौछावर करके इधर-उधर उछाल रहे थे सोमनाथ की बारात के ऐसे दृश्य को देखकर उस नगर के कुछ लोग कहने लगे कि इस पंडित का भाग्य तो देखो इसके मस्तक के सेहरे को चांद और सूरज से सजाया गया है और इसके चारों तरफ से इस प्रकार धन लक्ष्मी उछाली जा रही है जैसे किसी धनवान राजा की बारात निकल रही है और ऐसी बारात तो हमने अपने जीवन में कभी देखी

(24:40) भी नहीं है और ना आगे देखने की उम्मीद है यह पंडित तो भाग्य का बहुत धनी है प्रजा की ऐसी बातों को सुनकर माता पार्वती जी भगवान भोलेनाथ जी से कहती हैं हे प्रभु यह तो सत्य है कि आपकी कृपा जिस भी मनुष्य पर हो जाती है उसके लिए अन्न धन ार के ताले खुल जाते हैं तब भगवान भोलेनाथ जी माता पार्वती जी से कहते हैं हे देवी पार्वती जो भी भक्त मेरी श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करते हैं मैं उनकी पूजा अर्चना का फल अवश्य देता हूं और उन्हें तभी तक दुखों को झेलना पड़ता है जब तक कि उनके पाप कर्म नष्ट नहीं हो जाते हैं जैसे ही उनके पुण्य

(25:21) कर्मों का उदय होता है वैसे ही उसके भाग्य के बंद पड़े दरवाजे खुल जाते हैं फिर सोमनाथ और राजा की पुत्री का विधिपूर्वक विवाह हो जाता है और वह राजकुमारी को डोली में बिठाकर अपने घर ले आता है मित्रों जो भी भक्त सावन मास में प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ जी की कथाओं का श्रवण किया करती है उसे भी राजकुमारी की तरह ही सुंदर व प्राप्त होता है क्योंकि राजकुमारी ने प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ जी की कथाओं का श्रवण किया था इसलिए उसे उसकी कामना के अनुसार अच्छा वर मिला था भगवान भोलेनाथ जी और माता पार्वती जी की कृपा से अब सोमनाथ बहुत ही धनवान व्यक्ति बन गया था उसके घर

(26:03) में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी उसके बाद सोमनाथ की मां ने फिर से भगवान भोलेनाथ जी की पूजा अर्चना करना शुरू कर दी और प्रतिदिन ढेर सारा धन गरीबों में बांटना शुरू कर दिया और साथ ही साथ वह प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ जी की कथाओं का श्रवण भी करने लगी थी मित्रों भगवान भोलेनाथ जी की प्रतिदिन कथाओं का श्रवण करने और पूजा अर्चना करने का शुभ फल प्राप्त होता है इसीलिए एक बार सावन मास में भगवान भोलेनाथ जी और माता पार्वती जी की कथा का श्रवण अवश्य करें इससे आपकी सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण हो जाएगी मित्रों आप सभी लोगों को सावण मास में

(26:43) भगवान भोलेनाथ जी और माता पार्वती जी की यह पावन कथा कैसी लगी आप कमेंट में अवश्य बताइएगा और अगर आप सभी लोगों ने अभी तक हमारे चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया है तो ऐसी ही ज्ञानवर्धक कहानियों के आप सभी लोग हमारे चैनल को भी सब्सक्राइब करें साथ ही साथ कमेंट बॉक्स में हर हर महादेव लिखना ना भूलें मित्रों वीडियो को यहां तक देखने के लिए आप सभी लोगों का दिल से धन्यवाद


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