रक्षाबंधन की कहानी - कृष्ण जी की मनमोहक कहानी - Raksha Bandhan Ki Kahani

रक्षाबंधन की कहानी - कृष्ण जी की मनमोहक कहानी - Raksha Bandhan Ki Kahani


 नमस्कार आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है हमारे चैनल  में  शुरू करते हैं आज की कहानी  एक जंगल के पास एक गांव बसा हुआ था जंगल के किनारे ही एक टूटी-फूटी झोपड़ी में एक साथ साल की बच्ची अपनी बूढ़ी दादी के साथ रहा करती थी जिसका नाम दादी ने बड़े प्यार से चंदा रखा था चंदा का उसकी दादी के अलावा कोई और नहीं था उस पूरे दादी के पास भी कमाई का कोई साधन नहीं था वह जंगल जाती और लकड़ियां बेचकर उन्हें बेचती और जो भी उनसे मिलता उससे वह

(00:56) अपना गुजारा चलाती चंदा अपनी दादी के साथ बह को प्रसन्न रहती लेकिन एक बात उसे बहुत दुखी करती कि उसका कोई भाई या बहन नहीं थे गांव के बच्चे उसे इस बात के लिए बहुत चढ़ाते और उसे अपने साथ खेलने भी नहीं देते थे वह इफेक्ट बहुत दुखी रहती बहुत बार वह अपनी दादी से पूछती कि उसका कोई भाई क्यों नहीं है तब उसकी दादी ने उसे प्रेम से कहा कौन कहता है कि तेरा कोई भाई नहीं है वह है ना कृष्ण कन्हैया वहीं तेरा भाई है ऐसा भूलकर दादी लड्डू गोपाल की ओर इशारा कर देती चंदा की झोपड़ी में एक पुरानी सी किंतु बहुत ही सुंदर लड्डू गोपाल की प्रतिमा थी चंदा की दादी उनकी

(01:52) बड़े मन से सेवा किया करती और बहुत ही प्रेम से जो भी रूखा-सूखा उनके पास होता उसका युक्त लगाती चंदा भी भोलेपन में लड्डू गोपाल को ही अपना भाई मानने लगी और जब वह दुखी होती तो लड्डू गोपाल के सामने बैठ कर उनसे बात करने लगती और कहती भाई तुम मेरे साथ खेलने क्यों नहीं आते सब बच्चे मुझे चिढ़ाते हैं क्या तुम मुझसे रुठ गए हो जो एक बार भी घर नहीं आते मैंने तो तुमको कभी देखा भी नहीं अपने बालों में कोई चंदा लड्डू गोपाल से अपने मन का सारा दुख कह देती चंदा का प्रेम निश्चल था वह अपने भाई को पुकारती थी उसके प्रेम के आगे भगवान भी नतमस्तक हो जाते थे किंतु

(02:48) उन्होंने कभी कोई उत्तर नहीं दिया एक दिन चंदा ने अपनी दादी से पूछा दादी मेरे भाई घर क्यों नहीं आते वह कहां रहते हैं है तब दादी ने उसको हटाने के लिए कहा तेरा भाई जंगल में रहता है एक दिन वह जरूर आएगा चंदा ने पूछा क्या उसको जंगल में डर नहीं लगता वह जंगल में क्यों रहता है दादी तब दादी ने उत्तर दिया वह किसी से नहीं डरता उसको गांव में अच्छा नहीं लगता ना इसलिए वह जंगल में रहता है धीरे-धीरे रक्षाबंधन का दिन पास आने लगा गांव में सभी लड़कियों ने अपने भाइयों के लिए राखी खरीदी वह चंदा को चिढ़ाने लगी कि तेरा तो कोई भाई नहीं है तो इसे राखी बांधेगी अब

(03:42) चंदा का सब्र टूट गया वह घर आकर शोर से रोने लगी दादी के पूछने पर उसने सारी बात बताई तब उसकी दादी ने उसे प्यार से समझाया कि बच्ची तो रो मत तेरा भाई जरूर आएगा चीन चंदा का रोना नहीं रुका और वह लड्डू गोपाल की प्रतिमा के पास जाकर उनसे लिपट कर रोने लगी और बोली भाई तुम क्यों नहीं आते सब अपनी बहन से राखी बंधवाते हैं उधर गोविंद भी चंदा की चेष्टाओं के साक्षी बन रहे थे रोते-रोते चंदा को याद आया कि दादी ने कहा था कि भाई जंगल में रहता है बस फिर क्या था वह दादी को बिना बताए नंगे पाऊंगी जंगल की ओर दौड़ पड़ी और उसने मन में ठान

(04:37) लिया था कि वह आज अपने भाई को लेकर ही आएगी जंगल की कांटो भरी राह पर मासूम दौड़े जा रही थी श्री गोविंद उसके साक्षी बन रहे थे तभी श्री हरि गोविंद पीड़ा से कराह उठे उनके पांव से भी रक्त बह निकला आखिर हो भी क्यों ना श्रीहरि का कि कोई भक्त पीड़ा में हो और भगवान को पीड़ा ना हो ऐसा कैसे संभव है जंगल में नन्ही चंदा के पांव में कांटा लगा तो भगवान भी पीड़ा से कराह उठे उधर चंदा के पेड़ से भी रक्त बह निकला और वही बैठ कर रोने लगी तभी भगवान ने अपने पांव में भी उसी स्थान पर हाथ फेरा जहां कांटा लगा था पलक झपकते ही चंदा के पैरों से रक्त बहना बंद हो गया और

(05:32) दर्द भी नहीं रहा फिर वह जंगल के और फिर से दौड़ पड़ी इस बार उसका पांव कांटों से झरने हो गया लेकिन वह नन्ही बच्ची दौड़ती रही उसको अपने भाई के पास जाना था एक स्थान पर बहुत थक कर रुक गई और रो रो कर पुकारने लगी भाई तुम कहां हो तो आते क्यों नहीं अब श्री गोविंद के लिए यहां पर भी रोकना कठिन था वह तुरंत उठे और एक ग्यारह वर्ष के सुंदर बालक का रूप धारण करके जनता के पास आ गए उधर चंदा थक कर बैठ गई थी और सिर झुका कर रोए जा रही थी तभी उसके सिर पर किसी ने हाथ रखा और एक आवाज सुनाई दी मैं आ गया मेरी बहन आप ज़ूम मित्रों चंदा ने सर उठाकर देखा और पूछा क्या तुम मेरे

(06:31) भाई हो तब उसे उत्तर मिला हां चंदा मैं है तुम्हारा भाई हूं यह सुनते ही चंद्र अपने भाई से लिपट गई और फूट-फूट कर रोने लगी और तब भक्त और भगवान के बीच की भक्ति भाव का एक अनूठा दृश्य उत्पन्न हुआ भगवान वहीं धरती पर बैठ गए और उन्होंने नन्ही चंदा के कोमल पैरों को अपने हाथ पीलिया और उन्हें प्रेम से देखा वह बड़ा ही अदभुत दृश्य था बहन-भाई को पाने की प्रसन्नता में रो रही थी और भगवान तो भक्तों के कष्ट को देखकर रो रहे थे श्री हरि ने अपने हाथों से चंदा के पैर में चुप बे क्वाइट ए को बड़े प्रेम से निकाला और उसके पैरों पर अपने हाथों का

(07:25) स्पर्श किया पल भर में सभी कष्ट दूर हो गए चंदा अपने भाई का हाथ पकड़ कर बोली भाई तुम घर चलो कल रक्षाबंधन है मैं भी तुम्हें राखी बांध दूंगी भगवान बोले अब तो घर जा दादी प्रतीक्षा कर रही होंगी मैं कल सुबह ही घर जरूर आऊंगा ऐसा कहकर उसको विश्वास दिलाया और जंगल के बाहर तक छोड़ने आए चंदा बहुत प्रसन्न भी और उसकी सारी चिंताएं मिट गई थी कि दादी का उसके चिंता में रो-रोकर बुरा हाल था चंदा को देखते ही दादी ने उसे प्यार से गले लगा लिया चंदा बोली दादी कल मेरा भाई आएगा मैं उसे राखी बांध दूंगी दादी ने सोचा जंगल में कोई बालक मिल गया होगा जिसे वह अपना भाई समझ

(08:22) रही है चंदानी दादी से जिद करी और एक सुंदर सी राखी अपने भाई के लिए खरीदी अगले दिन सुबह नहा-धोकर अपने भाई की प्रतीक्षा के लिए द्वार पर ही बैठ गई उसको ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा थोड़ी देर में वह बालक सामने से आता हुआ दिखाई दिया पुलिस को देखते ही चंद्र प्रसन्नता से चीख उठी दादी भाई आ गया और वह दौड़कर अपने भाई के पास पहुंच गई और उसका हाथ पकड़ कर उसे घर ले आई चंदा ने अजय को तिलक किया और उसकी आरती उतारी और उससे राखी बांधी सुंदर राखी देखकर भाई बहुत प्रसन्न न था भाई के रूप में भगवान उसके प्रेम को देखकर विभान हो उठे अब बारी उनकी थी भाई ने अपने साथ लाए

(09:20) हुए झोले को खोला तो उसमें खुशियों का अंबार था सुंदर कपड़े मिठाई खिलौने और बहुत कुछ चंदा को मानो पंख लग गए थे उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था कुछ समय साथ में रहने के बाद बालक बोला अब मुझको जंगल वापस जाना है चंदा उदास हो गई तब भाई बोला तो उदास मत हो आज से मैं रोज तो से मिलने आऊंगा उधर दादी हैरान थी कि यह बालक कौन है भाई के जाने के बाद चंदा घर में वापस लौटी तो एक शैटर गई उसकी बांधी हुई राखी लड्डू गोपाल की प्रतिमा पर थी उनके हाथों पर भी वही राखी बंधी थी जो उसने अपने भाई को बांधी थी उसने यह देखकर दादी को बुलाया

(10:15) और दादी भी आश्चर्य चकित रह गई दादी ने भी बचपन से कृष्ण के भक्ति करी थी वह तुरंत जान गई कि वह बालक कोई और नहीं स्वसरी ही थे और उनके चरणों में गिरकर बोली छैयां जीवन भर तो झाला जीवन का अंत आया तो फिर हलकट चले गए वह चंदा से बोली अरी वह पालक कोई और नहीं तेरा यही भाई था यह सुनकर चंदा भगवान की प्रतिमा से लिपट कर रोने लगी चंदा बोली भाई तुम यही हो तो सामने क्यों नहीं आते दादी पोती का निर्मल प्रेम ऐसा था कि भगवान फिश प्रकट हो गए और बोले चंदा हम में ही तुम्हारा भाई हूं तुमने मुझको पुकारा तो मुझे आना पड़ा और मैं कैसे नहीं आता जो लोग ढूंढ दिखावा

(11:13) पाखंड रचते हैं मैं उनसे बहुत दूर रहता हूं किंतु जब कोई सच्चा भक्त मुझे प्रेम से पुकारता है तो मुझे आना ही पड़ता है भगवान और भक्त की प्रेमलीला चल रही थी दादी भी तो भगवान में लीन हो चुकी थी और उसके बाद चंदा और उसकी दादी को गांव में किसी ने नहीं देखा कोई नहीं जान पाया कि आखिर दादी पोती कहां चले गए प्रभु की लीला प्रभु ही जाने तो दोस्तों कैसी लगी आपको यह कहानी ऐसी और कहानियों के लिए हमारे चैनल भक्ति ज्ञान को सब्सक्राइब करें धन्यवाद है


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