Papamochini Ekadashi 2024: पापमोचिनी एकादशी कब है ? papmochani ekadashi kab hai?
Papamochini Ekadashi 2024: कब है पापमोचिनी एकादशी व्रत, जाने व्रत कथा, पूजा विधि
वैदिक मान्यताओं
के अनुसार होलिका दहन और चैत्र
नवरात्रि के
बीच जो
एकादशी आती
है उसे
पापमोचिनी एकादशी
कहा जाता
है। पापमोचिनी
एकादशी को
बहुत ही
पुण्यतिथि माना
जाता है।
पुराण ग्रंथों
में तो
यहां तक
कहा गया
है कि
यदि मनुष्य
जाने-अनजाने
में किये
गये अपने
पापों का
प्रायश्चित करना
चाहता है
तो उसके
लिये पापमोचिनी
एकादशी ही
सबसे बेहतर
दिन होता
है। इस
साल 2024 में
पापमोचिनी एकादशी
ग्रेगोरियन पंचांग
के अनुसार
05 अप्रेैल को
है। आइये
जानते हैं
क्या कहानी
है इस
एकादशी की
और कैसे
और किसकी
होती है
पूजा।
पापमोचनी एकादशी 2024 ,शुक्रवार,
5 अप्रैल 2024 को मनाई जाएगी।
पापमोचिनी एकादशी 2024 तिथि व
मुहूर्त
- पापमोचनी एकादशी तिथि प्रारंभ समय- 4 अप्रैल को शाम 4:14 बजे
- पापमोचनी एकादशी तिथि समाप्त होने का समय - 5 अप्रैल 2024 को दोपहर 1:28 बजे
- पारण का समय: 6 अप्रैल 2024 (सुबह 6:05 बजे से 08:37 बजे तक)
पापमोचिनी एकादशी व्रत व
पूजा विधि
पापमोचिनी एकादशी
के दिन
श्रद्धालु भगवान
विष्णु की
पूजा करते
हैं एवं
उनके नाम
से ही
उपवास रखते
हैं। व्रत
का परण
अर्थात व्रत
खोलने से
पूर्व पापमोचिनी
एकादशी की
व्रत कथा
सुनी जाती
है। पापमोचिनी
एकादशी व्रत
को विधिपूर्वक करना
चाहिए। व्रत
की विधि
कुछ इस
प्रकार है-
एकादशी के
दिन प्रातः
काल भगवान
विष्णु की
पूजा करें।
घी का
दीप अवश्य
जलाए। जाने-अनजाने में आपसे जो भी पाप हुए हैं उनसे मुक्ति
पाने के
लिए भगवान
विष्णु से
हाथ जोड़कर
प्रार्थना करें।
इस दौरान
‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय'
मंत्र का
जप निरंतर
करते रहें।
एकादशी की
रात्रि प्रभु
भक्ति में
जागरण करे,
उनके भजन
गाएं। साथ
ही भगवान
विष्णु की
कथाओं का
पाठ करें।
द्वादशी के
दिन उपयुक्त
समय पर
कथा सुनने
के बाद
व्रत खोलें।
एकादशी व्रत
दो दिनों
तक होता
है लेकिन
दूसरे दिन
की एकादशी
का व्रत
केवल सन्यासियों, विधवाओं
अथवा मोक्ष
की कामना
करने वाले
श्रद्धालु ही
रखते हैं।
व्रत द्वाद्शी
तिथि समाप्त
होने से
पहले खोल
लेना चाहिये
लेकिन हरि
वासर में
व्रत नहीं
खोलना चाहिये
और मध्याह्न
में भी
व्रत खोलने
से बचना
चाहिये। यदि
द्वादशी तिथि
सूर्योदय से
पहले समाप्त
हो रही
हो तो
सूर्योदय के
बाद ही
पारण करने
का विधान
है।
पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा
व्रत कथा
के अनुसार
चित्ररथ नामक
वन में
मेधावी ऋषि
कठोर तप
में लीन
थे। उनके
तप व
पुण्यों के
प्रभाव से
देवराज इन्द्र
चिंतित हो
गए और
उन्होंने ऋषि
की तपस्या
भंग करने
हेतु मंजुघोषा
नामक अप्सरा
को पृथ्वी
पर भेजा।
तप में
विलीन मेधावी
ऋषि ने
जब अप्सरा
को देखा
तो वह
उस पर
मन्त्रमुग्ध हो
गए और
अपनी तपस्या
छोड़ कर
मंजुघोषा के
साथ वैवाहिक
जीवन व्यतीत
करने लगे।
कुछ वर्षो
के पश्चात
मंजुघोषा ने
ऋषि से
वापस स्वर्ग
जाने की
बात कही।
तब ऋषि
बोध हुआ
कि वे
शिव भक्ति
के मार्ग
से हट
गए और
उन्हें स्वयं
पर ग्लानि
होने लगी।
इसका एकमात्र
कारण अप्सरा
को मानकर
मेधावी ऋषि
ने मंजुधोषा
को पिशाचिनी
होने का
शाप दिया।
इस बात
से मंजुघोषा
को बहुत
दुःख हुआ
और उसने
ऋषि से
शाप-मुक्ति
के लिए
प्रार्थना करी।
क्रोध शांत
होने पर
ऋषि ने
मंजुघोषा को
पापमोचिनी एकादशी
का व्रत
विधिपूर्वक करने
के लिए
कहा। चूँकि
मेधावी ऋषि
ने भी
शिव भक्ति
को बीच
राह में
छोड़कर पाप
कर दिया
था, उन्होंने
भी अप्सरा
के साथ
इस व्रत
को विधि-विधान से किया और अपने पाप से मुक्त
हुए।
बोलो श्री हरी विष्णुजी की जय
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धन्यवाद
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