वैशाख माह महात्म्य अध्याय 2 vaishakh maah mahatmya- vaishakh maas ki katha adhyay 2
जानें
वैशाख
मास
माहात्म्य अध्याय
02 इस
अध्याय
में:-
वैशाख
मास
में
विविध
वस्तुओं
के
दान
का
महत्त्व
तथा
वैशाख
स्नान
के
नियम
नारदजी कहते
हैं वैशाख
मास में
धूप से
तपे और
थके माँदे
ब्राह्मणों को
श्रमनाशक सुखद
पलंग देकर
मनुष्य कभी
जन्म-मृत्यु
आदि के
क्लेशों से
कष्ट नहीं
पाता। जो
वैशाख मास
में पहनने
के लिये
कपड़े और
विछावन देता
है, वह
उसी जन्म
में सब
भोगों से
सम्पन्न हो
जाता है
और समस्त
पापों से
रहित हो
ब्रह्मनिर्वाण (मोक्ष)
को प्राप्त
होता है।
जो तिनके
की बनी
या अन्य
खजूर आदि
के पत्तों
की बनी
हुई चटाई
दान करता
है, उसकी
उस चटाई
परसाक्षात् भगवान्
विष्णु शयन
करते हैं।
चटाई देने
वाला बैठने
और बिछाने
आदि में
सब ओर
से सुखी
रहता है।
जो सोने
के लिये
चटाई और
कम्बल देता
है, वह
उतने ही
मात्र से
मुक्त हो
जाता है।
निद्रा से
दुःख का
नाश होता
है, निद्रा
से थकावट
दूर होती
है और
वह निद्रा
चटाई पर
सोने वाले
को सुखपूर्वक
आ जाती
है।
धूप से कष्ट
पाये हरा
श्रेष्ठ ब्राह्मण
को जो
सूक्ष्मतर वस्त्र
दान करता
है, वह
पूर्ण आयु
और परलोक
में उत्तम
गति को
पाता है
जो पुरुष
ब्राह्मण को
फूल और
रोली देता
है, वह
लौकिक भोगों
का भोग
करके मोक्ष
को प्राप्त
होता है।
जो खस,
कुश और
जल से
वासित चन्दन
देता है,
वह सब
भोगों में
देवताओं की
सहायता पाता
है तथा
उसके पाप
और दु:ख
की हानि
होकर परमानन्द
की प्राप्ति
होती है।
वैशाख के
धर्म को
जानने वाला
जो पुरुष
गोरोचन और
कस्तूरी का
दान करता
है, वह
तीनों तापों
से मुक्त
होकर परम
शान्ति को
प्राप्त होता
है। जो
विश्रामशाला बनवाकर
प्याऊ सहित
ब्राह्मण को
दान करता
है, वह
लोकों का
अधिपति होता
है। जो
सड़क के
किनारे बगीचा,
पोखरा, कुआँ
और मण्डप
बनवाता है,
वह धर्मात्मा
है, उसे
पुत्रों की
क्या आवश्यकता
है।
उत्तम शास्त्र
का श्रवण,
तीर्थयात्रा, सत्संग,
जलदान, अन्नदान,
पीपल का
वृक्ष लगाना
तथा पुत्र-
इन सात
को विज्ञ
पुरुष सन्तान
मानते हैं।
जो वैशाख
मास में
तापनाशक तक्र
दान करता
है, वह
इस पृथ्वी
पर विद्वान्
और धनवान्
होता है।
धूप के
समय मट्टठे
के समान
कोई दान
नहीं, इसलिये
रास्ते के
थके-माँदे
ब्राह्मण को
मट्टा देना
चाहिये। जो
वैशाख मास
में धूप
की शान्ति
के लिये
दही और
खाँड़ दान
करता है
तथा विष्णुप्रिय
वैशाख मास
में जो
स्वच्छ चावल
देता है,
वह पूर्ण
आयु और
सम्पूर्ण यज्ञों
का फल
पाता है।
जो पुरुष
ब्राह्मण के
लिये गोघृत
अर्पण करता
है, वह
अश्वमेध यज्ञ
का फल
पाकर विष्णुलोक
में आनन्द
का अनुभव
करता है।
जो दिन
के ताप
की शान्ति
के लिये
सायंकाल में
ब्राह्मण को
ऊख दान
करता है,
उसको अक्षय
पुण्य प्राप्त
होता है।
जो वैशाख
मास में
शाम को
ब्राह्मण के
लिये फल
और शर्बत
देता है,
उससे उसके
पितरों को
निश्चय ही
अमृतपान का
अवसर मिलता
है। जो
वैशाख के
महीने में
पके हुए
आम के
फल के
साथ शर्बत
देता है,
उसके सारे
पाप निश्चय
ही नष्ट
हो जाते
हैं। जो
वैशाख की
अमावास्या को
पितरों के
उद्देश्य से
कस्तूरी, कपूर,
बेला और
खस की
सुगन्ध से
वासित शर्बत
से भरा
हुआ घड़ा
दान करता
है, वह
छियानबे घड़ा
दान करने
का पुण्य
पाता है।
वैशाख में तेल
लगाना, दिन
में सोना,
कांस्य के
पात्र में
भोजन करना,
खाट पर
सोना, घर
में नहाना,
निषिद्ध पदार्थ
खाना, दुबारा
भोजन करना
तथा रात
में खाना-ये
आठ बातें
त्याग देनी
चाहिये।
जो वैशाख
में व्रत
का पालन
करने वाला
पुरुष पद्म-पत्ते
में भोजन
करता है,
वह सब
पापो से
मुक्त हो
विष्णुलोक में
जाता है।
जो विष्णुभक्त
पुरुष वैशाख
मास में
नदी-स्नान
करता है,
वह तीन
जन्मों के
पाप से
निश्चय ही
मुक्त हो
जाता है।
जो प्रात:काल
सूर्योदय के
समय किसी
समुद्रगामिनी नदी
में स्नान
करता है,
वह सात
जन्मों के
पाप से
तत्काल छूट
जाता है।
जो मनुष्य
सात गंगाओं
में से
किसी में
ऊष:काल
में स्नान
करता है,
वह करोड़ों
जन्मों में
उपार्जित किये
हुए पाप
से निस्सन्देह
मुक्त हो
जाता है
। जाहनवी
(गंगा), वृद्ध
गंगा (गोदावरी),
कालिन्दी (यमुना),
सरस्वती, कावेरी,
नर्मदा और
वेणी- ये
सात गंगाएँ
कही गयी
हैं। वैशाख
मास आने
पर जो
प्रात:काल
बावलियो में
स्नान करता
है, उसके
महापातकों का
नाश हो
जाता है।
कन्द, मूल,
फल, शाक,
नमक, गुड़,
बेर, पत्र,
जल और
तक्र – जो
भी वैशाख
में दिया
जाय, वह
सब अक्षय
होता है।
ब्रह्मा आदि
देवता भी
बिना दिये
हुए कोई
वस्तु नहीं
पाते। जो
दान से
हीन है,
वह निर्धन
होता है।
अतः सुख
की इच्छा
रखने वाले
पुरुष को
वैशाख मास
में अवश्य
दान करना
चाहिये। सूर्य
देव के
मेष राशि
में स्थित
होने पर
भगवान् विष्णु
के उद्देश्य
से अवश्य
प्रात:काल
स्नान करके
भगवान् विष्णु
की पूजा
करनी चाहिये।
कोई महीरथ
नामक एक
राजा था,
जो कामनाओं
में आसक्त
और अजितेन्द्रिय
था ।
वह केवल
वैशाख-स्नान
के सुयोग
से स्वतः
वैकुण्ठधाम को
चला गया।
वैशाख मास
के देवता
भगवान् मधुसूदन
हैं। अतएव
वह सफल
मास है।
वैशाख मास
में भगवान
की प्रार्थना
का मन्त्र
इस प्रकार
है-
मधुसूदन
देवेश
वैशाखे
मेषगे
रवौ।
प्रात:स्नानं
करिष्यामि
निर्विघ्नं
कुरु
माधव॥
हे मधुसूदन
हे देवेश्वर
माधव मैं
मेष राशि
में सूर्य
के स्थित
होने पर
वैशाख मास
में प्रात:
स्नान करूँगा,
आप इसे
निर्विघ्न पूर्ण
कीजिये। तत्पश्चात्
निम्नांकित मन्त्र
से अर्ध्य
प्रदान करे-
वैशाखे
मेषगे
भानौ
प्रात:स्नानपरायणः।
अर्ध्य
तेऽहं
प्रदास्यामि
गृहाण
मधुसूदन॥
सूर्य के
मेष राशि
पर स्थित
रहते हुए
वैशाख-मास
में प्रात:स्नान
के नियम
में संलग्न
होकर मैं
आपको अर्ध्य
देता हूँ।
मधुसूदन इसे
ग्रहण कीजिये।
इस प्रकार
अर्ध्य समर्पण
करके स्नान
करे। फिर
वस्त्रों को
पहनकर सन्ध्या-तर्पण
आदि सब
कर्मो को
पूरा करके
वैशाख मास
में विकसित
होने वाले
पुष्पों से
भगवान् विष्णु
की पूजा
करे। उसके
बाद वैशाख
मास के
माहात्म्य को
सूचित करने
वाली भगवान्
विष्णु की
कथा सुने
ऐसा करने
से कोटि
जन्मों के
पापों से
मुक्त होकर
मनुष्य मोक्ष
को प्राप्त
होता है
। यह
शरीर अपने
अधीन है,
जल भी
अपने अधीन
ही है,
साथ ही
अपनी जिह्वा
भी अपने
वश में
है।
अत: इस स्वाधीन
शरीर से
स्वाधीन जल
में स्नान
करके स्वाधीन
जिह्वा से
‘हरि’
इन दो
अक्षरोंका उच्चारण
करे। जो
वैशाख मास
में तुलसी
दल से
भगवान् विष्णु
की पूजा
करता है,
वह विष्णु
की सायुज्य
मुक्ति को
पता है।
अत: अनेक
प्रकार के
भक्ति मार्ग
से तथा
भाँति भाँति
के व्रतों
द्वारा भगवान्
विष्णु की
सेवा तथा
उनके सगुण
या निर्गुण
स्वरूप का
अनन्य चित्त
से ध्यान
करना चाहिये।
जय
जय
श्री
हरि
एक बार काशीपुरा में कीर्तिमान नाम का एक राजा था जो जंगलों में शिकार करने गया था और 'आश्रम' देखने की इच्छा रखता था। ऋषि वशिष्ठ ने ऋषि के कई शिष्यों को राहगीरों को छाते, फल और ठंडे पेय की पेशकश करते हुए देखा। वे सामान्य मनुष्यों और उनके जैसे राजाओं से अनभिज्ञ थे और पूछा कि वे सेवा क्यों कर रहे हैं, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। वसिष्ठ से मिलने पर राजा ने शिष्यों के कार्यों के बारे में पूछताछ की और ऋषि ने वैशाख महीने के महत्व का वर्णन किया। इसके अनुसरण में राजा ने आदेश दिया कि ऋषि के शिष्यों के अच्छे उदाहरण का पूरे राज्य के कोने-कोने में अनुसरण किया जाए और वह विश्राम गृह उपलब्ध कराकर, पेड़ लगाकर अपनी कई प्रजा, विशेषकर ब्राह्मणों की जान बचाने में सक्षम हुए। भोजन और ठंडे पानी की आपूर्ति करना और अपने लोगों के लिए असंख्य सुविधाएं बनाना। इसके अलावा, राजा ने वैशाख महीने में धर्म का प्रचार करने और 'क्या करें और क्या न करें' के बारे में जागरूकता फैलाने के साथ-साथ सुबह के स्नान को सख्ती से लागू करने के लिए एक राज्य-व्यापी अभियान चलाया। , दान का प्रदर्शन, व्यक्तिगत परिवारों द्वारा 'पूजा' और धर्म का एक सामान्य उत्थान। इसके परिणामस्वरूप वैशाख के महीनों में उनके राज्य से मृत्यु का व्यय बहुत कम हो गया और भगवान यमराज ने ब्रह्मा से अपील की कि मृत्यु और जन्म का आवागमन बंद हो जाए। कीर्तिमान साम्राज्य में पंजीकृत लोग अत्यधिक परेशान थे, कि 'स्वर्ग' और 'नरक' में बहुत कम अंतर था और यहां तक कि राज्य में उन कुछ मौतों ने भी वैकुंठ की ओर एक रास्ता बना दिया था! यमराज की शिकायत से प्रसन्न होकर, ब्रह्मा यमराज के साथ 'क्षीर सागर' (दूध का सागर) के पास पहुंचे और विष्णु ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि वह अपने श्रीवत्स, कौस्तुभ रत्न, विजयंती माला, श्वेत द्वीप, वैकुंठ, क्षीर सागर, शेष को छोड़ देंगे। नाग, गरुड़ या यहाँ तक कि देवी लक्ष्मी भी, लेकिन अपने भक्त राजा कीर्तिमान को कभी नहीं त्यागेंगे। उन्होंने आगे कहा कि वह उस राजा के अच्छे उदाहरणों को बढ़ाने और उनके जीवन को हजारों वर्षों तक बढ़ाने की इच्छा रखेंगे। उन्होंने यमधर्मराज को वैशाख महीने के 'महात्म्य' के पालन में हस्तक्षेप न करने की चेतावनी दी। हालाँकि, भगवान विष्णु ने यमधर्मराज के पक्ष में एक विशेष व्यवस्था प्रदान की कि वैशास्क माह के भक्तों को पूर्णिमा से पहले महीने के पहले भाग के दौरान उनके पक्ष में एक विशेष पूजा करनी चाहिए और उन्हें पानी, दही और अन्ना का दान करना चाहिए ( उसे प्रसन्न करने के लिए चावल/खाद्यान्न)। विशेष पूजा के बाद ही पितरों, गुरुओं और भगवान विष्णु की उनके नाम से पूजा करनी चाहिए और तांबे के बर्तन के साथ ठंडा पानी, दही, अन्न, फल, सुपारी/दक्षिणा और ब्राह्मणों को दान देना चाहिए।
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