बैशाख मास स्नान व्रत कथा Vaishakh Sanan Vrat Katha adhyay 1

 


Vaishakh Mas: 
वैशाख मास में स्नान का है ऐसा महत्वजानिए इसका फल


वैशाख का महीना शुभ महीनों में से एक माना जाता है। इस महीने का पुराणों में विशेष महत्त्व बताया गया हैं इस माह में भगवान विष्णु की पूजा करने, दान पुण्य करने और पवित्र नदी में स्नान करने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही इस माह में अच्छे कार्य करने से घर में सुख.समृद्धि आती है। शास्त्रों के अनुसार इस महीने में किए गए पुण्य कार्यों का फल कई जन्मों तक मिलता है। इस माह में विष्णु जी का पूजन विशेष रूप से किया जाता है। आइए आपको बताते हैं कि वास्तु अनुसार इस महीने में कौन से कार्य करने चाहिए जिससे शुभ फल की प्राप्ति होती है और समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। वैशाख माह भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा के लिए उत्तम माना गया है। मान्यताओं के अनुसार, इस माह में भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में खुशहाली आती है। वैशाख माह में पड़ने वाले सोमवार भी सावन और कार्तिक के सोमवार की तरह विशेष माने जाते हैं। जिसके चलते वैशाख के सोमवार में भगवान शिव जल्द प्रसन्न होकर अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं।

 

वैशाख में इन कार्यों को करने से मिलेगा पुण्य

 

वैशाख में भगवान शिव की पूजा 

वैशाख माह में भगवान शिव के ऊपर जलधारा की स्थापना करना बेहद शुभ होता है। ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। इसके अलावा कई परेशानियों को भी इस माह अलग.अलग पूजन विधि से दूर किया जा सकता है। वैशाख माह में सोमवार के दिन स्नान करने के पश्चात भगवान भोलेनाथ का जल या दूध से अभिषेक करें। ऐसा करने से ग्रह संबंधी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा भगवान शिव का आशीर्वाद सदैव आप पर बना रहता है।

 

भगवान विष्णु की करें पूजा

वास्तु अनुसार वैशाख के महीने को सबसे पवित्र महीनों में से एक माना जाता है। इस महीने में भगवान विष्णु की पूजा विशेष फलदायी होती है। ऐसा करने से भक्तों पर भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है। 

 

तुलसी की करें पूजा

वैशाख के महीने में तुलसी की पूजा जरूर करनी चाहिए। इसका अपना विशेष महत्व होता है। भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय है इसलिए इस महीने में तुलसी पूजन से विष्णु जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस महीने में तुलसी जी को जल चढ़ाएं और उनके सामने दीपक प्रज्ज्वलित करें।

 

पीपल के पेड़ की पूजा

पीपल के पेड़ में पितरों और भगवान दोनों का वास होता है। वैशाख महीने में विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए पीपल के पेड़ की पूजा जरूर करें। इसके लिए आप पीपल में नियमित रूप से जल चढ़ाएं और संध्या काल में दीप जलाएं।

 

प्यासे को जल पिलाएं

ऐसी मान्यता है कि वैशाख में जो व्यक्ति प्यासे को पानी पिलाता है। उसे सभी दानों के समान पुण्य और सभी तीर्थों के दर्शन के समान फल प्राप्त होता है।

 

प्याऊं लगवाएं

आप चाहें तो वैशाख के महीने में अपने घर या दुकान के बाहर प्याऊं भी लगवा सकते हैं। इससे प्यासे व्यक्ति को पानी मिलेगा और आपको त्रिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होगा।

 

पंखा और अन्न दान करें

इस महीने में जरूरतमंद लोगों को पंखा और भोजन या फिर अन्न दान करने से विशेष पुण्य मिलता है। व्यक्ति के सभी पाप मिट जाते हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है।

 

नियमानुसान पूजा से मिलता है विशेष लाभ

वैशाख माह के दौरान पीपल की पूजा जरूर की जानी चाहिए। इसके लिए नियमितरूप से सुबह.सवेरे उठकर तांबे का पात्र लें। उसमें गंगाजल, कच्चा दूध, तिल और रोली डाल लें। इसके बाद यह जल पीपल में चढ़ा दें। साथ ही जो भी मनोकामना हो उसे पूरी करने की प्रार्थना करें। मान्यता है कि ऐसा करने से श्रीहरि प्रसन्न होते हैं और जातक के जीवन में अगर कोई पितृ दोष हो तो वह भी दूर हो जाता है। इसके अलावा पीपले के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाकर 7 बार परिक्रमा भी जरूर करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से जातकों की मनोवांछित सभी कामनाएं पूरी होती हैं। वैशाख माह भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इसलिए इस महीने में उनकी पूजा.उपासना करने का भी विशेष फल मिलता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस महीने में श्रीहरि का पूजन.अभिषेक तो करना ही चाहिए। साथ ही इन दिनों सुबह और शाम दोनों समय नियमितरूप से तुलसी माता के सामने दीपक जलाना चाहिए। मान्यता है ऐसा करने से श्रीहरि और माता तुलसी की कृपा से जीवन में आने वाले सभी तरह के दुरूख और कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही सुख.समृद्धि की प्राप्ति होती है।

 

विवाह संबंधी परेशानियों से छुटकारा

वैशाख माह में सोमवार के दिन जल में केसर मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाने से विवाह संबंधी परेशानियां दूर होती हैं। इसके अलावा वैवाहिक जीवन में रही समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है। इस दिन सुहागिन को साड़ीए चूड़ी आदि सुहाग का सामान देना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से वैवाहिक समस्याएं दूर होती हैं और घर में खुशहाली आती है।

 

मनोकामना पूर्ति के लिए करें यह उपाय 

वैशाख माह भगवान विष्णु जी का प्रिय माह है। इसलिए इस महीने उनकी आराधना की जाती है। शास्त्रों के अनुसार वैशाख माह में जो व्यक्ति ऊँ माधवाय नमः मंत्र का नित्य जप करता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस महीने इस मंत्र को रोजाना कम से कम 11 बार जरूर जप करना चाहिए।

 

नौकरी व्यापार में तरक्की के लिए

यदि आप अपने नौकरी व्यापार में तरक्की पाना चाहते हैं तो आपको वैशाख माह में कुछ विशेष उपाय करना चाहिए। करियर या कारोबार में तरक्की के लिए आपको वैशाख माह में भगवान विष्णु को पंचामृत का भोग लगाना चाहिए। ध्यान रहेए इस पंचामृत में तुलसी पत्र जरूर डालें।

 

 

 

 

 

Vaishakh Mas: वैशाख मास में स्नान का है ऐसा महत्व, जानिए इसका फल

Vaishakh Mas: शास्त्रों में वैशाख मास को अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी बताया गया है। सनातन संस्कृति के धर्मशास्त्रों में वैशाख मास का काफी महिमामंडन किया गया है और इसको देव आराधना, दान, पुण्य के लिए श्रेष्ठ मास बतलाया गया है। इस मास की तुलना मां से की गई है क्योंकि यह एक मां के समान सृष्टि के सभी जीवों को अभिष्ट प्रदान करता है। इसलिए कहा गया है कि

माधवसमो मासो कृतेन युगं समम्।

वेदसमं शास्त्रं तीर्थं गंगया समम्।।

वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।

नारद ने राजा अम्बरीष को वैशाख मास का माहात्मय सुनाया था। नारदजी ने राजा अम्बरीष से कहा था कि वैशाख मास धर्म, यज्ञ, क्रिया और तपस्या सभी का सार है और समस्त देवी-देवताओं के द्वारा पूजित है। जिस तरह विद्याओं में वेद-विद्या, मंत्रों में प्रणव, वृक्षों में कल्पवृक्ष, धेनुओं में कामधेनु, देवताओं में विष्णु, वर्णों में ब्राह्मण, प्रिय वस्तुओं में प्राण, नदियों में गंगाजी, तेजों में सूर्य, अस्त्र-शस्त्रों में चक्र, धातुओं में स्वर्ण, वैष्णवों में शिव और रत्नों में कौस्तुभमणि सर्वोत्तम है, उसी तरह धर्म के साधनभूत महीनों में वैशाख मास सबसे उत्तम है। भगवान लक्ष्मीनारायण को प्रसन्न करने वाला इसके जैसा दूसरा कोई मास नहीं है। जो व्यक्ति वैशाख मास में सूर्योदय से पहले स्नान करता है, उसके ऊपर भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहती हैं।

 

वैशाख मास में है स्नान का महत्व

धरती पर पाप तभी ज्यादा बढ़ जाते हैं, जब तक मनुष्य वैशाख मास में प्रातःकाल नदी, सरोवर के शुद्ध जल से स्नान नहीं करता। वैशाख मास में सब तीर्थ, देवता आदि तीर्थ के अलावा बाहर के जल में भी सदैव विद्यमान रहते हैं। भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करते हुए, मानव का कल्याण करने के लिए वे सूर्योदय से लेकर छह दंड के अंदर वहां पर उपस्थित रहते हैं। वैशाख उत्तम महीना है और शेषशायी भगवान विष्णु को हमेशा से प्रिय है। जो पुण्य सब दानों से मिलता है और जो फल सब तीर्थों के दर्शन से प्राप्त होता है, उसी पुण्य और फल की प्राप्ति वैशाखमास में सिर्फ जल का दान करने से हो जाती है। यह समस्त दानों से बढ़कर लाभ पहुंचाने वाला है। जो मानव वैशाख मास में राह पर यात्रियों के लिए प्याऊ लगाता है, वह विष्णुलोक का वासी होता है।

जल के दान से त्रिदेव की कृपा मिलती है

प्याऊ देवताओं, पितरों और ऋषि-मुनियों को बहुत प्रिय है। जो प्याऊ लगाकर थके हुए यात्रियों की प्यास बुझाता है, उस पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश सहित समस्त देवतागण प्रसन्न होते हैं। वैशाख मास में जल की चाहत रखने वाले को जल, छाया की इच्छा रखने वाले को छाता और पंखे की इच्छा रखने वाले को पंखे का दान करना चाहिए। जो व्यक्ति महात्माओं को स्नेह के साथ शीतल जल प्रदान करता है, उसे उतनी ही मात्रा से दस हजार राजसूय यज्ञों का फल प्राप्त होता है। धूप और परिश्रम से पीड़ित ब्राह्मण को जो पंखे से हवाकर शीतलता प्रदान करता है, वह पापरहित होकर भगवान के चरणो में जगह पाता है। जो राह में थके हुए श्रेष्ठ ब्राह्मण को वस्त्र से भी हवा करता है, वह भगवान विष्णु का सामिप्य प्राप्त कर लेता है।

जो विशुद्ध मन से ताड़ का पंखा जरूरतमंद को दान करता है, उसके सारे पापों का नाश हो जाता है और वह ब्रह्मलोक का वासी बन जाता है। जो वैशाखमास में चप्पल-जूते का दान करता है, वह विष्णुलोक में मोक्ष को पाता है। जो रास्ते में अनाथों के रहने के लिए विश्रामघर बनवाता है, उसके पुण्य-फल का वर्णन करना असंभव है। दोपहर में आए हुए ब्राह्मण मेहमान को यदि कोई भोजन करवाएं तो उसको अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।

वैशाख मास की कथा गणेशजी

 

पुराने जमाने में रतिदेव नामक एक राजा था। उसके राज्य में एक ब्राह्यण रहता था, जिसका नाम था-धर्मकेतु।धर्मकेतु की दो पत्नियाँ थीं। एक का नाम था सुशीला और दूसरी का नाम चंचलता था। दोनों पत्नियों के विचारों एंव व्यवहार में बहुत अन्तर था। सुशीला धार्मिक वृत्ति की थी और व्रत-उपवास, पूजा -अर्चना करती रहती थी। इसके विपरीत चंचलता भोग-विलास में मस्त रहती थी। वह शरीर के श्रृंगार पर ही अधिक ध्यान देती रहती थी। किसी व्रत-उपवास या पूजा अर्चना से उसका कुछ लेना-देना नहीं था।

कुछ दिनों बाद धर्मकेतु की दोनों पत्नियों के सन्तान हुईं। सुशीला के पुत्री हुई और चंचलता ने एक पुत्र को जन्म दिया। चंचलता सुशीला से कहती रहती थी- सुशीला! तूने इतने व्रत उपवास करके अपने शरीर को सुखा लिया, फिर भी तेरे लड़की हुई। मैंने कोई व्रत-उववास या पूजा-अर्चना नहीं की, फिर भी पुत्र को जन्म  दिया।

कुछ दिन तक तो सुशीला सुनती रही, पर जब अति हो गयी, तो उसे बड़ा दुःख हुआ। उसने गणेशजी की आराधना की। गणेशजी प्रसन्न हुए तो उनकी कृपा से सुशीला की पुत्री के मुँह से बहुमूल्य मोती-मूंगे निकलने लगे। एक रूपवान पुत्र भी उसने जन्मा।

सुशीला का ऐसा सौभाग्य जगा, तो चंचलता के मन में जलन होने लगी। उसने सुशीला की बेटी को कुएं में गिरा दिया, पर सुशीला पर तो गणेशजी की कृपा थी। उसकी बेटी का  बाल भी बांका नहीं हुआ और वह सकुशल कुएं से निकाल ली गयी।

 

बैशाख मास स्नान व्रत कथा

Baishakh Sanan Vrt katha Baishakh Sanan Vrt katha

एक दम्पति थे | लकडियाँ बेचकर अपना जीवन यापन करते थे | उनकी धर्म कर्म में बहुत रूचि थी | बैशाख का महिना आया तो उसकी पत्नी बैशाख स्नान करने लगी | पति प्रतिदिन लकड़ी का गठर बनाकर बेचने जाता तो उसकी पत्नी एक लकड़ी निकाल लेती | प्रात काल बैशाख स्नान कर आंवला , पीपल सिच कर विधि विधान से भगवान जनार्दन का पूजन करते करते महिना हो गया | पत्नी स्नान ध्यान से निर्वत हो बचाई हुई लकडियो का गठर बनाकर बेचने गई | भगवान जनार्दन की कृपा उसकी सच्ची निष्ठां से लकडिया चन्दन की बन गई | राजमहल से होकर जाने लगी तो वहाँ के राजा को चन्दन की सुगंध आई राजा ने उसे बुलाया और लकडियो की कीमत पूछीतो उसने कहाँ जितना आपको उचित लगे दे दे | मैंने बैशाख स्नान किया हैं मुझे ब्राह्मण जिमाने हैं | ब्राह्मणों को जिमाने दक्षिणा देने जितने धन की आवश्यकता हैं |

 

 

राजा ने उसकी सच्ची श्रद्धा देखकर पांच ब्राह्मणों को जिमाने जितना सामान दक्षिणा उसके घर भिजवा दी , उसने ब्राह्मण जिमाये , ब्राह्मणों ने आशीर्वाद दिया और भगवान की कृपा से उसका घर महल बन गया | रसोई में 56 भोग तैयार हो गये | पति जब लकडिया बेचकर आया तो उसे झोपडी दिखी नहीं | आस पडौस वालो से पूछा तो उन्होंने बताया की तुम्हारी पत्नी की श्रद्धा भक्ति से प्रसन्न हो झोपडी महल बन गई |

पति की आवाज सुन पत्नी बाहर आई | पति को क्रोध आया उसने पूछा तूने चोरी की या ढाका डाला तब पत्नी ने अपने पति को बताया की मैंने बैशाख स्नान किया और रोज एक लकड़ी निकाल लेती थी जब मैं लकडिया बेचने गई तो लकडिया चन्दन की बन गई |यहाँ के राजा ने लकडिया लेकर पांच ब्राह्मणों को जिमाने की सामग्री दी | जब ब्राह्मण जीम कर जाने लगे तो उनके आशीर्वाद से झोपडी महल बन गई अन्न धन के भंडार भर गये |

पति पत्नी ने प्रेम सहित भगवान को शीश नवाया | दोनों दान पुण्य कर अतिथि सेवा में अपना जीवन बिताने लगे |

हे भगवान ! अपनी कृपा दृष्टि हम सब पर बनाये रखना जैसे उन पति पत्नी पर कृपा करी वैसे सब पर करना |

 बंदरी की कहानी,वैशाख मास की पवित्र कथा

 

एक राजा था। वह वैशाख माह में प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा जी में स्नान करता था। राजा का आदेश था कि मुझसे पहले गंगा जी में कोई भी स्नान नहीं करेगा। राजा जब गंगा जी में स्नान करने जाते तो उन्हें प्रतिदिन शांत जल के स्थान पर हिलता हुआ हलचल युक्त जल दिखाई देता था, तो राजा को संदेह होता था कि निश्चय ही मुझसे पहले कोई प्रतिदिन गंगा जी में स्नान करता है। अतः राजा ने नदी के तट पर पहरेदार बिठा दिए। गंगा जी के तट पर एक वृक्ष था। उस पर एक बंदरिया रहती थी वह प्रतिदिन राजा के स्नान करने से पूर्व स्नान करके वृक्ष पर चढ़कर बैठ जाती थी। इस प्रकार होते होते पूरा वैशाख माह व्यतीत हो गया किंतु अंतिम दिन राजा के सिपाही ने देख लिया और उस बंदरिया को पकड़कर राजा के पास ले गए और कहा कि यह बंदरिया आप से पूर्व प्रतिदिन गंगा जी में स्नान करती है। उधर राजा की प्रतिज्ञा थी कि यदि कोई भी स्त्री मुझसे पूर्व स्नान करती होगी तो मैं उससे विवाह कर लूंगा इसलिए राजा को बांदरी के साथ विवाह करना ही पड़ा। वैशाख स्नान के पुण्य से बंदरी के गर्भ ठहर गया नौ मास पूर्ण होने पर बंदरी ने राजा से पूछा की शिशु जन्म के समय मुझे क्या करना चाहिए? तब राजा ने महल में एक घंटी लगवा दी और बंदरी से कहा किजब तुम्हें दर्द हो तो उसे बजा देना मैं संपूर्ण प्रबंध कर दूंगाराजा की अन्य रानीयां भी थी उनकी कोई संतान नहीं थी। बांदरी को गर्भ है यह समाचार जानकर अन्य रानियां मन ही मन बांदरी से ईर्ष्या करने लगी और भावी संतान का नाश करने हेतु विभिन्न योजनाएं बनाने लगी। घंटी लगी देखकर एक रानी ने बंदरी से इसका कारण पूछा बंदर ने संपूर्ण वृतांत बता दिया। रानी ने बहकाया कि एक बार घंटी बजा कर तो देख ले की राजा आते हैं या नहीं। बंदरी ने घंटी बजाई तो राजा दौड़े दौड़े महल में आए और घंटी बजाने का कारण पूछा इस पर बंदरी ने उत्तर दिया कि मैंने तो रानियों के कहने पर घंटी बजाई थी। तब रानीयों ने राजा से कहा कि यह तो पशु और जाने कितनी बार घंटी बजाएगी इस प्रकार कह कर उन्होंने घंटी को हटवा दिया। कुछ दिनों बाद बंदरी के शिशु जन्म का समय आया तो उसने अन्य रानियों से पूछा कि मैं क्या करूं तब रानी ने कहा कि तुम आंखों पर पट्टी बांधकर सो जाओ बंदरी के वैशाख माह के स्नान के पुण्य प्रताप के रूप में एक सुंदर पुत्र हुआ। शिशु के जन्म होते ही उसके रोने से पूर्व ही रानियों ने उसे एक टोकरी में रखकर दासी को दे दिया और आदेश दिया कि इसे नदी में बहाकर आओ। और उस शिशु के स्थान पर एक पत्थर रख दिया राजा को भी कहलवा दिया कि बंदरी ने एक पत्थर को जन्म दिया।

राजा ने सुना तो उन्होंने भी संतोष कर लिया है कि जब दूसरी रानियों के संतान नहीं है तो यह तो बंदरी है इसके क्या संतान होगी। उधर दासी ने उस सुंदर शिशु को नदी में बहाकर कुम्हार के खण्दड़ में रख दिया दूसरे दिन कुम्हार कुम्हारिन खण्दड़ में आए तो वहां एक सुंदर शिशु को रोते हुए देखा। कुम्हार कुम्हारिन भी निसंतान थे। उन्होंने उस शिशु को अपने लिए भेजी गई भगवान की भेंट माना और बड़े प्रेम से शिशु का पालन पोषण करने लगे। कुछ बड़ा होने पर बालक को यह ज्ञात हुआ कि वह रानी बंदरी का पुत्र है जिसको रानियों ने मरवाना चाहा था। एक दिन वह बालक कुम्हार के बनाए हुए मिट्टी के हाथी, घोड़े लेकर पनघट पर जा बेटा और दासियों को देखकर कहने लगा कि आओ रे मेरे मिट्टी के हाथी, घोड़े पानी पियो। जब दासियों ने यह बात सुनी तो वह हंसने लगी और बोली अरे मूर्ख !कभी मिट्टी के हाथी घोड़े भी पानी पीते हैं क्या? इस पर उस बालक ने कहा कि कभी बंदरी के भी पत्थर जन्म लेता है क्या? उस बालक की यह बात दासियों ने जाकर महल में कहीं तब रानियों ने दूसरे दिन विश मिलाकर लड्डू भेज दिए। ईश्वर की कृपा से लड्डू गोंद और बादाम के हो गये और उन लड्डू को खाने से उस लड़के की मृत्यु नहीं हुई। यह समाचार दासी ने रानी को कहा और रानी ने राजा से कहकर कुम्हार को देश निकाला दिलवा दिया कुम्हार वन में रहने लगा।

तत्पश्चात अगले वर्ष चित्र माह में माता गणगौर के पूजन का दिन आया तो वह बंदरी का पुत्र एक सौ आठ करवे और एक सौ आठ गोली लेकर तथा घड़े में पानी भरकर बगीचे के बाहर बैठ गया। उधर राजा की और साहूकार की पुत्रियां गणगौर बनाने के लिए मिट्टी लेने के लिए आई तथा बगीचे में खेलने और झूलने लगी। इस कारण कुछ समय बाद उन्हें प्यास लगी तब उन्होंने उस बंदरी के पुत्र से जल पिलाने के लिए कहा तो उस बालक ने उत्तर दिया कि मेरे पास एक गोली है उसे खाते जाओ और मेरी चारों ओर फेरे लगाती जाओ तब मैं तुम्हें जल पिलाऊंगा। इस पर पहले तो कन्याओं ने मना किया किंतु प्यास तीव्र होने के कारण मान गई। इस प्रकार गोली खाने और उस युवक के साथ फेरे लेने से वह गर्भवती हो गई। बाद में जब उनके माता-पिता को यह ज्ञात हुआ तो वह सभी कुम्हार के पास आए और संपूर्ण वृतांत सुनाया तथा कहा कि तेरे पुत्र ने हमारी कन्याओं से विवाह किया है। अब तुम्हे इन्हें अपने पास रखना होगा। तब कुमार ने निर्धन होने के कारण असमर्थता व्यक्त की दो कन्याओं के माता-पिता ने बहुत सारा धन देकर अपनी कन्याओं को कुम्हार के घर विदा किया। और कुमार के घर एक सौ आठ बहूए गई और कालांतर में उनके एक सौ आठ ही पोते हो गए। कुम्हार ने समस्त नगरी को भोजन हेतु निमंत्रण दिया और राजा को भी बुलवा दिया। राजा के यहां से रानी बंदरी के अतिरिक्त सब भोजन हेतु पधारे। तब राजकुमार राजा की आज्ञा लेकर बंदरी को लेने रथ पालकी लेकर गया और लाकर सभा में सबसे ऊंचे स्वर्ण आसन पर बिठाया। राजकुमार ने अपनी सभी पत्नियों को समझा दिया था कि बंदरी मुझे जन्म देने वाली माता है।एक एक बहु रानी बंदरी के चरण स्पर्श करती गई और एक एक सोने का सिक्का और पोते को गोद में देती गई। जब राजा और अन्य रानियों ने यह सब देखा तो कुम्हार के पुत्र से इसका कारण पूछा। रानियों को तो संदेह होने लगा कि यह अवश्य ही बंदरी का पुत्र है। इसलिए रानी और रुठकर राजा को कहने लगी कि कुम्हार के पुत्र ने हमारा अपमान किया है और बंदरी का सम्मान किया है। अतः हम लोट कर जा रही हैं। ईधर राजा को पुत्र के जन्म का संपूर्ण रहस्य ज्ञात हो गया था। इसलिए उन्होंने रानियों को देश निकाला दिया और अपनी सभी पुत्र वधू एवं पोत्रो को लेकर महल में आया और राजकुमार का राजतिलक हुआ। कुम्हार कुम्हारिन को राजकुमार ने महल में रहने के लिए निवेदन किया किंतु वह नहीं माने तब राजा ने उन्हें ढेर सारा धन दिया।

वैशाख स्नान का इतना महत्व है तो सबको वैशाख स्नान करना चाहिए ।बंदरी ने वैशाख स्नान किया तो उसे राजा का राज्य, पुत्र, बहुएं आदि प्राप्त हुई है। ईश्वर जैसे बंदरी को पुण्य मिला इस प्रकार हमें भी पुण्य देना।


वैशाखमाहात्म्य

 


भगवान श्रीविष्णु ने माधव मास की महिमा का विशेष प्रचार किया है। अत: इस महीने के आने पर मनुष्यों को पवित्र पवित्र करने वाले पुण्य जल से परिपूर्ण गंगा तीर्थ, नर्मदा तीर्थ, यमुना तीर्थ अथवा सरस्वती तीर्थ में सूर्योदय से पहले स्नान करके भगवान मुकुन्द की पूजा करनी चाहिए। इससे तपस्या का फल भोगने के पश्चात अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति होती है। भगवान श्रीनारायण अनामयरोग-व्याधि से रहित हैं, उन गोविन्ददेव की आराधना करके तुम भगवान का पद प्राप्त कर लोगे। राजन् ! देवाधिदेव लक्ष्मीपति पापों का नाश करने वाले हैं, उन्हें नमस्कार करके चैत्र की पूर्णिमा को इस व्रत का आरम्भ करना चाहिए। व्रत लेने वाला पुरुष यमनियों का पालन करे, शक्ति के अनुसार कुछ दान दे, हविष्यान्न भोजन करे, भूमि पर सोये, ब्रह्मचर्य व्रत में दृढ़तापूर्वक स्थित रहे तथा हृदय में भगवान श्रीनारायण का ध्यान करते हुए कृच्छ्र आदि तपस्याओं के द्वारा शरीर को सुखाए। इस प्रकार नियम से रहकर जब वैशाख की पूर्णिमा आए, उस दिन मधु तथा तिल आदि का दान करे, श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भक्तिपूर्वक भोजन कराए, उन्हें दक्षिणा सहित धेनु-दान दे तथा वैशाख स्नान के व्रत में जो कुछ त्रुटि हुई हो उसकी पूर्णता के लिए ब्राह्मणों से प्रार्थना करे।
भूपाल ! जिस प्रकार लक्ष्मी जी जगदीश्वर माधव की प्रिया हैं, उसी प्रकार माधव मास भी मधुसूदन को बहुत प्रिय है। इस तरह उपर्युक्त नियमों के पालनपूर्वक बारह वर्षों तक वैशाख स्नान करके अन्त में मधुसूदन की प्रसन्नता के लिए अपनी शक्ति के अनुसार व्रत का उद्यापन करें। अम्बरीष ! पूर्वकाल में ब्रह्मा जी के मुख से मैंने जो कुछ सुना था, वह सब वैशाख मास का माहात्म्य तुम्हें बता दिया।
अम्बरीष ने पूछामुने ! स्नान में परिश्रम तो बहुत थोड़ा है, फिर भी उससे अत्यन्त दुर्लभ फल की प्राप्ति होती हैमुझे इस पर विश्वास क्यो नहीं होता? मुझे मोह क्यो हो रहा है?
नारद जी ने कहाराजन् ! तुम्हारा संदेह ठीक है। थोड़े से परिश्रम के द्वारा महान फल की प्राप्ति असंभव सी बात है तथापि इस पर विश्वास करो, क्योंकि यह ब्रह्मा जी की बतायी हुई बात है। धर्म की गति सूक्ष्म होती है, उसे समझने में बड़े-बड़े पुरुषों को भी कठिनाई होती है। श्रीहरि की शक्ति अचिन्त्य है, उनकी कृति में विद्वानों को भी मोह हो जाता है। विश्वामित्र आदि क्षत्रिय थे किन्तु धर्म का अधिक अनुष्ठान करने के कारण वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हो गए, अत: धर्म की गति अत्यन्त सूक्ष्म है।
भूपाल ! तुमने सुना होगा, अजामिल अपनी धर्मपत्नी का परित्याग करके सदा पाप के मार्ग पर ही चलता था। तथापि मृत्यु के समय उसने केवल पुत्र के स्नेहवशनारायणकहकर पुकारापुत्र का चिन्तन करकेनारायणका नाम लिया, किन्तु इतने से ही उसको अत्यन्त दुर्लभ पद की प्राप्ति हुई। जैसे अनिच्छापूर्वक भी यदि आग का स्पर्श किया जाए तो वह शरीर को जलाती ही है, उसी प्रकार किसी दूसरे निमित्त से भी यदि श्रीगोविन्द का नामोच्चारण किया जाए तो वह पाप राशि को भस्म कर डालता है (अनिच्छयापि दहति स्पृष्टो हुतवहो यथा तथा दहति गोविन्दनाम व्याजादपीरितम्।।) जीव विचित्र हैं, जीवों की भावनाएँ विचित्र हैं, कर्म विचित्र है तथा कर्मों की शक्तियाँ भी विचित्र हैं। शास्त्र में जिसका महान फल बताया गया हो, वही कर्म महान है फिर वह अल्प परिश्रम साध्य हो या अधिक परिश्रम साध्य। छोटि सी वस्तु से भी बड़ी से बड़ी वस्तु का नाश होता देखा जाता है। जरा-सी चिनगारी से बोझ के बोझ तिनके स्वाहा हो जाते हैं। जो श्रीकृष्ण के भक्त हैं, उनके अनजान में में किये हुए हजारों हत्याओं से युक्त भयंकर पातक तथा चोरी आदि पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
वीर ! जिसके हृदय में भगवान श्रीविष्णु की भक्ति है वह विद्वान पुरुष यदि थोड़ा सा भी पुण्य-कार्य करता है तो वह अक्षय फल देने वाला होता है। अत: माधवमस में माधव की भक्तिपूर्वक आराधना करके मनुष्य अपनी मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता हैइस विषय में संदेह नहीं करना चाहिए। शास्त्रोक्त विधि से किया जाने वाला छोटे से छोटे कर्म क्यों हो, उसके द्वारा बड़े से बड़े पाप का भी क्षय हो जाता है तथा उत्तम कर्म की वृद्धि होने लगती है।
राजन् ! भाव तथा भक्ति दोनों की अधिकता से फल में अधिकता होती है। धर्म की गति सूक्ष्म है, वह कई प्रकारों से जानी जाती है। महाराज ! जो भाव से हीन हैजिसके हृदय में उत्तम भाव एवं भगवान की भक्ति नहीं है, वह अच्छे देश तथा काल में जा-जाकर जीवनभर पवित्र गंगा जल से नहाता और दान देता रहे तो भी कभी शुद्ध नहीं हो सकता- ऎसा मेरा विचार है। अत: अपने हृदय कमल में शुद्ध भाव की स्थापना करके वैशाख मास में प्रात:स्नान करने वाला जो विशुद्धचित्त पुरुष भक्तिपूर्वक भगवान लक्ष्मीपति की पूजा करता है, उसके पुण्य का वर्णन करने की शक्ति मुझमें नहीं है। अत: भूपाल ! तुम वैशाख मास के फल के विषय में विश्वास करो। छोटा-सा शुभकर्म भी सैकड़ों पापकर्मों का नाश करने वाला होता है। जैसे हरिनाम के भय से राशि-राशि पाप नष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार सूर्य के मेष राशि पर स्थित होने के समय प्रात:स्नान करने से तथा तीर्थ में भगवान की स्तुति करने से भी समस्त पापों का नाश हो जाता है (यथा हरेर्नामभयेन भूप नश्यन्ति सर्वे दुरितस्य वृन्दा: नूनं रवौ मेषगते विभाते स्नानेन तीर्थे हरिस्तवेन।।) जिस प्रकार गरुड़ के तेज से साँप भाग जाते हैं, उसी प्रकार प्रात:काल वैशाख स्नान करने से पाप पलायन कर जाते हैंयह निश्चित बात है। जो मनुष्य मेष राशि के सूर्य में गंगा या नर्मदा के जल में नहाकर एक, दो या तीनों समय भक्ति भाव के साथ पाप-प्रशमन नामक स्तोत्र का पाठ करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर परम पद को प्राप्त होता है।अम्बरीष ! इस प्रकार मैंने थोड़े में यह वैशाख स्नान का सारा माहात्म्य सुना दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो?’

 

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