हनुमान जी को क्यों लेना पड़ा वानर का रूप |Hanuman Jayanti

 


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Hanuman Jayanti : कैसे हुआ हनुमान जी का जन्म, बेहद रोचक है कहानी, जानें

हनुमान जयंती को पवनपुत्र, संकटमोचन और भगवान शिव के रुद्रावतार भगवान बजरंगबली का जन्मोत्सव है। रामभक्त हनुमान को कलयुग के देवता और जल्द प्रसन्न होने वाले देवता माना गया है। हनुमानजी को भगवान शिव के 11वें अवतार माना जाता है। रामभक्त हनुमानजी के जन्म को लेकर दो तरह की धार्मिक मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार हनुमानजी का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ था, वहीं इसके अलावा कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भी हनुमान जयंती मनाई जाती है। चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को भगवान हनुमान के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है तो वहीं कार्तिक महीने में हनुमान जयंती के रूप में। ऐसे में अब आपके मन में यह विचार चल रहा होगा कि साल में हनुमान जयंती दो बार क्यों मनाई जाती है? आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा।

हनुमान जयंती साल में दो बार क्यों ?
हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक वर्ष में हनुमान जयंती का त्योहार दो बार मनाएं जाने की परंपरा है, दरअसल भगवान हनुमान का जन्मोत्सव एक बार ही मनाया जाता है जबकि दूसरी बार हनुमान जयंती को विजय दिवस केरूप मे मनाया जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान हनुमान का जन्म कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर और स्वाति नक्षत्र में हुआ था। इस तरह से हनुमानजी का प्रगट्यपर्व यानी हनुमान जयंती कार्तिक माह की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। वहीं हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भगवान हनुमान का जन्मोत्सव मनाया जाता है। 

हनुमान नाम क्यों पड़ा ?

संस्कृत भाषा में हनु को दाढ़ी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार देवराज इंद्र के वज्र के प्रहार से बजरंगबली की दाढ़ी में चोट लगने से उनकी दाढ़ी तिरछी हो गई। इस कारण से भगवान बजरंगबली का नाम हनुमान पड़ा। हनुमान जयंती के त्योहार को देशभर में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। 

हनुमान जी प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त हैं. इस दिन हनुमान जी ने वानर जाति में जन्म लिया. हनुमानजी एक ऐसे देवता हैं जो त्रेतायुग से लेकर आज तक सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता माने जाते हैं. मान्यता है कि जहां भी राम कथा होती है वहां हनुमानजी किसी ना किसी रूप में मौजूद रहते हैं. हनुमान जयंती पर हनुमान जी की जन्म कथा का श्रवण करने से बजरंगबली की कृपा बरसती है.

Hanuman Puja Vidhi: हनुमान जयंती पूजा विधि

·         हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए चौमुखी दीपक जलाएं. इसके अलावा हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करें.

·         हनुमान जी की पूजा में गेंदे, हजारा, कनेर, गुलाब के फूल चढ़ाएं जबकि जूही, चमेली, चम्पा, बेला इत्यादि फूलों को चढ़ाने से परहेज करें.

·         मालपुआ, लड्डू, चूरमा, केला, अमरूद आदि का भोग लगाएं.

·         हनुमान जी की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं.

·         दोपहर तक इस दिन कोई भी नमकीन चीज खाने से बचें.

·         इस दिन हनुमान जी को सिंदूर का चोला चढ़ाने से शीघ्र मनोकामना की पूर्ति होती है.

 

हनुमान जयंती पर कैसे करें पूजा (Hanuman Jayanti puja vidhi)

हनुमान जयंती के दिन बजरंगबली को चमेली के तेल में मिश्रित सिंदूर का चोला चढ़ाएं. अक्षत, कनेर, गुड़हल या गुलाब के पुष्प चढ़ाएं. नैवेद्य में मालपुआ, बेसन के लड्डू अर्पित करें' हं हनुमते नम:' का 108 बार जाप करें. हनुमान चालीसा का पाठ करें. अब आरती के पश्चात गरीबों को दान दें.

 

हनुमान को प्रसन्न करने और शनि दोष दूर करने  के उपाय

 

बजरंगी हनुमान को मीठा पान अत्यंत प्रिय है. ऐसे में हनुमान जयंती के दिन अंजनी पुत्र हनुमान को मीठा पान जरूर अर्पित करें. पान में पांच प्रकार की वस्तुएं कत्था, गुलकंद, खोपरा, सौंफ और गुलाबकतरी जरूर हो इस बात का ध्यान रखें. साथ ही इस बात का ध्यान भी रखें कि इसमें चूना, सुपारी जैसी चीजें गलती से भी हो. माठा पान अर्पित करने से हनुमानजी जल्दी प्रसन्न होते हैं.

हनुमान जयंती पर करें नारियल के उपाय

हनुमान जयंती के दिन नारियल लेकर हनुमान मंदिर जाएं और उसे अपने ऊपर से सात बार वारते हुए हनुमान जी के सामने फोड़ दें. ज्योतिष के अनुसार इस उपाय को करने से सारी बाधाएं दूर होती हैं.

पीपल के पत्ते की माला चढ़ाएं

हनुमान जयंती के दिन हनुमान जी को गुलाब की माला चढ़ाएं. इस दिन 11 पीपल के पत्तों पर श्री राम का नाम लिखकर इनकी माला बनाएं और हनुमान जी को अर्पित करें. ऐसा करने से बजरंगबली की विशेष कृपा प्राप्त होती है और शनि दोष दूर होता है.

राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें

हनुमान जयंती के दिन हनुमान मंदिर में श्री राम, माता सीता और हनुमान जी की प्रतिमा के दर्शन करते हुए राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. ऐसा करने से बजरंगबली की कृपा प्राप्त होती है. इससे शनि देव भी खुश होते हैं और शनि दोष से राहत मिलती है.

हनुमान जी को चढ़ाएं सिंदूर का चोला

हनुमान जी को सिंदूर अत्यंत प्रिय है. इसलिए संकटों से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जंयती के दिन बजरंगबली को सिंदूर का चोला चढ़ाना अत्यंत शुभ होता है. इससे बजरंगबली प्रसन्न होकर आरोग्य, सुख- समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. इससे शनि की नजर भी दूर होती है.

हनुमान जयंती पर शनि दोष दूर करने के लिए ये करें

हनुमान जयंती के दिन शाम के समय हनुमान मंदिर जाकर बजरंगबली को केवड़े का इत्र और गुलाब की माला चढ़ाना शुभ होता है. साथ ही इस दिन सरसों के तेल का दीपक जलाकर 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करने से शनि दोष से छुटकारा मिलता है. इतना ही नहीं भगवान हनुमान अत्यंत प्रसन्न होते हैं और सारे संकट दूर करते हैं.

सारे प्रयास जब असफल हो जाएं तब करना चाहिए इस मंत्र का प्रयोग

माना जाता है कि बजरंग बाण का उच्चारण तब करना चाहिए जब सभी किए जा रहे उपाय असफल हो जाएं. जब विपदा बहुत प्रबल हो जाती है तब इस पाठ का करना अति शुभ फल देने वाला होता है.

हनुमान जी की पूजा के दौरान करें ये गलती

·         हनुमान जी की पूजा में चरणामृत का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

·         हनुमान जी की पूजा करने वाले भक्त को उस दिन नमक का सेवन नहीं करना चाहिए.

·         हनुमान जी की पूजा करते समय काले और सफेद रंग के कपड़े पहनने से बचें.

·         हनुमानजी की पूजा करते समय ब्रह्राचर्य व्रत का पालन करना चाहिए.

·         हनुमान जयंती कर खंडित और टूटी हुई मूर्ति की पूजा करें.

·         पवनपुत्र हनुमान जी को हलुवा, गुड़ से बने लड्डू, बूंदी या बूंदी के लड्डू, पंच मेवा, डंठल वाला पान, केसर-भात और इमरती अत्यंत प्रिय हैं. इन मिष्ठानों का भोग लगाने से हनुमान जी अत्यंत प्रसन्न होते हैं.
हनुमान जयंती पर जानें पवनपुत्र कैसे बने महावीर? पढ़ें यहकथा


हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को हुआ था, इसलिए हर साल चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जयंती मनाई जाती है. हनुमान जी भगवान शिव के अंश थे. उनके पिताकेसरी और माता अंजना थीं. जब उनका जन्म हुआ तो वे बहुत ही तेजवान, कांतिमय, बुद्धिमान एवं बलशाली थे. जैसे जैसे वे बड़े हुए, वैसे वैसे उनकी बाल्यकाल की शरारतें भी बढ़ने लगीं. उनके बाल्यावस्था से जुड़ी एक कथा है, जिसमें उनके महावीर बनने का वर्णन मिलता है. आइए जानते हैं उस कथा के बारे में.

महावीर हनुमान की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन बालक हनुमान आंगन में खेल रहे थे, उस दौरान उनको भूख लगी. उन्होंने उगते हुए सूर्य को फल समझ लिया. उन्होंने उस लाल रंग के चमकीले फल को खाने के लिए आसमान में छलांग लगा दी. वे वायु के वेग से आसमान में उड़ने लगे और देखते ही देखते सूर्य लोक पहुंच गए.

जैसे ही वे सूर्य देव के पास पहुंचे, उनको निगलने के लिए अपना मुंह खोल दिया. यह देखकर सूर्य देव वहां से भागने लगे. अब सूर्य देव आगे आगे और बाल हनुमान उनके पीछे पीछे. यह देखकर देवराज इंद्र आश्चर्य में पड़ गए.

उन्होंने सूर्य देव को बचाने के लिए हनुमान जी पर वज्र से प्रहार कर दिया. इसके परिणाम स्वरुप बाल हनुमान पृथ्वी पर गिर पड़े. इस बात की ज्ञान जब पवन देव को हुआ तो वे क्रोधित और दुखी हो गए क्योंकि हनुमान जी पवन पुत्र भी हैं.

शोकाकुल पवन देव मूर्छित हनुमान जी को लेकर एक गुफा में चले गए और वहां पर उनकी मूर्छा टूटने की प्रतीक्षा करने लगे. उधर, वायु देव के  होने के कारण पशु, पक्षी, मनुष्य सब त्राहि त्राहि करने लगे. पृथ्वी पर हाहाकार मच गया. उधर इंद्र देव को भी पता चल चुका था कि जिस बालक पर उन्होंने प्रहार किया था, वह कोई सामान्य बालक नहीं हैं. वह रुद्रावतार हनुमान हैं.

वायु देव के दुख को दूर करने और पृथ्वी पर वायु के संकट को दूर करने के लिए त्रिदेव के साथ सभी प्रमुख देवता उस गुफा में प्रकट हुए. वहां पर सभी देवों को रुद्रावतार हनुमान जी के बारे में पता चला. ब्रह्मा, विष्णु, महेश समेत सभी देवताओं ने हनुमान जी को अपनी दिव्य शक्तियों से सुसज्जित कर दिया.

सूर्य देव ने हनुमान जी को शिक्षा देने का दायित्व लिया. बाद में वे हनुमान जी के गुरु बने. इस प्रकार सभी देवों की शक्तियों के मिलने से पवनपुत्र महावीर हनुमान बन गए, जो अपने प्रभु श्रीराम के संकटमोचन कहलाए.

Hanuman Jayanti: हनुमान जी को क्यों लेना पड़ा वानर का रूप, यहां पढ़ें इससे जुड़ी पौराणिक कथा


 Hanuman Jayanti: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस व्यक्ति पर हनुमान जी की कृपा होती है उसके जीवन से सभी कष्टों दूर हो जाते हैं. वैसे तो हनुमान जी की पूजा के लिए मंगलवार का दिन खास होता है लेकिन हनुमान जयंती के दिन अगर उनका विधि-विधान के साथ पूजन किया जाए तो कई प्रकार के समस्याओं से छुटकारा मिलता है. हर साल चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है और इस बार यह पव्र 6 अप्रैल को है. ऐसे में कई लोगों के मन में सवाल जरूर आता होगा कि आखिर हनुमान जी ने वानर के रूप में जन्म क्यों लिया? तो आइए जानते हैं इसकी वजह और इसके पीछे छिपी पौराणिक कथा.

वानर रूप में क्यों आए हनुमान जी

पौराणिक कथाओं के अनुसार माता अंजनी अपने पूर्व जन्म में इंद्रराज के महल की अप्सरा थीं और उनका नाम पुंजिकस्थला था. वह रुप में आकर्षक और स्वभाव से काफी चंचल थी और अपनी इसी चंचलता के कारण उन्होंने एक बार एक ऋषि के साथ अभद्र व्यवहार किया था, तब ऋषि ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि तुम अगले जन्म में वानरी का रूप लोगी. इस श्राप को सुनकर अप्सरा दुखी हुई और ऋषि से क्षमा मांगने लगी. फिर ऋषि ने उन्हें क्षमा करते हुए कहा कि तुम्हारा वानर रूप परमतेजस्वी होगा और तुम एक यशस्वी पुत्र को जन्म दोगी.

तपस्या में लीन ऋषि से श्राप मिलने के पश्चात एक दिन पुंजिकस्थला से इंद्र देव ने मनचाहा वरदान मांगने के लिए कहा. तब पुंजिकस्थला ने इंद्र देव से कहा कि यदि संभव हो तो वो उसे ऋषि द्वारा दिए गए श्राप से मुक्ति प्रदान करें। इंद्रदेव के पूछे जाने पर पुंजिकस्थला ने बताया कि मुझे प्रतीत हुआ कि वो ऋषि एक वानर हैं और मैंने उन ऋषि पर फल फेंकना शुरू कर दिए परन्तु वो कोई साधारण वानर नहीं अपितु परम तपस्वी साधु थे. मेरे द्वारा तपस्या भंग होने के कारण उन्होंने मुझे श्राप दिया जब भी मुझे किसी से प्रेम होगा तो मैं वानर का रूप धारण कर लूंगी. मेरा ऐसा रूप होने बाद भी उस व्यक्ति का प्रेम मेरे प्रति कम नहीं होगा. इंद्रदेव ने पूरा वृत्तांत सुनने के बाद कहा कि तुम्हे धरती पर जाकर निवास करना होगा, वहां तुम्हे एक राजकुमार से प्रेम होगा जो तुम्हारा पति बनेगा. विवाह के पश्चात तुम शिव के अवतार को जन्म दोगी और फिर तुम्हे इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी.

इंद्र के वचन सुनकर पुंजिकस्थला अंजनी के रूप में धरती पर निवास करने लगी. उसे वन में एक बार एक युवक दिखा जिसकी और वो आकर्षित हुई. जैसे ही उस युवक ने अंजनी को देखा अंजनी का चेहरा वानर का हो गया. अंजनी ने युवक से अपना चेहरा छुपाया, जब युवक उनके पास आया तो अंजनी ने कहा मैं बहुत बदसूरत हूं परन्तु जब अंजनी ने उस युवक की ओर देखा तो वो भी वानर रूप में ही था. उस युवक ने बताया कि मैं वानरराज केसरी हूं और जब चाहूं तब मनुष्य रूप धारण कर सकता हूँ. दोनों को एक दूसरे से प्रेम हुआ और वे विवाह के बंधन में बंध गए.

कुछ समय पश्चात जब दोनों संतान सुख से वंचित रहे तब अंजनी मातंग ऋषि के पास पहुंची और अपनी पीड़ा बताई तब मातंग ऋषि ने उन्हें नारायण पर्वत पर स्थित स्वामी तीर्थ जाकर 12 वर्ष तक उपवास करके तप करने के लिए कहा. तब एक बार वायु देव ने अंजनी की तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि तुम्हे अग्नि, सूर्य, सुवर्ण, वेद वेदांगों का मर्मज्ञ और बलशाली पुत्र प्राप्त होगा. यह वरदान प्राप्त होने के पश्चात वे शिव जी की तपस्या करने लगीं तब शिव जी ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा तब अंजना ने ऋषि द्वारा मिले श्राप के विषय में बताते हुए कहा कि इस श्राप से मुक्त होने के लिए मुझे शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए कृपया आप बालरूप में मेरे गर्भ से जन्म लें. शिव जी ने अंजनी को आशीर्वाद दिया और अंजना के गर्भ से बजरंग बलि के रूप में शिव जी ने जन्म लिया. अंजनी पुत्र होने के कारण हनुमान जी को आंजनेय भी कहा जाता है.

मंगलवार व्रत कथा (Mangalwar Vrat Katha)

एक समय की बात है एक ब्राह्मण दंपत्ति की कोई संतान नहीं थी, जिस कारण वह बेहद दुःखी थे। एक समय ब्राह्मण वन में हनुमान जी की पूजा के लिए गया। वहाँ उसने पूजा के साथ महावीर जी से एक पुत्र की कामना की।

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घर पर उसकी स्त्री भी पुत्र की प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत करती थी। वह मंगलवार के दिन व्रत के अंत में हनुमान जी को भोग लगाकर ही भोजन करती थी।

एक बार व्रत के दिन ब्राह्मणी ना भोजन बना पाई और ना ही हनुमान जी को भोग लगा सकी। उसने प्रण किया कि वह अगले मंगलवार को हनुमान जी को भोग लगाकर ही भोजन करेगी।

वह भूखी प्यासी छह दिन तक पड़ी रही। मंगलवार के दिन वह बेहोश हो गई। हनुमान जी उसकी निष्ठा और लगन को देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप ब्राह्मणी को एक पुत्र दिया और कहा कि यह तुम्हारी बहुत सेवा करेगा।

बालक को पाकर ब्राह्मणी अति प्रसन्न हुई। उसने बालक का नाम मंगल रखा। कुछ समय उपरांत जब ब्राह्मण घर आया, तो बालक को देख पूछा कि वह कौन है?

पत्नी बोली कि मंगलवार व्रत से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने उसे यह बालक दिया है। ब्राह्मण को अपनी पत्नी की बात पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन मौका देख ब्राह्मण ने बालक को कुएं में गिरा दिया।

घर पर लौटने पर ब्राह्मणी ने पूछा कि, मंगल कहां है? तभी पीछे से मंगल मुस्कुरा कर गया। उसे वापस देखकर ब्राह्मण आश्चर्यचकित रह गया। रात को हनुमानजी ने उसे सपने में दर्शन दिए और बताया कि यह पुत्र उसे उन्होंने ही दिया है।

ब्राह्मण सत्य जानकर बहुत खुश हुआ। इसके बाद ब्राह्मण दंपत्ति प्रत्येक मंगलवार को व्रत रखने लगे।

जो मनुष्य मंगलवार व्रत कथा को पढ़ता या सुनता है,और नियम से व्रत रखता है उसे हनुमान जी की कृपा से सब कष्ट दूर होकर सर्व सुख प्राप्त होता है, और हनुमान जी की दया के पात्र बनते हैं।

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