चैत्र पूर्णिमा व्रत कथा | सत्यनारायण व्रत कथा Chaitra Purnima

 

Chaitra Purnima

in Hindi : Date, Puja Vidhi, Importance, Vrat Katha


चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को चैत्र पूर्णिमा कहते हैं। चैत्र हिंदू नव वर्ष का प्रथम मास होता है इसलिए इसे प्रथम चंद्रमास भी कहा जाता है। इस दिन श्रीराम  के परम भक्त हनुमान जी की जयंती मनाई जाती है इसी दिन ब्रज नगरी में भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के संग रास उत्सव रचाया था। चैत्र पूर्णिमा को भाग्यशाली पूर्णिमा में माना गया है। इस दिन व्रत रखने से सिर्फ मनोकामना पूर्ण होती है बल्कि ईश्वर की भी अपार कृपा होती है। इस दिन विशेष रूप से चंद्रमा की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को जीवन में तरक्की मिलती है और वह खूब आगे बढ़ता है। इस योग में किए गए सभी कार्य शुभ फल देते हैं।

चैत्र महीने की पूर्णिमा को नए संवत्सर की पहली पूर्णिमा होने से ग्रंथों में इसे महत्वपूर्ण पर्व माना गया है। इसे मधु पूर्णिमा या चैते पूनम भी कहते हैं। इस पर्व पर सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ या पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। सूर्य को अर्घ्य देकर दिनभर दान, व्रत और भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लिया जाता है। इसलिए इसे स्नान और दान की पूर्णिमा भी कहा जाता है।

भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा का दिन
धर्मसिंधु ग्रंथ और ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार चैत्र माह की पूर्णिमा पर तीर्थ स्नान, दान, व्रत और भगवान विष्णु की पूजा करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं। इस दिन किए गए विष्णु पूजन से देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। इस दिन चंद्रमा भी सौलह कलाओं से पूर्ण होता है। ग्रंथों के अनुसार इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा या सत्यनारायण का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।

चैत्र पूर्णिमा का महत्व

पुराणों के अनुसार चैत्र पूर्णिमा पर विधि विधान से पूजा करने पर श्री हरि की विशेष कृपा मिलती है। चंद्रदेव व्रती को उनकी इच्छा अनुसार फल देते हैं। इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा करने से जातको को सुख, धन और वैभव की प्राप्ति होती है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार Purnima tithi चंद्र देव की प्रिय तिथि मानी जाती है।

इस महीने में जो जातक सूर्य देव की विधिवत पूजा अर्चना करते हैं, वह जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही वजह है कि चैत्र पूर्णिमा के दिन कई लोग गंगा में स्नान करते हैं और  सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। इस दिन सत्यनारायण का व्रत करने से व्रती को समस्त प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलता है।

चैत्र पूर्णिमा महत्व और इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

1. पूर्णिमा को मन्वादि, हनुमान जयंती तथा वैशाख स्नानारम्भ किया जाता है। 2. इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में उत्सव रचाया था, जिसे महारास के नाम से जाना जाता है। यह महारास कार्तिक पूर्णिमा को शुरू होकर चैत्र की पूर्णिमा को समाप्त हुआ था। 3. चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन स्त्री पुरुष बाल वृद्ध सभी पवित्र नदियों में स्नान करने के अपने को पवित्र करते हैं। 4. इस दिन घरों में लक्ष्मी-नारायण को प्रसन्न करने के लिये व्रत किया जाता है और सत्यनारायण की कथा सुनी जाती है। 5. चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्मदिवस मनाया जाता है। इस दिन हनुमान जी को सज़ा कर उनकी पूजा अर्चना एवं आरती करें, भोग लगाकर सबको प्रसाद देना चाहिये। 6. चैत्र माह की पूर्णिमा पर किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद जरूरतमंद लोगों को भोजन या धन का दान किया जाता है। 7. चैत्र माह की पूर्णिमा पर अन्न, पानी, जूते-चप्पल, सूती कपड़े और छाते का दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है।

Chaitra Purnima Puja Vidhi

  • चैत्र पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता है।
  • उपवास रखने से पहले चैत्र पूर्णिमा के व्रत का संकल्प लिया जाता है।
  •  इसके बाद भगवान इंद्र और महालक्ष्मी जी की पूजा करते हुए घी का दीपक जलाया जाता है और सत्यनारायण का पाठ भी करना शुभ माना जाता है। महालक्ष्मी की पूजा में गंध पुष्प का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए।
  •  ब्राह्मणों को खीर का भोजन करवाया जाता है और साथ ही उन्हें दान दक्षिणा देकर विदा किया जाता है।
  • लक्ष्मी जी की प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रूप से महिलाएं रखती है।
  •  इस दिन पूरी रात जागकर जो भगवान का ध्यान करते हैं उन्हें धन संपत्ति प्राप्त होती है।
  •  रात के वक्त चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद ही खाया जाता है।

Hanuman Jayanti Overview

चैत्र पूर्णिमा पुण्य फल प्रदान करने वाली पूर्णिमा है। इस पूर्णिमा का धार्मिक दृष्टि से बड़ा महत्व है। इस दिन भगवान श्री राम के सबसे बड़े भक्त हनुमान जी का जन्म उत्सव होता है, इसलिए इस दिन हनुमान जयंती भी मनाई जाती है। इस दिन हनुमान जी की विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार चैत्र माह में पूर्णिमा तिथि के दिन मां अंजनी की कोख से हनुमान जी का जन्म हुआ था। चैत्र पूर्णिमा के अलावा कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भी हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है।

चैत्र पूर्णिमा व्रत और सत्यनारायण की कथाएं

चैत्र पूर्णिमा व्रत और Satyanarayan से जुड़ी कथाओं का वर्णन निम्नलिखित प्रकार है:-

पौराणिक कथा के अनुसार बहुत समय पहले की बात है एक बार विष्णु भक्त नारद जी ने भ्रमण करते हुए मृत्यु लोक के प्राणियों को अपने-अपने कर्मों के अनुसार तरह-तरह के दुखों से परेशान होते देखा। इससे उनका हृदय द्रवित हो उठा और वे वीणा बजाते हुए अपने परम आराध्य भगवान श्री हरि की शरण में कीर्तन करते क्षीरसागर पहुंच गए और बोले कि अगर वह उनसे प्रसन्न है, तो मृत्युलोक के प्राणियों के व्यथा हरने वाला कोई उपाय बताएं। उन्होंने ऐसा व्रत  बताते हुए कहा कि जो स्वर्ग में भी दुर्लभ है और बहुत पुण्यदायक है और प्यार के बंधन को काट देने वाला है और वह है श्री सत्यनारायण व्रत। इसे विधि विधान से करने पर मनुष्य सांसारिक सुखों को भोग कर परलोक में मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

काशीपुर नगर के एक निर्धन ब्राह्मण को भिक्षावृत्ति करते देख भगवान विष्णु स्वयं ही एक बूढ़े ब्राह्मण के रूप में उस निर्धन ब्राह्मण के पास जाकर कहते हैं कि सत्यनारायण भगवान फल देने वाले हैं। उसे व्रत पूजन करना चाहिए, जिससे मनुष्य सब प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत में उपवास का बहुत महत्व है। उपवास के समय हृदय में यह धारणा होनी चाहिए कि आज श्री सत्यनारायण भगवान उनके पास ही बैठे हैं और श्रद्धा पूर्वक भगवान का पूजन कर उनकी कथा करनी चाहिए।

पूर्वकाल में उल्कामुख नाम का एक बुद्धिमान राजा था। साधु वैश्य ने भी यही प्रसंग राजा उल्कामुख से विधि विधान के साथ सुना लेकिन उसका विश्वास अधूरा था। श्रद्धा में कमी थी। वह कहता था कि संतान प्राप्ति पर सत्यव्रत पूजन करेगा। समय बीतने पर उसके घर एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। उसकी श्रद्धालु पत्नी ने व्रत की याद दिलाई, तो उसने कहा कि कन्या के विवाह के समय करेंगे। समय आने पर कन्या का विवाह भी हो गया और उल्कामुख ने व्रत नहीं किया। वह अपने दामाद को लेकर व्यापार के लिए चला गया। उसे चोरी के आरोप में राजा चंद्रकेतु द्वारा दामाद सहित कारागार में डाल दिया गया। घर में भी चोरी हो गई। पत्नी लीलावती और पुत्री कलावती भिक्षावृत्ति के लिए विवश हो गए। एक दिन कलावती ने किसी विप्र के घर श्री सत्यनारायण का पूजन होते देखा और घर आकर अपनी मां को बताया। तब मां ने अगले दिन श्रद्धा से व्रत पूजन कर भगवान से पति और दामाद के शीघ्र वापस आने का वरदान  मांगा। श्रीहरि प्रसन्न हो गए और साथ ही राजा को दोनों बंदियों को छोड़ने का आदेश दिया।  राजा ने उनका धन धान्य देकर उन्हें विदा किया। घर आकर उल्कामुख पूर्णिमा और संक्रांति को सत्यव्रत का जीवन पर्यंत आयोजन करता रहा और सांसारिक सुख भोग कर उसे मोक्ष प्राप्त हुआ।

इसी प्रकार राजा तुङ्गध्वज ने जंगल में गोपगणों को श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा करते देखा, लेकिन उसने पूजा स्थल पर जाकर दूर से ही प्रणाम किया और ही प्रसाद ग्रहण किया। परिणाम यह हुआ कि राजा के पुत्र का धनसब कुछ नष्ट हो गया। राजा को यह आभास हुआ कि विपत्ति का कारण सत्यदेव भगवान का निरादर है। उसे बहुत पछतावा हुआ। वह तुरंत वन में गया। उसने बहुत देर सत्यनारायण भगवान की पूजा की। फिर उसने प्रसाद ग्रहण किया और घर गया। उसने देखा कि उसकी सारी संपत्ति सुरक्षित हो गई। राजा प्रसन्नता से भर गया। फिर राजा ने कहा कि हमें अज्ञान को दूर करके सत्य को स्वीकार करना चाहिए। प्रभु की भक्ति करना मानव का धर्म है

बारह महीनों की गणेश चैथ की कथाएँ

जन समुदाय में गणेश-पूजन का बड़ा महत्व है। कोई भी पूजा की जाये, सबसे पहले गणेशजी की पूजा की जाती है। धर्मात्मा लोग प्रत्येक मास की कृष्णपक्ष की चतुर्थी को व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाले को व्रत के दिन की कहानी पढ़नी या सुननी होती है। यहाँ बारहों महीनों की गणेश व्रत की कथाएं संक्षेप में दी जा रही है।

         चैत्र मास की कथा

ये कहानी तब की है, जब सतयुग चल रहा था। एक राजा था। राजा का नाम था। मकरध्वज। मकरध्वज बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का राजा था और अपनी प्रजा का अपनी सन्तान की भांति पालन करता था। अतः उसके राज्य में प्रजा पूरी तरह सुखी ओर प्रसन्न थी। राजा पर मुनि यज्ञयवल्क्य का बड़ा स्नेह था। उनके ही आर्शीवाद से राजा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई।

राज्य का स्वामी यद्यपि मकरध्वज था, परन्तु राजकाज उसका एक विश्वासपात्र मन्त्री चलाता था। मन्त्री का नाम धर्मपाल था। धर्मपाल के पांच पुत्र थे। सभी पुत्रों का विवाह हो चुका था। सबसे छोटे बेटे की बहू गणेशजी की भक्त थी और उनका पूजन किया करती थी। गणेश चैथ व्रत भी करती थी। सास को बहू की गणेश-भक्ति सुहाती नहीं थी। पता नहीं क्यों, पर कोई उसे शंका रहती थी कि यह बहू हम पर कोई जादू-टोना-टोटका करती है। सास ने बहू द्वारा गणेश-पूजा को बंद कर देने के लिए अनेक उपाय किये, पर कोई उपाय सफल नहीं हुआ। बहू की गणेश जी पर पूरी आस्था थी, अतः वह विश्वास के साथ उनकी पूजा करती रही।

गणेशजी जानते थे कि मेरी पूजा करने के कारण सास अपनी बहू को परेशान करती है, अतः उसे पाठ पढ़ाने ( मजा चखाने ) के लिए राजा के पुत्र को गायब करवा दिया। फिर क्या था, हाय तौबा मच गयी। राजा के बेटे को गायब करने का सन्देह सास पर प्रकट किया जाने लगा। सास की चिन्ता बढ़ने लगी। छोटी बहू ने सास के चरण पकड़कर कहा- मांजी आप गणेशजी का पूजन कीजिये, वे विध्नविनाशक हैं, आपका दुःख दूर कर देंगे।

सास ने बहू के साथ गणेश-पूजन किया। गणपति ने प्रसन्न होकर राज के पुत्र को लाकर दे दिया। सास, जो बहू पर अप्रसन्न-सी रहती थी, प्रसन्न रहने लगी और साथ ही गणेश-पूजन भी करने लगी।

 

चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी महात्मय (Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi Mahatmay)

एक समय की बात है जब कैलाश में माता पार्वती और भगवान गणेश विराजमान थे तब बारह माह की गणेश चतुर्थी का प्रसंद चल रहा था। तब माता पार्वती ने कुतुहल वश भगवान गणेश से पूछा

माता पार्वती – “हे पुत्र, चैत्र माह की कृष्णपक्ष की चतुर्थी(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) को तुम्हारे किस स्वरुप की पूजा की जाती है? और उसका विधान क्या है? वो मुजसे कहो।

माता पार्वती की जिज्ञासा को शांत करते हुए भगवान गणेश ने कहा – “हे माता, चैत्र माह की कृष्णपक्ष को आनेवाली चतुर्थी(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) को मेरेभालचंद्रस्वरुप की पूजा करनी चाहिये। इस दीन पुरे दीन व्रत रख कर रात्रि में षोडशोपचार से मेरा पूजन करना चाहिये। इस दीन व्रती को ब्राह्मण भोजन के अनन्तर पंचगव्य पान करके रहना चाहिए। यह पूर्णरूप से सभी संकटो का नाश करता है। इस व्रत के स्मरण मात्र से मनुष्य को सभी सिद्धियों की प्राप्ति सहज़ रूप से हो जाती है।

अब माता में आपको इस(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) व्रत से जुडी एक कथा के विषय में अवगत कराने जा रहा हुँ अतः आप इसे ध्यानपूर्वक सुनियेगा।

 

 

चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी कथा (Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi Katha)

सतयुग में मकरध्वज नामक एक राजा हुए थे। वे परम प्रजा पालक थे। उनके राज्य में सभी लोग सुखी और समृद्ध जीवन व्यतीत कर रहे थे। सभी वर्ण के लोग आपने धर्म का पूर्ण निष्ठां से पालन किया करते थे। प्रजा निरोगी और स्वस्थ जीवन व्यतीत करती थी। प्रजा में चोर और डाकू आदि का कोई भय नहीं था। नगर में रहने वाले सभी लोग उदार, दानी, धार्मिक, बुद्धिमान और सुन्दर थे। इतना सुन्दर राज्य होने के पश्चात राजा पुत्र सुख से वंचित थे। पुत्ररत्न की प्राप्ति हेतु उन्होंने कई यत्न किये अंतः महर्षि याज्ञवल्क्य की कृपा से उन्हें पुत्रधन की प्राप्ति हुई।

पुत्र रत्न की प्राप्ति होने पर राजा की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा था। अब वो अपने राज्य का सम्पूर्ण कार्यभार अपने मंत्री धर्मपाल को सौंप कर, विविध प्रकार के खेल खिलौनो से अपने राजकुमार का पालन पोषण करने लगे।

यहाँ राज्य का शासन अपने हाथो में जाने से मंत्री धर्मपाल धन धान्य से संपन्न हो गये। मंत्री महोदय को एक से बढ़कर एक पुत्रो की प्राप्ति हुई। सभी पुत्रो का विधि विधान से पुरे हर्षोल्लास के साथ विवाह संपन्न किया गया। अब सभी मातृ पुत्र धन का उपभोग बड़े जतन से करने लगे। परिवार के सभी सदस्यो में सबसे छोटे पुत्र की पुत्रवधु बहुत धर्मपरायण थी।

वो भगवान गणेश की परम भक्त थी। चैत्र माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी आने पर उसने भगवान गणेश की पूर्ण श्रद्धा से आराधना और पूजा की और उनका व्रत अनुष्ठान भी किया। पूजन और व्रत से विचलित हो कर सास अपनी पुत्रवधु से कहने लगी – “अरी..!! क्या तंत्र मंत्र द्वारा मेरे पुत्र को अपने वश में कराने के उपाय कर रही है।

अपनी सास द्वारा बारम्बार निषेध किये जाने पर भी अपनी पुत्रवधु में कोई बदलाव आता देख  सास पुनः बोली – “अरी दुष्टा..!! मेरे बार बार कहने पर भी तू मेरी बात को अनदेखा कर रही है, में तुझे पीटकर ठीक कर दूंगी। मुझे यह सब तांत्रिक अभिचार पसंद नहीं है।

अपनी सास की बात सुन पुत्रवधु ने विनम्रता से कहा – “हे सासु माँ, में संकटनाशक भगवान गणेश का व्रत कर रही हुँ। यह व्रत अनुष्ठान करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैअपनी पुत्रवधु की बात सुन क्रोधवश सासु ने अपने पुत्र से कहा – “हे पुत्र, तुम्हारी वधु जादू टोने पर उतारू हो गई है। मेरे बार बार समजाने पर भी उसने मेरी एक ना सुनी अब तुम ही इसे मर कर उसकी अकल को ठिकाने ले कर आओ।

में किसी गणेशजी को नहीं मानती, वे कौन है और उसका व्रत कैसे होता है। हम लोग तो राजकुल से है हमारी भला किस विपत्ति को वो नष्ट करेंगे।

माता की आज्ञा को मानते हुए उसके पति ने उसे मारा और पिता। इतनी पीड़ा को सहन करते हुए भी उस पुत्रवधु ने व्रत को पूर्ण किया। व्रत के अंत में वो भगवान गणेश जी का स्मरण करते हुए प्रार्थना कराने लगी और कहने लगी – “हे विघ्नेश्वर..!!! हे गणपति..!! आप हमारे सास ससुर को अपना परचम दिखलाइये ताकि वो आपकी महिमा को समझ पाए और उनके मन में आपके प्रति श्रद्धाभाव जागृत हो।

अपने भक्त की करुण पुकार सुन भगवान गणेश जी ने देखते ही देखते राजा के पुत्र का अपहरण कर उसे धर्मपाल के महल में कही छुपा दिया। उसके बाद राजकुमार के सभी वस्त्रलंकारों को उतार कर राजमहल में फेंक दिए और खुद अंतर्ध्यान हो गये। इधर राजा ने प्रेम पूर्वक अपने पुत्र को पुकारा किन्तु उन्हें कोई प्रति उत्तर नहीं मिला। प्रति उत्तर ना मिलने पर उन्होंने शीघ्रता से पुत्र की ख़ोज शुरू कर दी। राजा को अपने महल में पुत्र की पुष्टि ना होने पर वो शीघ्रता से मंत्री धर्मपाल के महल में गये और वहाँ जा कर अपने पुत्र को खोजने लगे। उन्होंने सब से पूछामेरा राजकुमार कहा है? यहाँ उसके सभी वस्त्र और आभूषण मिल गये है किन्तु मेरा राजकुमार कहा चला गया है? किसने ऐसा निंदनीय कार्य किया है। हाय मेरा राजकुमार कहा है?”

राजा की व्याकुलता धीरे धीरे अब बढ़ने लगी थी। राजा की दशा को देख मंत्री धर्मपाल ने कहा – ” हे राजन, आपका चंचल पुत्र कहा है उसका मुझे कोई पता नहीं है। किन्तु में अभी पुरे राज्य में बाग़ बगीचे आदि स्थानों पर उसकी ख़ोज आरम्भ करता हुँ।

उसके बाद व्याकुल राजा नौकारों, सेवको आदि से कहने लगे।हे अंगरक्षकों, सेवको मेरे पुत्र का शीघ्र पता लगाइये। राजा का आदेश मिलाने मात्र से राजा के पुत्र की ख़ोज जोरो शोरो से शुरू हो गई किन्तु राजा के पुत्र का कोई पता नहीं चला। जब राजा के पुत्र का कही भी पता ना चला तब वो राजमहल में आके राजा के समक्ष डरते डरते यह निवेदन करने लगे – “हे राजन, हमें क्षमा करें अभी तक अपहरणकारियों का कोई पता नहीं चला है। राजकुमार को पुरे नगर में किसी ने आते जाते नहीं देखा है।

उनकी बाते सुनकर क्रोधवश हो कर राजा ने अपने मंत्री को बुलाया और कहा – “हे धर्मपाल..!! मेरा राजकुमार कहा है? मुझे साफ साफ बता दे की मेरा राजकुमार कहा है? उसके सभी वस्त्र आभूषण मुझे दिखाई दे रहे है केवल वही नहीं है। अरे नीच! मुझे बता दे की मेरा राजकुमार कहा है अन्यथा में तुझे और तेरे पुरे कुल का नाश कर दूंगा। इसमे जरा भी संदेह मत रखना। राजा द्वारा डांट पड़ने के कारण मंत्री विचलित हो गये।

मंत्री धर्मपाल ने राजा के समक्ष नात्मस्तक हो कर कहा – “हे भूपाल! मेरा विश्वाश की जिए, में अभी पता लगता हुँ। इस नगर में बालक अपहरणकर्ताओ का कोई गिरोह भी नहीं है ना की कोई डाकू आदि यहाँ वास करते है। किन्तु पता नहीं किस नाराधमी ने ऐसा नीच कर्म किया है और जाने कहा गायब हो गया है? धर्मपाल अब अपने महल कर अपनी पत्नी एवं पुत्रो से पूछने लगा। उसने अपनी सभी पुत्रवधुओ को बुला कर पूछा की यह नीच कर्म किसने किया है? यदि राजकुमार का पता नहीं चला तो राजन मुझे और मेरे पुरे वंश का विनाश कर देंगे।

अपने ससुर की बात को सुन सबसे छोटी पुत्रवधु ने कहा – “हे पिताश्री..!!, आप इतने चिंतित क्यों हो रहे है। यह सब भगवान श्री गणेश की लीला है उन्हीं के ही कोप का परिणाम आप भुगत रहे है। अतः आप भगवान श्री गणेश की पूजा आराधना करें। अगर राजा से ले कर नगर के सभी प्रजा जन पूर्ण श्रद्धा के साथ गणेश जी की चतुर्थी(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) का व्रत करें तो व्रत के फल स्वरुप भगवान गणेश जी राजकुमार को अवश्य लौटा देंगे, मेरा वचन कभी मिथ्या नहीं होता।

छोटी पुत्रवधु के बात सुन कर ससुर ने कहा – “हे पुत्री, तुम सत्य कह रही हो। तुम धन्य हो..! हमारे कुल में एक तुम ही हो जो मेरा और मेरे कुल का उद्धार कर दोगी। भगवान गणेश जी की पूजा कैसे की जाती है वो तुम मुझे बताओ। हे सुलक्षनी, में मंद बुद्धि होने के कारण भगवान गणेश के व्रत का महिमा नहीं जनता हुँ। अतः मुझ पर और मेरे परिवार को उनके किये गये अपराध की क्षमा दे कर राजकुमार का पता लगावा दो। तब सभी लोगो ने भगवान श्री गणेशजी का कष्टनाशक चतुर्थी(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) के व्रत अनुष्ठान किया।

राजा सहित सभी नगरजनों ने गणेश जी को प्रसन्न करने हेतु व्रत का अनुष्ठान किया। सभी के व्रत अनुष्ठान के प्रभाव से गणेश जी प्रसन्न हो गये। और देखते ही देखते सभी लोगो के सामने उन्होंने राजकुमार को प्रगट किया। राजकुमार को अपने समक्ष देख राजा सहित सभी नगर वासियो की ख़ुशी का कोई ठिकाना रहा। वो बस राजकुमार को आश्चर्यचकित हो कर देखने लगे। राज अपने पुत्र को पुनः प्राप्त कर के ख़ुशी से फुले नहीं समय रहे थे। भगवान गणेश की लीला को देख वो नतमस्तक हो कर कहने लगे – “भगवान गणेश जी आप धन्य हो और धर्मपाल तुम्हारी छोटी पुत्रवधु भी धन्य है। जिसकी कृपा से आज मेरा पुत्र यमराज के वंहा जा कर भी दुबारा लौट आया। अतः आप सभी नगरजन इस संतानदायक(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) व्रत को विधिवत करते रहे।

श्री गणेश जी बोले – “हे माता, इस(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) व्रत से बढ़कर इस लोक तथा सभी अन्य लोको में और कोई व्रत नहीं है। इस(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) कथा का श्रवण युधिष्ठिर ने भगवान श्री हरी कृष्ण से सुना था और इसी चैत्र माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली चतुर्थी का व्रत करके उन्होंने अपने खोये हुए राज्य को फिर से प्राप्त किया था।

 

चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था. इसलिए चैत्र पूर्णिमा का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री हनुमान प्रभु श्री राम के सहयोग के लिए धरती पर जन्मे थे. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त होती है. अगर आप भी इस दिन चैत्र पूर्णिमा का व्रत रख रहे हैं, तो इस पौराणिक कथा का श्रवण करना शुभ माना गया है

चैत्र पूर्णिमा व्रत कथा 

पैराणिक कथा के अनुसार एक नगर में सेठ-सेठानी रहते थे. सेठानी रोजाना भगवान श्री हरि की पूजा भक्ति-भाव से किया करती, लेकिन सेठानी का पूजा करना उसके पति को बिल्कुल पसंद नहीं था. इस कराण एक दिन सेठ ने उसे घर से निकाल दिया. सेठानी घर से निकलकर जंगल की ओर चल दी. रास्ते में सेठानी ने देखा कि जंगल में चार आदमी मिट्टी खोद रहे हैं, ये देखकर सेठानी ने उनसे बोला कि आप लोग मुझे किसी काम पर रख लो.  

सेठानी के कहने पर उन्होंने सेठानी को नौकरी पर रख लिया. लेकिन सेठानी बहुत कोमल थी, इस वजह से उसके हाथ पर छाले पड़ गए. यह देख चारों आदमी ने सोठानी से काम छोड़ने की बात कही. उन्होंने कहा कि इसकी जगह तुम हमारे घर का काम कर दोसेठानी के मान जाने पर वे उसे अपने घर ले गए. वहां वे चारों आदमी चार मुट्ठी चावल लाते और उसे बांटकर खा लेते. ये देख सेठानी को बहुत बुरा लगता. इसे देख सेठानी ने उन चारों आदमी को 8 मुट्ठी चावल लाने को कहा

सेठानी की बात मानकर चारों आदमी 8 मुट्ठी चावल लाए. इन चावलों का सेठानी ने भोजन बनाया और भगवान विष्णु को भोग लगाकर सभी आदमियों को परोस दिया. इस बार चारों आदमियों को भोजन बहुत स्वादिष्ट लगा और सेठानी से खाने की तारीफ करते हुए इसका राज पूछा. तो सेठानी ने कहा कि ये भोजन भगवान विष्णु का झूठा है. इसी वजह से ये आपको स्वादिष्ट लग रहा हैउधर, सेठानी के जाने के बाद से सेठ भूखा रहने लगा. आसपास के लोग उसे ताने मारने लगे कि ये पत्नी की वजह से ही खाना खा रहा था. लोगों की बातें सुनकर सेठ सेठानी को जंगल में देखने निकल गया. रास्ते में उसे वही चार आदमी मिट्टी खोदते हुए दिखाई दिए. सेठ ने उन्हें कहा कि तुम मुझे काम पर रख लो

तब चारों आदमी ने उसे भी काम पर रख लिया. लेकिन सेठानी की तरह मिट्टी खोदने से सेठ के हाथों में भी छाले पड़ गए. ये देखकर उन्होंने सेठ को भी घर का काम करने की सलाह दी. सेठ भी उनकी बात मानकर उनके घर चल दिया. घर पहुंचकर सेठ ने सेठानी को पहचान लिया, लेकिन सेठानी घूंघट में होने के कारण सेठ को पहचान नहीं पाईहर दिन की तरह इस बार भी सेठानी ने भगवान विष्णु को भोग लगाकर सभी को खाना परोस दिया. लेकिन जैसे ही सेठानी सेठ को खाना परोसने लगी, तो भगवान विष्णु ने सेठानी का हाथ पकड़ लिया और कहा कि ये तुम क्या कर रही हो. सेठानी बोली, मैं कुछ नहीं कर रही, मैं तो भोजन परोस रही हूं.

चारों भाइयों ने सेठानी से कहा कि हमें भी भगवान विष्णु के दर्शन कराओ. सेठानी के अनुरोध करने पर भगवान विष्णु उन सभी के सामने प्रकट हो गए. यह देख सेठ ने सेठानी से क्षमा मांगी और उसे हाथ पकड़कर घर चलने को कहा. तब चारों भाइयों ने बहन को बहुत सारा धन देकर विदा किया. तब से सेठ भी भगवान विष्णु का भक्त बन गया और पूरी श्रद्धा से उनकी पूजा करने लगा. इससे उसके घर में फिर से धन की बरसात होने लगी. ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सत्यनारायण भगवान के साथ हनुमान जी, प्रभु श्री राम और माता सीता की कृपा भी प्राप्त होती है

 

 

           

डिस्क्लेमर: यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं. इसकी पुष्टि नहीं करता. इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह अवश्य लें.

 

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