नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी पूजन विधि, कथा, मंत्र navratri ke athve din mahagauri pujan vidhi,katha,mantra

 


नवरात्रि
का आठवां दिन - महागौरी

नवरात्रि के आठवें दिन अन्नपूर्णा महागौरी की उपासना, जानिए पूजन विधि, पूजा से लाभ

 

नवरात्रि का आठवां दिन ( Eighth Day of Navratri)

नवरात्रि में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का एक सुंदर समागम देखने को मिलता है। नवरात्रि की पूजा कई मायनों में काफी ख़ास होती है, इसमें किए जाने वाले हर कार्य, हर दिन का अपना महत्व होता है। नवरात्री के आठवे दिन का भी बहुत अधिक महत्व होता है, इसे अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो नवरात्री की नवमी को कन्या पूजन का आयोजन किया जाता है लकिन कई जगहों पर नवरात्री के अष्टमी पर कन्या पूजा का विधान है। नवरात्री की अष्टमी माँ दुर्गा के आठवे स्वरूप माँ महागौरी को समर्पित है। आइए इस लेख में जानें नवरात्र के आठवे दिन का महत्व, पूजा विधि और इससे जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी।

नवरात्रि के आठवें दिन का महत्व (Importance of the Eight day of Navratri)

नौं दिनों के महाउत्सव का आठवां दिन माता के महागौरी स्वरूप को समर्पित है। जिसे अष्टमी या महाअष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। माता का यह स्वरूप बहुत ही सौम्य और करुणामई है। ऐजो भी जातक देवी के इस स्वरूप की पूजा करता है, उसे जीवन में हो रहे सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। माता का यह सौम्य रूप है मनुष्य को अभय दान प्रदान करने वाला है। माता के इस स्वरूप की पूजा करने से सभी पाप, कष्ट, रोग और दुख मिट जाते हैं। जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं एवं सुख- समृद्धि प्राप्त होती है। मां महागौरी को अन्नपूर्णा, ऐश्वर्य देने वाली और चैतन्यमयी के नाम से भी पुकारा जाता है।

मां महागौरी की पूजा: शक्ति का आठवां अवतार

नवरात्रि का आठवां दिन मां महागौरी की पूजा को समर्पित है। जिसमेंमहाशब्द का अर्थ असाधारण है, और गौरी शब्द का अर्थ है-शानदार। महागौरी का अर्थ है वह रूप जो कि सौन्दर्य से भरपूर है, जिसमें प्रकाश चमकता है।

माँ गौरी बहुत ही दयालु है। अपने भक्तों की सभी जरूरतों को हमेशा पूरा करती है। ऐसा माना जाता है जो भी इनकी पूजा अर्चना करते हैं, वो उनके सभी दुःख दर्द को हर लेती है। नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा करके अपने सभी कष्टों और चुनौतियों को दूर करें।

देवी महागौरी का स्वरूप

 

मां दुर्गा जी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है और नवरात्रि के आठवें दिन इनकी पूजा की जाती है। इनका वर्ण पूर्ण रूप से गौर है, इसलिए इन्हें महागौरी कहा जाता है। इनके गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से की गई है और इनकी आयु आठ वर्ष की मानी हुई है। इनके समस्त वस्त्र और आभूषण आदि भी श्वेत हैं। वृषभ पर सवार मां की चार भुजाएं हैं जिसमें ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर मुद्रा है और इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। धन-धन्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए मां गौरी की उपासना की जानी चाहिए।


मां महागौरी का वाहन

महागौरी का वाहन बैल है। उन्हें हमेशा एक बैल पर सवार दिखाया जाता है। बैल पर सवार होने की वजह से इनको वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है।

महागौरी मंत्र

देवी महागौर्यै नमः॥

महागौरी स्तुति

या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

मां महागौरी बीज मंत्र

श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:


मां महागौरी की पूजा का महत्व

ऐसा माना जाता है कि महागौरी की पूजा करने से आपके जीवन से सभी दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं। इनकी पूजा करने से अशुभ राहु के प्रभाव भी दूर होते है। नवरात्रि में महा अष्टमी ऐसा दिन माना जाता है, जब भक्तों को अपने जीवन से सभी कष्टों को दूर करने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।


दुर्गा अष्टमी पर मां महागौरी को पूजा में सफेद फूल, विशेष रूप से चमेली के फूल चढ़ाना चाहिए, और ऊपर दिए गये मन्त्रों का पाठ करना चाहिए। इस शुभ दिन पर कन्या पूजन का नियम भी होता है। इस दिन कन्यायों की पूजा की जाती है, फिर उनको खीर- पुड़ी खिलाई जाती है। बाद में उनकी पसंद की कोई वस्तु भी उन्हें भेंट की जाती है।


मां महागौरी की पूजन विधि
अष्टमी तिथि के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात कलश पूजन कर मां की विधि-विधान से पूजा करें। इस दिन मां को सफेद पुष्प अर्पित करें, मां की वंदना मंत्र का उच्चारण करें। आज के दिन मां की हलुआ, पूरी, सब्जी, काले चने और नारियल का भोग लगाएं। माता रानी को चुनरी अर्पित करें। अगर आपके घर अष्टमी पूजी जाती है तो आप पूजा के बाद कन्याओं को भोजन भी करा सकते हैं ये शुभ फल देने वाला माना गया है।

माँ महागौरी की पूजा विधि (Mata Mahagauri Puja Vidhi)

अष्टमी के दिन सर्वप्रथम सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

चौकी को साफ करके, वहां गंगाजल का छिड़काव करें, चौकी पर आपने एक दिन पहले जो पुष्प चढ़ाए थे, उन्हें हटा दें।

आपको बता दें, चूंकि चौकी की स्थापना प्रथम दिन ही की जाती है, इसलिए पूजन स्थल पर विसर्जन से पहले झाड़ू लगाएं।

इसके बाद आप पूजन स्थल पर आसन ग्रहण कर लें।

अब माता की आराधना शुरू करें- सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें।

अब गं गणपतये नमः का 11 बार जाप करके भगवान गणेश को नमन करें।

इसके बाद महागौर्यै नमः मन्त्र के द्वारा देवी महागौरी का आह्वान करें।

देवी जी के आह्वान के बाद, माता को नमन करके निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें और माँ महागौरी का ध्यान करें-

 

प्रथम पूज्य गणेश जी और देवी माँ को कुमकुम का तिलक लगाएं।

साथ ही, कलश, घट, चौकी को भी हल्दी-कुमकुम-अक्षत से तिलक करके नमन करें।

इसके बाद धुप- सुगन्धि जलाकर माता को फूल-माला अर्पित करें। आपको बता दें कि माता के महागौरी स्वरूप को सफेद रंग अतिप्रिय है, इसलिए उन्हें सफेद कनेर के पुष्प अर्पित करें। पुष्प माला पहनाएं और संभव हो पाए तो सफेद रंग के वस्त्र भी अर्पित करें।

नर्वाण मन्त्र ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे का यथाशक्ति अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार जप करें।

एक धुपदान में उपला जलाकर इस पर लोबान, गुग्गल, कर्पूर या घी डालकर माता को धुप दें, और इसके बाद इस धुप को पूरे घर में दिखाएँ। आपको बता दें कि कई साधक केवल अष्टमी या नवमी पर हवन करते हैं, वहीं कई साधक इस विधि से धुप जलाकर पूरे नौ दिनों तक साधना करते हैं। आप अपने घर की परंपरा या अपनी इच्छा के अनुसार यह क्रिया कर सकते हैं।

आप भोग के रूप में ऋतु फल के साथ चावल की खीर का माता को अर्पित कर सकते हैं।

अब आप दुर्गा सप्तशती का पाठ पढ़ें।

इसके बाद देवी महागौरी जी की आरती गाएं।



पूजा से लाभ
मां महागौरी का ध्यान-स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वाधिक कल्याणकारी है। मनुष्य को सदैव इनका ध्यान करना चाहिए, इनकी कृपा से आलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ये भक्तों के कष्ट जल्दी ही दूर कर देती हैं एवं इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। ये मनुष्य की वृतियों को सत की ओर प्रेरित करके असत का विनाश करती हैं। भक्तों के लिए यह देवी अन्नपूर्णा का स्वरूप हैं इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। ये धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं।



 

माँ महागौरी को क्या भोग लगाएं और उनका बीज मंत्र (What should be offered to Mata Mahagauri and her Beej Mantra)

आठवें दिन महागौरी को नारियल या उससे बनी मिठाइयों का भोग लगाएं, इससे मां खुश होती हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

**माँ महागौरी का बीज मंत्र: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम: **

 

मां महागौरी की कथा और उत्पत्ति

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव देवी सती के निधन के कारण बहुत दुखी थे। वे बहुत ही गहन समाधि में चले गए। सब देवतायों ने उनसे अपनी समाधि तोड़ने की बहुत प्राथना की। लेकिन भगवान शिव ने समाधि से बाहर आने से इनकार कर दिया और कई वर्षों तक अपनी समाधि में बैठे रहे।

इसी बीच, तारकासुर नाम का एक राक्षस स्वर्ग में अशांति पैदा कर रहा था। तब देवताओं ने मां दुर्गा की पूजा की और उनसे राक्षस को हराने का उपाय पूछा। तब देवी दुर्गा ने कहा की जब देवी सती का दूसरा जन्म होगा। वो भगवान शिव को उनकी समाधि से बाहर लेकर आएगी। उसके बाद उनका शिव से विवाह होगा, फिर उनकी संतान ही इस राक्षस का वध करेंगी। देवताओं की प्रार्थना के बाद, देवी सती ने हिमालय की बेटी मां शैलपुत्री के रूप में पुनर्जन्म लिया। उन्हें मां पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। एक दिन, नारद ऋषि मां पार्वती के महल में पहुंचे और उन्हें अपने पिछले जन्म के बारे में सब याद दिलाया।

तब नारद मुनि ने उनको बताया की भगवान शिव को पाने के लिए उन्हें कठिन तपस्या करनी होगी, ताकि भगवान शिव को उसके पिछले जीवन के बारे में पता चल सके। माँ पार्वती ने भी सहमति व्यक्त की और अपने शाही निवास की सभी सुख-सुविधाओं को त्याग दिया। वह एक जंगल में गई। वहा पर तपस्या करते हुए कई हजारों साल बीत गए, लेकिन मां पार्वती ने हार नहीं मानी। उन्होंने ठंड, मूसलाधार बारिश और तूफान सभी मौसम में लगातार तपस्या करती रही। कुछ समय बाद उन्होंने अन्न और जल भी त्याग दिया।

जिसकी वजह से उनका शरीर बहुत ही कमजोर हो गया। अत्यधिक तपस्या के कारण, माँ पार्वती ने अपनी सारी शक्तियां खो दीं। अंत में, भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए, उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से यह भी जान लिया की वे देवी सती का ही पुनर्जन्म है। सब कुछ जानने के बाद भगवान शिव और पार्वती से शादी करने को तैयार हो गये। चूंकि माँ पार्वती अधिक तपस्या की वजह से बहुत ही दुर्बल हो गई थी। इसलिए भगवान शिव ने उनका श्रृंगार किया। भगवान शिव ने अपने बालों से गंगा के पवित्र जल से माँ पार्वती नहलाया। इस पवित्र जल ने माँ पार्वती के शरीर से सभी अशुद्धियों को धो दिया, और वह अपनी शक्ति और तेज को दोबारा पा लेती है। माँ दुर्गा के इसी रूप को महागौरी के नाम से जाना जाता है।


 

दूसरी कथा वहीं माता के इस स्वरूप को लेकर एक और पौराणिक कथा काफी प्रचलित है। कालरात्रि के रूप में सभी राक्षसों का वध करने के बाद भोलेनाथ ने देवी पार्वती को काली कहकर चिढ़ाया था। माता ने उत्तेजित होकर अपनी त्वचा को पाने के लिए कई दिनों तक ब्रह्मा जी की कड़ी तपस्या की, ब्रह्मा जी ने तपस्या से प्रसन्न होकर मां पार्वती को साक्षात दर्शन दिया और हिमालय के मानसरोवर में स्नान करने के लिए कहा। ब्रम्हा जी की सलाह पर मां पार्वती ने मानसरोवर में स्नान किया, स्नान करते ही माता का शरीर दूध की तरह सफेद हो गया। माता के इस स्वरूप को महागौरी कहा गया।


नवरात्रि में कन्या पूजन का क्यों है महत्व ? जानिए पूजन विधि और किन बातों का रखें ध्यान

 

 

Navratri Kanya Pujan: नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए हम कन्या पूजन करते हैं जिससे जीवन में भय ,विघ्न और शत्रुओं का नाश होकर सुख-समृद्धि आती है। इन कन्याओं में मां दुर्गा का वास रहता है। कन्या पूजन नवरात्रि पर्व के किसी भी दिन या कभी भी कर सकते हैं। लेकिन अष्टमी और नवमी को कन्या पूजन के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इसके अलावा कन्या पूजन से समाज में नारी शक्ति को सम्मान मिलता है।



शक्ति का साक्षात स्वरूप हैं कन्याएं
नवरात्रि में कुमारी पूजन का बहुत महत्व है। दो वर्ष से दस वर्ष तक की कन्याओं का इस व्रत में पूजन करना चाहिए। देवी भगवत पुराण के अनुसार कन्या के जन्म का एक वर्ष बीतने के पश्चात कन्या को कुंवारी की संज्ञा दी गई है। अतः दो वर्ष की कन्या को कुमारी,तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति,चार वर्ष की कल्याणी,पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की कलिका,सात वर्ष की चंडिका,आठ वर्ष की शाम्भवी,नौ वर्ष की दुर्गा तथा दस वर्ष की कन्या सुभद्रा के सामान मानी जाती हैं। धर्मग्रंथों के  अनुसार तीन वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात शक्ति का स्वरुप मानी गई हैं। दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि दुर्गा पूजन से पहले भी कन्या का पूजन करें ,तत्पश्चात ही माँ दुर्गा का पूजन आरम्भ करें।



कन्या पूजन विधि
कन्याओं का पूजन करते समय सर्वप्रथम शुद्ध जल से उनके चरण धोने चाहिए। तत्पश्चात उन्हें स्वच्छ आसन पर बैठाएं। खीर, पूरी, चने, हलवा आदि सात्विक भोजन का माता को भोग लगाकर कन्याओं को भोजन कराएं। कन्याओं को सुमधुर भोजन कराने के बाद उन्हें टीका लगाएं और कलाई पर रक्षासूत्र बांधें। प्रदक्षिणा कर उनके चरण स्पर्श करते हुए यथाशक्ति वस्त्र, फल और दक्षिणा देकर विदा करें। इस तरह नवरात्रि पर्व पर कन्या का पूजन करके भक्त मां की कृपा पा सकते हैं।

कन्या पूजन में इन बातों का रखें ध्यान

देवीभागवत पुराण के अनुसार कुमारी पूजन के लिए कन्याएं रोग रहित होनी चाहिए। जो कन्या किसी अंग से हीन हो,कोढ़ या घावयुक्त हो,अंधी,कानी,कुरूप,बहुत रोमवाली या रजस्वला हो-उस कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए।

9 कन्याओं के साथ कम से एक बालक जरूर होना चाहिए। जिसे कन्या पूजन में बैठाना चाहिए। दरअसल शास्त्रों में बालक को भैरव का रूप माना जाता है।

कन्याओं के विदा होने के बाद तुरंत ही घर की साफ-सफाई नहीं करनी चाहिए।

कन्याओं के लिए जो भोजन बनाएं, उसमें भूलकर भी लहसुन-प्याज का प्रयोग करें।

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