नवरात्रि के सातवें दिन करें मां कालरात्रि का पूजन,व्रत कथा, मंत्र Navratri ke satva din ki katha
नवरात्रि के सातवें दिन करें मां कालरात्रि का पूजन, पढ़ें व्रत कथा, आरती और मंत्र
चैत्र नवरात्रि का पावन पर्व देशभर में बड़े ही धूमधाम और भक्तिभाव के साथ मनाया जा रहा है. नवरात्रि में पूरे नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा करने का महत्व है. नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन मां कुष्मांडा, पांचवे दिन मां स्कंदमाता और छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की गई. अब नवरात्रि के सातवें दिन मंगलवार 28 मार्च
2023 को मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाएगी. मां कालरात्रि की पूजा करने से आसुरी शक्तियों और दुष्टों का विनाश होता है. मां कालरात्रि का पूजा मंत्र है-
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:
माँ कालरात्रि बीज मंत्र का जाप एक माला अर्थात 108 बार करने से व्यक्ति भय मुक्त होता है. दुर्घटना से मुक्ति मिलती है. माँ कालरात्रि की उपासना मंत्र से समाज में यश और सम्मान को प्राप्त करता है और निरंतर उन्नति की ओर आगे बढ़ता है.
दुर्गा जी का सातवां स्वरूप कालरात्रि है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहते हैं। असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था। इनकी पूजा शुभ फलदायी होने के कारण इन्हें 'शुभंकारी' भी कहते हैं।
देवी कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है इनके बाल बिखरे हुए हैं तथा इनके गले में विधुत की माला है। इनके चार हाथ है जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार तथा एक हाथ में लोहे का कांटा धारण किया हुआ है। इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। इनके तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है। कालरात्रि का वाहन गर्दभ(गधा) है।
इस देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है. दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है जो भक्तों को हमेशा निडर, निर्भय रहने का वरदान देता है.
कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए। शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा।
शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया तथा शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया.
नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। भक्तों द्वारा इनकी पूजा के उपरांत उसके सभी दु:ख, संताप भगवती हर लेती है। दुश्मनों का नाश करती है तथा मनोवांछित फल प्रदान कर उपासक को संतुष्ट करती हैं।
आज नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि का पूजन किया जाएगा। इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित होता है। ये दुष्टों का संहार करती हैं। इनका रूप देखने में अत्यंत भयंकर है परंतु ये अपने भक्तों को हमेशा शुभ फल प्रदान करती हैं, इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। इनका वर्ण काला है व तीन नेत्र हैं, मां के केश खुले हुए हैं और गले में मुंड की माला धारण करती हैं। ये गदर्भ (गधा) की सवारी करती हैं। इनके नाम का उच्चारण करने मात्र से बुरी शक्तियां भयभीत होकर भाग जाती हैं।जानते हैं मां कालरात्रि की कथा, पूजा विधि, मंत्र व प्रिय भोग
मां कालरात्रि का स्वरूप
मां कालरात्रि का स्वरूप भयावह है और मां का रंग उनके नाम की तरह की घने अंधकार सा बिल्कुल काला है. इनके सिर के बाल बिखरे हुए हैं और मां ने गले में विद्युत के समान चमकीली माला धारण की है. मां कालरात्रि के तीन नेत्र हैं, जोकि ब्रह्मांड के समान गोल हैं. मां की सवारी गर्दभ यानी गधा है. मां के ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ में वर मुद्रा है, दाहिनी तरफ ने नीचे वाले हाथ में अभय मुद्रा है. बाईं ओर वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग है. मां कालरात्रि की पूजा से आसुरी शक्तियों का विनाश होता है और दैत्य, भूत-पिशाच, दानव सभी इनके नाम से भी दूर चले जाते हैं.
मां कालरात्रि आराधना
मंत्र-
'ॐ
जयंती मंगला
काली भद्रकाली कपालिनी।
'दुर्गा
क्षमा शिवा
धात्री स्वाहा
स्वधा नमोस्तु
ते।
मां कालरात्रि का प्रिय भोग-
मां
कालरात्रि को
गुड़ व
हलवे का
भोग लगाना
चाहिए, इससे
वे प्रसन्न
होती हैं
और भक्तों
की मनोकामना पूर्ण
करती हैं।
कालरात्रि माता
की पूजा
विधि-
·
मां कालरात्रि की पूजा के लिए सुबह
चार से
6 बजे तक
का समय
उत्तम माना
जाता है।
·
इस दिन
प्रातः जल्दी
स्नानादि करके
मां की
पूजा के
लिए लाल
रंग के
कपड़े पहनने
चाहिए।
·
इसके बाद
मां के
समक्ष दीपक
प्रज्वलित करें।
·
अब फल-फूल मिष्ठान
आदि से
विधिपूर्वक मां
कालरात्रि का
पूजन करें।
·
पूजा के
समय मंत्र
जाप करना
चाहिए, तत्पश्चात मां कालरात्रि की आरती करनी
चाहिए।
·
इस दिन
काली चालीसा,
सिद्धकुंजिका स्तोत्र,
अर्गला स्तोत्रम आदि चीजों का पाठ करना
चाहिए।
·
इसके अलावा
सप्तमी की
रात्रि में
तिल के
तेल या
सरसों के
तेल की
अखंड ज्योति
भी जलानी
चाहिए
साफ और स्वच्छ कपड़े पहन कर कलश पूजा करनी चाहिए। इसके बाद सभी देवताओं की पूजा के बाद माँ कालरात्रि की पूजा भी करनी चाहिए। लाल चम्पा के फूलों से माँ प्रसन्न होती हैं। दूध , खीर या अन्य मीठे प्रसाद का भोग लगाना चाहिए। लाल चन्दन , केसर , कुमकुम आदि से माँ को तिलक लगाएँ। अक्षत चढ़ाएं और माँ के सामने सुगंधित धूप और अगरबत्ती आदि भी लगाएँ।
तंत्र साधना के लिए नवरात्रि के सातवे दिन का विशेष महत्व होता है। कई तांत्रिक और साधक इस दिन का खास इंतज़ार करते हैं। दानव , दैत्य , राक्षस , भूत , प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। कालरात्रि ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं अतः इनके उपासकों को अग्नि-भय , जल-भय , जंतु-भय , शत्रु-भय , रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है। इस दिन माँ के पूजन से भूत प्रेत बाधा आदि भय मन से दूर होते हैं।
दरिद्रता को दूर करने के लिए इस दिन गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाकर प्रसाद वितरण करना चाहिए।
मां कालरात्रि कथा
एक
पौराणिक कथा
के अनुसार,
एक रक्तबीज
नाम का
राक्षस था।
मनुष्य के
साथ देवता
भी इससे
परेशान थे।रक्तबीज दानव
की विशेषता
यह थी
कि जैसे
ही उसके
रक्त की
बूंद धरती
पर गिरती
तो उसके
जैसा एक
और दानव
बन जाता
था। इस
राक्षस से
परेशान होकर
समस्या का
हल जानने
सभी देवता
भगवान शिव
के पास
पहुंचे। भगवान
शिव को
ज्ञात था
कि इस
दानव का
अंत माता
पार्वती कर
सकती हैं।
भगवान शिव
ने माता
से अनुरोध
किया। इसके
बाद मां
पार्वती ने
स्वंय शक्ति
व तेज
से मां
कालरात्रि को
उत्पन्न किया।
इसके बाद
जब मां
दुर्गा ने
दैत्य रक्तबीज
का अंत
किया और
उसके शरीर
से निकलने
वाले रक्त
को मां
कालरात्रि ने
जमीन पर
गिरने से
पहले ही
अपने मुख
में भर
लिया। इस
रूप में
मां पार्वती
कालरात्रि कहलाई।
मां कालरात्रि की कथा (Maa Kaalratri Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, रक्तबीज नामक एक दैत्य ने चारों ओर हाहाकार मचा रखा था. उसके आतंक से मानव से लेकर देवता सभी परेशान थे. रक्तबीज को ऐसा वरदान प्राप्त था कि, उसके रक्त की बूंद धरती पर गिरते ही उसी के समान एक और शक्तिशाली दैत्य तैयार हो जाएगा. इस तरह रक्तबीज की सेना तैयार होती गई और उसका आतंक भी बढ़ता गया. रक्तबीज से परेशान होकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे. शिव जी जानते थे कि रक्तबीज का अंत केवल माता पार्वती ही कर सकती हैं. इसलिए उन्होंने माता पार्वती से अनुरोध किया. तब माता पार्वती ने अपनी शक्ति और तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया.
मां कालरात्रि का रूप रौद्र और विकराल था. गर्दभ की सवारी, काला रंग, खुले केश, गले में मुंडमाला, एक हाथ वर मुद्रा में, एक हाथ अभय मुद्रा में, एक हाथ में लोहे का कांटा और एक हाथ में खड्ग. मां कालरात्रि ने रक्तबीज का वध करते हुए उसके शरीर से निकलने वाले रक्त के बूंद को जमीन पर गिरने से पहले ही पी लिया और इस तरह से मां ने रक्तबीज के आतंक से मानव और देवताओं को मुक्त कराया. मां के इस रूप को कालरात्रि और कालिका भी कहा जाता है.
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