एक मोर की विष्णु भक्ति | Ek Mor ki Vishnu Bhakti – Dharmik Kahani

 

एक मोर की विष्णु भक्ति | Ek Mor ki Vishnu Bhakti – Dharmik Kahani


कनकपुर गॉव में भगवान विष्णु का एक मन्दिर था। उस मन्दिर के आगे एक सुन्दर व काफी बड़ा बाग था। वहीं एक छोटी सी कुट्यिा में बाग का माली जीतो अपनी पत्नि रामा के साथ रहता था। जीतो सारे दिन बाग की देखभाल करता पेड़ों को पानी देता था। रामा घर काम करती थी। घर का काम समाप्त होने के बाद वह अपनी कुट्यिा में तो कभी मन्दिर में जाकर भगवान विष्णु के भजन गाया करती थी।

एक दिन वह अपनी कुट्यिा के बाहर एक पेड़ के नीचे बैठी भजन गा रही थी। तभी उसे एक मोर दिखाई दिया वह रामा के आस पास धूम रहा था और अपने पंख फैला कर नाच रहा था। रामा ने मोर को नाचता देखा तो उसे बहुत अच्छा लगा। जब तक वह भजन गाती रही मोर वहीं घूमता रहा उसके बाद वह कहीं चला गया।

शाम को रामा ने जीतो को मोर के बारे में बताया तो उसने कहा ‘‘मैंने तो कोई मोर नहीं देखा।’’

अगले दिन भी जब रामा भजन गाने बैठी तो वह मोर आ गया और भजन सुनकर नाचता रहा फिर चला गया।

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रामा भजन समाप्त होने पर उसे ढूंढती रही लेकिन वह मोर कहीं नजर नहीं आया।

अगले दिन रामा मन्दिर गई और मन्दिर के पुजारी से मोर के बारे में पूछा पुजारी ने कहा ‘‘बेटी मैंने तो कोई मोर नहीं देखा हो सकता है पास के जंगल से आया हो’’

तब रामा ने कहा ‘‘लेकिन बाबा मैं जब भजन गाती हूं वह तभी आता है और जैसे ही भजन पूरा हो जाता है वह चला जाता है उसके बाद कहीं नजर नहीं आता’’

तब पुजारी बाबा ने कहा ‘‘बेटी वह को साधु या संत होगा जिसका जन्म मोर के रूप में हुआ है वह जब भी भगवान श्री विष्णु के भजन सुनता है तो झूमने लगता है’’

इसी तरह कुछ दिन बीत गये वह मोर हर दिन भजन सुनने आने लगा था।

एक दिन रामा ने जीतो से कहा ‘‘वह मोर हर दिन भजन सुनने आता है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा’’

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तब जीतो ने कहा ‘‘अरे बाग हैं पक्षी, उड़ते उड़ते आ जाते हैं ऐसे ही मोर आ जाता होगा तुझे लगता है वह तेरा भजन सुनने आता है हो सकता है वह खाने की तलाश में आता हो’’

अगले दिन जब वह मोर आया तो रामा ने बीच में ही भजन गाना बंद कर दिया और मोर के सामने जाकर बैठ गई उसे देख कर मोर जाने लगा तब रामा ने कहा ‘‘हे पक्षीराज मयूर तुम साधारण मयूर नहीं हो मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहती हूं तुम कौन हो’’

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यह सुनकर मोर रोने लगा उसने इंसान की आवाज में कहा ‘‘माता मैं पिछले जन्म में एक शिकारी था। जंगल से मोर पकड़ कर उनके पंख निकाल कर बाजार में बेचा करता था। एक बार जंगल में मैंने एक मोर पकड़ा उसके पंख निकालने के कारण वह घायल हो गया और मरने लगा तब उसने मुझसे कहा ‘‘हे दुष्ट शिकारी तूने धन के लालच में न जाने कितने मोरो को मारा होगा हमारे पंख निकालने के कारण जो कष्ट हमें होता है वह तू कभी नहीं समझ सकता इसलिए मैं तुझे श्राप देता हूं कि अगले जन्म में तू मोर बने और तुझे भी इसी प्रकार कष्ट हो’’

यह कहकर वह रोने लगा तब रामा ने पूछा ‘‘तुमने जो किया उसकी सजा तो तुम्हें मिल रही है लेकिन तुम इंसान की तरह कैसे बोल लेते हो और इस श्राप से तुम्हें कैसे मुक्ति मिल सकती है।’’

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तब उस मोर ने कहा ‘‘आज जब कोई मेरे पंख निकालता है तो मुझे बहुत दर्द होता है। लेकिन इन कष्टों को सहते हुए जब से मेरा जन्म हुआ है। मैंने श्रीहरिविष्णु नाम का जाप शुरू कर दिया। इस जाप के कारण मेरे कष्ट कम हो गये आपको भजन गाता देख कर मेरा मन नाचने को बैचेन हो जाता है। भगवान श्री हरि विष्णु की मुझ पर बहुत कृपा है। मैं कभी भी अपना रूप बदल सकता हूं’’

यह कहकर वह सुन्दर लड़के के रूप में प्रकट हो जाता है। उसे देख कर रामा बहुत खुश होती है और पूछती है ‘‘किन्तु तुम किसी और को क्यों नहीं दिखाई देते’’

तब मोर रूपी लड़के ने कहा मैं इंसान के रूप में रहता हूं किन्तु जब कोई श्री हरि विष्णु के नाम का गुणगान करता है तो मैं अपने को रोक नहीं पाता और मोर के रूप में नाचने लगता हूं।’’

रामा ने आगे पूछा ‘‘तुम्हें इस श्राप से कैसे मुक्ति मिल सकती है क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकती हूं’’

तब मोर ने कहा ‘‘माता यह बहुत कठिन है यदि आप अपने पति के साथ एक सप्ताह तक बिना अन्नजल ग्रहण किये यज्ञ का अनुष्ठान करें और मुझे पुत्र के रूप में पाने की कामना करें तो भगवान विष्णु की कृपा से मुझे मोर के जन्म से मुक्ति मिल जायेगी और में आपको पुत्र के रूप में प्राप्त हो जाउंगा’’

रामा ने शाम को यह बात जीतो को बताई जीतो ने मन्दिर के पुजारी से बात की और यज्ञ का अनुष्ठान किया सात दिन लगातार यज्ञ चलता रहा सातवें दिन यज्ञ की अन्तिम आहूति के साथ मोर ने अपने प्राण त्याग दिये और नौ महिने बाद रामा के गर्भ से एक तेजस्वी बालक के रूप में जन्म लिया।

भगवान विष्णु की कृपा से हर प्राणी को कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।


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