पीपल सींचने की कथा pipal sichane ki katha-pipal dev ki kahani

 

पीपल सींचने की कथा pipal sichane ki katha-pipal dev ki kahani #pipaldevtakikahani  




एक
बूढ़ा ब्राह्मण था वह रोज पीपल को जल से सींचता था पीपल में से रोज एक लड़की निकलती और कहती पिताजी मैं आपके साथ जाऊँगी। यह सुनते-सुनते बूढ़ा दिन दिन कमजोर होने लगा तो बुढ़िया ने पूछा की क्या बात है?

बूढ़ा बोला कि पीपल से एक लड़की निकलती है और कहती है कि वह भी मेरे साथ चलेगी। बुढ़िया बोली कि कल ले आना उस लड़की को जहाँ : लड़कियाँ पहले से ही हमारे घर में है वहाँ सातवीं लड़की और सही।

अगले दिन बूढ़ा उस लड़की को घर ले आया। घर लाने के बाद बूढ़ा आटा माँगने गया तो उसे पहले दिनों की अपेक्षा आज ज्यादा आटा मिला था। जब बुढ़िया वह आटा छानने लगी तो लड़की ने कहा कि लाओ माँ, मैं छान देती हूँ। जब वह आटा छानने बैठी तो परात भर गई।

उसके बाद माँ खाना बनाने जाने लगी तो लड़की बोली कि आज रसोई में मैं जाऊँगी तो बुढ़िया बोली कि ना, तेरे हाथ जल जाएँगे लेकिन लड़की नहीं मानी और वह रसोई में खाना बनाने गई तो उसने तरह-तरह के छत्तीसों व्यंजन बना डाले और आज सभी ने भरपेट खाना खाया। इससे पहले वह आधा पेट भूखा ही रहते थे।

रात हुई तो बुढ़िया का भाई आया और कहने लगा कि दीदी मैं तो खाना खाऊँगा। बुढ़िया परेशान हो गई कि अब खाना कहाँ से लाएगी।

लड़की ने पूछा की माँ क्या बात है? उसने कहा कि तेरा मामा आया है और रोटी खाएगा लेकिन रोटी तो सबने खा ली है अब उसके लिए कहाँ से लाऊँगी। लड़की बोली कि मैं बना दूँगी और वह रसोई में गई और मामा के लिए छत्तीसों व्यंजन बना दिए। मामा ने भरपेट खाया और कहा भी कि ऎसा खाना इससे पहले उसने कभी नहीं खाया है। बुढ़िया ने कहा कि भाई तेरी पावनी भाँजी है उसी ने बनाया है।

शाम हुई तो लड़की बोली कि माँ चौका लगा के चौके का दीया जला देना, कोठे में मैं सोऊँगी। बुढ़िया बोली कि ना बेटी तू डर जाएगी लेकिन वह बोली कि ना मैं ना डरुँगी, मैं अंदर कोठे में ही सोऊँगी। वह कोठे में ही जाकर सो गई।

आधी रात को लड़की उठी और चारों ओर आँख मारी तो धन ही धन हो गया। वह बाहर जाने लगी तो एक बूढ़ा ब्राह्मण सो रहा था। उसने देखा तो कहा कि बेटी तू कहाँ चली? लड़की बोली कि मैं तो दरिद्रता दूर करने आई थी। अगर तुम्हें दूर करवानी है तो करवा लो। उसने बूढे के घर में भी आँख से देखा तो चारों ओर धन ही धन हो गया।

सुबह सवेरे सब उठे तो लड़की को ना पाकर उसे ढूंढने लगे कि पावनी बेटी कहां चली गई। बूढ़ा ब्राह्मण बोला कि वह तो लक्ष्मी माता थी जो तुम्हारे साथ मेरी दरिद्रता भी दूर कर गई।

आप सभी को दीपोत्सव कि बहुत बहुत शुकामनाएं 🙏🙏

मां लक्ष्मी की कृपा आप पर सदैव बनी रहे

पीपल- पथवारी की कथा
एक समय एक गूजरी थी. उसने अपनी बहू को एक दिन दूध- दही बेचने को कहा. वह बेचने गई तो रास्ते में औरतें पीपल- पथवारी सींचती हुई दिखी. इस पर उसने उन औरतों से पूछा कि यह क्या कर रही हो? औरतों ने कहा कि हम पीपल पथवारी सींच रही है. इससे घर में धन-धान्य बढ़ता है और खोया पति भी मिल जाता है. बहू बोली, ऐसी बात है तो मैं पानी की जगह दूध दही से सीचूंगी. गूजरी बहू ने रोज दूध- दही बेचते समय पीपल पथवारी को दूध-दही से सींचना शुरू कर दिया. जब सास दूध- दही के रुपये मांगती तो वह कह देती कि महीना पूरा होने पर हिसाब दे देगी. इसके बाद जब कार्तिक का महीना पूरा हो गया तो वह पीपल- पथवारी के चरणों में पड़ गई.

इस पर पीपल- पथवारी ने पूछा कि क्या बात है, तो उसने कहा कि आज सास दूध- दही का हिसाब मांगेगीपीपल पथवारी बोली कि मेरे पास तो रुपये नहीं है. यह पत्थर और पान के टुकड़े हैं, जिसे ले जा. बहु वही साथ ले गई और उसे एक अलमारी में रख दिया. इसके बाद डर के मारे वह चद्दर ओढ़ कर सो गई. कुछ देर में सास बोली की बहू दूध-दही के रुपये ला. बहू बोली, मैं जो लाई हूं वह अलमारी में रख दिये हैं. सास ने अलमारी खोलकर देखा तो उसमें हीरे- मोती जगमगा रहे थे. धन का भी ढेर लगा था. सास ने बहू को आवाज लगाई की बहू इतना धन कहां से लाई है. बहू ने आकर देखा तो सच में धन के भंडार भरे थे. इस पर बहू ने सास को सारी बात बता दी. सास ने कहा कि अब में भी कार्तिक मास में पीपल पथवारी को सीचूंगी

इसके बाद जब कार्तिक मास आया तो सास दूध- दही बचने लगी. पर वह दूध- दही बेचने के बाद खाली हांडी में पानी डालकर उससे पीपल पथवारी मैं पानी डाल देती. पूर्णिमा के दिन उसने अपनी बहू से कहा कि वह उससे दूध- दही के रुपये मांगे. जब बहू ने रुपये मांगे तो वह भी  पीपल पथवारी के चरण पकड़ कर कहने लगी कि मुझसे बहू रुपये मांग रही है. इस पर पीपल पथवारी में उसे भी पत्थर पान के टुकड़े दे दिए. जिसे सास ने अलमारी में ले जाकर रख दिए. इसके बाद जब बहू ने अलमारी खोलकर देखी तो उसमें कीड़े- मकोड़े मिले. इस पर सब कोई कहने लगा कि बहू तो सत की भूखी थी, लेकिन सास ने धन की भूखी होकर पीपल- पथवारी को सींचा था. इसलिए उसे फल नहीं मिला

हे पथवारी माता! जैसा बहू को दिया वैसा सबको देना, जैसा सास को दिया वैसा किसी को ना देना।

 

 

 

 

हिंदू धर्म में पीपल के पेड़ का विशेष महत्व है. इसे देवताओं का निवास स्थान माना जाता है. इसलिए इसकी सिंचाई पूजन पुण्यदायी कहा गया है, पर बहुत कम लोग जानते हैं कि पीपल की जड़ को  शनिवार के दिन सूर्योदय के बाद नहीं सींचना चाहिए. मान्यता के अनुसार ऐसा करने पर मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है. इस संबंध में भगवान श्रीकष्ण से जुड़ी एक कथा धर्म ग्रंथों में प्रचलित है. आज हम आपको वही कथा बताने जा रहे हैं.

शनिवार को पीपल की जड़ नहीं सींचने की कथा
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण की श्रेष्ठ पटरानी रुकमणी की एक छोटी बहन कुलक्ष्मी बहुत दरिद्र कलहकारी थी. उसका विवाह करने के लिए रुक्मणी ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना की थी. इस पर श्रीकृष्ण ने कुलक्ष्मी का विवाह वनवासी मुनि से करने की बात कही. ताकि वन में रहने से वह किसी से कलह नहीं कर पाए और मुनि के संग से सुधरने की संभावना भी रहे.

रुक्मणी की सहमति पर श्रीकृष्ण ने उसका विवाह एक वनवासी मुनि से करवा दिया. पर वह मुनि की संगत से भी नहीं सुधरी. उल्टे उसने मुनि की पूजा-अर्चना, दान- पुण्य हवन आदि कार्यों का भी विरोध किया. इस पर मुनि उसे जंगल में दूर एक ऊंचे पीपल के पेड़ के पास बिठाकर वापस आश्रम लौट आए. पीपल पर बैठी कुलक्ष्मी आधी रात को रोने लगी तो रुक्मणी के कहने पर श्रीकृष्ण उसके पास गए

श्रीकृष्ण उसे मुनि का विरोध नहीं कर उनके अनुसार आचरण करने की सलाह दी. पर उसने खुद को स्वभाव से लाचार बताते हुए ऐसा नहीं कर पाने की बात कही. ऐसे में भगवान ने कहा कि फिर तो ऐसी कलहकारी का एकांत में रहना ही अच्छा है.

 

बोले, मेरी आज्ञा है कि तुम लक्ष्मी सहित सभी देवताओं के वास वाले इस पीपल के वृक्ष में ही वास करो. शनिवार के दिन सूर्योदय से पहले पीपल पूजने वाले को तो लक्ष्मी मिलेगी, लेकिन सूर्योदय के बाद किया जाने वाला पूजन तुम्हें अर्पित होगा. उसकी पूजा तुम्हें मिलेगी और उसके घर में तुम्हारा वास हो जाएगा.

तब से ही शनिवार को सूर्योदय से पहले ही पीपल को सींचने पूजन का विधान बना. मान्यता बन गई कि सूर्योदय के बाद पीपल पूजन से घर में कुलक्ष्मी के वास से सर्वनाश हो जाता

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