ganesh ji ki kahani,बिन्दायक जी की कहानी (Bindaayak Ji ki kahani)

 

बिन्दायक जी की कहानी (Bindaayak Ji ki kahani)

एक गांव में एक भाई-बहिन रहते थे। बहिन का नियम था कि वह भाई का मुंह देखकर ही खाना खाती थी। बहिन की दूसरे गांव में शादी कर दी गई। वह ससुराल का सारा काम खत्म करके भाई का मुंह देखने आती। रास्ते में झाडियां ही झाडियां थी। उन्हीं झाड़ियों के बीच गणेश जी की मूर्ति और तुलसी माता का हरा-भरा पौधा भी था। वह रास्ते भर कहती जाती- ‘हे भगवान् मुझे अमर सुहाग और अमर पीहरवासा देना।’ झाड़ियों के कारण कई बार उसके परी में कांटा भी चुभ जाता था। एक दिन उसके पैरों से खून निकल रहा था। वह भाई का मुंह देखकर भाभी के पास बैठी। भाभी ने ननद से पूछा कि, ‘आपके पैरों म क्या हो गया?’ तब बहिन बोली कि, ‘रास्ते में झाड़ियों से मेरे पैर कट गए।’ भाभा ने अपने पति से कहा कि, ‘आपकी बहिन रोजाना आपका चेहरा देखकर हा खाना खाती है। वह जिस रास्ते से आती है वहां झाडियों के कारण उसके पैर कट जाते हैं। आप वहां का रास्ता साफ करवा दो।’ भाई ने कुल्हाड़ी लेकर सारा रास्ता साफ कर दिया। रास्ते में से विनायकजी, तुलसी माता को भी हटा दिया। इससे भगवान् नाराज हो गए और उसे हमेशा के लिए नींद में सोता हुआ छोड़ दिया। पत्नी जोर-जोर से रोने लगी। बहिन रोज की तरह भाई का मुंह देखने के लिए निकली तो उसने देखा रास्ता साफ है।


उसने देखा कि विनायक जी की मूर्ति भी यथा स्थान नहीं है और तुलसी माता का पौधा भी उखाड़ दिया गया है। उसने विनायक जी की मूर्ति को स्थापित किया और तुलसी माता का पौधा लगाया। वह भगवान् के पैर पकड़कर बोली, ‘हे भगवान्! अमर सुहाग देना, अमर पीहरवासा देना।’ इतना कहकर वह आगे चलने लगी। इतने में ही आकाशवाणी हुई। भगवान् ने कहा कि, ‘बेटी! खेजड़ी के पेड़ की सात पत्तियां ले जाकर उन्हें कच्चे दूध में घोलकर तेरे भाई के छींटे मारने से उठ जाएगा। यह बात सुनकर वह दौड़ती हुई अपने भाई के घर गई। उसने देखा कि भाभी रो रही थी। वह दूध से भरा बर्तन लाई और उसमें खेजड़ी की पत्तियां घोली। इस दूध के छींटे मारते ही भाई उठ गया। भाई ने उठते ही बहिन से कहा कि, ‘इस बार तो मुझे बहुत गहरी नींद आई।’ बहिन ने कहा कि, ‘ऐसी नींद किसी को भी नहीं आए।’ बहिन ने भाई से कहा कि, ‘भैया आपने रास्ता साफ किया तो विनायक जी की मूर्ति भी उखाड़ दी थी। जब मैं आई तो वापस मूर्ति की स्थापना की। विनायक जी ने मेरी सुनी।’


हे विनायक जी महाराज! जैसी उस बहिन की सुनी, वैसी सभी की सुनना। कहानी कहते की, सुनते की, सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करना।


जय श्री गणेश

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