ganesh ji ki kahani,बिन्दायक जी की कहानी (Bindaayak Ji ki kahani)

 

बिन्दायक जी की कहानी (Bindaayak Ji ki kahani)

एक विधवा मालिन थी। उसके चार साल का बच्चा उसकी सास उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार करती थी। एक दिन की बात सास ने पोते-बहू को घर से निकाल दिया। इधर-उधर भटकने के बाद मां-बे एक पेड़ के नीचे बैठ गए। वहां सामने ही बिन्दायकजी का मंदिर था। मंदिर से लौटते वक्त लोग उन्हें प्रसाद दे जाते। इससे उनका पेट भर जाता था। एक दिन मालिन ने सोचा कि यदि मैं जंगल से फूल लाकर बेचूं तो पैसे आने लगेंगे। उसने ऐसा ही किया। मालिन के फूल खूब बिकने लगे। अब वह फूल के साथ प्रसाद और पूजन सामग्री भी रखने लगी। उसके पास बहुत-से पैसे आ गए। उसने एक दुकान खोल ली। कुछ दिन बाद दुकान को संभालने के लिए एक आदमी भी रख लिया। आदमी और बेटा दुकान का काम संभालते और मालिन बिन्दायकजी की पूजा-पाठ करने लगी। मालिन ने एक बहुत अच्छा मकान भी बनवा लिया था। धीरे-धीरे काम और भी बढ़ गया। अब काम को संभालने के लिए और लोगों की भी जरूरत पड़ी। मालिन ने अपने बेटे को पढ़ने के लिए भेज दिया। जहां मालिन का बेटा पढ़ता था, वहीं पर राजा का बेटा भी पढ़ता था। दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी। मालिन का बेटा कई बार महल में भी गया। वहां राजा की बेटी ने एक बार मालिन के बेटे को देखा। तभी उसने मन ही मन में उससे विवाह करने की प्रतिज्ञा ली। उसने यह बात अपनी भाभी को बताई। भाभी ने कहा कि, ‘राजा वहां विवाह नहीं करवाएंगे।

राजकुमारी ने कहा कि, ‘मैंने प्रतिज्ञा कर ली कि मैं उसी लड़के के साथ विवाह करूंगी।’ राजा को जब राजकुमारी की प्रतिज्ञा का पता चला तो उन्होंने राजकमारी का विवाह मालिन के लड़के के साथ कर दिया। मालिन ने बेटे-बह को पहले बिन्दायकजी के मंदिर में धोक दिलवाई फिर घर में प्रवेश करवाया।

सारे गांव में यह बात फैल गई कि जो बिन्दायक जी की पूजा करता है वह व्यक्ति सुखी हो जाता है। यह बात फैलते ही मंदिर में बड़ी संख्या में लोग आने लगे। इससे मालिन की दुकान की कमाई ओर भी बढ़ गई। उधर मालिन की सास अन्न के एक-एक दाने के लिए भी मोहताज हो गई। उसने भी बिन्दायकजी के मंदिर के बारे में सुना था। वह वहां आई और उसी दुकान में काम मांगने गई। पोते ने दादी को पहचाना नहीं और काम पर रख लिया। कुछ समय बाद मालिन मंदिर से पूजा करके लौट रही थी। उसने सास को देखते ही पूछा कि आप यहां कैसे? सास बोली मुझे दुकान में काम मिल गया। मालिन बोली, ‘सासू जी यह दुकान तो आप की ही है। यह आपका पोता है। आपने हमें घर से निकाल दिया था लेकिन बिन्दायक जी की कृपा से आज हमारे पास सब कुछ है।’

हे बिन्दायकजी महाराज ! जैसा मालिन को दिया, वैसा सभी को देना। जैसे मालिन और उसके बेटे की लाज रखी, धन दिया वैसा सभी को देना। कहानी कहते को, सनते को सारे परिवार को देना।

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