‘भगवान पर द्रढ़ विश्वास होना चाहिए “- एक बोध कथा ‘ !hindi kahani

 


‘भगवान पर द्रढ़ विश्वास होना चाहिए “- एक बोध कथा ‘ !


किसी   नगर   में   एक   सेठ   जी   रहते   थे  .   उनके   घर   के   नजदीक   ही   एक   मंदिर   था  ।  एक   रात्रि   को   पुजारी   के   कीर्तन   की   ध्वनि                के   कारण   उन्हें   ठीक   से   नींद   नहीं   आयी  .

सुबह   उन्होंने   पुजारी   जी   को   खूब   डाँटा   कि   ~   यह   सब   क्या   है  ?

पुजारी   जी   बोले   ~ एकादशी   का   जागरण   कीर्तन   चल   रहा   था  .

सेठजी   बोले  ~  जागरण   कीर्तन   करते   हो  ,   तो   क्या   हमारी   नींद   हराम   करोगे   ?  अच्छी   नींद   के   बाद   ही   व्यक्ति   काम   करने   के               लिए   तैयार   हो   पाता   है   फिर   कमाता   है  ,   तब   खाता   है  .

*इसके   बाद   पुजारी   और   सेठ   के   बीच   हुआ   संवाद  –*

पुजारी  ~ सेठ  जी !  खिलाता   तो   वह   खिलाने   वाला   ही   है  .

सेठजी  ~   कौन   खिलाता   है  ?  क्या  तुम्हारा   भगवान   खिलाने   आयेगा  ?

पुजारी  ~  वही   तो  खिलाता  है.

सेठजी  ~ क्या   भगवान   खिलाता   है  !  हम   कमाते   हैं   तब   खाते   हैं  .

पुजारी   ~   निमित्त   होता   है   तुम्हारा   कमाना  ,   और   पत्नी   का   रोटी   बनाना  ,   बाकी   सब  को   खिलाने   वाला ,   सब   का   पालनहार  तो                 वह   जगन्नाथ   ही   है  .

सेठजी   ~   क्या   पालनहार  –  पालनहार   लगा   रखा   है  !   बाबा   आदम  के   जमाने   की   बातें   करते   हो  .  क्या   तुम्हारा   पालने   वाला  एक –           एक   को   आकर   खिलाता   है   ?   हम   कमाते   हैं   तभी   तो   खाते   हैं  .

पुजारी   ~ *  सभी   को   वही   खिलाता   है  .*

सेठजी   ~   हम   नहीं   खाते   उसका   दिया  .

पुजारी  ~ * नहीं   खाओ   तो   मार  कर   भी   खिलाता   है  *.

सेठ   ने   कहा   ~   पुजारी   जी   !   अगर   तुम्हारा   भगवान   मुझे   चौबीस   घंटों   में   नहीं   खिला   पाया   तो   फिर   तुम्हें   अपना   यह   भजन-          कीर्तन   सदा   के   लिए   बंद   करना   होगा  .

पुजारी  ~  मैं   जानता   हूँ   कि   तुम्हारी   पहुँच   बहुत   ऊपर   तक   है  ,   लेकिन   उसके   हाथ   बड़े   लम्बे   हैं  .  जब   तक   वह   नहीं   चाहता , तब           तक   किसी   का   बाल   भी   बाँका   नहीं   हो   सकता   आजमा  कर   देख   लेना  .

निश्चित   ही   पुजारी   जी   भगवान   में   प्रीति   रखने   वाले   कोई   सात्त्विक   भक्त   रहें   होंगे  .   पुजारी   की   निष्ठा   परखने   के   लिये   सेठ   जी               घोर   जंगल   में   चले   गये   और   एक   विशालकाय   वृक्ष   की   ऊँची   डाल   पर   ये   सोच  कर   बैठ   गये   कि   अब   देखें   इधर   कौन   खिलाने          आता   है  ?
चौबीस   घंटे   बीत   जायेंगे   और   पुजारी   की   हार   हो   जायेगी  .   सदा   के   लिए   कीर्तन   की   झंझट   मिट   जायेगी .

तभी   एक   अजनबी   आदमी   वहाँ   आया  .   उसने   उसी   वृक्ष   के   नीचे   आराम   किया  ,   फिर   अपना   सामान   उठा  कर   चल   दिया,  लेकिन      अपना   एक   थैला   वहीं   भूल   गया.  । *  भूल    या   कहो   या   छोड़   गया   कहो  *

*भगवान   ने   किसी   मनुष्य   को   प्रेरणा   की   थी   अथवा   मनुष्य   रूप   में    साक्षात्   भगवान   ही   वहाँ   आये   थे   यह   तो   भगवान   ही   जानें !*

थोड़ी   देर   बाद   पाँच   डकैत   वहाँ   पहुँचे   उनमें   से   एक   ने   अपने   सरदार   से   कहा  ,  उस्ताद  !  यहाँ   कोई   थैला   पड़ा   है  .

क्या   है   ?   जरा   देखो   !   खोल   कर   देखा  ,   तो   उसमें   गरमा   –   गरम   भोजन   से   भरा   टिफिन  !

उस्ताद   भूख   लगी   है  .   लगता   है   यह   भोजन   भगवान   ने   हमारे   लिए   ही   भेजा   है  .

अरे   !   तेरा   भगवान   यहाँ   कैसे   भोजन   भेजेगा   ?   हम   को   पकड़ने   या   फँसाने   के   लिए   किसी   शत्रु   ने   ही   जहर – वहर   डाल  कर  यह      टिफिन   यहाँ   रखा   होगा  ,  अथवा   पुलिस   का   कोई   षडयंत्र   होगा  .   इधर – उधर   देखो   जरा  ,  कौन   रखकर   गया   है  .

उन्होंने   इधर – उधर  देखा  ,  लेकिन   कोई   भी   आदमी   नहीं   दिखा  .  तब   डाकुओं   के   मुखिया   ने   जोर   से   आवाज   लगायी  ,  कोई   हो   तो        बताये   कि   यह   थैला   यहाँ   कौन   छोड़   गया   है  ?

सेठजी   ऊपर   बैठे  –  बैठे   सोचने   लगे   कि   अगर   मैं   कुछ   बोलूँगा   तो   ये   मेरे   ही   गले   पड़ेंगे  .

वे   तो   चुप   रहे  ,  लेकिन   *जो   सबके   हृदय   की   धड़कनें   चलाता   है  ,   भक्तवत्सल  है  ,   वह   अपने   भक्त   का   वचन   पूरा   किये   बिना   शाँत       नहीं   रहता  .*

उसने   उन   डकैतों   को   प्रेरित   किया   उनके   मन   में   प्रेरणा   दी   कि   ..’  ऊपर   भी   देखो  .’  उन्होंने   ऊपर   देखा   तो   वृक्ष   की   डाल   पर   एक    आदमी   बैठा   हुआ   दिखा  .   डकैत   चिल्लाये  ,   अरे   !   नीचे   उतर  !

सेठजी   बोले  ,   मैं   नहीं   उतरता  .

क्यों   नहीं   उतरता  ,  यह   भोजन   तूने   ही   रखा   होगा.

सेठजी   बोले  ,  मैंने   नहीं   रखा  .  कोई   यात्री   अभी   यहाँ   आया   था , वही  इसे   यहाँ    भूलकर  चला गया.

नीचे   उतर  !  तूने   ही   रखा   होगा   जहर   मिला  कर  ,  और   अब   बचने   के   लिए   बहाने   बना   रहा   है  .  तुझे   ही   यह   भोजन   खाना   पड़ेगा .

*अब   कौन – सा   काम   वह   सर्वेश्वर   किसके   द्वारा  ,  किस   निमित्त   से   करवाये   अथवा   उसके   लिए   क्या   रूप   ले  ,  यह   उसकी   मर्जी   की          बात   है  .  बड़ी   गजब   की   व्यवस्था   है   उस   परमेश्वर   की  .*

सेठजी   बोले ~  मैं   नीचे   नहीं   उतरूँगा   और   खाना   तो   मैं   कतई   नहीं   खाऊँगा  .

पक्का   तूने   खाने   में   जहर   मिलाया   है  .  अरे  !   नीचे   उतर   अब   तो   तुझे   खाना   ही   होगा  .

सेठजी   बोले   ~   मैं   नहीं   खाऊँगा  .   नीचे   भी   नहीं   उतरूँगा  .

अरे   कैसे   नहीं   उतरेगा  .

सरदार   ने   एक   आदमी   को   हुक्म   दिया   इसको   जबरदस्ती   नीचे   उतारो  |

डकैत  ने  सेठ  को  पकड़ कर  नीचे  उतारा.

ले  खाना  खा !

सेठ  जी  बोले ~ मैं  नहीं  खाऊँगा.

उस्ताद   ने  धड़ाक   से   उनके   मुँह   पर   तमाचा   जड़  दिया  .

सेठ   को   पुजारी   जी   की   बात   याद   आयी   कि   ~नहीं   खाओगे   तो  ,   मार  कर   भी   खिलायेगा  .

सेठ   फिर   बोला  ~ मैं   नहीं   खाऊँगा |

अरे   कैसे   नहीं   खायेगा  !   इसकी  नाक   दबाओ   और   मुँह   खोलो  .

डकैतों   ने   सेठ   की   नाक   दबायी  ,   मुँह   खुलवाया   और   जबरदस्ती   खिलाने   लगे  .   वे   नहीं   खा   रहे   थे  ,   तो   डकैत  उन्हें   पीटने   लगे  .

तब   सेठ   जी   ने   सोचा   कि   ये   पाँच   हैं   और   मैं   अकेला   हूँ  .   नहीं   खाऊँगा   तो   ये   मेरी   हड्डी   पसली   एक   कर   देंगे  .   इसलिए               चुपचाप   खाने   लगे   और   मन -ही -मन   कहा ~ *मान   गये   मेरे   बाप   !   मार   कर   भी   खिलाता   है  !*

डकैतों   के   रूप   में   आकर   खिला  ,   चाहे   भक्तों  के   रूप   में   आकर   खिला   लेकिन   खिलाने   वाला   तो   तू   ही   है.   आपने   पुजारी   की  बात         सत्य   साबित   कर   दिखायी  .

सेठजी   के   मन   में   भक्ति   की   धारा   फूट   पड़ी  .

उनको   मार-पीट   कर .. .डकैत   वहाँ   से   चले   गये  ,   तो   सेठजी   भागे   और   पुजारी   जी   के   पास   आकर   बोले ~
*पुजारी   जी   !   मान   गये   आपकी   बात   ~  कि   नहीं   खायें   तो   वह   मार   कर   भी   खिलाता   है  .*

*संसार   जगत   में   निमित्त   तो   कोई   भी   हो   सकता   है   किन्तु   सत्य   यही   है   कि   भगवान   ही   जगत   की   व्यवस्था   का   कुशल                 संचालन   करते   हैं   । 

अतः   अपने   जगत   के   आधार   भगवान  पर   विश्वास   ही   नहीं   बल्कि   दृढ़   विश्वास   होना   चाहिए   ।

Hindi kahaniya-भगवान हमेशा हमारे साथ होते हैं।

इस जिन्दगी को अच्छे से जीने की होड़ में हम कभी कभी जिन्दगी देने वाले पर ही शक़ कर लेते हैं।

हो सकता है आपने यह hindi kahani पहले ही सुनी हो लेकिन आप ये कहानी कहानी जितनी बार सुनिएगा आपका विश्वास ईश्वर के प्रति बढ़ता चला जाएगा।


ये कहानी एक लड़की ऐसे लड़के की है जो एक बहुत बड़ा आदमी बनना चाहता था, वो बहुत मेहनती लड़का था जिसे ईश्वर पर बहुत भरोसा था।

उसे हमेशा लगता था उसके ईश्वर उसके साथ है,जब भी वह समुद्र के किनारे चलता तो उसे दो पैरों के निशान दिखाई देते। एक खुद के और दूसरे पैर भगवान के। उसे लगता था कि वह भगवान से बात करता था। 


धीरे धीरे करके वह लड़का बहुत मेहनत करता चला गया और बहुत सफल हो गया। अपनी मेहनत और परिश्रम से वह उस छेत्र का सबसे अमीर आदमी बन गया।

लेकिन एक बात हमेशा याद रखिएगा जिस घड़ी मे 12 बजते है उसमे 6:30 भी बजेगा मतलब कि यदि काँटा ऊपर रहता है तो वह नीचे भी आएगा। मतलब कि अच्छे समय के बाद बुरा समय और बुरा समय के बाद अच्छा समय भी आता है।

अब हुआ ये कि उसका बुरा वक़्त आया।एक बार ऐसा हुआ कि उसके जीवन में बहुत बुरा वक़्त आ गया और वह जितना अमीर आदमी था वह उतना ही गरीब हो गया। उसकी कंपनी डूबने लगी और बंद होने के कगार पर पहुंच गई।

एक सुबह ऐसा हुआ कि जब यह समुद्र किनारे चल रहा था तो उसे दूसरे पैरों के निशान नहीं दिखे। वह घबरा गया और बहुत गुस्सा भी हुआ उसे लगा कि जब मेरा अच्छा वक़्त चल रहा था तो भगवान मेरे साथ थे लेकिन जब मेरा बुरा वक़्त आया तो भगवान ने भी मेरा साथ छोर दिया।

क्यूंकि ये मेहनती बहुत था तो इसने मेहनत करना नहीं छोड़ा, इसे कामयाब होने के सारे रास्ते पता थे और इसने मेहनत करना नहीं छोड़ा और अपने मेहनत और कठिन परिश्रम से फिर से इसने अपने कंपनी को उसी जगह पर ले आया।

कुछ दिनों के बाद से फिर से इसने महसूस किया कि समुद्र के किनारे फिर से दो पैरों के निशान बनने लगे हैं।

लेकिन यह बहुत गुस्सा था इस वजह से इसने मुँह फेर लिया और भगवान से कहा कि मैं तुमसे बात नहीं करूँगा।

भगवान प्रकट हुए और पूछे कि क्यूँ क्या हुआ? तो उस लड़के ने कहा कि जब मेरा अच्छा समय चल रहा था तो आप मेरे साथ थे लेकिन जब बुरा वक़्त आया तो आपने मेरा साथ छोड़ दिया।

भगवान ने फिर पूछा कि तुम्हें कैसे पता?

तो उस लड़के ने कहा कि जब मेरा अच्छा वक़्त चल रहा था तो मुझे दो पैरों के निशान दिख रहे थे एक मेरे और एक आपके।


लेकिन जब मेरा बुरा वक़्त आया तो सिर्फ़ मेरे ही पैरों के निशान थे, आपने क्यूँ किया ऐसा?



तो भगवान ने बोला कि नहीं जब तुम्हारा अच्छा वक़्त चल रहा था तो मैं तुम्हारे साथ चल रहा था लेकिन जब तुम्हारा खराब वक़्त चल रहा था तो भी मैं तुम्हारे साथ था।
जब तुम्हारा बुरा वक़्त चल रहा था तब तुम्हें जो पैरों के निशान दिख रहे थे वो तुम्हारे नहीं मेरे पैरों के निशान थे।

उस लड़के को आश्चर्य हुआ और उसने पूछा कि वो कैसे?

भगवान ने फिर बोला कि जब तुम्हारा बुरा वक़्त चल रहा था तो मैंने तुम्हें अपनी गोद मे उठाए हुआ था, तुम्हारे दोनों पैर ऊपर हो गए थे, जो निशान तुम्हें दिख रहे थे वो मेरे पैरों के थे।

इस hindi kahaniya से सीख-

  • भगवान हमेशा हमारे साथ है चाहे वह बुरा वक़्त हो या अच्छा। भगवान हमेशा हमारे साथ है कभी भी हमारा साथ नहीं छोड़ते हमें बस कर्म करते जाना है फल की चिंता नहीं करनी।

यदि आपको यह hindi kahani पसंद आई हो तो हमे कमेंट करके बताए और इसी तरह की hindi kahani पढ़ने के लिए हमसे जुड़े रहे।

Tags-hindi kahaniya, hindi stories, stories in hindi, moral stories

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.