सावन के सोमवार से जुड़ी कहानी Hindi Kahani
सावन के सोमवार से जुड़ी कहानी
रमेश एक गरीब किसान था। वह अपनी पत्नि सुमन के साथ एक पुराने से मकान में रहता था। एक दिन रमेश खेत से घर वापस आया।
सुमन: आप आ गये मैं अभी आपके लिए खाना बनाती हूं।
रमेश: हॉं जल्दि से खाना बना दे बहुत भूख लगी है।
सुमन: सुनो जी कुछ दिनों में सावन मास शुरू हो जायेगा और हमारी छत पिछली बरसात में बहुत टपकती थी। इसलिए इस साल सावन आने से पहले इसकी मरम्मत करवा लेते।
रमेश: हां सोच तो मैं भी रहा था। ठीक है मैं कल जमींदार से बात करता हूं
अगले दिन रमेश जमींदार के पास जाता है।
रमेश: सेठ जी मुझे कुछ रुपये उधार दे दीजिये फसल कटते ही चुका दूंगा।
जमींदार: वाह पिछला कर्ज तो तुझसे चुकाया नहीं जा रहा नया चाहिये पिछले साल सूखा पड़ गया तो तूने कर्ज नहीं चुकाया। मैं अब तुझे एक पैसा भी नहीं दूंगा।
रमेश निराश होकर घर वापस आ जाता है।
कुछ दिनों बाद सावन शुरू हो जाता है। सावन के पहले सोमवार के दिन रमेश और कविता भगवान शिव के मन्दिर जाने के लिए तैयार हो रहे थे तभी बहुत तेज बारिश शुरू हो ताजी है।
कविता: हे भगवान बारिश शुरू हो गई अब हम मन्दिर कैसे जायेंगे।
रमेश: थोड़ा इंतजार कर लेते हैं। शायद कुछ देर में बंद हो जाये।
काफी समय बीत जाने के बाद भी बारिश बंद नहीं होती। उनके घर की छत टपकने लगती है।
रमेश: लगता है आज भगवान भोलेनाथ भी हमारी परीक्षा ले रहे हैं। तू ऐसा कर घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बना ले उसी पर बेलपत्र और दूध चढ़ा कर पूजा कर लेते हैं।
कविता: लेकिन वह तो बह जायेगा।
वे दोंनो सोच विचार कर ही रहे थे तभी उनके दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। रमेश ने दरवाजा खोला। बाहर एक साधू और साध्वी खड़े थे।
रमेश ने उन्हें प्रणाम किया।
साधू: बालक हम दूसरे गॉव से आये हैं यदि तुम्हें कोई परेशानी न हो तो बारिश बंद होने तक तुम्हारे घर में रुक सकते हैं।
रमेश : बाबा आपका स्वागत है आपके आने से मेरा घर पवित्र हो गया।
दोंनो अन्दर आकर बैठ जाते हैं।
कविता पूजा करने के लिए शिवलिंग बना रही थी।
साधू: बेटी तुम शिवलिंग क्यों बना रही हों
कविता: बाबा आज हम दोंनो का उपवास है हम बारिश के कारण पूजा करने मन्दिर नहीं जा पाये इस लिए घर में शिवलिंग बना कर पूजा करना चाहते हैं।
साध्वी: लेकिन बेटा तुम्हारा तो पूरे घर में पानी टपक रहा है। फिर पूजा में ध्यान कैसे लगा सकोगे यहां तो बैठने की भी जगह नहीं है।
कविता: माताजी भगवान शिव आज हमारी परीक्षा ले रहे हैं। लेकिन हम आज उनकी पूजा पूरी अवश्य करेंगे।
कविता और रमेश पूजा करने बैठ जाते हैं।
पूजा करते समय जैसे ही रमेश शिवलिंग पर फल चढ़ाने के लिए हाथ आगे बढ़ाता है।
साधू: हमें बहुत भूख लगी है पहले हमें भोजन दो।
घर में कुछ नहीं था इसलिए रमेश वह फल साधू बाबा को दे देता है।
तभी कविता शिवलिंग पर दूध चढ़ाने लगती है।
साध्वी: मुझे भी बहुत भूख लगी है।
कविता: माता जी अब तो हमारे घर में कुछ खाने के लिए नहीं है ये भी आज खेत पर नहीं जा पाये आज मजदूरी मिलती तभी भोजन पकता।
साध्वी: कोई बात नहीं यह दूध हम दे दो।
कविता वह दूध उन्हें दे देती है।
साध्वी: अब हम रात्री में तुम्हारे घर विश्राम करेंगे। लेकिन यहां तो सोने की जगह नहीं है।
रमेश: आप चिन्ता न करें आप आराम करें हम यहीं दरवाजे के पास बैठ कर रात गुजार लेंगे।
रात को रमेश और कविता बातें करते हैं।
रमेश: आज तो भगवान भोलेनाथ की पूजा भी नहीं कर सके। उपवास कैसे पूरा होगा।
कविता: कोई बात नहीं हम कल उपवास पूरा करेंगे सुबह आप कुछ फल ले आईयेगा।
बातें करते करते दोंनो सो जाते हैं।
सुबह जब उनकी आंख खुलती है। तो वहां साधू और साध्वी नहीं थे। और वह मिट्टी का शिवलिंग सोने का बन चुका था। उनका पूरा घर बहुत सुन्दर बन गया था। एक कोने में अन्न धन के ढेर लगे थे। रमेश और कविता शिवलिंग के सामने बैठ कर रोने लगे।
रमेश: भगवान भोले नाथ और मॉं पार्वती स्वयं हमारे घर आये और हम उन्हें पहचान न सके।
कविता: भगवान हमें स्वयं दर्शन देने आये थे। इतनी बारिश में इतना कष्ट उठा कर।
दोंनो शिवलिंग के आगे नतमस्तक हो जाते हैं।
माँ बेटी का सावन का सोमवार | Sawan Somvar Vrat
Sawan Somvar Vrat : एक गॉव में सरला नाम की एक विधवा औरत रहती थी। उसकी एक छोटी सी बेटी थी मालती। सरला गॉव के कुछ घरों में बरतन मांजने का काम करती थी। एक दिन सरला एक घर में काम कर रही थी।
एक दिन सुबह सरला मन्दिर जाने की तैयारी कर रही थी
मालती: मॉं आज सुबह इतनी जल्दी कहां जा रही हो
सरला: बेटी आज सावन का सोमवार है मुझे शिवजी के मन्दिर जाना है फिर काम पर भी जाना है देर हो गई तो मालिकन गुस्सा हो जायेगी इसलिए तू घर का काम संभाल लेना।
मालती: मॉं तुम हर सोमवार शिवजी के लिए व्रत रखती हों मन्दिर जाती हों लेकिन इतने सालो में भगवान ने कभी हमारी ओर ध्यान भी दिया है। हम कितनी परेशानी में दिन काट रहे हैं शिवजी को हमारे उपर कभी दया भी आती है।
सरला: बेटी ऐसा नहीं कहते भगवान हमेशा हमारा साथ देते हैं। हमें हर हाल में खुश रहना चाहिये।
यह सुनकर मालती गुस्सा हो जाती है।
मालती: मुझे यदि भोले बाबा मिल जायें तो मैं उनसे जरूर पूछूंगी कि क्या वे हमें भूल गये हैं।
सरला हस कर बिना कुछ कहे मन्दिर चली जाती है।
वहां भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर जल चढ़ाती है।
सरला: भगवान मालती को माफ कर देना वह बच्ची है हम पर अपना आशीर्वाद बनाये रखना।
अगले दिन सरला काम के लिए घर से निकलती है तभी उसका पैर फिसल जाता है और वह गिर जाती है।
घर पर मालती रोने लगती है।
सरला: बेटी रो मत कुछ दिनों में मेरा पैर ठीक हो जायेगा।
मालती: मॉं अब तुम काम नहीं कर पाओंगी तो हम भूखे मरेंगे। क्या अब भी तुम्हारे भोले बाबा को हम पर तरस नहीं आ रहा।
सरला: बेटी ऐसा नहीं कहते और छोटी छोटी बातों के लिए भगवान को बुरा भला नहीं कहना चाहिये। हो सकता है इसमें भी कोई अच्छाई छुपी हो।
यह सुनकर मालती चुप हो जाती है और घर के काम में लग जाती है।
इसी तरह कुछ दिन बीत जाते हैं। इधर सावन में बरसात शुरू हो जाती है। उनके घर में पानी टपकने लगता है।
सरला: बेटी तू मेरी मालिकन के घर चली जा वहां उनसे कहना हमें कुछ अनाज उधार दे दो मॉं ठीक हो जायेगी तो काम करके चुका देगी।
मालती मालिकन के घर पहुंच जाती है। उसकी बात सुनकर मालिकन उसे डाट देती है।
मालिकन: चल भाग यहां से तेरी मॉं बहाना करके पड़ी है सारा काम मुझे करना पड़ रहा है और उसे घर बैठे अनाज चाहिये उससे कह दियो कल से काम पर आ जाये नहीं तो मैं उसे नौकरी से निकाल दूंगी।
मालती रोती हुई घर की ओर चल देती है। रास्ते में उसे एक साधू बाबा मिलते हैं।
साधू: बेटी क्या बात है क्यों रो रही हों।
मालती उन्हें सारी बात बता देती है।
साधू: बेटी मेरे कहने से एक काम कर दे तेरे सारे कष्ट मिट जायेंगे। यह मेरा कमण्डल ले इसमें जल भर कर सामने मन्दिर में शिवलिंग पर चढ़ा दे।
मालती: बाबा मैं समझी थी आप मेरी मदद करेंगे लेकिन आप भी मेरी मॉं की तरह भोलेनाथ को जल चढ़ाने के लिए कह रहे हैं। मैं यह काम कभी नहीं करूंगी घर में मेरी मॉं भूखी पड़ी है उन्हें छोड़ कर मैं पूजा पाठ में लग जाउं।
साधू: बेटी भोलेनाथ सब ठीक कर देंगे मेरा कहना मान जल चढ़ा कर आ।
मालती कमण्डल में जल लेकर शिवलिंग पर चढ़ा देती है और आंख बंद कर प्रार्थना करती है।
मालती: बाबा भोलेनाथ मेरी मॉं हमेशा तुम्हारी पूजा करती है व्रत रखती है। आज वह कष्ट में है हमारी रक्षा करो।
मालती जैसे ही आंखें खोलती है। तो देखती है वह कमण्डल सोने के सिक्कों से भरा है। मालती को विशवास नहीं होता वह उसे लेकर साधू बाबा को देने जाती है। लेकिन वहां उसे कोई नहीं मिलता।
कुछ देर ढूंढने के बाद वह घर वापस आकर सरला को सारी बात बताती है।
सरला: वे जरूर कोई बहुत ज्ञानी संत होंगे तू इस कमण्डल को कोने में रख दे और कल सुबह जाकर उन्हें ढूंढना।
मालती कमण्डल को रख देती है।
दोंनो मॉं बेटी भूखी ही सो जाती हैं।
रात को सपने में मालती को साधू बाबा दिखाई देते हैं।
मालती: बाबा आप कहां चले गये आपका कमण्डल रखा है आप ले लिजिये।
साधू बाबा: बेटा तेरी मॉं के व्रत और आज तूने सच्चे मन से जो पूजा की है यह उसी का फल है। यह कमण्डल हमेशा तुम्हारे पास रहेगा और यह कभी खाली नहीं होगा।
यह कहकर साधू बाबा शिवजी के रूप में प्रकट हो जाते हैं। तभी मालती की नींद खुल जाती है। वह सारी बात अपनी मॉं को बताती है।
मालती: मॉं मुझे माफ कर दो मैं हमेंशा तुम्हें पूजा करने से रोकती थी। पर भोले बाबा ने स्वयं मुझे दर्शन देकर हमारे सारे कष्ट दूर कर दिये।
उस दिन से सरला और मालती भागवान भोले नाथ की भक्ति करने लगीं।
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