माता पार्वती की रसोई | Mata Parwati Ki Rasoi | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Kahaniya
माता पार्वती की रसोई | Mata Parwati Ki Rasoi | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Kahaniya |
एक बार की बात है माता पार्वती ने कैलाश पर्वत पर खाना बनाया माता पार्वती ने खाना क्यों बनाया उसके बाद क्या हुआ जानने के लिए सुनते हैं कहानी माता पार्वती की रसोई
कैलाश पर्वत पर भगवान शिव कई दिनों से तपस्या में लीन थे उन्हें तपस्या में लीन देखकर माता पार्वती ने सोचा प्रभु तो तपस्या में लीन है मैं कई दिनों से प्रभु से बात करना चाहती लेकिन प्रभु को मेरा ध्यान ही नहीं है मैं प्रभु की तपस्या भी भंग नहीं कर सकती नहीं तो प्रभु को क्रोध आ जाएगा क्या करूं कि जिससे प्रभु की तपस्या भी भंग हो जाए और उन्हें क्रोध भी ना आए माता पार्वती ऐसा सोच रही थी कि तभी
(00:44) उनके पास भगवान गणेश भगवान कार्तिकेय और कैलाश पर्वत पर उपस्थित सारे गण आए भगवान शिव के सभी गणों ने माता से कहा- माता हम आपके पास अपनी प्रार्थना लेकर आए हैं .हमारी करुण पुकार सुनो माता .
गणेशजी ने कहा-हां माता मैं और भ्राता कार्तिकेय भी आपके सामने एक निवेदन लेकर आए हैं
माता ने कहा-बोलो पुत्र गणेश पुत्र कार्तिकेय क्या बात है आप सभी गण परेशान क्यों हैं
कार्तिकेजी ने कहामाता कई वर्ष गुजर गए पिताजी अभी तक तपस्या में लीन है हमें पिताजी से बात करनी है उनके साथ खेलने की बहुत तीव्र इच्छा हो रही है
गणेशजी ने कहा-हां माता पिताजी की तपस्या आखिर कब खत्म होगी
गण ने कहा-माता क्या हमारे प्रभु हमसे नाराज है कृपया करके उनसे कहिए
कि अपनी तपस्या खत्म करें और हमसे बात करें
पार्वती जी ने कहा-मैं भी यही चाहती हूं कि भगवान भोलेनाथ अपनी तपस्या खत्म करके कैलाश पर्वत पर हम सभी के साथ कुछ समय गुजारे लेकिन अगर भोलेनाथ की तपस्या किसी ने भी भंग की तो उसे उनके क्रोध का शिकार होना पड़ सकता है और मैं नहीं चाहती कि उन्हें क्रोध आए
गणेशजी ने कहा-फिर हमें ऐसा क्या करना चाहिए माता कि पिताजी अपनी तपस्या स्वयं भंग कर दें भगवान गणेश ने जैसे ही अपनी बात की तभी वहां पर स्वर्ग लोक से नारद मुनि पधारे नारायण नारायण
नारदजी ने कहाप्रणाम देवी पार्वती
पार्वती जी ने कहा-प्रणाम देवर्ष
नारदजी ने कहानारायण नारायण आप सभी लोग एक जगह पर एकत्रित है आप लोगों को देखकर
ऐसा लग रहा है जैसे किसी विकट समस्या के समाधान ना होने से आप लोग परेशान है
पार्वती जी ने कहा-कुछ ऐसा ही समझ लीजिए देवर्षी
नारदजी ने कहाक्या बात है माते कैलाश पर्वत पर इतनी परेशानी का क्या कारण हो सकता है यह तो स्वयं भोलेनाथ का निवास स्थान है और जहां भोलेनाथ निवास करते हो वहां आप लोगों की चिंता का क्या कारण है
पार्वती जी ने कहा-देवर्षि नारद भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर निवास तो जरूर करते हैं लेकिन उन्होंने कैलाश पर्वत पर रहने वाले अन्य प्राणियों से मुंह मोड़ लिया है
नारदजी ने कहामुंह मोड़ लिया है भला भगवान भोलेनाथ ऐसा कैसे कर सकते हैं है
पार्वती जी ने कहा-देवर्षी नारद भगवान भोलेनाथ कई वर्षों से तपस्या में लीन है उन्हें हमारी कोई
फिक्र ही नहीं है .मैं गणेश कार्तिकेय और सारे गण भगवान भोलेनाथ से बात करने के लिए आतुर हैं लेकिन समस्या यह है कि उनकी तपस्या आखिर भंग हो तो कैसे हो
नारदजी ने कहामाता पार्वती यह समस्या इतनी विकराल नहीं है जितना आप सभी सोच रहे हैं भगवान भोलेनाथ की तपस्या भंग करना तो आपकी चुटकियों का खेल है
पार्वती जी ने कहा-वो कैसे देवर्ष मुझे क्या करना चाहिए जिससे भगवान भोलेनाथ अपनी तपस्या खुद ही भंग कर द
नारदजी ने कहामाता पार्वती क्यों ना आप भगवान गणेश भगवान कार्तिके और सभी गणों के लिए सामूहिक भोजन का प्रबंध करें मैं तो कहता हूं माते कि आप स्वयं अपने हाथों से मिष्ठान और भोजन बनाएं आपके हाथों से बने
मिष्ठान और भोजन की सुगंध जब भगवान भोलेनाथ तक पहुंचेगी तब वोह अपनी तपस्या छोड़ने के लिए खुद ही विवश हो जाएंगे
गणेशजी ने कहा-माते देव ऋषि नारद ठीक कह रहे हैं
गणेशजी ने कहा-हां माते आपको भोजन बनाना चाहिए और मेरे लिए मोदक भी
गण ने कहा-हां माते इस मौके पर हम सभी को भी आपके हाथों से बने स्वादिष्ट व्यंजन खाने को मिलेंगे और प्रभु से हमारी मुलाकात भी हो जाएगी
पार्वती जी ने कहा-ठीक है आप सबकी यही इच्छा है तो ही होगा शायद देवर्षि नारद की यह सलाह हमारे काम आ जाए और भगवान भोलेनाथ अपनी तपस्या खुद ही भंग कर दे माता पार्वती ने सभी गणों को चूल्हा और भोजन बनाने के लिए सामग्री इकट्ठा करने का आदेश दिया जिसके
बाद सभी गण कैलाश पर्वत में एक गुफा के अंदर एक विशाल काय चूल्हे का निर्माण किया और स्त्री गणों ने भोजन बनाने की सामग्री इकट्ठा की. माता पार्वती चूल्हा बनकर तैयार हो गया है माता भोजन बनाने की सामग्री भी तैयार हो गई है ठीक है मैं भोजन बनाना शुरू करती हूं माता पार्वती ने जैसे ही यह कहा कि वे भोजन बनाना शुरू करने वाली हैं भगवान गणेश के मुंह में पानी आ गया
गणेशजी ने कहा-माता कृपया करके भोजन जल्दी तैयार कीजिए मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है भगवान गणेश की उत्सुकता देखकर माता पार्वती मुस्कुराने लगी उन्होंने भगवान कार्तिकेय से पूछा कार्तिकेय क्या तुम्हें भूख नहीं लगी है
तुम्हारे लिए भोजन में क्या बनाऊं
कार्तिकेजी ने कहामाता भूख तो मुझे भी लगी है लेकिन मैं थोड़ा इंतजार कर लूंगा आप भोजन तैयार करके गणेश जी को खाने को दीजिए और यदि हो सके तो मेरे लिए गुड़ की खीर बना दीजिए
पार्वती जी ने कहा-ठीक है कार्तिकेय भोजन बनाने के लिए माता पार्वती उस गुफा में गई जहां सभी गणों ने मिलकर चूल्हे का निर्माण किया था .माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की पसंद का भोजन बनाना शुरू किया .भोजन की सुगंध कैलाश पर्वत पर उपस्थित सभी गणों को खींचकर गुफा के बाहर ले आई. सभी गण गुफा के बाहर जमा हो गए और बोलने लगे कितनी अच्छी सुगंध है माता
पार्वती के हाथों से बना भोजन करके आज कितना आनंद आएगा सचमुच भोजन की सुगंध जितनी अच्छी है भोजन भी उतना ही रुचिकर होगा .भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय भी गुफा के बाहर आ गए और भोजन बनकर तैयार होने का इंतजार करने लगे माता पार्वती जैसे-जैसे भोजन बनाती उसकी सुगंध दूर-दूर तक फैलती जाती यहां तक कि भोजन की सुगंध स्वर्ग लोक तक पहुंच गई तब इंद्रदेव ने नारद मुनि से कहा देवऋषि नारद यह सुगंध कहां से आ रही है ऐसी सुगंध तो स्वर्ग में मौजूद किसी सुगंध की भी नहीं है
नारदजी ने कहाइंद्रदेव कैलाश पर्वत पर माता पार्वती भोजन बना रही है
इंद्रदेव ने कहादेव ऋषि नारद भला माता पार्वती को भोजन
बनाने की क्या आवश्यकता पड़ गई
नारदजी ने कहाइंद्रदेव भगवान नाथ कई वर्षों से तपस्या में लीन है उनकी तपस्या भंग करने के लिए माता पार्वती भोजन का निर्माण कर रही है जिससे कि महादेव की तपस्या भी भंग हो जाए और किसी को उनके क्रोध का शिकार भी ना होना पड़े
इंद्रदेव ने कहा-ऐसी बात है लेकिन अब तो माता पार्वती के हाथों से बने भोजन का आनंद लेने के लिए हम भी कैलाश पर्वत जाएंगे और स्वर्ग लोक में उपस्थित सभी देवता अप्सरा कैलाश पर्वत पर पहुंच गए वे सभी उसी गुफा के बाहर खड़े होकर इंतजार करने लगे कि कब भगवान भोलेनाथ की तपस्या भंग होगी और कब वे भोजन की सुगंध से यहां खींचे चले आएंगे और तब उसके
बाद सभी को माता पार्वती के हाथों से बना भोजन खाने को मिलेगा
गुफा के बाहर वैकुंठ धाम से माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु भी आ गए .भगवान ब्रह्मा भी उपस्थित हो गए नंदी समेत सभी गण तो मौजूद थे ही पाताल लोक में उपस्थित सभी जीव जंतु भी वहां आ गए
नारदजी ने कहाअब माता को और भी अधिक भोजन बनाना पड़ेगा नंदी तुम माता के पास जाओ और उन्हें बता दो कि स्वर्ग लोक और पाताल लोक के सभी प्राणी उनके हाथों का बना भोजन करने आए हैं
नंदी ने यह बात जाकर माता पार्वती को बताई नंदी सभी लोग भोजन करने आ गए लेकिन महादेव अभी तक नहीं आए लगता है मेरे भोजन की सुगंध महादेव तक नहीं पहुंची क्या मेरा
भोजन बनाना सार्थक नहीं हुआ इतना कहकर माता पार्वती उदास हो गई उन्हें उदास देखकर नंदी ने कहा माता पार्वती आप उदास मत हो आपके भोजन की सुगंध से भगवान भोलेनाथ की तपस्या जरूर भंग होगी सभी लोग गुफा के बाहर खड़े थे कमी थी तो सिर्फ भगवान भोलेनाथ की भगवान भोलेनाथ की तपस्या भंग करने के लिए माता पार्वती और भी अधिक मिष्ठान और पकवान बनाने लगी थोड़ी देर के बाद माता पार्वती के बनाए भोजन की सुगंध महादेव तक भी पहुंच गई महादेव तपस में लीन थे लेकिन भोजन की सुगंध ने उन्हें बेचैन कर दिया और उनकी तपस्या भंग हो गई
महादेवने कहा-यह सुगंध कहां से आ रही है ऐसी सुगंध का
अनुभव मैंने आज तक पहले कभी नहीं किया लगता है मैं कई वर्षों से तपस्या में लीन था अब जब मेरी तपस्या टूट ही गई है तो चलकर देखता हूं कि यह सुगंध कहां से आ रही है भगवान भोलेनाथ उठकर उस दिशा में जाने लगे जिस दिशा से सुगंध आ रही थी चलते-चलते वे उसी गुफा के बाहर पहुंचे जिस गुफा के माता पार्वती भोजन बना रही थी महादेव ने देखा कि गुफा के बाहर सभी देवताओं और सभी गणों की भीड़ लगी हुई थी महादेव को देखकर सभी बहुत खुश हुए
नंदी यह सुगंध कहां से आ रही है इस सुगंध ने मेरी तपस्या भंग करती
नंदी ने कहा-प्रभु माता पार्वती इस गुफा के अंदर भोजन
बना रही है .इतना सुनते ही भगवान भोलेनाथ गुफा के अंदर चले गए उन्हें देखकर माता पार्वती बहुत खुश हुई
महादेवने कहा-देवी पार्वती आपके हाथ से बने भोजन की सुगंध ने मेरी वर्षों की तपस्या भंग कर दी अब भोजन लगाइए मुझसे और इंतजार नहीं हो रहा
माता पार्वतीने कहा-अभी लगाती हूं प्रभु .माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ के लिए भोजन परोसा जिसमें महादेव की पसंद के ढेर सारे मिष्ठान भी थे उसके बाद माता पार्वती ने भगवान विष्णु ,माता लक्ष्मी ,भगवान ब्रह्मा, भगवान गणेश ,भगवान कार्तिकेय सभी देवी देवताओं और सभी गणों के लिए भोजन परोसा फिर सबने एक साथ मिलकर माता पार्वती के हाथों से बने स्वादिष्ट भोजन का आनंद
लिया
गणेशजी ने कहा-माता भोजन बेहद उत्तम बना है मेरे लिए और दो मोदक तो है ना
कार्तिकेय ने कहा-हां माता ऐसा भोजन मैंने पहले कभी नहीं खाया आज तो आनंद आ गया भोजन करने के बाद माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से ढेर सारी बातें की और उनके साथ समय गुजारा उन्होंने मन ही मन नारद मुनि का धन्यवाद किया
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सोमनाथ और उसकी पत्नी उमा भगवान शिव के परम भक्त थे सोमनाथ की कई पुश्ते पंडिताई का काम करती आ रही थी जिसे आगे बढ़ाते हुए सोमनाथ भी घर-घर जाकर पूजा पाठ के काम करवाता था उमा को भी गांव में सभी लोग पंडिताइन कहकर बुलाते थे और कोई भी अच्छा काम करने से पहले उसकी सलाह जरूर लेते थे
कमला ने कहा-अरे पंडिताइन घर में हो कि नहीं हां
पंडिताइन ने कहा-हां मैं कहां जाऊंगी आओ अंदर आ जाओ
कमला ने कहा-अच्छा तो पूजा में लगी हो .अरे बस करो भोलेनाथ को घर बुलाकर ही रहोगी क्या .
पंडिताइन ने कहा-अरे कमला ऐसे भाग्य हो जाएं तो जीवन सफल हो जाए .वह आज सोमवार है ना तो मेरा और पंडित जी का व्रत है .यह लो भोले बाबा का प्रसाद
कमला ने कहा-अच्छा अच्छा लाओ अच्छा पंडिताइन वह मुझे ना मुन्ना का मुंडन करवाना है जरा एक अच्छा सा दिन देखकर तो बताओ
पंडिताइन ने कहा-हां हां अभी लो बस दो मिनट रुको .ह| परसों का दिन सही रहेगा
कमला ने कहा-अरे इतनी जल्दी नहीं नहीं ,इसके बाद का कोई दिन देखो ,मुझे दावत करनी है इतनी जल्दी कैसे हो पाएगा सब
पंडिताइन ने कहा-इसके बाद तो अगले महीने की ही तिथि ठीक
रहेगी
कमला ने कहा-ओ हो ना ना अगले महीने तो देर हो जाएगी
पंडिताइन ने कहा-कमला तुम परेशान क्यों होती हो मुन्ना का मुंडन परसों ही करवा लो सारी तैयारियों में मैं तुम्हारी मदद कर दूंगी
कमला ने कहा-सच पंडिताइन तुमने तो सारी परेशानी ही हल कर दी और वैसे भी तुम रहोगी तो सारे काम बिल्कुल सही तरीके से हो जाएंगे और पंडित जी को भी बोल देना मुंडन के बाद हवन उन्होंने ही करवाना है
पंडिताइन ने कहा- ठीक है मैं दूंगी
कमला ने कहा-अच्छा एक बात बताओ पंडिताइन वह वैद्य जी के बारे में बताया था
पंडिताइन ने कहा-तुम्हें गई थी वहां हां गई तो थी इलाज भी चलाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ
कमला ने कहा-अच्छा तुम तुम चिंता मत करो वैसे पंडिताइन
मैं क्या कह रही थी तुम क्यों परेशान होगी छोटी सी तो दावत है मैं मैं निपटा लूंगी सारे काम और मुझे ना, अब भी याद आया वो मेरे जेठ जी है ना वो कह रहे थे कि इस बार हवन वही करेंगे तो पंडित जी को भी परेशान होने की जरूरत नहीं है अच्छा तो तो मैं अब चलती हूं इतना कहकर कमला वहां से चली जाती है वो भले ही कुछ साफसाफ ना कह पाई हो लेकिन उमा सब समझ गई थी
फिर उसी शाम पंडिताइनने कहा-सुनते हो आज कमला आई थी अपने मुन्ने का मुंडन करवा रही है
पंडित ने कहा-अच्छा तो फिर कब जाना है
पंडिताइनने कहा-नहीं हमें नहीं जाना पहले बुला रही थी फिर पलट गई
पंडित ने कहा-अरे लेकिन क्यों पूछने
लगी कि वैद्य जी के यहां से फायदा हुआ या नहीं .अच्छा तो जब उसने सुना कि हमें बच्चा नहीं हो रहा तो हमें अपने घर बुलाया नहीं .
पंडिताइनने कहा-उसकी गलती नहीं है जी उसका मुन्ना पैदा हो बीमार पड़ गया था बड़ी मुश्किल से ठीक हुआ ऐसे में उसके मुंडन के वक्त हमें बुलाने में तो संकोच करेगी ही ना नहीं .
पंडित ने कहा-उमा यह सब अंधविश्वास है हमारी कोई औलाद नहीं है तो क्या हम सबके लिए आप शगुन हो गए हैं
पंडिताइन ने कहा- यह तो मुझे नहीं पता जी लेकिन इतना जरूर जानती हूं कि जरूर कोई ना कोई बड़ा पाप हुआ है मुझसे जो शादी के 10 सालों के बाद भी मुझ झ बागन की गोद सुनी है उमा की आंखों में आंसू थे और जब यह आंसू उसके बस
से बाहर हो गए तो वह मुंह छिपाकर अंदर कमरे में चली गई
सोमनाथ के लिए भी यह तकलीफ काफी बड़ी थी एक तो संतान हीन होने का दुख और ऊपर से गांव वाले भी अब सोमनाथ और उमा से किनारा करने लगे थे .लोगों ने धीरे-धीरे सोमनाथ को पूजा पाठ के लिए बुलाना कम कर दिया जिसकी वजह से सोमनाथ के लिए घर का खर्चा चलाना भी मुश्किल हो रहा था
पंडित ने कहा- अरे राम किशोर जी मैंने सुना बड़े बेटे का जनव संस्कार करवा रहे हो मुझे याद नहीं किया आपने
राम किशोर जी ने कहा- वो पंडित जी दरअसल वह हरि प्रकाश जी से बात हो गई तो वही करवा रहे हैं
पंडित ने कहा- लेकिन राम किशोर जी अब तक तो आपके घर के सारे काम मैं ही करवाता आया हूं फिर अब क्या
हुआ
राम किशोर जी ने कहा- देखो पंडित जी पूरा गांव भले ही लाग लपेट करे लेकिन मैं आपसे झूठ नहीं बोलूंगा आपसे पूजा पाठ करवाने में डर लगता है संतान सुख ना मिलना एक श्राप है श्राप .मेरी मानो तो फिलहाल लग के अपने लिए पूजा पाठ करो
संतान के सुख से वंचित सोमनाथ और उमा वैसे ही काफी तकलीफ में थे ऐसे में लोगों का इस तरह मुंह मोड़ लेना उनके लिए घाव पर नमक की तरह था
सोमनाथ उदास होकर घर लौट आया और भगवान शिव के सामने हाथ जोड़कर बैठ गया हे भोलेनाथ क्या कमी रह गई मेरी भक्ति में जो इतना बड़ा दुख झेलना पड़ रहा है बिना बच्चे की किलकारी के यह घर ,घर नहीं
लगता .कमाई के नाम पर भी कुछ नहीं है खाने पीने तक की परेशानी हो गई है अब आप ही कुछ रास्ता दिखाइए शिवशंभू
सोमनाथ भगवान शिव से प्रार्थना कर ही रहा था कि तभी घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया सोमनाथ ने जाकर देखा तो एक बूढ़े बाबा दरवाजे पर खाना लेकर खड़े थे
पंडित ने कहा- प्रणाम जी बताइए
बूढ़े बाबाने कहा- जीते रहो बेटा मेरा नाम रामेश्वर है मैं पास के गांव हरिपुर से आया हूं मैंने मन्नत मांगी थी कि मेरा पोता हो जाएगा तो पूरे 100 पंडितों को खाना खिलाऊंगा किसी ने तुम्हारे बारे में बताया तो चला आया यह लो यह खाना लाया हूं
पंडित ने कहा- आपक| बहुत-बहुत शुक्रिया बाबा .भोले बाबा
आपकी हर इच्छा पूरी करें
सोमनाथ को खाना देकर रामेश्वर वहां से चले जाते हैं
सोमनाथ और उमा खाने के लिए बैठने ही वाले थे कि तभी सोमनाथ ने उमा से कहा ,उमा काश भोले भंडारी ने जैसे उन बाबा की इच्छा पूरी की वैसे ही मेरी भी कर दें .
पंडित ने कहा- मैं प्राण लेता हूं कि कि अगर मेरी पिता बनने की इच्छा पूरी हो गई तो मैं आने वाली महाशिवरात्रि पर भगवान त्रियंबकेश्वर के दर्शनों के लिए जाऊंगा और वहां जाकर 100 गरीबों को दान करूंगा
पंडिताइन ने कहा- कहां से करोगे फिलहाल तो हमारी हालत दान लेने की है देने की नहीं. आज तो इस खाने से काम चल जाएगा लेकिन आगे के लिए कुछ तो सोचना होगा जी
पंडित ने कहा- हां उमा मैं सोच रहा
हूं कि घर के पीछे जो थोड़ी सी जमीन है अपने पास जमींदार जी से थोड़े पैसे उधार लेकर उस पर खेती शुरू करता हूं
पंडिताइन ने कहा- ठीक है जी मैं भी आपकी मदद करूंगी
सोमनाथ और उमा के पास और कोई रास्ता नहीं था. गांव के जमींदार से पैसे कर्ज पर लेकर सोमनाथ ने खेती करना शुरू कर दिया जिससे धीरे-धीरे खाने का जुगाड़ होने लगा उमा भी सारा दिन सोमनाथ की खेत में मदद करने लगी लेकिन एक दिन अचानक खेत में काम करते हुए उमा चक्कर खाकर गिर पड़ी सोमनाथ फौरन उसे घर ले गया और फिर
पंडित ने कहा- अम्मा अम्मा उमा ठीक तो है ना .क्या हुआ उसे
अम्मा ने कहा- अरे सोमू बेटा ,अब खुश हो जा भोले बाबा की कृपा
बरसी है उमा मां बनने वाली है
बूढ़ी अम्मा के शब्द जैसे सोमनाथ के लिए अमृत की तरह बरस रहे थे उसने सबसे पहले जाकर भोले बाबा के सामने सिर झुकाया और फिर उमा के पास जाकर बोला उमा मैं बहुत खुश हूं अब कोई दुख नहीं .कोई परेशानी नहीं .आखिर भोले भंडारी ने अपने इस भक्त की पुकार सुनही ली
पंडिताइन ने कहा-जी जी मैं भी बहुत खुश हूं लेकिन इस खुशी में हमें अपनी मन्नत के बारे में नहीं भूलना है याद है ना इस महाशिवरात्रि पर आपको भगवान त्र बकेश्वर के दर्शनों के लिए जाना है और वहां जाकर
पंडित ने कहा-मुझे सब याद है उमा मैं अपनी मन्नत पूरी करूंगा ,जरूर करूंगा महाशिवरात्रि आने में कुछ ही दिन
बचे थे
सोमनाथ जी जान से खेती में लग गया गांव के ए क आद घर से पूजा पाठ करवाने के लिए भी अब उसे बुलाया जाने लगा लेकिन फिर भी वह सही समय तक इतने पैसों का इंतजाम नहीं कर पाया कि अपनी मन्नत पूरी कर सके .खेती के लिए उसने पहले से ही कर्ज ले रखा था जिसे अभी चुकाना बाकी था इसलिए वह अपनी मन्नत के लिए और कर्ज भी नहीं ले सकता था
सोमनाथ को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इतनी जल्दी वह अपनी मन्नत कैसे पूरी करेगा महाशिवरात्रि से ठीक एक दिन पहले वह गांव के ही शिव मंदिर में गया और हाथ जोड़कर भगवान शिव से बोला आपकी लीला अपरंपार है भोले भंडारी शायद मैं ही आपकी
भक्ति ठीक से नहीं कर पाया मैं अपना प्रण पूरा करना चाहता हूं मेरी मदद कीजिए प्रभु, मदद कीजिए मेरी
सोमनाथ भगवान शिव की प्रतिमा के सामने फूट फूट कर रोने लगता है तभी उसे अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस होता है सोमनाथ पलट कर देखता है तो सामने रामेश्वर यानी वही बूढ़े बाबा खड़े थे जो उस दिन सोमनाथ के घर खाना लेकर आए थे
सोमनाथने कहा- बेटा तुम यहां बड़े सही वक्त पर मिले हो सुनो मुझे तो री मदद की जरूरत है
पंडित ने कहा-जी जी बताइए मैं क्या कर सकता हूं
सोमनाथने कहा- बेटा इस महाशिवरात्रि पर मेरी भगवान त्रियंबकेश्वर के दर्शनों की बड़ी अभिलाषा है अब मेरे बेटे को अपने काम से ही फुर्सत
नहीं वह शहर में काम करता है ना और अकेले जाने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही तो क्या तुम मुझे ले चलोगे तुम्हारा आने जाने और खाने पने का खर्चा मेरा और मैं तुम्हें इसके अलावा भी कुछ पैसे दे दूंगा
पंडित ने कहा-बाबा आप साक्षात देवता स्वरूप बनकर आए हैं मैं चलूंगा आपके साथ ,बिल्कुल चलूंगा
सोमनाथ अब बहुत खुश था वह महाशिवरात्रि से एक दिन पहले ही रामेश्वर के साथ भगवान त्रयंबकेश्वर की यात्रा के लिए निकल पड़ा वहां पहुंचकर महाशिवरात्रि के दिन उसने पूरे विधि विधान से भगवान शिव के त्रयंबकेश्वर स्वरूप की पूजा की और फिर रामेश्वर से मिले पैसों से पूरे 100
गरीबों को दान करके अपना प्रण पूरा कर लिया फिर गांव वापस आने के बाद बाबा आप नहीं जानते आपने मेरी कितनी बड़ी मदद की है चलिए मेरे साथ मेरे घर चलिए मैं आपका सत्कार करना चाहता हूं नहीं बेटा अभी तो घर जाऊंगा खुश रहो
रामेश्वर सोमनाथ को उसके घर छोड़ने के बाद अपने घर की तरफ चले जाते हैं सोमनाथ को अब सारा गांव पहले की तरह पूजा पाठ के लिए बुलाने लगा साथ ही खेती भी बहुत अच्छी हो रही थी .सोमनाथ ने कुछ ही महीनों में अपना सारा कर्ज चुका दिया और फिर सही समय पर उमा ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया
पंडित ने कहा-वाह उमा देखो क्या तेज है इसके चेहरे पर
पंडिताइन ने कहा-होगा क्यों नहीं भोले बाबा का वरदान जो है
सोमनाथ ने पिता बनने की खुशी में पूरे गांव में मिठाइयां बांटी और फिर एक मिठाई का डिब्बा लेकर पास वाले गांव हरिपुर जा पहुंचा
पंडितने कहा-अरे भाई जरा सुनो यह रामेश्वर जी का घर कहां है वो जिनका बेटा शहर में काम करता है
ग्रामीण ने कहा-क्या कहां रामेश्वर भाई यहां तो इस नाम का कोई भी नहीं रहता क्या कह रहे हो मुझे तो इसी गांव के बारे में बताया था उन्होंने वो वो वो काफी बड़े आदमी हैं और इसी गांव में रहते हैं
ग्रामीण ने कहा-देखो भाई मैं इस गांव में हर किसी को जानता हूं लेकिन किसी रा में श्वर को नहीं फिर भी तुम्हें तसल्ली नहीं है तो जाकर
खुद ढूंढ लो
सोमनाथ पूरे गांव में हर घर में जाकर पूछता है लेकिन उस ग्रामीण की बात सही थी पूरे हरिपुर में रामेश्वर नाम का कोई भी इंसान मौजूद ही नहीं था गांव भर में घूमने के बाद सोमनाथ को जैसे ही एक शिव मंदिर दिखाई दिया तो वहां पहुंचकर उसे सब कुछ समझ आ गया रामेश्वर कोई और नहीं बल्कि खुद भोले बाबा ही थे जो अपने भक्त का साथ देने आए थे
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भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद से क्या नहीं हो सकता ऐसा ही विश्वास था यशोदा का और ऐसा हुआ भी भगवान भोलेनाथ के वरदान के फल स्वरूप यशोदा के सिर से बांझ होने का कलंक मिट गया तो चलिए देखते हैं बांज बहू की
महाशिवरात्रि यशोदा को देखने के लिए लड़के वाले आए थे यशोदा के पिता रामनिवास लड़के की मां से कहते हैं देखिए बहन जी हमारी यशोदा बचपन से ही भगवान भोलेनाथ की भक्त है वह हर सोमवार को भगवान भोलेनाथ के मंदिर जाकर उनकी पूजा करती है और व्रत भी रखती है यशोदा हर साल महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ की भव्य पूजा करती है दरअसल यशोदा खुद भी भगवान भोलेनाथ की मन्न तों से जन्मी है हमने संतान प्राप्ति के लिए भगवान भोलेनाथ की पूजा आराधना की थी जिसके बाद यशोदा का जन्म हुआ
लड़के वाले ने कहा-हां हां भाई साहब यशोदा शादी के बाद भी भोलेनाथ की भक्ति करेगी हमें इससे कोई आपत्ति नहीं है आप तो
बस कोई अच्छा सा महूरत देखकर शादी की तैयारी कीजिए
यशोदा के पिताने कहा-ठीक है बहन जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कुछ दिनों के बाद यशोदा की शादी सोमवती के बेटे हरीश के साथ हो जाती है यशोदा खुशी-खुशी अपने ससुराल आ जाती है दूसरे ही दिन सोमवार का दिन था और यशोदा सुबह-सुबह नहा धोकर भगवान भोलेनाथ के मंदिर जाने के लिए पूजा की थाली सजाने लगती है
सोमवतीने कहा-अरे बहू आज तो तेरी शादी का दूसरा ही दिन है आज कहां जाने की तैयारी कर रही है
यशोदा ने कहा-मां जी आज सोवार है ना मैं भगवान भोलेनाथ के मंदिर जा रही हूं मैं हर सोमवार को भगवान भोलेनाथ के मंदिर जरूर जाती हूं और उनकी पूजा करती हूं और आज
मेरा व्रत भी है
सोमवतीने कहा-राम राम शादी के दूसरे ही दिन नई बहू ऐसे घर से बाहर पैर निकालती है क्या, भला बताओ तो चुपचाप घर में ही पूजा कर ले
यशोदा ने कहा-लेकिन मां जी घर में तो भगवान भोलेनाथ की मूर्ति नहीं है
सोमवतीने कहा-तो कोई बात नहीं तू तो बहुत बड़ी भक्त है ना अपने मन में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर ले इस घर में किसी भगवान की पूजा नहीं होती है.
शादी के बाद यशोदा को पता चला कि उसके ससुराल वाले तो भगवान को मानते ही नहीं है पूजा पाठ तो दूर की बात है ऐसा पहली बार हुआ था कि सोमवार के दिन यशोदा भगवान भोलेनाथ के मंदिर नहीं गई हो यशोदा दुखी मन से अपने मन में भगवान भोलेनाथ से क्षमा
मांगती है हे भोलेनाथ मुझे माफ कर देना आज मैं आपकी पूजा करने आपके पास नहीं आ सकी क्या करूं अब मैं ससुराल के नियमों से बंद गई हूं भोलेनाथ आप तो अंतर्यामी हैं मुझे उम्मीद है कि आप मेरी मजबूरी समझ रहे होंगे .धीरे-धीरे दिन बीतते गए और यशोदा का प्रत्येक सोमवार को मंदिर जाना छूट गया उसकी सास सोमवती कभी काम का बहाना तो कभी किसी और बहाने से उसे कभी भगवान भोलेनाथ के मंदिर नहीं जाने देती
सोमवतीने कहा- देख बहू यहां यह सब नहीं चलेगा मंदिर जाने के बहाने घूमना फिरना और ऐश मौज करना मुझे पसंद नहीं है चुपचाप घर में रहकर घर के काम काज कर बेचारी यशोदा अपने मन में ही भगवान
भोलेनाथ का ध्यान कर लेती इस तरह कई साल बीत गए और यशोदा मां नहीं बन पाई इधर यशोदा के पति हरीश ने अपना नया बिजनेस शुरू किया था और वह अपने नए काम पर पहली बार ऑफिस जाने के लिए घर से बाहर निकल रहा था तभी यशोदा ने उसे पीछे से आवाज लगाई सुनिए जी यशोदा की आवाज लगाने के कारण उसका पति हरीश पीछे मुड़ा और यशोदा की तरफ देखकर बोला- बोलो क्या बात है मैं कहीं भी जाऊं तुम टोके बिना नहीं रह सकती
सोमवतीने कहा-इसे कितनी बार समझाया है कि जब कोई शुभ काम के लिए घर से बाहर जाए तो उसके सामने अपनी मनहूस चकर लेकर मत आया कर अच्छा भला काम का नुकसान सान हो जाता है शादी के सात साल
हो गए अब तक एक पोता तो दे नहीं पाई नाम तो यशोदा है लेकिन गोद में नंदलाला अभी तक नहीं आया
सास सोमवती की बातें सुनकर यशोदा की आंखों से आंसू निकल आए
हरीश ने कहा-माने ऐसा भी क्या कह दिया कि तुम आंखों से गंगा जमुना बहाने लग गई यह सब नाटक करने की जरूरत नहीं है और इतना कहकर हरीश अपने काम पर निकल गया
यशोदा दिन भर घर की चार दीवारी में बंद रहती और घर के काम करती लेकिन वह हर समय भगवान भोलेनाथ के नाम का जाप करती रहती थी एक बार यशोदा के ससुराल में उसकी सास सोमवती की बहन कलावती अपनी बहू और एक साल के पोते को लेकर आई
सोमवतीने कहा-अरे कलावती बहन बहुत-बहुत बधाई हो तुम तो दादी बन गई
मेरी किस्मत तो फूटी हुई थी जो मैंने अपने बेटे की शादी इस बंजर जमीन से कर दी
यशोदा सांस की बातें सुनकर खून का घूंट पीकर रह जाती है उसने बच्चे को गोद में लेने की कोशिश की नर्मदा बहन जरा मुन्ने को मेरी गोद में देना जरा मैं भी इसे प्यार कर लूं
सोमवतीने कहा- तू तो रहने ही दे तेरा अपना बच्चा तो है नहीं तू क्या जाने कि बच्चे को कैसे गोद में लेते हैं तू तो बच्चे को गिरा देगी उसे चोट लग जाएगी सोमवती की बात सुनकर नर्मदा यशोदा के हाथों से अपना बच्चा वापस ले लेती है सास सोमवती के ताने यशोदा के लिए बांझ होने की तकलीफ से ज्यादा बड़े थे
जो यशोदा के दिल में गहरे घाव बना रहे थे इतने दुख और तानों के बीच भी यशोदा हमेशा भगवान भोलेनाथ को याद करती शादी के सात साल बीत गए थे लेकिन इन सात सालों में यशोदा एक बार भी विधि विधान से महाशिवरात्रि की पूजा नहीं कर पा पाई थी लेकिन वह भूखे रहकर अपना व्रत जरूर पूरा करती और मन में भगवान भोलेनाथ का ध्यान करती
यशोदा हमेशा याद करती कि कैसे वह शादी से पहले हर सोमवार को भगवान भोलेनाथ के मंदिर जाती थी और उन्हें जल और बेलपत्र अर्पित करती थी लेकिन भगवान भोलेनाथ की पूजा अब यादें ही बनकर रह गई थी हे भोलेनाथ मैंने ऐसा कौन सा अपराध किया था
कि आपने मुझे संतान के सुख से वंचित रखा क्या आप नहीं जानते कि मेरी मजबूरी क्या है हां पता है कि मैं सात सालों से आपके मंदिर नहीं आई और आपकी पूजा नहीं की लेकिन आप तो भगवान हैं आप समझ सकते हैं कि मैं किन हालातों से गुजर रही हूं आप मेरी मदद कीजिए प्रभु मुझे बस आप पर विश्वास है यशोदा मन ही मन भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना कर रही थी कि तभी उसकी सास सोमवती चिल्लाती है यशोदा यशोदा पता नहीं अकेले में किससे बातें करती रहती है डायन कहीं की हमें पता होता कि तू बांज निकलेगी तो कभी तुझे ब्याह के अपने घर नहीं लाते
यशोदाने कहा- क्या हुआ मां जी
सोमवती यशोदा के बाद पकड़
कर उसे खींचते हुए बोलती है मां जी की बच्ची दिन के 12:00 बज गए ना कपड़े धुले हैं और ना खाना बना है
यशोदाने कहा- माझी मेरे बालों को छोड़ दीजिए बहुत दर्द हो रहा है
सोमवतीने कहा- दर्द हो रहा है तो फिर मुझे गुस्सा क्यों दिलाती है चल जल्दी से काम निपटा
इस घर को सुना करके छोड़ दिया है तूने
दिन भर तेरी मनहूसियत इस घर को खाई जा रही है जिस घर में बच्चे की किलकारी नहीं गूंजती उस घर में चीखें ही गूंजती हैं समझी. बेचारी यशोदा अपने हाथों से अपने आंसू पोछे हुए घर के काम करने लग ती है यशोदा की शादी को आठवां साल चल रहा था महाशिवरात्रि का त्यौहार नजदीक आने वाला था यशोदा मन ही मन
सोचती है कुछ भी हो जाए मैं इस साल महाशिवरात्रि पर भगवान भोलेनाथ की पूजा जरूर करूंगी यशोदा अप नी मां सविता को फोन करती है मां मां शब्द के आगे यशोदा कुछ नहीं कह पाई और फूट फूट कर रोने लगी
यशोदा की मां सविता ने कहा- क्या बात है यशोदा तू रो क्यों रही है क्या तू ससुराल में खुश नहीं है किसी ने कुछ कहा है क्या .
यशोदा ने कहा-मां सारा दिन बांझ होने का ताना सुनती रहती हो जब से शादी हुई है मैं कभी भगवान भोलेनाथ के मंदिर नहीं गई और ना ही उनकी पूजा की मुझे ऐसा लगता है कि भगवान भोलेनाथ मुझसे बहुत नाराज है लेकिन इस बार इस बार मैं महाशिवरात्रि की भव्य पूजा करना चाहती हूं
यशोदा की मां सविता ने कहा-तू चिंता मत कर बेटी तेरे
पिताजी तो भगवान भोलेनाथ के भक्त हैं मैं तेरी सास से बात करके महाशिवरात्रि से पहले तुझे घर बुला लूंगी तू यहां आ जाना और मेरे साथ मंदिर चलकर महाशिवरात्रि की पूजा अर्चना करना
यशोदा ने कहा-ठीक है मां
यशोदा की मां सविता उसकी सास सोमवती को फोन करती है और उससे कहती है कि वह यशोदा को कुछ दिनों के लिए माइके आने दे
सोमवतीने कहा-देखिए बहन जी वैसे तो आपकी बेटी हमारे किसी काम नहीं आई शादी के 7 साल हो गए और उसने अभी तक एक बच्चा नहीं दिया उसके रहने से तो हमारे घर में मनहूसियत ही छाई रहती है लेकिन अगर वह माइके चली गई तो यहां घर का काम कौन करेगा
सविता काफी मिन्नतें करती है और
महाशिवरात्रि से ठीक एक दिन पहले यशोदा को मायके भेजने के लिए सोमवती को मना लेती है
यशोदा की मां सविता ने कहा-बस दो दिनों की बात है बहन जी दो दिनों के बाद हम यशोदा को वापस भेज देंगे
सोमवतीने कहा-ठीक है लेकिन इसे कोई पहुंचाने नहीं जाएगा यह अपने आप चली जाएगी और इस तरह महाशिवरात्रि से ठीक एक दिन पहले यशोदा अपने मायके आ जाती है
यशोदा ने कहा-मां मैंने सात साल से भगवान भोलेनाथ को नहीं देखा उनकी पूजा नहीं कर पाई इसलिए भगवान भोलेनाथ ने मुझे इतनी बड़ी सजा दी है
यशोदा की मां सविता ने कहा-नहीं यशोदा बेटी ,भगवान भोलेनाथ तो अत्यंत भोले हैं वह अपने भक्तों से कभी नाराज नहीं होते वे तो सदा अपने भक्तों की मदद करते हैं
यशोदा ने कहा- तो भगवान
भोलेनाथ मेरी मदद क्यों नहीं करते मां .इस यशोदा की गोद में भी एक नंदलाल क्यों नहीं देते
यशोदा की मां सविता ने कहा-यशोदा बेटी अब तू घर आ गई है तो चिंता किस बात की है कल महाशिवरात्रि है कल भगवान भोलेनाथ की पूजा करना और उनसे अपने दिल की बात कह देना
दूसरे दिन महाशिवरात्रि का पवित्र त्यौहार था यशोदा सुबह उठकर नहा धोकर तैयार हुई और अपनी मां सविता के साथ भगवान भोलेनाथ के मंदिर गई लेकिन भगवान भोलेनाथ के सामने यशोदा एक भी शब्द नहीं बोल पाई. बोल रहे थे तो सिर्फ यशोदा की आंखों से बहते हुए आंसू .यशोदा बिना कुछ कहे भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करके घर वापस आ गई रात में जब
यशोदा सोई तो उसके सपने में भगवान भोलेनाथ ने दर्शन दिए और यशोदा से कहा यशोदा तुम्हारे आंसुओ ने मुझसे वह सब कह दिया जो तुम मुझसे कहना चाहती थी मैं तुम्हारी निश्चल भक्ति से अभिभूत हूं और आज तुम्हें वह सब देने आया हूं जिसकी कामना लेकर तुम मेरे पास आई थी आज से ठीक नौ महा बाद तुम एक बालक को जन्म दोगी इतना कहकर भगवान भोलेनाथ अंतर्ध्यान हो गए और यशोदा की नींद खुल गई
यशोदा ने कहा-क्या यह सपना था ऐसा लग रहा था जैसे भगवान भोलेनाथ सच में मेरे सामने खड़े हो और मुझे आशीर्वाद दे रहे हो हे भोलेनाथ आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपने स्वयं आकर मुझे दर्शन दिया मुझे अपना
आशीर्वाद दिया दूसरे दिन यशोदा सोकर उठी उस दिन वह बहुत खुश थी उसने अपनी मां सविता से सारी बात बताई
यशोदा की मां सविता ने कहा-यशोधा बेटी भगवान भोलेनाथ तेरे सारे दुख दूर करेंगे और जल्द तेरी गोद भर जाएगी
यशोदा ने कहा-मां अब मैं अपने ससुराल जाना चाहती हूं
यशोदा की मां सविता ने कहा-हां बेटी जरूर जा लेकिन हर साल महाशिवरात्रि से एक दिन पहले माय के आ जाना और यहां रहकर भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा अर्चना करना
यशोदा खुशी-खुशी अपने ससुराल चली जाती है कुछ दिनों के बाद ही यशोदा गर्भवती हो जाती है नौ माह के बाद यशोदा ने एक बहुत ही सुंदर बालक को जन्म दिया जिसके बाद यशोदा के सिर से बांझ होने का कलंक धुल गया
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