शिवरात्रि से जुड़ी सच्ची कहानी shivratri se judi sachchi kahani

 

शिवरात्रि से जुड़ी सच्ची कहानी

एक समय एक गॉव में पंडित तुकाराम रहता था। वह भगवान शिव का भक्त था किन्तु पंडित होते हुए भी वह लकड़हारे का काम करता था। वह जंगल से लकड़ी काट कर लाता और उसे गॉव के बाजार में बेच कर अपनी गुजर बसर करता था।

इसी बीच श्रावण का महीना शुुरू हो गया। श्रावण में बहुत बारिश हो रही थी। इसी कारण जंगल के सभी पेड़ गीले हो गये।

पंडित तुकाराम जब लकड़़ी काटने गया तो उसे सूखी लकड़ी नहीं मिली और गीली लकड़ी बिक नहीं पाती। यही सोच कर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया।

पंडित तुकाराम: भगवान आपने बारिश करके मुझे भूखा मार दिया घर पर मेरी पत्नि और बच्चे भूखे मर जायेंगे। मैं आज घर न जाकर यहीं प्राण त्याग देता हूं अपनी पत्नि और बच्चे को मरता नहीं देख सकता।

वह मरने के बारे में सोच ही रहा था तभी उसे पेड़ के नीचे कुछ चमकता हुआ दिखाई देता है। वह देखता है भगवान शिव का शिवलिंग वहां स्थापित था।


पंडित तुकाराम उस शिवलिंग को साफ करता है।

पुडित तुकाराम: भगवान शिव आप यहां जंगल में क्या कर रहे हैं।


तभी शिवलिंग में से आवाज आती है। ‘‘मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था तुम हर दिन लकड़ी तोड़ने आते हो तो इस वीरान जंगल में रौनक हो जाती है लेकिन आज तुम मरने की बात कर रहे हो तो मुझे प्रकट होना पड़ा’’

पंडित तुकाराम: भगवन आप स्वयं बोल रहे हैं मेरा जन्म तो सफल हो गया किन्तु मेरा परिवार भूखा मर जायेगा यह मैं देख नहीं सकता।

शिवजी: तुम लकड़ी मत काटो इससे पेड़ों को बहुत तकलीफ होती है इसी कारण तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है।

आज श्रावण की शिवरात्री है आज तुम मेरा व्रत करो सुबह पूजन करते ही तुम्हें ज्ञान की प्राप्ति हो जायेगी।

पंडित जी ने व्रत किया और पूजन किया तभी पंडित जी को अचानक ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। वे वेद शास्त्रों के विद्वान बन जाते हैं। वहां से वे सीधे मन्दिर जाते हैं और कथा वाचन शुरू कर देते हैं।

कुछ ही दिनों में उनकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल गई अब उनके पास न धन की कमी थी न ज्ञान की उस दिन से पंडित तुकाराम लोगों को शिवरात्रि के व्रत का प्रचार करने लगे।


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एक गॉव में एक बुढ़िया माई रहती थी। बुढ़िया माई का इस संसार में कोई नहीं था। वह दिन रात भगवान शिव और मॉं पार्वती की पूजा करती थी।

एक दिन बुढ़िया माई बहुत बीमार हो गई। वह भगवान की पूजा नहीं कर सकी। बुढ़िया माई रो रही थी।


बुढ़िया माई: हे भगवान मुझे भी एक संतान दी होती तो आपको बिना भोग लगाये नहीं रहना पड़ता आज मैं बीमार हूं, मेरे अंदर इतनी ताकत नहीं है कि आपका भोग लगा सकूं।

तभी उसके दरवाजे पर दस्तक होती है।

बुढ़िया माई दरवाजा खोलती है तो देखती है। एक नवयुवक और एक नवयुवती खड़े हैं।

बुढ़िया माई: अरे तुम दोंनो कोन हो?

नवयुवक: मांजी मैं आपका बेटा हूं अभी आप भगवान से बेटा बहु मांग रही थी समझो भगवान ने आपकी सुन ली और हम दोंनो को भेज दिया यह आपकी बहु है।

बुढ़िया माई: यह क्या कह रहे हो मेरा तो कोई बेटा नहीं है। मैं तुम्हें नहीं जानती चले जाओ यहां से।

नवयुवती: मांजी में आपकी बहु हूं इनसे आपका कोई पिछले जन्म का रिश्ता होगा तभी शिवजी ने हमें यहां भेजा है। लाईये मैं भोग का प्रसाद बना देती हूं। आप आराम कीजिये।

बेटा बहु को पाकर बुढ़िया माई बहुत खुश हुई। बहु बेटे बुढ़िया माई की दिनरात सेवा करने लगे जिससे वह बहुत जल्दि ठीक हो गई।


एक दिन बहु उदास बैठी थी। तब बुढ़िया माई ने उससे पूछा।


बुढ़िया माई: बेटी क्या बात है तू इतनी उदास क्यों है।

बहु: मांजी सोमवती अमावस्या आ रही है, इसी दिन हमें यहां से जाना पड़ेगा।

बुढ़िया माई: लेकिन क्यों तुम तो मेरे बहु बेटे बन कर आये हो।

बहु: हॉं मांजी हमें कहीं ओर जाना है आप तो अब ठीक हो गई हैं। संसार में जहां भी कोई परेशान होता है। भगवान हमें उसकी मदद के लिये भेज देते हैं।

यह सुनकर बुढ़िया माई रोने लगी। वह भगवान शिव और मॉं पार्वती से प्रार्थना करने लगी।

बुढ़िया माई: भगवान या तो मेरे प्राण ले लो या फिर इन मेरे बहु बेटों को मेरे पास ही रहने दो इनके बगैर मैं जिंदा नहीं रह सकती मैं मर जाउंगी।

इसी तरह सोमवती अमावस्या आ जाती है। बहु बेटे जाने की तैयारी करने लगते हैं। बुढ़िया माई ने व्रत किया प्रसाद बनाया और बहु बेटे से कहा

बुढ़िया माई: तुम दोंनो प्रसाद खाकर जाना।

सांय काल में दोंनो ने प्रसाद खाया और जाने लगे। तो बुढ़िया माई फूट फूट कर रोने लगी।

तभी दोंनो भेष बदल कर भगवान शिव ओर मॉं पार्वती के रूप में प्रकट हो गये।

बुढ़िया माई उनके पैरों में गिर गई

बुढ़िया माई: हे भोलेनाथ मुझे कैसे पाप में डाल दिया मैं अनजाने में आप दोंनो से सेवा कराती रही मुझे अपने चरणों में जगह दो और आपने साथ ले चलो।

शिव जी: मांजी आप चिन्ता न करें। हम आपका हमेशा ध्यान रखेंगे अपने भक्त को हम कभी कष्ट में नहीं छोड़ सकते। आप जब भी हमें याद करेंगी हम आ जायेंगे।

इतना कहकर दोंनो अर्न्तध्यान हो गये।

इस तरह बुढ़िया माई का जीवन सफल हो गया। उसके घर में अन्न धन के भंडार भर गये। 


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