शिव भक्त गरीब बुढ़िया | Aadhyatmik Kahani | Dharmik Kahani | Bhakti Kahani | Shiv ji Ki Bhakti -

  शिव भक्त गरीब बुढ़िया | Aadhyatmik Kahani | Dharmik Kahani | Bhakti Kahani | Shiv ji Ki Bhakti -  


मंगला नाम की एक बहुत ही गरीब बूढ़ी औरत अपने बहू बेटे के साथ रहा करती थी मंगला भगवान शिव की परम भक्त थी उसका नियम था पूजा आरती के बाद अपने भोजन को दो भागों में बांटना एक भाग भगवान शिव को अर्पित करना और दूसरा भाग स्वयं खाना मंगला की यह आदत उसकी बहू सुदा को बिल्कुल पसंद नहीं थी वह इसी बात को लेकर रोजाना मंगला को सुनाती रहती थी मां जी आपको पता है ना घर में रोटी का अकाल पड़ा हुआ है बड़ी मुश्किल से एक वक्त की रोटी घर में बनती है उसमें से भी आप आधा हिस्सा भगवान शिव के नाम का दूसरे गरीबों में बांट देती हो ऐसा कैसे चलेगा इससे तो अच्छा है कि आप

(00:41) आधा ही भोजन लिया करो ना आधा खराब क्यों करती हो अपनी बहू के मुंह से ऐसी बात सुनकर मंगला बोली मैं भोजन खराब नहीं करती हूं मैं तो अपने जैसे ही गरीबों को भगवान शिव के नाम का भोजन देती हूं ताकि किसी और का पेट भी भर सके और फिर मैं अपनी रोटी में से ही तो आधी रो टी देती हूं मैं इससे अधिक भोजन नहीं लेती मंगला की बहू सुधा बोली तो ठीक है आपको कल से आधी रोटी ही मिलेगी ताकि आपकी आधी रोटी घर में इस्तेमाल हो सके आपको पता भी है कितने दिनों से इन्हें काम भी नहीं मिल रहा तभी मंगला का बेटा गोपाल भी वहां आ जाता है और सुदा की हां में हां मिलाने लगता है मां

(01:22) सुदा ठीक कह रही है अपने हिस्से की आधी रोटी खाकर तुम क्यों भूखी रहती हो गलती तुम्हारी है मां हम तुम्हारे लिए सोचते हैं कि तुम अपना पेट भर लो और तुम हो कि भगवान शिव का नाम लेकर बांटती फिरती हो लाओ सुधा मुझे भी कुछ खाने को दे दो सुबह से दिमाग खराब हो गया कहीं भी कोई काम नहीं मिल रहा पता नहीं घर कैसे चलेगा सुधा ने दो रोटी पर थोड़ी सब्जी रखकर गोपाल को दे दी गोपाल ने रोटी खाई और खटिया बिछाकर सो गया गोपाल का रोजाना का यही नियम था उसे अगर काम मिलता तो थोड़े पैसे ले आता नहीं तो घर में कुछ भी नहीं बनता था सावन मास प्रारंभ हो चुका था मंगला ने सावन

(02:02) सोमवार व्रत रखने प्रारंभ किए मंगला सुधा से कहने लगी बहू आज सावन का पहला सोमवार है रसोई से थोड़ा आटा दे देती तो मैं थोड़ा चूरमा बनाकर भगवान शिव को भोग लगा देती सुधा कहने लगी आज घर में खाने को कुछ भी नहीं है आटा भी खत्म हो गया है मंगला ने पूछा आज गोपाल सोकर नहीं उठा है अक्सर तो वह जल्दी उठ जाता है सुधा ने उत्तर दिया पता नहीं बोल रहे हैं सर में बहुत दर्द है और ठंड भी लग रही है लगता है बुखार ना हो गया हो क्या बुखार मैं देखती हूं ऐसा कहकर मंगला गोपाल के कमरे में जाती है गोपाल बेटा गोपाल बेटा क्या हुआ बेटा तेरी तबीयत ठीक नहीं है गोपाल बिस्तर

(02:46) पर लेटा हुआ था वह बोला हां बुखार लग रहा है इसलिए काम पर भी नहीं जा पाऊंगा कैसे काम चलेगा सुदा बोल रही है घर में खाने को भी कुछ नहीं रखा मंगला कहने लगी तू चिंता मत कर बेटा मैं देखती हूं कहीं से कुछ इंतजाम करती हूं तू आराम कर मैं आती हूं यह सुनकर सुधा ताना मारते हुए कहने लगी कह तो ऐसे रही है जैसे महीने भर का राशन उठाकर ले आएंगी देखना खाली हाथ लौट आएंगी मंगला बड़ी देर तक सड़क पर घूमती रही पर उसे कोई रास्ता नजर नहीं आया जिससे वह पैसे कमा सके वो एक किराने की दुकान पर जाकर पूछने लगी भैया कोई काम मिलेगा दुकानदार बोला नहीं अम्मा हमारी दुकान पर

(03:31) आप जैसे बूढ़े लोगों के लिए कोई काम नहीं है मंगला अब थोड़ी परेशान होने लगी और मनी मन सोचने लगी क्या करूं मुझे तो कोई भी काम नहीं दे रहा हे शिवशंकर मेरी मदद करो वहीं पास में मोहनलाल जी का घर था आज उनके यहां सावन की पूजा थी और तबीयत खराब होने के कारण उनके यहां खाना बनाने वाली नहीं आ पाई थी और उन्हें खाना बनाने वाली की जरूरत थी जो प्रसाद के लिए खीर पूरी बना सके इतने में ही काम की तलाश करते हुए मंगला वहां पहुंच जाती है और पूछती है बेटा कोई काम मिलेगा मुझे पैसों की बहुत जरूरत है बेटा मेरी मदद करो मैं कोई भी काम कर लूंगी मोहनलाल जी ने मंगला से पूछा

(04:14) अम्मा खाना बना सकती हो घर में सावन की पूजा है कुछ लोगों का प्रसाद का खाना तैयार करना है अगर तुम हां कहो तो मैं तुम्हें अपने नौकर के साथ रसोई दिखा देता हूं मंगला बोली हां बेटा मैं शुद्ध शाकाहारी भोजन अच्छे से तैयार कर सकती हूं भगवान भोलेनाथ तुम पर कृपा करें तुम्हारा बहुत एहसान होगा बेटा अगर तुम मुझे ये काम दे दो मोहन लाल जी मंगला से बोले जब काम खत्म हो जाएगा तो अम्मा मुझसे मिलना ठीक है मैं तुम्हें काम के पैसे दे दूंगा नौकर मंगला को रसोई की तरफ ले जाता है मंगला वहां खूब मन लगाकर बहुत ही स्वादिष्ट प्रसाद का भोजन तैयार करती है सबको मंगला

(04:57) के हाथ का बना हुआ प्रसाद बहुत पसंद आता है मोहन लाल जी मंगला से कहने लग अम्मा जी आपके हाथ का प्रसाद मेहमानों को बहुत पसंद आया सचमुच आपके हाथों में तो अलग ही स्वाद है मंगला बोली बेटा सब भगवान भोलेनाथ की कृपा है मैंने तो बस उनका नाम लेकर प्रसाद बनाया था बाकी प्रसाद में स्वाद तो भगवान का नाम लेते से ही आ जाता है कार्यक्रम के समाप्त होने के बाद मोहन लाल जी ने मंगला से कहा अम्मा जी यह मेरी तरफ से आपके लिए उपहार स्वरूप लिफाफा रखिए आप मेरे से उम्र में बड़ी हैं मैं आपके बेटी की तरह हूं इसलिए यह आपको दे रहा हूं मंगला बोली

(05:37) भगवान शिव का आशीर्वाद तुम्हारे परिवार पर हमेशा बना रहे मंगला को सचमुच उस समय उन पैसों की बहुत जरूरत थी उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे भगवान शिव ने उसकी प्रार्थना सुन ली थी मोहनलाल की पत्नी मंगला को ढेर सारा प्रसाद पैक करके देती है मोहनलाल ने मंगला को जो लिफाफा दिया था उसमें 51 00 थे उस रसोइए ने भी मंगला को अलग से पैसे दिए इसी तरह वहां उपस्थित सभी लोगों ने मंगला को इनाम में रुपए दिए मंगला ढेर सारा प्रसाद और नगद रुपए लेकर घर पहुंचती है सुधा की खुशी का ठिकाना नहीं था बहुत दिनों बाद आज उसे पूरी पकवान खाने को मिले थे सुदा बोली अम्मा जी आज

(06:21) मैं भगवान शिव की शक्ति को मान गई आपने हमेशा अपने से पहले भगवान शिव के बारे में सोचा और आज जरूरत का समय भगवान ने आपकी इतनी मदद की मां जी अब से कभी भी आपको भगवान के हिस्से का भोग निकालने से नहीं रोकूंगी मंगला कहने लगी बहू तुम दोनों ही तो मेरी जिंदगी हो मैं तुम दोनों के लिए भगवान शिव से हमेशा प्रार्थना करती हूं कि तुम दोनों हमेशा खुश रहो गोपाल बेटा एक काम कर अभी मेरे पास जो पैसे हैं उनसे तू काम शुरू कर ले तेरा राशन की दुकान खोलने का बहुत मन था ना तो क्यों ना तू राशन की दुकान खोल ले मेरी मदन हलवाई से भी बात हो गई है वह मुझे बीच-बीच में खाना बनाने के

(07:03) लिए बुलाते रहेंगे तू पैसों की चिंता मत कर बस तू अपना व्यापार जमा ले बेटा मंगला की बात सुनकर गोपाल की आंखों में आंसू आ जाते हैं गोपाल और सुधा दोनों मिलकर मंगला के पैर छूते हैं और आशीर्वाद लेते हैं मां मां होती है वह अपने बच्चों के लिए अपने से पहले सोचती है यह बात गोपाल और सुधा को समझ आ गई उस दिन से गोपाल और सुधा भी मंगला के साथ भगवान शिव की पूजा करने लगे और अपने भोजन में से थोड़ा भोजन वह भगवान शिव के नाम का जरूरतमंद लोगों को अवश्य देते थे धीरे-धीरे मंगला की शिव भक्ति के फल स्वरूप उसके परिवार में गरीबी के दिन

(07:41) दूर हो गए 



शाम का वक्त था मनोहर शिव जी के मंदिर में शिव जी की पूजा में व्यस्त था गांव के बाकी लोग भी वहां मौजूद थे सभी लोग भगवान शिव से प्रार्थना कर रहे थे हमारे गांव का भला करना प्रभु गांव में शांति बनाए रखना लेकिन दूसरी ओर गांव के सबसे अमीर आदमी प्रेमचंद के बंगले में कुछ और ही योजना चल रही थी प्रेमचंद के घर में गोवर्धन नाम का एक बड़ा व्यापारी आया हुआ था दोनों मिलकर बिजनेस की बातें कर रहे थे वह बोला हमें समय के साथ आगे बढ़ना चाहिए नहीं तो हम पीछे रह जाएंगे मैं इसलिए तो कह रहा हूं वह मंदिर वाली जगह आप मुझे बेज दीजिए वहां

(08:23) मैं फैक्टरी बनाऊंगा इसमें आपका भी फायदा और मेरा भी फायदा गोवर्धन की यह बात सुनकर प्रेमचंद ने कहा उस मंदिर की जमीन तो मैं आपको अभी बेज दूं लेकिन गांव वाले नहीं मानेंगे वो लोग हर रोज मंदिर में पूजा करते हैं गोवर्धन कहने लगा अरे पैसों के आगे कौन नहीं झुकता प्रेमचंद जी मैं सब कुछ संभाल लूंगा आप चिंता मत कीजिए प्रेमचंद ने वह जमीन बेचने का वादा कर दिया उधर मनोहर और उसकी बीवी सावित्री एक महीने बाद आने वाली शिवरात्रि की योजना बना रहे थे सुनो सावित्री इस बार की शिवरात्रि बड़ी धूम नाम से मनाएंगे पूरा गांव मिलकर शिवजी के भजन गाएंगे इससे

(09:04) शिवजी प्रसन्न होंगे मनोहर खेतीबाड़ी करता था गांव के ज्यादातर आदमी मनोहर की ही तरह खेती करते थे लेकिन इस साल बारिश ना होने की वजह से फसल नहीं उगी इसलिए सभी परेशान थे सभी मनोहर से कहते हैं अरे मनोहर भाई क्या होगा हमारा फसल ही नहीं उगी तो हम खाएंगे क्या मनोहर कहने लगा चिंता मत करो भाई ऊपर से महादेव सब कुछ देख र हैं वह सब कुछ ठीक कर देंगे इस साल भी शिवरात्रि हम धूमधाम से मनाएंगे शिवजी के मंदिर को हम अच्छी तरह सजाएंगे शिवजी हमसे जरूर प्रसन्न होंगे लेकिन गरीब गांव वालों के दुख दर्द को प्रेमचंद और गोवर्धन जैसे लोग

(09:45) कहां समझ पाते हैं अगले दिन सोमवार था हर सोमवार गांव की औरतें शिवजी के लिए व्रत रखती थी और शाम को मंदिर में पूजा करने के बाद ही कुछ खाती थी शाम के समय गांव की औरतें मंदिर की तरफ जाने लगी लेकिन मंदिर के सामने आते ही वे लोग चौक गए उन लोगों ने देखा कि मंदिर को चारों ओर से कांटे वाली तार से घेरा जा रहा है और पास ही में प्रेमचंद और गोवर्धन खड़े हैं सावित्री ने प्रेमचंद से पूछा यह सब क्या हो रहा है प्रेमचंद जी प्रेमचंद बोला क्या हो रहा है तुझे दिखाई नहीं देता मैंने यह जमीन बेच दी है अब गोवर्धन जी यह मंदिर तोड़ के यहां फैक्ट्री बनाएंगे तभी वहां मनोहर

(10:27) चलाया और उसने कहा लेकिन इस मंदिर से हमारी आस्था जुड़ी हुई है प्रेमचंद कहने लगा लेकिन यह बात मत भूलो यह जमीन मेरी है मैंने ही तुम लोगों के कहने पर यह मंदिर बनवाया था मनोहर बोला लेकिन यह मंदिर शिवजी का है हम इसे नहीं तोड़ने देंगे क्यों भाइयों नहीं तोड़ने देंगे नहीं तोड़ने देंगे चिल्लाते हुए सब लोग मंदिर को घेर कर खड़े हो गए तभी गोवर्धन ने प्रेमचंद से कहा ऐसे तो तमाचे के अलावा कुछ नहीं होगा प्रेमचंद जी अभी चलिए यहां से मैं सब कुछ संभाल लूंगा वह दोनों वहां से चले गए लेकिन मनोहर का मन अशांत हो गया उस रात मनोहर ने एक सपना देखा उसके सपने

(11:10) में शिवजी आए हुए थे शिवजी ने मनोहर से कहा मनोहर मैं तुमसे और गांव वालों से बहुत प्रसन्न हूं तुम लोगों को बस एक आखिरी परीक्षा देनी होगी उस मंदिर में धूमधाम से शिवरात्रि मनानी होगी और उसके बाद ही तुम लोगों को मेरी कृपा मिले मनोहर की नींद टूट गई उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे उसने हाथ जोड़ लिए और कहने लगा शिवजी आपने खुद मेरे सपने में आकर मुझे आदेश दिया भला मैं उसे कैसे टाल सकता हूं अब तो चाहे जान देनी पड़े लेकिन उस मंदिर को मैं बचा कर ही रहूंगा मनोहर के मन में अचानक से एक शक्ति आ गई सुबह उसने सभी गांव वालों से उसके सपने के बारे में कहा

(11:54) तभी एक आदमी ने कहा अगर यह सच में हुआ तो बहुत अच्छी बात होगी घर पर पर खाना खत्म होने को है मेरे घर में भी अब दो हफ्ते का ही खाना बचा है उसके बाद शायद हमें भूखा ही रहना पड़ेगा गांव वालों की हालत बुरी से बदतर होती जा रही थी तभी वहां गोवर्धन आ गया उसे देखकर मनोहर बोला अरे तुम यहां क्या कर रहे हो इस गांव में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है गोवर्धन हसते हुए कहने लगा अरे रुक जाओ रुक जाओ मैं तो यहां तुम लोगों की भलाई के लिए ही आया हूं देखो तुम लोगों के पास खा नहीं है सही कहा ना मैंने जेब में पैसे नहीं है कैसे जिंदा रह पाओगे

(12:35) तुम लोग बताओ यह सुनकर सभी चुप हो गए गोवर्धन ने कहा मेरे पास इसका हल है मैं तुम लोगों को पैसे देना चाहता हूं हर एक को मैं 200 हज दे दूंगा बस तुम लोगों को यह मंदिर छोड़ना होगा यह सुनकर मनोहर ने चिल्लाकर कहा कभी नहीं हम भूखे मर जाएंगे लेकिन मंदिर तुम्हें नहीं देंगे कोई बात नहीं जैसी तुम लोगों की मर्जी मैं तो बस तुम्हारे भले के बारे में बात कर रहा था यह बोलकर गोवर्धन वहां से चला गया गोवर्धन और सावित्री ने सबको बहुत समझाया कि यह सब एक चाल है लेकिन पैसों के बारे में सुनकर आधे गांव वालों की नियत खराब हो गई वह लोग रात को

(13:18) चुपके चुपके प्रेमचंद के घर गए उनमें से एक का नाम था लक्ष्मण उसने कहा प्रेमचंद जी हम सभी आपके साथ हैं हमें बस पैसों से मतलब है पास में ही गोवर्धन बैठा हुआ था उसने हंसते हुए कहा देखा प्रेमचंद जी कैसे खेल से आधे गांव वाले हमारी साइड आ गए प्रेमचंद बोला लेकिन वह मनोहर बड़ा सयाना है वह आधे लोगों को लेकर भी बवाल खड़ा कर सकता है गोवर्धन बोला अरे तुम उसकी फिक्र मत करो वह बड़ा नेता बनता है ना उसके बारे में मैंने सोच के रखा है शिवरात्री के दिन ही उसे सबक मिल जाएगा और उसी दिन मैं मंदिर तोड़ के फैक्ट्री का काम शुरू करूंगा

(14:00) उधर मनोहर और सावित्री को खाली पेट सोना पड़ा और इसी तरह दिन बीतते गए पानी ना पड़ने के कारण खेती की जमीन सूखने लगी तभी सावित्री ने मनोहर से कहा घर में कुछ पैसे पड़े हैं उससे हम खाना नहीं खरीद सकते क्या मनोहर बोला नहीं सावित्री वह शिवरात्रि के लिए हैं उस दिन फूल खरीदना है फल और दूध भी तो खरीदना है कुछ दिन खाली पेट रह लेंगे तो कुछ नहीं होगा लेकिन भूख के कारण एक एक करके स गांव वालों ने गोवर्धन और प्रेमचंद का साइड ले लिया बस मनोहर और सावित्री अकेले शिवरात्रि का इंतजार करते रहे और आखिरकार वह दिन आ गया सुबह-सुबह मनोहर गांव वालों को बुलाने के

(14:42) लिए लोगों के घर गया लेकिन सभी ने उसे मना कर दिया मनोहर सोचने लगा अच्छा तो यह बात है ठीक है मैं खुद ही सब कुछ कर लूंगा धूमधाम से शिवरात्रि मनाने के लिए जितने पैसे चाहिए थे उतने पैसे मनोहर के पास नहीं थे सावित्री के पास एक आखिरी सोने का हार था उन दोनों ने वह हार बेज दिया मनोहर ने सावित्री से कहा इन पैसों से फूल खरीद के तुम मंदिर जाओ मैं बाकी चीजें खरीदकर मंदिर में आता हूं सावित्री फूल लेकर मंदिर में जा ही रही थी इतने में कुछ लोग गाड़ी लेकर आए और सावित्री को उठाकर ले गए सावित्री बहुत चिल्लाई मगर कोई उसकी मदद करने के लिए आगे नहीं आया उधर बाजार में

(15:25) सब कुछ खरीदने के बाद मनोहर मंदिर पहुंचा लेकिन वहां उसे सावित्री नहीं मिली व सोचने लगा सावित्री कहां है उसे तो यहीं पर आने के लिए कहा था तभी गोवर्धन और प्रेमचंद वहां आ गए और गोवर्धन ने कहा देखो भाई सावित्री तुमको तब तक नहीं मिलेगी जब तक तुम इस कागज पर दस्तखत नहीं कर देते समझे सावित्री को मेरे आदमियों ने अगवा कर लिया है अगर तुम इस कागज पर दस्तखत नहीं करोगे तो मैं तुम्हें भी बंदी बना लूंगा मनोहर कहने लगा यह मैं कभी नहीं करूंगा मैं आज शिवलिंग पर दूध चढ़ाऊ देखता हूं कौन मुझे रोकता है वह शिवलिंग पर दूध डालने के लिए आगे बढ़ा लेकिन तभी गोवर्धन

(16:04) के पालतू गुंडे वहां आए और मनोहर को पकड़ लिया वह कहने लगा मैं शिव जी का भक्त हूं तुम लोग यह सही नहीं कर रहे हो छोड़ दो मुझे इसी छीना झपटी में पतीले से दूध शिवलिंग पर गिर गया मनोहर की मनोकामना पूरी हुई और तभी वहां एक चमत्कार हो गया और शिवलिंग से स्वयं शिवजी बाहर आ गए व कहने लगे तुम लोग मेरे भक्त के पीछे क्यों पड़े हो शिवजी को देख देखकर सभी चौक गए सभी ने अपने हाथ जोड़ लिए वह गांव के सभी लोगों से कहने लगे तुम लोग एक पापी का साथ दे रहे हो वह मेरा मंदिर तोड़ना चाहता है सभी गांव वाले कहने लगे हमें क्षमा कीजिए महादेव हमसे गलती हो गई शिवजी बोले

(16:45) प्रेमचंद और गोवर्धन तुम दोनों को पैसे के अलावा कुछ नहीं दिखता है तुम दोनों पापी हो इसलिए मैं तुम दोनों को सजा दूंगा यह बोलकर शिवजी ने उन दोनों को भस्म कर दिया उसके बाद शिवजी ने मनोहर को वरदान देना चाहा लेकिन मनोहर ने कहा हे महादेव मुझे कुछ नहीं चाहिए बारिश ना होने की वजह से सभी गांव वाले परेशान है आप बस बारिश करवा दीजिए मनोहर की बात सुनकर महादेव कहने लगे वाह वत्स तुम जैसा भक्त पाकर मैं प्रसन्न हूं शिवजी ने बारिश करवा दी सावित्री मनोहर के पास वापस आ गई गांव के लोगों ने मनोहर से माफी मांगी मंदिर नहीं टूटा उसके

(17:26) बाद से दूर-दूर से लोग उस मंदिर में शिवजी की पूजा करने आने लगे और गांव वाले खुशी-खुशी अपना जीवन बिताने लगे दोस्तों अगर आपको यह कहानियां पसंद आई हो तो वीडियो को लाइक करके कमेंट में हर हर महादेव अवश्य लिखें हर हर महादेव


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