श्री जगन्नाथ रथ यात्रा के दिन सुने भगवान जगन्नाथ जी की कथा || Bhagwan Jagannath Ji ki katha || कथा

श्री जगन्नाथ रथ यात्रा के दिन सुने भगवान जगन्नाथ जी की कथा || Bhagwan Jagannath Ji ki katha || कथा - 


भगवान श्री कृष्णा कैसे बने जगन्नाथ महाराज एक बार भगवान श्री कृष्ण सो रहे थे और निद्रा वस्था में उनके मुख से राधा जी का नाम निकला पनियों को लगा कि वह प्रभु की इतनी सेवा करती है परंतु प्रभु को सबसे ज्यादा राधा जी का ही स्मरण रहता है रुक्मिणी जी एव अन्य रानियों ने रोहिणी जी से राधा रानी व श्री कृष्ण के प्रेम व ब्रज लीलाओं का वर्णन करने की प्रार्थना की माता ने कथा सुनाने की हामी तो भर दी लेकिन यह भी कहा कि श्री कृष्ण व बलराम को इसकी भनक ना लगे तय हुआ कि सभी रानियों को रोहिणी जी एक गुप्त स्थान पर कथा सुनाएंगे वहां कोई और ना आए इसके लिए सुभद्रा जी को

(00:47) पहरा देने के लिए मना लिया गया सुभद्रा जी को आदेश दिया गया कि स्वयं श्री कृष्ण या बलराम भी आए तो उन्हें भी अंदर ना आने देना माता ने कथा सुना आरंभ की सुभद्रा द्वार पर तैनात थी थोड़ी देर में श्री कृष्ण एवं बलराम वहां आ पहुंचे सुभद्रा ने उन्हें अंदर जाने से रोक लिया इससे भगवान श्री कृष्ण को कुछ संदेह हुआ वह बाहर से ही अपनी सूक्ष्म शक्ति द्वारा अंदर की माता द्वारा वर्णित ब्रज लीलाओं को आनंद लेकर सुनने लगे बलराम जी भी कथा का आनंद लेने लगे कथा सुनते सुनते श्री कृष्ण बलराम व सुभद्रा के हृदय में ब्रज के प्रति अद्भुत प्रेम

(01:34) भाव उत्पन्न हुआ उस भाव में उनके पैर हाथ सिकुड़ने लगे जैसे बाल्यकाल में थे तीनों राधा जी की कथा में ऐसे विभोर हुए कि मूर्ति के समान जड़ प्रतीत होने लगे बड़े ध्यान पूर्वक देखने पर भी उनके हाथ पैर दिखाई नहीं देते थे सुदर्शन ने भी द्रवित होकर लंबा रूप धारण कर लिया उसी समय देव मुनि नारद वहां आ पहुंचे भगवान के इस रूप को देखकर आश्चर्यचकित हो गए और निहारते रहे कुछ समय बाद जब तंद्रा भंग हुई तो नारद जी ने प्रणाम करके भगवान श्री कृष्ण से कहा है प्रभु मेरी इच्छा है कि मैंने आज जो रूप देखा है वह रूप आपके भक्त जनों को पृथ्वी

(02:19) लोक पर चिरकाल तक देखने को मिले आप इस रूप में पृथ्वी पर वास करें भगवान श्री कृष्ण नारद जी की बात से प्रसन्न है और उन्होंने कहा कि ऐसा ही होगा कलिकाल में मैं इसी रूप में नीलांचल क्षेत्र में अपना स्वरूप प्रकट करूंगा कलयुग आगमन के उपरांत प्रभु की प्रेरणा से मालव राज इंद्रद्युम्न ने भगवान श्री कृष्ण बलभद्र जी और बहन सुभद्रा जी की ऐसी ही प्रतिमा जगन्नाथ मंदिर में स्थापित कराई राजा इंद्रद्युम्न श्रेष्ठ प्रजा पालक राजा थे प्रजा उन्हें बहुत प्रेम करती थी प्रजा सुखी और संतुष्ट थी राजा के मन में इच्छा थी कि वह कुछ ऐसा करें जिससे सभी उन्हें स्मरण

(03:06) रखें देवयोग से इंद्रद्युम्न के मन में एक अज्ञात कामना प्रकट हुई कि वह ऐसा मंदिर का निर्माण कराए जैसा दुनिया में कहीं और ना हो इंद्रद्युम्न विचार करने लगे कि आखिर उनके मंदिर में किस देवता की मूर्ति स्थापित करें राजा के मन में यही इच्छा और चिंतन चलने लगा एक रात इसी पर गंभीर चिंतन करते सो गए नींद में राजा ने एक सपना देखा सपने में उन्हें एक देववाणी सुनाई पड़ी इंद्रद्युम्न ने सुना राजा तुम पहले नए मंदिर का निर्माण आरंभ करो मूर्ति विग्रह की चिंता छोड़ दो उचित समय आने पर तुम्हें स्वयं राह दिखाई पड़ेगी राजा नींद से जाग

(03:52) उठे सुबह होते ही उन्होंने अपने मंत्रियों को सपने की बात बताई राज पुरोहित के सुझाव पर शुभ में पूर्वी समुद्र तट पर एक विशाल मंदिर के निर्माण का निश्चय हुआ वैदिक मंत्र उचार के साथ मंदिर निर्माण का श्री गणेश हुआ राजा इंद्रद्युम्न के मंदिर बनवाने की सूचना शिल्पिका गर को हुई सभी इसमें योगदान देने पहुंचे दिन रात मंदिर के निर्माण में जुट गए कुछ ही वर्षों में मंदिर बनकर तैयार हुआ सागर तट पर एक विशाल मंदिर का निर्माण तो हो गया परंतु मंदिर के भीतर भगवान की मूर्ति की समस्या जस की तस थी राजा फिर से चिंतित होने लगे एक दिन मंदिर के गर्भगृह

(04:40) में बैठकर इसी चिंतन में बैठे राजा की आंखों से आंसू निकल आए राजा ने भगवान से विनती की प्रभु आपके किस स्वरूप को इस मंदिर में स्थापित करूं इसकी चिंता से व्यग्र हूं मार्ग दिखाइए आपने स्वप्न में जो संकेत दिया था उसे पूरा होने का समय कब देव विग्रह विहीन मंदिर देख सभी मुझ पर हसेंगे राजा की आंखों से आंसू बह रहे थे और वह प्रभु से प्रार्थना करते जा रहे थे प्रभु आपके आशीर्वाद से मेरा बड़ा सम्मान है प्रजा समझेगी कि मैंने झूठ मूठ में स्वप्न में आपके आदेश की बात कहकर इतना बड़ा श्रम कराया हे प्रभु मार्ग दिखाइए राजा दुखी मन से अपने महल में चले

(05:28) गए उस को राजा ने फिर एक सपना देखा सपने में उन्हें देववाणी सुनाई दी राजन यहां निकट में ही भगवान श्री कृष्ण का विग्रह रूप है तुम उन्हें खोजने का प्रयास करो तुम्हें दर्शन मिलेंगे इंद्रद्युम्न ने स्वप्न की बात पुनः पुरोहित और मंत्रियों को बताई सभी यह निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रभु की कृपा सहज प्राप्त नहीं होगी उसके लिए हमें निर्मल मन से परिश्रम आरंभ करना होगा भगवान के विग्रह का पता लगाने की जिम्मेदारी राजा इंद्रद्युम्न ने चार विद्वान पंडितों को सौंप दिया प्रभु इच्छा से प्रेरित होकर चारों विद्वान चार दिशाओं में निकले उन चारों में एक विद्वान

(06:16) थे विद्यापति वह चारों में सबसे कम उम्र के थे प्रभु के विग्रह की खोज के दौरान उनके साथ बहुत से अलौकिक घटनाएं हुई पंडित विद्यापति पूर्व दिशा की ओर चले कुछ आगे चलने के बाद विद्यापति उत्तर की ओर मुड़े तो उन्हें एक जंगल दिखाई दिया वन भयावह था विद्यापति भगवान श्री कृष्ण के उपासक थे उन्होंने श्री कृष्ण का स्मरण किया और राह दिखाने की प्रार्थना की भगवान श्री कृष्ण की प्रेरणा से उन्हें राह दिखने लगी प्रभु का नाम लेते वह वन में चले जा रहे थे जंगल के मध्य उन्हें एक पर्वत दिखाई दिया पर्वत के वृक्षों से संगीत की ध्वनि सा सुरम्य गीत सुनाई पड़ रहा था

(07:05) विद्यापति संगीत के जानकार थे उन्हें वहां मृदंग बंसी और करताल की मिश्रित ध्वनि सुनाई दे रही थी यह संगीत उन्हें दिव्य लगा संगीत की लहरियों को खोजते विद्यापति आगे बढ़ चले वह जल्दी ही पहाड़ी की चोटी पर पहुंच गए पहाड़ के दूसरी ओर उन्हें एक सुंदर घाटी दिखी जहां भील नृत्य कर रहे थे विद्यापति उस दृश्य को देखकर मंत्र मुग्ध थे सफर के कारण थके थे पर संगीत से थकान मिट गई और उन्हें नींद आने लगी अचानक एक बाग की गर्जना सुनकर विद्यापति घबरा उठे बाघ उनकी ओर दौड़ता आ रहा था बाख को देखकर विद्यापति घबरा गए और बेहोश होकर वहीं गिर पड़े बाक विद्यापति

(07:55) पर आक्रमण करने ही वाला था कि तभी एक स्त्री ने बाक को पुका बाघ उस आवाज को सुनकर बाघ मौन खड़ा हो गया स्त्री ने उसे लौटने का आदेश दिया तो बाग लौट पड़ा बाग उस स्त्री के पैरों के पास ऐसे लौटने लगा जैसे कोई बिल्ली पुचका सुनकर खेलने लगती है युवती बाग की पीठ को प्यार से थपथपा लगी और बाग स्नेह से लटता रहा वह स्त्री वहां मौजूद स्त्रियों में सर्वाधिक सुंदर थी वह भीलों के राजा विश्वासु की इकलौती पुत्री ललिता थी ललिता ने अपनी सेविकाओं को अचेत विद्यापति की देखभाल के लिए भेजा सेविकाओं ने झरने से जल लेकर विद्यापति पर छिड़का कुछ देर बाद विद्यापति की चेतना

(08:46) लौटी तो उन्हें जल पिलाया गया विद्यापति यह सब देखकर कुछ आश्चर्य में थे ललिता विद्यापति के पास आई और पूछा आप कौन है और भयानक जानवरों से भरे इस में आप कैसे पहुंचे आपके आने का प्रयोजन बताइए ताकि मैं आपकी सहायता कर सकूं विद्यापति के मन से बाग का भय पूरी तरह गया नहीं था ललिता ने यह बात भांप ली और उन्हें सांत्वना देते हुए कहा विप्र आप मेरे साथ चले जब आप स्वस्थ हो तब अपने लक्ष्य की ओर प्रस्थान करें विद्यापति ललिता के पीछे पीछे उनकी बस्ती की तरफ चल दिए विद्यापति भीलों के राजा विश्वासु से मिले और उन्हें अपना परिचय दिया विश्वासु विद्यापति जैसे

(09:37) विद्वान से मिलकर बड़े प्रसन्न हुए विश्वासु के अनुरोध पर विद्यापति कुछ दिन वहां अतिथि बनकर रुके वह भीलों को धर्म और ज्ञान का उपदेश देने लगे उनके उपदेशों को विश्वासु तथा ललिता बड़ी रुचि के साथ सुनते थे ललिता के मन में विद्यापति के लिए अनुराग पैदा हो गया विद्यापति ने भी भांप लिया कि ललिता जैसी सुंदरी को उनसे प्रेम हो गया है किंतु विद्यापति एक बड़े कार्य के लिए निकले थे अचानक एक दिन विद्यापति बीमार हो गए ललिता ने उसकी सेवा की इससे विद्यापति के मन में भी ललिता के प्रति प्रेम भाव पैदा हो गया विश्वासु ने प्रस्ताव रखा कि

(10:21) विद्यापति ललिता से विवाह कर ले विद्यापति ने इसे स्वीकार कर लिया कुछ दिन दोनों के सुखमय बीते ललिता से विवाह करके विद्यापति प्रसन्न तो था पर जिस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए वह आए थे वह अधूरा था यही चिंता उन्हें बार-बार सताती थी इस बीच विद्यापति को एक विशेष बात पता चली विश्वासु हर रोज सवेरे उठकर कहीं चला जाता था और सूर्योदय के बाद ही लौटता था कितनी भी विकट स्थिति हो उसका यह नियम कभी नहीं टूटता था विश्वासु के इस व्रत पर विद्यापति को आ हुआ उनके मन में इस रहस्य को जानने की इच्छा हुई कि आखिर विश्वा सुजाता कहां है एक दिन विद्यापति ने ललिता से इस संबंध

(11:09) में पूछा ललिता यह सुनकर सहम गई विद्यापति ने ललिता से उसके पिता द्वारा प्रतिदिन सुबह किसी अज्ञात स्थान पर जाने और सूर्योदय के पूर्व लौट आने का रहस्य पूछा विश्ववासु का नियम किसी हाल में नहीं टूटता था चाहे कितनी भी विकट परिस्थिति हो ललिता के सामने धर्म संकट आ गया वह पति की बात को ठुकरा नहीं सकती थी लेकिन पति जो पूछ रहा था वह उसके वंश की गोपनीय परंपरा से जुड़ी बात थी जिसे खोलना संभव नहीं था ललिता ने कहा स्वामी यह हमारे कुल का रहस्य है जिसे किसी के सामने खोला नहीं जा सकता परंतु आप मेरे पति हैं और मैं आपको कुल का पुरुष

(11:55) मानते हुए जितना संभव है उतना बताती हूं य हा से कुछ दूरी पर एक गुफा है जिसके अंदर हमारे कुल देवता है उनकी पूजा हमारे सभी पूर्वज करते आए हैं यह पूजा निर्वात चलनी चाहिए उसी पूजा के लिए पिताजी रोज सुबह नियमित रूप से जाते हैं विद्यापति ने ललिता से कहा कि वह भी उनके कुल देवता के दर्शन करना चाहते हैं ललिता बोली यह संभव नहीं है हमारे कुल देवता के बारे में किसी को जानने की इच्छा है सुनकर मेरे पिता क्रोधित हो जाएंगे विद्यापति की उत्सुकता बढ़ रही थी वह तरह तरह से ललिता को अपने प्रेम की शपथ देकर उसे मनाने लगे आखिरकार ललिता ने कहा कि वह अपने पिताजी से विनती

(12:44) करेगी कि वह आपको देवता के दर्शन करा दे ललिता ने पिता से सारी बात कही वह क्रोधित हो गए ललिता ने जब यह कहा कि मैं आपकी अकेली संतान हूं आपके बाद देवता के पूजा का दायित्व मेरा होगा इसलिए मेरे पति का यह अधिकार बनता है क्योंकि आगे उसे ही पूजना होगा विश्वासु इस तर्क के आगे झुक गए वह बोले गुफा के दर्शन किसी को तभी कराए जा सकते हैं जब वह भगवान की पूजा का दायित्व अपने हाथ में ले ले विद्यापति ने दायित्व स्वीकार किया तो विश्वासु देवता के दर्शन कराने को राजी हुए दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व विद्यापति की आंखों पर पट्टी बांधकर विश्वासु उनका दाहिना हाथ

(13:32) पकड़कर गुफा की तरफ निकले विद्यापति ने मुट्ठी में सरसों रख लिया था जिसे रास्ते में गिराते हुए गए गुफा के पास पहुंचकर विश्वासु रुके और गुफा के पास पहुंच गए विश्वासु ने विद्यापति के आंखों की काली पट्टी खोल दी उस गुफा में नीले रंग का प्रकाश चमक उठा हाथों में मुरली लिए भगवान श्री कृष्ण का रूप विद्यापति को दिखाई दिया विद्यापति आनंद मग्न हो गए उन्होंने भगवान के दर्शन किए दर्शन के बाद तो जैसे विद्यापति जाना ही नहीं चाहते थे पर विश्वासु ने लौटने का आदेश दिया फिर उनकी आंखों पर पट्टी बांधी और दोनों लौट पड़े लौटने पर ललिता ने विद्यापति से पूछा तो

(14:20) विद्यापति ने गुफा में दिखे अलौकिक दृश्य के बारे में पत्नी को बताना भी उसने उचित नहीं समझा वह टाल गए यह तो जानकारी हो चुकी थी कि विश्वासु श्री कृष्ण की मूर्ति की पूजा करते हैं विद्यापति को आभास हो गया कि महाराज ने स्वप्न में जिस प्रभु विग्रह के बारे में देववाणी सुनी थी वह इसी मूर्ति के बारे में थी विद्यापति विचार करने लगे कि किसी तरह इसी मूर्ति को लेकर राजधानी पहुंचना होगा वह एक तरफ तो गुफा से मूर्ति को लेकर जाने की सोच रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ भील राज और पत्नी के साथ विश्वासघात के विचार से उनका मन व्यथित हो रहा था विद्यापति धर्म धर्म के

(15:06) बारे में सोचते रहे फिर विचार आया कि यदि विश्वासु ने सचमुच उस पर विश्वास किया होता तो आंखों पर पट्टी बांधकर गुफा तक नहीं ले जाता इसलिए उसके साथ विश्वास घात का प्रश्न नहीं उठता उसने गुफा से मूर्ति चुराने का मन बना लिया विद्यापति ने ललिता से कहा कि वह अपने माता-पिता के दर्शन कर के लिए जाना चाहता है वे उसे लेकर परेशान होंगे ललिता भी साथ चलने को तैयार हुई तो विद्यापति ने यह कहकर समझा लिया कि वह शीघ्र ही लौटेगा तो उसे भी लेकर जाएगा ललिता मान गई विश्वासु ने उसके लिए घोड़े का प्रबंध किया अब तक सरसों के दाने से पौधे निकल आए थे उनको देखता विद्यापति

(15:54) गुफा तक पहुंच गया उसने भगवान की स्तुति की और क्षमा प्रार्थना के बाद उनकी मूर्ति उठाकर झोले में रख ली शाम तक वह राजधानी पहुंच गया और सीधा राजा के पास गया उसने दिव्य प्रतिमा राजा को सौंप दी और पूरी कहानी सुनाई राजा ने बताया कि उसने कल एक सपना देखा कि सुबह सागर में एक कुंदा बहकर आएगा उस कुंदे की नक्काशी करवाकर भगवान की मूर्ति बनवा लेना जिसका अंश तुम्हें प्राप्त होने वाला है वह भगवान श्री विष्णु का स्वरूप होगा तुम जिस मूर्ति को लाए हो वह भी भगवान विष्णु का अंज है दोनों आश्वस्त थे कि उनकी तलाश पूरी हो गई है राजा ने कहा कि जब भगवान द्वारा भेजी

(16:44) लकड़ी से हम इस प्रतिमा का बड़ा स्वरूप बनवा लेंगे तब तुम अपने ससुर से मिलकर उन्हें मूर्ति वापस कर देना उनके कुल देवता का इतना बड़ा विग्रह एक भव्य मंदिर में स्थापित देखकर उन्हें खुशी होगी दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व राजा विद्यापति तथा मंत्रियों को लेकर सागर तट पर पहुंचा स्वप्न के अनुसार एक बड़ा कुंदा पानी में बहकर आ रहा था सभी उसे देखकर प्रसन्न हुए कई नावों पर बैठकर राजा के सेवक उस कुंदे को खींचने पहुंचे मोटी मोटी रस्सियों से कुंदे को बांधकर खींचा जाने लगा लेकिन कुंदा टस से मस नहीं हुआ और लोग भेजे गए लेकिन सैकड़ों

(17:28) लोग और नावों का प्रयोग करके भी कुंदे को हिलाया तक नहीं जा सका राजा का मन उदास हो गया सेनापति ने एक लंबी सेना कुंदे को खींचने के लिए भेज दी सारे सागर में सैनिक ही सैनिक नजर आने लगे लेकिन सभी मिलकर कुंदे को अपने स्थान से हिला तक ना सके सुबह से रात हो गई अचानक राजा ने काम रोकने का आदेश दिया उसने विद्यापति को अकेले में ले जाकर कहा कि वह समस्या का कारण जान गया है राजा के चेहरे पर संतोष के भाव थे राजा ने विद्यापति को गोपनीय रूप से कहीं चलने की बात कही राजा इंद्रद्युम्न ने कहा कि अब भगवान का विग्रह बन जाएगा बस एक काम करना होगा राजा

(18:17) इंद्रद्युम्न को भगवान की प्रेरणा से समझ में आने लगा कि आखिर प्रभु के विग्रह के लिए जो लकड़ी का कुंदा पानी में बहकर आया है वह हिलडुल भी क्यों नहीं रहा है राजा ने विद्यापति को बुलाया और कहा तुम जिस दिव्य मूर्ति को अपने साथ लाए हो उसकी अब तक जो पूजा करता आया था उससे तुरंत भेंट करके क्षमा मांगनी होगी बिना उसके स्पर्श किए यह कुंदा आगे नहीं बढ़ सकेगा राजा इंद्रद्युम्न और विद्यापति विश्वासु से मिलने पहुंचे राजा ने पर्वत की चोटी से जंगल को देखा तो उसकी सुंदरता को देखता ही रह गया दोनों भीलों की बस्ती की ओर चुप चलते रहे

(19:01) इधर विश्वासु अपने नियमित दिनचर्या के हिसाब से गुफा में अपने कुल देवता की पूजा के लिए चले वहां प्रभु की मूर्ति गायब देखी तो वह समझ गए कि उनके दामाद ने ही यह छल किया है विश्वासु लौटे और ललिता को सारी बात सुना दी विश्वासु पीड़ा से भरा घर के आंगन में पछाड़ खाकर गिर गए ललिता अपने पति द्वारा किए विश्वास घात से दुखी थी और को इसका कारण मान रही थी पिता पुत्री दिन भर विलाप करते रहे उन दोनों ने अन्न का एक दाना भी न छुआ अगली सुबह विश्वासु उठे और सदा की तरह अपनी दिनचर्या का पालन करते हुए गुफा की तरफ बढ़ निकले वह जानते थे कि प्रभु का विग्रह

(19:49) वहा नहीं है फिर भी उनके पैर गुफा की ओर खींचे चले जाते थे विश्वासु के पीछे ललिता और रिश्तेदार भी चले विश्वासु गुफा के भीतर पहुंचे जहां भगवान की मूर्ति होती थी उस चट्टान के पास खड़े होकर हाथ जोड़कर खड़े रहे फिर उस ऊंची चट्टान पर गिर गए और बिलख बिलक कर रोने लगे उनके पीछे प्रजा भी रो रही थी एक भील युवक भागता हुआ गुफा के पास आया और बताया कि उसने महाराज और उनके साथ विद्यापति को बस्ती की ओर से आते देखा है यह सुनकर सब उठे विश्वासु राजा के स्वागत में गुफा से बाहर आए लेकिन उनकी आंखों में आंसू थे राजा इंद्र दमन विश्वासु के पास आए और उन्हें अपने हृदय

(20:41) से लगा लिया राजा बोले भील तुम्हारे कुल देवता की प्रतिमा का चोड़ तुम्हारा दामाद नहीं मैं हूं उसने तो अपने महाराज के आदेश का पालन किया है यह सुनकर सब चौक उठे विश्वासु ने राजा को आसन दिया राजा ने उस विश्वासु को शुरू से अंत तक पूरी बात बताकर कहा कि आखिर क्यों यह सब करना पड़ा फिर राजा ने उनसे अपने स्वप्न और फिर जगन्नाथ पुरी में सागर तट पर मंदिर निर्माण की बात कह सुनाई राजा ने विश्वासु से प्रार्थना की भील सरदार विश्वासु कई पीढ़ियों से आपके वंश के लोग भगवान की मूर्ति को पूछते आए हैं भगवान के उस विग्रह के दर्शन सभी को

(21:29) मिले इसके लिए आपकी सहायता चाहिए ईश्वर द्वारा भेजे गए लकड़ी के कुंदे से बनी मूर्ति के भीतर हम इस दिव्य मूर्ति को सुरक्षित रखना चाहते हैं अपने कुल की प्रतिमा को पुरी के मंदिर में स्थापित करने की अनुमति दो उस कुंदे को तुम स्पर्श करोगे तभी वह हिलेगा विश्वासु राजी हो गए राजा सपरिवार विश्वासु को लेकर सागर तट पर पहुंचे विश्वासु ने कुंदे को छुआ होते ही कुंदा अपने आप तैरता हुआ किनारे पर आ लगा राजा के सेवकों ने उस कुंदे को राज महल में पहुंचा दिया अगले दिन मूर्तिकार और शिल्पं को राजा ने बुलाकर मंत्रणा की कि आखिर इस कुंदे से कौन सी देव मूर्ति बनाना

(22:16) शुभ दय होगा मूर्तिकार ने कह दिया कि वे पत्थर की मूर्तियां बनाना तो जानते हैं लेकिन लकड़ी की मूर्ति बनाने का उन्हें ज्ञान नहीं है एक नए विघ्न के पैदा होने से राजा फिर चिंतित हो गए उसी समय वहां एक बूढ़ा आदमी आया उसने राजा से कहा इस मंदिर में आप भगवान श्री कृष्ण को उनके भाई बलभद्र तथा बहन सुभद्रा के साथ विराजमान करें इस देवयोग का यही संकेत है राजा को उस बूढ़े व्यक्ति की बात से सांत्वना तो मिली लेकिन समस्या यह थी कि आखिर मूर्ति बने कैसे उस बूढ़े ने कहा कि मैं इस में कुशल हूं मैं इस पवित्र कार्य को पूरा करूंगा और मूर्तियां बनाऊंगा पर मेरी एक शर्त है

(23:07) राजा प्रसन्न हो गए और उनकी शर्त पूछी बूढ़े शिल्पकार ने कहा मैं भगवान की मूर्ति के निर्माण का काम एकांत में करूंगा मैं यह काम बंद कमरे में करूंगा कार्य पूरा करने के बाद मैं स्वयं दरवाजा खोलकर बाहर आऊंगा इस बीच कोई मुझे नहीं बुलाएगा राजा सहमत तो थे लेकिन उन्हें एक चिंता हुई और बोले यदि कोई आपके पास नहीं आएगा तो ऐसी हालत में आपके खाने पीने की व्यवस्था कैसे होगी शिल्पी ने कहा जब तक मेरा काम पूर्ण नहीं होता मैं कुछ खाता पीता नहीं हूं राज मंदिर के एक विशाल कक्ष में उस बूढ़े शिल्पी ने स्वयं को 21 दिनों के लिए बंद कर लिया और काम शुरू कर दिया भीतर से

(23:55) आवाजें आती थी महारानी गुंदीचा देवी दरवाज से कान लगाकर अक्सर छेनी हथौड़े के चलने की आवाजें सुना करती थी महारानी रोज की तरह कमरे के दरवाजे से कान लगाए खड़ी थी 15 दिन बीते थे कि उन्हें कमरे से आवाज सुनाई पड़नी बंद हो गई जब मूर्तिकार के काम करने की कोई आवाज ना पड़ी तो रानी चिंतित हो गई उन्हें लगा कि वृद्ध आदमी है खाता पीता भी नहीं कहीं उसके साथ कुछ अनिष्ट ना हो गया हो व्याकुल होकर रानी ने दरवाजे को धक्का देकर खोला और भीतर झाक कर देखा महारानी गुंदीचा देवी ने इस तरह मूर्तिकार को दिया हुआ वचन भंग कर दिया था मूर्तिकार अभी

(24:43) मूर्तियां बना रहा था परंतु रानी को देखते ही वह अदृश्य हो गए मूर्ति निर्माण का कार्य अभी तक पूरा नहीं हुआ था हाथ पैर का निर्माण पूर्ण नहीं हुआ था वृद्ध शिल्पकार के रूप में स्वयं देवताओं के शिल्पी भगवान विश्वकर्मा आए थे उनके अदृश्य होते ही मूर्तियां अधूरी ही रह गई इसी कारण आज भी यह मूर्तियां वैसी ही है उन प्रतिमाओं को ही मंदिर में स्थापित कराया गया कहते हैं विश्वासु संभवत उस जरा बहेल का वंशज था जिसने अनजाने में भगवान कृष्ण की हत्या कर दी थी विश्वासु शायद भगवान श्री कृष्ण के पवित्र अवशेषों की पूजा करता यह अवशेष मूर्तियों में छिपा कर रखे गए थे

(25:33) विद्यापति और ललिता के वंशज जिन्हें दैत्य पति कहते हैं उनका परिवार ही यहां अब तक पूजा करता है जय श्री जगन्नाथ जय श्री कृष्णा अगर वीडियो पसंद आई तो हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें धन्यवाद


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