Sawan Somvar Vrat Katha | सावन सोमवार व्रत कथा | Sawan Somvar Ki vrat Katha | Sawan Somvar Vrat 

 Sawan Somvar Vrat Katha | सावन सोमवार व्रत कथा | Sawan Somvar Ki vrat Katha | Sawan Somvar Vrat 


 सावन सोमवार व्रत कथा हिंदू धर्म में सावन का महीना बहुत पवित्र माना जाता है इसे धर्म कर्म का माह भी कहा जाता है सावन महीने का धार्मिक महत्व काफी ज्यादा है 12 महीनों में से सावन का महीना विशेष पहचान रखता है इस दौरान व्रत दान व पूजा पाठ करना अति उत्तम माना जाता है पर इससे कई गुना फल भी प्राप्त होता है इस बार का सा अपने आप में अनूठा होगा हमारे पुराणों और धर्म ग्रंथों को उठाकर देखें तो भोले बाबा की पूजा के लिए सावन के महीने की महिमा का अत्याधिक महत्व है इस महीने में ही पार्वती ने शिव की घोर तपस्या की थी और शिव ने उन्हें दर्शन भी इसी माह में दिए

(00:49) थे तब से भक्तों का विश्वास है कि इस महीने में शिव जी की तपस्या और पूजा पाठ से शिव जी जल्द प्रसन्न होते हैं और जीवन सफल बना अब आइए सावन माह के कथा का श्रवण करते हैं अमरपुर नगर में एक धनी व्यापारी रहता था दूर दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था नगर में उस व्यापारी का सभी लोग मान सम्मान करते थे इतना सब कुछ होने पर भी वह व्यापारी अंतर्मन से बहुत दुखी था क्योंकि उस व्यापारी का कोई पुत्र नहीं था दिन रात उसे एक ही चिंता सताती रहती थी उसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बड़े व्यापार और धन संपत्ति को कौन संभालेगा पुत्र पाने की इच्छा से वह

(01:39) व्यापारी प्रत्येक सोमवार भगवान शिव की व्रत पूजा किया करता था सायंकाल को व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाया करता था उस व्यापारी की भक्ति देखकर एक दिन देवी पार्वती ने भगवान शिव से कहा हे प्राणनाथ यह व्यापारी आपका सच्चा भ है कितने दिनों से यह सोमवार का व्रत और पूजा नियमित कर रहा है भगवान आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए कहा हे पार्वती इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है प्राणी जैसा कर्म करते हैं उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है इसके बावजूद पार्वती जी

(02:28) नहीं मानी उ ने आग्रह करते हुए कहा नहीं प्राणनाथ आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी यह आपका अनन्य भक्त है प्रत्येक सोमवार आपका विधिवत व्रत रखता है और पूजा अर्चना के बाद आपको भोग लगाकर एक समय भोजन ग्रहण करता है आपको इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान देना ही होगा पार्वती का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का वरदान देता हूं लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के

(03:17) 16 वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया व्यापारी पहले की तरह सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा कुछ महीने पश्चात उसके घर अति सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ पुत्र जन्म से व्यापारी के घर में खुशियां भर गई बहुत धूमधाम से पुत्र जन्म का समारोह मनाया गया व्यापारी को पुत्र जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु के रहस्य का पता था यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था विद्वान ब्राह्मणों ने उस पुत्र का नाम अमर रखा जब अमर 12 वर्ष का हुआ तो शिक्षा

(04:07) के लिए उसे वाराणसी भेजने का निश्चय हुआ व्यापारी ने अमर के मामा दीपचंद को बुलाया और कहा कि अमर को शिक्षा प्राप्त करने के लिए वाराणसी छोड़ आओ अमर अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए चल दिया रास्ते में जहां भी अमर और दीपचंद रात्रि विश्राम के लिए ठहरते वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते थे लंबी यात्रा के बाद अमर और दीपचंद एक नगर में पहुंचे उस नगर के राजा की कन्या के विवाह की खुशी में पूरे नगर को सजाया गया था निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत

(04:51) चिंतित था उसे इस बात का भय सता रहा था कि राजा को इस बात का पता चलने पर कहीं वह विवाह से इन ना कर दे इससे उसकी बदनामी होगी वर के पिता ने अमर को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया उसने सोचा क्यों ना इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर में ले जाऊंगा वर के पिता ने इसी संबंध में अमर और दीपचंद से बात की दीपचंद ने धन मिलने के में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली अमर को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी चंद्रिका से विवाह करा दिया गया राजा ने बहुत सा धन

(05:41) देकर राजकुमारी को विदा किया अमर जब लौट रहा था तो सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी की ओड़नी पर लिख दिया राजकुमारी चंद्रिका तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ था मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूं अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा वह एक आंख से काना है जब राजकुमारी ने अपनी उड़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इंकार कर दिया राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को महल में रख लिया उधर अमर अपने मामा दीपचंद के साथ वाराणसी पहुंच गया अमर ने गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया जब अमर की आयु 16 वर्ष

(06:28) पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ किया यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न वस्त्र दान किए रात को अमर अपने शयन कक्ष में सो गया शिव के वरदान के अनुसार शयना वस्था में ही अमर के प्राण पखेरू उड़ गए सूर्योदय पर मामा अमर को मृत देखकर रोने पीटने लगा आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुख प्रकट करने लगे मामा के रोने विलाप करने के स्वर समी से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने पार्वती जी ने भगवान से कहा प्राणनाथ मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें भगवान शिव ने पार्वती जी के साथ

(07:18) अदृश्य रूप में समीप जाकर अमर को देखा तो पार्वती जी से बोले पार्वती यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है मैंने इसे 16 वर्ष की आय का वरदान दिया था इसकी आयु तो पूरी हो गई पार्वती जी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया हे प्राणनाथ आप इस लड़के को जीवित करें नहीं तो इसके माता-पिता पुत्र की मृत्यु के कारण रोरोक अपने प्राणों का त्याग कर देंगे इस लड़के का पिता तो आपका परम भक्त है वर्षों से सोमवार का व्रत करते हुए आपको भोग लगा रहा है पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ

(08:07) बैठा शिक्षा समाप्त करके अमर मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे जहां अमर का विवाह हुआ था उस नगर में भी अमर ने यज्ञ का आयोजन किया समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा राजा ने अमर को तुरंत पहचान लिया यज्ञ समाप्त होने पर राजा अमर और उसके मामा को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत सा धन वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया रास्ते में सुरक्षा के लिए राजा ने बहुत से सैनिकों को भी साथ भेजा दीपचंद ने नगर में पहुंचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की सूचना

(08:55) भेजी अपने बेटे अमर के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था भूखे प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे व्यापारी अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा अपने बेटे के विवाह का सचार सुनकर पुत्रवधू राजकुमारी चंद्रिका को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा हे

(09:41) श्रेष्ठी मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रत कथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियां लौट आई शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री पुरुष सोमवार का विधिवत व्रत करते और व्रत कथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं शिवलिंग पर जल चढ़ाने से कौन से फल की प्राप्ति होती है आज आप श्रवण करेंगे दुख दरिद्र का नाश करने वाली भोलेनाथ की पौराणिक कथा यह कथा शिव पुराण में वर्णित है शिव पुराण में कहा गया है जो भी भक्त इस कथा को शांत मन से भक्ति भाव से सुनता

(10:27) है तो उसके जन्मों की दुख दारिद्रय समाप्त हो जाती है दरिद्र धनवान हो जाते हैं रोगी रोग मुक्त हो जाते हैं भाग्य का द्वार खुलता है शिवलिंग पर जल चढ़ाने से किस फल की प्राप्ति होती है आइए श्रवण करते हैं शिवजी माता पार्वती की कल्याणकारी कथा यदि आपने यह कथा पूरे अंत तक सुन लिया तो यकीनन आपको अपनी परेशानियों का हल भगवान के प्रति श्रद्धा और भक्ति 100 गुना ज्या बढ़ जाएगी तो इसीलिए कथा को पूरे मन से सुने कथा को पूरा सुनने से लाभ मिलता है और आधा अधूरा सुनने से भगवान का अपमान होता है साथ ही आप सभी वीडियो को एक लाइक करके ओम

(11:15) नमः शिवाय या हर हर महादेव कमेंट में जरूर लिखें शिव पुराण के अनुसार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी व अपने पुत्र के साथ रहा करता था उसके पुत्र का नाम सोमदत था वह गरीब बूढ़ा ब्राह्मण नित्य प्रति शिवजी को जल चढ़ाया करता था और उसकी पत्नी ब्राह्मणी को यह सब बिल्कुल भी पसंद नहीं था प्रिय भक्तों दरअसल ब्राह्मणी पहले बहुत पूजा पाठ करती थी व्रत उपवास सब कुछ करती थी इतना सब कुछ करने के बाद भी उसकी गरीबी दूर नहीं हो रही थी जब ब्राह्मण जवान था तो कहीं से कथा सुनाकर पूजा पाठ करके दक्षिणा लाता उसी से उसका का गुजारा

(12:00) होता था फिर भी ब्राह्मणी इस सास में पूजा पाठ करती थी कि कभी ना कभी उसकी गरीबी दूर होगी किंतु उसके पूजा पाठ का कोई फल नहीं मिला अब तो ब्राह्मण बूढ़ा हो गया था उसमें इतनी शक्ति नहीं थी कि वह कहीं गांव गांव में जाकर कथा कराए वह बीमार रहने लगा घर में कमाने वाला कोई भी नहीं था ब्राह्मण का बेटा सोमदत्त गुरुकुल में पढ़ा करता था अब ब्राह्मणी के घर में खाने के लाले पड़ गए तो वह गुस्से में पूजा पाठ करना छोड़ देती है और ब्राह्मण को भी पूजा पाठ करने से मना करने लगती है और कहती थी कि भोलेनाथ और अन्य देवी देवताओं की पूजा करते-करते जवानी से

(12:45) बुढ़ापा आ गया लेकिन भगवान ने हमारी गरीबी दूर नहीं की उल्टा अब तो दाने दाने को मोहताज हो गए हैं अरे मेरी ही मती मारी गई थी कि मैंने दिन रात उपवास व्रत किया जब तब में अपने शरीर को सुखा दिया अब क्या देगा तुम्हारा शिव जो तुम शिवलिंग पर जल चढ़ाया करते हो प्रिय श्रोताओं ब्राह्मणी की बातों को सुनकर ब्राह्मण कुछ नहीं कहता था उसे तो अपने आराध्य भोलेनाथ पर पूरा विश्वास था अब ब्राह्मण का बेटा अपनी शिक्षा पूरी करके गुरुकुल से वापस अपने घर आ गया और अपनी माता-पिता की सेवा करने लगा एक दिन की बात है सोमदत शिव मंदिर में अपने पिता के साथ पूजा पाठ कर रहा था और

(13:33) वहीं पर शिव भक्तों को कथा सुनाने लगा वह कहता है कि जो भक्त भगवान शिव की कथा को सुनते हैं उनके मन में जो इच्छा रहती है भोलेनाथ उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं प्रिय श्रोताओं सोमदत्त की यह सब बातें मंदिर में पूजा करने आए उसी राज्य के राजा ने सुन लिया और उसे यह बात बहुत ही अच्छी लगी और उसने सोमदत्त को अपने यहां राज कुमारी को कथा सुनाने के लिए नौकरी पर रख लिया अब सोमदत्त प्रतिदिन राजा के लड़की को कथा सुनाने जाया करता था वहां से दक्षिणा में जो भी मिलता उसमें ही वह अपने परिवार का पालन पोषण करने लगा इस पर भी ब्राह्मणी खुश नहीं थी उसने कहा

(14:18) मुझे अपने बच्चे की भविष्य की चिंता है हमारा जीवन तो जैसे तैसे कट गया लेकिन मेरे पुत्र का जीवन अभी बाकी है हमारे मरने के बाद उस का क्या होगा हमारी भक्ति पूजा पाठ का फल लगता है कभी नहीं मिलेगा क्या भोलेनाथ को मेरा दुख दिखाई नहीं देता मेरा पुत्र राजा के घर से जो कुछ भी लेकर आता है माना कि उससे हमारे पूरे परिवार का पेट भर जाता है किंतु और भी आवश्यकताएं कैसे पूरी होंगी ईश्वर ने अपनी आंखें क्यों बंद कर रखी है क्या मेरे पुत्र को हमारे तरह ही गरीबी में रहना होगा ब्राह्मण और ब्राह्मणी की यह करुण पुकार जब माता पार्वती ने सुना तो उन्होंने शिव जी से

(15:04) कहा हे देव हे महेश्वर आप सर्वज्ञ है आप क्यों इन दोनों की परीक्षा ले रहे हैं प्रभु ब्राह्मण आपका परम भक्त है अब आप उसके दुख का नाश करें प्रभु अन्यथा यह ब्राह्मण कहीं आपकी पूजा करना बंद ना कर दे कहीं उसके मन में आपके प्रति विश्वास समाप्त ना हो जाए माता पार्वती की बात को सुन भोलेनाथ ने कहा है देवी आप चिंता ना करें मैंने उनके भाग्य उदय का बीज तो पहले ही बो दिया है अब हम दोनों को साथ में लक्ष्मी जी विष्णु जी को लेकर इस ब्राह्मण के घर जाने का समय आ गया है मेरी कृपा के साथ ही वह ब्राह्मण दंपति विष्णु लक्ष्मी के भी कृपा

(15:49) के पात्र हैं उन दोनों पति-पत्नी ने हम दोनों की पूजा एक साथ की है हे देवी पृथ्वी लोक पर जाकर हमें शिव लीला करनी है प्रिय श्रोताओं अब शिवजी तुरंत माता पार्वती जी के साथ नंदी पर सवार होकर बैकुंठ लोक में जाते हैं जहां दयानिधि भगवान विष्णु शेष नाग के सैया पर विराजमान थे माता लक्ष्मी उनके पाव दबा रही थी तब शिव जी ने विष्णु जी से पृथ्वी लोक पर चलने को कहा विष्णु जी बोले हे देवी लक्ष्मी चलिए हमारे भक्त का बुलावा आ गया है अब क्या था चारों देवी देवता साधु का भेष धारण कर पृथ्वी पर उपरोक्त ब्राह्मण के घर पहुंच कर अलख जगाया और कहां अलख

(16:36) निरंजन अलख निरंजन घर में से बूढ़ा ब्राह्मण निकला उसने उन्हें प्रणाम किया तो उन साधु भेष धारी भगवान विष्णु और शिव जी ने कहा हम रात्रि में आपके घर पर विश्राम करेंगे इस पर ब्राह्मण पुत्र सुम दत्त ने अतिथि देवो भव ऐसा विचार कर कहा महाराज मेरे घर में दक्षिणा में मिले दाल भात आदि से हम तीनों के भोजन की पूर्ति होती है अत मैं एक समय के भोजन की व्यवस्था कर सकता हूं साधुओं ने उसे एक बर्तन देकर कहा कि वह दाल भात इस बर्तन में बनाओ तो हम सबका दोनों समय का भोजन बन जाया करेगा इस प्रकार उस बर्तन में बने भोजन से दोनों समय के भोजन की पूर्ति हो गई अगले दिन

(17:24) प्रातः काल में सोमदत्त जाने लगा तो साधु रूपी भगवान शिव जी ने पूछा हे पुत्र तुम कहां जा रहे हो उसने कहा है साधु महाराज मैं राजा की लड़की को कथा सुनाने जा रहा हूं साधु ने कहा तुम कथा सुनाने के बाद राजा की लड़की से पूछना कि तुम किस अभिलाषा की पूर्ति के लिए कथा सुनती हो अब सोमदत्त राजकुमारी को कथा सुनाने के बाद वही प्रश्न पूछता है कि तुम किस अभिलाषा की पूर्ति के लिए कथा सुनती हो राजा की लड़की ने कहा मैं इस अभिलाषा से कथा सुनती हूं कि मुझे ऐसा वर मिले जिसकी चर्चा सभी की जबान पर हो उसके माथे पर चांद और सूरज की रोशनी हो तथा वह भाग्य का ऐसा धनी हो

(18:12) कि उसके कदमों में लक्ष्मी थिरक हुई हो तथा ऐसी बारात हो जैसी किसी ने अब तक नहीं देखी हो प्रिय श्रोताओं अब वापस आकर सोम दत्त ने राजकुमारी की सारी बातें साधुओं को बताई अब देखिए अब अगले दिन प्रातः काल में जब वह कथा सुनाने के लिए जाने लगा तो साधुओं ने कहा बच्चा आज राजा की बेटी से फिर वही प्रश्न करना वह फिर से तुम्हें कल वाली बातें बताए तो तुम यह तुरंत कह देना कि जैसा पति तुम्हें चाहिए वैसा केवल मैं ही हूं ऐसा कहकर भाग आना सोमदत्त ने कहा है साधु महाराज कहा एक मैं गरीब ब्राह्मण जिसका घर उसकी दी हुई दक्षिणा पर चलता है और कहां

(18:59) वह राजा की पुत्री राजा मुझे और मेरे परिवार को मृत्यु दंड देकर मौत के घाट उतार देगा आत मैं ऐसा नहीं करूंगा साधु ने कहा कि ठीक है हम तुम्हें परिवार सहित अभी श्राप से भस्म किए देते हैं सोमदत्त पहले ही उनके चमत्कार से डरा हुआ था उसने सोचा कि राजा तो बाद में मृत्यु दंड देगा यह तो अभी अपने श्राप से भस्म कर देंगे अतः साधुओं को आश्वासन देकर कथा सुनाने के लिए चला गया कथा सुनाने के बाद सोमदत्त ने कहा है राजकुमारी कल आपने जो बताया था उसके अनुसार जैसा वर तुम्हें चाहिए वैसा वर मैं ही हूं ऐसा कहकर तुरंत वह वहां से भाग आया राजा की पुत्री को एकदम आघात पहुंच गया

(19:50) उसने दासी के द्वारा अपने पिताजी को बुलाकर सब बात बताई राजा ने आश्वासन दिया कि उस उदंड ब्राह्मण को उसकी सजा मिलेगी राजा ने तुरंत अपने मंत्रियों से विचार विमर्श किया एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा महाराज उसने अपराध तो फांसी दिए जाने वाला किया है परंतु वह एक ब्राह्मण है उसे फांसी देने पर एक ब्राह्मण हत्या का पाप लगेगा कुछ ऐसा किया जाए कि वह दंडित भी हो जाए और ब्राह्मण हत्या का पाप भी ना लगे काफी विचार विमर्श करने के बाद तय हुआ कि शादी का निमंत्रण पत्र कुछ शर्तों के साथ भिजवाया जाए राजा ने शर्तों वाला निमंत्रण पत्र लिखवा करर अपने नौकर के हाथ सोमदत्त के

(20:37) पिता के पास भिजवा दिया उधर सोमदत्त ने घर पहुंचकर साधुओं को बताया कि आपके कहे अनुसार कहने पर राजकन्या बहुत क्रोधित हो गई अब शीघ्र ही फांसी का संदेश पहुंचने वाला है कुछ समय बाद नौकर निमंत्रण पत्र लेकर वहां पहुंच गया साधुओं ने नौकर को सम्मान सहित बिठाकर सोमदत्त को निमंत्रण पत्र पढ़कर सुनाने को कहा पत्र इस प्रकार था अर्थात पत्र पर लिखा था हे ब्राह्मण पुत्र हमें तुम्हारा शादी का प्रस्ताव मंजूर है परंतु साथ-साथ हमारी कुछ शर्तें भी हैं हमारे द्वारा सभी शर्तें पूरी करने पर हम अपनी कन्या का विवाह तुम्हारे साथ कर देंगे शर्तें पूरी ना होने पर तुम्हें

(21:24) परिवार सहित फांसी दे दी जाएगी शर्त इस प्रकार से है पहली शर्त बारातियों के ठहरने वाले सभी बारात घर तथा बनाए गए सभी तंबू बारातियों से भरे होने चाहिए कोई भी तंबू खाली नहीं रहना चाहिए दूसरी शर्त बाराती के आतिथ्य सत्कार में बनाई गई सभी खाद सामग्री उपयोग होनी चाहिए कुछ भी बचना नहीं चाहिए तीसरी शर्त ऐसी अद्भुत बारात आनी चाहिए जिसकी प्रशंसा हर व्यक्ति के जबान पर हो बारात आने पर यदि कोई भी शर्त अधूरी होगी तो बारात में आने वाले सभी बारातियों को फांसी दे दी जाएगी पत्र पढ़कर सोमदत्त डर से कांपने लगा साधुओं ने कहा तुम डरो नहीं नौकर को

(22:12) भोजन खिलाकर पत्र का उत्तर देकर विदा करो और पत्र में लिखो कि आप विवाह की तैयारी करें हम फला दिन बारात लेकर आ रहे हैं नौकर को भोजन में दाल भात परोसा गया नौकर की थाली में चमत्कार से 36 प्रकार का भोजन बन गया विदाई में साधुओं ने जो कि साधु के वेष में भोलेनाथ और विष्णु जी थे उस नौकर को मुट्ठी भर धुनि की राख पत्र देकर विदा किया बाहर आकर नौकर ने देखा कि वह राख नहीं हिरे मोती है वह बहुत खुश हुआ राजा ने सकारात्मक उत्तर प्राप्त होने पर विचार किया कि वह गरीब ब्राह्मण किसके भरोसे ऐसा कर रहा है क्या कोई दुश्मन राजा उसका साथ

(22:57) दे रहा है यही सोचकर राजा ने शहर के तमाम बारात घर सजवा दिए और अनेकों तंबू लगवा दिए राजा का विश्वास था कि अधिक आदमी ना आने के कारण वह सर्त हार जाएगा सोमदत्त अपनी बारात में चलने के लिए जिसे भी कहता वही उसे यह कहकर मना कर देता कि नहीं तुम्हारा तो अंतिम समय आ गया है हम बारात में तुम्हारे साथ मरने के लिए क्यों जाए ऐसी बात सुनकर वह बहुत ही परेशान था शादी वाले दिन सोमदत्त को परेशान देखकर साधुओं ने कहा पुत्र आज तुम्हारा विवाह है और तुम परेशान हो रहे हो तैयार होकर हमारे साथ चलो तुम किसी भी बात की चिंता मत करो हम तुम्हारे साथ है सोमदत्त ने भाग्य में

(23:48) जो लिखा है वही होगा यही सोचकर तैयार होकर साधुओं के साथ चल दिया भगवान शिव जी ने इस बारात में चलने के लिए सभी देवताओं को मनुष्य रूप में आमंत्रित कर दिया तथा भूत प्रेत व अनेक गणों को भी शादी में बुला लिया जिसके कारण सभी बारात घर व लगाए गए सभी तंबू भर गए इसके बाद भी कुछ बाराती बिना तंबू के रह गए राजा के पास सूचना भिजवाई गई कि बारातियों के ठहरने का और प्रबंध कराया जाए सूचना मिलने पर राजा ने विचार किया कि कहां से इतने बाराती आ गए हैं चलकर देखना चाहिए फिर क्या था राजा तुरंत वहां पहुंचा राजा को आया देखकर शिवजी ने शुक्र व शनि जी को

(24:36) बच्चे के रूप में बनाकर भूख के कारण रुला दिया राजा ने दो बच्चों को रोते हुए देखकर पूछा कि यह बच्चे क्यों रो रहे हैं साधु बने शिवजी ने कहा इन्हें भूख लगी है राजन राजा ने उन बच्चों को खाना खिलाने के लिए भेज दिया कुछ समय बाद राजा के कर्मचारी ने आकर बताया कि महाराज वे दोनों बच्चे तो सारा का सारा खाना खा गए हैं और फिर भी भूख भूख चिल्ला रहे हैं ऐसा सुनकर राजा बहुत परेशान हुआ उसने अपना घमंड त्याग कर साधुओं के सामने नतमस्तक होकर कहा महाराज अब मेरी लाज आपके हाथ में है साधुओं ने कहा कोई बात नहीं सब कुछ ठीक हो जाएगा तुम घर जाकर बारात की अगवानी की

(25:24) तैयारी करो राजा ने शहर को बहुत ही सुंदर ढंग से सजाया जगजग झालरों से पूरा शहर एक दुल्हन की तरह सजाया गया सोमदत्त भी विवाह की पोशाक में एक राजकुमार की तरह बहुत सुंदर दिखाई दे रहा था शाम के समय उसे एक सुंदर रथ में बिठाया गया रथ के आगे अनेक प्रकार के बैंड बाजे नगाड़े वाले झूम रहे थे नाच रहे थे दूल्हे के मस्तक पर सेहरे को चांद और सूरज से सजाया गया 12 हाथ में मुद्राएं लेकर एक दूसरे पर न्योछावर करके इधर उधर उड़ा रहे थे बारात के इस विहंगम दृश्य को देखकर लोग आपस में कहने लगे कि इस ब्राह्मण के भाग्य को तो देखो इसके मस्तक के चेहरे में चांद

(26:14) सूरज और चारों तरफ से इस प्रकार धन लक्ष्मी उड़ाया जा रहा है मानो किसी बड़े राजा की बारात निकल रही है ऐसी बारात हमने अपने जीवन में कभी नहीं देखी और ना आगे देखने की उम्मीद है यह भाग्य का बड़ा धनी है प्रजा के मुंह से इस प्रकार की बातों को सुनकर के माता पार्वती ने कहा प्रभु आप जिस पर कृपा करते हैं उसके लिए अन्न धन के भंडार खोल देते हैं भगवान भोलेनाथ ने कहा है पार्वती जो भक्त मेरी पूरी श्रद्धा भक्ति से पूजा करते हैं मैं उन्हें उनके पूजा का फल अवश्य देता हूं उन्हें दुख तभी तक झेलना पड़ता है जब तक कि उनके के पाप कर्म खत्म नहीं हो जाते

(27:01) पुण्य कर्म जैसे ही उदय होते हैं उनके भाग्य के दरवाजे खुल जाते हैं और जो भक्त भगवान की कथाओं को सुनता है उन्हें भी राजकुमारी की तरह फल प्राप्त होता है राजकुमारी ने प्रतिदिन भगवान की कथाएं सुनी उसने मन में जो भी कामना की उसे वह मिला यह तो भोलेनाथ माता पार्वती विष्णु जी लक्ष्मी जी की महिमा थी जिसके कारण ब्राह्मण धनी हो गया उसका भी घर महल की तरह सुंदर हो गया उसके घर में नौकर चाकर इत्यादि की कमी नहीं थी अपार धन दौलत से घर भरा हुआ था और ब्राह्मणी ने भी फिर से भगवान की पूजा अर्चना करनी शुरू कर दी खूब दान दक्षिणा देना शुरू कर दिया और नित्य

(27:48) प्रति भगवान के कथाओं को सुना करती थी एक बार प्रेम से बोलिए लक्ष्मी नारायण भगवान की जय ओम नमः शिवाय जय माता पार्वती हर हर महादेव अगर वीडियो पसंद आई तो हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें धन्यवाद


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