शिवजी का गुस्सा | Shiv Ji Ka Gussa | Hindi Kahani | Moral Stories | Bhakti Stories | Hindi Story

शिवजी का गुस्सा | Shiv Ji Ka Gussa | Hindi Kahani | Moral Stories | Bhakti Stories | Hindi Story - 


एक समय की बात है श्रीपुर नाम के गांव में रामेश्वर नाम का एक ब्राह्मण अपनी मां के साथ राहत था वह दिन रात भगवान शिवा की भक्ति किया करता था शिवा नाम का जब सदैव उसके मुख पर राहत था ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय रामेश्वर बेटा आज भी तूने मुझे नहीं उठाया खुद ही उठकर घर के सारे कम कर लिए खीर भी भोग लगा दी तूने तो हम मैंने सोचा फटाफट से कम करके खीर बना लेट हूं शिवाजी खीर के इंतजार में बैठे होंगे यह लो भोग के खीर खाकर बताओ कैसी बनी है जब तेरे बापू जिंदा थे तब वो प्रसाद की खीर खिलाने थे और उनके जान के बाद तूने यह

(01:00) नियम बना लिया तेरी खीर बहुत ही स्वादिष्ट बंटी है बेटे और मुझे पता है भगवान शिवा भी तेरे हाथों की खीर खाने की इंतजार में रहते होंगे तभी तो मैं सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले खीर ही बनाता हूं ताकि भगवान शिवा को भोग लगा सुकून रामेश्वर का नियम था रोजाना सुबह जल्दी उठकर घर के सारे कम निपटाना और फिर भगवान शिवा के भोग के लिए खीर का प्रसाद बनाना यह कार्य करते थे और पिता के जान के बाद शिवा जी की सेवा और खीर भोग की पुरी जिम्मेदारी रामेश्वरम ने उठा ली रामेश्वर को विश्वास था की भगवान शिवा उसके द्वारा खिलाई गई खीर को रोजाना ही खाता हैं

(01:42) और अपने भक्ति के द्वारा भोग लगे गई खीर को कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान की खीर बहुत ही स्वादिष्ट होती है हां देवी पार्वती रामेश्वर इतनी स्वादिष्ट खीर का भोग लगता है की मां प्रश्न हो जाता है तभी नदी और समस्त शिवगन वहां जाते हैं महादेव यह लीजिए हम भांग और भटूरा ले आए हैं स्वादिष्ट खीर का ऐसा करो पेपरवेट पर रख दो अरे नदी महादेव तो हमारी और देख तक नहीं रहे उनका सर ध्यान दो रामेश्वर की बनाई हुई खीर पर है ऐसे कब तक चलेगा नदी हां मैं भी यही देख रहा हूं इतने प्रेम से हम

(02:47) भांग और धतूरा पीसकर ले और महादेव ने हमेशा रखना के लिए बोल दिया अरे नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है महादेव ने बोला है की हम उसे वहां रख दें वो कुछ डर बाद उसे ग्रहण करेंगे महादेव रोजाना रामेश्वर की भोग लगे हुई खीर को बहुत दाल से खाता हैं नदी में तो कई बार सोचता हूं की रामेश्वर की खीर में ऐसा क्या है की भोलेनाथ सबसे पहले उसकी भोग लगे खीर को ही खाता हैं और फिर और किसी तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता तभी तो हम भांग धतूरा लेकर आए और उन्होंने बिना देखें ही इसे रखना के लिए बोल दिया है और रामेश्वर की खीर से ज्यादा उन्हें समय कुछ भी प्रिया नहीं ग रहा

(03:30) तो क्या किया जाए नदी की महादेव का ध्यान अपने भक्ति रामेश्वर से हटकर हमारी और ए जाए एक रास्ता है नंदिनी सभी गानों के कान में कुछ कहा उसके पश्चात सभी गण पृथ्वी लोक पर ए गए और सब ने ब्राह्मण रूप ले लिया और सब लोग रामेश्वर के पास पहुंचे रामेश्वर शिवा जी को खीर का भोग लगाने के लिए बाजार से समाज खरीद रहा था ब्राह्मण विश में नदी ने रामेश्वर से कहा रामेश्वर तुम हमें नहीं जानते और हम तुम्हें बहुत अच्छे से जानते हैं तुम भगवान शिवा के भक्ति हो और रोजाना उन्हें खीर का भोग लगाते हो आम ब्राह्मण देव आप तो सब कुछ जानते हैं आराम ईश्वर हम सब जानते हैं

(04:08) इसीलिए तो हम तुम्हारे पास आए हैं हमें पता है की तुम महादेव के परम भक्ति हो पर तुम्हें पता है महादेव रोजाना खीर खाकर अब गए हैं इसलिए अब तुम कुछ दोनों के लिए खीर का भोग रॉक दो तुम्हें कम क्यों नहीं करते तुम महादेव को सप्ताह में एक दिन खीर का भोग लगाया करो जिससे महादेव को और अधिक स्वाद आएगा अब महादेव को इतने सारे भक्ति सकते हैं महादेव भी तो इतने सारे भक्तों के द्वारा दिए भूख को ग्रहण करते हैं उनका पेट बहुत भर जाता है अगर तुम उनको सप्ताह में एक दिन खीर का भोग लगाओगे तो उन्हें तुम्हारी खीर का इंतजार रहेगा और वो और

(04:42) अधिक आनंद से खीर खाएंगे क्यों हम सही का रहे हैं ना ये तो आप ठीक का रहे हैं ब्राह्मण देव इस विषय में तो मैंने कभी सोचा ही नहीं अब मैं एक कम करता हूं मैं सप्ताह में एक दिन ही भगवान को खीर का भोग लगाया करूंगा ताकि वो और भी भक्तों का प्रसाद ग्रहण कर सके और फिर उन्हें मेरी खीर का बेसब्री से इंतजार रहे भोला भला रामेश्वर शिवगणों की बटन में ए गया शिवगढ़ खुशी-खुशी कैलाश वापस लोट आए अब शिवा जी रोजाना रामेश्वर की खीर का इंतजार करने लगे की कब्र रामेश्वर उन्हें भोग लगे और कब वो खीर कब भूख खाए पर कुछ दोनों तक रामेश्वर ने केक बनाया ही नहीं तो शिवा जी

(05:20) को खीर कहां से मिलती अब सप्ताह में एक दिन रामेश्वर ने कर का भोग लगा दिया तो शिवा जी ने खीर का ली फिर उसके बाद कुछ दिन और खीर नहीं मिली भगवान शिवा सोच में पद गए उन्होंने अपने नेत्र बैंड की और उन्हें साड़ी सच्चाई पता ग गई और भगवान शिवा को गुस्सा ए गया शिवा जी को गुस्से में आया देख सभी गण उनके समक्ष जोड़कर खड़े हो गए वीरभद्र भैरव तुम सभी गण जानते भी हो की तुमने क्या किया है मेरे भक्ति रामेश्वर के द्वारा भोग में अर्पित की गई खीर मुझे कितनी प्रिया है और तुमने उसे खीर का भोग रोजाना लगाने के लिए माना कर दिया महादेव

(06:00) हम एक क्षमा कर दीजिए हमसे भूल हो गई महादेव जब हम आपको खीर खाता हुआ देखते थे तो हम यही सोचते थे की आप हमारी और ध्यान नहीं दे रहे हैं अच्छा तो यह करण है पर तुम सब यह नहीं जानते की मेरा प्रेम अपने सभी भक्तों पर एक समाज है मैं भला तुम्हें कैसे भूल सकता हूं तुम तो मेरे हृदय में वास करते हो तुम सब तो मेरी ही शक्तियों द्वारा उत्पन्न हुए हो संसार में मेरा प्रत्येक भक्ति मुझे एक समाज प्रिया है और प्रत्येक भक्तों के हृदय में मैं ही विद्यमान हूं इसलिए मेरा प्रेम कभी भी कम या ज्यादा नहीं हो सकता माता-पिता के लिए तो उनके सभी बच्चों में प्रेम एक समाज

(06:39) होता है फिर तुम यह भूल कैसे सकते हो भगवान शिवा की बातें सुनकर सभी शुभकरण समझ गए की उन्होंने कितनी बड़ी भूल कर दी सचमुच महादेव का प्रेम तो अपने सभी भक्तों के लिए एक समाज राहत है इसके बाद सभी शुभकरण फिर से एक बार रामेश्वर के पास गए रामेश्वर हमें भगवान शिवा का संदेश आया है वो का रहे थे की तुम्हारी खीर इतनी स्वादिष्ट होती है की वो सप्ताह भर की प्रतीक्षा नहीं कर सकते सप्ताह में एक दिन भूख से उनका मां ही नहीं भरत इसलिए उनकी आजा है की तुम रोजाना ही उन्हें खीर का भोग लगाया करो आप सच का रहे हैं ब्राह्मण देव भगवान शंकर को मेरे हाथों की बनी खीर

(07:17) इतनी प्रिया है ठीक है फिर मैं रोजाना उन्हें खीर का भोग लगाऊंगा यह सुनकर रामेश्वर बहुत खुश हुआ अब एक बार फिर रामेश्वर रोजाना खीर बनाकर भगवान शिवा को भोग लगाने लगा अब तो समस्त शिवगन की भगवान शिवा के साथ रामेश्वर द्वारा भोग लगी प्रसाद की खीर का आनंद लेते और खूब भरपेट खीर को खाता भगवान शिवा और देवी पार्वती दोनों सभी गानों को इस प्रकार खीर खाता देख मंद मंद मुस्कुराने लगे भगवान शिवा ने अपने परम भक्ति रामेश्वर को सभी सुख सुविधाओं से पूर्ण रखा उसके जीवन में कभी भी कोई कठिनाई नहीं आई रामेश्वर का विवाह एक बहुत ही सुशील कन्या के साथ हुआ

(07:58) उसके घर में दो बच्चों का जन्म हुआ अपने परिवार के साथ संपूर्ण जीवन खुशी-खुशी व्यतीत करके रामेश्वर अंत में मोक्ष को प्राप्त हुआ भोलापुर गांव में बृजपाल नाम का एक ब्राह्मण राहत था जो की बहुत ही आलसी स्वभाव का था घर में उसकी पत्नी सुनीता और बेटी गुड्डी उसके साथ रहती थी बृजपाल सर दिन खाट पर ही पड़ा राहत था बृजपाल दिनभर में बस एक ही कम करता था और वह था भगवान शंकर की पूजा वो हर रोज सुबह शाम शंकर भगवान की पूजा करता उनके नाम की माला जप्त फिर सो जाता अपने आलस की करण सर दिन सोए रहने की वजह से अक्सर बृजपाल और उसकी पत्नी में खटपट होती रहती अब उठ भी

(08:44) जो जी कितना सूज चलो अब खाना खाकर खेत चले जो फसल काटने का समय हो गया है और हां वापसी में आते हुए नदी किनारे लगे सरसों का साथ तोड़कर ले आना घर में बनाने के लिए कोई सब्जी नहीं है और हां भूलना मत नहीं तो आज खाना नहीं बनाऊंगी अपनी बीबी की बटन को नजर अंदाज कर बृजपाल फिर से चादर टैंकर सोचा है सुनीता गुस्से में लाल पीली हो जाति है उधर कैलाश में बैठी मां पर प्रति शंकर भगवान से कहती हैं जो आपकी भक्ति के अलावा और कुछ कम नहीं करता बस अपने आलसी शरीर के करण खाट पर ही पड़ा राहत है कोई कर्म नहीं करता आपको तो ऐसे भक्ति का मार्गदर्शन करना चाहिए

(09:30) [संगीत] इसके पिछले जन्म का है तब यह एक आलसी गधा हुआ करता था जो सर दिन मेरे मंदिर के बाहर लेटर राहत था मंदिर में जब भी मेरे नाम का उच्चारण भक्तगण करते तो उसका स्रोत उसके कानों में गूंजता और उसे नींद में भी मेरा ही नाम सुने देता फिर एक रोज श्रवण मास में यह चल बस और फिर अगले चारों में इसने मनुष्य रूप में जन्म लिया लेकिन इसके पिछले जन्म के आलसी स्वभाव ने इसका पीछा नहीं छोड़ जब सही समय आएगा तब है इसे ज्ञान दूंगा है भगवान क्या करूं मैं इस आदमी का यह तो फिर से लेट गए कब से का रही हूं उठ जो खेतों में फसल बड़ी हो गई है अगर समय रहते

(10:20) उसे नहीं काटा तो उसे जानवर चढ़ जाएंगे और कोई चूड़ा लगा सुन रहे हो ना मैं क्या का रही हूं है शिवा जी ना जान इनका आलस कब खत्म होगा इनके अलसी तो मैं टांग ए चुकी हूं सुनीता लगातार बड़बड़ाए जा रही थी लेकिन आलसी ब्राह्मण के सर पर तो जून तक नारंगी वो तो बस चुपचाप अपनी खाट पर लेट हुआ था बृजपाल को ना उठाता देख सुनीता गुस्से में ए जाति है और बाहर आंगन में रखिए पानी की बाल्टी उठा कर लाती है और बृजपाल के ऊपर गिरा देती है बृजपाल पूरा भीगी जाता है और वो गुस्से में उठकर उससे लड़ने लगता है काफी डर तक दोनों में खूब कहा सनी होती है फिर वो गुस्से में घर से

(10:57) निकाल कर शंकर भगवान के मंदिर में चला जाता है और वहां पहुंचकर शंकर जी से कहता है है शंकर भगवान अपनी पत्नी की रोज-रोज की जिक जिक से मैं टांग ए चुका हूं अगर मेरी भक्ति ने आपको प्रश्न किया है तो मुझे आप दर्शन दीजिए प्रभु इतना कहती वो जोर-जोर से रन लगता है अपने प्रति उसका प्यार और श्रद्धा देखकर शंकर भगवान उसको दर्शन देते हैं और कहते हैं बृजपाल तुम्हारी भक्ति ने मुझे प्रश्न किया है तुम सचमुच मेरे परम भक्ति हो कहो तुम्हें मुझे क्या वरदान चाहिए है प्रभु मुझे ऐसी कोई चीज दीजिए जो मेरी हर बात मैन और मेरा सर कम कर दे यह

(11:42) लो मेरा यह छोटा त्रिशूल तुम इस त्रिशूल को जहां भी रखोगे वह अपना कम खुद ही करने ग जाएगा और कम पूरा होने के बाद ही रुकेगा लेकिन हां अगर तुमने इसे कम के लिए माना किया तो यह हमेशा हमेशा के लिए भौगढ़ वापस मेरे पास ए भगवान शंकर उसको त्रिशूल देकर अंतर्ध्यान हो जाते हैं त्रिशूल देखकर बृजपाल यह सोचकर बड़ा खुश हो जाता है की अब से उसे कुछ भी कम नहीं करना पड़ेगा इसके बाद वो त्रिशूल लेकर घर पहुंचता है और अपनी पत्नी और बेटी को त्रिशूल के बड़े में साड़ी बात बताता है अगले दिन सुबह ही बृजपाल ने भगवान शंकर का नाम लेकर उसे त्रिशूल का इस्तेमाल शुरू कर दिया वो जैसी

(12:29) त्रिशूल को घर के बीचों-बीच रखना सारे घर में अपने आप ही सफाई हो जाति वो जी भी चीज पर उसे त्रिशूल को रख देता वो अपने आप कम करने ग जाता खेतों में रख देता तो अपने आप ही साड़ी फसल कट जाति ऐसे ही कई दिन बीट जाते हैं एक रोज जब सुनीता गुड्डी के साथ अपने मायके गई होती है तो बृजपाल त्रिशूल को गैस के पास रखकर कहता है मेरे लिए जल्दी से स्वादिष्ट सब भजन तैयार कर दो चूहा पर अपने आप कढ़ाई चढ़ जाति है और उसमें खुद ही तेल मसाले पढ़ने ग जाते हैं देखते ही देखते स्वादिष्ट पकवान बनकर तैयार हो जाते हैं जिन्हें ब्रिज पाल बड़े ही चटकारो लेकर खाता है

(13:10) आहा है है वह मजा ही ए गया वह वह क्या स्वाद है रोज भगवान रोज भाग्यवान के हाथों का भजन करके तुम्हें परेशान ही हो गया था सच में कमल का है यह त्रिशूल खाना खाकर ब्रिज पाल आराम से गहरी नींद में सो जाता है और फिर जब अगली सुबह जगत है तो केन के पास जाकर उसे त्रिशूल से कहता है जल्दी से मेरे नहाने के लिए केन में से पानी निकाल कर इस बाल्टी में भारत जाए केन में से पानी निकालना हो पौधों को पानी देना हो साफ-सफाई कपड़े बर्तन सभी तरह के कम वो त्रिशूल बृजपाल के कहते ही कर देता बृजपाल बगीचे में पड़ी पाइप के पास जाता है और अपने त्रिशूल को उससे छुट्टे हुए कहता है

(13:54) जल्दी से इस बगीचे में लगे पेड़ पौधों को अच्छे से पानी दे दो टाइप अपने पौधों में पानी देने ग जाति है फिर आलसी ब्राह्मण खुश होते हुए आराम से सोनी चला जाता है लेकिन सोनी के कुछ डर बाद ही लाइट चली जाति है फिर वो अपने त्रिशूल को हाथ रेखा पर रखते हुए कहता है जब तक लाइट नहीं ए जाति तुम मुझे इस पंख से हवा करो उसकी ये कहते ही है पंखा उसे हवा करने लगता है कुछ डर बाद जैसे ही लाइट आई है तो वो है पंखा बैंड हो जाता है एक दिन बृजपाल को बड़ी तेज भूख ग रही होती है उसने खाली थाली अपने सामने राखी और जमीन पर बैठ गया पृथ्वी सूर्य को थाली पर लगाकर

(14:34) खाने लगा अब इसमें से जल्दी-जल्दी स्वादिष्ट पकवान निकाल कर आते जाए कुछ ही डर में कई तरह के पकवान थाली में आते गए कितना अच्छा होता अगर मुझे अपने आप खाना खाना ना पड़े और खुद ही मेरे मुंह में सर खाना चला जाए ऐसा कहकर उसने त्रिशूल को अपनी प्लेट पर लगाया और खाने लगा अच्छे अच्छे पकवान जल्दी से मेरे मुंह में ए जाए उसकी ऐसा कहती थाली में से तरह-तरह के पकवान निकालकर उसके मुंह में जान लगे और वो बड़ी चटकारो लेकर उनको खाने लगा पर यह मजाक कुछ डर तक का ही था कुछ डर में उसका पेट भर गया और वो का नहीं का रहा था लेकिन पकवान थे जो की उसके मुंह में लगातार जाति

(15:15) ही जा रहे थे उसका पेट और मां पुरी तरह भर चुका था वो जैसे ही उन्हें रोकने की बात सोचता है तो उसे भगवान शंकर की कहानी वो बात याद आई जिसमें उन्होंने कहा था की अगर त्रिशूल को कम करते हुए रॉक गया तो ये वरदान वही समाप्त हो जाएगा और त्रिशूल फिर से शंकर भगवान के पास पहुंच जाएगा तभी वहां सुनीता गुड्डी के साथ अपने मायके से लोट कर पहुंच जाति है वो दोनों ये सब देखकर हैरान र जाति हैं सुनिए जी अच्छी तो आपका पेट कितना फूलता जा रहा है जल्दी से इस त्रिशूल को रुकने के लिए कहिए बृजपाल शंकर भगवान के लिए वरदान को कोना नहीं चाहता था लेकिन फिर भी वो ठक्कर का ही

(15:53) देता है रुक जो उसके इतना कहते ही खाना रुक जाता है लेकिन साथ ही वह त्रिशूल भी वहां से गायब हो जाता है त्रिशूल को गवाह कर वो बड़ा ही दुखी हुआ लेकिन अब वो कुछ भी नहीं कर सकता था शंकर भगवान के लिए वरदान को अब वह को चुका था तक बृजपाल ने जितने भी कम त्रिशूल को दिए थे वो सब कब रोकने हैं ये उसने साथ में ही बता दिया था लेकिन खाना खाता हुए कब रुकना है ये कहना वो भूल गया था जिसका करण खाना बिना रुक ही उसके मुंह में आता ही जा रहा था साड़ी बात समझना के बाद बृजपाल खाने लगा है महादेव मैं समझ गया ये वरदान आपने मुझे सबक सीखने के लिए दिया था सचमुच में

(16:34) मैं कितना मूर्ख था जो हर छोटे-छोटे गांव के लिए भी आलस दिखता था और अब मुझे सिख मिल चुकी है की छोटे-छोटे कम के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहने से कितनी बड़ी मुसीबत ए शक्ति है उसे दिन की बात से बृजपाल ने हमेशा हमेशा के लिए आलस्याग दिया और हर रोज खेत जान लगा अपने सभी कम खुद करने लगा और दिन में दो बार भगवान शंकर की पूजा भी करता अब उसका जीवन पुरी तरह से सफल हो गया [संगीत]


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