सावन सोमवार व्रत का चमत्कार | Sawan Somvar Vrat Katha | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories

 (4) सावन सोमवार व्रत का चमत्कार | Sawan Somvar Vrat Katha | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories


 हिंदू धर्म के लोगों के लिए सावन महीने का बड़ा महत्व है इस महीने भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है सावन के सोमवार व्रत बहुत ही फलदाई होते हैं शिव पुराण के अनुसार जो व्यक्ति सावन सोमवार के व्रत रखता है भगवान शिव उसकी सारी मनोकामना पूर्ण करते हैं सावन के सोमवार व्रत सुहागन स्त्रियों को सौभाग्य प्राप्ति कुंवारी कन्याओं को उचित व तथा जो स्त्रियां निसंतान है उन्हें संतान प्राप्ति के लिए सावन के सोमवार व्रत श्रेष्ठ माने गए हैं कोई भी उपवास बिना व्रत कथा के अधूरा माना जाता है यहां आप जानेंगे सावन सोमवार की पवित्र

(00:56) कथा सोमनाथ नाम का एक साहूकार था जो भगवान शिव का अनन्य भक्त था उसके पास धन धान्य किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी और वह इसी कामना को लेकर रोज शिवजी के मंदिर जाकर दीपक जलाता था हे भोले भंडारी मुझे कब संतान का सुख प्राप्त होगा क्या मैं अपनी संतान का सुख भोके बिना ही इस दुनिया से चला जाऊंगा भोले भंडारी आप तो सबकी मनोकामनाएं पूरी करते हो मेरी विनती भी सुन लो भगवान प्रभु यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है इसको किसी बात का कष्ट है तो आपको उसे अवश्य दूर करना चाहिए देवी पार्वती सहकार के घर संतान नहीं है यह इसी बात से दुखी है हे

(01:48) महादेव तो आप इसे पुत्र का वरदान दे दीजिए इस भक्त पर कृपा कीजिए पार्वती सहकार के भाग्य में पुत्र का योग है ऐसे में अगर इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान मिल भी गया तो वह केवल 16 वर्ष की आयु तक ही जीवित रहेगा पर प्रभु आपके भक्तों का जो विश्वास आपसे जुड़ा हुआ है क्या वह नहीं सोच रहे आप साहूकार प्रति सोमवार आपका व्रत और पूजन करता है और अब तो सावन माह के पवित्र दिन है जो आपको अति प्रिय है आपको इसकी इच्छा पूरी करनी ही होगी ठीक है देवी पार्वती मैं अपने भक्त सोमनाथ को पुत्र का वरदान देता हूं लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा उसी रात भगवान

(02:44) शिव ने स्वप्न में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई जब व्यापारी स्वप्न से जागा हे महादेव एक तरफ मुझे पुत्र देकर संतान का सुख दे दिया और दूसरी तरफ पुत्र अल्पाय होगा यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा दुख मैं जानकी से कैसे छुपा कर रख पाऊंगा प्रभु आपकी लीला आप जानते हो मेरी भक्ति में फिर भी कोई कमी नहीं आएगी आपके द्वारा दिया वरदान मुझे मंजूर है व्यापारी पहले की तरह सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा कुछ महीने पश्चात उसके घर अति सुंदर पुत्र उत्पन्न

(03:31) हुआ पुत्र जन्म से व्यापारी के घर में खुशियां भर गई बहुत धूमधाम से पुत्र जन्म का समारोह मनाया गया पुत्र का नाम अमर रखा गया धीरे-धीरे अमर 12 वर्ष का हुआ तो एक दिन दीपचंद तुम अमर को काशी नगरी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और रास्ते में अमर के हाथों ब्राह्मणों को भोजन और दान दक्षिणा कराते हुए जाना लंबी यात्रा के बाद अमर और दीपचंद एक नगर में पहुंचे उस नगर के राजा की कन्या के विवाह की खुशी में पूरे नगर को सजाया गया था निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे की एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था उसे इस बात का भय सता रहा था कि

(04:20) राजा को इस बात का पता चलने पर कहीं वह विवाह से इंकार ना कर दे इससे उसकी बदनामी होगी यह लड़का मेरे पुत्र की उम्र का है और इस नगरी में नया है कोई इसे नहीं जानता क्यों ना इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर में ले जाऊंगा वर के पिता ने इसी संबंध में अमर और दीपचंद से बात की दीपचंद ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली अमर को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी चंद्रिका से विवाह करा दिया गया राजा ने बहुत सा धन देकर राजकुमारी को विदा किया अमर

(05:06) राजकुमारी से सच नहीं छिपा सका और उसने जाते हुए राजकुमारी की ओहली पर लिख दिया राजकुमारी चंद्रे का तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ था मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूं अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा वो काना है पिताजी महाराज मैं इस लड़के के साथ विदा होकर नहीं जाऊंगी मेरा विवाह तो किसी और के साथ हुआ है जो अपनी विद्या पूरी करने वाराणसी गए हैं राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को महल में रख लिया उधर अमर अपने मामा दीपचंद के साथ वाराणसी पहुंच गया अमर ने गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया धीरे-धीरे वक्त बीता

(05:50) अमर 16 वर्ष का हो चुका था एक दिन अमर यज्ञ करके ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देकर रात के वक्त जब शयन कक्ष में सो रहा था शिवजी के वरदान के अनुसार उसके प्राण पखेरू उड़ गए अगली सुबह जब मामा दीपचंद कमरे में आया अरे आज अमर सोकर नहीं उठा रोजाना तो जल्दी उठ जाता है अमर बेटा अरे उठ अरे तू उठ क्यों नहीं रहा अरे यह क्या नहीं अमर तू ऐसे कैसे इस दुनिया से चला गया अरे अरे ये क्या हो गया मैं जीजा जी को क्या जवाब दूंगा अमर मेरे भांजे अरे उठ बेटा प्रभु यह कौन इतना विलाप कर रहा है कौन भक्त इतना दुखी है प्राणनाथ मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे आप इस

(06:50) व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें देवी पार्वती यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है मैंने इसे 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था इसकी आयु तो पूरी हो गई स्वामी आप इस लड़के को जीवित करें नहीं तो इसके माता-पिता पुत्र की मृत्यु के कारण रो रोकर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे आपके परम भक्त साहूकार को उसके वर्षों की सोमवार की पूजा का आप यह फल देंगे नहीं प्रभु इस बालक को जीवन दान दीजिए अपनी पूजा करने वाले साहूकार भक्त की पूजा को सफल कीजिए प्रभु देवी पार्वती आज अपनी पूजा करने वाले परम भक्त के लिए मुझे यह विधि का विधान बदलना होगा मैं अमर की जीवन रेखा से अल्पायु योग

(07:42) हटाकर इसे दीर्घ आयु रहने का आशीर्वाद देता हूं माता पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा शिक्षा समाप्त करके अर मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे जहां अमर का विवाह हुआ था मामा जी मैं काशी नगरी में रुककर यज्ञ का आयोजन करना चाहता हूं भगवान भोलेनाथ ने मुझे नया जीवन प्रदान किया है इसलिए यही मेरी इच्छा है ठीक है अमर हम एक दिन यहां रुककर यज्ञ का आयोजन करते हैं अरे यह तो वही लड़का है जिससे राजकुमारी चंद्रिका का विवाह हुआ था

(08:34) महाशय मेरी पुत्री आपके वियोग में आज भी आपकी प्रतीक्षा में है उसे स्वीकार कीजिए और मुझे कृतार्थ कीजिए अमर को देखकर राजकुमारी चंद्रिका बहुत प्रसन्न हुई दीपचंद और अमर को कुछ दिन महल में रहने का अनुरोध करके राजा ने बहुत सधन वस्त्र आदि देकर राजकुमारी को अमर के साथ विदा किया जानकी यदि अमर सकुशल नहीं लौटा तो हम यही अपने प्राण त्याग देंगे स्वामी मैं अपने पुत्र को देखे बिना व्याकुल हो रही हूं आपने उसके अल्पायु होने की बात क्यों छिपाई मेरे लाल को मुझसे दूर भेज दिया आपने मैं अपने पुत्र अमर के बिना जीवित नहीं रहूंगी तभी द्वार पर एक सेवक ने दस्तक दी

(09:25) राजकुमार अमर और राजकुमारी चंद्रिका बस आपके समक्ष पहुचने वाले हैं आप बिल्कुल भी चिंतित ना हो इसलिए यह खबर उन्होंने भिजवाई है साहूकार अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर पुत्र वधु राजकुमारी चंद्रिका को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा हे मेरे प्रिय भक्त सोमनाथ मैंने तुम्हारे सोमवार के व्रत करने और व्रत कथा सुनने प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है सदा दूसरों के कल्याण में मन लगाना तुम्हारा कल्याण हो

(10:10) वत्स यह कहकर भगवान शंकर अंतर्ध्यान हो गए भगवान शिव की भक्ति करते हुए सोमनाथ को मोक्ष प्राप्त हुआ इसी प्रकार जो कोई भी सावन सोमवार का व्रत धारण करता है अथवा इस कथा को पढ़ता या सुनता है उसके दुख दूर होकर उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं इससे लोक में नाना प्रकार के सुख भोग कर अंत में शिवलोक को प्राप्त होता है आनंदी की शादी को 5 साल हो गए थे पर शादी के बाद उसे मां बनने का सुख नहीं मिला था पति अनिल का काम भी बंद पड़ा था पहले अनिल एक कोल्ड ड्रिंक की फैक्ट्री में नौकरी करता था पर अचानक बंद हो गई पिछले छ महीने से अनिल काम ढूंढ रहा है पर

(11:03) उसे कोई काम नहीं मिल रहा आनंदी भगवान शिव और देवी पार्वती की बहुत पूजा करती है वह कई वर्षों से सावन सोमवार के व्रत और सावन पूजा करती आ रही है पर उसकी सास कमला हमेशा इस बात से चढती थी अब कौन से व्रत पूजा आ गए सारा दिन जब देखो शिव पार्वती की पूजा ही करती रहती है आज तक तेरी इस पूजा का कोई फल तो प्राप्त हुआ नहीं ना इस घर में कोई काम आया ना पैसा आया ना तेरी गोदी भरी है मां जी सावन का महीना शुरू हो गया है मैं सावन के सोमवार व्रत शुरू कर रही थी आज पहला सोमवार है इसीलिए मंदिर जा रही थी बस पूजा पाठ के बहाने मंदिर चली

(11:42) जाती है जा लेकिन जल्दी आना और हां कोई पैसे नहीं मिलेंगी तू ऐसे ही मंदिरों में फालतू के खर्चे करती है घर में कोई पैसों का पेड़ नहीं लगा हुआ और पहले ही हमारे यहां पैसों की इतनी तंगी है ऊपर से तेरे माइके वाले आज तक रप की चीज घर नहीं लाए तभी आनंदी के मम्मी पापा मिलने के लिए आ जाते हैं मां पापा आप हां बेटा सावन का सोमवार था मंदिर गए तो सोचा रास्ते में तुमसे मिलते हुए घर चले जाएं नमस्ते समधन जी बेटा अच्छा हुआ तुम घर पर मिल गई तुम्हारी मां तो कह रही थी कि कहीं तुम मंदिर ना गई हो अ नमस्ते बहन जी समधन जी कुछ फल और मिठाई कुछ समझ नहीं आया कि क्या

(12:21) खरीदें अ गरम-गरम जलेबी बन रही थी तो हमने वही पैक करा ली बाकी दशहरी आम का सीजन आ गया है बहुत अच्छा दश आम आया हुआ है सोचा यही ले लेते हैं दशहरी आम तो हमारे यहां यूं ही पड़े रहते हैं फ्रिज में सड़ जाते हैं और फेंकने पड़ते हैं कोई नहीं खाता है पर ठीक है अगर ले ही आए हो तो क्या ही कहूं आनंदी के साथ सरासर झूठ बोल रही थी क्योंकि उसके घर में तो कितने महीने बीत गए थे एक भी आम नहीं आया था वोह तो उसके मम्मी पापा की जितनी गुंजाइश थी उस हिसाब से वह अपनी बेटी के लिए कुछ ना कुछ लाते रहते थे आनंदी अपने माता-पिता को चाय नाश्ता पूछती है पर आनंदी के माता-पिता

(13:01) कमला के स्वभाव को जानते थे इसलिए वह ज्यादा देर नहीं रुके और अपनी बेटी से मिलकर चले गए ये दो आम कहां लेकर जा रही है हद हो गई भला तेरे मां-बाप देकर गए तो तू तो सारे आम ही हड़प रही है इन्हें चुपचाप फ्रिज में रख दे रात में काट कर खा लेंगे मां जी वह जोड़े का फल मंदिर में लेकर जाना था मैं सोच रही थी दो आम मंदिर ले जाती कोई जरूरत नहीं है एक काम चुपचाप यहां रख एक ही लेकर जा बड़ा भगवान को पता चल रहा है कि तू एक चढ़ा रही है या तो आनंदी अपनी सास से कुछ नहीं कहती वह एक काम और पूजा के जल और फूल लेकर मंदिर चली जाती है आनंदी मंदिर जाते हुए बहुत रो रही

(13:38) थी उसकी आंखों में आंसू थे हे शिवशंकर हे मां पार्वती आप मेरी प्रार्थना कब सुनोगे ना ही मेरे पति का कोई काम चल रहा है और ना ही हमारे घर में संतान का सुख आया है मुझे इन दुखों से कब छुटकारा मिलेगा प्रभु मुझे अपनी पूजा का फल कब मिलेगा मेरी प्रार्थना सुनो प्रभु मेरी सहायता करो अब मुझसे और दुख नहीं सहा जाता बेटी बहुत जोरों की भूख लगी है कुछ भी खाने का नहीं है तुम्हारे पास कुछ खाने का है तो मुझे दे दो भगवान तुम्हारा भला करेंगे मेरे पास मेरे पास तो बस याम है पर यह तो आनंदी एक पल के लिए सोचती है फिर वह अपना पूजा का आम उस औरत को दे देती है अम्मा जी मेरे

(14:21) पास ये एक आम है मैं यह मंदिर ले जा रही थी पर अब आप इसे रख लो बेटी पर यह तो तुम मंदिर में चढ़ाने के लिए ले जा रही थी फिर तुम मंदिर में क्या चढ़ाओ गी मेरे पास मंदिर में पूजा के लिए फूल है मैं उन्हीं से भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा कर लूंगी पर आपको भूख लगी है ना आप यह आम खा लो जीती रहो बेटी भगवान शंकर और माता पार्वती तुम्हारी हर मनोकामना पूरी करें आनंदी भगवान शिव के मंदिर पहुंचती है और वहां जल और फूल चढ़ाकर पूजा आरती करती है कुछ देर बाद जब आनंदी घर पहुंचती है वह देखती है उसके घर के बाहर आम से भरा हुआ एक ट्रक खड़ा है उसका पति अनिल और उसकी

(15:02) सास कमला ट्रक में से आम उतार रही थी अरे बहू कहां रह गई थी इतनी देर से तुम्हारा इंतजार कर रहे थे तुमने तो कमाल ही कर दिया बहुत अच्छा किया जो मंदिर में तुम्हें सेठ गौरी शंकर जी मिल गए बोल रहे थे कि तुमने उन्हें अपने घर की परिस्थिति बताई थी और उन्हें एक सहायक की जरूरत थी जो उनके बागों के आम बेच सके वह आम का ट्रक लेकर आए हैं अब हमारे अनिल के पास काम आ जाएगा अनिल थोड़े पैसे कमा लेगा सेठ गौरी शंकर पर मुझे तो मंदिर में कोई नहीं मिला मां जी मां वो जो सेठ गौरी शंकर जी आए थे अब वो कहां चले गए आम तो सारे ट्रक में से उतार लिए थे पर अचानक से ना ट्रक

(15:40) है ना सेठ गौरी शंकर है अब इतनी जल्दी वो चले कहां गए साक्षात भगवान शंकर देवी पार्वती मेरी प्रार्थना सुनकर मेरी मदद के लिए आए हे शिवशंकर हे मां पार्वती मैं आपको पहचान नहीं पाई आनंदी अपनी आंखें बंद करती है तो उसे देवी पार्वती की झलक उस औरत में दिखाई देती है जिसे आनंदी ने ने आम दिया था आनंदी की आंखों में खुशी के आंसू थे सेठ गौरी शंकर और कोई नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव थे अचानक आनंदी चक्कर खाकर जमीन पर गिर जाती है उसकी सास और पति उसे अंदर लेकर आते हैं अनिल पड़ोस में रहने वाले एक डॉक्टर को बुलाता है डॉक्टर से पता चलता है कि आनंदी मां बनने वाली है

(16:19) आनंदी की सास और पति की खुशी का ठिकाना नहीं था एक तरफ अनिल को व्यापार मिल गया और दूसरी तरफ आनंदी मां बन गई आनंदी कमला और अनिल को सारी सच्चाई बता बताती है जिसे सुनकर वह भी हैरान रह जाते हैं बहू तेरी भक्ति में बहुत शक्ति है तूने अपनी सावन पूजा से भगवान शिव और मां पार्वती को प्रसन्न किया और देख आज तेरी वजह से ही हमारे घर में खुशियों के दिन आए हैं जय शिवशंकर जय मां पार्वती आपकी सदा ही जय हो मैं वादा करती हूं भगवान मैं अपनी बहू को अब कभी भी तंग नहीं करूंगी मैं अपनी बहू को बेटी की तरह रखूंगी आनंदी सचमुच तुम्हें पत्नी के रूप में पाकर मैं बहुत

(17:01) खुश हूं तुमने तो हमारे घर पर आए सारे संकट दूर कर दिए हमारे गरीबी के दिन चले गए आनंदी और यह सब तुम्हारी सावन पूजा का फल है तुम्हारे ऊपर भगवान शिव और माता पार्वती की बहुत कृपा है जय शिवशंकर जय मां पार्वती आनंदी अपने पति और सास के साथ मिलकर भगवान शिव के मंदिर जाती है और अपने जीवन में आए सुखों के लिए भगवान शिव और माता पार्वती को धन्यवाद कहती है यह कहानी है नंदना नाम के एक ऐसे शिव भक्त की जिसे बचपन से ही लगता था कि भगवान शिव उसे बुला रहे हैं नंद नार के माता-पिता उसे बचपन से ही भगवान शिव से जुड़ी कहानियां सुनाते थे इसी कारण नंद

(17:42) नार को महसूस होता रहता था कि भगवान शिव उसे बुला रहे हैं भक्त के रूप में नंदना शिव जी के बेहद करीब आ चुका था वह हर वक्त भगवान शिव का ही नाम लेता रहता था पर उसने कभी शिवलिंग को छुआ तक नहीं था नंद नार एक बंधवा मजदूर था था इसलिए वह समाज में एक अछूत के समान जीवन जी रहा था जहां नंदना रहता था वहां से लगभग 25 किलोमीटर दूर प्रसिद्ध शिव मंदिर था नंदना हमेशा से इस मंदिर में जाना चाहता था मगर अपने मालिक के कहे बिना नंद नार कहीं भी नहीं जा सकता था नंद नार ने कई बार जमींदार को अपनी बात समझाने की कोशिश की पर जमींदार नहीं माना

(18:23) मालिक मैं सिर्फ एक दिन के लिए मंदिर जाकर वापस आ जाऊंगा मेरी बड़ी इच्छा है भगवान के दर्शन करने की अभी तो तू नहीं जा सकता तेरा जाना मुश्किल है बहुत काम पड़ा है आज निराई करनी है कल खाद डालनी है परसों तुम्हें जमीन जतनी है नहीं नहीं मैं तुम्हें अभी कहीं भी जाने की इजाजत नहीं दे सकता तुम एक भी दिन बर्बाद नहीं कर सकते तुम वैसे ही किसी काम के नहीं हो तुम मंदिर जाने के बहाने पूरा दिन बर्बाद करना चाहते हो नहीं जमींदार ने नंदना को कहीं भी जाने के लिए साफ मना कर दिया मगर नंदना के मन में भगवान शिव के मंदिर जाने की इच्छा कम नहीं हुई नंद नार बस एक बार अपने

(19:02) भगवान शिव के दर्शन करना चाहता था एक दिन उसके पूरे शरीर में एक नई तरह की ऊर्जा फड़कने लगी ना जाने उसमें वह हिम्मत कहां से आई वह जाकर जमींदार के सामने एक अलग तरह के गौरव के साथ जाकर खड़ा हो गया जिस तरह का गौरव एक बंधुआ मजदूर जानता ही नहीं था ना ही उसके पास होने की कल्पना की जाती है मालिक मुझे बस एक बार शिव मंदिर जाने की आज्ञा दे दो आपका बड़ा एहसान होगा मैं तेरा क्या करूं तू फिर से शुरू हो गया मूर्ख कहीं के पिछली बार तेरी मां बीमार थी उससे पहले बहन की शादी थी उससे पहले तेरी दादी तीन बार मरी अब तू मंदिर जाना चाहता है यह सब नहीं हो सकता मालिक उसकी

(19:46) चिंता आप मत करो मैं आज ही सारा काम कर दूंगा कल सिर्फ एक दिन की बात है मैं जाकर जल्दी वापस आ जाऊंगा नंद नार अपनी जिद पर अड़ा रहा जिसके आगे जमींदार ने हार मानकर कहा एक है जाओ लेकिन जाने से पहले तुम्हें पूरे 40 एकड़ जमीन को जोतना होगा अभी शाम है सुबह से पहले तुम जुताई पूरी करके ही मंदिर जा सकते हो नंद नार को पता था कि यह कार्य करना उसके लिए बिल्कुल असंभव है इसलिए वह चुपचाप सोने चला गया पर वह जानता था कि इस बार उसे मंदिर जाना ही है चाहे इसका नतीजा कुछ भी हो नंद नार घबराए मन से रात को सो गया और अपने भक्त की प्रेरणा को

(20:25) देखकर भगवान शिव स्वयं धरती पर आ गए और उन्होंने जमींदार की जमीन जोद दी नंदनर के हिस्से का सारा कार्य भगवान शिव ने निपटा दिया सुबह जब नंद नार सोकर उठा तो गांव में हंगामा मचा हुआ था वह यह देखकर हैरान रह गया नंदना ने देखा 40 एकड़ जमीन जूती हुई थी जमींदार का मुंह खुला का खुला रह गया जमींदार नंद नार के पैरों पर गिर पड़ा मुझे माफ कर दो प्रभु जिसके रक्षक स्वयं शिव हो जिसके कर्ता धरता स्वयं महादेव हो मैं उसी को बांध कर रख रहा था यह तो सच्चा शिव भक्त है यह मंदिर जा रहा है इसे ईश्वर ने खुद चुना है शिव ने इसके लिए खुद आकर

(21:09) 40 एकड़ जमीन जोद दी हे प्रभु आप स्वयं मेरे लिए आए आपकी लीला अपरम पार है ईश्वर नंद नार दिल में परम आनंद लेकर मंदिर गया मगर एक अछूत का जीवन जीने के कारण वो नहीं भूला था कि पुजारी उसे मंदिर के अंदर दर्शन नहीं करने देंगे नंद नार की आंखों में आंसू थे वह मंदिर के बाहर ही खड़ा शिवलिंग के दर्शन करने लगा नंदलाल सिर्फ एक बार शिव के दर्शन करना चाहता था मंदिर के भीतर आने की तुम्हें अनुमति नहीं है दर्शन करने हैं तो यहीं बाहर से करो हे भगवान हे शिव मुझे आपके दर्शन करने हैं मैं आपके दर्शनों की इच्छा लेकर बड़ी मुश्किल से यहां तक पहुंचा हूं मैं जानता

(21:51) हूं आपने मेरी अभी तक बहुत सहायता की है बस एक बार मुझे अपने दर्शन दे दो मंदिर के पुजारी ने नंद र को मंदिर में आने के लिए मना कर दिया तब भगवान शिव ने अपने भक्त के लिए अपना एक और चमत्कार दिखाया जिसे देखकर मंदिर के पुजारी और भक्तों के रोंगटे खड़े हो गए शिवलिंग के ठीक आगे नंदी की एक विशाल मूर्ति थी देखते ही देखते वह मूर्ति शिवलिंग के आगे से हटकर एक ओर खिसक गई सब लोग हाथ जोड़कर नंदना के सामने खड़े हो गए वो गरीब मजदूर अपने दोनों हाथ उठाकर हर हर महादेव का गुणगान कर रहा था जय शिवशंकर बोल रहा था और इसी कारण जिस बंधुआ मजदूर

(22:33) का कोई नाम नहीं था उसे लोग नंद नार कहकर बुलाने लगे और आगे चलकर नंद नार संत नंद नार बन गए ओ नमः शिवाय ओम नमः शिवाय [संगीत] सावन का महीना प्रारंभ हो चुका था इसी विषय पर भगवान शिव और देवी पार्वती कैलाश पर विराजमान वार्तालाप कर रहे थे महादेव सावन मास प्रारंभ हो चुका है और आपके प्रिय बेलपत्र से आपका श्रृंगार करने के लिए मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है हां देवी पार्वती मुझे बेलपत्र अति प्रिय है और बेलपत्र से मुझे बहुत शांति मिलती है यह बात मेरे भक्त भली जानते हैं और अगर मेरे भक्त केवल बेलपत्र चढ़ाकर ही मेरी पूजा करते हैं तो उन्हें उसका भी

(23:35) विशेष फल प्राप्त होता है देवी पार्वती मैं सोच रहा हूं अपने भक्तों की परीक्षा लूं विचार तो अच्छा है स्वामी पर आप ऐसा क्या करेंगे देवी पार्वती भक्त मुझे जो बेलपत्र चढ़ाते हैं मैं वही बेलपत्र बेचने वाला बनकर धरती पर अपने भक्तों की परीक्षा लूंगा इसलिए मैं कुछ समय के लिए धरती लो पर जा रहा हूं स्वामी यह विचार अति उत्तम है आपको अवश्य जाना चाहिए और इस तरह वार्तालाप करके भगवान शिव एक फटे हाल कपड़े पहने साधारण गरीब मनुष्य का रूप ले लेते हैं और गली गली टोकरे में बेलपत्र रखकर बेचने लगते हैं बेलपत्र ले लो भाई बेलपत्र ले लो बहन सुनो वो जो तुम बेलपत्र

(24:21) बोल रही थी ना इसी से लेने क्या कैसी बातें कर रहे हो जी इसका हुलिया तो देखो फटे हाल कपड़ों में ना जाने कौन है मुझे तो कोई भिखा लगता है कहीं किसी मंदिर में चढ़े हुए बेलपत्र इकट्ठे करके लाया होगा और वही हमें बेच रहा होगा नहीं बहन यह बिल्कुल ताजे पेड़ के टूटे हुए ही बेलपत्र हैं खरीद लो ना भाई नहीं नहीं नहीं लेना एक बार बोल दिया जाओ आगे जाकर बेचो शिवजी तो रूप बदलकर भक्तों की परीक्षा ले रहे थे पर अनजान मनुष्य उन्हें पहचान ही कहां पाए सब उन्हें उस फटे हाल मैले कपड़ों में देखते तो आगे निकल जाते किसी ने भी बेलपत्र नहीं खरीदे लगता है मुझे किसी

(24:55) मंदिर के बाहर खड़ा होना पड़ेगा शायद वहां कोई भक्त यह बेल पत्र खरीद ले शिवजी बेलपत्र का टोकरा उठाए शिव मंदिर के बाहर बैठ गए बेलपत्र ले लो भैया बेलपत्र अरे मेरे पास तो कोई आ ही नहीं रहा कुछ देर और प्रतीक्षा करता हूं ओए अपना टोकरा उठा और कहीं और जाकर अपने ये बेलपत्र बेच मेरी दुकानदारी खराब मत कर जा यहां से भैया मैं तुम्हारी दुकानदारी कहां खराब कर रहा हूं मैं तो एक तरफ बैठा हूं और देखो मेरे से तो कोई भी बेलपत्र नहीं खरीद रहा सब तुम्हारी दुकान पर ही तो खड़े हैं हां तो तू क्या समझता रे तुझ भिखारी से कोई बेल पत्र खरीदेगा अरे शिव मंदिर में पूजा के

(25:31) लिए साफ सुथरे अच्छे बेलपत्र की जरूरत होती है किसी गरीब से खरीद कर कोई भी भक्त बेलपत्र नहीं चढ़ता समझे सब बढ़िया पूजा की दुकान से ही लेते हैं समझे ना जाने तू कब से नहाया नहीं है अपना होलिया तो देख अब एक मिनट भी यहां रुका तो मंदिर के पुजारी बाबा को बुलाकर यहां से हटवा दूंगा समझे जाता हूं भाई जाता हूं भोलेनाथ तुम पर कृपा करें शिवजी अभी वहां से जा ही रहे थे कि तभी भोला नाम का एक गरीब मजदूर यह सब देख लेता है और वह शिवजी के पास आता है भैया रुको मुझे पूजा के लिए बेलपत्र खरीदने हैं भैया तुम मेरे बेलपत्र खरीदोगे हां भैया मैं बहुत देर से देख रहा हूं कि

(26:06) कोई भी तुमसे कुछ नहीं खरीद रहा ऐसे तो शाम हो जाएगी मुझे तो वैसे भी बेलपत्र लेकर घर जाना ही था तो क्यों ना तुमसे ही खरीद लू अच्छा तो तुम बेलपत्र चढ़ाकर शिवजी की पूजा करोगे यह बहुत अच्छी बात है पर तुम मेरा हुलिया देखकर भी यह बेलपत्र खरीद रहे हो भैया बेलपत्र मैं तुमसे लू या फिर सामने दुकान से बेलपत्र का महत्व तो कम नहीं हो जाएगा ना भगवान तो श्रद्धा के भूखे हैं और उस दुकानदार से ज्यादा आज तुम्हें पैसों की जरूरत है तो अगर मैं यह बिल पत्र खरीदकर तुम्हारी थोड़ी सी मदद कर सकूं तो मुझे बहुत अच्छा महसूस होगा भैया यह बेलपत्र तो मैं अपनी पत्नी के लिए लेकर

(26:42) जा रहा हूं वह भगवान शिव की बहुत पूजा करती है और हर वर्ष सावन के व्रत करती है इस वर्ष व्रत नहीं कर पाई इसलिए घर पर ही पूजन कर रही है अच्छा इसका क्या कारण है भाई मेरी पत्नी गर्भवती है बस कुछ ही दिनों में हमारे घर बच्चे का जन्म होने वाला है इसलिए मैंने ही अपनी पत्नी शोभा से कहा कि वो घर पर ही शिवजी की पूजा कर ले मैं उसके लिए बेलपत्र खरीदने ही निकला था अचानक तुम पर मेरी नजर पड़ गई पर पर क्या भैया तुम बिल पत्र नहीं खरीदोगे नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है मेरे पास बस ₹ ही रुपए हैं तुम मुझे ₹ के बेलपत्र दे दोगे दो दिन से मजदूरी का काम नहीं मिला इसलिए

(27:21) घर पर पैसे नहीं थे ₹10 की भोग लगाने के लिए बर्फी खरीदी है मेरे पास अब त हीप बचे हैं अरे भैया एक काम करो तुम ये सारे बेलपत्र ले जाओ वैसे भी मैं घर ही जा रहा था अब कल ही बेचने के लिए आऊंगा शायद कल और कमाई हो जाए तुम मुझे कल इन बेलपत्र के पैसे दे जाना मैं तो यहीं बैठता हूं बहुत-बहुत शुक्रिया भैया मैं कल तुम्हें पैसे दे जाऊंगा ठीक है बताओ हैं पहले ही भिखारी है और मुफ्त में बेलपत्र दे रहा है पता नहीं कैसे-कैसे लोग हैं भैया इस दुनिया में है मंदिर के बाहर दुकानदार उन पर हंसने लगा शिवजी मुस्कुराए और वहां से चले गए भोला भी

(27:59) बेलपत्र लेकर घर आ गया घर आकर उसने अपनी पत्नी शोभा को सारी बात कही आपने यह बहुत अच्छा किया साथ ही साथ भला हो उस बेलपत्र वाले का जिसने आपको बिना पैसे के यह इतने सारे बेलपत्र दे दिए इनमें से कुछ भगवान को चढ़ाकर बाकी रख देती हूं रोजाना की पूजा में काम आ जाएंगे भगवान शिव और देवी पार्वती कैलाश पर विराजमान थे और वह मुस्कुरा रहे थे भगवान शिव तो भोला की दयालुता का फल उसे प्रदान कर ही चुके थे उन बेलपत्र को सोने के बनाकर अगले दिन शोभा और भोला जब सोकर उठे शोभा पूजा के लिए टोकरी में से बेलपत्र लेने लगी तो वह हैरान रह गई सारे बेलपत्र सोने के बेलपत्र

(28:38) बन चुके थे सुनो जी यह क्या चमत्कार है यह बेलपत्र तो सोने के बन गए ये कैसे हो सकता है हां शुभा ये तो सोने के बन गए वो आदमी कौन था जिसने मुझे ये चमत्कारी बेलपत्र दिए शोभा मैं अभी आता हूं भोला मंदिर में उस आदमी को ढूंढने लगा पर उसे वह बेलपत्र बेचने वाला आदमी कहीं भी नजर नहीं आया भोला की आंखों में आंसू आ गए रात को सपने में भगवान शिव ने भोला को दर्शन दिए भोला मैं तो परीक्षा लेने के लिए धरती पर आया था तुम बहुत दयालु हो तुमने मुझे एक साधारण बेलपत्र बेचने वाला समझकर उस समय मेरी मदद की जब किसी ने भी मेरे से बेलपत्र नहीं खरीदे मैंने उसी

(29:24) दयालुता का फल तुम्हें प्रदान किया है अब तुम इन सोने के बेल पत्रों को बेच लेना तुम्हारी गरीबी के दिन अब दूर हो जाएंगे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ खुशी से रहो मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है भोला की नींद खुली और उसने सपने की बात अपनी पत्नी को बताई शोभा भी बहुत खुश होती है भोला और शोभा को उनकी शिव भक्ति का फल मिल जाता है और उनके जीवन में खुशियां आ जाती हैं कहते हैं कोई भी पूजा बिना स्वच्छ मन से संपूर्ण नहीं होती व्यक्ति को यदि पूजा का उचित फल लेना है तो उसके लिए उसे अपने मन को स्वच्छ बनाना है तभी भगवान उसे पूजा

(30:01) का विशेष बल प्रदान करते हैं इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि मनुष्य को सबके साथ सदैव दयालुता का व्यवहार करना चाहिए क्योंकि ईश्वर किसी ना किसी रूप में आकर हमारी परीक्षा अवश्य लेते हैं और यह सत्य है कहते हैं देवों के देव महादेव यानी कि भगवान शिव की भक्ति करने वा प्रत्येक व्यक्ति को संसार की सभी वस्तुएं प्राप्त हो सकती हैं शिवजी अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं हमारे शास्त्रों में बहुत से पुराण लिखे गए हैं जिनमें से एक बहुत ही प्रमुख पुराण है शिव पुराण शिव पुराण के अनुसार नियमित रूप से शिवलिंग का पूजन करने वाले व्यक्ति के

(30:48) जीवन में दुखों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है इस संसार में रहने वाले प्रत्येक मनुष्य की बस यही कामना होती है कि उसे जीते जी हर प्रकार के सुख प्राप्त हो और मरने के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति हो पर सभी के साथ ऐसा नहीं हो पाता है जीते जीतो दुख मिलते ही हैं और मरने के उपरांत भी मोक्ष प्राप्ति नहीं हो पाती इसलिए शिव पुराण में भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति के मार्ग बताए गए हैं जिनका पालन करके कोई भी मनुष्य भोग और मोक्ष दोनों फलों की प्राप्ति कर सकता है शिव महापुराण में ऐसे 10 मार्ग बताए गए हैं जिन पर चलकर मनुष्य अपने जीवन को सुखमय और

(31:29) सरल बना सकता है शिव पुराण में लिखित कथनों के अनुसार धन संग्रह करना धन हमेशा सही रास्ते पर चलकर कमाना चाहिए और उसका संग्रह करना चाहिए अपने धन को तीन भागों में बांटना चाहिए जिसमें पहला भाग धन वृद्धि में यानी कि धन को जोड़ने में धन का दूसरा भाग धार्मिक और परोपकार कार्यों में लगाना और धन का तीसरा भाग अपने जीवन यापन में खर्च करना क्रोध का त्याग क्रोध व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन है अपने क्रोध और आवेश में अक्सर हम वह बातें बोल जाते हैं जिसका बाद में हमें पछतावा ही होता है इसलिए क्रोध कभी नहीं करना चाहिए और ना ही क्रोध उत्पन्न करने वाले वचन

(32:12) बोलने चाहिए क्रोध से विवेक नष्ट हो जाता है और विवेक के नष्ट होने से जीवन में कई संकट खड़े हो जाते हैं भोजन का उपवास जिस प्रकार भोजन से शक्ति प्रदान होती है उसी तरह व्रत से भी शक्ति का संचार होता है इसलिए लिए हफ्ते में एक दिन तो व्रत रहना चाहिए यदि ना रह पाए तो शास्त्रों में शिवरात्रि का व्रत रखना विशेष माना गया है इससे भगवान शिव की कृपा बनी रहती है शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं और महान पुण्य की प्राप्ति होती है पुण्य कर्मों से भाग्य उदय होता है और व्यक्ति सुख पाता है संध्याकाल का समय सूर्यास्त

(32:53) का समय यानी शाम का समय भगवान शिव का समय होता है इस समय शिव अपने तीसरे नेत्र से तीनों लोक देख रहे होते हैं और वे अपने नंदी गणों के साथ भ्रमण कर रहे होते हैं इसलिए इस समय व्यक्ति को सत्कर्म करने चाहिए पूजा पाठ सत्संग या दान पुण्य करना चाहिए संध्याकाल में यदि कोई व्यक्ति कटु वचन कहता है कला क्रोध करता है तो वह व्यक्ति पाप का भागी बनता है सत्य बोलना सत्य हमेशा विजय होता है सत्य बोलने वाले का चित्त शांत रहता है जबकि असत्य बोलने वाले का चित्त विचलित रहता है असत्य बोलना या असत्य का साथ देना सबसे बड़ा अधर्म है इसलिए सदैव सत्य बोलिए क्योंकि सत्य बोलना

(33:38) मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धर्म है निष्काम कर्म प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्म करने पर ध्यान देना चाहिए ना कि होने वाले परिणाम पर यदि हम कार्य करने से पहले ही परिणाम के बारे में चिंता करने लगेंगे तो कार्य कभी भली प्रकार से संपन्न नहीं हो पाएगा निष्काम भावना से किया गया अच्छा कर्म ही हमें सफलता के मार्ग पर ले जाता है हमें अनावश्यक वस्तुओं का त्याग करना चाहिए क्योंकि हमारी अनावश्यक इच्छाएं ही हमारे दुखों का सबसे बड़ा कारण है मनुष्य की अनैतिक इच्छाएं क्रोध काम ईर्ष्या और अहंकार को जन्म देती हैं अनैतिक इच्छा हमारे मन को विचलित करती है जो व्यक्ति

(34:20) अनावश्यक इच्छाओं के जाल में फंस जाता है वह अपना जीवन नष्ट कर लेता है अतः अनावश्यक इच्छाओं को त्याग देने से से ही महा सुख की प्राप्ति होती है मोह का त्याग मोक्ष की प्राप्ति के लिए सांसारिक मोह माया का त्याग जरूरी है इस दुनिया में प्रत्येक मनुष्य को किसी ना किसी वस्तु व्यक्ति या परिस्थिति से आसक्ति या मोह हो जाता है और यही मोह भय और पीड़ा को जन्म देता है मोह मनुष्य में विवेक को जागृत नहीं होने देता इसलिए मोह माया का त्याग जरूरी है सकारात्मक कल्पना शिव जी कहते है कि कल्पना ज्ञान से भी अधिक महत्व रखती है जो व्यक्ति जैसा विचार और कल्पना करता है

(35:04) वह वैसा ही हो जाता है ध्यान करें सकारात्मक सोच रखें और जब भी करें अच्छी कल्पना ही करें पशु नहीं आदमी बनो मनुष्य का जन्म लिया है तो मनुष्य बनो ना कि पशुओं जैसा व्यवहार करो मनुष्य में जब तक राग द्वेष ईर्ष्या वैमनस्य अपमान तथा हिंसा जैसी वृत्तियां रहती हैं तब तक वह इंसान नहीं बल्कि एक के समान है जो पशु है वह अपने पशु कर्म करता है लेकिन मनुष्य को तो मानव कर्म और व्यवहार करना जरूरी है यदि व्यक्ति शिव पुराण में लिखी इन बातों पर अमल करने लगे तो भगवान शिव का आशीर्वाद सदैव उस व्यक्ति के ऊपर बना रहता है और उस व्यक्ति का जीवन सफल हो जाता है और अंत

(35:49) में मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है i


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