भगवान शिव और श्री कृष्ण बने नौकर |कलयुग की 2 सच्ची घटना | | Adbhut Prasang | Bhakti Kahani -

 भगवान शिव और श्री कृष्ण बने नौकर |कलयुग की 2 सच्ची घटना | | Adbhut Prasang | Bhakti Kahani - 


अनेक वर्षों से रोते हुए भक्त त्रिलोचन जी का बुरा हाल था आज रोते हुए वह भक्त नामदेव जी से कहने लगे नामदेव तुम तो मेरे दोस्त हो ना फिर भी कितने निर हो कितनी बार तुमने परमात्मा का दर्शन किया है और उसके बाद भी कभी उससे यह नहीं कहा कि त्रिलोचन से भी मिलकर आओ मेरे मन में कितनी इच्छा है कि परमात्मा मेरे घर आए मैं उनकी सेवा करूं क्या मेरी पुकार को परमात्मा नहीं सुनता भक्त नामदेव जी हंसते हुए कहने लगे अरे भक्त राज ऐसे क्यों बोलते हो मैं तो सिर्फ नाम की कमाई करता हूं तुम तो सेवा की कमाई करते हो तुम्हारे पास जितना धन है तुम संतों की सेवा में

(00:43) लगा देते हो संतों की प्रसन्नता से ऊपर परमात्मा की प्रसन्नता भी नहीं है तुम्हारे ऊपर तो संतो महापुरुषों का आशीर्वाद है तुम योग्य हो तभी तो गुरुदेव श्री ज्ञानदेव महाराज ने तुम्हें अपना शिष्य बनाया है तुम मेरे गुरु भाई हो मुझे ऐसा उलाना क्यों देते हो तो भक्त त्रिलोचन जी रोते हुए कहने लगे मैं कितने वर्षों से भगवान का इंतजार कर रहा हूं एक बार भी भगवान को ऐसा नहीं हुआ वो मेरे घर भी दर्शन देकर जाए भक्त नामदेव जी कहने लगे तुम विचार ना करो अब जब मेरा परमात्मा से मिलना होगा तो मैं उन्हे कहूंगा कि त्रिलोचन भी आपको बहुत याद करता है उसे

(01:23) दर्शन देकर आओ दिन व्यतीत होने लगे एक दिन नामदेव जी कहीं यात्रा पर जा रहे थे और वे में रास्ता भटक गए अब मार्ग बताने वाला तो कोई था नहीं उस मार्ग के चौराहे पर एक मूर्ति स्थापित थी अब नामदेव जी तो पूर्ण भगत थे वो किसी राजा की मूर्ति थी उस मूर्ति को देखकर व कहने लगे वाह परमात्मा आज तो इतना सुंदर रूप बना रखा है मैं मार्ग में भटक गया हूं और तुम यहां तलवार लेकर खड़े हो जल्दी से बताओ मैं किस ओर जाऊ मुझे उस गांव में जाना है उसका मार्ग कहां से पड़ेगा कहते हैं नामदेव जी की पुकार सु जो राजा की मूर्ति थी उसमें से साक्षात

(02:04) परमात्मा प्रकट हो गए उस मूर्ति से निकलकर भक्त नामदेव जी को परमात्मा ने मार्ग दिखाया अब जैसे ही भक्त नामदेव जी अपने मार्ग की ओर बढ़ने लगे तब उन्हे याद आया कि भक्त त्रिलोचन जी ने कहा था परमात्मा से पूछकर आना मुझे दर्शन कब देंगे नामदेव जी भगवान श्री कृष्ण से कहने लगे अरे रुकिए इतनी जल्दी नहीं है जाने की मेरी एक बात सुनिए मेरा जो मित्र है त्रिलोचन वह आपका सच्चा भक्त है वह पूछ रहा था कभी उसका भी भला करो कभी उसको भी दर्शन दो श्री कृष्ण ने हसते हुए कहा मैं उसके पास अवश्य जाऊंगा बस उससे कहना मुझे पहचान ले ऐसा कहकर भगवान अंतरध्यान हो गए नामदेव जी

(02:49) गांव की यात्रा कर अपने गांव में पुनः लौट आए और भक्त त्रिलोचन जी के घर आकर कहने लगे तुम्हे एक अच्छी खबर देने आया हूं आज मेरी परमात्मा से मुलाकात हुई उन्होने कहा है वो जल्दी ही तुम्हारे घर आएंगे पर पहचानना तुम्हें ही पड़ेगा भक्त नामदेव जी की बात सुनकर त्रिलोचन जी प्रसन्न हो गए उनकी आंखों में खुशी के आंसू आने लगे वह कहने लगे परमात्मा मेरे पास चलकर आएंगे इससे अच्छा मेरा सद् भाग्य और क्या हो सकता है अपनी धर्म पत्नी को बुलाकर कहने लगे तुम्हें पता है परमात्मा हमारे पास आने वाले हैं अब तुम जल्दी से तैयारी करना उनकी अच्छे से सेवा करना भगवान हमारे पास

(03:29) आएंगे भक्त त्रिलोचन जी के पास भारी मात्रा में संत भंडारा खाने आते थे एक दिन त्रिलोचन जी की धर्म पत्नी ने कहा इतनी अधिक मात्रा में संत हमारे पास आते हैं कोई नौकर हो तो काम बढ़िया हो जाए बिना नौकर के मैं अकेले सारा काम नहीं कर पाती आप कुछ प्रयास करो किसी नौकर को लेकर आओ जो घर में मेरी सहायता करे त्रिलोचन जी बोले आजकल नौकर मिलना कठिन है पर ईमानदार नौकर मिलना तो और अधिक कठिन है पर मैं प्रयास करता हूं कोई मिल जाएगा तो उसे अवश्य लेकर आऊंगा पैसों की तो कोई कमी थी ही नहीं एक दिन प्रातः काल को भक्त त्रिलोचन जी संतों के

(04:08) भंडारे के लिए सब्जियां लेने गए तब उस सब्जी मंडी में एक नौजवान भागता हुआ भक्त त्रिलोचन जी के पास आकर कहने लगा अरे सेठ जी मुझ पर दया करो भक्त जी ने पूछा क्या करना है कहा महाराज मेरे पास खाने को कुछ नहीं है पहनने के लिए कपड़े भी नहीं है पर मैं काम करने में बड़ा होशियार हूं आप मुझे अपने पास नौकर रख लीजिए भक्त त्रिलोचन जी पूछने लगे तुम्हें धन में क्या चाहिए तब वो नौजवान कहने लगा मुझे धन की आवश्यकता नहीं बस दोनों समय भर पेट भोजन खिला देना और मेरी एक शर्त है मेरे बारे में किसी से भी कोई बुराई नहीं करना जिस दिन आपने मेरी बुराई कर दी मैं आपके

(04:49) घर को छोड़कर चला जाऊंगा भक्त जी ने पूछा यह कैसी शर्त है कोई तुम्हारी बुराई करे और तुम भाग जाओगे नौजवान ने कहा मेरी यही शर्त है लिए कोई मुझे नौकरी पर रखता ही नहीं है अगर आप रखना चाहो तो मैं आपके पास आ सकता हूं त्रिलोचन जी विचार करने लगे वैसे ही धर्म पत्नी ने कहा था नौकर की आवश्यकता है और यह लगता भी ईमानदार है भक्त जी ने पूछा तुम्हारा नाम क्या है उसने कहा मेरा नाम अंतर्यामी है भक्ति जी ने कहा अंतर्यामी नौजवान ने कहा सबको जानता हूं त्रिलोचन जी ने कहा सब कुछ जानने का मतलब क्या है वो नौजवान कहने लगा अरे गांव में इतने सालों से रह रहा हूं तो

(05:32) सबकी बातें जानता हूं कौन क्या करता है किसका स्वभाव कैसा है कौन किससे जलता है इसीलिए मेरा नाम अंतर्यामी है भक्त जी ने कहा ठीक है आज से तुम मेरे पास नौकरी करोगे यह सामान उठाओ और मेरे साथ मेरे घर चलो अब भक्त जी उस नौजवान को अपने घर लेकर आए और अपनी धर्म पत्नी से कहने लगे यह नौजवान तुम्हारी सहायता करेगा इसका नाम अंतर्यामी है धर्म पत्नी पूछने लगी यह हर महीने कितने पैसे लेगा तब वो नव युवक कहने लगा अरे माता जी पैसों की आवश्यकता नहीं है मुझे भर पेट खाना खिलाना आपने भोजन करा दिया मैं तृप्त हो जाऊंगा मुझे पैसों की आवश्यकता है ही नहीं बस प्रेम से रखना

(06:16) किसी से मेरी बुराई ना करना अगर किसी से मेरी बुराई करोगी तो मैं गायब हो जाऊंगा उस नौजवान की बातें सुन भक्त और भक्तानी प्रसन्न हो गए अब वो भी मन से काम करने लगा संतों की जितनी भी बड़ी मंडली घर पर आती भक्त त्रिलोचन जी उनको भोजन खिलाते वो नौजवान जल्दी से जल्दी सामान लेकर आता सब्जियां काट देता भोजन बना देता और जितना भी समय बचता उसमें घर की साफ सफाई भी कर देता भक्त जी और भक्त की धर्म पत्नी दोनों इस नौजवान से बड़े प्रसन्न थे पर नौजवान में कुछ कमी थी तो कमी यह थी जब भी वो खाना खाने बैठता था तो भक्तानी जी खाना बनाते बनाते थक जाती थी पर यह नौजवान खाते

(06:57) हुए नहीं थकता था अब किसी को कुछ बोल भी नहीं रही थी क्योंकि अगर किसी को बुराई कर दी तो नौकर भाग जाएगा और नौकर इतना बढ़िया था कि किसी काम में कोई दिक्कत आने ही नहीं देता था अब एक दिन थक हार के त्रिलोचन जी की धर्म पत्नी अपनी पड़ोसन से मिलने गई पड़ोसन ने पूछा अरे कैसी हो भक्तानी कहने लगी सब कुछ ठीक है पड़ोसन ने कहा भक्तानी जी चेहरे का रंग उड़ गया है पहले तो बड़ी प्रसन्न लगती थी आजकल नौकर रखा है तो काम कम होना चाहिए तुम्हारा रा तो उतरता जा रहा है भक्तानी जी कहने लगी क्या बताऊं अभी नौकर के बारे में कुछ कहने ही वाली थी तो याद आ गया अगर मैंने बुराई

(07:39) करी तो मेरा नौकर भाग जाएगा तब पड़ोसन पूछने लगी अरे चिंता ना करो बताओ क्या बात है मन उदास क्यों है तब भक्तानी कहने लगी सब कुछ ठीक है परमात्मा की दया से किसी वस्तु की कमी नहीं पड़ोसन ने कहा फिर इतना परेशान क्यों हो शरीर इतना कमजोर क्यों हो गया है तब भक्त त्रिलोचन जी की धर्म पत्नी कहने लगी संतों की दया से संतों की सेवा तो अच्छी हो जाती है नौकर भी अच्छा है पर उस नौकर में एक कमी है कहा बताओ बताओ क्या कमी है कहा जब खाने बैठता है तो रसोई का सारा सामान खत्म कर जाता है इतना खाता है इतना खाता है मैं रोटी पकाते पकाते थक

(08:19) जाती हूं पर वो खाते खाते नहीं थकता भक्तानी जी ने इस प्रकार अपने नौकर की बुराई की और वहां पर नौकर अदृश्य हो गया थोड़ी देर बा करके जब त्रिलोचन जी की पत्नी अपने घर आई तो बुलाने लगी अंतर्यामी कहां हो अंतर्यामी कहां हो पर अंतर्यामी तो जा चुका था भक्त त्रिलोचन भी अपने घर आए पूछने लगे आज अंतर्यामी कहां है धर्मपत्नी कहने लगी बहुत देर से तो मुझे भी दिखाई नहीं दे रहा है भक्ति जी ने कहा तुमने कुछ कहा होगा उसे वो नाराज होकर चला गया होगा भक्तानी कहने लगी मैंने कुछ भी नहीं कहा है रोचन जी ने कहा कि से बुराई की तुमने भक्तानी ने कहा आज मेरे से बुराई

(09:03) हो गई थी मैं अपने पड़ोस में अपनी सहेली के पास गई थी उसने पूछा कमजोर क्यों लग रही हो मैंने उससे कहा जब ये नौकर भोजन खाना प्रारंभ करता है तो इतना खाता है कि मैं पकाते पकाते थक जाती हूं पर यह खाते नहीं थकता है त्रिलोचन जी का इतना सुनना था कि भक्त जी की आंखों में आंसू आ गए उन्होंने कहा तुमने यही तो गलत कर दिया उसने पहले ही कहा था अगर तुम उसकी बुराई करोगी तो वो चला जाएगा अब इस प्रकार भक्त जी का और भक्तानी जी का झगड़ा चल ही रहा था तभी नामदेव जी बाहर से गुजरे नामदेव जी पूछने लगे त्रिलोचन जी ठीक हो अब तो तुम्हारे घर नौकर भी आ गया

(09:41) है अब तो भक्तानी जी प्रसन्न होंगी नामदेव जी को देखकर त्रिलोचन जी भागते हुए उनके चरणों में जाकर कहने लगे अरे आज ही इसने नौकर को भगा दिया है इतना प्यारा था इतना दयालु था सारे काम खुद ही कर देता था मैं भगवान की पूजा करना प्रारंभ करता से पहले ही भगवान को स्वयं पतरा देता था नामदेव जी त्रिलोचन जी की बात सुनकर हसने लगे पूछने लगे कहां गया कहा आज तो भाग गया नामदेव जी और जोर से हसने लगे त्रिलोचन जी कहने लगे आप मेरे मित्र हो मैं आपको अपनी व्यथा बता रहा हूं मेरा नौकर भाग गया है और आप प्रसन्न हो रहे हो नामदेव जी कहने लगे

(10:22) त्रिलोचन जी आप अपने नौकर को पहचान ही नहीं पाए वो तुम्हारा नौकर नहीं वो सारे जगत का मालिक था वो परमात्मा तुम्हारे पास संतों की सेवा करने आए थे तभी तो उन्होंने अपना नाम अंतर्यामी बताया था वो तुम्हारे घर बैठे थे तुम्हारी धर्म पत्नी ने उसकी बुराई दूसरे घर में की तब भी उसने सुन ली बताओ कोई इतना दूर किसी की बात सुन सकता है जब भक्त नामदेव ने इस प्रकार कहा कि परमात्मा तुम्हारे घर में नौकर बनकर आया था तो भक्त और भक्तानी जी के नेत्रों से आंसू आना बंदी नहीं हुए वो कहने लगे हमसे बड़ा अपराध हो गया है हम हम परमात्मा की सेवा करनी चाहिए थी हमने कितना बड़ा अपराध

(11:03) किया है परमात्मा को संभाल ना सके वो परमात्मा जो सबको भोजन खिलाता है हम उसे भोजन खिलाते थे तब भी हमारा मन उनके प्रति बुरा भाव रखता था हमें परमात्मा क्षमा करे नामदेव जी एक बार पुनः भगवान से प्रार्थना कीजिए हमें दर्शन देने आए हमारी भूल क्षमा करें नहीं तो यह जीवन व्यर्थ चला जाएगा नामदेव जी कहने लगे चिंता ना करो वो परमात्मा यही मौजूद है पर तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है सच्चे दिल से प्रार्थना करो वो पुनः प्रकट हो जाएंगे अब इस प्रकार त्रिलोचन जी और त्रिलोचन जी की धर्म पत्नी परमात्मा को याद करने लगे तब भगवान श्री कृष्ण वहां प्रकट होकर कहने लगे अरे क्यों

(11:44) उदास होते हो मैं अपनी स्वेच्छा से तुम्हारे पास सेवा करने आया था तुम्हारी संतों की सेवा पर प्रसन्न होकर तो मैं तुम्हारे पास चलकर आया था त्रिलोचन जी कहने लगे अब हमसे दूर ना जाइए हमारे पास ही रहिए भगवान ने कहा तुम किसी कि प्रकार का विचार ना करो जब तक ये शरीर है तुम संतों की सेवा करो भक्तों की सेवा करो जब यह शरीर शांत हो जाएगा तब तुम मेरे लोक में आकर मेरी सेवा करोगे देखा मित्रों परमात्मा अपने भक्त के लिए नौकर बनकर आए झाड़ू पहुचा किया सफाई की लकड़ी तोड़ कर आए सब्जियां काटी भक्तों का सामान उठाया संतों की सेवा की परमात्मा प्रेम पर

(12:23) निश्चल मन पर राजी हो जाता है एक ऐसा ही अन्य उदाहरण भगवान शंकर जी के भक्त का है कहते हैं मिथिला में भगवान शंकर के बड़े पुण्य में भक्त हुए जिनका नाम था श्री विद्यापति जी वो मिथिला के महान कवि हुए हैं उन्होंने भगवान शंकर के बड़े गुण गीत लिखे हैं एक दिन उनको भी धर्म पत्नी ने कहा संतों की सेवा होती रहती है भक्त लोग आते हैं हमें नौकर की आवश्यकता है कोई नौकर ढूंढ कर आइए अब भक्त विद्यापति तो सारा दिन भगवान के भजन लिखते थे एक दिन वो बाजार में गए तभी एक नौजवान मिला और कहने लगा भक्त जी मुझे अपनी सेवा में रख लो विद्यापति जी ने कहा कितने पैसे लोगे वो

(13:05) भी यही कहने लगा कोई पैसे नहीं लूंगा मुझे अपनी सेवा में रखो अब विद्यापति जी उसे अपने घर लेकर आए सेवा में लगा दिया अब वह बहुत अच्छी सेवा करे एक दिन विद्यापति जी को उनके राज्य के महाराज ने अपने पास बुलाया अब विद्यापति जी उस नौकर को कहने लगे जिसका नाम उगना था उगना हमें राजा से मिलने चलना है तुम चलोगे उगना क कहने लगा महाराज जैसी आप आज्ञा करें मैं तो सेवक हूं सेवक तो हरदम स्वामी की आज्ञा में हाजिर होता है अब उगना भी अपने मालिक के साथ जाने के लिए तैयार हो गया अब विद्यापति जी और ना राजा से मिलने जा रहे थे मार्ग में बहुत तेज गर्मी पड़ रही थी

(13:46) इतनी भयंकर गर्मी थी कि विद्यापति जी के लिए चलना कठिन हो रहा था उन्होंने सोचा अगर थोड़ा पानी मिल जाता तो मेरे शरीर में जान आ जाती ऐसा सोचकर उन्होंने अपने नौकर उगना से कहा उना थोड़ा पानी ले आओ तब तक मैं वृक्ष के नीचे बैठ जाता हूं अब उगना जैसे ही पानी लेने गया तो आसपास तो पानी का कोई स्त्रोत था ही नहीं तो गना ने विचार किया पानी कहां से लेकर आऊं अब थे तो वे भगवान शंकर ही उन्होंने क्या किया अपनी जटाए खोली जटाओं से गंगा जी निकली गंगा जी से जल का लोटा भर के अपने मालिक विद्यापति जी के पास लेकर आए और कहने लगे मालिक जी यह पानी पी लीजिए अब विद्यापति

(14:27) जी ने जैसे ही पानी पिया वो कहने लगे यह तो गंगा का अमृतम जल है और यहां तो कोई गंगा का स्त्रोत है ही नहीं कहां से आया उगना से पूछने लगे उगना यह जल कहां से लाया उगना कहने लगा सब आपकी कृपा है आपकी कृपा से ही गंगा कहीं भी प्रकट हो जाती है विद्यापति जी तो समझ गए थे इसमें कुछ रहस्य है कहने लगे उगना सच सच बताओ यह जल कहां से आया नहीं तो मैं आगे कदम नहीं बढ़ाऊ आज से मैं खाना पीना भी बंद कर दूंगा उगना सच बताओ ये जल कहां से आया तब उगना के रूप में जो भगवान शंकर विद्यापति जी के साथ थे वो अपने साक्षात रूप में प्रकट होकर कहने लगे मैं तुम्हारा प्रभु

(15:09) हूं जिसकी तुम निरंतर उपासना करते हो मैं ही तुम्हारे प्रेम वश तुम्हारे घर नौकर बनकर आया हूं अपने भगवान शंकर की बात सुनकर विद्यापति जीी मार्ग के बीच में बैठकर ही रोने लगे हे प्रभु मुझसे बड़ा पाप हो गया है आप मेरे घर पर मेरी सेवा करते हो घर का झाड़ू पछा करते हो भोजन बनाते हो और मेरी धर्म पत्नी कभी-कभी क्रोध वश आपसे अपशब्द भी कह देती है तब भी आप सहज सुनते रहते हो हमसे बड़ा अपराध हुआ है हमें क्षमा करो तब भगवान शंकर कहने लगे अरे विद्यापति इतनी चिंता क्यों करते हो मैं तुम्हारा ही तो हूं तब विद्यापति जी कहने लगे हे भगवान मुझे छोड़कर नहीं जाना

(15:49) आपके बिना अब मैं रह ना सकूंगा भगवान शंकर ने कहा मैं तुम्हारे पास नौकर के रूप में काम करता हूं यह बात कभी किसी को नहीं बताना अगर यह भेद तुमने खोल दिया तो मैं अदृश्य हो जाऊंगा फिर मेरा दर्शन होना बड़ा कठिन है तब विद्यापति जी कहने लगे मैं ये रहस्य कभी किसी को नहीं बताऊंगा अब राजा से मिलकर प्रसन्न होते हुए विद्यापति जी और उगना जी घर पर आ गए धीरे-धीरे समय बीतने लगा एक दिन विद्यापति जी किसी कार्य से घर से बाहर गए हुए थे और उगना जी संतों की सेवा कर रहे थे संत सेवा से निवृत होने के बाद उगना जी ने भक्त की धर्म पत्नी को

(16:26) कहा माता मुझे भूख लगी है आप जल्दी से भोजन बनाइए मुझे भोजन खाना है माता ने कहा अरे तुम सारा दिन खाने की बातें करते हो कोई काम तुमसे होता नहीं अभी तो संत खाकर गए हैं अभी तो घर की सफाई करनी है जब सफाई हो जाएगी उसके बाद तुम्हें भोजन दूंगी अब उगना जी के रूप में थे तो भगवान शंकर ही पर भक्त के प्रेम के वशीभूत होकर उन्होंने भक्त की धर्म पत्नी के अपशब्द भी सहन कर लिए उगना जी ने फिर कहा आज मुझे बड़ी भूख लगी है मुझे थोड़ा भोजन खिलाओ उगना जी ने पुनः इस प्रकार भोजन की मांग की तो भक्त जी की धर्म पत्नी को बड़ा क्रोध आ गया

(17:04) उन्होंने क्रोध में आकर चूल्हे की एक लकड़ी को निकाला और लकड़ी निकालकर वो उना जी को मारने ही वाली थी इतने में भक्त विद्यापति जी घर आ गए और कहने लगे भाग्यवान ये क्या करती हो इसे क्यों मार रही हो वो कहने लगी यह मुझसे बारबार भोजन मांगता है इससे काम होता नहीं अभी वो मारने जा ही रही थी तभी विद्यापति जी ने हाथ रोककर कहा तुम जानती नहीं यह कौन है यह साक्षात भगवान शंकर है और तुम इन पर प्रहार करना चाहती हो विद्यापति जी के मुख से सिर्फ इतना ही निकला यह भगवान शंकर है इतने में ही उगना अदृश्य हो गया भक्तानी जी के हाथ से लकड़ी छूट गई विद्यापति जी

(17:43) रोकर कहने लगे मुझसे बड़ा अपराध हो गया उनकी धर्म पत्नी कहने लगी आपने बताया क्यों नहीं कि ये भगवान शंकर है अगर मुझे पता होता जिनकी हम पूजा करते हैं वही भगवान शंकर उगना के रूप में हमारे पास रहने आए हैं तो मैं कभी उनसे अ शब्द नहीं कहती विद्यापति जी कहने लगे अगर मैं तुम्हें यह रहस्य बता देता तो भगवान शंकर हमारे घर से कपका ही चले जाते उन्होंने मुझसे यह प्रतिज्ञा करवाई थी कि मैं कभी किसी को ना बताऊं कि ना के रूप में भगवान शंकर ही हमारे घर में नौकर बनकर आए हैं मुझे तो यह बात पता थी पर मैं अगर तुम्हें बता देता तो भगवान शंकर कबका चले जाते पर आज

(18:20) तुम्हें ये क्या हो गया था तुम उन्हें ही मारने चली थी वो कहने लगी मैं सुबह से लेकर काम में व्यस्त थी और मुझे कुछ समझ ही नहीं आया और बारबार यह भोजन मांग रहा था इसीलिए मुझे क्रोध आ गया स्वामी मुझे क्षमा करो विद्यापति जी कहने लगे हे भाग्यवान अब तो मैं जी नहीं सकूंगा मेरे स्वामी मुझसे दूर चले गए हैं अब इस जीवन के जीने का कोई उद्देश्य नहीं है मैं अपने प्राण त्यागने को तैयार हूं अभी विद्यापति इस प्रकार कह ही रहे थे तभी भगवान शंकर पुनः प्रकट होकर कहने लगे विद्यापति जी अपने शरीर का त्याग नहीं करो अभी तो तुम्ह जगत के कल्याण के लिए बड़े कार्य करने हैं

(19:01) विद्यापति जी और उनकी धर्म पत्नी रोकर कहने लगे हम तो तभी जी पाएंगे जब आप हमारे साथ रहो तब भगवान शंकर ने कहा अब मैं उना के रूप में तो तुम्हारे पास नहीं रह सकता हूं पर हां अपने दिव्य स्वरूप ज्योतिर्लिंग के रूप में तुम्हारे पास अवश्य निवास करूंगा कहते हैं ऐसा कहकर भगवान शंकर विद्यापति जी के घर में ज्योतिर स्वरूप प्रकट हो गए वो ज्योतिर्लिंग अभी भी बिहार के मधुबनी में उगना महादेव के नाम से जाना जाता है तो भगवान अपने भक्त के लिए कभी शिष्य बन जाते हैं कभी गुरु बन जाते हैं कभी पिता बन जाते हैं कभी पुत्र बन जाते हैं कभी माता

(19:37) बन जाते हैं कभी भाई बन जाते हैं पर कितना अलौकिक है जो जगत का मालिक है वोह अपने भक्त के पास नौकर बनक आ जाए यही तो परमात्मा की विशेषता है अपना मान भले टल जाए पर भक्त का मान ना टते देखा त्रिलोचन जी के पास भगवान श्री कृष्ण नौकर बनकर आए और उना के रूप में भक्त विद्यापति जी के पास भगवान शंकर नौकर बनकर आए भगवान को कोई सच्चे दिल से पुकार तो करें उनसे कोई सच्चा रिश्ता तो रखे वह हर रिश्ते को स्वीकार कर लेते हैं दोस्तों आशा है यह वीडियो आपको पसंद आई होगी अगर पसंद आई हो तो वीडियो को लाइक करके कमेंट में जय श्री कृष्णा हर हर महादेव अवश्य लिखें धन्यवाद


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