भक्त धन्ना जाट की कहानी | Bhakt Dhanna Jaat | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Bhakti Stories | Kahani

 भक्त धन्ना जाट की कहानी | Bhakt Dhanna Jaat | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Bhakti Stories | Kahani - 



भक्त धन्ना जाट का नाम भगवान कृष्ण के परम भक्तों में लिया जाता है वे एक साधारण किसान के पुत्र थे एक बार उनके घर त्रिलोचन नाम के पंडित आए उनके पास शालिग्राम भगवान थे बालक धन्ना उन्हें रोजाना पूजा करते हुए देखते थे जब पंडित जी जाने लगे तब धन्ना जी बोले कि उन्हें भी वही शालिग्राम चाहिए जिसकी पंडित जी पूजा करते हैं अब पंडित जी असमंजस में आ गए कि वह क्या करें पंडित जी मुझे भी शालिग्राम की पूजा करनी है आप मुझे यह दे दो मैं रोज इसकी पूजा करूंगा अ नहीं नहीं बेटा इनकी पूजा और सेवा करना बहुत कठिन है अभी तुम बहुत छोटे हो नहीं मैं कर लूंगा

(01:01) पूजा आप बस मुझे यह दे दो बेटा ऐसे जिद्द मत करो पंडित जी को देर हो रही है धन्ना रोने लगे लगता है तुम ऐसे नहीं मानोगे ठीक है मेरे पास एक और शालिग्राम का पत्थर है मैं तुम्हें वह दे देता हूं यह लो अब तुम इसकी पूजा करना और इन्हें संभाल कर रखना पर पंडित जी मुझे पूजा कैसे करनी है यह तो बता दीजिए रोज सुबह स्नान आदि से निपट करर इनको स्नान कर करवाना फिर उसके पश्चात इन्हें भोजन करवाकर ही स्वयं भोजन करना अब खुश ठाकुर जी को पाकर बालक धन्ना बहुत प्रसन्न हो गए उन्होंने निश्चय किया कि वे भी पंडित जी की तरह ठाकुर जी को भोग लगाने

(01:46) के बाद ही भोजन ग्रहण करेंगे तब धन्ना जी ने बहुत प्रेम से ठाकुर जी को भोजन के लिए पुकारा परंतु ठाकुर जी भला भोग कैसे खाते धन्ना जी ने निश्चय किया कि जब तक ठाकुर जी प्रकट होकर भोजन ग्रहण नहीं करेंगे तब तक वे भी भोजन नहीं खाएंगे ऐसे ही तीन दिन बीत गए चौथे दिन अब धन्ना जी जोर जोर से रोने लगे वह अपनी जिद पर अड़े रहे और ठाकुर जी से गुहार लगाने लगे आप तो ठाकुर जी हो आपको तो लोग रोज ही 5 भोग लगाते होंगे परंतु मैं बालक तीन दिन से भूखा और परेशान हूं आपको मुझ पर दया नहीं आती है मुझ पर दया करके थोड़ा भोग खा लो जिससे मैं भी कुछ खा सकूं क्योंकि पंडित जी ने

(02:31) कहा है कि आपको खिलाए बिना कुछ नहीं खाना इसीलिए पहले आप खा लो उसके बाद ही मैं खा सकूंगा कहते हैं जब भक्त प्रेम से प्रभु को बुलाता है तो प्रभु को अपने भक्त के लिए आना ही पड़ता है क्योंकि विश्वास में बहुत बड़ी ताकत होती है और धन्ना का विश्वास जीत गया भगवान कृष्ण धन्ना के सामने साक्षात प्रकट होते हैं धन्ना मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है भाई हां हां तो मैं भी तो तुम्हें कब से बोल रहा था कि आओ और अपनी रोटी खा लो यह लो बाजरे की रोटी मेरे पास दो रोटी है एक तुम्हारी और एक मेरी क्योंकि मैं भी तो भूखा हूं ना इसीलिए दोनों आधा-आधा भोजन करेंगे अब रोज

(03:16) इतनी देर मत लगाना मैं रोजाना तुम्हारे हिस्से का रख दिया करूंगा फिर हम दोनों एक साथ खाएंगे ठाकुर जी मुस्कुराते हुए धन्ना की मीठी-मीठी बातें सुन रहे थे फिर वे दोनों साथ बैठकर भोजन खाते धी धीरे धन्ना बड़े हुए ठाकुर जी के कहने पर वे साधु संतों की सेवा भी करने लगे अब उनके घर दूर दूर से साधु संत पधारने लगे धन्ना जी उन सभी का बड़े प्रेम से सत्कार करते और उन सभी को भोजन खिलाते परंतु धन्ना जी के पिताजी को उनका साधु संतों में ज्यादा रहना पसंद नहीं था धन्ना तुम्हें यदि साधु संतों की सेवा करनी है तो पहले कुछ कमाई करो फिर अपनी कमाई से साधु सेवा करना जाओ

(03:59) जाकर खेतो में जाकर ग बो कर आओ धन्ना जी ने बैलगाड़ी में गेहूं रख लिया और खेत में बोने चल दिए कहा जाता है उस दिन धन्ना जी ने वह बीज खेत में बोए ही नहीं थे रास्ते में उन्हें कुछ साधु संत मिल गए थे जिनके भोजन पानी के प्रबंध के लिए धन्ना जी ने उन बीजों को एक दुकान पर बेच दिया था और लोगों को दिखाने के लिए कि उन्होंने बीज बो दिए उस बोरी में रेत भर ली और उस रेत को खेत में बिखेर दिया और घर लौट आए पर धन्ना जी का खेत का सारा ध्यान तो स्वयं ठाकुर जी रख रहे थे धन्ना के पिता और सभी गांव वाले खेतों में लहराती हुई फसल को देखकर हैरान रह

(04:39) [संगीत] गए धन्ना इतनी सुंदर फसल तो हमने आज तक नहीं देखी यह सब तुमने कैसे किया मुझे लगता है मेरी गलती पकड़ी गई है खेत में कुछ उगा ही नहीं होगा इसीलिए पिताजी ऐसी बातें बोल रहे हैं क्या बात है बेटा धन्ना ऐसी फसल तो आज तक हमने नहीं उगाई जैसी तुमने खेतों में उगा दी है हां एक काम करो बेटा तुम खुद ही चलकर देख लो खेत भी तुम्हारे हैं और फसल भी तुम्हारी मेहनत की है धन्ना जी ने जब अपनी आंखों से फसल को देखा तो वह आश्चर्य चकित रह गए उन्होंने देखा दूर खड़े भगवान कृष्ण उन्हें देखकर मुस्कुरा रहे हैं वे भगवान कृष्ण की सारी लीला समझ गए और उनकी आंखों में खुशी के

(05:24) आंसू आ गए उस दिन धन्ना ने अपने पिता को सारी सच्चाई बताई जिसे सुनकर उन के पिता की आंखें भी आंसुओं से भर आई थी मेरा धन्य भाग जो मेरे घर में ऐसे पुत्र ने जन्म लिया धन्ना बेटा आज के बाद मैं तुम्हें कभी नहीं रोकूंगा तुम खूब साधु संतों की सेवा करो [संगीत] अच्छा


भक्त धन्ना जाट की कहानी | Bhakt Dhanna Jaat | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Bhakti Stories | Kahani

 

 धरती लोक पर कृष्ण जन्माष्टमी की धूम मची हुई थी जहां देखो वहां जगह-जगह हर घर हर मंदिर सजा हुआ था भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के लिए सभी अपनी तरफ से तैयारी कर रहे थे यह नजारा गोलोक में विराजे श्री भगवान कृष्ण और राधा मैया देखकर अति प्रसन्न हो रहे थे तभी श्री

(06:14) कृष्ण ने अपने मोर पंख को ठीक किया कमर में बांसुरी को कसा और मुकुट पहनकर तैयार हो गए कान्हा कहां चल दिए इतना सच संवर करर अरे राधा आज मेरा जन्मदिन है धरती वासी मेरे जन्म उत्सव को इतनी धाम से मनाते हैं मन में विचार आ रहा है आज अपने भक्तों की परीक्षा ली जाए इसलिए धरती लोक में भ्रमण के लिए जा रहा हूं अच्छा फिर तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी तुम्हारे बिना तो मैं अधूरा हूं राधे भला तुम्हारे बिना मैं कैसे जा सकता हूं चलो अब तुम भी तैयार हो जाओ कान्हा तुम्हें ज्ञात है जन्माष्टमी पर भक्त तुम्हें छोटे बालक के रूप में पूछते हैं इसलिए इस रूप में नहीं

(06:57) हम छोटे बच्चों के रूप में जाएंगे यह भी उत्तम रहेगा राधा कृष्ण दोनों धरती लोक पर जाने ही लगे कि तभी कृष्ण के सारे सखा वहां आ गए अरे वाह कान्हा तुम्हारे जन्मदिन का आयोजन और तुम अकेले अकेले ही जा रहे हो आज तो खीर पूड़ी पकवान मिलेंगे हम भी तुम्हारे साथ चलेंगे अब तो तुम सबको भी ले जाना ही पड़ेगा ठीक है चलो तुम सब भी मेरे जन्मोत्सव का आनंद लेने चलो राधा कृष्ण और सभी सखा छोटे-छोटे बच्चों के रूप में आ जाते हैं और धरती लोक में पहुंचते हैं घूमते घूमते वे सब एक गांव में पहुंचते हैं वहां पर सब जगह जन्माष्टमी की धूम थी कन्हैया मुझे तो बहुत जोरों की भूख

(07:38) लगी है चलो ना कहीं चलकर कुछ खाते हैं हां राधा बिल्कुल ठीक कह रही है चलो ना कान्हा सब मिलकर कहीं बढ़िया बढ़िया पकवान खाते हैं मन तो मेरा भी हो रहा है चलो वह सामने उस घर में चलते हैं वहां लग रहा है बढ़िया बढ़िया जन्माष्टमी की सजावट हो रही है मेरे जन्मदिन की खुशियां मनाई जा रही हैं चलो सब चलते हैं अरे अरे अरे ये तुम सब कहां चले आ रहे हो चलो हटो बाहर जाओ पता नहीं कहां-कहां से आ जाते हैं मैं भगवान कृष्ण के भोग की तैयारी कर रही हूं तुम लोग क्यों आए हो हमें बहुत जोरों की भूख लगी है कुछ खाने को दे दो वाह यहां तो पूड़ी हलवा सब्जी खीर यहां तो बहुत कुछ है

(08:22) अरे क्या बात है सुशीला आरती का समय हो रहा है अंदर आओ बाहर क्यों खड़ी हो हां हां आ रही हूं दरवाजा बंद कर दूं चलो बच्चों यहां से जाओ कान्हा इन्होंने तो द्वार बंद कर लिया अब हम क्या करें हम सबको बहुत जोरों की भूख लग रही है यह कैसी बात हुई तुम्हारा ही जन्मदिन मना रहे हैं और तुम्हें ही कुछ खाने को नहीं दिया अरे सुदामा इन्हें थोड़ी पता है कि मैं वास्तव में कृष्ण हूं यह तो मुझे एक साधारण बालक समझ रहे हैं कोई बात नहीं सुदामा कोई तो होगा जो हमें इस रूप में भोजन देगा चलो और कहीं देखते हैं राधा कृष्ण और सभी बालक बालिकाएं कुछ और

(09:03) जगह पर भी गए पर वहां भी आरती और पूजन चल रहा था कहीं भी उन्हें खाने को कुछ नहीं मिला वे चलते चलते थक गए मानव शरीर धारण किया है तो इतनी भोग तो सहन करनी ही होगी बस एक आखिरी द्वार और खटखटा हैं अगर यहां नहीं मिला तो हम वापस गो लोक चले जाएंगे ठीक है कान्हा चलो इस घर में ही चलते हैं थोड़ी और खीर दे तुझे जब पता था कि मंदिर में र का प्रसाद बट रहा है तो तू थोड़ा ज्यादा नहीं ला सकती थी मांजी मंदिर में बहुत भीड़ थी बड़ी मुश्किल से नंबर आया तो मैं बस यह थोड़ा बहुत ही प्रसाद ला पाई अरे अम्मा खा लो ना वैसे भी खीर खाए कितना

(09:44) समय हो गया मजदूरी करते-करते हाथों में छाले पड़ गए हैं हमारी तो ऐसी किस्मत ही नहीं कि हम रोजाना ऐसी खीर पकवान खा सके हां हां बेटा ये ले तू और ले ले थोड़ा प्रसाद बचा है मैं खा लेती हूं मां हमें बहुत भूख लगी है कुछ खाने को दे दो यह लो पहले ही थोड़ी बहुत खीर है उसमें से भी यह बच्चे भी मांगने आ गए कुछ नहीं है यहां चलो जाओ यहां से रुको मां मैं दरवाजा बंद करके आता हूं सुनिए आज जन्माष्टमी का त्यौहार है भगवान कृष्ण का जन्मदिन यह बच्चे उन्हीं के रूप में लगता है झांकी लेकर निकले हैं हो सकता है इन्हें रास्ते में भूख लगाई हो थोड़ी सी

(10:26) खीर है मेरे पास इन्हें दे देती हूं ऐसे द्वार पर आए बच्चों को भूखा भेजना मुझे ठीक नहीं लग रहा मां यह लो तुम मेरी खीर भी इसमें से ले लो मुझे इतनी सारी नहीं खानी मां मेरे में से भी ले लो अगर तुम अपनी दे दोगी तो तुम क्या खाओगी राधा इन बच्चों में अपनी मां के प्रति कितना प्रेम है हम इनके लिए कुछ करना चाहिए हां कान्हा देखो तो इन्होंने अपनी सारी खीर हमें परोस दी कैसे पागल हो तुम तीनों बताओ अपने हिस्से की खीर इन बच्चों में बांट रहे हो इतनी मुश्किल से तो यह थोड़ा प्रसाद मिला था अब तुम दोनों बच्चे कान खोलकर सुन लो मैं अपनी खीर में से एक भी निवाला नहीं

(11:05) दूंगी ये लो बच्चू ज्यादा तो नहीं थोड़ी-थोड़ी खीर है यह खा लो बस इतनी सी खीर इससे तो हमारा चीटी जैसा पेट भी नहीं भरेगा एक काम करो थोड़ी और खीर ले आओ दादी थोड़ी सी अपने में से दे दो ना आज वैसे भी भगवान कृष्ण का जन्मदिन है हमने भी तो नहीं खाई ना हमने भी इनको दे दी अब क्या करूं तुम लोग इतना जोर दे रहे हो हो तो ये लो थोड़ी सी मेरे में से भी दे दो सावित्री ये ले थोड़ी मेरे से भी ले ले फिर बोलेगी मैं अकेले अकेले खा गया सावित्री के परिवार के लोगों की ऐसी सोच देखकर राधा कृष्ण मन ही मन बात करने लगे कान्हा यह तो बहुत थोड़ी खीर है कुछ करो

(11:47) इन सबको भी तो खीर खाने का मन है अगर हम यह सारी खीर खा जाएंगे तो यह लोग क्या खाएंगे चिंता मत करो राधे इस परिवार के सदस्य भूखे नहीं रहेंगे हमने यहां खीर खाई है और मेरे जन्मदिन के उत्सव पर यह खीर ना खाएं ऐसा हो ही नहीं सकता बताओ इतने मन से मैं खीर खा रही थी सारी इन बच्चों को दे रही है क्या कर सकते हैं दादी खीर खाओगे देख मजाक उड़ा रहे हैं बच्चे और देख खीर अरे जब तुम्हें दे दी सारी खाने के लिए तो हम क्या खाएंगे खाली बर्तन दादी आज कान्हा का जन्मदिन है कान्हा को जब आप अपने हिस्से की खीर दे सकते हो तो कान्हा क्यों नहीं दे सकता अभी को मैं आपको ढेर सारी

(12:31) खीर देता हूं फिर आप भी खाओ और पड़ोसियों को भी खिलाओ मां जाओ घर में जितने भी बर्तन है वह सब बहू अब छोटे बच्चे मजाक करने में बाज नहीं आएंगे वैसे ही मुझे इन सब पर बहुत गुस्सा आ रहा है सिर्फ तेरे कारण चुप हूं वरना मैं इन्हें कपका भगा देती ये लो बच्चों पता नहीं आज तुम सब क्या खेल खेल रहे हो देखती जाओ मां आओ बच्चों तुम भी देखो फिर क्या था सावित्री बर्तन रखती जाती और कृष्ण जी उस में खीर भरते जाते भरते जाते देखते ही देखते सारे बर्तन खीर से भर गए यह चमत्कार देखकर सब लोग दंग रह गए बहू हमारे भाग धन्य हो गए यह तो साक्षात कान्हा पधारे हैं हां हां

(13:15) माखनचोर नंद किशोर हमारे द्वार आए हैं खड़ से हमारे पात्र भर दिए हे कृष्ण मुरारी अपना रूप दिखाओ हे राधा मैया अपना रूप दिखाओ हमें दर्शन दो सबकी प्रार्थना सुनकर राधा कृष्ण अपने रूप में आते हैं उनके साथ-साथ सुदामा और सभी सखा भी अपने रूप में आ जाते हैं इतना सुंदर दृश्य देखकर सावित्री और उसके परिवार में सबकी आंखों में आंसू आ जाते हैं मां यह सत्य है कि जो भी भक्त भूखों को भोजन कराता है प्यासे को पानी पिलाता है खुद भूखा रहकर घर आए भूखे जरूरतमंद को अपने हिस्से का निवाला देता है मैं उसकी सहायता अवश्य करता हूं हम तो धरती पर की परीक्षा हेतु आए थे और यहां

(14:02) इतने प्रेम से खीर खाकर मन प्रसन्न हो गया कान्हा आज जन्माष्टमी का पावन अवसर है और इन सब ने हमारी बहुत सेवा की है तो इन्हें उस सेवा का फल हमें जरूर प्रदान करना चाहिए हां राधे अवश्य हम इन्हें इनकी सेवा का फल जरूर देंगे और फिर जहां जहां राधा कृष्ण ने हाथों को आशीर्वाद स्वरूप घुमाया उस उस जगह धन के भंडार भर गए सावित्री की छोटी सी टूटी फूटी झोपड़ी महल में बदल गई उनके जीवन में सारे सुख वैभव आ गए गरीबी और दरिद्रता दूर हो गई सावित्री के परिवार में खुशियां देकर राधाकृष्ण और सभी ग्वाल बालों के संग वापस गोलोक लौट गए


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