सावन शिवरात्रि की कथा | Sawan Shivratri Ki Katha | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Moral Stories

 सावन शिवरात्रि की कथा | Sawan Shivratri Ki Katha | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Moral Stories - 



 शिवपुरी नाम का एक गांव था जहां एक बूढ़ी औरत सावित्री अपने बेटे मोहन के साथ रहती थी मोहन मजदूरी करके अपना घर खर्च चलाता था मोहन अब जवान हो गया था इसलिए सावित्री ने उसकी शादी करने का विचार किया फिर उसने पास के गांव की एक लड़की सोनम से उसका विवाह करवा दिया सोनम एक बहुत ही संस्कारी और गुनी लड़की थी वह भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थी वह हर सावन उनके व्रत रखती सुबह जल्दी उठकर नहाकर वह पूजा पाठ करती ऐसे ही समय बीता और अब सावन का महीना शुरू हो गया कल से तो सावन है कल सुबह जल्दी उठकर महादेव के मंदिर जाकर उनको जल अर्पित

(00:53) करूंगी और उनकी पूजा करूंगी इस बारे में जाकर उसने अपनी सास से बात की मां जी कल से सावन का महीना शुरू हो रहा है तो मेरा बड़ा मन है भोलेनाथ को जाकर जल चढ़ाने का और उनकी पूजा अर्चना करने का नहीं कोई जरूरत नहीं है बहू मंदिर यहां से दूर है पैदल आने जाने में काफी समय लग जाएगा ऊपर से वहां भक्तों की भीड़ लगी होगी वह अलग ऐसे में पीछे से घर का सारा काम छूट जाएगा नहीं नहीं तू घर पर ही शिवजी की पूजा कर लेना यह सुनकर सोनम उदास हो गई लेकिन उसके पास अपनी सास की बात मानने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था वह बेचारी चुपचाप उदास होकर घर के कामकाज में लग

(01:31) अगले दिन जब वो नहाकर कुए से पानी लेने जा रही थी तभी उसे गांव की कुछ लड़कियां हाथ में पूजा की थाली और लोटा लेकर मंदिर की ओर जाती हुई दिखी उसने उनको रोक कर पूछा बहन तुम कहां जा रही हो अरे यह भी कोई पूछने की बात है अब हाथ में लोटा और पूजा की थाली है तो जाहिर सी बात है ना मंदिर ही जा रही होगी यह बात सुनकर सोनम थोड़ी उदास हो गई क्या हुआ आप उदास क्यों हो गई भगवान शिव मेरे आराध्य देव है लेकिन मेरी सास मुझे मंदिर में उनकी पूजा के लिए नहीं जाने देती सोनम का उदास चेहरा देख उन लड़कियों ने कहा आप चिंता मत कीजिए ऐसा कीजिए आप हर रोज इसी समय पानी लेने कुए पर

(02:08) आ जाए कीजिए और फिर हमारे साथ मंदिर में पूजा करने चल पड़ा करो लेकिन अगर मैं घर से पूजा की थाली लाऊंगी तो मांजी समझ जाएंगी कि मैं मंदिर जा रही हूं तभी दूसरी लड़की ने कहा ओहो तो ऐसी बात है कोई बात नहीं इसका भी हल है हमारे पास एक काम कर सकते हैं आप हर रोज हमारी पूजा की थाली से भोलेनाथ की पूजा कर देना यह सुनकर सोनम बहुत खुश हुई अब वह हर रोज उसी समय पानी लेने के बहाने घर से निकलती और उन लड़कियों के साथ मंदिर जाकर शिवजी को जल से सीजती और भक्ति भाव से भगवान शिव की पूजा आरती करती ऐसे व अब हर रोज करने लगी वो उन लड़कियों की थाली से ही भोलेनाथ को

(02:43) धूप दिया फल फूल चढ़ाती और उनकी पूजा करती ऐसे ही समय बीता और सावन की शिवरात्रि का दिन आ जाता है उस दिन सोनम ने उपवास रखा आज वह फिर मंदिर आई लेकिन उस दिन उसने सोचा मैंने हर रोज उन लड़कियों की पूजा सामग्री से ही भोलेनाथ की पूजा की है लेकिन आज तो सावन मास की शिवरात्रि है आज के दिन तो भोलेनाथ को मुझे कुछ अपना अर्पण करना चाहिए ऐसा सोचकर सोनम ने अपने नाक की लंग निकाली और उस भोलेनाथ पर अर्पित कर दिया हे भोलेनाथ मुझे क्षमा करना इसके अलावा मेरे पास कुछ नहीं है तुम्हें अर्पण करने को भोलेनाथ की पूजा करके सोनम पानी लेकर घर लौट आई अब वो अपनी सास से नजरें

(03:21) छुपाती हुई घूंघट से किसी तरह अपना चेहरा छुपाने लगी लेकिन तभी सावित्री की नजर उस पर पड़ गई अरे बहू यह तुम्हारी नथ कहां गई अब पता नहीं मांजी लगता है कहीं गिर गई गिर गई सोने की नद गुम कर दी तुम भी ना बहू बड़ी लापरवाह हो अच्छा बताओ मुझे आज तुम कहां-कहां गई थी हम वहीं पर जाकर तुम्हारी नथ ढूंढ लेंगे यह सुनकर सोनम थोड़ा घबरा गई और फिर कहने लगी मांजी सुबह जब कुए पर पानी भरने गई थी तब तो मेरी नथ मेरी नाक में थी लेकिन लगता है उपले थाप हुए वोह कहीं गिर गई हां तो चलो फिर हम वहीं जाकर देखते हैं उन दोनों ने उस जगह पर जाकर देखा लेकिन उन्हें कहीं भी नथ

(03:59) नहीं मिली फिर सावित्री ने कहा लगता है उपले के अंदर गिर गई होगी चलो इन उपलों के अंदर देखते हैं अब छोड़िए ना मांजी अब इतने सारे उपले तोड़क देखोगी हां तो क्या हुआ अरे मुफ्त की थोड़ी ना आती है सोने की चीज चल अब मेरे साथ इन सुखाए हुए उपलों में देख सोनम के पास और कोई चारा नहीं था सिवाय अपनी सास की बात मानने का वो भी अपनी सास का साथ देते हुए झूठ मूठ से उपलों में लौंग ढूंढने की कोशिश करती है फिर उन दोनों ने उपले तोड़ने शुरू किए जैसे ही उन दोनों ने एक-एक उपला तोड़ा तो उन दोनों उपलों में से सोने की नथ निकली यह देख दोनों सास बहू हैरान हो जाती हैं

(04:35) भला ऐसा कैसे हो सकता है नथ तो एक थी फिर यह दोदो कैसे निकल गई इस तरह उन्होंने कुछ और उपले तोड़े तो उनमें से भी सोने की नथ निकलना शुरू हो गई ऐसा करते करते हर उपले में से सोने की नत निकलने लगी यह देख दोनों सास बहू हैरान रह गई ऐसा कैसे हो सकता है मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा ये सब मेरे भोलेनाथ का चमत्कार है उन्हीं की वजह से यह हुआ है मैंने उन्हें नथ चढ़ाई और इसके बदले उन्होंने इतनी सारी नथ का ढेर लगा दिया क्या मतलब फिर सोनम ने अपनी सास को सारी बात बताई तभी वहां शिवजी प्रकट होते हैं दोनों सास बह हक्की बक्की रह जाती हैं और अपने हाथ जोड़ लेती हैं यह

(05:14) सब चमत्कार मैंने किया है अपनी भक्त सोनम की भक्ति देखकर सावन मास में इसने हर सोमवार मुझ पर जल अर्पित किया है आज से तुम्हें किसी चीज की कोई कमी नहीं होगी यह कहकर महादेव अंतर्ध्यान हो जाते हैं मेरी ही गलती थी बहू जो मैंने तुझे मंदिर नहीं जाने दिया लेकिन तू चिंता मत कर अब से हम दोनों ही हर रोज मंदिर जाएंगे और भोलेनाथ को जल चढ़ाकर उनकी पूजा पाठ करेंगे यह सुनकर सोनम बहुत खुश हुई अब वह दोनों सास बहू हर साल सावन में भगवान शिव की पूजा पाठ करने लगे उन दोनों पर भगवान शिव की खूब कृपा हुई मोहन का काम भी खूब अच्छा चलने लग गया जिससे उनकी गरीबी दूर

(05:56) हो गई सावन मास में पड़ने वाली शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने से वह बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं अगर कोई भक्त सच्चे मन से श्रावण शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ को जल अर्पित करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं सावन शिवरात्रि के दिन सूर्योदय के पूर्व उठने का प्रयास करें स्नान आदि के उपरांत सबसे पहले सूर्य भगवान को जल अर्पित करें एक लोटे में दूध जल चावल चीनी मिलाकर जल ले इसके बाद सभी पूजा सामग्री व जल लेकर मंदिर जाएं मंदिर में सबसे पहले भगवान शिव के आगे हाथ जोड़े और उनसे अपनी पूजा स्वीकार करने की प्रार्थना करें भगवान शिव

(06:37) पर सबसे पहले चंदन लगाए और इत्र अर्पित करें फूल चढ़ाए भगवान के सामने फल समर्पित करें अब ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए भगवान शिव पर जल की धारा अर्पित करें धूप और घी का दीपक जलाएं और भगवान शिव की आरती करें मां पार्वती ने भगवान शिव से एक प्रश्न पूछा जिसके बाद भोलेनाथ ने एक कथा सुनाई और अमर हो गया कबूतर का जोड़ा उसी अमर कथा से जुड़ी है यह पौराणिक कथा एक बार नारद मुनि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से मिलने पहुंचे नारायण नारायण प्रणाम माते आइए देवर्षि नारद कैसे आना हुआ माते मैं तो भगवान शिव और आपके दर्शन करने आया हूं महादेव कहीं दिखाई नहीं दे रहे वे तो

(07:33) भ्रमण के लिए गए हैं कुछ देर में लौटेंगे देवर्षि नारद मां पार्वती से वार्तालाप करने लगे तभी उन्होंने मां पार्वती से पूछा माते क्या आप अमर कथा के बारे में जानती हैं अमर कथा वो कौन सी कथा है उसके बारे में तो मैं नहीं जानती नारायण नारायण माते जब भगवान भोलेनाथ आएंगे तब आप उनसे इस बारे में पूछना अच्छा माते मैं चलता हूं नारायण नारायण पार्वती माता सोच में पड़ गई कि ऐसी कौन सी कथा है जो स्वामी ने मुझ से नहीं कही तभी भोलेनाथ कैलाश पर लौट आते हैं माता पार्वती उनसे इस बारे में चर्चा करती हैं प्रभु आपने मुझे कभी अमर कथा के

(08:17) बारे में क्यों नहीं बताया मुझे आज और अभी अमर कथा सुननी है ठीक है देवी मैं आपको आज अमर कथा सुनाऊंगा परंतु उसके कुछ नियमों का पालन आपको करना पड़ेगा अमर कथा के दन आपको एक क्षण के लिए भी सोना नहीं है आप बीच-बीच में हुंकार भरती रहना ताकि मुझे आभास रहे कि आप कथा सुन रही हैं क्योंकि मेरे नेत्र भी उस क्षण बंद रहेंगे ठीक है स्वामी मैं ऐसा ही करूंगी भगवान शंकर ने माता पार्वती से एकांत और गुप्त स्थान पर अमर कथा सुनने को कहा जिससे कि अमर कथा कोई अन्य जीव ना सुन पाए क्योंकि जो कोई भी इस अमर कथा को सुन लेता है वह अमर हो जाता इसके पश्चात शिवजी देवी पार्वती को

(09:00) अमर कथा कहने एक गुफा मिली गई पुराणों में कहा जाता है शिवजी ने देवी पार्वती को अमरनाथ की गुफा में अपनी साधना की अमर कथा सुनाई थी जिसे हम अमृत्व कहते हैं प्रचलित कथा के अनुसार भगवान भोलेनाथ ने अपनी सवारी नंदी को पहल गांव पर छोड़ दिया जटाओं से चंद्रमा को चंदनवाड़ी में अलग कर दिया और गंगा जी को पंचतरणी में तथा कंठा भूषण सर्पों को शेष नाग पर छोड़ दिया इस प्रकार इस व का नाम शेषनाग पड़ा अगला पड़ाव गणेश पड़ता है इस स्थान पर भोलेनाथ ने अपने पुत्र गणेश को भी छोड़ दिया था जिसको महागना का पर्वत भी कहा जाता है पिस्सू घाटी में पिसू नामक कीड़े को भी

(09:43) त्याग दिया इस प्रकार महादेव ने जीवन दयनी पांचों तत्वों को भी अपने से अलग कर दिया इसके बाद मां पार्वती सहित उन्होंने गुप्त गुफा में प्रवेश किया और अमर कथा मां पार्वती को सुनाने लगे शभ शभ पर कथा सुनते सुनते देवी पार्वती को नींद आ गई और वह सो गई जिसका शिवजी को पता नहीं चला भगवान शिव अमर होने की कथा सुनाते रहे उस समय दो सफेद कबूतर शिवजी से कथा सुन रहे थे और बीच-बीच में गूं गू की आवाज निकाल रहे थे शिव जी को लगा कि माता पार्वती कथा सुन रही है और बीच-बीच में हंकार भर रही हैं इस तरह दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली थी कथा

(10:29) समाप्त होने पर शिव जी का ध्यान देवी पार्वती की ओर गया जो सो रही थी अरे देवी पार्वती तो गहरी निद्रा में है तो फिर यह हुंकार कौन भर रहा था अचानक महादेव की दृष्टि अमर कथा को सुनते उन कबूतरों पर पड़ी तो भी क्रोधित हो गए और उन्हें मारने के लिए आगे बढ़े मेरे क्रोध से तुम दोनों को कोई नहीं बचा सकता तुम्हें इसका दंड अवश्य मिलेगा हे प्रभु हमें क्षमा कीजिए हमने अनजाने में ही भूल की पर हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी इस पर भगवान शिव का क्रोध शांत हो गया प्रभु इन दोनों का इसमें कोई दोष नहीं

(11:09) मैं गहरी निद्रा में सो गई थी मैंने आपके आदेश का पालन नहीं किया इसलिए इन दोनों को क्षमा कर दीजिए भगवान शिव जानते थे कि अनजाने ही सही पर कबूतरों ने अमर कथा को सुन लिया था इसलिए वे दोनों अमर हो चुके हैं इस पर महादेव ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया भगवान शिव के आशीर्वाद से वह कबूतर का जोड़ा अजर अमर हो गया कहते हैं आज भी इन दोनों कबूतरों का दर्शन भक्तों को इस गुफा में प्राप्त होता है और तब से यह गुफा अमर कथा की साक्षी हो गई व इसका नाम अमरनाथ गुफा के नाम से प्रसिद्ध हो गया


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