भैसासुर और महादेव का युद्ध | Bainshasur Aur Mahadev Ka Yuddh | Bhakti Kahani | Hindi Kahani | Shiv

 भैसासुर और महादेव का युद्ध | Bainshasur Aur Mahadev Ka Yuddh | Bhakti Kahani | Hindi Kahani | Shiv 


असुरों जालंधर और गुरु शुक्राचार्य आपस में बात कर रहे थे

अपनी मनमानी को नियंत्रण में रख जालंधर पार्वती तेरी माता समान है उनके विषय में ऐसा विचार लाना भी खोर पाप है बस बस बस गुरु बस बहुत हुआ मैं जिसे अपनी पत्नी बनाना चाहता हूं तुम उसे मेरी माता बनाने पर तुले हो माता केवल वह होती है जो पुत्र को अपने गर्भ से जन्म देती है बार-बार माता माता कहकर मुझे भ्रम में डालने की आवश्यकता नहीं है मैं यहां महादेव का पुत्र बनने की इच्छा से नहीं बल्कि पार्वती का पति बनने की इच्छा से आया हूं और इस काम में तुम्हें मेरा साथ देना ही होगा गुरु नहीं नहीं ऐसे पाप कर्म में मैं तुम्हारा सहभागी कभी नहीं बनूंगा गुरु का

(00:57) कर्तव्य होता है शिष्य को गलत पथ पर चलने से रोकना बुरे कर्म करने से रोकना लेकिन तुम तो मुझे भी अपने इस पाप में घसीट रहे हो ठीक है अगर ऐसा नहीं हो सकता तो फिर वह अवश्य होगा क्या होगा मैं तुम्हें दैत्य गुरु पद और सम्मान से वंचित कर दूंगा और जगत के समस्त असुरों को बुलाकर यह कहूंगा कि अब दैत्य गुरु शुक्राचार्य शत्रु के सह गुरु बन चुके हैं इसलिए तुम उनकी बात ना मानकर उनका बहिष्कार करो अगर तुम मेरी इच्छा पूर्ण नहीं कर सकते तो मैं भी तुम्हें अपने गुरु पद से हटा दूंगा यह मत भूलो जालंधर गुरु के ना होने से समस्त दैत्य जाति मिट जाएगी तो मिट

(01:39) जाने दो समस्त जाति को लेकिन महाबली जालंधर अपनी इच्छा नहीं मिटा सकता मुझे पार्वती से विवाह करना है तो करना है गुरु और तुम्हें मेरा साथ देना ही होगा यह कहकर जालंधर वहां से चला जाता है और शुक्राचार्य हाथ जोड़कर शिवलिंग के सामने खड़े हो जाते हैं यह आपने मुझे किस में डाल दिया प्रभु आज मैं बहुत प्रसन्न हूं प्रभु और वो किस लिए क्योंकि आज तपस्या में ना बैठकर आप मेरे साथ समय जो व्यतीत कर रहे हैं इसलिए हमारा खुश होना स्वाभाविक है इसी बहाने आज मैं आपसे बातचीत कर सकती हूं कहो पार्वती क्या कहना चाहती हो मुझे एक बात खाई जा रही है प्रभु

(02:20) यह बताइए कि देवर्षि नारायण विष्णु और देवी लक्ष्मी जालंधर के अतिथि बनने के बाद अब देवताओं के शुभ चिंतक रहे या नहीं तभी वहां राहु प्रकट होता है नहीं कदापि नहीं और अब जब जालंधर के विषय में चर्चा हुई है तो देवी पार्वती यह भी सुन लो कैलाश निवासिनी पार्वती अब तुम्हें जालंधर के महल में उसकी रानी बनकर रहना होगा यह सुनकर महादेव और पार्वती क्रोधित हो जाते हैं अरे दुष्ट राहु श्री हरि के सुदर्शन चक्र से कटकर भी तूने पापा आचार और अनाचार त्यागा नहीं अब तू क्या हमारे क्रोध से भस्म होने आया है पहले मैं इसी भय से भस्म हुआ था किंतु फिर ध्यान आया मैं अमृत पीकर

(03:04) अमर हो चुका हूं इच्छा करने के बाद भी आप मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते मैं तो केवल जालंधर का संदेश प्रस्ताव लेकर यहां आया हूं और सुंदरी पार्वती इस बेकार से कैलाश से जालंधर का महल कहीं अधिक सुंदर है जहां आप दैत्यों की रानी बनकर रहेंगी जालंधर का यह घृणित प्रस्ताव हमारे सामने रखकर तुमने हमारे क्रोध को जागृत किया है अब तू जाकर उस दुष्ट जालंधर से कहना कि यह चार वो त्याग दे अन्यथा इसका परिणाम एक ही होगा और वो होगा जालंधर का अंत यह तो समय ही बताएगा कि किसका अंत होगा यह बात सुनते ही महादेव और पार्वती अपनी आंखों से अग्नि ज्वाला राहु की ओर

(03:45) फेंकने लगते हैं और उससे बचते हुए राहु जालंधर के महल में पहुंचता है मुझे बचाओ महाबली मुझे बचाओ राहु तूने तो अमृत को भी फेल कर दिया अमृत विष पीकर भी तू कायरो की तरह भाग कर आ गया छी किंतु महाबली वो शिव का क्रोध हमारे राज्य में आने से पहले यह पर और किंतु समुद्र में फेंक कर आया करो क्योंकि हमारे राज्य में शिव और उसका क्रोध प्रवेश नहीं कर सकता अब कहो क्या संदेश लाए हो महाबली जब मैंने महादेव और पार्वती को आपका प्रस्ताव सुनाया तो वह बेहद क्रोधित हुए और उन्होंने आपके प्रस्ताव को ठुकरा करर अपनी आंखों से क्रोधित ज्वाला मुझ पर छोड़ दी मैं तो

(04:25) कहता हूं आप पार्वती को रानी बनाने का विचार अपने मन से त्याग दें मंद बुद्धे हम तेरे कहने पर चलेंगे क्या अरे हमें सुझाव देने की गलती तो गुरु शुक्राचार्य भी नहीं करते तो तूने इतना दुस्साहस कैसे कर लिया जो विचार नहीं करता व दुराचार पापा चार करता है जैसे कि आप राहु अपनी जिहुआ को लगाम दे अन्यथा हमारी क्रोधाग्नि से बच नहीं पाएगा क्रोध से केवल बुद्धि नष्ट होती है और उससे केवल नाश होता है नाश जैसे मेरा हुआ अब और अधिक आपका साथ देकर मैं स्वयं को और संकट में नहीं डालूंगा यह कहकर राहु वहां से चला जाता है और जालंधर गुस्से में आ जाता है

(05:08) सेनापति आज्ञा करे महाबली कैलाश पर आक्रमण की तैयारी करो और शुक्राचार्य से जाकर कहो कि हमारे इस कैलाश पर युद्ध के अभियान में तुरंत शामिल हो आपकी आज्ञा का पालन होगा महाबली उधर बैकुंठ में बैठी मां लक्ष्मी एक ही बात सोच रही थी मेरे भाई जालंधर ने कार्य तो अनुचित किया है तो क्या भोलेनाथ उसे क्षमा देंगे अथवा दंड देंगे अब क्या होगा प्रभु देवी लक्ष्मी जो भी होगा विधि के विधान के अनुसार ही होगा अर्थात भगवान शिव मेरे भैया जालंधर को अपने क्रोध से भस्म कर देंगे तो तुम क्या चाहती हो देवी वो तुम्हारा भाई है तो क्या शिवजी कैलाश

(05:48) पर उसका स्वागत करते हुए पार्वती को खुशी खुशी उसे सौंप दे और उससे कहे कि पार्वती मैं तुम्हें सौंप हूं भस्म मैं किसी और को कर दूंगा बोलो ऐसा क्या चाहती हो तुम मेरा अभिप्राय ऐसा तो नहीं है तो क्यों चिंतित हो अपने उस भाई के लिए जो महापाप और दुष्कर्म के लिए तत्पर है अपने ऐसे भाई के लिए जिसे ना तो बहन बहनोई की लाज है और ना ही महाशक्ति का मान सम्मान जब एक भाई किसी की पत्नी पर को दृष्टि डालता है तो उस बहन को तो प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि ऐसे पापी को वो मौत दे उसे उठा ले और अगर उसका कोई अपना उसके ऐसे करने पर भी मौन

(06:30) रहे तो इससे उसे वो कुकर्म करने का और प्रोत्साहन देता है तुमने एक बार भी देवी पार्वती के बारे में नहीं सोचा और मैं जानता हूं जालंधर कितना भी नीचता का प्रदर्शन करें किंतु भोलेनाथ अपनी गरिमा के अनुरूप ही कार्य करेंगे और दोनों के युद्ध का परिणाम क्या होगा यह तो समय ही बताएगा दरअसल जालंधर भी सागर का जातक पुत्र था इसलिए वह लक्ष्मी जी का भाई हुआ और इसी कारण वष लक्ष्मी जी काफी चिंतित थी उधर जालंधर अपने सैनिक के साथ कैलाश की ओर बढ़ चला शिव और पार्वती कैलाश में बैठे यह सब देख रहे थे उसे आने दो देवी उसे उसके कर्मों का दंड यही मिलेगा कुछ ही देर में

(07:10) जालंधर कैलाश पर पहुंच गया पार्वती को देखते ही वह बेहद प्रसन्न हुआ फिर महादेव की तरफ क्रोधित अवस्था में देखकर कहा पार्वती ने मेरा मन मोह लिया है अब इसे प्राप्त करके ही मुझे शांति मिलेगी महादेव मेरे क्रोध से बचना चाहते हो तो पार्वती को मुझे सौप दो उसके इतना कहते ही दैत्यों और शिव गणों के बीच युद्ध छिड़ गया एक-एक कर सभी दैत्य मरने लगे जिसके पश्चात महादेव और जालंधर में भी युद्ध छिड़ गया जालंधर ने तलवार से आक्रमण करना चाहा लेकिन महादेव ने उसे रोक लिया लाख वार करने पर भी महादेव को कुछ नहीं हुआ फिर आखिर में जालंधर ने अपनी शक्ति से एक

(07:51) भैंसे का अवतार लिया और अपनी टांगों से उनके ऊपर आक्रमण किया जिससे महादेव को चोट आई और उनका खून निकलने लगा फिर जालंधर फिर से दैत्य रूप में आ गया और आखिर में महादेव ने अपने त्रिशूर से जालंधर का वध कर दिया कुछ ही पलों में जालंधर ने अपने प्राण त्याग दिए जालंधर के सर्वनाश से सभी देवगण और कैलाश में शिव गण बहुत खुश हुए यह देख मां पार्वती और महादेव भी बहुत खुश थे


 भस्मासुर नामक राक्षस दुनिया का सबसे ताकतवर असुर बनना चाहता था एक बार जब भस्मासुर की भेंट नारद मुनि से हुई तब उसने नारद मुनि से पूछा हे वर्षी नारद मैं पृथ्वी का सबसे शक्तिशाली प्राणी बनकर सभी

(08:41) पर शासन करना चाहता हूं आप बताइए इसके लिए मैं किस देवता को प्रसन्न करूं कि मुझे इच्छित वर की प्राप्ति हो नारायण नारायण इच्छित वरदान की प्राप्ति के लिए तो भगवान भोलेनाथ की कड़ी तपस्या करनी होगी भगवान शिव को प्रसन्न करना बेहद आसान है अगर कोई सच्चे मन और श्रद्धा के साथ उन्हें याद करता है तो वो बड़ी आसानी से उसे अपना बना लेते हैं और उसकी हर इच्छा को पूरा करते हैं इसलिए भस्मा स्वर तुम उनकी तपस्या करो तो अवश्य ही इच्छित वरदान प्राप्त कर सकते हो अच्छा यदि ऐसा है तो देवर्ष नारद मैं भोलेनाथ को अवश्य प्रसन्न करूंगा नारायण

(09:25) नारायण नारायण नारायण नारद मुनि वहां से चले जाते हैं और भस्मासुर जंगल की ओर चला जाता है और जंगल में जाकर वह भगवान शिव से वरदान पाने की लालसा में कड़ी तपस्या करता है ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय भस्मासुर को तपस्या करते कई वर्ष बीत गए कठिन तपस्या के लिए किए जा रहे मंत्र उच्चार धनि कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान शिव के कानों तक पहुंची और वे तपस्या में लीन भस्मासुर के पास पहुंचे आंखें खोलो भस्मासुर भस्मासुर का प्रणाम स्वीकार कीजिए महादेव मेरी तपस्या से आप प्रसन्न हो ही गए भस्मासुर तुम्हारी कठिन

(10:18) तपस्या को देखकर तो मुझे प्रसन्न होना ही था मांगो तुम्हें क्या चाहिए भस्मासुर य जान गया था कि महादेव उसकी तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए हैं व सोच लगा कि वो किसी भी वरदान का हकदार है भोलेनाथ मुझे अमरता का वरदान चाहिए अर्थात मैं हमेशा इस संसार में जीवित रहूं मृत्यु भी मेरा कुछ ना बिगाड़ सके भस्मासुर यह वरदान मैं तुम्हें नहीं दे सकता क्योंकि यह पूरी तरह से प्रकृति के नियम के खिलाफ है जिसने भी इस संसार में जन्म लिया है एक ना एक दिन उसकी मृत्यु निश्चित ही है यदि आप मुझे अमरता का वरदान नहीं दे सकते तो मुझे यह वरदान दीजिए महादेव कि मैं जिस किसी के सिर पर

(11:03) अपना हाथ रखूं वो भस्म हो जाए ठीक है भस्मासुर मैं तुम्हें यह वरदान देता हूं कि तुम जिस किसी के भी सर पर हाथ रखोगे व भस्म हो जाएगा भगवान शिव ने भस्मासुर को जो वरदान दिया वह उनके लिए स्वयं आफत बन गया भोलेनाथ आप कितने भोले हो आपने यह वरदान देकर मुझे संसार में सबसे शक्तिशाली बना दिया अब मैं किसी को भी भस्म कर सकता हूं क्यों ना सबसे पहले मैं आपको ही अपना शिकार बनाऊ आपको भस्म करके मैं कैलाश पर राज्य करूंगा भस्मासुर रुको लगता है वरदान मिलने से तुम्हें अहंकार हो गया है इसलिए तुम्हारी बुद्धि फिर गई है शिवजी अपने द्वारा दिए गए वरदान को वापस नहीं ले सकते

(11:57) थे उन्होंने वहां से भागने में ही अपनी भलाई समझी क्योंकि भस्मासुर तो मंद बुद्धि था वो उस समय पागलों की अवस्था में कुछ भी अनहोनी कर सकता था अब भगवान शिव पूरी तरह से फंस चुके थे रुकिए महादेव मुझे इस वरदान को सिद्ध तो करने दीजिए रुकिए महादेव रुकिए अब मैं क्या करूं भगवान शिव इसी असमंजस में थे कि वह इस समय किस तरह भस्मासुर से छुटकारा पा सकते हैं तभी उन्हें भगवान विष्णु का ध्यान आया वे भगवान विष्णु का स्मरण करने लगे हे विष्णु देव मेरी रक्षा कीजिए इस भस्मासुर से मुझे बचाइए मैं संकट में हूं चिंता मत कीजिए महादेव आपको कुछ नहीं होगा आप इसी गुफा

(12:40) में रहिएगा मैं भस्मासुर को आप तक नहीं पहुंचने दूंगा भगवान शिव को आश्वासन देकर भगवान विष्णु भस्मासुर का रास्ता रोकने चले गए भस्मासुर शिव जी को ढूंढ रहा था कि उसकी नजर एक बेहद खूबसूरत स्त्री पर पड़ी जिसे देखकर भस्मासुर अपनी सुधपुर खो बैठा वो भी भूल गया कि वह शिवजी की तलाश में था स्त्री व भी वन में अकेली कितनी आकर्षक सुंदरी है यह इससे पहले इतनी आकर्षक सुंदरी मैंने कभी नहीं देखी सुनो तुम्हारा नाम क्या है सुंदरी मेरा नाम मोहिनी है तुम्हारी सुंदरता को देखकर मैं मोहित हो गया हूं मोहिनी अति सुंदर नाम तुम इस ने वन में

(13:30) अकेली क्या कर रही हो मैं वन के निकट अपने माता-पिता के साथ रहती हूं और यहां वन में पूजा के लिए फूल चुनने आई थी मोहिनी मेरा नाम भस्मासुर है मैं सर्व शक्तिशाली हूं मैं तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहता हूं क्या तुम मुझसे विवाह करोगी भस्मासुर की बात सुनकर मोहिनी हंस पड़ी उसने भस्मासुर से कहा महाराज मैं एक नृत्यांगना हूं और सदैव से ही अपने विवाह हेतु ऐसे पुरुष की कामना करती थी जो स्वयं बेहतरीन नृत्य जानता हो क्या आप नृत्य के बारे में जानते हैं भस्मासुर ने अपने जीवन में कभी भी नृत्य नहीं किया था लेकिन वह मोहिनी के कहने पर

(14:15) नृत्य करने के लिए भी तैयार हो गया सुंदरी मैं नृत्य करना जानता तो नहीं पर अगर तुम नृत्य सिखाओ गी तो मैं अवश्य कर लूंगा आपकी प्रेम भरी बातें सुनकर अब तो मेरा भी मन आपसे विवाह करने के लिए विचलित हो रहा है चलिए मैं आपको नृत्य सिखाती हूं जैसे-जैसे मैं नृत्य करूंगी वैसे-वैसे आप करते जाना ठीक है सुंदरी तुम नृत्य प्रारंभ करो मैं तुम्हारे साथ-साथ करूंगा मोहिनी नृत्य प्रारंभ करती है भस्मासुर मोहिनी के कहे अनुसार उसकी तरह नाचने की कोशिश करने लगता है मोहिनी अपना हाथ जब कमर पर रखती तो भस्मासुर भी अपना हाथ कमर पर रख लेता मोहिनी अपने हाथों से मुद्राएं

(14:57) बनाती तो भस्मासुर भी हस्त मुद्राएं बनाने की कोशिश करता कुछ देर तक मोहिनी और भस्मासुर का नृत्य चलता रहा भस्मासुर नृत्य अभ्यास में पूरा डूब चुका था नाचते नाचते मोहिनी ने अपने सिर पर हाथ रखा और उसकी देखा देखी भस्मासुर ने भी वही किया भस्मासुर यह भूल गया कि स्वयं अपने सिर पर हाथ रखने से वह भी भस्म हो सकता है स्त्री के प्रेम में आकर वह शिव का वरदान भूल गया जो उसके लिए श्राप साबित हुआ भस्मासुर का संघार करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया था भगवान विष्णु फिर से अपने रूप में आ जाते हैं भगवान शिव उनके

(15:39) समक्ष आते हैं बचाओ बचाओ भस्मासुर तुमने मेरे द्वारा दिए वरदान का दुरुपयोग किया इसी कारण तुम्हारी यह दशा हुई महादेव आपका दिया वरदान सत्कर्म करने वाले लोगों के लिए तो फलदाई होता है पर वरदान का दुरुपयोग करने वाले पाप के लिए कभी फलदाई नहीं होता आप भोला भंडारी हो भोलेनाथ इसलिए आपके भोलेपन का फायदा जब भस्मासुर जैसे पापी और दुराचारी राक्षस उठाने लगे तो उनको ऐसा ही दंड भुगतना पड़ता है भस्मासुर को उसके पाप का दंड मिल गया जिसके पश्चात भगवान शिव और भगवान विष्णु वहां से अंतरध्यान हो गए h


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