Shattila Ekadashi Kab Hai? षटतिला एकादशी कब है? gyaras Kab Ki Hai|एकादशी कब है ?

 
             
Shattila Ekadashi Kab Hai?   षटतिला एकादशी कब है?

 Shattila Ekadashi Kab Hai?                                   
षटतिला एकादशी कब है?
  षटतिला एकादशी व्रत से मिलता है स्वर्ग में स्थान,       जानें मुहूर्त, पारण समय , कथा और महत्व 


षटतिला एकादशी कब है?षटतिला एकादशी का व्रत माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है. इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. षटतिला एकादशी के व्रत में तिल का उपयोग महत्वपूर्ण होता है. इस व्रत वाले दिन तिल का दान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती हैकेंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य से जानते हैं कि षटतिला एकादशी कब है? षटतिला एकादशी का मुहूर्त क्या है? षटतिला एकादशी व्रत का महत्व क्या है?

 

 

(Shattila ekadashi 2024 date shubh muhurat) हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी के दिन तिल का 6 तरह से उपयोग किया जाता है। इसलिए इसे षटतिला कहा जाता है। इतना ही नहीं तिल से भगवान विष्णु की पूजन करने पर मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। अब ऐसे में षटतिला एकादशी पूजा का महत्व क्या है। इसके बारे में  विस्तार से जानते हैं। 

षटतिला एकादशी 2024 कब है?

 (Shattila Ekadashi Kab Hai 2024)

 

हिंदू कैलेंडर के अनुसार षटतिला एकादशी माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि यानी कि दिनांक 05 फरवरी को शाम 05 बजकर 24 मिनट से लेकर इसका समापन दिनांक 06 फरवरी को 04 बजकर 07 मिनट पर होगा। उदया तिथि का ध्यान रखते हुए एकादशी का व्रत दिनांक 06 फरवरी दिन मंगलवार को रखा जाएगा। 

जानें षटतिला एकादशी 2024 पूजा मुहूर्त (Shattila ekadashi 2024 Shubh Muhurat)

दिनांक 06 फरवरी को षटतिला एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त  में स्नान करके पूजा-पाठ करने की परंपरा है। उस दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 05 बजकर 30 मिनट से लेकर सुबह 06 बजकर 21 मिनट तक है। 

इस दिन अभिजीत मुहूर्त का समय - दोपहर 12 बजकर 30 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 15 मिनट तक है। 

पूजा का शुभ समयसुबह 10 बजकर 02 मिनट से लेकर दोपहर 02 बजकर 18 मिनट तक है। यह समय पूजा करने के लिए बेहद शुभ है। 

षटतिला एकादशी 2024 के दिन बन रहे हैं शुभ योग (Shattila ekadashi 2024 Shubh Yog)

षटतिला एकादशी के व्याघात योग भी बना रहा है। जो सुबह 08 बजकर 50 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 06 बजकर 09 मिनट तक है। उस दिन ज्येष्ठ नक्षत्र सुबह 07 बजकर 35 मिनट तक है। उसके बाद मूल नक्षत्र आरंभ हो जाएगा। इसलिए इस दौरान अगर आप कोई भी काम कर रहे हैं, तो उसमें आपको हजार गौ दान करने का शुभ फल प्राप्त होगा। साथ ही आपके जीवन में चल रही सभी परेशानियां भी दूर हो सकती है। 

षटतिला एकादशी का महत्व

जानें
षटतिला एकादशी का महत्व
(Shattila ekadashi  Significance)

 

षटतिला एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत रखता है। उसे सभी पापों से छुटकारा मिल सकता है और वैकुंठ धाम की भी प्राप्ति हो सकती है। इस दिन नहाने के पानी में तिल डालकर स्नान करने से लाभ हो सकता है। साथ ही भगवान विष्णु  की कृपा भी बनी रहेगी। इस दिन ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति जितना दान करता है। उसके स्वर्ग में रहने का सौभाग्य प्राप्त हो सकता है। इसलिए इस दिन तिल का दान अवश्य करें। 

षटतिला एकादशी व्रत के 5 महत्व

1. षटतिला एकादशी का व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है.

2. भगवान विष्णु की कृपा पाने से व्यक्ति को जीवन के अंत में वैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है.

3. षटतिला एकादशी के दिन पानी में तिल डालकर स्नान करने से सेहत अच्छी रहती है.

4. माघ माह में जो भी व्यक्ति गंगा स्नान या संगम स्नान करता है, उसे सहज ही भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त हो जाती है.

5. षटतिला एकादशी पर जो व्यक्ति जितना तिल दान करता है, उतने ही वर्ष स्वर्ग में रहने का सौभाग्य प्राप्त होता है.

षट्तिला एकादशी का व्रत
यह व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। दरअसल, इस एकादशी पर छह प्रकार के तिलों का प्रयोग किया जाता है। जिसके कारण इसका नामकरण षट्तिला एकादशी व्रत पड़ा। इस व्रत को रखने से मनुष्यों को अपने बुरे पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को रखने से जीवन में सुख समृद्धि आती है।

षट्तिला एकादशी की पूजा विधि

षट्तिला एकादशी की पूजा विधि

षट्तिला एकादशी के दिन शरीर पर तिल के तेल से मालिश करना, तिल के जल में पान एंव तिल के पकवानों का सेवन करने का विधान है। सफेद तिल से बनी चीजें खाने का महत्व अधिक बताया गया है। इस दिन विशेष रुप से हरि विष्णु की पूजा अर्चना की जानी चाहिए। जो लोग व्रत रख रहें है वह भगवान विष्णु की पूजा तिल से करें। तिल के बने लड्डू का भोग लगाएं। तिलों से निर्मित प्रसाद ही भक्तों में बांटें। व्रत के दौरान क्रोध, ईर्ष्या आदि जैसे विकारों का त्याग करके फलाहार का सेवन करना चाहिए। साथ ही रात्रि जागरण भी करना चाहिए। इस दिन ब्रह्मण को एक भरा हुआ घड़ा, छतरी, जूतों का जोड़ा, काले तिल और उससे बने व्यंजन, वस्त्रादि का दान करना चाहिए।

षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा विशेष रूप से की जाती है। इस दिन व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। 


षट्तिला एकादशी का व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। ​षट्तिला एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करनी चाहिए साथ ही व्रत कथा भी पढ़ना बेहद जरुरी है। आइए जानते हैं ​षट्तिला एकादशी की व्रत कथा और महात्म

षट्तिला एकादशी का महात्म
एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि हे महाराज, पृथ्वी पर मनुष्य पराए धन की चोरी, ब्रह्महत्या जैसे बड़े पाप करते हैं, इतना ही नहीं दूसरों को आगे बढ़ता देखकर ईर्ष्या करते हैं। इसके बाद भी उन्हें नरक प्राप्त नहीं होता। आखिर इसका कारण क्या है। ये लोग ऐसा कौनसा का दान और पुण्य कार्य करते हैं जिनसे उनके पाप नष्ट हो जाते हैं। जरा इसके बारे में विस्तार से बताइए।

पुलस्त्य मुनि कहने लगे हे महाभाग! आपने मुझे बहुत गंभीर और महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा है। इस प्रश्न से संसार के जीवों का भला होगा। इस राज को तो ब्रह्मा, विष्णु, महेश और इंद्र आदि भी नहीं जानते हैं। लेकिन मैं आपको यह गुप्त भेद जरूर बताऊंगा। उन्होने कहा कि माघ मास जैसे ही लगता है तो मनुष्य को स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए। अपनी इंद्रियों को वश में करके काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या और द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए।

पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उनके कंडे बनाने चाहिए। इसके बाद उन कंडों से 108 बार हवन करना चाहिए। इस दिन अच्छे पुण्य देने वाले नियमों का पालन करना चाहिए। एकादशी के अगले दिन भगवान को पूजा आदि करने के बाद खिचड़ी का भोग लगाएं।

षटतिला एकादशी व्रत कथा

इस उपवास को करने से जहां हमें शारीरिक पवित्रता और निरोगता प्राप्त होती है, वहीं अन्न, तिल आदि दान करने से धन-धान्य में बढ़ोत्तरी होती है. पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक वृद्ध ब्राह्मणी ने एक मास तक उपवास किया, इस दौरान उसका शरीर बहुत कमजोर हो गया. ब्राह्मणी ने व्रत-पूजन तो किया लेकिन उसने कभी भी देवताओं तथा ब्राह्मणों के निमित्त अन्नादि का दान नहीं किया.

विष्णु जी ने ली परीक्षा

ब्राह्मणी ने उपवास आदि से अपना शरीर तो पवित्र कर लिया है लेकिन उसने कभी अन्नदान नहीं किया है, अन्न के बिना जीव की तृप्ति होना कठिन है. एक बार की बात है श्रीहरि नारायण अपनी भक्त ब्राह्मणी की परीक्षा लेने भिक्षु का भेष बनाकर उसकी कुटिया में पहुंचे. ब्राह्मणी ने श्रीहरि के भेष में साधु को भिक्षा में एक मिट्टी का पिंड दे दिया. कुछ समय व्यतीत होने पर वह ब्राह्मणी शरीर त्यागकर स्वर्ग को प्राप्त हुई .

बिना दान के व्यर्थ चली गई पूजा

अपने जीवनकाल में पूजा, पाठ-व्रत, मिट्टी के पिंड के प्रभाव से उसे स्वर्ग में एक आम वृक्ष सहित घर मिला, लेकिन उसने उस घर को अन्य वस्तुओं से खाली पाया. वहां अन्न भी नहीं था, तब ब्राह्मणी ने विष्णु जी से पूछा कि मैंने अनेक व्रत आदि से आपका पूजन किया है, किंतु फिर भी मेरा घर वस्तुओं से रिक्त है, इसका क्या कारण है? श्रीहरि ने कहा कि इसका जवाब तुम्हें देव स्त्रियां देंगी. इसके बाद देव स्त्रियों ने ब्राह्मणी को षटतिला एकादशी का माहात्म्य बताया. उस ब्राह्मणी ने भी देव-स्त्रियों के कहे अनुसार षटतिला एकादशी का उपवास किया और उसके प्रभाव से उसका घर धन्य-धान्य से भर गया. तब से षटतिला एकादशी व्रत किया जाने लगा.  शास्त्रों में वर्णित है कि बिना दान किए कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नहीं होता.  मनुष्य जो-जो और जैसा दान करता है, शरीर त्यागने के बाद उसे फल भी वैसा ही प्राप्त होता है

षट्तिला एकादशी की व्रत कथा

षट्तिला एकादशी की व्रत कथा


इस कथा का उल्लेख श्री भविष्योत्तर पुराण में इस प्रकार उल्लेखित किया गया है। पुराने समय में मृत्यु लोक में एक ब्राह्मण रहती थी। वह हमेशा व्रत और पूजा पाठ में लगी रहती थी। बहुत ज्यादा उपवास आदि करने से वह शारीरिक रुप से कमजोर हो गई थी। लेकिन, उसने ब्राह्मणों को अनुदान करके काफी प्रसन्न रखा। लेकिन, वह देवताओं को प्रसन्न नहीं कर पाई। एक दिन श्रीहरि स्वयं एक कृपाली का रुप धारण कर उस ब्रह्माणी के घर भिक्षा मांगने पहुंचे। ब्रह्माणी ने आक्रोश में आकर भिक्षा के बर्तन में एक मिट्टी का डला फेंक दिया।

इस व्रत के प्रभाव से जब मृत्यु के बाद वह ब्रह्माणी रहने के लिए स्वर्ग पहुंची तो उसे रहने के लिए मिट्टी से बना एक सुंदर घर मिला। लेकिन, उसमें खाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। उसने दुखी मन से भगवान से प्रार्थना की कि मैंने जीवन भर इतने व्रत आदि, कठोर तप किए हैं फिर यहां मेरे लिए खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसपर भगवान प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि इसका कारण देवांगनाएं बताएंगी, उनसे पूछो। जब ब्रह्मणी ने देवांगनाओं से जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि तुमने षट्तिला एकादशी का व्रत नहीं किया। पहले षट्तिला एकादशी व्रत का महात्म सुन लो। ब्रहामणी ने उनके कहेनुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से उसके घर पर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया। मनुष्यों को भी मूर्खता आदि का त्याग करके षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिल आदि का दान करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से आपका कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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धन्यवाद

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि हम किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करते है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

 

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