Ganesh chaturthi |10 दिन ही क्यों मनाया जाता है गणेश चतुर्थी उत्सव गणेश चतुर्थी गणेश उत्सव
क्या आप जानते हैं कि 10 दिनों तक ही क्यों मनाई जाती है गणेश चतुर्थी? यहां जानिए कारण
गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी एक हिंदू त्योहार है जो गजमुख भगवान गणेश के जन्मदिन का प्रतीक है। गणेश चतुर्थी से दस दिवसीय गणेश उत्सव की शुरुआत होती है। गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना की स्थापना की जाती है और दस दिन बाद एक जल निकाय में विसर्जन के साथ समाप्त होता है। गणेश चतुर्थी का त्योहार भाद्रपद की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मनाया जाता है। आइए गणेश चतुर्थी शुभ मुहूर्त , गणेश चतुर्थी पूजा विधि और गणेश चतुर्थी विर्सजन मुहूर्त के बारे में विस्तार से जानें…
वैसे बुद्धि और विवेक के दाता भगवान श्री गणेश स्वयं ही हर तरह की शुभता के प्रतीक हैं। फिर भी गणेश चतुर्थी के दिन भगवाव गणेश की मूर्ति स्थापना के लिए लोगों द्वारा गणेश चतुर्थी शुभ मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है।
गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. वैसे तो देशभर में इस दिन भगवान गणेश की पूजा होती है लेकिन महाराष्ट्र, गोवा जैसे राज्यों में इसकी अलग ही धूम नजर आती है. यहां कई दिनों पहले से बप्पा के आगमन की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. अलग-अलग थीम के पंडाल तैयार किए जाते हैं. बप्पा की बड़ी-बड़ी मूर्तियां तैयार की जाती हैं. गणेश उत्सव के दौरान लोग इन मूर्तियों को देखने दूर-दूर से पहुंचते हैं.
भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में 10 दिनों का उत्सव मनाया जाता है जो गणेश चतुर्थी से शुरू होता है. गणेश चतुर्थी के दिन बप्पा को घर लाया जाता है और 10 दिनों तक विधि विधान से उनकी पूजा करने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन उनका विसर्जन कर दिया जाता है.
गणेश उत्सव का महत्व
भगवान गणेश को सौभाग्य, समृद्धि और ज्ञान का देवता माना जाता है. ऐसे में गणेश पूजन से घर में सुख समृद्धि का वास होता है. मान्यता ये भी है कि गणेश उत्सव के 10 दिनों तक भगवान गणेश पृथ्वी पर ही रहते हैं और अपने भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं. ऐसे में भक्त भी बप्पा को प्रसन्न करने के लिए हर जतन करते हैं. महाराष्ट्र, गोवा और तेलंगाना आदि राज्यों में यह त्योहार काफी लोकप्रिय है. इन राज्यों में गणपति जी के विशाल पंडाल लगते हैं. इस दिन सभी घरों में भगवान गणेश की प्रतिमा का भव्य स्वागत किया जाता है. साथ ही गणेश चतुर्थी का व्रत भी रखा जाता है. इस तिथि को व्रत रखने से व्रती को जीवन में सुख- समृद्धि और अनेक लाभ प्राप्त होते हैं.
क्यों मनाई जाती हैं गणेश चतुर्थी?
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था. गणेशोत्सव के दौरान बप्पा सभी लोग के घरों में विराजमान होते हैं और 10 दिनों तक उनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है. किसी भी नए काम की शुरूआत से पहले भगवान गणेश की पूजा करने की परंपरा है. गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है जो आपके जीवन में आने वाले सभी दुख- दर्द को दूर करते हैं. गणेश उत्सव मनाने की परंपरा महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज के समय से ही है.
गणेश चतुर्थी का इतिहास
गणेशोत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र की राजधानी पुणे से हुई थी. गणेश चतुर्थी का इतिहास मराठा साम्राज्य के सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ा है. मान्यता है कि भारत में मुगल शासन के दौरान अपनी सनातन संस्कृति को बचाने हेतु छत्रपति शिवाजी ने अपनी माता जीजाबाई के साथ मिलकर गणेश चतुर्थी यानी गणेश महोत्सव की शुरुआत की थी.
छत्रपति शिवाजी द्वारा इस महोत्सव की शुरुआत करने के बाद मराठा साम्राज्य के बाकी पेशवा भी गणेश महोत्सव मनाने लगे. गणेश चतुर्थी के दौरान मराठा पेशवा ब्राह्मणों को भोजन कराते थे और साथ ही दान पुण्य भी करते थे. पेशवाओं के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में हिंदुओं के सभी पर्वों पर रोक लगा दी लेकिन फिर भी बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी के महोत्सव को दोबारा मनाने की शुरूआत की. इसके बाद 1892 में भाऊ साहब जावले द्वारा पहली गणेश मूर्ति की स्थापना की गई थी.
कैसे हुई गणपति विर्सजन की शुरूआत?
गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की स्थापना करने की मान्यता है और उसके 10 दिन बाद उनका विसर्जन किया जाता है. कई लोग यह जानने के लिए उत्सुक होंगे कि आखिर भगवान गणेश को इतनी श्रृद्धा के साथ लाने और पूजने के बाद उन्हें विसर्जित क्यों किया जाता है. धर्म शास्त्रों के अनुसार इसके पीछे एक बेहद ही महत्वपूर्ण कथा छिपी हुई है.
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणपति जी से महाभारत की रचना को क्रमबद्ध करने की प्रार्थना कीथी. गणेश चतुर्थी के ही दिन व्यास जी श्लोक बोलते गए और गणेश जी उसे लिखित रूप में करते गए. 10 दिनों तक लगातार लेखन करने के बाद गणेश जी पर धूल-मिट्टी की परतें चढ़ गई थी. गणेश जी ने इस परत को साफ करने के लिए ही 10 वें दिन चतुर्थी पर सरस्वती नदी में स्नान किया था तभी से गणेश जी को विधि-विधान से विसर्जित करने की परंपरा है.
गणेश चतुर्थी पूजा विधि (ganesh chaturthi pooja vidhi)
गणेश जी की मूर्ति को अपने घर ले आएं। मूर्ति लाने से पहले निम्नलिखित चीजों को तैयार करने की जरूरत है – मिट्टी के दीयों के साथ अगरबत्ती और धूप, प्लेट, गणेश मूर्ति को ढंकने के लिए एक कपड़ा, सुपारी, पान का पत्ता आदि। गणेश चतुर्थी की पूजा विधि कुछ इस तरह की जानी चाहिए।
गणेश चतुर्थी पूजा की रस्म मूर्ति लाने से पहले पूरे घर की सफाई से शुरू होती है। पूजा की शुरुआत अगरबत्ती और धूप से होती है जिसे आरती की थाली में रखा जाना चाहिए। अब सुपारी के साथ पान के पत्ते को संदली के सामने रखना चाहिए। पूजा करने वाले परिवार के सभी सदस्यों को आरती करते समय ओम गं गणपतये नमः का जाप करना चाहिए। यदि पुजारी पूजा कर रहा हो तो उसे दक्षिणा देनी चाहिए। जो लोग चतुर्थी से पहले गणेश की मूर्ति को घर लाते हैं, उन्हें मूर्ति का चेहरा ढंकना चाहिए। जिस दिन मूर्ति की स्थापना के दौरान गणेश चतुर्थी की पूजा की जाती है, उस दिन ही कपड़े को उतारना चाहिए। अब परिवार के किसी सदस्य से कहें कि वह मूर्ति को अंदर लाने से पहले एक कटोरी चावल लेकर उस पर बरसाए। गणेश की मूर्ति को रखने से पहले, उस पर कुछ कच्चा चावल ,एक सुपारी, हल्दी, कुमकुम चढाया जाता है। गणेश जी की मूर्ति को घर में रखने के बाद कुछ काम करने होते हैं। उदाहरण के लिए, मूर्ति की सेवा के लिए लाल फूल, दूर्वा, मोदक, नारियल, लाल चंदन, धूप और अगरबत्ती जैसी चीजों का बंदोबस्त कर लेना चाहिए। इसके बाद प्रभु के चरणों में रोज सुबह शाम परिवार के साथ आरती और भजन कीर्तन में समय बिताना चाहिए।
दस दिवसीय गणेश उत्सव
पुराणों की कथा के अनुसार चतुर्थी को गणेशजी का जन्म हुआ था। जब देश में स्वतंत्रता आंदोलन जोरों पर था, तब लोगों में इसके प्रति जागरुकता पैदा करने के उद्देश्य से लोकमान्य तिलक ने महाराष्ट्र गणेशोत्सव की शुरुआत की। इसके बाद धीरे-धीरे यह त्यौहार देशभर में प्रचलित होने लगा। गणेश चतुर्थी से घर-घर गणेशजी की स्थापना होने लगी। अनंत चतुर्दशी पर गणेश उत्सव का समापन होता है। इंदौर, मुंबई, अहमदाबाद सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में चतुर्थी से शुरू हुआ गणेशोत्सव भगवान गणेश की प्रतिमा के विसर्जन के साथ समाप्त होता है।
दस दिन क्यों चलता है गणेशोत्सव?
गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ इसीलिए इस दिन उनकी पूजा की जाती है। लेकिन गणेश जन्म उत्सव दस दिनों तक क्यों चलता है? इसका जवाब कई पौराणिक ग्रंथों में अलग-अलग देखने को मिलता है। लेकिन इनमें सबसे प्रचलित और मान्य कथा का संबंध महाभारत से है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जब वेदव्यास को महाभारत का ज्ञान हुआ तो उसे लिखित रूप देने के लिए उन्हे किसी महा विद्वान की जरूरत थी जो उनके शब्दों के उच्चारण को शब्दशः लिख सके। वे बोलते हुए विश्राम नहीं कर सकते थे, अन्यथा महाभारत का वह ज्ञान लुप्त हो जाता। इसके लिए तीनों लोक में सबसे उपयुक्त व्यक्ति थे भगवान गणेश। उन्होंने वेद व्यास का अनुरोध स्वीकारा और भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी से चतुर्दशी तक दस दिन लगातार महाभारत का लेखन किया। लेकिन निरंतर दस दिनों तक लेखन करने के कारण उनके शरीर का तापमान बेहद बढ़ गया, इसलिए वेद व्यास ने गणेश को पास ही में बने कुंड में स्नान करवाया! इससे उनका तापमान सामान्य हो गया। वेद व्यास और महाभारत से जुड़े इस वाक्ये के कारण गणेश उत्सव दस दिनों तक जारी रहता है और दस दिनों के बाद गणेश जी की मूर्ति को जल में विसर्जित कर दिया जाता है।
गणेश चतुर्थी की कथा (ganesh chaturthi ka mahatva)
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी पार्वती ने मिट्टी से एक मूर्ति बनाई थी और बाद में उसमें प्राण फूंक दिए। इस तरह भगवान गणेश अस्तित्व में आए। लेकिन एक दिन जब गणेश गुफा की रक्षा कर रहे थे और माता पार्वती स्नान कर रही थीं। तब भगवान शिव वहां पहुंचे। गणेश को माता पार्वती ने निर्देश दिया था कि वे किसी को अंदर न जाने दें, तो गणेश ने भगवान शिव को अंदर नहीं जाने दिया, जिसके परिणामस्वरूप शिव नाराज हो गए। स्थिति ऐसी हो गई कि शिव ने गणेश का सिर त्रिशुल से अलग कर दिया। इसने पार्वती को क्रोधित कर दिया कि उन्होंने ब्रह्मांड को नष्ट कर डालने की धमकी दी। इसके बाद, भगवान शिव ने एक हाथी के सिर के साथ गणेश को पुनर्जीवित किया और देवताओं में प्रथम पूज्य का आशीर्वाद भी दिया। कहते हैं इस दिन भाद्रपद की चतुर्थी तिथि थी। इस कारण इस दिन गणेश चतुर्थी मनाई जाने लगी।
गणेश जी के मंत्र (ganesh ji ke mantra)
गणेश चतुर्थी के उपलक्ष्य में हमने यहां गणेश जी के कुछ मंत्रों का उल्लेख किया है। आइए जानते हैं किस मंत्र के उपयोग से आपको क्या लाभ मिल सकता है।
मनोकामना पूर्ति के लिए – ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरु गणेशग्लौम गणपति, ऋदि्ध पति। मेरे दूर करो क्लेश।
धन प्राप्त करने के लिए – ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा
सुख समृद्धि प्राप्त करने के लिए – ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।।
कलह निवारण मंत्र – गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:गणेशजी
गणेश पूजा से ग्रह दोष दूर
भगवान गणेश की पूजा से नवग्रह संबंधी दोष दूर होते हैं। मान्यता है सूर्य ग्रह संबंधी कोई दोष हो तो भगवान गणेशजी को सफेद मंदार के पुष्प समर्पित करना चाहिए। गणेशजी को दूध का स्नान कराने से चंद्रमा की शांति होती है। वही बुध, गुरु और शुक्र जैसे ग्रह गणेश मंत्रों के जाप से अनुकूल परिणाम देते हैं। मंगल दोष के निवारण के लिए भी गणेश पूजा का विधान है। शनि दोष से पीड़ित व्यक्ति को गणेशजी की काली मूर्ति के दर्शन करना चाहिए। यदि ऐसा संभव ना हो, तो प्रत्येक शनिवार गणेशजी के किसी भी मंदिर जाकर कष्टों के निवारण की प्रार्थना करनी चाहिए। राहु और केतु के दोष निवारण के लिए ओम गं गणपतये नम: मंत्र का जाप उत्तम माना गया है। हालांकि गणेश पूजा विधि विधान से करनी चाहिए। गणेशपूजा में अथर्वशीर्ष का बड़ा महत्व है। इसके उच्चारण में गलतियां नहीं होनी चाहिए।
अनंत चतुर्दशी के दिन क्यों किया जाता है गणेशजी का जल विसर्जन?
पौराणिक कथा
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ गणेशजी की मूर्ति को अपने घर लाकर उनकी स्थापना करते हैं और पूरी श्रद्धा व भक्ति-भाव से उनका पूजन करते हैं। करीब दस दिनों तक गणेशोत्सव का यह पर्व चलता है, इसके बाद अनंत चतुर्दशी के दिन 'गणपति वप्पा मोरिया अगले बरस तू जल्दी आ' इसी भावना के साथ गणपति की मूर्ति का विसर्जन कर दिया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर हर साल अनंत चतुर्दशी के दिन ही या फिर बप्पा की मूर्ति की स्थापना करने के दस दिन बाद उनकी मूर्ति का विसर्जन क्यों किया जाता है। तो चलिए जानते हैं इसका पौराणिक कारण...
महाभारत और वेदव्यास
गणपति बप्पा की मूर्ति को दस दिन बाद जल में विसर्जित करने के पीछे की मुख्य वजह महाभारत और महर्षि वेदव्यास से जुड़ी है। दरअसल, महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणेश से इसे लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की थी। भगवान गणेश ने उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार किया था और महाभारत लेखन का कार्य गणेश चतुर्थी के दिन से ही शुरू किया गया था।
भगवान गणेश की शर्त
यद्धपि, भगवान गणेश ने महर्षि वेदव्यास की प्रार्थना को तो मान लिया था, लेकिन उन्होंने महाभारत को लिपिबद्ध करने के लिए एक शर्त रखी थी 'कि मैं जब लिखना प्रारंभ करूंगा तो कलम को रोकूंगा नहीं, यदि कलम रुक गई तो लिखना बंद कर दूंगा'। तब वेदव्यासजी ने कहा कि भगवन आप देवताओं में अग्रणी हैं,विद्या और बुद्धि के दाता हैं और मैं एक साधारण ऋषि हूँ। यदि किसी श्लोक में मुझसे त्रुटि हो जाय तो आप उस श्लोक को ठीक कर उसे लिपिबद्ध करें।गणपति जी ने सहमति दी और फिर दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी पीना भी वर्जित था। अतः गणपति जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की। जिसके बाद महाभारत लेखन का कार्य शुरू हुआ। इसे पूरा होने में करीबन 10 दिन लग गए।
अकड़न हो गई भगवान गणेश को
जिस दिन गणेश जी ने महाभारत लेखन का कार्य पूरा किया, उस दिन अनंत चतुर्दशी थी। लेकिन लगातार दस दिनों तक बिना रूके लिखने के कारण भगवान गणेश का शरीर जड़वत हो चुका था।मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पार्थिव गणेश भी पड़ा। वेदव्यास ने देखा कि, गणपति का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया। इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए। यही कारण है कि गणपति स्थापना 10 दिन के लिए की जाती है और फिर 10 दिनों के बाद अनंत चतुर्दशी पर गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन करते हैं।
विसर्जन से पहले करे ये काम:
भगवान गणेश की प्रतिमा की पूजा कर तिलक लगाएं। इसके बाद बप्पा के पास आसन मे बैठकर गं गणपतयै नम: मंत्र का जाप करें। गणेश जी की आरती कर प्रार्थना करें कि, हमारे सभी पापों का आप शमन करें। रिद्धि-सिद्धि और गणेश जी का प्रभाव घर में ही रहे और हम प्रभाव से हीन न हो। उच्चारण करने के बाद गणेश प्रतिमा को थोड़ा सा हिला कर संकेत दें। उसके बाद गणेश प्रतिमा का विसर्जन कर सकते हैं।इस पर्व पर हम आपको गणेश चतुर्थी की अग्रिम शुभकामनाएं देते हैं। भगवान गणेश आपको और आपके परिवार को आशीर्वाद देते रहें।
दोस्तों, हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।
धन्यवाद
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