कौन हैं शीतला माता जिन्हें लगाया जाता है बासीभोग shitala mata ki katha sheetala mata शीतला माता


  



 कौन हैं शीतला माता जिन्हें लगाया जाता है बासी भोग, पढ़ें इनके जन्म की ये रोचक कथा

 

 .कौन हैं शीतला माता जिन्हें लगाया जाता है बासी भोग,

.शीतला माता का इतिहास क्या है?

.शीतला माता के पीछे क्या कहानी है?

.शीतला माता किसकी बेटी थी?


.शीतला माता की पौराणिक कथा जो अधिकतर लोग नहीं जानते!

क्या आप भी इन सवालो का जवाब जानना चाहते है तो इस में बने रहे ,इन सभी सवालो का जवाब इस में मिलेगा.

 

शीतला सप्तमी व्रत ,ये हिन्दुओं का खास त्योहार है। जिसमें शीतला माता का व्रत और पूजा की जाती है। इसका उल्लेख स्कंद पुराण में किया गया है। ये व्रत होली के बाद किया जाता है। वैसे तो शीतला माता की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से शुरू होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार या  गुरुवार के दिन ही की जाती है। इस व्रत पर एक दिन पूर्व बनाया हुआ भोजन किया जाता है अतः इस व्रत को बसौड़ा, लसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं। शीतला को चेचक नाम से भी जाना जाता है। शीतला माता की पूजा और ये व्रत करने से चेचक एवं अन्य तरह की बीमारियां नहीं होती है। इस व्रत को माता अपने बच्चों के लिए रखती हैं। इस दिन पूजा का बाद शीतला माता की कथा जरुर पढ़नी चाहिए। यहां पढ़ें शीतला माता की कथा।

Sheetla Mata Story: हर साल चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि को शीतला देवी की पूजा की जाती है. शीतला माता को चेचक रोग की देवी भी कहते हैं. शीतला माता के पर्व को हिंदू समाज में बास्योड़ा नाम से जाना जाता है. इस पर्व के एक दिन पहले शीतला माता के भोग को तैयार किया जाता है और दूसरे दिन बासी भोग को माता शीतला को चढ़ाया जाता है. माना जाता है कि शीतला देवी की पूजा अर्चना से चेचक रोग नहीं होता. छोटे बच्चों को चेचक से बचाने के लिए विशेषकर शीतला देवी की पूजा की जाती है. आइए  जानते हैं शीतला देवी से जुड़ी रोचक बातें.

 शीतला सप्तमी या अष्टमी व्रत कैसे करें,

व्रत करने वाले सुबह जल्दी उठकर नहा लें। इसके बाद हाथ में जल लेकर पूजा का संकल्प कर लें।

संकल्प करने के बाद विधि-विधान तथा सुगंधयुक्त गंध पुष्प आदि से शीतला माता की पूजा करें।

इसके पश्चात एक दिन पहले बनाए हुए (बासी) चीजों जैसे मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि का भोग लगाएं।

इसके बाद शीतला स्तोत्र का पाठ करें और यदि यह उपलब्ध हो तो शीतला माता व्रत की कथा सुनें। फिर रात में जगराता करें और दीपक लगाएं।

 

शीतला माता का इतिहास क्या है?

शीतला माता को भगवान शिव की अर्धांगिनी शक्ति का ही स्वरूप माना जाता है.पौराणिक कथा के अनुसार, देवलोक से देवी शीतला अपने हाथ में दाल के दाने लेकर भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती लोक पर राजा विराट के राज्य में रहने आई थीं. लेकिन, राजा विराट ने देवी शीतला को राज्य में रहने से मना कर दिया

 

शीतला माता के पीछे क्या कहानी है?

माता के दानों को मैडीकल साइंस में चेचक के दानों का नाम दिया गया। लोग माता पर चढ़ाए गए पानी से चेचक के दानों का इलाज करते हैं। मान्यता अनुसार शतलार अष्टमी के दिन व्रत रखने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और

 परिवार में फोड़े, नेत्रों के समस्त रोग, शीतला की फुंसियों के चिन्ह तथा

 शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।

 

शीतला माता किसकी बेटी थी?

कहते हैं यह शक्ति अवतार हैं और भगवान शिव की यह जीवनसंगिनी है। पौराणिक कथा के अनुसार माता शीतला की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से हुई थी। देवलोक से धरती पर माता शीतला अपने साथ भगवान शिक के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं थी।

 शीतला माता व्रत की कथा

 किसी गांव में एक महिला रहती थी। वह शीतला माता की भक्त थी तथा शीतला माता का व्रत करती थी। उसके गांव में और कोई भी शीतला माता की पूजा नहीं करता था। एक दिन उस गांव में किसी कारण से आग लग गई। उस आग में गांव की सभी झोपडिय़ां जल गई, लेकिन उस औरत की झोपड़ी सही-सलामत रही। सब लोगों ने उससे इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं माता शीतला की पूजा करती हूं। इसलिए मेरा घर आग से सुरक्षित है। यह सुनकर गांव के अन्य लोग भी शीतला माता की पूजा करने लगे।

शीतला माता व्रत की कथा




– यह कथा बहुत पुरानी है। एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखूं कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आईं और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर नहीं है, और ना ही मेरी पूजा होती है।

माता शीतला गाँव की गलियों में घूम रही थी, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) नीचे फेंका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में फफोले/छाले पड गये। शीतला माता के पूरे शरीर में जलन होने लगी।


शीतला माता गाँव में इधर-उधर भाग-भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा है। कोई मेरी सहायता करो। लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता की सहायता नही की। वहीं अपने घर के बाहर एक कुम्हारन महिला बैठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढी माई तो बहुत जल गई है। इसके पूरे शरीर में तपन है। इसके पूरे शरीर में फफोले पड़ गये है। यह तपन सहन नहीं कर पा रही है।

तब उस कुम्हारन ने कहा हे माँ! तू यहाँ आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ। कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खूब ठंडा पानी डाला और बोली हे माँ! मेरे घर में रात की बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढी माई ने ठंडी ज्वार के आटे की राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।

तब उस कुम्हारन ने कहा - आ माँ बैठजा तेरे सिर के बाल बहुत बिखरे हैं, ला मैं तेरी चोटी गूँथ देती हूँ।
और कुम्हारन माई की चोटी गूथने हेतु कंगी बालो में करती रही। अचानक कुम्हारन की नजर उस बूढ़ी माई के सिर के पीछे पड़ी, तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख बालों के अंदर छुपी है।
यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उस बूढ़ी माई ने कहा - रुकजा बेटी तू डर मत। मैं कोई भूत-प्रेत नही हूँ। मैं शीतला देवी हूँ मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है। कौन मेरी पूजा करता है। इतना कहकर माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई।

माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब मैं गरीब इन माता को कहाँ बिठाऊ।
तब माता बोली - हे बेटी! तुम किस सोच मे पड गई।
तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आँसू बहते हुए कहा - हे माँ! मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता बिखरी हुई है। मैं आपको कहाँ बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी है, ना बैठने का आसन ही।

तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर की दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फैंक दिया।
और उस कुम्हारन से कहा - हे बेटी! मैं तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हूँ, अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग लो।

तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा - हे माता मेरी इच्छा है अब आप इसी डुंगरी गाँव मे स्थापित होकर यहीं निवास करें और जिस प्रकार आपने मेरे घर की दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ कर दिया। ऐसे ही आपको जो भी भक्त होली के बाद की सप्तमी को भक्ति-भाव से पूजा कर, अष्टमी के दिन आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर की दरिद्रता को दूर करना एवं आपकी पूजा करने वाली महिला का अखंड सुहाग रखना, उसकी गोद हमेशा भरी रखना। साथ ही जो पुरुष शीतला अष्टमी को नाई के यहाँ बाल ना कटवाये धोबी को कपड़े धुलने ना दें और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़ाकर, नरियल ,फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार मे कभी दरिद्रता ना आये।

तब माता बोलीं तथास्तु! हे बेटी! जो तूने वरदान मांगे हैं मैं सब तुझे देती हूँ। हे बेटी! तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पूजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया शील की डुंगरी।

शीतला माता की जय!

शीतला माता व्रत की कथा

एक गांव में ब्राह्मण दंपति रहते थे। उनके दो बेटे थे और दोनों की ही शादी हो चुकी थी। उन दोनों बहुओं को कोई संतान नहीं थी। लंबे समय बाद उन्हें संतान हुई। इसके बाद शीतला सप्तमी का पर्व आया इस अवसर पर घर में ठंडा खाना बनाया गया।
दोनों बहुओ के मन में विचार आया कि अगर हम ठंडा खाना खाएंगे तो बच्चे बीमार हो सकते हैं। दोनों बहुओं ने बिना किसी को बताएं दो बाटी बना ली।

सास बहू ने शीतला माता की पूजा की और कथा सुनी। इसके बाद सास शीतला माता की भजन गाने लगी और दोनों बहुएं बच्चों का बहाना बनाकर घर गई। दोनों से घर आकर गरम गरम खाना खाया इसके बाद जब सास घर आई तो उसने दोनों बहुओं से खाना खाने के लिए कहा । दोनों बहुएं काम में लग गई। सास ने कहा कि बच्चे बहुत देर से सो रहे हैं उन्हें जगाकर कुछ खिला दो। जैसे ही दोनों बच्चों को उठाने के लिए गई दोनों बच्चे मृत थे।  
ऐसा शीतला माता के प्रकोप से हुए। दोनों बहुओं ने रो रो कर अपनी सास को सारी बात बताई। सास ने दोनों को बहुत सुनाया और कहा कि अपने बेटों के लिए तुमने माता शीतला की अवहेलना की है। दोनों घर से निकल जाओ और दोनों बच्चों को जिंदा स्वस्थ लेकर ही घर में कदम रखना।

दोनों बहुएं अपने बच्चों को टोकरे में रखकर घर से निकल पड़ी। जाते जाते रास्ते में एक जीर्ण वृक्ष आया। जो खेजड़ी का वृक्ष था। इसके नीचे दो बहने बैठी थी जिनका नाम ओरी और शीतला था। दोनों के बालों में जूं थी। बहुए काफी थक भी गई थी वह भी उस वृक्ष के नीचे बैठ गई। इसके बाद दोनों ने ओरी और शीतला के सिर से बहुत सारी जुएं निकाली। जुओं के निकल जाने से उन्हें काफी अच्छा अनुभव हुआ। दोनों बहनों ने कहा कि अपने मस्तक में शीलता का अनुभव किया। कहा तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतला ठंडा किया है वैसे ही तुम्हें पेट की शांति मिले।


दोनों बहुओं ने कहा कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी-मारी भटकती हैं। परंतु शीतला माता के दर्शन हुए नहीं। इतने में शीतला माता बोल उठी की तुम दोनों दुष्ट हो, दुराचारिणी हो। तुम्हारा मुंह तो देखने लायक ही नहीं है। शीलता सप्तमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुमने दोनों ने गरम खाना खाया।


इतना सुनते ही दोनों बहुओं ने शीतला माता को पहचान लिया। दोनों माता शीतला से वंदन करने लगी। दोनों ने कहा माता हमें माफ कर दो हमने अनजाने में भोजन कर लिया। हम दोनों आपके प्रभाव से वंचित थे। हम दोनों को माफ कर दो। हम दोनों फिर से ऐसा काम नहीं करेंगे।


दोनों के बात सुनकर माता शीतला को उन पर तरस गया और उन्होंने दोनों बच्चों को जिंदा कर दिया। इसके बाद दोनों बहुएं अपने बेटों को लेकर घर लौट आई। और उन्होंने बताया कि उन्हें शीतला माता के दर्शन हुए थे। दोनों का धूमधाम से स्वागत करके गांव में प्रवेश करवाया। बहुओं ने कहा हम गांव में शीतला माता के मंदिर का निर्माण करवाएंगे और चैत्र महीने में शीलता सप्तमी के दिन सिर्फ ठंडा खाना ही खाएंगे।

शीतला माता ने बहुएं पर जैसी अपनी दृष्टि की वैसी कृपा मां सप पर बनाएं रखे।

देवी शक्ति का रूप है शीतला माता
स्कंद पुराण में शीतला माता से जुड़ी एक पौराणिक कथा का वर्णन मिलता है, जिसमें बताया गया है कि शीतला देवी का जन्म ब्रह्माजी से हुआ था. शीतला माता को भगवान शिव की अर्धांगिनी शक्ति का ही स्वरूप माना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, देवलोक से देवी शीतला अपने हाथ में दाल के दाने लेकर भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती लोक पर राजा विराट के राज्य में रहने आई थीं. लेकिन, राजा विराट ने देवी शीतला को राज्य में रहने से मना कर दिया.

 

क्रोध से जलने लगी त्वचा
राजा के इस व्यवहार से देवी शीतला क्रोधित हो गई. शीतला माता के क्रोध की अग्नि से राजा की प्रजा के लोगों की त्वचा पर लाल लाल दाने हो गए. लोगों की त्वचा गर्मी से जलने लगी थी. तब राजा विराट ने अपनी गलती पर माफी मांगी. इसके बाद राजा ने देवी शीतला को कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया, तब माता शीतला का क्रोध शांत हुआ. तब से माता देवी को ठंडे पकवानों का भोग लगाने की परंपरा चली रही है.

अनूठा है माता का रूप
स्कंद पुराण के अनुसार, देवी शीतला का रूप अनूठा है. देवी शीतला का वाहन गधा है. देवी शीतला अपने हाथ के कलश में शीतल पेय, दाल के दाने और रोगानुनाशक जल रखती हैं, तो दूसरे हाथ में झाड़ू और नीम के पत्ते रखती हैं. चौसठ रोगों के देवता, घेंटूकर्ण त्वचा रोग के देवता, हैज़े की देवी और ज्वारासुर ज्वर का दैत्य इनके साथी होते हैं. स्कंदपुराण के अनुसार, देवी शीतला के पूजा स्तोत्र शीतलाष्टक की रचना स्वयं भगवान शिव ने की थी.

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देवी शक्ति का रूप है शीतला माता
स्कंद पुराण में शीतला माता से जुड़ी एक पौराणिक कथा का वर्णन मिलता है, जिसमें बताया गया है कि शीतला देवी का जन्म ब्रह्माजी से हुआ था. शीतला माता को भगवान शिव की अर्धांगिनी शक्ति का ही स्वरूप माना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, देवलोक से देवी शीतला अपने हाथ में दाल के दाने लेकर भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती लोक पर राजा विराट के राज्य में रहने आई थीं. लेकिन, राजा विराट ने देवी शीतला को राज्य में रहने से मना कर दिया.

क्रोध से जलने लगी त्वचा
राजा के इस व्यवहार से देवी शीतला क्रोधित हो गई. शीतला माता के क्रोध की अग्नि से राजा की प्रजा के लोगों की त्वचा पर लाल लाल दाने हो गए. लोगों की त्वचा गर्मी से जलने लगी थी. तब राजा विराट ने अपनी गलती पर माफी मांगी. इसके बाद राजा ने देवी शीतला को कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया, तब माता शीतला का क्रोध शांत हुआ. तब से माता देवी को ठंडे पकवानों का भोग लगाने की परंपरा चली रही है.

अनूठा है माता का रूप
स्कंद पुराण के अनुसार, देवी शीतला का रूप अनूठा है. देवी शीतला का वाहन गधा है. देवी शीतला अपने हाथ के कलश में शीतल पेय, दाल के दाने और रोगानुनाशक जल रखती हैं, तो दूसरे हाथ में झाड़ू और नीम के पत्ते रखती हैं. चौसठ रोगों के देवता, घेंटूकर्ण त्वचा रोग के देवता, हैज़े की देवी और ज्वारासुर ज्वर का दैत्य इनके साथी होते हैं. स्कंदपुराण के अनुसार, देवी शीतला के पूजा स्तोत्र शीतलाष्टक की रचना स्वयं भगवान शिव ने की थी.

शीतला माता व्रत की कथा

कथा के अनुसार एक साहूकार था जिसके सात पुत्र थे। साहूकार ने समय के अनुसार सातों पुत्रों की शादी कर दी परंतु कई वर्ष बीत जाने के बाद भी सातो पुत्रों में से किसी के घर संतान का जन्म नहीं हुआ। पुत्र वधूओं की सूनी गोद को देखकर साहूकार की पत्नी बहुत दु:खी रहती थी। एक दिन एक वृद्ध स्त्री साहूकार के घर से गुजर रही थी और साहूकार की पत्नी को दु:खी देखकर उसने दु: का कारण पूछा। साहूकार की पत्नी ने उस वृद्ध स्त्री को अपने मन की बात बताई।

इस पर उस वृद्ध स्त्री ने कहा कि आप अपने सातों पुत्र वधूओं के साथ मिलकर शीतला माता का व्रत और पूजन कीजिए, इससे माता शीतला प्रसन्न हो जाएंगी और आपकी सातों पुत्र वधूओं की गोद हरी हो जाएगी।

साहूकार की पत्नी तब माघ मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि (Magha Shukla Shasti tithi) को अपनी सातों बहूओं के साथ मिलकर उस वृद्धा के बताये विधान के अनुसार माता शीतला का व्रत किया। माता शीतला की कृपा से सातों बहूएं गर्भवती हुई और समय आने पर सभी के सुन्दर पुत्र हुए। समय का चक्र चलता रहा और माघ शुक्ल षष्ठी तिथि आई लेकिन किसी को माता शीतला के व्रत का ध्यान नहीं आया। इस दिन सास और बहूओं ने गर्म पानी से स्नान किया और गरमा गरम भोजन किया।
माता शीतला इससे कुपित हो गईं और साहूकार की पत्नी के स्वप्न में आकर बोलीं कि तुमने मेरे व्रत का पालन नहीं किया है इसलिए तुम्हारे पति का स्वर्गवास हो गया है। स्वप्न देखकर साहूकार की पत्नी पागल हो गयी और भटकते भटकते घने वन में चली गईं।

वन में साहूकार की पत्नी ने देखा कि जिस वृद्धा ने उसे शीतला माता का व्रत करने के लिए कहा था वह अग्नि में जल रही है। उसे देखकर साहूकार की पत्नी चंक पड़ी और उसे एहसास हो गया कि यह शीतला माता है। अपनी भूल के लिए वह माता से विनती करने लगी, माता ने तब उसे कहा कि तुम मेरे शरीर पर दही का लेपन करो इससे तुम्हारे पर जो दैविक ताप है वह समाप्त हो जाएगा। साहूकार की पत्नी ने तब शीतला माता के शरीर पर दही का लेपन किया इससे उसका पागलपन ठीक हो गया साहूकार के प्राण भी लट आये।

शीतला माता व्रत विधि (Sheetla Mata Vrat Vidhi):

कथा में माता शीतला के व्रत की विधि का जैसा उल्लेख आया है उसके अनुसार अनुसार शीतला षष्ठी के दिन स्नान ध्यान करके शीतला माता की पूजा करनी चाहिए (Sheetla Shasti) इस दिन कोई भी गरम चीज़ सेवन नहीं करना चाहिए। शीतला माता के व्रत के दिन ठंढ़े पानी से स्नान करना चाहिए। ठंढ़ा ठंढ़ा भोजन करना चाहिए। उत्तर भारत के कई हिस्सों में इसे बसयरा (Basyorra) भी कहते हैं। इसे बसयरा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन लोग रात में बना बासी खाना पूरे दिन खाते हैं।

 

शीतला षष्ठी के दिन लोग चुल्हा नहीं जलाते हैं बल्कि चुल्हे की पूजा करते हैं। इस दिन भगवान को भी रात में बना बासी खाना प्रसाद रूप में अर्पण किया जाता है। इस तिथि को घर के दरबाजे, खिड़कियों एवं चुल्हे को दही, चावल और बेसन से बनी हुई बड़ी मिलाकर भेंट किया जाता है।

इस तिथि को व्रत करने से जहां तन मन शीतल रहता है वहीं चेचक से आप मुक्त रहते हैं। शीतला षष्ठी (Sheetla Sasti) के दिन देश के कई भागो में मिट्टी पानी का खेल उसी प्रकार खेला जाता है जैसे होली में रंगों से।

शीतला माता की कहानी

 

 दोस्तों, हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई  जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगेहम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो 

धन्यवाद    

 

डिसक्लेमर:

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना हैपाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'

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