पापमोचनी एकादशी व्रत कथा (Papmochani Ekadashi Vrat Katha) papmochani ekadashi ekadashi vrat katha


 

हिंदू, पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का व्रत आज रखा जा रहा है। एकादशी का विशेष महत्व है।इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने से सभी तरह की परेशानियों से छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही श्री हरि की कृपा हमेशा बनी रहती हैं।

 

मान्यताओं के अनुसार, पापमोचनी एकादशी के दिन व्रत रखने से व्य़क्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही जीवन में रही उतार-चढ़ाव से भी छुटकारा मिलता है आज के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने के साथ पापमोचनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करना काफी शुभ होता है। सनातन धर्म में एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व बताया गया है। क्योंकि व्रत रखने से तन-मन दोनों की शुद्धि होती है। शास्त्रों में एकादशी व्रत को सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। आज 18 मार्च,शनिवार को पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा जा रहा है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। अनेक शास्त्रों में कहा गया है कि संसार में उत्पन्न होने वाला कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है जिससे जाने-अनजाने में कोई पाप नहीं हुआ हो। ईश्वरीय विधान के अनुसार पाप के दंड से बचा जा सकता है अगर पापमोचिनी एकादशी का व्रत किया जाए।



पापमोचिनी एकादशी के दिन भगवान श्रीविष्णु

 

की चतुर्भुज रूप की करें पूजा


पापमोचिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है,ऐसा शास्त्रों में लिखा है। व्रती को एक बार दशमी तिथि को सात्विक भोजन करना चाहिए। मन से भोग-विलास की भावना त्यागकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। स्नान कर स्वच्छ और सात्विक रंगों के वस्त्र धारण करें और फिर मन में व्रत का संकल्प लें। पंचामृत से भगवान विष्णु की मूर्ति को स्नान कराकर पीला चन्दन लगाएं,पुष्प अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु के सामने धूप-दीप जलाएं, आरती करें और व्रत की कथा पढ़ें। सात्विक रहते हुए जितना संभव हो ' नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करें। इस दिन घर में विष्णुसहत्रनाम का पाठ करना भी कई गुणा फल देता है। दूसरे दिन द्वादशी को सुबह पूजन के बाद ब्राह्मण या गरीबों को भोजन कराएं, दान-दक्षिणा दें, फिर स्वयं भोजन करें और व्रत का समापन करें।




 इस दिन उपासक सूर्योदय के समय उठते हैं और कुश और तिल से युक्त पानी से स्नान करते हैं। बिना कुछ खाए या सिर्फ पानी पीकर उपवास करना सबसे अच्छा है। हालाँकि, यह सभी के लिए संभव नहीं है, इसलिए गैर-अनाज खाद्य पदार्थ, दूध, मेवा और फल खाकर भी उपवास रखा जा सकता है। अगले दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद व्रत तोड़ा जाता है। पापमोचनी एकादशी के दिन 'श्री विष्णु सहस्रनाम' का पाठ करना चाहिए।

इस दिन उपासकों के द्वारा पूरे समर्पण भाव के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भक्त भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते फल, फूल, दीपक और अगरबत्ती चढ़ाते हैं। व्रत को करने वाले को शाम के समय भगवान विष्णु के मंदिरों के दर्शन भी करने चाहिए। मंदिरों में इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।


व्रत की महिमा


एकादशी तिथि को रात्रि में जागरण करने का बहुत महत्त्व बताया गया है। पदम पुराण के अनुसार जो मनुष्य पापमोचिनी एकादशी का व्रत करते हैं उनका सारा पाप नष्ट हो जाता है।  इस व्रत को करने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। ब्रह्म ह्त्या,सुवर्ण चोरी,सुरापान और गुरुपत्नी गमन जैसे महापाप भी इस व्रत को करने से दूर हो जाते हैं,अर्थात यह व्रत बहुत ही पुण्यमय है मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सभी प्रकार की मानसिक समस्या दूर हो जाती है।

जानिए पापमोचनी एकादशी व्रत कथा।


पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा:


प्राचीन समय में चैत्ररथ नामक एक वन था। उसमें अप्सराएँ किन्नरों के साथ विहार किया करती थीं। उसी वन में मेधावी नाम के एक ऋषि भी तपस्या में लीन रहते थे। वे शिवभक्त थे। एक दिन मञ्जुघोषा नामक एक अप्सरा ने उनको मोहित कर लिया। मेधावी उसके सौन्दर्य पर मोहित हो गए।
काम के वशीभूत होने के कारण मुनि को उस समय दिन-रात का कुछ भी ज्ञान रहा और काफी समय तक वे रमण करते रहे। इसी प्रकार दोनों ने साथ-साथ बहुत समय बिताया।
मञ्जुघोषा ने एक दिन ऋषि से कहा: हे मुनिवर, अब आप मुझे स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिये। अप्सरा की बात सुन मुनि को समय का बोध हुआ और वह गम्भीरतापूर्वक विचार करने लगे। जब उन्हें समय का ज्ञान हुआ कि उन्हें रमण करते सत्तावन वर्ष व्यतीत हो चुके हैं तो उस अप्सरा को वह काल का रूप समझने लगे।
इतना ज्यादा समय भोग-विलास में व्यर्थ चला जाने पर उन्हें बड़ा क्रोध आया। क्रोध से थरथराते स्वर में मुनि ने उस अप्सरा को पिशाचिनी बनाने का श्राप दे दिया।


मुनि के क्रोधयुक्त श्राप से वह अप्सरा पिशाचिनी बन गई। यह देख वह व्यथित होकर बोली: हे ऋषिवर! आपके साथ तो मेरे बहुत वर्ष व्यतीत किये हैं, अब कृपा करके बताइये कि इस शाप का निवारण किस प्रकार होगा? पिशाचिनी बनी मंजूघोषा से मुनि ने कहा तूने मेरा बड़ा बुरा किया है किंतु फिर भी मैं तुझे श्राप से मुक्ति का उपाय बतलाता हूं चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी का उपवास करने से मुक्त हो सकती हो। अप्सरा ने पापमोचनी एकादशी का व्रत किया और उसे पिशाचिनी योनि से मुक्ति मिल गई और मुक्त होकर वह सीधा स्वर्ग पहुंच गई। मंजुघोषा को ऐसा करते देख कामदेव भी उनकी मदद करने के लिए गए। इसके बाद मेधावी मंजुघोषा की ओर आकर्षित हो गए और वह भगवान शिव की तपस्या करना ही भूल गए। समय बीतने के बाद मेधावी को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने मंजुघोषा को दोषी मानते हुए उन्हें पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया। जिससे अप्सरा बेहद ही दुखी हुई।

अप्सरा ने तुरंत अपनी गलती की क्षमा मांगी। अप्सरा की क्षमा याचना सुनकर मेधावी ने मंजुघोषा को चैत्र मास की पापमोचनी एकादशी के बारे में बताया। मंजुघोषा ने मेधावी के कहे अनुसार विधिपूर्वक पापमोचनी एकादशी का व्रत किया। पापमोचनी एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से उसे सभी पापों से मुक्ति मिल गई। इस व्रत के प्रभाव से मंजुघोषा फिर से अप्सरा बन गई और स्वर्ग में वापस चली गई। मंजुघोषा के बाद मेधावी ने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत किया और अपने पापों को दूर कर अपना खोया हुआ तेज पाया था।

 दोस्तों, हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई  जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगेहम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो 

धन्यवाद    

 

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