नवरात्रि का नौवां दिन-माँ सिद्धिदात्री पूजा विधि, बीज मंत्र, भोग, कथा #maasiddhidatripujavidhi

 



नवरात्रि का नौवां दिन - माँ सिद्धिदात्री

 


नवरात्रि का नौवां दिन (Ninth Day of Navratri)

नवरात्रि में भक्ति से परिपूर्ण 9 दिनों में सबसे आखिरी दिन, देवी माँ के सिद्धिदात्री स्वरूप को समर्पित होता है। देवी माँ का यह स्वरूप भक्तों और साधकों को सिद्धियाँ प्रदान करने के लिए जाना जाता है। आज 9 देवियों की जानकारी की कड़ी में हम इस लेख में लेकर आए हैं माता सिद्धिदात्री को समर्पित नवरात्र के नौवें दिन का महत्व, पूजा विधि और इससे जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी।

आज महानवमी है, जिसे दुर्गा नवमी भी कहते हैं. चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन को महानवमी कहा जाता है.. महानवमी के दिन मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं. मां सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती हैं. आज के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा के बाद हवन करते हैं और फिर कन्या पूजा की जाती है. भगवान शिव स्वयं ही मां सिद्धिदात्री की उपासना करते हैं क्योंकि इनकी कृपा से शिव जी को आठ सिद्धियां मिलीं ज्योतिषाचार्य से जानते हैं मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और योग के बारे में.

 

कौन हैं मां सिद्धिदात्री
देवी भागवत पुराण की कथा के अनुसार, भगवान शिव ने 8 सिद्धियों की प्राप्ति के लिए मां सिद्धिदात्री की पूजा की. उनके ही प्रभाव से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था. तब भगवान शंकर का वह रूप अर्द्धनारिश्वर कहलाया. लाल वस्त्र धारण करने वाली मां सिद्धिदात्री कमल परविराजती हैं. वे अपने चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा ओर कमल पुष्प धारण करती हैं.

 

मां सिद्धिदात्री का भोग-


नवरात्रि की नवमी को मां सिद्धिदात्री को मौसमी फल, चना, पूड़ी, खीर, नारियल और हलवा आदि का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मां सिद्धिदात्री प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं।

मां सिद्धिदात्री की पूजा के फायदे
1.
मां सिद्धिदात्री की आराधना करने से व्यक्ति को 8 सिद्धियां और 9 प्रकार की निधियां मिल सकती हैं.

2. मां सिद्धिदात्री की कृपा से व्यक्ति को मोक्ष मिलता है. वह मानव जीवन के जन्म मरण चक्र से मुक्त हो जाता है.

3. मां सिद्धिदात्री के आशीर्वाद से रोग, ग्रह दोष आदि दूर हो जाते हैं. किसी भी व्यक्ति के साथ कोई अनहोनी नहीं होती है.

नवरात्रि के नौवें दिन का महत्व (Importance of the Ninth day of Navratri)

नवरात्रि के नौवें दिन को माता के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा करने का विधान यह दिन इन्ही को समर्पित होता है। इसे नवमी या महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन हवन करने और कन्या पूजन का विधान है। सभी भक्तों के जीवन में यह पर्व भक्ति की एक नई तरंग लेकर आता है। इस दौरान भक्त विभिन्न प्रकार से माता के प्रति अपने समर्पण को व्यक्त करते हैं।

कमल पुष्प पर विराजमान माँ सिद्धिदात्री की चार भुजाएं हैं, और उनका वाहन सिंह है। देवी जी के सिरपर ऊंचा मुकुट है और उनके चेहरे पर मंद सी मुस्कान है। देवी सिद्धिदात्री, सर्व सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं। उपासक या भक्त पर इनकी कृपा से कठिन से कठिन कार्य भी आसानी से संभव सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही वह हर प्रकार के भय रोगों को भी दूर करती हैं।

माँ सिद्धिदात्री की पूजा विधि (Mata Siddhidatri Puja Vidhi)

·         नवमी के दिन प्रातः काल उठकर स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।

·         पूजा स्थल पर प्रथम दिन जो माता की चौकी स्थापित की गई थी, उसी स्थान पर सिद्धिदात्री जी की पूजा भी की जाएगी।

·         चौकी को साफ लें, वहां गंगाजल का छिड़काव करें, चौकी पर आपने एक दिन पहले जो पुष्प चढ़ाए थे, उन्हें हटा दें।

·         आपको बता दें, चूंकि चौकी स्थापना प्रथम दिन ही हो जाती है, इसलिए पूजन स्थल पर विसर्जन से पहले झाड़ू लगाएं।

·         आप पूजन स्थल आसन ग्रहण कर लें।

·         इसके बाद आचमन करें, आचमन के लिए हाथ से तीन बार जल ग्रहण करें और चौथी बार उसी जल से हाथ धो लें।

·         इसके बाद पूजन स्थल पर दीपक प्रज्वलित करें।

·         अब हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर गणपति जी का स्मरण करते हुए, “ गं गणपतये नमःमंत्र का जाप करें।

·         इसके बाद आप अक्षत हाथ में लेकर देवी के सिद्धिदात्री स्वरूप का भी आह्वान करें और सिध्दिदात्र्यै नमःमंत्र का जाप करें।

·         इसके पश्चात्, प्रथम पूज्य गणेश जी और देवी माँ को कुमकुम का तिलक लगाएं।

·         साथ ही, कलश, घट, चौकी को भी हल्दी-कुमकुम-अक्षत से तिलक करके नमन करें।

·         इसके बाद धुप- सुगन्धि जलाकर माता को फूल-माला अर्पित करें।

·         नर्वाण मन्त्रऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चेका यथाशक्ति अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार जप करें।

·         अब आप दुर्गा सप्तशती का पाठ पढ़ें।

·         भोग- किसी भी पूजा में भोग का काफी महत्व होता है, आप देवी जी को ऋतु फल के साथ हल्वा-पूड़ी का भोग लगा सकते हैं। इसके अलावा आप अपनी श्रद्धानुसार भोग लगा सकते हैं।

·         इसके बाद देवी महागौरी जी की आरती गाएं।

·         अंत में अपनी भूल चूक के लिए देवी जी से क्षमा प्रार्थना करें और प्रसाद वितरित करें।

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महानवमी पर हवन का महत्व (Importance of Havan in Navami)

हिन्दू धर्म के धार्मिक अनुष्ठानों को सफल बनाने के लिए अंतिम चरण में हवन किया जाता है। किसी भी वैदिक पूजा में हवन करना अनिवार्य होता है। हवन द्वारा समापन किए जाने पर हर पूजा अधूरी मानी जाती है।

नवमी होम को चंडी होम या नवमी हवन के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि और दुर्गा पूजा के दौरान हवन या नवमी होम बहुत महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है। शारदीय नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना और 9 दिनों की पूजा-पाठ के बाद अष्टमी या नवमी के दिन हवन करके नवरात्रि पूजा की पूर्ण आहुति दी जाती है। मां दुर्गा से सुख-समृद्धि की कामना की जाती है और बीज मंत्रों द्वारा माँ दुर्गा का आवाह्न किया जाता है। हवन करने से आदिशक्ति देवी मां भगवती प्रसन्न होती है और अपने भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य, सुख समृद्धि प्रदान करती है।

कैसे करें महानवमी पर हवन? (Havan Vidhi In Maha Navami)

प्रातःकाल उठकर, स्नानादि कार्यों से निवृत हो जाएं। नवमी के दिन विधिवत सिद्धिदात्री जी की पूजा करें। पूजा-पाठ और कन्या पूजन के बाद हवन किया जाएगा। हवन से पहले हवन की संपूर्ण सामग्री एकत्रित कर लें। इसके बाद जहां हवन करना है, उस स्थान को साफ कर लें। हवन वेदी पर हल्दी कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं, और पुष्प से सजाएं। आमतौर पर, हवन किसी पंडित या ब्राह्मण द्वारा करवाया जाता है, क्योंकि हर किसी को अग्नि स्थापना की अनुमति नहीं होती है। हालांकि कई लोग स्वयं भी हवन करते हैं। आप अपने घर की परंपरा के अनुसार हवन करवाएं।

·         हवन का प्रारंभ अग्नि देव के आह्वान और स्थापना से होता है।

·         अग्नि देवता को भोजन अर्पित करने के हिसाब से आहुति दी जाती है।

·         इसके बाद मनसा आहुति दी जाती है।

·         फिर गृह शांति होम किया जाता है।

·         प्रधान देवता होम- इसके अंतर्गत पहले नर्वाण मंत्र की माला से होम करते हैं, फिर दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय से होम किया जाता है, फिर से नर्वाण मंत्र की एक माला से होम होता है।

·         इसके पश्चात् स्थान देवता का होम, गुगल होम, पीली सरसों का होम, महालक्ष्मी होम , स्वीष्टकृत होम, पूर्णाहुति होम दिया जाता है।

·         फिर वसोधारा दी जाती है और अग्नि विसर्जन के लिए हवन में अक्षत डाले जाते हैं और अग्नि देवता से प्रार्थना की जाती है कि वह अगले शुभ कार्य में दर्शन दें और उसे संपूर्ण करें।

·         अंत में यजमान के मस्तक पर भस्म का तिलक लगाया जाता है। भगवान जी भोग अर्पित किया जाता है, आरती की जाती है, मंत्र पुष्पांजलि अर्पित की जाती है और क्षमायाचना की जाती है।

इस प्रकार हवन संपूर्ण हो जाता है, इस बात का ध्यान रखें कि हवन की अग्नि को खंडित नहीं करना चाहिए। हम आशा करते हैं कि आपके हवन शुभ एवं फलदायी हो।

माँ सिद्धिदात्री को क्या भोग लगाएं और उनका बीज मंत्र (What should be offered to Mata Siddhidatri and her Beej Mantra)

नवरात्रि के आखिरी दिन मां दुर्गा के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा होती है। इस दिन, खासतौर पर मां को तिल का भोग लगाते हैं। ऐसे में आप तिल के लड्डू भी बना सकते हैं या अनार भी अर्पित कर सकते हैं। ऐसा करने से, माँ दुर्गा अनार के दानों की तरह आपकी जिंदगी के अलग- अलग पड़ाव को भी एक कवच प्रदान करती हैं।

माँ सिद्धिदात्री का बीज मंत्र: ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥

माँ सिद्धिदात्री की कथा (Story of Mata Siddhidatri)

पहली कथा एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या कर आठों सिद्धियों को प्राप्त किया था। साथ ही मां सिद्धिदात्री की कृपा ने भगवान शिव का आधा शरीर देवी हो गया था और वह अर्धनारीश्वर कहलाए। मां दुर्गा का यह अत्यंत शक्तिशाली स्वरूप है। शास्त्रों के अनुसार, देवी दुर्गा का यह स्वरूप सभी देवी-देवताओं के तेज से प्रकट हुआ है। कहते हैं कि दैत्य महिषासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवतागणम भगवान शिव और प्रभु विष्णु के पास गुहार लगाने गए थे। तब वहां मौजूद सभी देवतागण से एक तेज उत्पन्न हुआ। उस तेज से एक दिव्य शक्ति का निर्माण हुआ। जिन्हें मां सिद्धिदात्री के नाम से जाते हैं।

दूसरी कथा पौराणिक मान्यता के अनुसार मां सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व सिद्धियां हैं। माता रानी अपने भक्तों को सभी आठों सिद्धियों से पूर्ण करती हैं। मां सिद्धिदात्री को जामुनी या बैंगनी रंग अतिप्रिय है। ऐसे में भक्त को नवमी के दिन इसी रंग के वस्त्र धारण कर मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से माता की हमेशा कृपा बनी रहती हैं।

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