मां कात्यायनी का है नवरात्रि का छठा दिन, व्रत कथा और पूजन विधि Navratri ke chhate din ki katha

 

मां कात्यायनी का है नवरात्रि का छठा दिन, जानें क्या है व्रत कथा और पूजन विधि



Katyayani Devi Puja Vidhi: नवरात्रि पर्व भारतवर्ष में हिंदुओं का प्रमुख पर्व है। आदि शक्ति दुर्गा की अराधना का पर्व नवरात्र है। Navratri  के पहले दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन मां कुष्मांडा और पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में से छठवां रूप है। नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी की पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। वहीं शास्त्रों के अनुसार देवी ने कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, इस कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ गया। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं। शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए। चार भुजा धारी मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिए हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं।

मान्यता है कि इस दिन जो मां की पूजा करते हैं उन्हें सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। मां कात्यायनी को शत्रु और संकटों से मुक्त करने वाली माना गया है। कहा जाता है कि देवी ने ही असुरों से देवताओं की रक्षा की थी। मां ने महिषासुर का वध किया था और उसके बाद शुम्भ और निशुम्भ का भी वध किया था। सिर्फ यही नहीं, सभी नौ ग्रहों को उनकी कैद से भी छुड़ावाया था। आइए जानते हैं कात्यायनी देवी की पूजा विधि, मंत्र, आरती, कथा आदि।

मां कात्यायनी की पूजा विधि ka mahatva:

 

Yu to hum sabhi jante hai ki नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है। इनकी विशेष पूजा से कन्या के विवाह में रही बाधा दूर हो जाती है। कहते हैं कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए बृज की गोपियों ने माता कात्यायनी की पूजा की थी। माता कात्यायनी की पूजा से देवगुरु ब्रहस्पति प्रसन्न होते हैं और कन्याओं को अच्छे पति का वरदान देते हैं।


पूजा विधि

नवरात्रों के छठे दिन प्रात: जल्दी उठ स्नान कर देवी कात्यायनी का ध्यान करना चाहिए।

सबसे पहले गणपति बप्पा की पूजा करें। फिर देवी की तस्वीर या मूर्ति को एक चौकी पर स्थापित करें। फिर एक पुष्प हाथ में लें और निम्न मंत्र का जाप करें।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

इसके पश्चात पहले दिन की तरह कलश और उसमें उपस्थित सभी देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए। कलश पूजा के बाद देवी कात्यायनी की पूजा कर शहद का भोग लगाना चाहिए। हाथों में पुष्प लेकर माता के ऊपर दिए गए मन्त्रों का जाप करते हुए उन पर पुष्प अर्पित करने चाहिए। फिर देवी को लाल वस्त्र, 3 हल्दी की गांठ, पीले फूल, फल, नैवेद्य आदि अर्पित करें।

 देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए. श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए। मां कात्यायनी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करने के बाद फिर मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कात्यायनी सभी प्रकार के भय से मुक्त करती हैं। मां कात्यायनी की भक्ति से धर्म, अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। नवरात्र के छठे दिन लाल रंग के वस्त्र पहनें। यह रंग शक्ति का प्रतीक होता है। इसके बाद दुर्गा चालिसा का पाठ करें। मां के मंत्रों का जाप करें और आरती का पाठ करें।

विधि विधान से मां कात्यायनी की पूजा करने के बाद उनकी आरती करें और आसपास के सभी लोगों में प्रसाद वितरित करें।

 

मां को शहद का भोग प्रिय है

षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है।

मां कात्यायनी की कथा:

महार्षि कात्यायन ने देवी आदिशक्ति की घोर तपस्या की थी। इसके परिणामस्वरूप उन्हें देवी उनकी पुत्री के रूप में प्राप्त हुई थीं। देवी का जन्म महार्षि कात्यान के आश्राम में हुआ था। इनकी पुत्री होने के चलते ही इन्हें कात्यायनी पुकारा जाता है। देवी का जन्म जब हुआ था उस समय महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बहुत ज्यादा बढ़ गया था। असुरों ने धरती के साथ-साथ स्वर्ग में त्राही मचा दी थी। त्रिदेवों के तेज देवी ने ऋषि कात्यायन के घर अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन जन्म लिया था। इसके बाद ऋषि कात्यायन ने मां का पूजन तीन दिन तक किया। इसके बाद दशमी तिथि के दिन महिषासुर का अंत मां ने किया था। इतना ही नहीं, शुम्भ और निशुम्भ ने स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया था। वहीं, इंद्र का सिंहासन भी छीन लिया था। सिर्फ इतना ही नहीं नवग्रहों को बंधक भी बना लिया था। असुरों ने अग्नि और वायु का बल भी अपने कब्जे में कर लिया था। स्वर्ग से अपमानित कर असुरों ने देवताओं को निकाल दिया। तब सभी देवता देवी के शरण में गए और उनसे प्रार्थना की कि वो उन्हें असुरों के अत्याचार से मुक्ति दिलाए। मां ने इन असुरों का वध किया और सबको इनके आतंक से मुक्त किया।

 

पौराणिक कथा

देवी कात्यायनी जी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार देवी कात्यायनी देवताओं, ऋषियों के संकटों को दूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न हुईं। महर्षि कात्यायन ने देवी पालन पोषण किया। जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और ॠषि कात्यायन ने भगवती जी कि कठिन तपस्या, पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलाई।

माना जाता है कि महर्षि कात्यायन जी की इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। देवी ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार की तथा अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के पश्चात शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक कात्यायन ॠषि ने इनकी पूजा की, दशमी को देवी ने महिषासुर का वध किया ओर देवों को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त किया। कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया।



 

नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती हैपौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार महिषासुर नाम का दैत्य अत्याचार करता थाइससे सभी देवी-देवता परेशान हो गएतब त्रिदेवों ने ब्रह्मा, विष्णु, और महेश के तेज से देवी को उत्पन्न कियादेवी ने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लियामहर्षि कात्यायन के घर जन्म लेने के कारण उन्हें कात्यायनी नाम दिया गया

 मां कात्यायनी की पूजा और आराधना से भक्तों को चारों फ़ल (अर्थ, धर्म, काम, और मोक्ष) मिलते हैं. इससे रोग, शोक, संताप, और भय नष्ट हो जाते हैं. जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं

मां कात्यायनी को बुराई का नाश करने वाली देवी माना जाता है. मां कात्यायनी का स्वरूप सफलता और यश का प्रतीक माना गया है. मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं, जो चतुर्भुज हैं. दो भुजाओं में कमल और तलवार धारण करती हैं. मां कात्यायनी को शहद अतिप्रिय है

मां कात्यायनी की पूजा करने से अविवाहित लोगों के विवाह में रही परेशानियां दूर हो जाती हैं. ऐसी मान्यता है कि द्वापर युग में गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए मां कात्यायनी की पूजा की थी

 

नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है। इनकी विशेष पूजा से कन्या के विवाह में रही बाधा दूर हो जाती है। कहते हैं कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए बृज की गोपियों ने माता कात्यायनी की पूजा की थी। माता कात्यायनी की पूजा से देवगुरु ब्रहस्पति प्रसन्न होते हैं और कन्याओं को अच्छे पति का वरदान देते हैं। कात्यायन ऋषि की तपस्या से खुश होकर मां ने पुत्री के रूप में उनके घर जन्म लिया था। इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। मां का शरीर खूबसूरत आभूषणों से सुसज्जित है। मां कात्यायनी ने महिषासुर का वध कर तीनों लोकों को इसके आतंक से मुक्त कराया। मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भव्य है। इनकी चार भुजाएं हैं। मां कात्यायनी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाएं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है। 

मां कात्यायनी व्रत कथा (Maa Katyayani vrat katha)

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महर्षि कात्यायन ने संतान प्राप्ति के लिए मां भगवती की कठोर तपस्या की। महर्षि कात्यायन की कठोर तपस्या से मां भगवती प्रसन्न हुई और उन्हें साक्षात दर्शन दिए। कात्यायन ऋषि ने मां के सामने अपनी इच्छा प्रकट की, इसपर मां भगवती ने उन्हें वचन दिया कि वह उनके घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेंगी। एक बार महिषासुर नाम के एक दैत्य का अत्याचार प्रितिदित तीनों लोकों पर बढ़ता ही जा रहा था। इससे सभी देवी-देवता परेशान हो गए।

तब त्रिदेव - ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात भगवान शिव के तेज से देवी को उत्पन्न किया जिन्होने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया। महर्षि कात्यायन के घर जन्म लेने के कारण उन्हें कात्यायनी नाम दिया गया। माता रानी के घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने के बाद ऋषि कात्यायन ने सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि पर मां कात्यायनी की विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना की। इसके बाद मां कात्यायनी ने दशमी के दिन महिषासुर का वध किया और तीनों लोकों को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।

मां कात्यायनी पूजा विधि (Maa Katyayani Puja vidhi)

नवरात्रि के छठा दिन मां कात्यायनी की पूजा के लिए समर्पित है। ऐसे में इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होने के बाद नीले रंग के वस्त्र धारण करें। इस दिन मां श्रृंगार लाल रंग से करें। इसके बाद विधि-विधान पूर्वक माता कात्यायनी की पूजा करें और उन्हें पीले फूल और शहद अर्पित करें। विधि विधान से मां कात्यायनी की पूजा करने के बाद उनकी आरती करें और आसपास के सभी लोगों में प्रसाद वितरित करें।

 

 

 

 

 

 

                                                    

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