कंजूस बहु की कृष्ण भक्ति |Aadhyatmik kahani | Dharmik Kahani | Bhakti Kahani -

 कंजूस बहु की कृष्ण भक्ति |Aadhyatmik kahani | Dharmik Kahani | Bhakti Kahani -

 

साहिल और सपना एक शहर में एक छोटे से घर में रहते थे साहिल की मां शांति भी उनके साथ रहती थी शांति सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाती घर में पूजा करती और उसके बाद व मंदिर चली जाती थी एक दिन शांति पूजा करने मंदिर गई सपना रसोई में काम कर रही थी तभी साहिल वहां आ जाता है और कहता है सपना जल्दी से एक कप चाय बना दो मुझे ऑफिस जाने में देर हो रही है सपना साहिल से कहने लगी हां अभी बना देती हूं मैं आपसे एक बात कहना चाह रही थी मां जी सुबह घर में पूजा करती हैं उसके बाद मंदिर जाती हैं वहां हर दिन कृष्ण जी को माखन मिश्री का भोग लगाती
(00:46) है इस महंगाई में यह सब ठीक नहीं है साहिल यह सुनकर बोला कोई बात नहीं मां तो पिताजी के सामने भी ऐसे ही भोग लगाती थी अब उन्हें मना करूंगा तो बुरा मान जाएगी इसी तरह समय बीत रहा था लेकिन सपना को हमेशा यह बात खटकती थी कि उसके पति की कमाई से माखन मिश्री का भोग मंदिर में लगाया जाता है एक दिन उसने शांति को समझाते हुए कहा मां जी आप हर दिन मंदिर में इतना सारा माखन मिश्री बांट आती हैं इसकी क्या जरूरत है वैसे भी अब महंगाई काफी बढ़ गई है आपको थोड़ा सोचना चाहिए यह सुनकर शांति बोली बहू यह तुम क्या क्या कह रही हो तुम इतना पैसा इधर उधर खर्च करते
(01:34) हो 00 का पिसा मंगवाते हो उसमें फिजूल खर्ची नहीं होती और मेरे कान्हा जी के भोग में तुम्हें तकलीफ हो रही है यह मत भूलना उन्हीं की कृपा से इस घर में सब चल रहा है सपना उनकी बात सुनकर चुप हो जाती है एक दिन सपना की एक सहेली प्रिया सपना से मिलने आती है वो आकर सपना से उसके हालचाल पूछती है और उसके बाद पूछ है तेरी सास कहां है सपना बताती है वह तो मंदिर गई है उनका बस चले तो मंदिर में ही पूरा घर लुटा दें प्रिया के पूछने पर वह उसे सारी बात बता देती है प्रिया यह सुनकर कहती है बस इतनी सी बात इसका एक उपाय है मेरे पास तुझे मैं एक दुकान बताती हूं तू वहां से
(02:22) मक्खन ले आ इस मक्खन के मुकाबले वो नकली मक्खन आधे पैसों में आ जाएगा एक तो तेरा खर्च आधा हो जाएगा और वह मक्खन मंदिर में किसी को पसंद नहीं आएगा धीरे-धीरे तेरी साज मक्खन का प्रसाद बांटना बंद कर देगी अगले ही दिन सपना मक्खन को नकली मक्खन से बदल देती है दो दिन बाद साहिल और शांती शाम के समय घर में बैठे थे तभी उनके पास मंदिर के पुजारी जी आते हैं शांति उनसे पूछती है आइए पुजारी जी कैसे आना हुआ पुजारी जी बताते हैं मां जी आप यह मक्खन मि श्र का प्रसाद बाटना बंद कर दीजिए आपके मक्खन के प्रसाद को खाकर मंदिर के कई भक्त बीमार पड़ गए हैं तभी साहिल
(03:09) बोला लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है हम तो शुद्ध ताजा मक्खन लेते हैं वही घर में भी इस्तेमाल करते हैं और यदि ऐसा होता तो हम भी बीमार पड़ जाते पंडित जी बोले वह सब मुझे नहीं पता बस आप कल से मक्खन का भोग नहीं लगाएंगे शांति कहने लगी पुजारी जी ऐसा मत कीजिए मेरा वर्षों का नियम टूट जाएगा साहिल भी कहने लगा पुजारी जी अगर ऐसी बात है तो मैं दूसरी दुकान से मक्खन ला देता हूं मेरी मां शुरू से माखन मिशरी का भोग लगा रही है पंडित जी बोले भोग लगाना है तो घर में लगाइए मंदिर में अब भोग नहीं लगेगा उनके जाने के बाद शांति रोने लगती है अगले
(03:56) दिन से व मंदिर में केवल दर्शन करती और भोग में ही लगा देती एक दिन शांति मंदिर गई हुई थी सपना भी घर पर नहीं थी कुछ देर बाद सपना घर आई तो उसने देखा साहिल की तबीयत बहुत खराब है सपना साहिल को अस्पताल ले गई और भर्ती करा दिया वहां डॉक्टर ने बताया आपको पता है इन्होंने नकली मक्खन खाया है जो जहर की तरह इनके पेट में पहुंच गया है तभी शांति भी कहने लगी डॉक्टर साहब लगता है मक्खन में ही मिलावट होगी मंदिर के पुजारी भी यही कह रहे थे आप किसी तरह मेरे बेटे को बचा लीजिए यह सब देखकर सपना रोते हुए कहने लगी मां जी यह सब मेरी कंजूसी के कारण हुआ है कुछ पैसे बचाने के
(04:44) चक्कर में मैंने मक्खन बदल दिया था लगता है इन्होंने वही नकली मक्खन खा लिया यह सुनकर शांति कहने लगी माफी मांगनी है तो जाकर कान्हा जी से मांगो जिनके भोग में मिलावट करके तूने अपने पति की जान को खतरे में डाल दिया सपना मंदिर पहुंच जाती है वहां कृष्ण जी के सामने रो-रोकर माफी मांगने लगती है उसकी बात सुनकर पुजारी जी कहते हैं बेटी तूने अच्छा नहीं किया मैंने बेकार में ही तेरी सीधी साधी सांस को भोग लगाने से मना कर दिया सपना रोते हुए कहने लगी पुजारी जी मुझे माफ कर दीजिए मैं स्वयं काना जी का भोग लगाऊंगी बस एक बार मेरे पति को ठीक कर दीजिए
(05:30) कुछ देर बाद सपना प्रार्थना करके अस्पताल पहुंचती है वहां जाकर देखती है कि साहिल बिल्कुल ठीक हो चुका था तीनों वहां से सीधे कृष्ण जी के मंदिर जाते हैं और अगले दिन से तीनों सुबह मंदिर में माखन मिश्री का भोग लगाते हैं एक गांव में दिनेश नाम का एक व्यापारी अपनी पत्नी और बेटी मीरा के साथ रहता था यह परिवार बहुत खुशहाल था मीरा और उसकी मां कृष्ण जी की पूजा किया करते थे मीरा भी मां के साथ कान्हा जी की सेवा करती थी कुछ समय बाद दिनेश की पत्नी बहुत बीमार हो गई और उसका स्वर्गवास हो गया मीरा का रो-रोकर बुरा हाल था वह अपनी मां से बहुत
(06:14) प्यार करती थी कुछ दिनों बाद दिनेश ने दूसरी शादी कर दी अब घर में मीरा की सौतेली मां पुष्पा आ गई पुष्पा मीरा के साथ बहुत बरा व्यवहार करती थी दिनेश के सामने वह सीधी बन जाती थी और उसके जाते ही मीरा को मारती पीटती और घर का सारा काम करवाती थी मीरा सारा काम करके कृष्ण जी के चरणों में बैठकर मां को याद करके रोती रहती धीरे-धीरे पुष्पा के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे व मीरा को खाने को बहुत कम देती और काम बहुत ज्यादा लेती थी एक दिन पुष्पा ने मीरा को बहुत सारे कपड़े धोने के लिए दे दिए मीरा ने कपड़े धोने शुरू कर दिए और कपड़े ज्यादा होने के कारण व थक कर वहीं
(06:59) पर सो गई सुबह जब उसकी आंख खुली तो उसने देखा सारे कपड़े धुल करर सूख भी गए थे मीरा को कुछ समझ नहीं आया कि यह कैसे हो गया पुष्पा जानबूझकर उसे रात में काम देती जिससे कि वह सो ना सके लेकिन मीरा जब थककर सो जाती तो उसका काम अपने आप हो जाता था मीरा बहुत हैरान थी ना जाने कौन उसकी मदद कर रहा है एक दिन उसने सोने का झूठ नाटक किया और छुपकर देखने लगी कि उसकी मदद कौन कर रहा है तभी उसने देखा कि एक छोटा सा लड़का उसके घर के बाहर बांसरी बजा रहा था और सारा काम अपने आप हो रहा था जब उसने बांसुरी बजानी बंद की तो काम भी हो चुका था उसके बाद वह लड़का चला गया मीरा ने
(07:47) अगले दिन भी यही घटना देखी वह कुछ समझ नहीं पा रही थी एक दिन वह उस लड़के के सामने गई उसे देखकर वो लड़का मुस्कुराने लगा तब मीरा ने कहा तुम कौन हो तब उस लड़के ने कहा मैं यही कृष्ण जी के मंदिर के पास रहता हूं और मुझे कान्हा जी ने तुम्हारी मदद के लिए भेजा है यह सुनकर मीरा बहुत खुश हुई कि कान्हा जी उसका कितना ध्यान रखते हैं तभी उस लड़की ने कहा बहन मुझे भूख लगी है कुछ खाने को दे सकती हो क्या मीरा ने कहा भैया तुम क्या खाओगे तभी उस लड़की ने कहा मैं तो केवल मा और मिश्री ही खाता हूं मीरा ने मंदिर से माखन और मिश्री लाकर उसे दे दिया और उस लड़के
(08:36) ने मजे से खा लिया अब ऐसा हर दिन होने लगा मीरा मंदिर के प्रसाद में से थोड़ा सा माखन और मिश्री उस लड़के के लिए रोज छुपा कर लाती फिर वह लड़का रात को आता और बांसुरी बजाता बाद में माखन मिश्री खाकर चला जाता एक दिन पुष्पा ने मीरा को माखन मिश्री छुपाते हुए देख लिया उसने सोचा रात को यह माखन मिश्री खा लेती है तभी यह सारा काम करके भी थकती नहीं उसने मीरा से पूछा तो मीरा ने उसे सब कुछ सच बता दिया पर पुष्पा को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ उसने मीरा को बहुत मारा मीरा रोते रोते कान्हा जी को याद करके सो गई उस दिन पुष्पा ने माखन मिश्री भी अपने पास रख
(09:21) लिया रात को जब मीरा ने बांसुरी की आवाज सुनी तो उसकी नींद खुली उसने उस लड़के को सारी बात बता दी उस लड़के ने कहा कोई बात नहीं कुछ दिनों बाद जन्माष्टमी आने वाली है तुम उस दिन मंदिर में आ जाना वहां कृष्ण जी तुम्हारे सारे कष्ट मिटा देंगे कुछ दिन बाद जन्माष्टमी का दिन आया मीरा ने सुबह जल्दी उठकर कान्हा जी को नहलाया उनको नई पोशाक पहनाई कुछ देर बाद दिनेश पुष्पा और मीरा को लेकर मंदिर में भगवान के दर्शन करने गया तभी पुष्पा मंदिर की सीढ़ियों पर ठोकर खाकर गिर गई उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था उसने मीरा को आवाज
(10:06) लगाई तब दिनेश और मीरा ने मुड़कर देखा तो पुष्पा को उठाया पर उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था दिनेश ने पुष्पा को एक कोने में बिठाया तब मीरा ने कहा पिताजी मैं कृष्ण जी की पूजा करके आती हूं उनका प्रसाद खाके मां ठीक हो जाएंगी यह कहकर मीरा कृष्णा जी के सामने पहुंच गई उसने कान्हा जी के दर्शन किए और मां को ठीक करने के लिए प्रार्थना की वह आंखें बंद कर प्रार्थना कर रही थी कुछ समय बाद उसने आंखें खोलकर देखा तो उसे कान्हा जी की मूर्ति के अंदर वही लड़का दिखा जो रोज उसके घर आकर बांसुरी बजाता था मीरा की आंखों से आंसू बहने लगे वह समझ गई कि कान्हा जी ही रोज
(10:52) उसकी मदद करने आते थे और उन्होंने ही मां को दंड दिया है उसने कान्हा जी से प्रार्थना की हे गिरधर गोपाल मेरी मां जैसी भी है पर उन्हें ठीक कर दो पुष्पा और दिनेश दोनों पीछे खड़े उसकी बातें सुन रहे थे पुष्पा ने मीरा को गले लगा लिया और बोली बेटी मुझे माफ कर दे मैंने तेरे साथ बहुत बुरा किया फिर भी तू मेरी आंखें ठीक करना चाह रही है फिर पुष्पा और दिनेश भगवान के चरणों में नतमस्तक हो गए तब पुष्पा ने सर उठाकर आंखें खोली तो उसे सब दिखने लगा वह खुशी से झूम उठी और कान्हा जी के पैर पकड़कर उनसे माफी मांगने लगी इसके बाद पूरा परिवार खुशी-खुशी घर आ गया कान्हा जी
(11:41) की कृपा से यह परिवार पहले की तरह खुशहाल हो गया कनकपुर गांव में भगवान विष्णु का एक मंदिर था तथा इस मंदिर के आगे एक सुंदर और काफी बड़ा बाग था वहीं एक छोटी सी कुठिया में बाग का माली जीतो अपनी पत्नी रमा के साथ रहता था जीतो सारे दिन बाग की देखभाल करता पेड़ों को पानी देता और रमा घर का काम करती थी घर का काम समाप्त होने के बाद वो मंदिर में जाकर भगवान विष्णु के भजन गाया करती थी एक दिन वो एक पेड़ के नीचे बैठी भजन गा रही थी तभी उसे एक मोर दिखाई दिया व रमा के आसपास घूम रहा था और अपने पंख फैलाकर नाच रहा था रमा ने मोर को नाचते देखा तो उसे बहुत अच्छा लगा
(12:30) जब तक रमा भजन गाती रही मोर वहीं घूमता रहा और उसके बाद वह कहीं चला गया शाम को रमा ने जीतो को मोर के बारे में बताया तो उसने कहा मैंने तो कोई मोर नहीं देखा अगले दिन जब रमा भजन गाने बैठी तो वह मोर फिर से आ गया और भजन सुनकर नाचता रहा फिर वहां से चला गया रमा भजन समाप्त होने पर उसे ढूंढती रही लेकिन वो मोर कहीं नजर नहीं आया अगले दिन रमा मंदिर गई और मंदिर के पुजारी से मोर के बारे में पूछा पुजारी ने कहा बेटी मैंने तो कोई मोर नहीं देखा हो सकता है पास के जंगल से आया हो तब रमा ने कहा लेकिन बाबा मैं जब भजन गाती हूं तब वह यही आता है और जैसे ही भजन पूरा हो
(13:22) जाता है वह चला जाता है उसके बाद कहीं नजर नहीं आता तब पुजारी बाबा ने कहा वह कोई साधु या संत होगा जिसका जन्म मोर के रूप में हुआ होगा जब भी वह भगवान श्री विष्णु के भजन सुनता होगा तो वह झूमने लगता होगा इसी तरह कुछ दिन और बीत गए और वह मोर हर दिन भजन सुनने आने लगा एक दिन रमा ने जीतू से कहा वो मोर हर दिन भजन सुनने आता है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा तब जीत ने कहा अरे बाग है पक्षी उड़ते उड़ते आ जाते हैं ऐसे ही मोर आ जाता होगा तुझे लगता है तेरा भजन सुनने आता है हो सकता है वह खाने की तलाश में आता हो अगले दिन जब वह मोर आया तो रमा ने बीच
(14:12) में ही भजन गाना बंद कर दिया और मोर के सामने जाकर बैठ गई उसे देखकर मोर जाने लगा तब रमा ने कहा हे पक्षीराज मयूर तुम साधारण मयूर नहीं हो मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहती हूं तुम कौन हो यह सुनकर वह रोने लगा उसने इंसान की आवाज में कहा माता मैं पिछले जन्म में एक शिकारी था जंगल से मोर पकड़कर उनके पंख निकालकर बाजार में बेचा करता था एक बार जंगल में मैंने एक मोर पकड़ा उसके पंख निकालने के कारण वह घायल हो गया और मरने लगा तब उसने मुझसे कहा हे दुष्ट शिकारी तूने धन के लालच में ना जाने कितने मोरों को मारा होगा हम हमारे पंख निकालने के कारण जो
(15:01) कष्ट हमें होता है वह तू कभी नहीं समझ सकता इसलिए मैं तुझे श्राप देता हूं कि अगले जन्म में तू मोर बने और तुझे भी इसी प्रकार कष्ट हो यह कहकर व रोने लगा तब रमा ने पूछा तुमने जो किया उसकी सजा तो तुम्हें मिल रही है लेकिन तुम इंसान की तरह कैसे बोल लेते हो और इस श्राप से तुम्हें कैसे मुक्ति मिल सकती है तब उस मोर ने कहा जब मेरे पंख निकालता है तो मुझे बहुत दर्द होता है लेकिन इन कष्टों को सहते हुए भी जब से मेरा जन्म हुआ है मैंने श्री हरि विष्णु नाम का जाप करना शुरू कर दिया इसी जाप के कारण मेरे कष्ट कम हो गए आपको भजन गाता देखकर मेरा मन
(15:47) नाचने को बेचैन हो जाता है भगवान श्री विष्णु की मुझ पर बहुत कृपा है मैं कभी भी अपना रूप बदल सकता हूं यह कहकर वो सुंदर लड़के के रूप में प्रकट हो जाता है उसे देखकर रमा बहुत खुश होती है और पूछती है किंतु तुम किसी और को क्यों नहीं दिखाई देते तब मोर रूपी लड़के ने कहा मैं इंसान के रूप में रहता हूं किंतु जब कोई श्री हरि विष्णु के नाम का गुणगान करता है तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाता और मोर के रूप में नाचने लगता हूं रमा ने आगे पूछा तुम्हें श्राप से कैसे मुक्ति मिल सकती है क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकती हूं तब मोर ने कहा माता यह बहुत कठिन है यदि आप
(16:34) अपने पति के साथ एक सप्ताह तक बिना अन्न जल ग्रहण किए यज्ञ का अनुष्ठान करें और मुझे पुत्र के रूप में पाने की कामना करें तो भगवान विष्णु की कृपा से मुझे मोर के जन्म से मुक्ति मिल जाएगी और मैं आपको पुत्र के रूप में प्राप्त हो जाऊंगा रमा ने शाम को यह बात जीत को बताई जीत ने मंदिर के पुजारी से बात की और यज्ञ का अनुष्ठान किया सात दिन लगातार यज्ञ चलता रहा सातवें दिन यज्ञ की अंतिम आहुति के साथ मोर ने अपने प्राण त्याग दिए और नौ महीने बाद रमा के गर्भ से एक तेजस्वी बालक के रूप में जन्म लिया भगवान विष्णु की कृपा से हर प्राणी को कष्ट से मुक्ति मिल
(17:20) जाती है मित्रों आपको यह कहानी कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं चैनल पर नए हैं तो इसे सब्सक्राइब जरूर कर लें धन्यवाद

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