भगवान और गरीब ब्राह्मण || adhyatmik kahaniya | dharmik katha | dharmik kahani | Pauranik Katha -

 भगवान और गरीब ब्राह्मण || adhyatmik kahaniya | dharmik katha | dharmik kahani | Pauranik Katha - 


दोस्तों आज हम आपको एक कहानी का श्रवण करा रहे हैं हमारी आज की कहानी है गरीब ब्राह्मण और भगवान प्राचीन काल की बात है किसी गांव में एक निर्धन ब्राह्मण रहा करता था वह ब्राह्मण सीधा साधा भोला भाला और बहुत ही सरल स्वभाव का था जब तक वह कवारा था तब तक तो उसका गुजार आराम से चल रहा था लेकिन अब उसकी शादी हो चुकी थी इसलिए ब्राह्मण की परेशानी बढ़ने लगी क्योंकि गृहस्ती का बोझ बढ़ने से खर्च भी बढ़ गए और उसे अपने बाप दादा से जो पूजी में मिला था वह तो उसने पूजा आराधना शास्त्रों का ज्ञान बस इसी चीजों में सब कुछ गवा दिया ब्राह्मण लोगों के दरवाजे पर

(01:01) भजन और श्लोक सुनाते और भिक्षा मांगता कहीं से उसे पाव भर अनाज मिल जाता और कहीं से फल ऐसे ही जुगाड़ करके वह ब्राह्मण अपना और अपनी पत्नी का खर्च चलाता था जिस दिन भिक्षा में कुछ भी नहीं मिलता तो दोनों पति-पत्नी भगवान को उलाना देते और भूखे पेट ही सो जाते वैसे तो उसकी पत्नी भी बड़ी सीधी सादी और सरल स्वभाव की थी कभी कोई शिकायत नहीं करती ी परंतु निरंतर भूखे रहने के कारण कभी कवार उसे अपनी पति पर क्रोध भी आ जाता ऐसे ही एक बार की बात है बहुत तेज बरसात होती है और ब्राह्मण देवता को भिक्षा में कुछ नहीं मिला और दो दिन और दो रात में दोनों

(02:03) ब्राह्मण और ब्राह्मणी भूखे ही रहे और तीसरे दिन जब बरसात बंद हुई और सवेरे सवेरे जब उजाला हुआ तो उसकी पत्नी को ब्राह्मण की सूरत देखकर तरस आ गया ब्राह्मण की पत्नी बोली देखो अब आप अपनी जीविका बढ़ाने का कुछ साधन ढूंढो क्योंकि ऐसे भिक्षा मांगने से काम नहीं चलेगा गांव से बाहर जाओ और कुछ काम कर लो तब वापस इस गांव में आओ ब्राह्मणी की बात सुनकर ब्राह्मण बोला हां भाग्यवान तुम सही कह रही हो मैं कल ही कुछ काम ढूंढने के लिए दूसरे गांव की ओर जाता हूं अब ब्राह्मण सुबह सुबह जल्दी उठ गया स्नान आदि से निवृत होकर भगवान की पूजा अर्चना करके अपनी फटी धोती पुराना

(03:04) कुर्ता पहना झोला लटकाए और झोपड़ी से बाहर आया अच्छा मैं जाता हूं भाग्यवान जय श्री कृष्णा जल्दी आना ब्राह्मणी ने उत्तर दिया और ब्राह्मण निकल पड़ा अपने घर से गांव से निकाल निकला और जंगल से होते हुए कोसो चलता ही गया जंगल भी बहुत बड़ा था ख होने का नाम ही नहीं ले तभी उसने एक बड़ा ही सुंदर सरोवर देखा शीतल जल से भरा भाती भाती के पक्षी उसमें जल क्रीड़ा कर रहे सरोवर के किनारे ही एक सोने का मंदिर ब्राह्मण को दिखाई दिया उस मंदिर को देखकर उसे भगवान के दर्शन करने की इच्छा हुई और वह जल्दी जल्दी मंदिर में घुस गया परंतु यह क्या मंदिर के अंदर भगवान का

(04:06) सिंहासन तो खाली था उसने सोचा इतना सुंदर मंदिर पर यहां भगवान की मूर्ति तो है ही नहीं दर्शन हो जाते तो कितना अच्छा होता ब्राह्मण उदास हो गया वह मंदिर के बाहर आया तो उसने देखा कि कुछ ही दूर एक बड़े से वृक्ष के पीछे से प्रकाश निकल रहा है यह देखकर वह आश्चर्य चकित रह गया उत्सुकता वश जब ब्राह्मण ने पास आकर देखा तो ब्राह्मण आश्चर्य और आनंद से भर गया उस पेड़ के नीचे एक चांदी का सुंदर चबूतरा बना हुआ [संगीत] था और उस पर मखमल की चादर पर मंदिर से निकलकर साक्षात भगवान नारायण और माता लक्ष्मी बैठे चौसर खेल [संगीत] रहे ब्राह्मण ने भगवान को दंडवत प्रणाम

(05:08) किया ब्राह्मण को देखते ही भगवान हसे और उसे बुलाकर वही अपने पास बैठने को कहा बेचारा ब्राह्मण तो साक्षात भगवान को देखकर अभ भूत था वह अपने इष्ट नारायण और माता लक्ष्मी के रूप ध्यान में डूब गया प्रसन्नता और आनंद से उसके मुख से बोल नहीं फूट र ब्राह्मण वही नारायण के चरणों के पास बैठकर उनका चौसर का खेल देखने लगा खेलते खेलते दोपहर हो गई तब भगवान नारायण ने पूछा हे ब्राह्मण देवता आपने बड़ी तन्मयता से चौसर का खेल खेला है अब बताओ हम दोनों में से कौन जीता और कौन हरा तब ब्राह्मण ने देखा 16 श्रृंगार किए माता लक्ष्मी सिर से पैरों तक माणिक और

(06:09) मोतियों से लदी हुई है उनके बोलने और हसने से चमकते मोती झड़ रहे हैं वही स्वर्ण मुद्राओं का ढेर लगे जा रहा है फिर ब्राह्मण ने नारायण की ओर देखा पीत वस्त्र पीतांबर पहने नारायण के हाथों में शक चक्र और कुछ भी नहीं ब्राह्मण ने हाथ जोड़कर कहा मुझे माफ करें प्रभु जीती तो माता लक्ष्मी है भगवान नारायण बोले अच्छा ब्राह्मण देवता चलो जो आपने कहा हमने वही माना यह कहकर नारायण मुस्कुराए ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी प्रसन्न हो गई उन्होंने अपने हाथ का भारी रत्न ज कंगन उतारा और ब्राह्मण को देते हुए कहा यह लो ब्राह्मण देवता मैं तुम पर बहुत प्रसन्न

(07:08) हो यह ले जाओ और अपने जीवन को सफल बनाओ ब्राह्मण ने प्रसन्नता पूर्वक वह कंगन लपक लिया और आनंद विभोर होकर बारंबार नमन करते हुए प्रसन्नता से अपने गांव की तरफ चल दिया घर की तरफ वापस जाते समय ब्राह्मण को रास्ते में एक तालाब दिखाई दिया ब्राह्मण ने सोचा नहाता धोता जाऊं और संध्या का तर्पण करता जाऊ यह सोचकर अपने कपड़े उतार करर उसने तालाब के किनारे रखे और लक्ष्मी जी द्वारा दिए गए रत्न जड़ित कंगन को भी वहां रख दिया और वह तालाब में नहाने के लिए उतरा और डुबकी लगाई कि इतने में ही एक मछली हुई वहां आई और कपड़े पर रखे उस चमकते कंगन को

(08:05) निगल गई जब ब्राह्मण नकर तालाब से बाहर आया तो उसे वह कंगन दिखाई नहीं दिया यह देखकर ब्राह्मण बड़ा दुखी हुआ पर अब क्या हो सकता था बड़े दुखी मन से घर गया दुखी मन के कारण उसने ब्राह्मणी से कुछ भी बात नहीं की और मुंह छिपाकर भूखा ही सो गया दूसरे दिन सुबह हुई ब्राह्मण फिर से नहा धोकर भगवान की पूजा अर्चना करे और अपनी फटी धोती पुराना कुर्ता पहना झोला लटकाया और झोपड़ी से बाहर आया अच्छा मैं जाता हूं भाग्यवान ब्राह्मणी बोली जल्दी आना जय श्री कृष्णा और यह कहकर फिर से निकल पड़ा वह अपने घर से गांव से निकला और जंगल से होते हुए

(08:59) जल्दी जल्दी वह ब्राह्मण उसी मंदिर के पास पहुंचने को आतुर था चलते चलते उसे वही सोने का मंदिर दिखाई दिया उसने देखा तो उस बड़े से पेड़ के नीचे चांदी के सुंदर चबूतरे पर मखमल की चादर पर भगवान नारायण और माता लक्ष्मी बैठे हुए आज फिर से चौसर खेलने खेलते दिखे भगवान नारायण ने फिर ब्राह्मण को देखा और उसे देखते ही भगवान ने उसे फिर से बुलाकर अपने पास बिठा लिया ब्राह्मण ने लक्ष्मी नारायण को दंडवत नमन किया आज भी खेलते खेलते दोपहर हो गई जब चौसर का खेल समाप्त हुआ तो भगवान नारायण ने पूछा कहो ब्राह्मण आज कौन जीता और कौन हारा ब्राह्मण व खोया हुआ कंगन याद कर रहा

(10:02) था उसने कहा महाराज बुरा तो आप मानना मत माता लक्ष्मी जीती और आप हार गए यह सुनकर भगवान नारायण मुस्कुराए और बोले कि हे ब्राह्मण देवता जब तुमने कहा है तो हमने माना लक्ष्मी जी ने फिर प्रसन्न होकर उसे अपने कमर की पोटली से पांच बहुमूल्य रत्न निकाल कर दिए ऐसे बड़े और बहुमूल्य रत्न ब्राह्मण ने अपने जीवन में कभी देखे भी नहीं उसका मन प्रसन्नता से उछल रहा था उन रत्नों को लेकर ब्राह्मण बड़े प्रसन्न मन से अपने घर की ओर रवाना हुआ उसे लगा आज मेरी दरिद्रता दूर हो गई वह तालाब के पास पहुंचा ब्राह्मण को कंगन वाली बात याद सो वह ब्राह्मण वहां रुका ही नहीं वह चला

(11:04) गया और सीधे अपने घर पहुंचा और ब्राह्मणी से बोला ब्राह्मणी दरवाजा खोलो ब्राह्मणी ने जैसे ही दरवाजा खोला ब्राह्मण ने ब्राह्मणी को प्रसन्न करने के लिए वह बहुमूल्य रत्न उसके आंचल में डाल दिए परंतु यह क्या वह बहुमूल्य रत्न अंगारे बन गए दिन भर की भूकी प्यासी ब्राह्मणी भिक्षा की प्रतीक्षा में थी यह देखकर वह गुस्से से लाल पीली हो गई और उन अंगारों को ले जाकर चूल्हे में गिरा दिया कि इतने में ही एक पड़ोसन आई और उसने कहा कि मेरे चूल्हे की आग बुज गई मुझे थोड़ी सी आग दे दो ब्राह्मणी ने चूल्हे की तरफ इशारा किया और कहा चूहे से

(11:58) ले जाओ पड़ोसन अंगारों को लेकर चली गई इधर रोती कोसती कई दिन से भूख प्यासी वह ब्राह्मणी पड़ोसी से एक मुठी चावल उधार मांग कर लाई और अपना और ब्राह्मण का पेट भरा और दोना दोनों बिना बोले बताए एक दूसरे की ओर पीट करके सो गई तीसरे दिन का प्रभात होने को था प्रतिदिन की ही भाती ब्राह्मण ने धोकर भगवान की पूजा अर्चना करे अपनी फटी धोती और पुराना कुर्ता पहना झोला लटकाया और झोपड़ी से बाहर आया अच्छा मैं जाता हूं ब्राह्मणी ने उत्तर दिया जय श्री कृष्णा जल्दी आना और आज कुछ लेकर ही आना ब्राह्मण ने जल्दी जल्दी हा में सिर हिलाया और निकल पड़ा गांव से निकला और

(12:56) जंगल से होते हुए वह ब्राह्मण आज फिर उसी मंदिर के पास जा पहुंचा बड़े से पेड़ के नीचे उसे चांदी के सुंदर चबूतरे पर मखमल की चादर पर भगवान नारायण और माता लक्ष्मी बैठे हुए आज फिर से चौसर खेलते देखे भगवान नारायण ने फिर ब्राह्मण को देखा और उसे देखते ही भगवान ने उसे फिर से बुलाकर अपने पास बिठा लिया ब्राह्मण ने माता लक्ष्मी और भगवान नारायण दोनों को दंडवत होकर प्रणाम किया और जब खेलते खेलते दोपहर हो गई तो भगवान नारायण ने पूछा कहो ब्राह्मण देवता कौन जीता और कौन हरा ब्राह्मण वही खोया हुआ कंगन और पांचों रत्नों को याद कर रहा

(13:49) था और उसने कहा प्रभु सच बात तो यह है कि माता लक्ष्मी जीती और आप हारे भगवान नारायण फिर मुस्कुराए और बोले ठीक है ब्राह्मण देवता आपने कहा और हमने माना लक्षमी जी भी यह सुनकर प्रसन्न हो गई उन्होंने प्रसन्न होकर अपने गले का नौलखा हार उतार कर ब्राह्मण को दे दिया ब्राह्मण प्रसन्नता से उसे लेकर अपने घर की ओ चल दिए ब्रहण अपने घर हीने नौ अपनी ब्राह्मणी के गले में डाल दी ब्राह्मणी ने जब दर्पण में देखा तो उसे उस हार के स्थान पर काला सांप दिखाई दिया वह नौलक का हार सांप में बदल गया अब उस ब्राह्मणी को बहुत तेज क्रोध आ गया गुस्से

(14:50) में लाल पीली हो गई और उस सर्प रूपी हार को बाहर फेंक दिया आज फिर से वे दोनों भूखे ही सो गए और उनकी बातचीत भी बंद हो गई अब कालचक्र कभी रुका है क्या चौथा दिन भी आ गया फिर सुबह हुई ब्राह्मण ने नहा धोकर भगवान की पूजा अर्चना करे अपनी फटी धोती और पुराना करता कुर्ता पहना झोला लटकाए और झोपड़ी से बाहर आया मैं जाता हूं देखो कुछ मिले तो लेकर आता हूं अच्छा तो काना का नाम लेकर जाना और जल्दी आना आज तो जजमान को भजन भी सुना देना और कुछ भी जरूर लेकर आना ब्राह्मणी ने झोपड़ी के अंदर से कहा हां ठीक है भाग्यवान कहकर ब्राह्मण फिर निकल पड़ा अपने गंतव्य की

(15:45) ओर गांव से निकला और जंगल से होते हुए व ब्राह्मण आज फिर उसी मंदिर के पास जा पहुंचा सोने का मंदिर सामने ही था उस बड़े से पेड़ के नीचे देखा तो आज भगवान नारायण और लक्ष्मी वहां नहीं थी ब्राह्मण को लगा आज तो बड़ा नुकसान हो गया ब्राह्मण लक्ष्मी नारायण के मंदिर में चला गया आज नारायण और लक्ष्मी ना तो मंदिर में दिखाई दिए और ना ही पेड़ के नीचे कि तभी अचानक उसने देखा तो उसे दूर से एक विशाल गरुड़ जी उड़ते हुए वहां से चले आते हुए दिखाई दिए माता लक्ष्मी जी नारायण के साथ उस पर से नीचे उतरी वे दोनों आज फिर से उसी चबूतरे पर आकर बैठ गए और चौसर का खेल आरंभ हुआ

(16:43) ब्राह्मण चुपचाप बैठा खेल देखता रहा खेल समाप्त हुआ और निर्णय का समय आया तो भगवान नारायण ने ब्राह्मण की ओर देखा ब्राह्मण तुरंत बोल पड़ा क्षमा करना प्रभु जीती तो माता लक्ष्मी और आप हारे हैं भगवान नारायण फिर मुस्कुराए और बोले ठीक है ब्राह्मण देवता आपने कहा और हमने माना लक्ष्मी जी अत्यंत प्रसन्नता से अपनी कमर से भंडार की चाबी निकाली और ब्राह्मण को देते हुए कहा लो ब्राह्मण देवता मंदिर के मेरे भंडार ग्रह से तुम जितना उठाकर ले जा सकते हो ले जाओ पूजा पाठ करो जप करो यज्ञ करो और जितना चाहे खर्च करो अब ब्राह्मण देवता ने कुछ देर तक सोच

(17:37) विचार किया फिर दौड़ भागकर पास के गांव से एक बेलगाड़ी वाले को भाड़े पर लिया और लक्ष्मी जी के भंडार ग्रह से धन संपत्ति और रत्नों से भरे मटके उठाकर उसकी गाड़ी में रखवा लिए और अंत में एक बड़ा सा सोने के आभूषणों से भरा घड़ा उठाकर अपने माथे पर रख लि महालक्ष्मी जी को प्रणाम करके अपने घर की तरफ रवाना हुआ अभी ब्राह्मण देवता घर की तरफ जा ही रहे थे कि जोर की आधी चली तो बैलगाड़ी वाला उस भयानक आंदी में कहीं खो गया ब्राह्मण के सिर पर रखा सोने के आभूषणों से भरा घड़ा अंधेरे में कहीं गिर गया ब्राह्मण देवता बड़े दुखी मन से फिर

(18:29) खाली हाथ घर वापस लौट आए अब ब्राह्मणी ने हंसकर पूछा क्यों नाथ आज कल आप सुबह सुबह कहां चले जाते हैं पहले तो रोज शेर दो शेर अनाज ले आते थे लेकिन आजकल तो कभी अंगारे लाते हो तो कभी सांप लेकर आते हो क्या हो गया है अब ब्राह्मण देवता ने दुखी होकर इतने दिनों की अपनी राम कहानी ब्राह्मणी को सुना दी सारी बातें जानने के बाद ब्राह्मणी बोली यही तो गलती कर गए आप आप रोज ही धन के लोभ में लक्ष्मण जी को जीता हुआ और भगवान नारायण को हारा हुआ बता देते हैं यह ठीक तो है परंतु आपको पता है नारायण की इच्छा और उनके साथ के बिना लक्ष्मी जी कहीं नहीं रह सकती जहां नारायण

(19:27) नहीं रुकते मा लक्ष्मी जी वहां नहीं दिखती इसलिए आज मेरा कहना मानकर फिर से जाइए और आज जब खेल पूरा हो तो भगवान नारायण को जीता हुआ बताना ब्राह्मणी की बात सुनकर ब्राह्मण देवता बोले अरे भाग्यवान अपने नारायण तो बस फक्कड़ है उनके पास तो हमें देने के लिए कुछ भी नहीं है ब्राह्मणी बोली कि भगवान के दर्शन हो जाए उनकी कृपा मिल जाए इसके बाद हमको और कुछ चाहिए भी नहीं नाथ मेरी बात मानकर आज कुछ भी हो पर आज जीता हुआ भगवान नारायण को ही बताइए उसके बाद देखि उनकी लीला ब्राह्मणी की बात सुनकर ब्राह्मण चुप हो गया अब पांचवा दिन प्रारंभ हुआ प्रातः काल

(20:26) में ब्राह्मण रोज की तरह नहा धोकर तैयार हु भगवान की पूजा अर्चना करे अपनी फटी धोती और कुर्ता पहना झोला लटकाए और झोपड़ी से बाहर आया वापस वही शब्द दोहराया अच्छा मैं चलता हूं भाग्यवान ब्राह्मणी ने अंदर से उत्तर दिया जय श्री कृष्णा जल्दी आना और जैसा मैंने कहा है वैसा ही करना ब्राह्मण ने जल्दी जल्दी हा में सिर हिलाया और फिर निकल पड़ा अपने गंतव्य स्थान की ओर ब्राह्मण मंदिर के पास पहुंचा बड़े से पेड़ के नीचे उसी चांदी के सुंदर चबूतरे पर बिछी मखमल की चादर पर भगवान नारायण और माता लक्ष्मी जी बैठे हुए हैं प्रतिदिन की ही भाति चौसर खेलते

(21:22) दिखे आओ आओ ब्राह्मण देवता यहां आकर मेरे पास बैठ अब ब्राह्मण देव उनके पास बैठे बैठे देखते रहे और मन ही मन श्री हरि श्री हरि गुण बनाते रहे और याद करते रहे उन बातों को जो बातें ब्राह्मणी ने उससे कही [संगीत] थी अब चौसर का खेल पूरा हुआ तो भगवान नारायण ने फिर पूछा हां जी ब्राह्मण देवता बताओ तो आज के खेल में कौन जीता और कौन हारा ब्राह्मण ने कहा हे जगत के स्वामी आज तो आप जीते और माता लक्ष्मी जी हार गई यह सुनकर भगवान नारायण को बड़ा आश्चर्य हुआ और लक्ष्मी जी थोड़ी नाराज हो गई भगवान नारायण ने पुनः बड़े ध्यान से ब्राह्मण का चेहरा

(22:20) देखा और बोले क्या कहते हो ब्राह्मण देवता अभी तो सोच लो एक बार फिर से क्योंकि मेरे पास तो तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं भगवान नारायण की बात सुनकर ब्राह्मण बोले महाराज आज तो आप ही जीते हैं और माता लक्ष्मी हारी है ठीक है ब्राह्मण आपने कहा और हमने हमने माना यह कहकर भगवान नारायण मुस्कुराए और खड़े होकर भगवान नारायण ने अपना आसन झाड़ा तो छन से आसन में से ताब का सिक्का निकला मेरे पास तो यही सिक्का निकला है इसे ही ले लो ब्राह्मण देवता पर अपना मन मत दुखाना आज गांव के बाहर जो भी मिले उसे घर ले जाना और अपना काम चलाना ब्राह्मण ने बड़े दुखी मन से वह

(23:20) सिक्का ले लिया अब उसको ब्राह्मणी पर बड़ा क्रोध आ रहा कि ऐसे फालतू की सलाह दी सलाह देती है अगर माता लक्ष्मी जी को जिता तो पता नहीं क्या क्या मिलता फिर भी उसने अपने मन को मारते हुए बड़ी श्रद्धा से भगवान नारायण और लक्ष्मी जी को प्रणाम किया और दुखी होते हुए अपने घर की ओर चल पड़ा रास्ते में सोचता जा रहा था कि इस एक ताबे के सिक्के से क्या मिलेगा खैर अब क्या हो सकता था कह दूंगा उस मूर्ख से जैसा तुमने कहा था मैंने वैसा ही किया अब तू जाने और तेरा काम जाने मैं गांव के बाहर पहुंचा एक मछली बेचने वाला चिल्ला चिल्ला कर बोल रहा था मछली ले लो मछली ले

(24:17) लो ब्राह्मण ने सोचा अब ब्राह्मण की जात मछली लेकर क्या करूंगा परंतु भगवान नारायण ने कहा था कि गांव के बाहर जो भी मिले उसे लेकर ही घर जाना और वैसे भी यह तांब का सिक्का किसी काम का तो है नहीं ब्राह्मण ने यही सोचकर उस एक सिक्के से एक मछली खरीद ली और लड़खड़ाते हुए अपने घर की तरफ चल दिया घर के बाहर उसने वह मछली रख दी और जैसे ही उसने अपनी झोपड़ी में प्रवेश किया कि जोर का एक तूफान सा आया और उस झोपड़ी के स्थान पर एक बड़ा सा महल बना गया बाहर हाथी घोड़े और सेवक दिखाई देने लगे घर में अचानक आनंद ही आनंद ब्राह्मण और ब्राह्मणी सुंदर

(25:15) वस्त्रों और गहनों में लद गए पड़ोसन ने जब यह सब ठाट वाट देखे तो दौड़ती हुई आई और बोली मैं तो उस दिन तुम्हारे घर से आग मांग कर ले गई लेकिन उसमें मुझे पांच रत्न मिले थे अब मैं समझी तुम लोग इतने धनवान जो हो इसलिए अपने रतन को चूहे में रखते हो ऐसा लगता है कि तुम मेरी नियत की परीक्षा ले रही ब्राह्मणी बहन यह लो अपने रत्न वापस लो और अपनी मित्रता बनाए रखो बस उसने ब्राह्मणी के आंचल में वह पांच बहुमूल्य रत्न डाल दिए तभी मैं बेलगाड़ी वाला मकान ढूंढते ढूंढते वहां आया और कहने लगा बहुत थक गया हूं पंडित जी आपको ढूंढ दे ढूंढते अपना माल ले लो और मुझे मेरा भाड़ा

(26:14) दे दो घर के बाहर से ब्राह्मण को नौ लखा हार भी मिल गया ब्राह्मण ने जो मछली खरीदी थी उसने वह सुंदर कंगन भी उगल दिया जो माता लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण को दिया था ब्राह्मण और ब्राह्मणी के अब सुख के दिन आ गए थे एक दिन ब्राह्मणी ने कहा कि हम लोगों को लक्ष्मी नारायण का धन्यवाद तो करना ही चाहिए आपको उनका मंदिर तो मालूम ही है मुझे भी वहां ले चलिए मुझे भी दर्शन करने हैं ब्राह्मण को बात सही लगी और वे दोनों सुबह सवेरे उठे धोए पूजा अर्चना की ब्राह्मण ने सुंदर पीतांबर पहना हाथ में सोने का कमंडल लिया चांदी की छड़ी ली और चलने को तैयार हो

(27:11) गया ब्राह्मणी ने सोने की जरी वाली साड़ी पहनी लक्ष्मी जी वाला कंगन पहना और वही नौ लख का हार भी गले में डाल लिया और दोनों सजधज कर निकल पड़े अपने गंतव्य की ओर और कुछ देर बाद दोनों उसी मंदिर के पास पहुंच गए ब्राह्मण और ब्राह्मणी को आता देखकर माता लक्ष्मी जी ने भगवान नारायण की ओर देखा और कहा इसने मुझे हारा हुआ बताया था आज फिर आ गया इधर आज इधर आया तो मैं इसे भगा दूंगी तब भगवान नारायण मुस्कुराए और बोले ना देवी ऐसा अनर्थ मत करना यह ब्राह्मण जात से सीधा है और सरल है हमेशा निर्धनता में दिया है इसलिए जरा लोभी है मैं इसमें कोई छल कपट नहीं है

(28:08) भगवान नारायण लक्ष्मी जी से बात कर ही रहे थे कि ब्राह्मण और ब्राह्मणी मंदिर में आकर भगवान लक्ष्मी नारायण के सामने दंडवत हो गए दोनों ने नारायण और लक्ष्मी जी के चरण पकड़ लिए भगवान नारायण बोले उठो ब्राह्मण आज कैसे आए यह सुनकर ब्राह्मण ने ब्राह्मणी की ओर देखा तो ब्राह्मणी बोली हे प्रभु हे माता आप सब की कृपा से सब आनंद में हमें कोई ऐसा महत्व बताइए जिससे यह सुख और आनंद सदा के लिए बना रहे यह बात सुनकर माता लक्ष्मी प्रसन्न हो गई और बोली कि जहां नारायण के नाम का जप होगा वहां लक्ष्मी जी तो अपने आप ही आ जाएंगे क्योंकि जहां नारायण का वास है वहां तो

(29:04) लक्ष्मी जी का होना अनिवार्य है इसलिए भगवान नारायण का नाम जपो तो तुम्हारा कल्याण होगा इतना कहकर भगवान नारायण और लक्ष्मी जी वहां से अंतरध्यान हो गए और ब्राह्मण और ब्राह्मणी जब तक जिए भगवान नारायण और लक्ष्मी जी की आराधना करते रहे भगवान की कृपा से उन्हें योग्य संतान की प्राप्ति हुई और इस लोक में सुख भोग कर अंत में दोनों को मोक्ष की प्राप्ति दोस्तों मैं आशा करता हूं यह कहानी आपको जरूर पसंद आई होगी कहानी पसंद आई हो तो हमारे वीडियो को लाइक और सब्सक्राइब जरूर करें धन्यवाद


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