राक्षस ने बनाया त्रिदेव को बंदी

 राक्षस ने बनाया त्रिदेव को बंदी 


महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद पांडवों ने कुछ वर्षों तक हस्तिनापुर पर राज्य किया गांधारी के श्राप के कारण भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया फिर बलराम ने समाधि धारण कर अपने प्राण त्याग किए यह सूचना मिलने पर पांडवों सहित द्रौपदी ने भी परलोक जाने का निश्चय किया स्वर्ग की यात्रा पर निकलने से पहले युधिष्ठिर ने युयुत्सु को संपूर्ण राज्य की देख का भार सौंप दिया अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को हस्तिनापुर नरेश और कर्ण पुत्र वृष केतु को इंद्रप्रस्त नरेश घोषित कर पांडव मोक्ष प्राप्ति के लिए निकल पड़े परंतु हस्तिनापुर से निकलने के बाद रास्ते

(00:46) में पांडवों के साथ एक कुत्ता भी उनके साथ चलने लगा यह देख अर्जुन भीम नकुल सहदेव को बड़ा ही आश्चर्य हुआ ता श्री यह कुत्ता भी हमारे साथ साथ चल पड़ा है शायद यह भोला भाला जीव भी हमारे साथ आना चाहता है कोई बात नहीं इसे भी साथ ले लेते हैं मनुष्य की अंतिम यात्रा में जो साथ दे उससे सच्चा सहयात्री कोई नहीं फिर पांडव भगवान शिव की स्तुति कर आगे बढ़ते हैं केदारनाथ में पांडवों पर प्रसन्न होकर भगवान शिव उन्हे दर्शन देते हैं हे भोलेनाथ हे भंडारी स्वर्ग का मार्ग बताने में हमारी सहायता कीजिए स्वर्ग तक का मार्ग तय करने के लिए

(01:27) हर भाव हर अवगुण हर शक्ति सब कुछ त्यागना होगा जब मनुष्य में केवल पंच तत्व रह जाते हैं आत्मा में चेतना और हृदय में धर्म रह जाता है तो ही यह मार्ग दिखता है भगवान शिव द्वारा बताए मार्ग पर पांचों पांडव द्रौपदी सहित अनेक तीर्थों नदियों और समुद्रों की यात्रा करते करते आगे बढ़ने लगे और आगे का मार्ग दिखने लगता है जैसे ही पांचों पांडव उस मार्ग पर आगे बढ़ते हैं द्रौपदी की देह उसका साथ छोड़ द्रौपदी की मृत्यु के पश्चात भीम ने युधिष्ठिर से पूछा भ्राता श्री सभी लोगों में से पहले द्रौपदी ने ही अपनी देह को क्यों छोड़ा द्रौपदी हम सभी में अर्जुन को

(02:14) अधिक प्रेम करती थी इसलिए उसके साथ ऐसा हुआ ऐसा कहकर युधिष्ठिर द्रौपदी को बिना देखे ही आगे बढ़ गए चलते चलते इसके बाद नकुल की देह ने उसका साथ छोड़ दिया भ्राता श्री आज नकुल का साथ भी छूट गया नकुल क्यों गिर पड़ा भीम नकुल को अपने रूप पर बहुत अभिमान था इसलिए आज उसकी यह गती हुई कुछ समय बाद सहदेव भी नीचे गिर पड़ा तब भीम ने युधिष्ठिर से उसके गिरने का कारण पूछा भ्राता श्री सहदेव के गिरने का क्या कारण है भ्राता भीम सहदेव किसी को भी अपने जैसा श्रेष्ठ विद्वान नहीं समझता था इसलिए आज उसके साथ ऐसा हुआ सहदेव के बाद अ अन की देह ने उसका साथ छोड़ा जब भीम ने

(03:03) युधिष्ठिर से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि अर्जुन को अपने पराक्रम पर अभिमान था वह अहंकार को नहीं त्याग पाया इसलिए वह अंत को प्राप्त हुआ इतना कहकर युधिष्ठिर आगे चल पड़े आगे बढ़ते हुए भीम और कुत्ता एक खाई में गिर पड़े भीम ने युधिष्ठिर को पुकारा कि मुझे बचाइए फिर भी युधिष्ठिर ने कुत्ते को बचाया भीम ने उसका कारण पूछा तब युधिष्ठिर ने कहा क्षमा करना भीम तुम महाबली हो अपनी सहायता करने में सक्षम हो किंतु यह भोला कुत्ता अपनी सहायता नहीं कर सकता इसीलिए मैंने इसे बचाया मैं समझ गया भ्राता श्री मेरा अंत आ गया है लेकिन मैं अपने अंत का कारण जानना

(03:47) चाहता हूं भीम क्रोध ही तुम्हारे अंत का कारण है तुमने क्रोध में उनके भी प्राण ले लिए थे जिन्होंने कोई दोष नहीं किया इसलिए आज तुम्हारी यह गति हुई है युधिष्ठिर ने अपने आगे की यात्रा उस कुत्ते के साथ पूरी की स्वर्ग के द्वार पर उन्हें यमराज मिले जिन्होंने युधिष्ठिर से कहा आप इस कुत्ते के साथ स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकते यह कुत्ता मेरा परम भक्त है यह पूरे रास्ते मेरे साथ चला है मैं इसे छोड़कर स्वर्ग लोक में प्रवेश नहीं कर सकता युधिष्ठिर की यह बात सुनकर उस काले कुत्ते ने अपना असली रूप धारण किया जो धर्मराज यानी यमराज का

(04:29) रूप था युधिष्ठिर तुम काम क्रोध लोभ मोह सबसे विरक्त रहे इसीलिए तुम स शरीर स्वर्ग में प्रवेश कर पाए तुम्हारे भाई और पत्नी अपने गुण अवगुण और शक्ति का मद नहीं छोड़ पाए इसीलिए व यहां तक पहुंचने में असफल रहे फिर धर्मराज युधिष्ठिर को स्वर्ग के अंदर ले गए वहां उन्होंने कौरवों को तो देखा लेकिन कहीं भी अपने भाई पांडव नजर नहीं आए युधिष्ठिर को पता चला कि कर्ण समेत उसके सभी भाई नर्क में है युधिष्ठिर ने धर्मराज से कहा मेरे भाई तथा द्रौपदी जिस लोक में गए हैं मैं भी उसी लोक में जाना चाहता हूं यदि आपकी ऐसी ही इच्छा है तो आप इस देवदूत के साथ चले जाइए यह आपको

(05:15) आपके भाइयों के पास पहुंचा देगा देवदूत युधिष्ठिर को ऐसे मार्ग पर ले गया जो बहुत ही दुर्गम और खराब था उस मार्ग पर चारों ओर अंधकार फैला हुआ था सभी ओर लाशें थी जिससे दुर्गंध आ रही थी लोहे की चोंच वाले कौवे और गिद्ध मंडरा रहे थे वो असी पत्र नामक नरक था वहां की दुर्गंध से तंग आकर युधिष्ठिर ने देवदूत से पूछा हे देवदूत कृपया करके बताइए हमें इस मार्ग पर और कितनी दूर चलना है और मेरे भाई कहां है यदि आप थक गए हैं तो हम पुन लौट चलते हैं युधिष्ठिर ने ऐसा ही करने का निश्चय किया परंतु जब युधिष्ठिर लौट रहे थे तब उन्हें उनके भाइयों की आवाज सुनाई

(05:59) दी तब युधिष्ठिर ने उस देवदूत से कहा हे देवदूत तुम पुन देवलोक वापस लौट जाओ मेरे यहां रहने से यदि मेरे भाइयों को सुख मिलता है तो मैं इस दुर्गम स्थान पर ही रहूंगा यदि मेरे भाइयों ने अनीति की है तो उसका कारण में जेष्ठ होने के नाते मेरा कर्तव्य था कि मैं अपने भाइयों को उचित मार्ग दिखाऊ मैं य से नहीं जाऊंगा जहा मेरा परिवार रहेगा वही मेरे लिए स्वर्ग है देवदूत ने सारी जाकर धर्मराज को बता दी फिर कुछ क्षण पश्चात धर्मराज भी युधिष्ठिर के पास आ गए युधिष्ठिर ने धर्मराज से पूछा हे यमदेव यह सब क्या है आपने अश्वथामा के मरने की बात कहकर छल से द्रोणाचार्य का वध

(06:46) करवाया था इसी परिणाम स्वरूप आपको भी छल से ही कुछ समय नर्क के दर्शन करने पड़े पांडवों का नरक वास और कौरवों का स्वर्गवास कुछ समय के लिए ही है के कर्मों के रूप में उन्हें दिया गया है कण ने द्रौपदी का अपमान किया था जिसकी वजह से उसे नर्क भोगना पड़ा भीम और अर्जुन ने धोखे से दुर्योधन की हत्या की नकुल और सहदेव ने उनका साथ दिया जिसकी वजह से उन्हें भी नर्क में आना पड़ा जबकि कौरव अपनी मातृभूमि के लिए लड़ते रहे इसी उद्देश्य के साथ उन्होंने एक सच्चे क्षत्रिय की तरह अपने प्राण भी त्यागे इसलिए अपने सु कर्मों के लिए दुर्योधन और

(07:32) उसके सभी भाइयों को कुछ समय के लिए स्वर्ग में रखा गया था अपने कर्मों के अनुसार आपके भाई नर्क को भोग करर स्वर्ग लोक आ गए हैं अब आप मेरे साथ स्वर्ग चलिए जहां आपके भाई और अन्य वीर पहले ही पहुंच गए हैं उसके पश्चात युधिष्ठिर ने देवराज इंद्र के कहने पर देव नदी में स्नान किया स्नान करते ही युधिष्ठिर ने मानव शरीर त्याग कर देव शरीर धारण कर लिया इसके पश्चात युधिष्ठिर स्वर्गलोक में अपने चारों भाइयों से मिले उन्होंने भगवान कृष्ण के दर्शन किए युधिष्ठिर ने देखा कि अर्जुन भगवान कृष्ण के चरणों में बैठकर उनकी सेवा कर रहे हैं युधिष्ठिर को आया देख भगवान

(08:15) कृष्ण और अर्जुन ने उनका स्वागत किया उसके बाद युधिष्ठिर ने देखा कि भीम पहले की तरह ही अपना बलवान शरीर धारण किए वायु देव के समक्ष बैठे हैं कर्ण को सूर्य के समान रूप धारण किए देखा कुल और सहदेव को अश्विनी कुमारों के साथ देखा फिर देवराज इंद्र ने युधिष्ठिर को बताया कि जो साक्षात देवी लक्ष्मी देख रहे हो इन्हीं के अंश से द्रौपदी का जन्म हुआ था इसके पश्चात देवराज इंद्र ने युधिष्ठिर को महाभारत में मारे गए सभी वीरों के बारे में विस्तार पूर्वक बताया युधिष्ठिर अपने भाइयों और अपने सभी संबंधियों को स्वर्ग में देखकर बहुत खुश हुए

(09:03) [संगीत] नीरज लगातार हवा में उड़ते हुए जा रहा था लेकिन उसको योड़ना रास नहीं आ रहा था क्योंकि वह यमराज के भैसे पर यमराज के साथ जो बैठा हुआ था यमराज उसे अपने साथ यमलोक की ओर लेकर जा रहे थे नीरज लगातार रोए जा रहा था यमराज जी मुझे छोड़ दीजिए मुझे अभी यम लोग नहीं जाना है मुझे अपने घर जाना है धरती पर मेरी छोटी बेटी और पत्नी को अभी मेरी जरत देखो नीरज जिसकी जितनी आयु लिखी होती है उसे उतना ही भोगना होता है अब तुम्हारा समय पूरा हो चुका है अब तुम्हें अपने नए घर यमलोक जाना ही होगा नीरज लगातार रोए जा रहा था लेकिन यमराज उसकी एक नहीं सुनते

(09:47) तभी अचानक कहीं से एक हवाई जहाज आकर यमराज के फैसे से टकरा जाता है और नीरज नीचे की ओर गिरने लगा बचाओ बचाओ कोई मुझे बचाओ तभी नीरज की पत्नी रेशमा ने उसे ज ते हुए कहा क्या हुआ जी क्यों चिल्ला रहे हो और किससे बचाना है तुम्हें फिर अचानक से नीरज की आंख खुली तो उसने खुद को अपने घर के बिस्तर पर पाया इसका मतलब मैं जिंदा हूं मैं जिंदा हूं हा मैं जिंदा हूं पगला गए हो क्या कल रात की उतरी नहीं तुम्हारी चलो उठो पाव भाजी बेचने नहीं जाना है क्या ये है मायागंज गांव में रहने वाला नीरज जो कि पाव भाजी का ठेला लगाया करता था नीरज के परिवार में

(10:27) उसकी पत्नी रेशमा और ठ साल की बेटी नीरू रहते थे स्कूल से आने के बाद नीरू भी अपने पिता के साथ ठेले पर मदद करने चली जाती थी रेशमा घर संभालती और नीरज ठेले पर भाजी बनाकर बेचता और नीरू सबको प्लेट में डालकर देती जाती ऐसे ही हर रोज होता एक शाम नीरज और नीरू थके हारे घर पहुंचे क्या बात है जी आज बड़े थके थके लग रहे हो हां रेसमा आज ठेले पर काम काफी ज्यादा था पानी तक पीने की भी फुर्सत नहीं मिली लेकिन अच्छा है आज सारी पाव भाजी गई काफी अच्छी कमाई हुई है आज शुक्र है ऊपर वाले का जो उन्होंने आज हमें अच्छी बरकत दी भगवान करे आपका काम ऐसे ही चलता रहे अच्छा चलो आप

(11:08) दोनों हाथ मुंह धो लीजिए मैं खाना लगा देती हूं वो सभी खाना खाकर सो गए कुछ दिन बीते फिर एक रोज फिर वही घटना घटी लेकिन इस बार यमराज नीरू के सपने में आए यमराज को अपने घर पर देखकर नीरू डर गई और उसने दोनों हाथ जोड़कर घबराते हुए यमराज से पूछा प्रणाम यमराज जी आप मेरे घर पर लेकिन आप यहां किसे लेने आए हैं मैं तुम्हारे पिता नीरज को लेने आया हूं लेकिन यमराज जी मेरे बाबा तो हमारे पालनहार हैं हमारे घर में कमाने वाले एक वही हैं अगर आप उन्हें ले गए तो फिर हमारा क्या होगा मैं तो अकेले पाव भाजी बेचने भी नहीं जा सकती और मेरी मां को भी वह बनानी नहीं आती अगर

(11:51) मेरे बाबा को आप ले गए तो मेरी मां तो जीते जी मर जाएंगी और मेरी मां को कुछ हुआ तो मैं भी नहीं बच पाऊंगी इससे अच्छा यही होगा कि आप मेरे प्राण ले लें मेरे जाने के बाद भी यह घर ऐसे ही चलता रहेगा नहीं बेटी ऐसा कदा भी नहीं हो सकता जिसका जब समय है वह तभी जाएगा लेकिन फिर भी मैं एक काम कर सकता हूं मैं तुम्हारी आयु के कुछ वर्ष तुम्हारी पिता की आयु में जोड़ सकता हूं इससे उनकी थोड़ी आयु बढ़ जाएगी तब तक तुम उनसे पाव भाजी बनाना सीख लो ताकि उनकी मृत्यु के पश्चात तुम यह काम करके अपना घर चला सको यह कहकर यमराज वहां से गायब हो गए

(12:34) नीरू नींद से उठकर बैठ गई लेकिन वह काफी घबरा गई थी उसने अपनी मां को सारी बात बताई बेटी वो एक बुरा सपना था उसे भूल जाओ चलो अब सो जाओ काफी रात हो गई है उस वक्त तो नीरू सो गई लेकिन उसके दिमाग में हर वक्त वही बात घूमती रहती अब उसने फैसला कर लिया कि अब वह भी अपने बाबा से बढ़िया पाव भाजी बनाना सीखे गी अब वह हर रोज अपने बाबा से पावभाजी बनाना सीखने की जिद करने लगी साथ ही वह हर वक्त यह भी सोचती रहती कि कैसे वह यमराज से अपने पिता के प्राण बचाए ऐसे ही समय बीता कुछ ही दिनों में नीरू भाजी बनाना सीख गई एक रोज नीरज ने उससे कहा नीरू बेटी मैंने तुझे पाव भाजी

(13:13) बनाना सिखा दिया है उम्मीद है अब तू मेरी तरह भाजी बनाना सीख जाएगी अच्छा एक काम कर आज तू पाव भाजी बना अच्छा जब तक तू अपने हाथ से नहीं बनाएगी तब तक सीख नहीं पाएगी बिटिया अपने पिता की बात मानकर नीरू पाव भाजी बनाने लगी तभी उसके मन में एक ख्याल आया अगर मैंने बाबा से अच्छी पाव भाजी बना ली तो यमराज जी कहीं मेरे बाबा को अपने साथ ना ले जाए नहीं नहीं नहीं मुझे कुछ तो ऐसा करना होगा कि मैं अपने बाबा की तरह स्वादिष्ट भाजी ना बना पाऊं शायद तभी वह मेरे बाबा के प्राणों का पीछा छोड़ देंगे हां यही सही रहेगा अपने बाबा की मौत के

(13:51) ख्याल से डर कर अब नीरू जब भी भाजी बनाती तो वह जानबूझकर उसमें कोई ना कोई मसाला छोड़ देती जिससे भाजी का स्वाद वैसे नहीं आ पाता और वो झूठी नीरज से कह देती कि उसने सब मसाले डाल दिए लेकिन नीरू के हाथों की बनी भाजी खाकर ग्राहक अब नीरज के ठेले से गायब होने लगे उन्हें अब उस पाव भाजी में वो स्वाद नहीं आता अब उनकी कमाई काफी कम हो गई यह देख एक रोज नीरज गुस्से में बोला नीरू मैं तुझे कितने दिनों से पाव भाजी बनाना सिखा रहा हूं लेकिन तू है कि सुनती ही नहीं तेरे कारण अब मेरे ग्राहक भी काफी कम हो गए हैं ऐसे तो तू मेरा धंधा बंद करवा देगी अरे तू तो मेरी

(14:29) मूर्ख है इतना तो मैं किसी गधे को भी सिखाता तो वह भी सीख जाता अब से तुझे मेरे ठेले पर आने की कोई जरूरत नहीं है तू घर पर रहकर अपनी मां के साथ चूल्हा चौका ही संभाल तेरे बस का नहीं है यह भाजी का ठेला चलाना समझी ठीक है फिर आप खुद ही बना लो ये पाव भाजी अब नीरज खुद ही पाव भाजी बनाने लगा अब उसकी दुकान पर फिर से ग्राहक आने लगे लेकिन अब नीरू काम पर नहीं आती वो घर पर अपनी मां के साथ ही रहती ऐसे ही समय बीता एक रोज एक आदमी नीरज के ठेले पर आया जी कहिए साहब कितनी प्लेट लगा दूं देखो मैं पाव भाजी खाने तो आया हूं तुम्हारे ठेले

(15:08) पर लेकिन तुम्हारे हाथ की नहीं बल्कि तुम्हारी बेटी के हाथ की ये सुनकर नीरज हैरान रह गया कुछ देर बाद वो बोला देखिए साहब आप किसी से भी पूछ लीजिए इस पूरे गांव में मुझ जैसी स्वादिष्ट भाजी कोई नहीं बना पाता हां मैं ही आपके लिए स्वादिष्ट सी भाजी बनाकर तैयार कर देता हूं और वो भी मक्खन मार के और मेरी बेटी वो तो एक नंबर की मूर्ख है उसे तो बिल्कुल भी समझ नहीं है अच्छा ऐसी बात है लाओ तुम ही चखा दो अपने हाथ की पाव भाजी जी जी ठीक है साहब अभी लाया नीरज ने जैसे ही उस आदमी को व पाव भाजी खाने को दी तो वो अपनी उंगलियां चाड़ता ही रह गया उस आदमी को वह

(15:48) पाव भाजी बड़ी ही स्वादिष्ट लगी उसने और कई प्लेट पाव भाजी की खा ली लेकिन इतनी प्लेट खाने के बाद भी उसने कहा मेरा मन नहीं भरा मुझे और पाव भाजी खिलाओ जी लेकिन पांव भाजी तो सारी खत्म हो गई अच्छा आप यहीं रुकिए पास में ही मेरा घर है मैं वहां वहां पर मैंने सामान रखा है मैं अभी लेकर आता हूं अच्छा नीरज कुछ देर बाद घर आया अरे आप इतनी जल्दी आ गए और ठेला कहां है रेश्मा ठेले पर ना एक ग्राहक आया है जो 12 प्लेट पाव भाजी खाने के बाद भी और मांग रहा है इसीलिए वही लेने आया हूं यह बात नीरू सुन लेती है और उसे समझते देर नहीं लगती कि वह आदमी कोई और नहीं बल्कि यमराज

(16:27) ही है कोई साधारण इ इन तो एक साथ इतनी पाव भाजी नहीं खा सकता जरूर वह यमराज ही है मुझे बाबा को यहीं रोककर ठेले पर जाना होगा नहीं तो वह कहीं मेरे बाबा को अपने साथ ना ले जाए नीरू अपने बाबा से बहाना बनाकर खुद उस ठेले पर वह सामान लेकर पहुंच गई अरे तुम्हारे बाबा किधर है जी उन्हें कुछ काम याद आ गया था इसलिए उन्होंने मुझे भेज दिया आप बस 5 मिनट रुकिए मैं अभी आपके लिए पाव भाजी बना देती हूं नीरू ने जल्दी से पाव भाजी बना दी लेकिन उस भाजी को खाकर उस आदमी ने नीरू से कहा अरे वाह यह तो तुम्हारे बाबा की बनाई हुई भाजी से भी बहुत अच्छी बनी है यह सुनकर नीरू डर गई और

(17:07) उसने झट से यमराज के पैर पकड़ लिए मैं जानती हूं आप यमराज जी हैं और मेरे बाबा को लेने आए हैं इसलिए झूठ बोल रहे हैं सच तो यह है कि मैंने इस पावभाजी में कोई मसाले डाले ही नहीं तो फिर स्वाद कैसे हो सकती है यमराज जी आप मेरे बाबा को छोड़ दो और मुझे अपने साथ ले चलो तभी यमराज अपने असली रूप में आ गए और नीरू की आंखों में अपने बाबा के प्रति इतना स्नेह देख वो बहुत खुश हुए उन्होंने नीरू से कहा पुत्री तुम्हारे पित प्रेम से मैं बहुत प्रसन्न हूं इसलिए अब मैं खुद विधि का विधान बदलूंगा अब ना ही मैं तुम्हारे पिता के प्राण लूंगा और ना ही तुम्हारी आयु कम

(17:46) होगी लेकिन अब तुम अपने बाबा से झूठ बोलना छोड़ दो कि तुम्हें अच्छी पाव भाजी बनानी नहीं आती मैं जानता हूं तुम जानबूझकर खराब पाव भाजी बनाती हो अब तुम अपने बाबा को अच्छी पाव भाजी बनाकर खिलाओ जिससे वो खुश हो जाए इतना कहकर यमराज वहां से अंतरध्यान हो गए लेकिन पीछे खड़े नीरज और रेशमा यह सारी बातें सुन रहे थे उनकी आंखों में आंसू थे उन्होंने जाकर नीरू को अपने कलेजे से लगा लिया मुझे नहीं पता था कि मेरी बिटिया इतनी बड़ी हो गई है जो अपने बाबा के प्राण बचाने के लिए यमराज से भी लड़ गई फिर नीरू ने अपने हाथ की पाव भाजी बना अपने माता-पिता को खिलाई जिसे खाते ही

(18:31) नीरज बहुत खुश हुआ अब नीरू अपने बाबा से भी अच्छी पाव भाजी बनाकर बेचने लगी जिससे उनकी बिक्री और भी ज्यादा बढ़ गई और वह तीनों खुशी खुशी रहने लगे विमला से सभी हमेशा डरे डरे से रहते हैं क्योंकि वह कभी भी किसी को कुछ भी बोल देती है वह बहुत ही घमंडी और खुदगर्ज है हमेशा दूसरों से झगड़ा करती है विमला से सभी परेशान है गांव वाले मन ही मन विमला की मृत्यु चाहते हैं यह बुढ़िया पता नहीं कब तक रहेगी हमेशा बस परेशान करती रहती है विमला के घर के पास रमेश नाम के एक आदमी का घर है रमेश के आंगन में एक अमरूद का पेड़ है एक दिन दोपहर को विमला चुपके से

(19:14) उस पेड़ के नीचे जाती है और एक अमरूद तोड़ लेती है और उसी वक्त रमेश यह देख लेता है वह दौड़कर घर से बाहर निकलता है और कहता है यह क्या मेरे आंगन में घुसकर चोरी करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई चोरी मैं भला चोरी क्यों करूंगी यह अमरूद का पेड़ मेरा है मेरा अरे वाह पेड़ मेरे आंगन में है मगर इसकी मालकिन तुम हो और नहीं तो क्या तूने जब जन्म भी नहीं लिया था तब मैंने यह पेड़ लगाया था तो क्या हुआ मैंने तो यह जमीन खरीद ली है ना उस हिसाब से तो यह पेड़ मेरा हुआ उन दोनों की लड़ाई चलती रही आखिर मामला बिगड़ता गया और गांव के मुखिया

(19:49) मदन लाल चले आए मदन लाल ने यह फैसला किया कि पेड़ रमेश का ही है इस बात से गुस्सा होकर विमला ने मदनलाल की बकरी चुरा ली और उसे बेच दिया मदनलाल भी परेशान हो गया उधर अपने कमरे में बैठकर विमला सोचती रही कि इसके बाद किसको परेशान किया जाए ऐसे ही दिन बीतते रहे और लोग परेशान होते रहे उधर यमलोक में यमराज चित्रगुप्त के साथ बैठकर बातें कर रहे हैं यमराज कहते हैं चित्रगुप्त जरा देखो आज रात किसकी बारी है चित्रगुप्त अपनी लिस्ट चेक करके कहते हैं आज रामनगर की विमला की बारी है प्रभु वह स्वर्ग जाएगी या नरक स्वर्ग का कोई सवाल ही नहीं उठता प्रभु यह

(20:32) औरत बहुत घमंडी है गांव वाले कब से इसकी मौत का इंतजार कर रहे हैं ठीक है आज रात को मैं इसे लेकर आऊंगा रात हो जाती है और विमला उसके बिस्तर पर आराम से सो जाती है इतने में यमराज वहां प्रकट हो जाते हैं और बिमला को बुलाने लगते हैं बिमला उठ बिमला जाने का वक्त आ गया है आवाज सुनकर विमला उठ जाती है और कहती है कौन है आप मैं यमराज हूं इस धरती पर तेरा समय पूरा हो गया है आज तुझे यमलोक में जाना पड़ेगा यह सुनकर बिमला चौक जाती है और रोने लगती है नहीं नहीं मैं नहीं जाऊंगी मुझे जीना है मुझे जीना है तू जीकर भी क्या करेगी सारे गांव वाले तुझसे परेशान हैं तूने कभी किसी

(21:19) का भला नहीं किया है तेरा स्थान नरक में है चल बमला बमला रोती रहती है मगर बमला बहुत शातिर है उसके दिमाग में एक आईडिया आ जाता बहुत रोने धोने के बाद वह कहती है ठीक है यमराज मैं जाने के लिए तैयार हूं लेकिन मेरी आखिरी इच्छा पूरी करनी पड़ेगी ठीक है बता तेरी आखिरी इच्छा क्या है मेरे खटिए के नीचे बहुत सारे गहने हैं मुझे बस यह वरदान दीजिए कि मेरे जाने के बाद इस खटिए के नीचे से किसी भी चीज को कोई निकाल ना पाए ठीक है मैं वरदान देता हूं तेरी आखिरी इच्छा पूरी होगी अब चल मगर तभी विमला ने यमराज को चौका दिया और खटिए के नीचे घुस

(22:00) गई यमराज ने कहा अरे यह क्या कर रही है जल्दी चल देर हो रही है यह सुनकर विमला ने हंसते हुए कहा अगर लेकर ही जाना है तो मुझे इस खटिए के नीचे से निकालिए यमराज विमला को खटिए के नीचे से बाहर निकालने के लिए हाथ बढ़ाते हैं लेकिन उनका हाथ खटिए के नीचे पहुंचता ही नहीं है किसी अदृश्य शक्ति की वजह से हाथ फंस जाता है आपने खुद मुझे यह वरदान दिया है है यमराज इस खटिए के नीचे से कोई भी किसी भी चीज को नहीं निकाल पाएगा यमराज परेशान हो जाते हैं और कहते हैं ठीक है आज तो तू बच गई लेकिन एक हफ्ते बाद मैं फिर से आऊंगा और तुझे लेकर ही जाऊंगा विमला मान जाती है यमराज अदृश्य हो

(22:48) जाते हैं विमला अपने ही मन में हंसती रहती है और यह सोचकर खुश हो जाती है कि उसने यमराज को चकमा दे दिया है मैंने यमराज को चकमा दे दिया है इसका मतलब मैं मरूंगी ही नहीं मैं अमर हो गई हूं अमर अगले दिन से वह गांव वालों को और परेशान करती रहती है और यह बताती फिरती है कि वह अमर हो गई है अब उसे स्वयं यमराज भी यमलोक नहीं ले जा सकते यह सुनकर सब लोग चिंता में पड़ जाते हैं भला ऐसे कैसे हो सकता है भैया यह खूस बुढ़िया अमर कैसे हो सकती है ये जिंदा रही तो हम गांव वालों को परेशान करके छोड़ेगी इसके चक्कर में तो हम ही भगवान को प्यारे हो जाएंगे पूरा गांव

(23:29) में पड़ गया ऐसे ही एक हफ्ता बीत गया विमला पूरी तैयारी के साथ बिस्तर पर बैठ गई यमराज प्रकट हुए एक हफ्ता हो गया है अब चल मेरे साथ यमराज का कहना खत्म होते ही तुरंत बमला खटिए के नीचे घुस गई और जोर-जोर से हंसने लगी आप मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते यमराज जी मैं अमर हो गई हूं आप जब भी मुझे लेने आएंगे मैं इस खटिए के नीचे घुस जाऊंगी यमराज परेशान शन होकर बिना कुछ बोले ही वहां से चले गए बमला ने सोचा कि उसने यमराज को हरा दिया है यह सोचकर वह और भी घमंडी बन गई लोगों के साथ और ज्यादा बदसलूकी करने लगी उधर यमलोक में यमराज चिंता में पड़ गए चित्रगुप्त ने यमराज से

(24:15) पूछा क्या हुआ यमराज आप चिंतित लग रहे हैं यमराज ने चित्रगुप्त को सब कुछ खुलकर बताया चित्रगुप्त ने कहा यह तो बहुत ही मुश्किल की बात है मुझे पता है अब कोई उपाय बताओ इसका मेरे पास कोई उपाय नहीं है आप देवाधि देव महादेव के पास जा सकते हैं उनके पास हर समस्या का समाधान है यमराज तुरंत भगवान शिव के पास चले गए और उन्हें सब कुछ खुलकर बताया सब कुछ सुनकर शिव जी ने कहा ठीक है उस खटिए के नीचे से किसी भी चीज को बाहर नहीं निकाला जा सकता मगर वो खुद बाहर आए तो तो मैं उसे लेकर आ सकता हूं ठीक है यमराज आज रात को आप निश्चिंत होकर जाइए मैं सब कुछ संभाल लूंगा

(24:59) रात हो गई उधर विमला निश्चिंत होकर सो गई उसे लगा कि यमराज ने हार स्वीकार कर ली है मगर तभी यमराज प्रकट हो गए यमराज को देखकर विमला फिर से खटिए के नीचे चली गई क्या हुआ यमराज आप फिर से चले आए आपको हार मान लेनी चाहिए मैं तो अमर विमला की बात खत्म ही नहीं हुई कि तभी धरती कांप उठी भूकंप आ गया विमला का पूरा मकान एक तरफ हिल गया और विमला खिसक हुए खटिए के नीचे से निकलकर बाहर चली आई यमराज इसी वक्त का इंतजार कर रहे थे उन्होंने विमला को पकड़ लिया और यमलोक लेकर चले गए शिवजी ने भूकंप को रोक दिया विमला रोने लगी नहीं यह कैसे हो सकता

(25:41) है मैं तो अमर हूं मैं अमर हूं तुम यमलोक में आ गई हो विमला तुम्हारी मृत्यु हो गई है अब तुम नरक में जाओगी नहीं ये नहीं हो सकता ये कैसे हो गया हमेशा याद रखना विमला प्रकृति के सामने मनुष्य बहुत छोटा है जन्म और मृत्यु तो एक नियम है मनुष्य उसे टाल नहीं सकते चाहे कोई कितना भी घमंडी क्यों ना हो उसे एक ना एक दिन तो मरना ही होगा इसके बाद विमला को नरक में भेज दिया जाता है इसीलिए कहते हैं कि घमंड करना अच्छी बात नहीं है अपने बुरे कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है सुंदरनगर में लाल नाम का एक व्यापारी रहता था उस व्यापारी ने एक हाथी पाल रखा

(26:32) था विधाता के निश्चित समय अनुसार एक दिन उस हाथी की मृत्यु हो गई यमराज के दूत उस हाथी की आत्मा को यमलोक लेकर गए बताओ चित्रगुप्त इस हाथी के कर्मों का लेखा जखा क्या निकलता है प्रभु इस हाथी ने अपने जीवन में कभी भी गलत काम नहीं किया है इसके कर्म काफी अच्छे रहे हैं अच्छा यह तो बहुत अच्छी बात है हम तुम पर प्रसन्न है गजराज क्योंकि तुमने अपने जीवन में हमेशा सत कर्म ही किए हैं इसीलिए मांगो तुम क्या इच्छा रखते हो मैं तुम्हें वापस पृथ्वी लोक पर भेजना चाहता हूं यमराज जी यदि आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं और मेरा दूसरा जन्म होना है तो मुझे किसी भी जीव योनि में

(27:15) जन्म दे दीजिए पर मेरे ऊपर किसी भी मनुष्य का अधिकार ना रहे मैं मनुष्य के बंधन में ना रहूं क्योंकि मनुष्य के साथ रहना सबसे कठिन कार्य होता है हाथी की ऐसी बातें सुनकर यमराज काफी आश्चर्य चकित हो गए उन्होंने हाथी से कहा हे गजराज यह तुम क्या कह रहे हो मैं तो यही जानता हूं कि मनुष्य जाति सबसे अच्छी होती है वह सबसे ज्यादा बुद्धिमान होते हैं यही तो परेशानी है यमराज जी कि मनुष्य सबसे ज्यादा बुद्धिमान होते हैं लगता है आप मनुष्य की सच्चाई नहीं जानते आपको उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है मुझे कैसी जानकारी नहीं है तुम खुद देखो यहां पर कितने मनुष्य

(27:56) खड़े हैं उन्हें अपने कर्मों के अनुसार जो मिले उसे बिना किसी परेशानी के स्वीकार कर लेते हैं महाराज मतलब आपका अभी तक किसी जीवित इंसान से पाला नहीं पड़ा है यह तो मृत लोग हैं यह तो सिर्फ मनुष्य की आत्माएं हैं यदि आप किसी जीवित मनुष्य से मिलेंगे तभी आपको सच्चाई पता चलेगी हाथी की बातों को सुनकर यमराज काफी हैरान हो गए और बोले ठीक है तुम्हारी बात जानने के लिए मैं तुम्हारे मालिक को जीवित ही यहां बुलाता हूं यदि तुम्हारी बात सत्य निकली तो तुम जैसा कहोगे हम वैसा ही करेंगे और यदि तुम्हारी बात झूठी निकली तो जैसा हम कहेंगे तुम्हें वैसा ही करना होगा तुम्हें

(28:36) अपने उसी मालिक के पास जाकर रहना होगा जहां तुम पहले थे हाथी ने यमराज की शर्त मंजूर कर ली यमराज को हाथी की बातें बहुत दिलचस्प लगी इसलिए वह जीवित व्यक्ति से मिलने के लिए उत्सुक हो गए उन्होंने अपने यमदू तों को आदेश दिया जाओ और जाकर इसके मालिक हरिलाल को यमलोक लेकर आओ यमराज की आज्ञा को मानकर चार दूत उस हाथी के मालिक को लेने के लिए पृथ्वी लोक पर चले गए लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि वो जीवित व्यक्ति को यमलोक कैसे लेकर जाएं इसलिए यमदूत उसके सोने का इंतजार करने लगे जब हरीलाल सो गया तो चारों दूतों ने उसे पलंग सहित उठा लिया और यमलोक की

(29:17) तरफ बढ़ने लगे बीच में ही हरिलाल की नींद खुल गई उसने देखा कि मैं तो आकाश में हूं और नीचे देखा तो जमीन ही गायब थी तब हरिलाल ने यमदू तों से पूछा तुम कौन हो और मुझे कहां लेकर जा रहा हो भाई हम यमदूत हैं और तुम्हें यमलोक यमराज के पास ले जा रहे हैं यमलोक तो लोग मृत्यु के बाद जाते हैं लेकिन मैं तो जिंदा हूं आज वहां पर जीवित व्यक्ति की ही जरूरत है इसीलिए हम तुम्हें यमलोक लेकर चल रहे हैं एक हाथी का कहना है कि तुम उसके मालिक हो इसलिए यमराज जी ने तुम्हें यमलोक बुलाया है अब वो खुद मर गया तो उसने मुझे भी ऊपर बुला लिया पर निशान

(29:58) हरिलाल ने तरकीब लगाने की सोची ताकि उसका जीवन सुरक्षित रहे हरिलाल बचने का उपाय सोचता रहा तभी उसकी नजर अपने पलंग के ऊपर रखे कागज और कलम पर गई उसने कागज और कलम उठाया और उस पर कुछ लिखा थोड़ी देर में व यमलोक पहुंच गया हरीलाल को देखकर यमराज जी जोर-जोर से हंसने लगे यह देखो तुम्हारा मालिक आ गया वैसे गजराज तुम इतने विशाल गाय ताकतवर जानवर होकर इससे डर रहे हो थोड़ा सब्र कीजिए महाराज आपको सब पता चल जाएगा यमराज जी हरिलाल को अपने पास बुलाते हैं तो हरिलाल कहता है यमराज जी क्या आपको पता है मैं कौन हूं मैं तो सिर्फ इतना जानता हूं कि तुम इस हाथी के मालिक हो

(30:43) इसके अलावा मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानता अब तुम ही बता दो कि तुम कौन हो यह लीजिए आप यह पढ़कर ही जान लीजिए कि मैं कौन हूं हरिलाल यमराज जी को वह कागज देता है जिस पर उसने आते हुए कुछ लिखा था यमराज जी कागज को पढ़कर हैरान रह जाते हैं और अपने सिंहासन से नीचे उतर जाते हैं और अपनी जगह हरिलाल को सिंहासन पर बैठा देते हैं यमराज जी आज से यमलोक पर से आपका शासन समाप्त हुआ मैं यहां का राजा हूं मैं जैसा कहूंगा हर किसी को वैसा ही करना होगा अब देखिए यमराज जी आगे आगे क्या होता है अब से स्वर्ग और नरक का झंझट खत्म सभी मरने

(31:22) के बाद स्वर्ग जाएंगे यमराज जी कुछ नहीं बोल पाए और देखते ही देखते नरक के सारे मृत लोक स्वर्ग में आ गए और नरक का द्वार बंद कर दिया गया जिस किसी की भी मृत्यु होती तो वह सीधा स्वर्ग लोक को आता भले ही वह कितना भी पापी क्यों ना हो लेकिन हरिलाल को मन ही मन चिंता भी सता रही थी कि किसी दिन उसकी सच्चाई यमराज को पता चल गई तो वो उसे मृत्यु के घाट उतार देंगे हरिलाल ने सभी लोगों की सजा माफ कर दी हरिलाल के चेहरे पर चिंता देखकर हाथी उससे बोला मालिक पृथ्वी लोक पर तो आप मेरे मालिक थे पर अब तो मैं मर चुका हूं बताइए तो यह क्या माजरा है आप यमलोक के राजा

(32:03) कैसे बन गए यह राज की बात है मालिक मुझे भी इंसान बना देना नीचे जाकर आपका नौकर बनकर रहूंगा लेकिन यह राज मुझे बता दो मैं किसी को नहीं बताऊंगा मुझे बताने से आपका मन थोड़ा हल्का हो जाएगा अच्छा ठीक है मैं तुझे बताता हूं यमदूत जब मुझे लेकर आ रहे थे तो संयोग से मेरे पास एक कागज और कलम थी मैंने उस पर लिख दिया यमराज जी धरती पर से जो मनुष्य आपके पास आ रहा है उसे अपना सिंहासन दे देना अब से यही मनुष्य यमलोक का राजा होगा मैंने युक्ति लगाई और वो सब लिखकर उसके नीचे भगवान विष्णु के हस्ताक्षर कर दिए हरिलाल की बातें सुनकर हाथी सचमुच उसकी बुद्धिमानी से हैरान रह

(32:45) गया धीरे-धीरे कुछ दिन बीत गए नरक के द्वार बंद थे और स्वर्ग लोक में लोग बढ़ते ही जा रहे थे यह बात पूरे देवलोक में फैल गई सब देवता यही सोचने लगे कि अब नरक का अस्तित्व खत्म हो चुका है सब लोगों ने भगवान विष्णु को यह बात बताई भगवान विष्णु इस बात से हैरान थे कि आखिर यमलोक में कौन आ गया है जिस कारण यह सब हो रहा है भगवान विष्णु यमलोक पहुंच गए और देखा कि यमलोक के द्वार पर यमराज बैठे हुए थे यह देखकर भगवान विष्णु ने यमराज से कहा यमराज जी यदि आप बाहर बैठे हुए हैं तो यमलोक के सिंहासन पर कौन है यमलोक को कौन चला रहा है हे नारायण यह आप क्या कह रहे हैं आपने

(33:28) ही तो इंसान को मेरे स्थान पर नियुक्त किया था और आप ही इस तरह से अनजान बन रहे हैं उस इंसान ने मुझे जो कागज दिया था उसमें साफ-साफ लिखा था कि मैं उसे अपना सिंहासन दे दूं और उस पर आपके हस्ताक्षर भी थे अगर आपको यकीन ना हो तो यह देखिए मैंने इंसान को यमलोक में नियुक्त किया है मैंने तो ऐसा कभी नहीं किया कौन है वह भगवान विष्णु थोड़ी देर सोचने के बाद कहते हैं यमराज जी कहीं आपने किसी जीवित व्यक्ति को तो यमलोक में नहीं बुला लिया सही कह रहे हैं प्रभु मैंने जीवित इंसान को ही यमलोक में बुलाया है यमराज जी ने शुरू से लेकर अब तक की सारी बात भगवान

(34:13) विष्णु को बताई यमराज जी की बातों को सुनने के बाद भगवान विष्णु को हंसी आ गई और वह मुस्कुराने लगे यमराज जी आप अभी भी नहीं समझ पाए उस मनुष्य ने आपको झूठा पत्र दिया था उस पर मेरे नहीं बल्कि उसके खुद के हस्ताक्षर थे जो उसने मेरे नाम से किए थे अगर वह ऐसा ना करता तो आप उसे विद्वान नहीं समझते और आपको उसकी होशियारी का अंदाजा कैसे लगता भगवान विष्णु की बात को सुनकर यमराज जी ने दोनों हाथों से अपने सिर को पकड़ लिया अब उन्हें सारा माजरा समझ में आ चुका इसके पश्चात भगवान विष्णु यमराज जी के साथ यमलोक पहुंचते हैं उन्हें सामने देखकर हरिलाल अपने सिंघासन से उठ

(34:58) खड़ा होता है हे प्रभु मुझे तो आपका ही इंतजार था मैं कब से यही सोच रहा था कि कब आपके दर्शन होंगे और मुझे इस कार्य से मुक्ति मिलेगी तुम बहुत चालाक हो हरीलाल देखा यमराज जी जीवित व्यक्ति को यम लोग बुलाने का क्या परिणाम हुआ अब इसको दिख रहा है कि मैं इसे दंड देने वाला हूं तब यह मुझे खुश करने में लग गया है मैं समझ गया प्रभु किसी भी इंसान को समझना किसी के लिए आसान नहीं है आज मैं मान गया कि इंसान सचमुच अपनी बुद्धिमानी से कुछ भी कर सकता है गजराज तुम्हारी बात सही साबित हुई इसलिए मैं तुम्हें भी पृथ्वी लोक पर मनुष्य बनाकर भेजूंगा अब तो तुम खुश हो

(35:43) तुम्हें तुम्हारे अच्छे कर्मों का फल मिल रहा है तुम्हें किसी का बंधक नहीं बनना पड़ेगा तुम अपनी जिंदगी को आजादी से जी सकोगे यमराज की बातें सुनकर हाथी खुशी से सिर हिला देता है इसके पश्चात यमराज जी हाथी को भी मनुष्य रूप में धरती पर भेज देते हैं और हरिलाल के दिमाग से भी यमलोक की सारी बातें निकालकर वापस पृथ्वी लोक पर लौटा देते हैं हिंदू पौराणिक कथाओं में भगवान शिव के जन्म के बारे में बहुत सी पौराणिक कथाओं का वर्णन किया गया है कहा जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में एक विशाल निराकार ब्रह्मांडी महासागर के अलावा कुछ भी नहीं

(36:29) था यह महासागर सारी सृष्टि का स्रोत था गर्भ जहां से सब कुछ निकला और अंततः सब कुछ उसी में लौट आया ब्रह्मा जी सृष्टि के निर्माता थे तो विष्णु जी सृष्टि के संरक्षक थे परंतु समय के चक्र को बदलने के लिए और सृष्टि के नव निर्माण के लिए भी एक ऐसी ऊर्जा की आवश्यकता थी जो सृष्टि का विनाश करके उसे पुनर स्थापित कर सके ब्रह्मांड को एक शक्ति एक ऊर्जा की आवश्यकता है जो विनाश और काया कल्प के माध्यम से संतुलन ला सके इस दुर्जय भूमिका को कौन निभाएगा ब्रह्मांड को वास्तव में ऐसी शक्ति की आवश्यकता है एक शक्ति जो हमसे परे है समय विनाश और पुनर्जीवन के

(37:19) चक्र को चलायमान रखने वाली एक शक्ति पर ऐसी शक्ति ब्रह्मा जी और विष्णु जी आपस में अभी इसी विषय पर बात कर ही रहे थे कि अचानक उनके समक्ष एक स्तंभ यानी खंभा प्रकट हुआ जो प्रकाश से चमक रहा था पृथ्वी की गहराइयों से लेकर आकाश की ऊंचाइयों तक वह चमकता स्तंभ फैला हुआ था उस स्तंभ का छोड़ दिखाई ही नहीं दे रहा था कि वह कहां से कहां तक फैला है यह कौन सी दिव्य चमक है क्योंकि ना तो इसकी शुरुआत पता है ना ही इसका अंत मुझे इसका मूल खोजना होगा मैं इसका अंत ढूंढू ब्रह्मा जी ने हंस का रूप ले लिया और ऊपर की ओर उड़ गए और खंभे का ऊपरी हिस्सा ढूंढने के लिए निकल गए वहीं

(38:06) विष्णु जी ने वराह यानी सुअर का रूप धारण किया और पृथ्वी में समा गए उन्हें खोजते खोजते युग बीत गए लेकिन स्तंभ का छोड़ नहीं मिला और दोनों ने हार मान ली वे दोनों वापस आ गए मैं मूल का पता नहीं लगा सका यह समझ से परे है और ना ही मुझे इसका अंत मिल सका यह प्रकाश वास्तव में शाश्वत है ऐसा लगता है कि यह प्रकाश सदा ऐसा ही रहने वाला है तभी वहां भगवान शिव अपने सबसे मौलिक उज्जवल और शक्तिशाली रूप में प्रकट हुए शिव जी की आवाज पूरे ब्रह्मांड में गूंज उठी मैं शिव हूं संहारक और काया कल्प करने वाला मैं असीम निराकार और कालातीत हूं मैं संतुलन बनाए रखने के लिए

(38:56) ब्रह्मांडी चेतना से पैदा हुआ हूं हमें आपकी ही प्रतीक्षा थी हम आपका स्वागत करते हैं ब्रह्मांड चक्र के तीसरे और महत्त्वपूर्ण पहलू भगवान शिव के साथ मिलकर हम सृजन संरक्षण और विनाश के संतुलन को बनाए रखेंगे इस प्रकार प्रकाश के ब्रह्मांडी स्तंभ से भगवान शिव प्रकट हुए पारंपरिक अर्थों में पैदा नहीं हुए बल्कि ब्रह्मांडी चेतना से ही प्रकट हुए उन्होंने ब्रह्मांड के शाश्वत चक्र के एक अभिन्न अंग के रूप में अपना स्थान लिया विनाश को अंत के रूप में नहीं बल्कि पुनर्जन्म और नवीकरण के लिए एक आवश्यक प्रक्रिया के रूप में दर्शाया वह अंत जो

(39:41) हर नई शुरुआत से पहले होता है विनाश और सृजन का मेरा नृत्य ब्रह्मांड की शाश्वत लय को कायम रखेगा भगवान शिव ने अपना ब्रह्मांडी नृत्य तांडव शुरू किया ब्रह्मांड उनकी ऊर्जा से गूंज उठा जो विध्वंसक और पुनर्जीवन करता के रूप में उनकी भूमिका का प्रमाण है जो अस्तित्व के अंतहीन चक्र का एक अनिवार्य हिस्सा है भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने मान लिया कि शिव ही सबसे महान और शक्तिशाली है वे जिस खंभे से प्रकट हुए हैं व खंभा उनके ना जन्म लेने और ना मरने का प्रतीक है क्योंकि उसके छोर का ना ही कोई मूल है और ना ही कोई अंत भगवान शिव स्वयं आदि और

(40:31) स्वयं अंत है पृथ्वी की रक्षा और जन कल्याण के हित के लिए अनेकों बार भगवान विष्णु की भाति भगवान शिव ने भी अवतार लिया है भगवान शिव द्वारा लिया गया ऐसा ही एक अवतार है बटुक अवतार बटुक का अर्थ होता है छोटा बच्चा पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मां पार्वती की पुत्री अशोक सुंदरी ने हुंड नामक दैत्य को अपनी बाल्यावस्था में एक श्राप दिया था कि उसकी मृत्यु अशोक सुंदरी के होने वाले पति नहुष के हाथों ही होगी इसलिए बाल्यावस्था में ही हुंड ने नहुष का वध करने की योजना बनाई मैं अशोक सुंदरी के श्राप को सिद्ध होने से पहले ही नष्ट कर

(41:20) [संगीत] दूंगा मैं बाल्यावस्था में ही नहुष और अशोक सुंदरी का वध कर दूंगा मुझे यह बात माता श्री को बतानी होगी माता श्री माता श्री आप कहां हो मेरा हृदय व्याकुल हो रहा है क्या हुआ अशोक सुंदरी आप इतनी घबराई हुई क्यों हो पुत्री माता श्री हुंड राक्षस नहुष को मारने के लिए निकल चुका है वह नहुष का वध करने वाला है उसको रोक लीजिए माता श्री नहीं तो अनर्थ हो जाएगा ंड राक्षस की इतनी हिम्मत कि वह नहुष की हत्या करने का साहस कर बैठा आज ंड दैत्य को मेरे हाथों से कोई नहीं बचा सकता देवता ऋषि मुनि सब हुंड के प्रकोप से तंग आ चुके हैं अब मुझे उसका संघार करना ही

(42:06) होगा देखते ही देखते मां पार्वती मां काली के रूप में आ जाती हैं उनका क्रोध बढ़ रहा था वह हाथों में खडग लिए हुंड के वध के लिए निकल पड़ती हैं किंतु यदि वह हुंड का वध कर देती तो वह प्रकृति के खिलाफ हो जाता क्योंकि हुंड दैत्य का वध नहुष के हाथों ही लिखा था इसलिए मां काली को रोकना जरूरी था पर उनके क्रोध को कौन रोकेगा यही समस्या थी नारायण नारायण प्रभु मां काली तो क्रोध में आकर हुंड का वध करने निकल चुकी है तब इनके क्रोध को कौन शांत करेगा कौन इन्हें रोकेगा आप सही कह रहे हैं देवर्षि नारद मां काली को यदि रोका नहीं गया तो अनर्थ हो जाएगा अब तो सिर्फ महादेव

(42:48) ही उनके क्रोध को शांत कर सकते हैं जिस प्रकार उन्होंने पहले भी कई बार मां काली के मार्ग में आकर उनके क्रोध को शांत किया है आप तो जानते ही हैं देवर्षि नारद जब देवी पार्वती अत्यंत क्रोधित होती हैं तो वह महाकाली का रूप धारण कर लेती हैं और फिर उनके क्रोध को शांत करना असंभव हो जाता है इतनी देर में सभी देवी देवता भगवान विष्णु के पास प्रकट होते हैं प्रभु देवी काली अत्यंत क्रोधित हो चुकी है संसार भय से कांप रहा है प्रभु कुछ कीजिए प्रभु कुछ कीजिए आप चिंतित मत होए देव राजेंद्र हम सब भगवान शिव के पास चलते हैं महादेव सभी देवी देवता आपके पास विनती

(43:31) हेतु आए हैं इनकी सहायता कीजिए मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं ब्रह्मदेव आखिर क्या हुआ है महादेव हुंड दैत्य को पता चल चुका है कि भविष्य में उसका वध आपके होने वाले जमाता नहुष के हाथों ही होगा इसलिए वो उसकी हत्या हेतु निकला है देवी पार्वती इसी कारण क्रोध में आ गई है और उन्होंने मां काली का रूप धारण कर लिया है अब उनके क्रोध को केवल आप ही शांत कर सकते हैं देवाधिदेव काली के क्रोध को शांत करने के लिए मुझे उनके सामने जाना हो सभी देवी देवताओं को आश्वासन देकर भगवान भोलेनाथ देवी काली के समक्ष प्रकट होते हैं देवी काली क्रोध की अग्नि में जल रही थी वह

(44:08) भगवान शिव को अपने सामने देखकर विशाल रूप धारण कर लेती हैं और उनका क्रोध अत्यधिक बढ़ जाता है शिव जी भी उन्हें रोकने के लिए अपना विशाल रूप धारण कर लेते हैं रुक जाओ देवी पार्वती शांत हो जाओ नहीं अब मेरा क्रोध तभी शांत होगा जब मैं हुंड दैत्य का वध करूंगी देवी पर्व यदि आपने हुंड का वध कर दिया तो हमारी पुत्री अशोक सुंदरी द्वारा दिए गए उस श्राप का क्या होगा वो श्राप व्यर्थ जाएगा आप उस श्राप की मर्यादा को कैसे भंग कर सकती हो आप जानते हैं प्रभु हुंड ने हमारी पुत्री और होने वाले जमाता को मारने का दुस्साहस किया है और आप कहते हैं कि मैं

(44:47) शांत हो जाऊं नहीं देवी पार्वती आसमान की ओर देखिए सभी देवी देवता आपके इस रौद्र रूप को देखकर घबरा रहे हैं शांत हो जाओ पार्वती यही संसार के हित में है नहीं अब मुझे कोई शांत नहीं कर सकता आप मेरे मार्ग से हट जाइए मैं आज नहीं रुकू पर रुकिए देवी पार्वती हमारी पुत्री अशोक सुंदरी और न होश दोनों ही सकुशल है उन्हें कुछ नहीं हुआ नारायण नारायण अब क्या होगा प्रभु माता तो क्रोध की अग्नि में आगे बढ़ चुकी है अब महादेव माता को कैसे शांत करेंगे उन्होंने तो महादेव की बात को मानने से भी इंकार कर दिया है देवर्षि नारद भगवान शिव के होते हुए हमें चिंता करने की कोई

(45:30) आवश्यकता नहीं है वह देवी काली के क्रोध को शांत अवश्य करेंगे आप निश्चिंत रहिए मां काली क्रोध में आगे बढ़ती जा रही थी तभी उन्हें एक बालक के रोने की आवाज सुनाई दी वास्तव में वह बालक कोई और नहीं बल्कि महादेव का ही अवतार था जो हूबहू दिखने में महादेव की तरह ही था अपने बाल रूप में महादेव रोए जा रहे थे उनका रोना बंद नहीं हो रहा था लगातार रोते बच्चे की आवाज को सुनकर मां काली रुक जाती है बच्चे का रोना मां काली से देखा नहीं गया व उस बालक के पास जाती है छोटे से बालक को रोता हुआ देख मां काली से रहा नहीं जाता और वह उस बालक

(46:12) को गोद में उठा लेती है यह बालक क्यों रो रहा है यह बालक तो चुप ही नहीं हो रहा लगता है मेरे इस रूप को देखकर यह डर रहा है मुझे अपने वास्तविक रूप में आ जाना चाहिए बालक की करुण आवाज को सुनकर मां काली अपना क्रोध भूल जाती है और वह अपने वास्तविक रूप में आ जाती हैं और बच्चे को खिलाने लगती हैं बालक भी चुप हो जाता है तभी वहां पर देवर्षी नारद और भगवान विष्णु सभी देवताओं के साथ प्रकट होते हैं देवी पार्वती ध्यान से इस बालक की तरफ देखिए आपके क्रोध को शांत करने के लिए ही महादेव ने इस बालक का रूप धरा है और यह जो रो रहे थे वो इनकी पीड़ा थी ये जानते थे कि आप इस

(46:55) समय अत्यंत दुखी है और आपने अपने क्रोध को और आपने अपने दुख को क्रोध में परिवर्तित कर लिया है और क्रोध विनाशकारी होता है यह तो आपको परिचित है देवी पार्त इसलिए आपके क्रोध को शांत करने के लिए ही महादेव ने इस बालक का रूप धरा था आज यह सिद्ध हो गया कि अत्यंत क्रोध को अत्यंत प्रेम भाव से ही शांत किया जा सकता है महादेव आज से आपके इस बाल रूप को बटुक अवतार के रूप में जाना जाएगा सभी देवी देवता भगवान शिव और माता पार्वती पर फूलों की वर्षा करने लगे उस दिन से भगवान शिव के बटू क अवतार को भक्त गण पूजने भीमा को बहुत दिनों से बुखार था आज

(47:40) थोड़ी तबीयत ठीक हुई तो भीमा ने खीरे खरबूजे ठेले पर लगाए और बेचने के लिए बाजार जाने लगा सुनो जी तुम्हारी तो तबीयत बहुत खराब है तेज धूप और गर्मी में कैसे बाजार में घूमो ग मालती बड़ी मुश्किल से उधार पर नरेश सब्जी वाले से खीरे और खरबूजे लेकर आया हूं आज निर्जला एकादशी का दिन है लक्ष्मी नारायण की कृपा से थोड़ी कमाई हो गई तो किराए के पैसे निकल आएंगे तू चिंता मत कर मैं पेड़ की छाव में थोड़ी देर आराम कर लूंगा अच्छा मैं जा रहा हूं तू शाम की पूजा की तैयारी रखना मैं पूजा का सामान खरीदता हुआ आऊंगा ठीक है जी ध्यान से जाना भीमा खीरे

(48:22) खरबूजे का ठेला लेकर बाजार में निकल पड़ा भीमा और मालती हर साल निर्जला एकादशी का व्रत रखते थे उन्हें भगवान श्री नारायण और माता लक्ष्मी पर बहुत विश्वास था वे उनकी सच्चे मन से पूजा करते थे मालती को चिंता थी कि भीमा की तबीयत ठीक नहीं है और उसने निर्जला एकादशी व्रत भी रखा हुआ है मालती लक्ष्मी नारायण जी से प्रार्थना करती है प्रभु मैं जानती हूं आप बहुत दयालु हैं आप हमेशा अपने भक्तों के दुख दूर करते हैं सदैव उनकी रक्षा करते हैं आज निर्जला एकादशी का पावन दिन है इसलिए मैं प्रार्थना करती हूं हम पर अपनी कृपा रखना प्रभु हमारे ऊपर अपना आशीर्वाद बनाए रखना

(49:00) मालती भगवान से प्रार्थना कर रही थी उधर भीमा खरबूजे खीरे बेचने के लिए गली गली घूम रहा था कहते हैं भगवान भी अपने उसी भक्त की सदैव परीक्षा लेते हैं जो भक्त निस्वार्थ भावना से उनकी भक्ति करता है माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु आज निर्जला एकादशी के पावन दिन पर बैकुंठ से पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने के लिए उतर आए उनकी नजर भीमा पर पड़ी भीमा तेज धूप में भूखा प्यास सा अपना ठेला लेकर घूम रहा था जब वह एक जगह थककर बैठ गए तभी लक्ष्मी नारायण वृद्ध दंपति के रूप में उसके पास पहुंचे अभी तक कुछ भी बिकरी नहीं हुई है और गर्मी बढ़ती जा रही है लगता है शाम तक का इंतजार करना

(49:42) होगा थोड़ी देर यहीं बैठकर आराम करता हूं फिर शाम को फल बेचूंगा अभी तो कोई ग्राहक भी नहीं आ रहा अब बेटा आज निर्जला एकादशी का दिन है आज फल दान करने से बहुत पुण्य प्राप्त होता हम लक्ष्मी नारायण के नाम पर मंदिर में दान करने के लिए कुछ फल लेने घर से निकले थे पर मैं पैसे घर पर ही भूल आया अब हम सारे बाजार में घूम लिए पर हमें उधार पर बिना पैसों के कोई भी फल देने को तैयार नहीं है बेटा हमारा घर दूर है इसलिए आने जाने में ही समय लग जाएगा अब हमारी इतनी हिम्मत नहीं कि हम फिर से जाकर पैसे ला सके अगर तुम हमारी म कर दो और हमें यह

(50:28) सारे खीरे और खरबूजे दे दो तो हम तुम्हें शाम को उनके सारे पैसे दे जाएंगे बेटा अगर तुमने भी मना कर दिया तो हमारा निर्जला एकादशी व्रत अधूरा रह जाएगा उन वृद्ध दंपति की बात सुनकर भीमा कुछ देर सोचने लगा कि बिना पैसों के सारे ठेले के फल किन्हीं अनजान को कैसे दे दे पर लक्ष्मी नारायण के प्रसाद के लिए वह उन्हें मना भी नहीं कर सकता था इसलिए भीमा ने उन्हें खीरे और खरबूजे देने का फैसला किया और उन्हें बोरे में भर दिया अब ये लीजिए मैंने सारे फल इस बोरे में भर दिए हैं आप इन्हें लक्ष्मी नारायण के मंदिर में बांटने के लिए ले जाइए कोई बात नहीं पैसों

(51:09) की कोई बात नहीं अब जीते रहो बेटा बहुत-बहुत धन्यवाद तुमने आज निर्जला एकादशी पर हमारी मदद करके श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी को बहुत प्रसन्न किया है देखना वह तुम पर अपनी कृपा जरूर करेंगे हम शाम को तुम्हें पैसे दे जाएंगे अपना घर बता दो बेटा भीमा वृद्ध दंपति को घर का पता दे देता है अब सारे फल तो भीमा ने उन्हें दे दिए तो वह बाजार में क्या ही करता भीमा घर लौट आया पर जब मालती को सारी बात पता चली तो वह थोड़ा चिंता में आ गई तुमने ऐसे कैसे किसी अनजान को सारे खीरे और खरबूजे दे दिए हमारे घर में तो आज खाने के लिए अन्न का दाना भी नहीं है ऊपर से

(51:52) तुमने उधार के पैसे भी चुकाने हैं यह खीरे और खरबूजे के पैसे अगर वो लोग हमें नहीं दे गए तो तुम कहां से पैसे लाओगे कितने दिन से तो तुम बीमार चल रहे थे पता नहीं प्रभु हमारी कौन सी परीक्षा ले रहे हैं मालती चिंता मत कर उन्होंने बोला है कि शाम को वह पैसे दे देंगे तूने पूजा की तैयारी कर ली हां तैयारी तो कर ली पर पूजा में रखने के लिए कोई भी सामग्री नहीं है हमें ऐसे ही लक्ष्मी नारायण की पूजा करनी होगी हां सारे खीरे और खरबूजे तो मैंने उन्हें दे दिए अगर उसी में से थोड़े बचे होते तो हम पूजा में वही रख लेते चल कोई बात नहीं

(52:27) जैसी लक्ष्मी नारायण की इच्छा भीमा और मालती लक्ष्मी नारायण की पूजा करने लगते हैं वे दोनों लक्ष्मी नारायण मंत्र का जाप कर रहे थे तभी अचानक उनके द्वार पर दस्तक हुई भीमा ने दरवाजा खोला तो सामने वही वृद्ध दंपति खड़े हुए थे अब बेटा तुम्हारा घर पूछते हुए आए थे हां बेटा सुबह तुमने हमारी मदद की हमें बहुत अच्छा लगा तुम्हारे दिए हुए खीरे और खरबूजे हमने मंदिर में सभी को बांट दिए तुम बहुत नेक दिल इंसान हो बेटा तुम्हारे जैसे स्वभाव वाले व्यक्ति इस दुनिया में भला कहां ही मिलते हैं बेटा सुबह के कितने पैसे थे हमें बता दो अरे आप अंदर तो आइए मालती देखो कौन आया

(53:13) है मैंने तुम्हें बताया था ना यह वही है भीमा उन बूढ़े दंपति को अंदर ले जाता है आज निर्जला एकादशी के व्रत पर आप हमारे घर पधारे हैं आप हमारे लिए बड़े बुजुर्ग हैं लक्ष्मी नारायण स्वरूप आप हमारे अतिथि हैं हम तो लक्ष्मी नारायण की पूजा कर रहे थे कहते हैं बड़े बुजुर्गों में भी भगवान का वास होता है हमारे घर में तो बड़े बुजुर्ग है नहीं इसलिए आज हम आपके चरण धोना चाहते हैं हा मालती बिल्कुल ठीक कह रही हो जाओ थाल में जल ले आओ मालती थाल में जल लेकर आती है भीमा और मालती दोनों मिलकर उन बूढ़े दंपति के चरण धोते हैं उसके पश्चात उनकी पूजा

(53:51) आरती करते हैं उनके लिए तो वो उस दिन भगवान का स्वरूप थे लक्ष्मी नारायण उनकी पूजा से प्रसन्न होते हैं और उन्हें साक्षात दर्शन देते हैं लक्ष्मी नारायण के प्रकट होते ही भीमा के घर में प्रकाश फैल जाता है उनके घर में धन धान्य का ेर लग जाता है भीमा मालती हम तुम्हारी पूजा से प्रसन्न है हम तुम्हारी परीक्षा ले रहे थे भीमा और तुम हमारी परीक्षा में सफल रहे तुमने हमारा निर्जला एकादशी व्रत रखा और निस्वार्थ भावना से हम मदद की इसलिए अब तुम्हारे सारे दुख के दिन दूर हो गए अब तुम्हारे घर में तुम्हारे जीवन में सुख समृद्धि का वास होगा भीमा मालती हमारी

(54:40) आशीर्वाद से अब तुम्हारे घर में धन की वर्षा होगी तुम्हारे जीवन में खुशियों का प्रवेश होगा भीमा और मालती की आंखों में खुशी के आंसू थे निर्जला एकादशी के दिन लक्ष्मी नारायण उनके घर में पधारे और उन्हें साक्षात दर्श और आशीर्वाद देकर अंतरध्यान हो गए लक्ष्मी नारायण की कृपा से भीमा और मालती की जिंदगी खुशियों से भर गई कहते हैं जिस किसी पर भी माता लक्ष्मी की कृपा हो जाए उसके जीवन में फिर कोई परेशानी नहीं आती माता लक्ष्मी स्वास्थ्य संतान धन वैभव तथा सौभाग्य प्रदान करने वाली देवी है वो जब किसी मनुष्य पर अपनी कृपा दृष्टि डाल देती हैं उस मनुष्य का

(55:28) जीवन सफल हो जाता है ऐसी ही एक पौराणिक कथा के अनुसार माता लक्ष्मी ने नौकरानी बनकर एक माली के घर में बरकत की और उसके परिवार को खुशियों से भर दिया एक बार की बात है भगवान विष्णु का मन शेषनाग पर बैठे-बैठे बहुत उदास हो रहा था उन्हें धरती पर घूमने की इच्छा हुई और वह अपनी यात्रा की तैयारी में लग गए स्वामी को तैयार होता देखकर लक्ष्मी माता ने भगवान विष्णु से पूछा अरे स्वामी आज सुबह-सुबह तैयार होकर कहां जाने की तैयारी में हो देवी देवी लक्ष्मी पता नहीं मन कुछ उदास है इसलिए मैं धरती लोक पर भ्रमण करने जा रहा हूं हे देव आप धरती पर भ्रमण के लिए

(56:14) जाएंगे तो आपके बिना मेरा मन भी नहीं लगेगा क्या मैं भी आपके साथ धरती लोक पर भ्रमण के लिए चल सकती हूं ठीक है देवी लक्ष्मी पर उसके लिए तुम्हें मेरी एक शर्त माननी होगी तुम धरती पर पहुंचकर उत्तर दिशा की ओर नहीं देखोगी ठीक है स्वामी मैं धरती पर पहुंचकर उत्तर दिशा में नहीं देखूंगी मुझे आपकी शर्त मंजूर है भगवान विष्णु की इस शर्त से माता लक्ष्मी सहमत हो गई और प्रातःकाल होते ही माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु धरती पर पहुंचे उसी समय सूर्य उदय हुआ था रात बरसात होकर हटी थी चारों ओर हरियाली ही हरियाली थी धरती की सुंदरता को देखकर माता लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न चित

(56:58) हुई और भगवान विष्णु को दिया वचन भूल गई माता लक्ष्मी धरती को देखती देखती कब उत्तर दिशा की ओर देखने लगी उन्हें पता ही नहीं चला धरती का वातावरण देखने में कितना मनमोहक है और वह फूलों से भरा खेत यह तो कितने सुंदर फूलों से सजा हुआ है मैं यह फूल यदि तोड़ लू उत्तर दिशा में माता लक्ष्मी को एक बहुत ही सुंदर फूलों का खेत नजर आया और उसी तरफ से खुशबू के साथ बहुत ही सुंदर सुंदर फ खिले थे यह एक फूलों भरा हुआ खेत था माता लक्ष्मी बिना सोचे समझे उस खेत में चली गई और एक सुंदर सा फूल तोड़कर ले आई जब माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के पास वापस आई तो भगवान

(57:38) विष्णु की आंखों में आंसू थे यह देखिए स्वामी कितना सुंदर फूल है अरे स्वामी आपकी आंखों में यह आंसू क्या हुआ स्वामी क्या मुझसे कोई गलती हुई है बताइए स्वामी देवी लक्ष्मी आप मेरा वचन याद नहीं रख पाई शर्त के अनुसार आपको उत्तर दिशा में नहीं देखना था और साथ ही साथ आपको यह भी सोचना था कि किसी की कोई भी वस्तु को कभी भी किसी से बिना पूछे नहीं लेना चाहिए स्वामी मुझसे भूल हो गई मुझे क्षमा कर दीजिए देवी लक्ष्मी आपने जो भूल की है उसकी सजा आपको जरूर मिलेगी जिस माली के खेत से आपने बिना पूछे फल तोड़े हैं यह भी एक प्रकार की चोरी

(58:31) है इसलिए देवी लक्ष्मी आप तीन वर्ष तक माली के घर में रहेंगी इसके बाद मैं स्वयं आपको बैकुंठ वापस बुलाऊंगा जैसी आपकी आज्ञा स्वामी माता लक्ष्मी ने चुपचाप सिर झुकाकर वचन स्वीकार किया और भगवान विष्णु बैकुंठ लौट गए माता लक्ष्मी ने गरीब लड़की का रूप धारण कर लिया खेत के मालिक का नाम माधव था माध की पत्नी दो बेटे और तीन बेटियां थी सभी उस छोटे से खेत पर काम करके किसी तरह से गुजारा करते थे खेत के पास ही माधव की झोपड़ी थी माता लक्ष्मी माधव की झोपड़ी पर जाती हैं माधव लड़की को देखकर पूछता है तुम कौन हो और इस समय तुम्हें क्या चाहिए मैं तुम्हारी क्या मदद

(59:16) कर सकता हूं मेरा नाम लक्ष्मी है मैं एक गरीब लड़की हूं मेरी देखभाल करने वाला कोई नहीं मैंने कई दिनों से कुछ भी नहीं खाया मुझे कोई भी काम दे दो और मैं तुम्हारे घर का काम भी कर दिया करूंगी बस मुझे अपने घर में एक कोने में आसरा दे दो माधव बहुत ही अच्छे दिल का आदमी था उसे लड़की पर दया आ गई वह लड़की से बोला देखो बिटिया मैं तो बहुत ही गरीब माली हूं मेरी कमाई से मेरे घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चलता है लेकिन अगर मेरी तीन की जगह चार बेटियां होती तो भी मैंने ही गुजारा करना था जैसा रूखा सूखा हम खा आते हैं वही खिला सकता हूं यदि

(1:00:00) तुम मेरे यहां यही रूखा सूखा खाकर खुश रह सकती हो तो अंदर आ जाओ आपने मुझे अपनी झोपड़ी में शरण दी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया माता लक्ष्मी न साल माधव के घर पर नौकरानी बन कर रही जिस दिन माता लक्ष्मी माधव के घर आई थी उसी दिन से ही माधव को इतनी आमदनी हुई कि उसने एक गाय खरीद ली अजी ये नई गाय खरीद लाई ये तो बहुत अच्छा हुआ आज तुम्हारी आमद बहुत अच्छी हुई सरला सब माता लक्ष्मी की दया है माधव मैंने कोई चमत्कार नहीं किया यह सब तुम्हारे दयालु स्वभाव का ही फल है जो आज तुम्हें प्राप्त हुआ है तुमने तो मुझे एक गरीब लड़की समझकर अपने घर में शरण दी है

(1:00:42) धीरे-धीरे माधव की आमदनी अच्छी हो गई उसने जमीनें खरीद ली और फिर एक बड़ा पक्का घर भी बनवा लिया सारी सुख समृद्धि गहने कपड़े जेवर सब कुछ अब माधव और उसके परिवार के पास था लक्ष्मी माधव के घर और खेत में काम करती रहती थी एक दिन माधव ने सोचा मुझे यह सब इस लड़की लक्ष्मी के आने के बाद मिला है जब से यह मेरे घर आई है मेरी किस्मत ही बदल गई है माधव लक्ष्मी के बारे में सोच में ही था कि एक दिन जब वह अपने खेत से काम खत्म करके घर आया तो अपने घर के सामने द्वार पर एक देवी स्वरूप गहनों से सजी एक लड़की को देखकर हैरान रह गया उसने ध्यान

(1:01:19) से देखा अरे यह तो मेरी मोह बोली बेटी यानी लक्ष्मी है क्या ये तो साक्षात माता लक्ष्मी है सरला सरला बच्चों के साथ बाहर आओ माता लक्ष्मी स्वयं हमारे द्वार पर आई है माधव का पूरा परिवार बाहर आ गया सब हैरान होकर माता लक्ष्मी को देख रहे थे माता लक्ष्मी हमें माफ करना हमने अनजाने में आपसे अपने घर और खेत का काम करवाया माता हम आपको पहचान नहीं पाए हमसे यह कैसा अपराध हो गया माता हम सबको क्षमा कर दो माधव तुम बहुत ही नेक दिल और दयालु व्यक्ति हो तुमने मुझे आश्रय दिया तीन साल तक अपनी बेटी की तरह रखा इसके बदले मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि

(1:02:09) तुम्हारे पास कभी भी खुशियों की और धन की कमी नहीं रहेगी तुम्हें सारे सुख मिलेंगे जिसके तुम हकदार हो माधव को और उसके परिवार को आशीर्वाद देकर माता लक्ष्मी अपने स्वामी भगवान विष्णु के द्वारा भेजे रथ में बैठकर बैकुंठ चली जाती हैं माधव और उसका परिवार हाथ जोड़कर माता लक्ष्मी एक दिन माता पार्वती कैलाश में अकेले बैठी हुई थी और भगवान शिव कहीं गए हुए थे तब वहां नारद जी पहुंचे और उन्होंने माता पार्वती से भगवान शिव के बारे में पूछा नारायण नारायण प्रणाम माते प्रणाम देवर्षी नारद आज कैलाश पर कैसे आना हुआ नारायण नारायण मैं महादेव से मिलने

(1:02:53) आया था मुझे उनसे कुछ पूछना कोई जरूरी बात पूछनी थी अगर आप चाहे तो मुझसे पूछ सकते हैं शायद मैं आपकी कोई सहायता कर सकूं माते आपको वह बात पता नहीं होगी वह बात केवल महादेव ही जानते हैं और जहां तक मैं जानता हूं महादेव ने आपको उस बात के बारे में कभी नहीं बताया होगा देवर्षी नारद महादेव ने आज तक मुझसे कोई बात नहीं छुपाई वे मुझे हर बात बताते हैं ऐसी कौन सी बात है जो आपको लग है महादेव ने मुझे नहीं बताई होगी माते मुझे अमर कथा के बारे में जानना था मुझे भगवान शिव से अमर कथा सुननी थी अगर महादेव ने आपको अमर कथा सुनाई है तो कृपा करके मुझे भी अमर

(1:03:41) कथा सुना दीजिए मेरा बहुत मन है अमर कथा सुनने का नहीं देवर्ष नारद अमर कथा तो मैंने भी नहीं सुनी महादेव ने मुझे कभी अमर कथा के बारे में वर्णन ही नहीं किया कोई बात नहीं माते जब महादेव आएंगे तो मैं दोबारा आ जाऊंगा अच्छा आज्ञा दीजिए मैं चलता हूं नारायण नारायण नारद मुनि के जाने के बाद मां पार्वती सोच में पड़ गई महादेव ने तो कभी मुझे अमर कथा सुनाई ही नहीं महादेव आएंगे तो उनसे इस बारे में जरूर पूछूंगी कुछ समय के बाद जब भगवान शिव वापस आते हैं तो माता पार्वती उनसे अमर कथा सुनने के लिए जिद करने लगती हैं महादेव मुझे यह बात सुनकर बहुत बुरा लग रहा है कि

(1:04:23) आपने मुझे एक बार भी अमर कथा नहीं सुना आई मैं चाहती हूं आप मुझे आज ही अमर कथा के बारे में वर्णन कीजिए वरना मैं आपसे बात नहीं करूंगी ठीक है पार्वती मैं तुम्हें अमर कथा सुनाऊंगा परंतु हमें उसके लिए एकांतवास ढूंढना होगा चलो हम किसी एकांत स्थल पर चलते हैं मैं वहीं तुम्हें अमर कथा कहूंगा तो हम किसी पहाड़ी या गुफा में चलते हैं वहां पर कोई भी नहीं आएगा इसके बाद भगवान शिव माता पार्वती को एक सुनसान जगह पर ले जाते हैं ताकि कोई और वो कथा ना सुन ले परंतु वहीं पेड़ पर एक तोते का घोसला होता है और उसमें एक अंडा होता है जब कथा शुरू होने वाली थी तभी उस अंडे में

(1:05:05) से बच्चा निकलता है इसके बाद भगवान शिव माता पार्वती को कथा सुनाना आरंभ करते हैं कथा सुनते समय माता पार्वती को नींद आ जाती है तभी उनकी जगह तोते का बच्चा हुंकार भरने लगता है और वही पूरी कथा सुन लेता है जब कथा समाप्त हो जाती है तब भगवान शिव देखते हैं कि माता पार्वती तो सोई हुई है तो उनकी जगह हुंकारे कौन भर रहा था तब वह तोता डर कर भाग जाता है इसके बाद भगवान शिव उस तोते को मारने के लिए उसके पीछे पीछे दौड़ते हैं फिर वह तोता उड़ते उड़ते महर्षि वेदव्यास के आश्रम में पहुंच जाता है उस समय उनकी पत्नी को जमाई आती है और वह तोता उनकी पत्नी के मुख से

(1:05:47) उनके गर्भ में चला जाता है इसके बाद भगवान तोते का पीछा करते हुए महर्षि वेदव्यास के आश्रम में आते हैं प्रणाम महादेव आप मेरी कुटिया में मेरे अहो भाग्य जो आप मेरी कुटिया में पधारे आप चिंतित दिखाई दे रहे हैं महादेव एक तोते ने चोरी से अमर कथा सुन ली है और वह यहां आकर छुप गया है मैं उसे यहां मारने आया हूं हे प्रभु यदि आप उसे मार देंगे तो आपकी अमर कथा झूठी हो जाएगी क्योंकि जो भी अमर कथा को सुनता है वह अमर हो जाता है यही सत्य है कृपा करके उस शुख को माफ कर दीजिए महर्षि वेदव्यास भगवान शिव को उस तोते को माफ करने के लिए

(1:06:29) कहते हैं फिर महादेव उस तोते को माफ करके वहां से चले जाते हैं वह तोता महर्षि वेदव्यास जी की पत्नी के गर्भ में ही एक शिशु के रूप में तपस्या करता है 12 वर्ष तक वह बालक मां के गर्भ में ही रहता है ऋषि पत्नी के गर्भ में रहने के कारण ही उसे वेद उपनिषद पुराण आदि का पूरा ज्ञान हो गया था एक दिन महर्षि वेदव्यास की पत्नी को गर्भ में ज्यादा ही तकलीफ होने लगती है तब महर्षि वेदव्यास के कहने पर भगवान विष्णु वहां आते हैं और बालक को गर्भ से बाहर आने के लिए कहते हैं तुम बाहर क्यों नहीं आते हो कृपा करके घर से बाहर आओ मुझे संसार की मोह माया में नहीं

(1:07:10) फसना है यदि आप मोह माया को रोक दे तो मैं बाहर आ जाऊंगा मैं कुछ समय के लिए माया जाल हटा दूंगा तब तुम बाहर आ जाना इसके बाद ही मुनि सुखदेव का जन्म होता है अपने माता-पिता प्रणाम करके वन में तप पस्या के लिए चले जाते हैं सुखदेव ऋषि भारतीय पौराणिक और धार्मिक ग्रंथों में एक प्रमुख ऋषि थे वे महाभारत और पुराणों में विशेष रूप से उल्लेखनीय है सुखदेव का वर्णन भगवत पुराण में बहुत विस्तृत रूप से मिलता है सुखदेव ऋषि वेदव्यास के पुत्र थे और उनके जन्म की कथा भी विशेष महत्व रखती है कहा जाता है कि वे अपने जन्म के समय से ही महान ज्ञानी थे और बाल्यावस्था में ही

(1:07:52) तपस्या करने जंगलों में चले गए थे उनकी प्रवृति विरक्ति की थी और वे संसार के मोह माया से मुक्त थे श्रीमद् भागवत का ज्ञान राजा परीक्षित को देने वाले सुखदेव ही थे राजा परीक्षित को जब श्राप मिला कि वे सात दिनों में मर जाएंगे तब उन्होंने अपने अंतिम दिनों में आत्मा और परमात्मा के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए सुखदेव से शिक्षा प्राप्त की इस प्रकार सुखदेव का भारतीय धार्मिक और आध्यात्मिक परंपरा में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है और उन्हें ज्ञान वैराग और भक्ति के प्रतीक के रूप में सम्मानित किया जाता है की बात है श्रीपुर नाम के गांव में

(1:08:35) रामेश्वर नाम का एक ब्राह्मण अपनी मां के साथ रहता था वह दिन रात भगवान शिव की भक्ति किया करता था शिव नाम का जाप सदैव उसके मुख पर रहता था ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय रामेश्वर बेटा आज भी तूने मुझे नहीं उठाया खुद ही उठकर घर के सारे काम कर लिए खीर भी भोग लगा दी तूने तो हां मां मैंने सोचा फटाफट से काम करके खीर बना लेता हूं शिवजी भी खीर के इंतजार में बैठे होंगे यह लो भोग की खीर खाकर बताओ कैसी बनी है रामेश्वर बेटा इस खीर को तू बचपन से शिवजी को खिलाता आ रहा है जब तेरे बापू जिंदा थे तब वो प्रसाद की खीर खिलाते थे

(1:09:22) और उनके जाने के बाद तूने यह नियम बना लिया तेरी खीर बहुत ही स्वादिष्ट बनती है बेटे और मुझे पता है भगवान शिव भी तेरे हाथों की खीर खाने के इंतजार में रहते होंगे तभी तो मैं सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले खीर ही बनाता हूं ताकि भगवान शिव को भोग लगा सकूं रामेश्वर का नियम था रोजाना सुबह जल्दी उठकर घर के सारे काम निपटाना और फिर भगवान शिव के भोग के लिए खीर का प्रसाद बनाना यह कार्य पहले उसके पिता करते थे और पिता के जाने के बाद शिवजी की सेवा और खीर भोग की पूरी जिम्मेदारी रामेश्वर ने उठा ली रामेश्वर को विश्वास था कि भगवान शिव उसके द्वारा खिलाई गई खीर

(1:10:00) को रोजाना ही खाते हैं इसी विश्वास पर वह रोजाना खीर का भोग लगाता था और अपने भक्त के द्वारा भोग लगाई गई खीर को कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान शिव बहुत चाव सिखाते थे स्वामी क्या बात है आपको तो आनंद ही आनंद है आपके भक्त आपको प्रेम से इतने स्वादिष्ट व्यंजन खिलाते हैं और आपका भक्त रामेश्वर तो नियम के अनुसार आपको खीर का भोग लगाता है लाइए थोड़ी सी खीर मुझे भी दे दीजिए रामेश्वर के हाथों की खीर बहुत ही स्वादिष्ट होती है हां देवी पार्वती रामेश्वर इतनी स्वादिष्ट खीर का भोग लगाता है कि मन प्रसन्न हो जाता है तभी नंदी और समस्त शिव गण वहां जाते हैं महादेव ये

(1:10:45) लीजिए हम भांग और धतूरा ले आए हैं नंदी अभी तो हम स्वादिष्ट खीर का आनंद ले रहे हैं ऐसा करो भांग और धतूरे को वहां छोटे पर्वत पर रख दो हम कुछ समय के बाद उसे ग्रहण करेंगे अरे नंदी महादेव तो हमारी ओर देख तक नहीं रहे उनका सारा ध्यान तो रामेश्वर की बनाई हुई खीर पर है ऐसे कब तक चलेगा नंदी हां मैं भी यही देख रहा हूं इतने प्रेम से हम भांग और धतुरा पीस कर लाए और महादेव ने हमें इसे रखने के लिए बोल दिया अरे नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है महादेव ने बोला है कि हम उसे वहां रख द वो कुछ देर बाद उसे ग्रहण करेंगे महादेव रोजाना रामेश्वर की भोग लगाई हुई खीर को

(1:11:26) बहुत चाव से खाते हैं नंदी मैं तो कई बार सोचता हूं कि रामेश्वर की खीर में ऐसा क्या है कि भोलेनाथ सबसे पहले उसकी भोग लगाई खीर को ही खाते हैं और फिर और किसी तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता तभी तो हम भांग धतूरा लेकर आए और उन्होंने बिना देखे ही इसे रखने के लिए बोल दिया हां कह तो तुम ठीक रहे हो भैरव महादेव को भांग धतूरा इतना प्रिय है पर रामेश्वर की खीर से ज्यादा उन्हें इस समय कुछ भी प्रिय नहीं लग रहा तो क्या किया जाए नंदी कि महादेव का ध्यान अपने भक्त रामेश्वर से हटकर हमारी ओर आ जाए एक रास्ता है नंदी ने सभी गणों के कान में कुछ कहा उसके पश्चात सभी

(1:12:04) गण पृथ्वी लोक पर आ गए और सबने ब्राह्मण रूप ले लिया और सब लोग रामेश्वर के पास पहुंचे रामेश्वर शिवजी को खीर का भोग लगाने के लिए बाजार से सामान खरीद रहा था ब्राह्मण वेश में नंदी ने रामेश्वर से कहा रामेश्वर तुम हमें नहीं जानते पर हम तुम्हें बहुत अच्छे से जानते हैं तुम भगवान शिव के भक्त हो और रोजाना उन्हें खीर का भोग लगाते हो हां ब्राह्मण देव आप तो सब कुछ जानते हैं हां रामेश्वर हम सब जानते हैं इसीलिए तो हम तुम्हारे पास आए हैं हमें पता है कि तुम महादेव के परम भक्त हो पर तुम्हें पता है महादेव अब रोजाना खीर खाकर ओब गए हैं इसलिए अब तुम

(1:12:42) कुछ दिनों के लिए खीर का भोग रोक दो तुम एक काम क्यों नहीं करते तुम महादेव को सप्ताह में एक दिन खीर का भोग लगाया करो जिससे महादेव को और अधिक स्वाद आएगा अब महादेव को इतने सारे भक्त पूछते हैं महादेव भी तो इतने सारे भक्तों के द्वारा दिए भोग को ग्रहण करते हैं उनका पेट बहुत भर जाता है अगर तुम उनको सप्ताह में एक दिन खीर का भोग लगाओगे तो उन्हें तुम्हारी खीर का इंतजार रहेगा और वह और अधिक आनंद से खीर खाएंगे क्यों हम सही कह रहे हैं ना यह तो आप ठीक कह रहे हैं ब्राह्मण देव इस विषय में तो मैंने कभी सोचा ही नहीं अब मैं एक काम करता हूं मैं सप्ताह में एक

(1:13:16) दिन ही भगवान को खीर का भोग लगाया करूंगा ताकि वो और भी भक्तों का प्रसाद ग्रहण कर सके और फिर उन्हें मेरी खीर का बेसब्री से इंतजार रहे भोला भाला रामेश्वर शिव गणों की बातों में आ गया शिव गण खुशी-खुशी कैलाश वापस लौट आए अब शिवजी रोजाना रामेश्वर की खीर का इंतजार करने लगे कि कब रामेश्वर उन्हें भोग लगाए और कब वह खीर का भोग खाए पर कुछ दिनों तक रामेश्वर ने खीर का भोग बनाया ही नहीं तो शिवजी को खीर कहां से मिलती अब सप्ताह में एक दिन रामेश्वर ने खीर का भोग लगा दिया तो शिव जी ने खीर खा ली फिर उसके बाद कुछ दिन और खीर नहीं मिली तो भगवान

(1:13:54) शिव सोच में पड़ ग उन्होंने अपने नेत्र बंद किए और उन्हें सारी सच्चाई पता लग गई और भगवान शिव को गुस्सा आ गया शिव जी को गुस्से में आया देख सभी गण उनके समक्ष हाथ जोड़कर खड़े हो गए नंदी श्रृंगी वीरभद्र भैरव तुम सभी गण जानते भी हो कि तुमने क्या किया है मेरे भक्त रामेश्वर के द्वारा भोग में अर्पित की गई खीर मुझे कितनी प्रिय है और तुमने उसे खीर का भोग रोजाना लगाने के लिए मना कर दिया महादेव हमें क्षमा कर दीजिए हमसे भूल हो गई महादेव जब हम आपको खीर खाता हुआ देखते थे तो हम यही सोचते थे कि आप हमारी ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं अच्छा तो यह

(1:14:35) कारण है पर तुम सब यह नहीं जानते कि मेरा प्रेम अपने सभी भक्तों पर एक समान है मैं भला तुम्हें कैसे भूल सकता हूं तुम तो मेरे हृदय में वास करते हो तुम सब तो मेरी ही शक्तियों द्वारा उत्पन्न हुए हो संसार में मेरा प्रत्येक भक्त मुझे एक समान प्रिय है और प्रत्येक भक्त के हृदय में मैं ही विद्यमान हूं इसलिए मेरा प्रेम कभी भी कम या ज्यादा नहीं हो सकता माता-पिता के लिए तो उनके सभी बच्चों में प्रेम एक समान होता है फिर तुम यह भूल कैसे सकते हो भगवान शिव की बातें सुनकर सभी शिव गण समझ गए कि उन्होंने कितनी बड़ी भूल कर दी सचमुच महादेव का प्रेम तो अपने सभी भक्तों

(1:15:14) के लिए एक समान रहता है इसके बाद सभी शिवक फिर से एक बार रामेश्वर के पास गए रामेश्वर हमें भगवान शिव का संदेशा आया है वह कह रहे थे कि तुम्हारी खीर इतनी स्वादिष्ट होती है कि वह सप्ताह भर की प्रतीक्षा नहीं कर सकते सप्ताह में एक दिन भोग से उनका मन ही नहीं भरता इसलिए उनकी आज्ञा है कि तुम रोजाना ही उन्हें खीर का भोग लगाया करो आप सच कह रहे हैं ब्राह्मण देव भगवान शंकर को मेरे हाथों की बनी खीर इतनी प्रिय है ठीक है फिर मैं रोजाना उन्हें खीर का भोग लगाऊंगा यह सुनकर रामेश्वर बहुत खुश हुआ अब एक बार फिर रामेश्वर रोजाना खीर बनाकर भगवान शिव को

(1:15:51) भोग लगाने लगा अब तो समस्त शिव गण भी भगवान शिव के साथ रामेश्वर द्वारा भोग लगी प्रसाद की खीर का आनंद लेते और खूब भर पेट खीर को खाते भगवान शिव और देवी पार्वती दोनों सभी गणों को इस प्रकार खीर खाता देख मंद मंद मुस्कुराने लगे भगवान शिव ने अपने परम भक्त रामेश्वर को सभी सुख सुविधाओं से पूर्ण रखा उसके जीवन में कभी भी कोई कठिनाई नहीं आई रामेश्वर का विवाह एक बहुत ही सुशील कन्या के साथ हुआ उसके घर में दो बच्चों का जन्म हुआ अपने परिवार के साथ संपूर्ण जीवन खुशी खुशी व्यतीत करके रामेश्वर अंत में मोक्ष को प्राप्त हुआ कहानी है भगवान विष्णु के

(1:16:32) परम भक्त सदना कसाई की बहुत समय पहले की बात है किसी गांव में सदना नाम का एक कसाई रहता था वो बहुत ईमानदार था भले ही पेशे से व एक कसाई था और मांस बेचता था पर उसके मुख पर सदैव भगवान विष्णु का ही नाम रहता था और व भगवान विष्णु के नाम कीर्तन में मस्त रता रायण यहां तक कि मांस को काटते बेचते हुए भी वह भगवान विष्णु का ही नाम गुनगुनाता रहता था भजमन नारायण नारायण हरि हरि श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि भैया जरा दो किलो मास तोल देना अभी देता हूं भैया जय श्री हरि जय श्री हरि कैसा कसाई है मास बेचता है और भगवान का नाम जपता है

(1:17:19) तुम आज देख रहे हो मैं तो कई वर्षों से इस कसाई को भगवान का नाम जपते हुए मांस बेचते हुए देख रहा हूं इस कसाई के मुख पर तो सदैव विष्णु भगवान का ही नाम रहता है लोग सदना के बारे में यही बातें करते थे एक दिन सदना अपनी ही धुन में कहीं जा रहा था कि उसके पैर से एक पत्थर टकराया वह रुक [संगीत] गया अरे यह काले रंग का गोल पत्थर कैसा इसे उठाकर रख लेता हूं देखने में तो बहुत बढ़िया दिखाई पड़ता है यह पत्थर मास तोलने के काम आ जाएगा आज इसी पथर से वजन तोलता हूं हां भैया कितना मास देना है एक किलो तोल दो भैया इसका मतलब यह पत्थर एक किलो वजन का

(1:18:05) है भैया जरा ढाई किलो मास देना अरे यह क्या यह पत्थर ढाई किलो वजन का कैसे हो गया एक बार 5 किलो रख कर देखता हूं यह कैसे हो सकता है यह पत्थर कोई साधारण पत्थर नहीं है यह तो कोई जादुई पत्थर है जितना वजन तोलना होता है यह प उतने वजन का ही हो जाता है धीरे-धीरे यह बात फैलने लगी कि सदना कसाई के पास वजन करने वाला पत्थर है वह जितना चाहता है पत्थर उतना ही तल देता है किसी को एक किलो मांस देना होता तो तराजू में उस पत्थर को एक तरफ डालने पर दूसरी ओर एक किलो का मान से तुल होता अगर किसी को दो किलो चाहिए हो तो वह पत्थर दो किलो के भार जितना भारी हो

(1:18:49) जाता इस चमत्कार के कारण उसके यहां लोगों की भीड़ चुटने लगी भीड़ के साथ ही सदना की दुकान की बिक्री बढ़ गई मुझे तो लगता है यह किसी जादूगर का पत्थर रास्ते में कहीं गिर गया होगा और यह मुझे मिल गया इस जादुई पत्थर के आ जाने से मेरी बिकरी और बढ़ गई है जय श्री हरि जय श्री हरि एक दिन सदना की बात उस गांव के पंडित तक भी पहुंची हालांकि वह ऐसी अशुद्ध जगह पर नहीं जाना चाहते थे जहां मांस कटता हो व बिकता हो किंतु जब एक भक्त ने उन्हें उस पत्थर के बारे में बताया तो पंडित जी के मन में उस चमत्कारिक पत्थर को देखने की उत्सुकता जाग

(1:19:27) गई पंडित जी आप नहीं जानते उस सदना कसाई के पास सचमुच एक जादुई पत्थर है हां जो अपना वजन सामान के अनुसार ही कर लेता है एक बार चलकर देख ले तो अवश्य ही वह पत्थर देखकर आप चकित हो जाएंगे अब तो इतना जोर दे ही रहा है तो दूर से मैं उस पत्थर को देख लूंगा पर निकट नहीं जाऊंगा चल देखो तो आखिर कौन सा जादुई पत्थर उस सदना कसाई के पास है भक्त की बात सुनकर पंडित जी उसके साथ सदना की दुकान के पास पहुंचे और दूर से खड़े होकर सदना कसाई को मीठ तोलते देखने लगे उन्होंने देखा कि कैसे वह पत्थर हर प्रकार के वजन को बराबर तल रहा था वह ध्यान से उस पत्थर पर दूर से नजरें गड़ाए

(1:20:12) रहे अचानक पंडित जी के शरीर के रोए खड़े हो गए यह कैसे हो सकता है यह पत्थर तो मुझे इस कसाई के पास जाकर बात करनी ही होगी अब पंडित जी आप और मुझ कसाई की दुकान पर मैं आश्चर्य चकित हूं आइए कृपा करके यहां बैठिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं सदना तुम्हारे इस चमत्कारिक पत्थर को देखने के लिए ही मैं तुम्हारी दुकान पर आया हूं या यूं कहे कि यह चमत्कारी पत्थर ही मुझे खींच कर तुम्हारी दुकान पर ले आया है पर शायद तुम इस बात से पूरी तरह अनजान हो तुम जिसे पत्थर समझकर मांस तोल रहे हो वास्तव में वह शालिग्राम जी है जो कि भगवान विष्णु का स्वरूप है तुम यह नहीं

(1:20:54) जानते शालिग्राम जी को इस तरह गले कटे मांस के बीच में रखना वह उनसे मांस तोलना बहुत बड़ा पाप है भगवान विष्णु का पत्थर शालिग्राम पंडित जी फिर तो मैं बहुत बड़ा पाप कर रहा हूं मुझसे भूल हो गई श्री हरि मुझे क्षमा करना मैं आपके इस रूप को पहचान नहीं पाया पंडित जी आप तो ब्राह्मण है अतः आपसे उत्तम सेवा और पूजा भगवान शालिग्राम के इस पत्थर स्वरूप की कोई नहीं कर सकता मैं भी नहीं कृपया करके यह पत्थर आप रख लीजिए ठीक है सदना मैं भगवान शालिग्राम की सेवा करने के अवसर को भला कैसे ठुकरा सकता हूं लाओ यह मैं ले जाता हूं पंडित जी उस

(1:21:34) शालिग्राम पत्थर को बहुत सम्मान से घर ले आए घर आकर उन्होंने वह पूजा अर्चना आरंभ कर दी कुछ दिन ही बीते थे कि एक रात पंडित जी के स्वप्न में श्री शालिग्राम जी आए और बोले हे ब्राह्मण मैं तुम्हारी सेवाओं से प्रसन्न हो किंतु तुम मुझे उसी कसाई के पास छोड़ आओ हे प्रभु क्या मुझसे आपकी पूजा अर्चना करने में कोई भूल हुई है ब्राह्मण तुम मेरी अर्चना पूजा करते हो मुझे अच्छा लगता है परंतु जो भक्त मेरे नाम का गुणगान कीर्तन करते रहते हैं उनको मैं अपने आप को भी बेच देता हूं सदना तुम्हारी तरह मेरी पूजा अर्चना नहीं करता है परंतु वो हर समय

(1:22:21) मेरा नाम गुनगुनाता रहता है जो कि मुझे अच्छा लगता है इसीलिए तो मैं उसके पास गया था और जो भी मेरा नाम सुबह शाम जगता है मैं तो उसी के अधीन हो जाता हूं सदना के मुख पर सदैव मेरा ही नाम रहता है इसलिए मुझे व अति प्रिय है सपना मुझे निस्वार्थ प्रेम से याद करता है मैं जानता हूं तुम्हारी ही तरह वो भी मेरा परम भक्त है ठीक है प्रभु जै आप क्या मैं कल ही आपका यह स्वरूप उस कसाई को सौप आऊंगा पंडित जी अगले दिन ही सदना कसाई के पास गए वह उनको प्रणाम करके सारी बात बताई सदना तुम महान हो भगवान विष्णु श्री हरि ने स्वयं तुम्हारे पास रहने की इच्छा जताई है

(1:23:11) वह चाहते हैं कि उनके आशीर्वाद स्वरूप य शिला सदैव तुम्हारे पास ही रहे और वे तुम्हारे द्वारा की गई सेवा का लाभ उठाए सच पंडित जी प्रभु श्री हरि ने ऐसा कहा वो मुझ कसाई के पास रहना चाहते हैं यदि प्रभु मेरे पास इस दुकान पर जहां मैं मांस बेचता हूं रह सकते हैं तो मैं क्यों उनके लिए अपना सर्वस्व छोड़कर उनकी भक्ति में नहीं लग सकता मैं आपसे मांस नहीं बेचूंगा मैं अपने श्री हरि विष्णु भगवान की भक्ति में लीन रहूंगा मेरा आज से यही नियम है भगवान श्री हरि की भक्ति करना पंडित जी ने श्री शालिग्राम जी को सदना को सौंप दिया सदना

(1:23:51) कसाई की आंखों में आंसू आ गए मन ही मन उसने बेचने के कार्य को छोड़ देने का विचार और निश्चय किया कि यदि मेरे ठाकुर को कीर्तन पसंद है तो मैं अधिक से अधिक समय नाम कीर्तन ही करूंगा आगे चलकर सदना कसाई भगवान विष्णु के परम भक्त कहलाए और उनकी कीर्ति व नाम चारों दिशाओं में विख्यात हो गया


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