शिव जी ने माँ पार्वती को पहनाया मंगलसूत्र | Maa Parvati | Shivratri | Hindi Kahani | Moral Stories -

 शिव जी ने माँ पार्वती को पहनाया मंगलसूत्र | Maa Parvati | Shivratri | Hindi Kahani | Moral Stories - 


भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की तैयारी शुरू हो चुकी थी हर कोई भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की खुशियां मना रहा था राजा हिमालय और रानी मैनावती भी अपनी पुत्री पार्वती के विवाह के लिए दूर-दूर से सुंदर सुंदर वस्त्र गहने और विवाह की सब भी जरूरतों का सामान मंगवा रहे थे साथ ही स्वयं भगवान शिव को भी अपने विवाह की शुभ घड़ी का बेसब्र से इंतजार था क्योंकि वह वर्षों से इसी घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे ब्रह्मा जी विष्णु जी और नारद मुनि कैलाश पर्वत पर पहुंचे नंदी महादेव कहां है प्रभु तो काफी समय से उधर कैलाश की उस चोटी पर बैठकर काले और स्वर्ण

(00:55) मोतियों को किसी सूत्र में पिरो रहे हैं अभी तो उनका सारा ध्यान उस सूत्र को पिरोने में है अवश्य ही महादेव मंगल सूत्र पिरो रहे होंगे क्योंकि वह मंगल सूत्र की विशेषता को भली भाति जानते हैं आप उचित कह रहे हैं यह मंगल सूत्र महादेव और माता पार्वती के विवाह के बंधन को और भी अटूट बनाने में सहायक सिद्ध होगा नारायण नारायण भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के विवाह के शुभ अवसर को देखने की मन में इतनी लालसा हो रही है कि मैं आपको वर्णन नहीं कर सकता ब्रह्मदेव पूरी सृष्टि मंगल गान कर रही है सही कहा तुमने नारद यह अवसर ही ऐसा है हमें इस प्रकार निमंत्रण सूची

(01:43) तैयार करनी है कि कोई भी मेहमान बुलाने से ना रह जाए नारायण नारायण चलिए तो फिर महादेव से ही पूछ लेते हैं कि उन्हें बारात की किस प्रकार की निमंत्रण पत्र की सूची तैयार करनी है प्रणाम महादेव आपको इस प्रकार मंगल सूत्र पिरो देख बहुत प्रसन्नता हो रही है आइए आइए ब्रह्मदेव आप सभी को मेरा साक्षात प्रणाम मैं तो बस कोशिश कर रहा हूं कि मैं पार्वती के लिए एक सुंदर मंगल सूत्र तैयार कर सकूं महादेव जिस मंगल सूत्र को आप स्वयं तैयार कर रहे हैं वह तो सबसे अद्भुत ही होगा यह मंगल सूत्र मां पार्वती को अत्यधिक पसंद आएगा महादेव मां पार्वती यह भ स्वीकार करके

(02:31) बहुत प्रसन्न होंगी बस हम तो उस शुभ घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब आप और माता पार्वती विवाह सूत्र में बंध बारात में कौन-कौन आने वाला है महादेव एक बार हम उन सबके नाम लिख लेते हैं नारायण मेरे विवाह में तो पूरी सृष्टि ही आने वाली है क्योंकि आप जानते हैं पूरा संसार ही तो मेरा परिवार है इसलिए मेरी बारात में मैं सभी को आमंत्रित करूंगा मेरी बारात में नि संकोच कोई भी आ सकता है आप धन्य है महादेव आप धन्य है नारायण नारायण और फिर शादी का दिन आया भगवान शिव की बारात सजी वैसे तो देव और दानव आपस में बैरी हैं पर भगवान शिव तो सभी के भगवान हैं इसलिए उनकी बारात

(03:19) में देवताओं के साथ-साथ असुर भी शामिल थे हर कोई शिवजी की बारात में शामिल था भगवान शिव और उनके सभी गण भस्म में नहाए हुए थे सब बारात लेकर चल रहे थे बिगुल नाथ की आवाज रानी मैनावती बारात को देखकर घबरा चुकी थी और वह इस विवाह के लिए मना कर रही थी परंतु माता पार्वती के प्रेम और अटूट निश्चय की वजह से उनके विवाह में आ रही परेशानियां दूर हो गई मंडप सजा भगवान शिव और माता पार्वती ने एक दूसरे को जयमाला पहनाई पंडितों ने मंत्र पढ़े भगवान शिव और माता पार्वती ने अग्निदेव को साक्षी मानकर साथ फिरे लिए भगवान शिव ने माता पार्वती

(04:07) की मांग में सिंदूर भरा अब वधु के गले में मंगल सूत्र पहनाए रानी मैनावती मुझे नहीं लगता महादेव को इन सब रस्मों के बारे में कुछ भी पता है अब मंगल सूत्र के बिना यह विवाह कैसे संपन्न होगा पता होता तो हम खुद ही मंगल सूत्र का प्रबंध कर लेते अब इतनी जल्दी में मंगल सूत्र का प्रबंध कैसे होगा स्वामी राजा हिवा और रानी मैनावती चिंता में थे क्योंकि वह पहले ही इस विवाह को लेकर संशय में डूबे हुए थे अब मंगल सूत्र की बात पर भी उनके मन में चिंता उत्पन्न हो रही थी पर भगवान भोलेनाथ तो सभी चिंताओं को हरने वाले हैं उनके होते हुए कोई समस्या भला कैसे टिक सकती है और

(04:48) फिर भगवान भोलेनाथ ने खुद मंगल सूत्र तैयार किया इस बात से मां पार्वती भी अंजान थी भगवान भोलेनाथ ने अपनी मुट्ठी खोली माता पार्वती की आंखों में चमक आ गई भगवान ब्रह्मा जी भगवान विष्णु तथा नारद मुनि तो पहले ही इस बात को भली भाति जानते थे फिर तीनों भी मुस्कुरा दिए राजा हिमवादी मैनावती यह सब देखकर चकित रह गए भगवान शिव ने माता पार्वती के गले में मंगल सूत्र पहनाया सबने उन पर फूलों की वर्षा की विवाह के पश्चात जब उन्हें पता चला कि यह मंगल सूत्र भगवान शिव ने स्वयं अपने हाथों से बनाया है तो वे और अधिक प्रसन्न हुई हमारे हिंदू पुराणों में मंगल सूत्र को

(05:32) बहुत ही महत्व दिया गया है क्योंकि इसका सीधा संबंध पति-पत्नी के अटूट प्रेम और विश्वास पर निर्भर होता है कहा जाता है कि मंगल सूत्र में स्वर्ण मोती मां पार्वती का प्रतीक है और काले मोती भगवान शिव का प्रतीक है इसलिए हमारे शास्त्रों में विवाह के समय वधु का मंगल सूत्र पहनना बहुत ही शुभ और मंगलकारी बताया गया है मंगल सूत्र को पहनने से सुहागिन स्त्री और उसके के पति पर भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद सदैव बना रहता [संगीत] है पुराणों में प्रचलित कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती घूमते हुए काशी चले गए वहां भगवान शिव अपना मुह

(06:20) पूर्व दिशा की ओर करके बैठे थे तभी पीछे से देवी पार्वती वहां आती हैं और अपने हाथों से भगवान शिव के नेत्रों को बंद कर देती हैं उनके ऐसा करने से समस्त जगत में अंधकार छा जाता है जगत को बचाने के लिए भगवान शिव अपनी तीसरी आंख खोल देते हैं उनकी तीसरी आंख खुलने पर जगत में फिर से रोशनी हो जाती है भगवान शिव की तीसरी आंख जगत को तो अंधकार से बचा लेती है परंतु उस तीसरी आंख की रोशनी से जो ताप उत्पन्न हुआ उससे निकली पसीने की बूंदों से एक अंधे बालक का जन्म हुआ उस बालक का मुख बहुत बड़ा और भयानक था बालक को देखकर देवी पार्वती घबरा गई प्रभु य यह बालक कौन है

(07:08) यह कहां से उत्पन्न हुआ देवी पार्वती यह हमारा ही पुत्र है यह बालक पसीने की बूंदों से उत्पन्न हुआ है आपने अकस्मात ही मेरे नेत्रों को बंद कर दिया इसलिए सृष्टि की रक्षा के लिए मैंने अपने तीसरे नेत्र को खोल दिया जिस कारण रोशनी के ताप से पसीने की बूंदे धरती पर गिर गई और बालक का जन्म हुआ अंधकार में पैदा होने के कारण यह बालक अंधक नाम से जाना जाएगा कुछ समय बाद हिरण्याक्ष नाम के असुर ने पुत्र पाने के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या की शिवजी उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसके समक्ष प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने के लिए कहा तब हिरण्याक्ष बोला भगवान मुझे एक

(07:53) पुत्र की कामना है कृपया मुझे पुत्र प्राप्ति का वरदान दे हे हिरण्याक्ष तुम्हारे भाग्य में संतान सुख नहीं है पर मैं तुम्हें अपने अंश से जन्मे हुए पुत्र अंधक को वरदान के रूप में तुम्हें देता हूं आगे चलकर तुम्हारा यह पुत्र महा पराक्रमी और महा बलशाली होगा हे शिवशंकर आपके अंश से जन्मे पुत्र को पाकर मैं धन्य हो गया यह कहकर भगवान शिव ने अंधक को हिरण्याक्ष के हाथों में दे दिया हिरण्याक्ष अंधक को लेकर खुशी खुशी अपने राज्य लौट गया तभी देवासुर संग्राम छिड़ गया और भगवान विष्णु द्वारा हिरण्याक्ष मारा गया हिरण्याक्ष का बड़ा भाई

(08:34) हिरण्यकशिपु छिपकर भाग निकला हिरण्याक्ष के मरने के बाद राजमहल में अंधक की उपेक्षा होने लगी उसके अन्य चचेरे भाई और संगी साथी उसे चिढ़ाने लगे इससे अंधक दुखी रहने लगा एक दिन उनके व्यवहार से तंग आकर व तपस्या करने निकल पड़ा और एक निर्जन वन में पहुंचकर ब्रह्मा जी की साधना में लीन हो गया तप करते हुए उसे कई वर्ष बीत गए उसके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उससे वर मांगने को कहा हे पुत्र मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं मांगो तुम्हें क्या वरदान चाहिए हे ब्रह्मदेव मुझे ऐसा वर दीजिए कि मेरा अपमान करने वाले मेरे सभी भाई मेरी दास्ता करें मेरे

(09:19) दिव्य नेत्र हो जाएं और मेरी किसी के द्वारा मृत्यु ना हो हे दैत्य राज तुम्हारे नेत्र दिव्य हो जाएंगे तुम्हारे सारे भाई भी तुम्हारी दास्ता स्वीकार कर लेंगे किंतु काल चक्र का नियम है कि मृत्यु से कोई अछूता नहीं रह सकता तो फिर ऐसा ही वरदान दीजिए कि मेरे शरीर से निकले रक्त की एकएक बूंद से मेरे जैसे पराक्रमी वीर उत्पन्न हो जाए और मेरा अंत तभी हो जब मैं अपनी माता पर को दृष्टि डालू तथास्तु तथास्तु कहकर ब्रह्मा जी अंतरध्यान हो गए और अंधक वरदान पाकर नेत्र वान बन जाता वरदान प्राप्त करके वो बेहद अत्याचारी हो गया उसके अत्याचारों से नाग यक्ष तथा देव

(10:03) गंधर्व सभी दुखी रहने लगे वे सब ब्रह्मा जी की शरण में पहुंचे किंतु ब्रह्मा जी उन्हें कोई आश्वासन नहीं दे सके क्योंकि अंध कासर उन्हीं के वरदान स्वरूप यह उत्पात मचा रहा था सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे हे शिवशंकर ब्रह्मा जी के वरदान से अंधक ने चारों दिशाओं में उत्पात मचा रखा है हमारी रक्षा कीजिए प्रभु आप सब निश्चिंत रहिए अंधकासुर को उसके पाप का दंड मैं अवश्य दूंगा शिव पार्वती मंदराचल पर्वत पर ठहरे हुए थे तभी अंधक अपनी सेना के साथ मंदराचल पर पहुंचा पर्वत की सुरम्य देखकर वो खुश होने लगा कितना सुंदर स्थान है क्यों ना यहां अपने लिए एक स्थाई नगर

(10:46) का निर्माण करा दिया जाए सेवक जाओ और कोई उचित स्थान तलाश करो जहां हमारे लिए एक शानदार महल बन सके जो आज्ञा महाराज आज्ञा पाकर सेवक उचित स्थान की खोज में निकल पड़े कुछ दूर जाने पर उन्होंने भगवान शिव और देवी पार्वती को देखा वाह क्या सुंदरी है लेकिन यह इस तपस्वी के पास क्या कर रही है इसे तो राज महल की शोभा होना चाहिए चलकर महाराज को सूचित करते हैं चलो चलो महाराज को बताते हैं क्या सुंदरी इस पर्वत पर जाओ और उस सुंदरी को उठाकर मेरे पास ले आओ और उसके साथ जो तपस्वी पुरुष है उसे कह मैं दराज अंधक का दूत हूं और उनके लिए इस

(11:33) सुंदरी को ले जाना चाहता हूं दूत पुन उसी स्थान पर जा पहुंचा उसने अंधक का आदेश उन्हें क सुनाया इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गए अंधक ने सेना एकत्र की और आक्रमण कर दिया इस सुंदरी को मैं अपने साथ लेकर ही जाऊंगा अंध कासर कहीं ऐसा ना हो मेरे क्रोध की अग्नि से तुम जल जाओ घनघोर युद्ध छिड़ गया भगवान शिव त्रिशूल से प्रहार करते रहे किंतु उनका हर प्रयत्न विफल हो रहा था जैसे ही अंधक का कोई अंग घायल होता उससे रक्त निकलता और उस रक्त से उस जैसे ही अनेक दैत्य पैदा हो जाते थे उधर शुक्राचार्य अपनी संजीवनी विद्या के बल पर मरे हुए दैत्यों को पुनः जीवित कर देते थे

(12:18) यह सब शुक्राचार्य के कारण हो रहा है नंदी आदि गण जाओ और शुक्राचार्य को बांधकर यहां ले आओ ताकि वे दैत्यों को पुनः जीवित ना कर सके जो आज्ञा प्रभु कुछ समय पश्चात सभी शिव गण शुक्राचार्य को बांध कर ले आए और उन्हें शिव के सम्मुख खड़ा कर दिया शिव जी ने शुक्राचार्य को अपने उदर में ले लिया और अंधक को त्रिशूल के ऊपर टांग दिया वह त्रिशूल पर टंगा टंगा ही शिव का जाप करता हुआ अपनी भूल का प्रायश्चित करने लगा अंधकासुर जान चुका था कि माता पार्वती उसकी माता है भगवान मुझे क्षमा करें मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया था मैंने माता पार्वती पर को दृष्टि डाली माते मुझे

(13:01) क्षमा कर दीजिए अब से मैं आपकी सेवा में रहूंगा और कभी भी अपने अंदर दैत्य भाव को जागृत ना होने दूंगा ना ही देव विरोधी कार्य करूंगा प्रभु मैं चाहता हूं कि मुझे दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाए आज से मैं हर समय आपकी सेवा में दास की तरह उपस्थित रहूं मेरे समस्त विकार धुल जाए प्रभु अंधक को क्षमा कर दीजिए क्योंकि जब यह उत्पन्न हुआ था उस समय अंधकार था उसी अंधकार की भाति इसका मन भी अंधकार वश ऐसा हो गया अब पश्चाताप के आंसुओं से इसका मन स्वच्छ और निर्मल हो गया है देवी पार्वती अंधकासुर की भाति गुरु शुक्राचार्य भी मेरे उदर में

(13:40) क्षमा याचना कर रहे हैं हे शिव शंकर हे भोलेनाथ मेरा अपराध क्षमा कीजिए मुझे अपने उदर से बाहर निकालिए प्रभु मुझे क्षमा कीजिए ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय अंध कासर और गुरु शुक्राचार्य की विनती कर पर भगवान भोलेनाथ उन दोनों को क्षमा कर देते हैं गुरु शुक्राचार्य भगवान भोलेनाथ के उदर से बाहर आ जाते हैं इसके पश्चात अंधकासुर को शमादान देकर भगवान भोलेनाथ अंधकासुर को अपने शिव गणों में स्थान देते हैं और अंधकासुर भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की सेवा में अपना जीवन समर्पण कर देता है i


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