शिव पार्वती की हल्दी | Shiv Parvati Ki Haldi | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Bhakti Stories | Shiv -

  शिव पार्वती की हल्दी | Shiv Parvati Ki Haldi | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Bhakti Stories | Shiv - 


महाशिवरात्रि का दिन आने वाला था इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का ब्याह होने वाला था शादी से पहले की रस्मों से कैलाश से लेकर हिमालय पर्वत तक झूम उठा था हिमालय पर्वत और कैलाश पर्वत पर आए अतिथि शिव और मां पार्वती के विवाह का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मना रहे थे कितनी देर हो गई पार्वती की हल्दी अभी तक कैलाश से नहीं आई ना जाने कब वहां से हल्दी का उबटन आएगा और कब मेरी पार्वती को हम वह लगाएंगे पार्वती क्या तुमने किसी सेवक से पूछा कि तुम्हारी हल्दी कौन लेकर आ रहा है हां मां देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती वो दोनों ही मेरे शगुन की हल्दी लेकर आ

(00:58) रही हैं बस कुछ ही देर में वो यहां पहुंच जाएंगी उधर मां लक्ष्मी और मां सरस्वती शगुन की हल्दी लेने कैलाश पहुंची जहां सभी शिव गण हल्दी का उबटन बनाने की तैयारी कर रहे थे अभी यह उबटन तैयार होने में और कितना समय लगेगा देवी लक्ष्मी बस कुछ देर और देवी पार्वती का मुख तो वैसे भी चंद्र समान खूबसूरत है लेकिन फिर भी उनकी हल्दी का उपन ऐसा तैयार करना कि उनके चांद से चेहरे में और भी तेज और चमक आ जाए ऐसा ही होगा देवी सरस्वती देवी लक्ष्मी यह देखिए भोलेनाथ कल महाशिवरात्रि के शुभ दिन दूल्हे के यही वस्त्र पहनेंगे दूल्हे की यह वेश पूजा तो बहुत

(01:42) सुंदर है अरे यह आनंदमय बिगुल बाजों की आवाज कैसी आप तो जानते ही है देवी यह सभी शिव गण महादेव की हल्दी और संगीत का उत्सव मना रहे हैं किंतु स्वामी अभी महादेव की हल्दी तो राजा हिवा की ओर से आना शेष तो फिर नारायण नारायण आइए हम सब भी उस ओर चलकर देखते हैं यह वातावरण तो कितना आनंदमय है महादेव आज तो आपकी हल्दी की रस्म का दिन है फिर यह सब भक्त आपको हल्दी की जगह भस्म का लेप क्यों लगा रहे हैं अग्निदेव भक्तों के द्वारा प्रेम से अर्पित की गई भस्म मुझे अति प्रिय है महादेव अपने सभी भक्तों को एक समान ही स्नेह देते हैं और इसी तरह देव पृथ्वी देव

(02:31) आदि समस्त देवता महादेव के स्नेह की प्रशंसा करने लगे सभी शिव गण भस्म और भभूत लगाकर अपने प्रेम का संदेश दे रहे थे तभी राजा हिवा की ओर से शगुन की हल्दी भी आ जाती है महादेव राजा हिवा की ओर से आपके लिए हल्दी का उपन आ गया है अब मैं और देवी सरस्वती भी पार्वती के लिए शगुन की हल्दी लेकर जा रहे हैं नारायण नारायण महादेव कोई संदे देश तो नहीं भिजना देवी पार्वती के लिए नारद मुनि आप भी नटखट नारद है महादेव को छेड़ने से बाज नहीं आएंगे नारायण नारायण विष्णु देव आप तो विवाह की रस्मों से भली भाति परिचित है फिर आप यह कैसे कह रहे हैं ज्ञात हो तो आपको भी विवाह के समय

(03:23) महादेव ने बहुत छेड़ा था मुझे ज्ञात है देवर्षि नारद और विवाह के उत्सव में ये हंसी ठिठोली ना हो तो विवाह के रस्मों में भला कैसा आनंद प्राप्त होगा चलिए फिर तो मैं भी आपका भागीदार बन जाता हूं और फिर विवाह की रस्में शुरू की जाती है महादेव को हल्दी का उबटन लगना शुरू हो जाता है उधर देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी भी मां पार्वती की हल्दी लेकर राजा हिवा के महल पहुंचती हैं वहां पर पर्वत की सखियां जया विजया समस्त सखियों के साथ मंगल गीत रही थी देवी लक्ष्मी देवी सरस्वती आपका स्वागत है यह देवी पार्वती की हल्दी महादेव की ओर से स्वीकार

(04:12) करें देवी लक्ष्मी देवी सरस्वती आइए ना नृत्य गान प्रारंभ करते हैं देवी सरस्वती आपकी मधुर आवाज में एक शगुन का गीत हमें भी सुनना है आप सब पार्वती के पास बैठिए मैं आपके लिए जलपान की व्यवस्था करती हूं देवी लक्ष्मी देवी सरस्वती आप दोनों बहनों को यहां देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूं इसके पश्चात देवी सरस्वती अपनी मधुर आवाज में मंगल गीत गाती है आओ रे सखी हल्दी लगाओ जी हमारी पार्वती अब दुलहन बनकर हमारी पार्वती अब दुलहन बनकर जल्दी से महादेव के पास कैलाश आओ जी आओ रे सखी हल्दी लगाओ जी सब मिलकर देवी सरस्वती के साथ

(05:21) मंगल गीत गाती है कल महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर आपका और महादेव का विवाह संपन्न हो जाएगा मेरी पार्वती को आज सब अच्छे से हल्दी का उबटन लगाओ आज मेरी पुत्री की हल्दी की रस्म का दिन है आज मैं सचमुच बहुत खुश हूं और फिर इसी तरह शिव पार्वती की हल्दी की रस्म बड़े ही धूमधाम से संपन्न होती है मेरी पुत्री को किसी की नजर ना लगे पार्वती तुम्हारी कठिन तपस्या का फल अब तुम्हें प्राप्त होने जा रहा है मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है मां आपको छोड़कर जाने का मन नहीं हो रहा बेटी पार्वती हर कन्या को एक ना एक दिन अपनी ससुराल जाना ही होता है संसार की यही रीत

(06:11) है कल के लिए थोड़ा मन घबरा रहा है सब ठीक तो हो जाएगा ना अरे पार्वती अब तो आप महादेव के स्वप्नों में खो जाओ कल सब कुछ अच्छा होगा सही कहा जया शिव पार्वती के विवाह की धूम पूरे ब्रह्मांड में बचेगी इस विवाह को देखने के लिए पूरा संसार अतिथि गण के रूप में आएगा यह शिव पार्वती विवाह तो फिर देखने वाला [संगीत] होगा पुराणों में प्रचलित कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती घूमते हुए काशी चले गए वहां भगवान शिव अपना मुह पूर्व दिशा की ओर करके बैठे थे तभी पीछे से देवी पार्वती वहां आती हैं और अपने हाथों से भगवान शिव के नेत्रों को बंद कर

(06:59) देती हैं उनके ऐसा करने से समस्त जगत में अंधकार छा जाता है जगत को बचाने के लिए भगवान शिव अपनी तीसरी आंख खोल देते हैं उनकी तीसरी आंख खुलने पर जगत में फिर से रोशनी हो जाती है भगवान शिव की तीसरी आंख जगत को तो अंधकार से बचा लेती है परंतु उस तीसरी आंख की रोशनी से जो ताप उत्पन्न हुआ उससे निकली पसीने की बूंदों से एक अंधे बालक का जन्म हुआ उस बालक का मुख बहुत बड़ा और भयानक था बालक को देखकर देवी पार्वती घबरा गई प्रभु य यह बालक कौन है यह कहां से उत्पन्न हुआ देवी पार्वती यह हमारा ही पुत्र है यह बालक पसीने की बूंदों से उत्पन्न हुआ है आपने अकस्मात ही

(07:48) मेरे नेत्रों को बंद कर दिया इसलिए सृष्टि की रक्षा के लिए मैंने अपने तीसरे नेत्र को खोल दिया जिस कारण रोशनी के ताप से पसीने की बूंदे धरती पर गिर गई और इस बालक का जन्म हुआ अंधकार में पैदा होने के कारण यह बालक अंधक नाम से जाना जाएगा कुछ समय बाद हिरण्याक्ष नाम के असुर ने पुत्र पाने के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या की शिव जी उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसके समक्ष प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने के लिए कहा तब हिरण्याक्ष बोला भगवान मुझे एक पुत्र की कामना है कृपया मुझे पुत्र प्राप्ति का वरदान दें हे हिरण्याक्ष तुम्हारे भाग्य में संतान सुख नहीं है पर

(08:31) मैं तुम्हें अपने अंश से जन्मे हुए पुत्र अंधक को वरदान के रूप में तुम्हें देता हूं आगे चलकर तुम्हारा यह पुत्र महा पराक्रमी और महा बलशाली होगा हे शिवशंकर आपके अंश से जन्म पुत्र को पाकर मैं धन्य हो गया यह कहकर भगवान शिव ने अंधक को हिरण्याक्ष के हाथों में दे दिया हिरण्याक्ष अंधक को लेकर खुशी खुशी अपने राज्य लौट गया तभी देवासुर संग्राम छिड़ गया और भगवान विष्णु द्वारा हिरण्याक्ष मारा गया हिरण्याक्ष का बड़ा भाई हिरण्य कश्यप छिपकर भाग निकला हिरण्याक्ष के मरने के बाद राजमहल में अंधक की उपेक्षा होने लगी उसके अन्य चचेरे भाई और संगी साथी उसे

(09:16) चिढ़ाने लगे इससे अंधक दुखी रहने लगा एक दिन उनके व्यवहार से तंग आकर वह तपस्या करने निकल पड़ा और एक निर्जन वन में पहुंचकर ब्रह्मा जी की साधना में लीन हो गया तप करते उसे कई वर्ष बीत गए उसके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उससे वर मांगने को कहा हे पुत्र मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं मांगो तुम्हें क्या वरदान चाहिए हे ब्रह्मदेव मुझे ऐसा वर दीजिए कि मेरा अपमान करने वाले मेरे सभी भाई मेरी दास्ता करें मेरे दिव्य नेत्र हो जाए और मेरी किसी के द्वारा मृत्यु ना हो हे दैत्य राज तुम्हारे नेत्र दिव्य हो जाएंगे तुम्हारे

(09:57) सारे भाई भी तुम्हारी दास्ता स्वीकार कर ले किंतु काल चक्र का नियम है कि मृत्यु से कोई अछूता नहीं रह सकता तो फिर ऐसा ही वरदान दीजिए कि मेरे शरीर से निकले रक्त की एक एक बूंद से मेरे जैसे पराक्रमी वीर उत्पन्न हो जाए और मेरा अंत तभी हो जब मैं अपनी माता पर को दृष्टि डालू तथास्तु तथास्तु कहकर ब्रह्मा जी अंतरध्यान हो गए और अंधक वरदान पाकर नेत्र वान बन जाता वरदान प्राप्त करके वो बेहद अत्याचारी हो उसके अत्याचारों से नाग यक्ष तथा देव गंधर्व सभी दुखी रहने लगे वे सब ब्रह्मा जी की शरण में पहुंचे किंतु ब्रह्मा जी उन्हें कोई आश्वासन नहीं दे सके क्योंकि

(10:41) अंध का सुर उन्हीं के वरदान स्वरूप यह उत्पात मचा रहा था सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे हे शिवशंकर ब्रह्मा जी के वरदान से अंधक ने चारों दिशाओं में उत्पात मचा रखा है हमारी रक्षा कीजिए प्रभु आप सब निश्चिंत रहिए अंधकासुर को उसके बाप का दंड मैं अवश्य दूंगा शिव पार्वती मंदराचल पर्वत पर ठहरे हुए थे तभी अंधक अपनी सेना के साथ मंदराचल पर पहुंचा पर्वत की सुरम्य देखकर वह खुश होने लगा कितना सुंदर स्थान है क्यों ना यहां अपने लिए एक स्थाई नगर का निर्माण करा दिया जाए सेवक जाओ और कोई उचित स्थान तलाश करो जहां हमारे लिए एक शानदार महल बन सके जो आज्ञा महाराज आज्ञा

(11:26) पाकर सेवक उचित स्थान की खोज में निकल कुछ दूर जाने पर उन्होंने भगवान शिव और देवी पार्वती को देखा वाह क्या सुंदरी है लेकिन यह इस तपस्वी के पास क्या कर रही है इसे तो राज महल की शोभा होना चाहिए चलकर महाराज को सूचित करते हैं चलो चलो महाराज को बताते हैं क्या सुंदरी इस पर्वत पर जाओ और उस सुंदरी को उठाकर मेरे पास ले आओ और उसके साथ जो तपस्वी पुरुष है उसे कह देना कि मैं दैत्य राज अंधक का दूत हूं और उनके लिए इस सुंदरी को ले जाना चाहता हूं दूत पुन उसी स्थान पर जा पहुंचा उसने अंधक का आदेश उन्हें क सुनाया इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गए अंधक ने सेना एकत्र की और

(12:15) आक्रमण कर दिया इस सुंदरी को मैं अपने साथ लेकर ही जाऊंगा अंध कासर कहीं ऐसा ना हो मेरे क्रोध की अग्नि से तुम जल जाओ घनघोर युद्ध छिड़ गया भगवान शिव त्रिशूल से प्रहार करते रहे किंतु उनका हर प्रयत्न विफल हो रहा था जैसे ही अंधक का कोई अंग घायल होता उससे रक्त निकलता और उस रक्त से उस जैसे ही अनेक दैत्य पैदा हो जाते थे उधर शुक्राचार्य अपनी संजीवनी विद्या के बल पर मरे हुए दैत्यों को पुनः जीवित कर देते थे यह सब शुक्राचार्य के कारण हो रहा है नंदी आदि गण जाओ और शुक्राचार्य को बांध कर यहां ले आओ ताकि वे दैत्यों को पुनः जीवित ना कर सके जो आज्ञा प्रभु कुछ

(12:59) समय पश्चात सभी शिव गण शुक्राचार्य को बांध कर ले आए और उन्हें शिव के सम्मुख खड़ा कर दिया शिवजी ने शुक्राचार्य को अपने उदर में ले लिया और अंधक को त्रिशूल के ऊपर टांग दिया वह त्रिशूल पर टंगा टंगा ही शिव का जाप करता हुआ अपनी भूल का प्रायश्चित करने लगा अंधकासुर जान चुका था कि माता पार्वती उसकी माता है भगवान मुझे क्षमा करें मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया था मैंने माता पार्वती पर को दृष्ट डाली माते मुझे क्षमा कर दीजिए अब से मैं आपकी सेवा में रहूंगा और कभी भी अपने अंदर दैत्य भाव को जागृत ना होने दूंगा ना ही देव विरोधी कार्य करूंगा प्रभु मैं चाहता

(13:41) हूं कि मुझे दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाए आज से मैं हर समय आपकी सेवा में दास की तरह उपस्थित रहूं मेरे समस्त विकार धुल जाए प्रभु अंधक को क्षमा कर दीजिए क्योंकि जब यह उत्पन्न हुआ था उस समय अंधकार था उसी अंधकार की भांति इसका मन भी अंधकार व ऐसा हो गया अब पश्चाताप के आंसुओं से इसका मन स्वच्छ और निर्मल हो गया है देवी पार्वती अंधकासुर की भाति गुरु शुक्राचार्य भी मेरे उदर में क्षमा याचना कर रहे हैं हे शिव शंकर हे भोलेनाथ मेरा अपराध क्षमा कीजिए मुझे अपने उदर से बाहर निकालिए प्रभु मुझे क्षमा कीजिए ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय अंध का

(14:27) सुर और गुरु शुक्राचार्य की विनती करने पर भगवान भोलेनाथ उन दोनों को क्षमा कर देते हैं गुरु शुक्राचार्य भगवान भोलेनाथ के उदर से बाहर आ जाते हैं इसके पश्चात अंधकासुर को क्षमादान देकर भगवान भोलेनाथ अंधकासुर को अपने शिव गणों में स्थान देते हैं और अंधकासुर भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की सेवा में अपना जीवन समर्पण कर देता है


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