भूखे शिव जी और कंजूस औरत | Bhukhe Shiv Ji Aur Kanjoos Aurat | Moral Stories | Bhakti Stories | Story

 भूखे शिव जी और कंजूस औरत | Bhukhe Shiv Ji Aur Kanjoos Aurat | Moral Stories | Bhakti Stories | Story 


वर्षा लगातार पूरियां बनाई जा रही थी लेकिन उसके घर में आई उस सा साल के बच्चे शंकर का पेट भर ही नहीं रहा था जल्दी से और पूरी लाओ मुझे बहुत भूख लगी है वर्षा का चेहरा अब गुस्से से लाल हो गया था यह देख उसके पति मनोज ने रसोई में जाकर उससे कहा देख वर्षा वह बच्चा हमारा मेहमान है और अगर तू उसे इस तरह गुस्से से खाना खिलाएगी तो तेरा सारा पुण्य समाप्त हो जाएगा तभी बाहर से फिर आवाज आई क्या हुआ मां जल्दी से खाने को लेकर आओ मुझे और भी भूख लगी है वर्षा बहुत कंजूस औरत थी दान दक्षिणा करना उसे बिल्कुल पसंद नहीं था उसे लगता था इससे उनके पास राशन

(00:54) कम हो जाएगा लेकिन उसके पति मनोज का स्वभाव उससे बिल्कुल उल्टा था वोह शिवजी का बहुत बड़ा भक्त था और दान दक्षिणा देने में भी उसे अच्छा लगता था एक रोज अ वर्षा अरे ओ वर्षा क्या हुआ जी सुबह-सुबह क्यों गला फाड़ रहे हो अ मैं भोलेनाथ के मंदिर जा रहा हूं वहां बहुत सारे भिखारी बैठे हुए होते हैं जिनको बड़ी उम्मीद होती है कि मैं उनके कटोरे में कुछ सिक्के या अनाज डालूं तुम्हें कुछ देना है तो उनको दे दो ओहो तुम्हें कितनी बार कहा है कि मुझसे कुछ भी कहो लेकिन दान पुण्य की बात मुझसे मत किया करो और तुम क्या चाहते हो तुम जो भी इतनी मेहनत से कमाते हो वह मैं किसी भी

(01:33) भिखारी को दान कर दूं कभी नहीं और वैसे भी भगवान भक्ति से प्रसन्न होते हैं दान पुण्य से नहीं मनोज चुपचाप वहां से चला गया वह मंदिर गया और शिवजी से प्रार्थना करने लगा कुछ देर बाद वह मंदिर से बाहर आया तो उसने देखा कि कुछ भिखारी कटोरा लिए उससे दक्षिणा मांग रहे हैं कुछ दान कर बच्चा भोलेनाथ तुझ पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखेंगे लेकिन मनोज के पास उस फल के अलावा कुछ भी नहीं था जो उसे पंडित ने प्रसाद के रूप में दिया था उसने वही फल उन्हें दान कर दिया और सर झुकाकर घर की तरफ आ गया आधी रात को मनोज के सपने में भगवान शंकर आए फिर सपने में भोलेनाथ ने

(02:13) कहा मनोज मैं चाहता हूं कि तुम सावन में एक गरीब को भोजन करवाओ और जब भोजन करवाओ तो यह समझकर करवाना कि उस बालक के रूप में तुम हमें भोजन करवा रहे हो यह कहकर वो अंतरध्यान हो गए कुछ देर बाद जब मनो की आंख खुली तो वह सपने के बारे में सोचता रहा भोलेनाथ खुद मेरे सपने में आए थे मैं बहुत भाग्यशाली हूं जो वह खुद मेरे सपने में आए फिर मनोज ने सारी बात वर्षा को बताई सपने में भोलेनाथ के आने की बात पर वर्षा बहुत खुश हुई लेकिन जैसे ही उसने किसी गरीब को भोजन करवाने की बात सुनी उसकी सारी हंसी गायब हो गई भोलेनाथ ने किसी गरीब को भोजन करवाने के लिए कहा है यह बात

(02:57) उन्होंने सपने में कही लेकिन अब उनकी बात को टाला भी तो नहीं जा सकता ना बस फिर क्या था वर्षा अपना दिमाग चलाने लगी और एक ऐसे गरीब को ढूंढने लगी जो कम खाए लेकिन तीन दिन हो गए पर उसे ऐसा कोई गरीब नहीं मिला फिर उसके दिमाग में एक आईडिया आया हां यह ठीक रहेगा मैं परसों ही एक छोटे बच्चे को घर पर बुला लेती हूं भला छोटा बच्चा कितना ही खाएगा ज्यादा से ज्यादा तीन पूरी लेकिन उसके बाद तो वह खा ही नहीं पाएगा ऐसे भोलेनाथ की बात भी रह जाएगी और मेरा राशन भी बच जाएगा फिर उसे मनोज की वो बात याद आ गई जब उसने कहा था कि उसे हर दिन मंदिर के बाहर कुछ भिखारी मिलते हैं

(03:35) उसने सोचा कि वहां पर उसे कोई छोटा बच्चा मिल ही जाएगा उसने मनोज से यह बात कही मनोज तो इसी बात से खुश था कि कम से कम उसकी पत्नी एक छोटे बच्चे को खाना खिलाने के लिए खुश तो हुई ठीक है वर्षा लेकिन याद रखना जो भी बच्चा आएगा हमें उसे अच्छे से खिलाना है क्योंकि कहीं ना कहीं भोलेनाथ उसमें विराजमान होंगे हां हां तुम बेफिक्र रहो उधर कैलाश पर्वत पर ब भोलेनाथ यह सब देखकर मुस्कुरा रहे थे क्या हुआ स्वामी आप मुस्कुरा क्यों रहे हैं देवी वर्षा कभी भी किसी को दान पुण्य नहीं करती उसे किसी गरीब को भोजन करवाने के लिए कहा तो वह उसमें भी कंजूसी कर रही है वह किसी बच्चे

(04:17) की तलाश में है ताकि वह कम भोजन करे लेकिन आप ऐसा कैसे करेंगे अपना पेटू भे लेकर क्या स्वामी अगले दिन वर्षा जैसे ही एक बच्चे भिखारी को ढूंढने जाने लगी तभी भोलेनाथ एक सात साल के बच्चे का रूप लेकर उसके दरवाजे पर आ गए वर्षा ने उस बच्चे को देखा तो उसके चेहरे पर चमक आ गई माई कुछ खाने को दे दो ना मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है अरे वाह जिसकी तलाश में मैं जा रही थी वह खुद चलकर यहां आ गया बढ़िया है बढ़िया है हालांकि मनोज को उसे देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन फिर उसने इसे एक सहयोग मान लिया वर्षा ने बच्चे को अंदर बुलाया और चार

(04:59) पूरी आलू की सब के साथ बना कर दे दी लेकिन बच्चे ने झट से वो चार पूरी खत्म कर दी और बोला माई थोड़ी पूरी और सब्जी और दो ना हैं और अच्छा अभी लाई वर्षा वो पूरी और सब्जी उसे लाकर देती रही वह बना बनाकर थक गई लेकिन बच्चे का पेट भरने का नाम ही नहीं ले रहा था अब तो आटा भी थोड़ा ही बचा था वह उसकी पुड़िया बनाने की तैयारी कर रही थी कि तभी वहां मनोज आ गया ओहो क्या कर रही हो वर्षा वो बच्चा से पड़िया मांग रहा है हां तो अब क्या करूं 8 किलो आटे की पुड़िया तो वो अकेला खा चुका है अब तो आटा भी खत्म होने को आ गया लेकिन इस पेटू का अभी तक पेट ही

(05:39) नहीं भरा यह तुम कैसी बातें कर रही हो वर्षा तुम जानती हो ना शिवजी ने क्या कहा था पता है तभी तो इस पेटू राम को बना बना करर खिला रही हूं नहीं तो अब तक तो भगा नहीं देती धीरे-धीरे घर का सारा राशन खत्म हो गया अब हार थककर वर्षा उस बच्चे से बोली अब तो घर में कुछ भी नहीं बचा है अब मैं क्या दूं तुम्हें झूठ मत बोलो वो जो रसोई में अंदर आलू बचे हैं वो ले आओ और गोभी की सब्जी भी है वह भी ले आओ और हां जो तुमने कल रात को हलवा बनाया था और अपने लिए छुपा कर रखा है वह भी ले आओ अब वर्षा को समझते देर नहीं लगी कि यह बच्चा कोई साधारण बच्चा नहीं है उसने झट से हाथ

(06:14) जोड़कर माफी मांगी मैं समझ नहीं पा रही हूं आप कौन है कृपा कर हमें बताएं तभी महादेव अपने असली रूप में आ गए उन दोनों ने जैसे ही सामने साक्षात प्रभु को देखा तो मनोज और वर्षा उनके चरणों में गिर गए मुझे माफ करना प्रभु आप स्वयं मेरे घर पधारे हैं मैं आपको पहचान नहीं पाई प्रभु वर्षा दान पुण्य करने से कभी किसी का कुछ घटता नहीं बल्कि बढ़ता ही है दूसरे को दान करने से आपका धन धान्य तो भरा रहता ही है साथ ही तुम्हारी तरक्की भी दुगनी होती है हमें माफ कर दे प्रभु भोलेनाथ ने उसे माफ कर दिया और फिर वहां से अंतर्ध्यान हो गए जब वर्ष और मनोज ने देखा तो उसका घर सारे

(06:58) धनधान्य से भर चुका था वहां खूब सारा धन था साथ ही अनाज से उनका भंडार भरा हुआ था इसके बाद वर्षा ने कभी कोई कंजूसी नहीं की और दिल खोलकर दान पुण्य करने लगी यह देख अब मनोज भी बहुत खुश था अब वो दोनों साथ में दान पुण्य करते और भोलेनाथ के नाम के भंडारे करवाते भोला अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ हरिपुर गांव में रहता था वह गांव के साहूकार के पास मजदूरी करता था 



 भोला ने अपनी बहन की शादी के लिए साहूकार से कर्ज लिया था जिसका भुगतान वह साहूकार को कई वर्षों से कर रहा था भोला भगवान शंकर की बहुत पूजा करता था ऐसे ही एक दिन मंदिर

(07:41) में शिवरात्रि का भव्य आयोजन था वह पत्नी और बच्चों के साथ मंदिर पहुंचा पर साहूकार भी वहां मौजूद था मंदिर में दर्शन करने के लिए पुण्य करने पड़ते हैं तुझ जैसे कंगाल के पास ऐसा क्या है भगवान शंकर को देने के लिए बता कोई दान दक्षिणा या कोई चढ़ावा भोला उदास मन से पत्नी और बच्चों को लेकर वापस घर की ओर चल पड़ता है तभी कुछ खाने को दे दो बड़े जोरों की भूख लगी है भैया यह आटे का हलवा है अगर यह खाओ तो हां हां मुझे आटे का हलवा दे दो भूख में तो प्रसाद और भी स्वादिष्ट लगता है क्या नाम है तुम्हारा मेरा नाम शिवा है मैं काम की तलाश में हूं क्या आप मुझे कोई

(08:23) काम दे सकते हो मैं कुछ भी कर लूंगा पर मैं तो खुद एक गरीब मजदूर हूं गांव के साहूकार के पास मजदूरी करता हूं मैं तुम्हें भला क्या काम दूंगा भैया मुझे कोई भी काम दे दो बदले में मुझे पैसे नहीं बस रहने की जगह दे देना भोला शिवा की मजबूरी देख हां कह देता है अगले दिन से शिवा वहीं रहने लगता है और घर के काम में मदद करता था एक दिन भोला अपनी पत्नी माला से बोला माला शिवा हमारे लिए इतना सब कुछ क्यों कर रहा है बच्चों के लिए भी यह इतना दूध फल सब्जी सब ले आता है पर कब तक हम इससे बिना पैसे दिए काम करवाते रहेंगे तुम एक काम क्यों नहीं करते साहूकार से कहकर इसे भी

(09:03) अपने साथ काम पर लगवा लो वहां तो इसे काम के बदले पगार मिल जाएगी भोला को माला की बात सही लगी व शिवा को लेकर साहूकार के पास जाता है और काम दिलवा देता है शिवा भोला के साथ अब खेतों पर भी काम करने जाने लगा साहूकार शिवा को जो भी पगड़ देता वो पैसे शिवा भोला को जोड़ने के लिए रखवा देता था भोला कई बार शिवा से कहता कि वह अपने पैसे वापस ले ले परंतु शिवा उसे कहता कि जब वक्त आएगा ये पैसे तभी काम आएंगे एक दिन साहूकार भोला और शिवा को किसी काम से दूसरे गांव भेजता है रास्ते में रात हो जाती है जंगल का रास्ता था तभी एक शेर के दहाड़ नहीं की आवाज आती है भोला घबरा जाता

(09:40) है भोला भैया आप तो भगवान शंकर के परम भक्त हो तो डर कैसा और जब भक्त मुसीबत में हो तो भगवान को भी सहायता के लिए आना ही पड़ता है आप उस पेड़ के ऊपर चढ़कर बैठ जाओ बाकी सब मैं देख लूंगा शिवा मैं तुम्हें अकेला छोड़कर कैसे पेड़ पर चढ़कर बैठ जाऊं यह भी तो सही बात नहीं है बो भैया आप निश्चिंत रहो मुझे कुछ नहीं होगा भोला जैसे ही पेड़ पर चढ़ने के लिए मुड़ता है वह देखता है कि शेर उसके सामने खड़ा है भोला शेर को अपने सामने देख डर जाता है और आंखें बंद करके ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय का जाप करने लगता है शिवा भोला के आगे आ जाता है शेर शिवा को थोड़ी देर तक देखता

(10:18) रहता है और बिना कुछ कहे जंगल की ओर चला जाता है भोला और शिवा दोनों घर आ जाते हैं भोला पूरी रात उस घटना को याद करता रहता है अगली सुबह जब वह सोकर उठता है तो शिवा घर पर नहीं था भोला आसपास में पूछता है पर शिवा का कहीं भी पता नहीं था वह साहूकार से जाकर पूछता है वो तो सुबह ही मेरे पास आया और मेरे से बोला कि अमरनाथ यात्रा पर निकलना है इसलिए वोह अपना हिसाब कर गया भोला घर आता है और सारी बात माला को बताता है माला भी सुनकर बहुत हैरान होती है कि अचानक बिना बताए शिवा अमरनाथ की इतनी लंबी यात्रा पर कैसे निकल गया भोला को कुछ समझ

(10:54) नहीं आ रहा था उसी रात को सपने में भगवान शंकर भोला को दिखाई देते हैं भोला उठो तुमने मुझे पहचाना नहीं मैं ही तुम्हारा शिवा हूं जिसके बारे में तुम चिंता कर रहे हो भगवान शंकर आप ही शिवा हो मैंने आपको पहचाना नहीं यह कैसी भूल हो गई महादेव मुझे माफ कर दीजिए मैंने आपकी सेवा नहीं की बल्कि आपसे सेवा करवाई आप मुझे छोड़कर क्यों चले गए प्रभु हे महादेव लौट आओ मेरे पास भोला अब तुम मेरे पास अमरनाथ यात्रा करके आओगे मैं अमरनाथ में ही तुम मैं अपने दर्शन दूंगा इतना कहकर भगवान भोलेनाथ अंतर्ध्यान हो गए अगले दिन भोला ने सारी बात माला को बताई पर भोला इसी चिंता में

(11:38) था कि अमरनाथ की यात्रा के लिए उसके पास पैसे कहां से आएंगे तभी माला उससे बोली सुनो आपको याद है ना शिवा हमारे पास पैसे जोड़ता था इसका मतलब महादेव ने स्वयं हमारी अमरनाथ यात्रा की व्यवस्था कर दी आपकी जय हो बाबा बर्फानी जय भोला भंडारी आपकी जय हो माला हमारे शिव शंकर ने हमें अपने धाम बुलाया है अमरनाथ बुलाया है भोला उन रुपयों से अपनी अमरनाथ यात्रा पर जाने की तैयारी करता है और साहूकार के पास कुछ दिन की छुट्टी मांगने जाता है छुट्टी तो तू ले ले वो तो तेरे पैसे मैं उतने दिन के काट ही लूंगा पर यह बता तू अमरनाथ की यात्रा के बारे में जानता भी है पता है

(12:18) कितनी दूर है अमरनाथ धाम पैसा कपड़ा खाना पना पूरे परिवार के साथ तू कैसे अमरनाथ की यात्रा कर पाएगा बहुत कुछ देखना पड़ता है वहां पर पूरा पं रण होता है पूरी तरह से स्वस्थ्य मनुष्य ही अमरनाथ की यात्रा कर सकता है नहीं तो रास्ते में ही रोक देते हैं और तू ठहरा एक गरीब कमजोर दो-दो दिन तो तू रोटी नहीं खाता रास्ते में ही गिरकर बेहोश हो गया तो वापस भेज देंगे देख मैं भी अमरनाथ जा रहा हूं अपने परिवार के साथ देख लियो मैं अमरनाथ की पूरी यात्रा करके ही वापस आऊंगा भोला अपने परिवार के साथ अमरनाथ की यात्रा के लिए निकल पड़ता है

(12:54) उधर साहूकार को भी अपने परिवार को लेकर अमरनाथ की यात्रा के लिए जम्मू निकलना था पर किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था 75 वर्ष से ज्यादा उम्र होने की वजह से साहूकार के पंजीकरण को स्थगित कर दिया गया साहूकार ने मन में सोचा भगवान शंकर ने शायद मुझे सबक दिया है कि उनकी यात्रा के लिए कोई गरीब या अमीर नहीं होता वो जिस पर कृपा करते हैं वही उनके दर्शन कर पाता है शायद भोला उनका मेरे से भी ज्यादा बड़ा सेवक है इसलिए उसे अमरनाथ यात्रा पर जाने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ मैं यह क्यों नहीं समझ पाया कि भगवान तो तो प्रेम के भूखे हैं उन्हें धन दौलत बड़े-बड़े

(13:32) पकवानों से कोई मतलब नहीं उन्हें कोई एक सूखी रोटी भी खिला दे तो उसमें भी प्रसन्न हो जाते हैं शिवशंकर मुझे माफ कर दो मैंने उस गरीब मजदूर की गरीबी का हमेशा फायदा उठाया बस एक बार भोला यात्रा से वापस आ जाए फिर मैं खुद उससे माफी मांगूंगा भोला माला और बच्चों के साथ पहल गांव पहुंचता है वहां से वोह पैदल ही यात्रा शुरू करता है जय बम भोले का जाप करता हुआ वह आगे बढ़ता रहता है चलते-चलते बच्चों को भूख लगती है रुको तुम लोग यहां इस पत्थर पर बैठो मैं किसी से पूछता हूं सुनिए भैया जी यहां खाने के लिए कोई सुविधा मिल जाएगी अरे भाई ये अमरनाथ श्रद्धालुओं के लिए

(14:11) लंगर कमेटियां जीजन से पलखिला करती हैं खाने पीने से लेकर सोने तक की सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है अमरनाथ यात्रा के लिए आओ मैं तुम्हें वहां का रास्ता बताता हूं भोला ने अपनी यात्रा को भगवान भोलेनाथ के भरोसे शुरू किया था और उसे पता था कि वही उसकी यह यात्रा पूरी करवाएंगे व्यक्ति भोला को लेकर जब लंगर कमेटी के पास पहुंचता है भोला ने देखा अमरनाथ यात्रा में लोग जगह-जगह खाने पीने और सोने की सुख सुविधाएं दे रहे हैं अमीर भक्त इस कार्य में दान दक्षिणा देकर अपना योगदान देते हैं सुबह के समय लंगर कमेटियां श्रद्धालुओं की भूख और प्यास को

(14:49) बुझाती हैं और रात होते ही लंगर स्थल धर्मशाला में तब्दील हो जाते हैं श्रद्धालुओं को बिस्तर और सर्दी से बचने के लिए बुखारी भी मुहैया करवाई जाती है अमरनाथ यात्रा के लिए उन्हें पांच पड़ाव पार करने थे पहला पड़ाव पहलगाम उन्होंने पार कर लिया था बापू अभी हमें कितनी और यात्रा करनी है अभी कितनी दूर है अमरनाथ की गुफा नमन पहला पड़ाव पहल गांव में अभी हम हैं अभी हमें चंदनबाड़ी शेषनाग पंचतरणी पार करना है उसके बाद पांचवा पड़ाव अमरनाथ की गुफा है जहां बाबा बर्फानी भोलेनाथ के शिवलिंग के दर्शन होंगे मतलब अमरनाथ की यात्रा के रास्ते में पांच पड़ाव आते हैं

(15:32) आज आया बिटिया पर भोले बाबा का नाम लेते जाओ तो यह रास्ता आराम से कट जाता है और यह पांच पड़ाव भी पार हो जाता है रास्ते भर अलग-अलग पड़ाव पर रुकते हुए आखिर भोला और उसका परिवार अमरनाथ की गुफा पर पहुंचता है पूरा परिवार इतने सुंदर दृश्य को देखकर खुशी से झूम उठता है तुम्हें पता है माला अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्योंकि यहीं पर भगवान शिव ने मां पार्वती को अमृत्व का रहस्य बताया था बापू वह देखो कबूतर तुम्हें पता है छाया यह कबूतर का जोड़ा बहुत ही किस्मत वालों को दिखाई देता है जैसे तुमने देखा सब मिलकर अमरनाथ

(16:16) बर्फानी शिवलिंग के दर्शन करते हैं भोला हमेशा याद बनकर रहने वाली अनमोल दृश्यों वाली अमरनाथ यात्रा करके खुशी-खुशी गांव वापस आ जाता है साहूकार भोला से अपनी गलतियों के लिए माफी मांगता है और उसे अच्छी पगार देने लगता है दिल से भगवान शंकर के आशीर्वाद से भोला की जिंदगी में खुशियां आ जाती हैं


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