मां पार्वती की हरियाली तीज | Hariyali Teej | Hindi Kahani | Moral Stories | Bhakti Stories | Kahani -

 मां पार्वती की हरियाली तीज | Hariyali Teej | Hindi Kahani | Moral Stories | Bhakti Stories | Kahani - 


भारत देश त्यौहारों का देश है यहां भिन्न-भिन्न प्रकार के उत्सव मनाए जाते हैं जिनकी अपनी ही प्रथा और अपनी ही संस्कृति है त्यौहार मनुष्य के जीवन की उदासी में खुशियों के रंग भर देते हैं और नारी तो जहां भी अपने चरण रख दे वहां हरियाली ही हरियाली हो जाती है ऐसा ही हरियाली बिखरता महिला का उत्सव है हरियाली तीज हरियाली तीज सावन का प्रमुख त्यौहार है जो श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं तो वहीं कुंवारी लड़कियां मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए वर रखती

(00:49) हैं मान्यता है कि हरियाली तीज के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया था इसी दिन को हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है इस दिन स्त्रियां माता पार्वती और भगवान शिव जी की पूजा करती हैं हरियाली तीज और व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने पर्वत राज हिमालय के घर जन्म लिया माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए गंगा के तट पर 12 वर्षों तक बिना किसी मौसम की परवाह किए घोर तप किया था एक दिन देवी पार्वती की तपस्या को देखकर नारद जी महाराज हिमालय के महल में पधारे नारायण

(01:35) नारायण प्रणाम देवर्ष नारद आपका स्वागत है कहिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं गिरिराज मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं आपकी कन्या पार्वती ने बड़ा कठोर तप किया है इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं इस संदर्भ में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं देवर्षि आपने तो यह प्रस्ताव सुनाकर मेरी समस्त चिंताएं ही दूर कर दी यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वर्ण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है वे तो साक्षात ब्रह्म है हे महर्षि यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी सुपुत्री

(02:20) सब सुखों को प्राप्त करे पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे पर्वतराज हिमालय की स्वीकृति पाकर नारद जी विष्णु जी के पास गए और उनसे विवाह के निश्चित होने का समाचार सुनाया मगर इस विवाह संबंध की बात जब पार्वती के कानों में पड़ी तो उनके दुख का ठिकाना ना रहा क्या हुआ पार्वती विष्णु भगवान से विवाह के बारे में सुनकर तुम दुखी क्यों हो गई सखी मैंने सच्चे हृदय से भगवान भोलेनाथ का वर्ण किया है किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णु जी से निश्चित कर दिया मैं विचित्र धर्म संकट में हूं अब

(03:00) क्या करूं प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है नहीं पार्वती ऐसी अशुभ बातें मुख से नहीं निकालते संकट के समय हमें धैर्य से काम लेना चाहिए नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति रूप में हृदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया जीवन पर्यंत उसी से निर्वाह करें सच्ची आस्था और एक निष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है मैं तुम्हें घनघोर जंगल में ले चलती हूं जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी ना पाए वहां तुम साधना में लीन हो जाना मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे अपनी सखी

(03:40) की बात सुनकर देवी पार्वती ने ऐसा ही किया अपनी पुत्री को घर पर ना पाकर पर्वत राज हिमालय बहुत चिंतित हो गए मेरी पुत्री न जाने कहां चली गई है मैं विष्णु जी से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर ना हुई तो बड़ा अपमान होगा मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा मुझे पार्वती को खोजना ही होगा पर्वतराज हिमालय ने पार्वती की खोज करनी शुरू कर दी इधर पार्वती अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में भगवान शिव की आराधना में लीन थी भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था

(04:22) उस दिन माता पार्वती ने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया रात भर वह भगवान शिव की स्तुति करती रही ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय देवी पार्वती की घोर तपस्या के प्रभाव से भगवान शिव का आसन डोलने लगा उनकी समाधि टूट गई और वह देवी पार्वती के समक्ष प्रकट हुए देवी पार्वती मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं तुम जो चाहो वर मांगो प्रभु मैं हृदय से आपको पति के रूप में वर्ण कर चुकी हूं यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए देवी पार्वती क्या तुम

(05:12) मेरे साथ खुश रह पाओगी मैंने बचपन से ही आपको अपना पति मान लिया था मैं जानती हूं आपको पति रूप में पाकर आपकी अर्धांगिनी बनकर मुझे सर्व सुखों की और सौभाग्य की प्राप्ति होगी कृपया करके मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लीजिए प्रभु देवी पार्वती के प्रेम विश्वास और तपस्या की जीत होती है और भगवान शिव उन्हें मनवांछित वर देकर अंतर्ध्यान हो जाते हैं उसी समय अपने दरबारियों सहित गिरिराज हिमालय देवी पार्वती को खोजते खोजते वहां आ पहुंचते हैं पुत्री तुम्हारी ऐसी कठोर तपस्या का क्या कारण है तुम्हारी ऐसी दशा को देखकर मुझे अत्यधिक दुख और पीड़ा हो

(05:55) रही है चलो पुत्री महल वापस चलो मुझसे तुम्हारी यह दशा देखी नहीं जा रही पिता श्री मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खड़ उतर चुकी हूं आप क्योंकि विष्णु जी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर महल वापस जाऊंगी कि आप मेरा विवाह वि जी से ना करके महादेव से करेंगे देवी पार्वती के दृढ़ निश्चय को देखकर पर्वतराज हिमालय मान गए और देवी

(06:38) पार्वती को घर ले गए कुछ समय के पश्चात समस्त विधि विधान से भगवान भोलेनाथ और देवी पार्वती का विवाह संपूर्ण हुआ भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को देवी पार्वती ने महादेव की आराधना करके जो व्रत किया था उसी के फल स्वरूप उनका विवाह हो सका भगवान शिव के वरदान के कारण उस दिन से हरियाली तीज का व्रत प्रारंभ हो गया कहा जाता है कि जो कोई सुहागन स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं इस व्रत को करती हैं भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती उन्हें मनोवांछित फल देते हैं इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को हरियाली तीज व्रत पूरी निष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए

(07:24) हरियाली तीज के त्यौहार का मजा ही कुछ अलग है यह त्यौहार खुशियों का प्रतीक हरियाली तीज में हरी चूड़ियां हरे वस्त्र पहनने 16 श्रृंगार करने और मेहंदी रचाने का विशेष महत्व है इस त्यौहार पर विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर नव विवाहित लड़कियों को ससुराल से पहर बुला लिया जाता है शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव और देवी पार्वती ने इस तिथि को सुहागन स्त्रियों के लिए सौभाग्य का दिन होने का वरदान दिया है ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो गन स्त्रियां भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं और मां पार्वती की तरह ही तीज का व्रत और त्यौहार करती हैं उनको सुख

(08:09) सौभाग्य की प्राप्ति होती है और उनके परिवार में सदैव खुशियां और हरियाली छाई रहती है 



मां पार्वती अपने दोनों पुत्रों को बड़े ही लाड प्यार से भोजन खिला रही थी यह निवाला गणेश का और यह निवाला कार्तिकेय का माता श्री लड्डू तो सचमुच बहुत ही स्वादिष्ट है माता श्री यह गणेश एक बार में कितने लड्डू खा जाता है मेरे तो सिर्फ दो ही खत्म हुए हैं मुझे और लड्डू चाहिए माता श्री पहले मुझे दो पहले मुझे यह मैंने लड्डू उठा लिए अब तू मुझे पकड़ कर दिखा देखा माता श्री गणेश सारे लड्डू उठाकर ले गया मैं अभी इसे पकड़ता हूं कार्तिकेय मैं तो यहां

(08:56) हूं कितने स्वादिष्ट लड्डू है तुम दोनों खेलो मैं वहां बैठती हूं रुक गणेश आज मैं तुझे पकड़ कर ही रहूंगा नहीं कार्तिके तुम मुझे नहीं पकड़ पाओगे माता श्री देखो ना गणेश बार-बार अदृश्य हो जाता है मैं उसे पकड़ भी नहीं पाता हूं नारायण नारायण अच्छा तो गणेश और कार्तिकेय देवी पार्वती के समक्ष क्रीड़ा कर रहे हैं प्रणाम देवर्षी नारद कहिए कैसे आना हुआ देवी पार्वती मैं तो आपको यह दिव्य आम देने आया था आम यह आम तो मैं ही खाऊंगा नहीं मैं तुमसे बड़ा हूं इसलिए यह आम मैं खाऊंगा नहीं मैं तुमसे बड़ा हूं इसलिए यह आम मैं ही खाऊंगा अरे अरे तुम दोनों क्यों आपस

(09:42) में लड़ रहे हो मेरे लिए तो मेरे दोनों पुत्र बराबर है इसलिए लड़ो नहीं देवी पार्वती आम तो मैंने आपको दे दिया पर अब इन दोनों में से कौन बड़ा है इस गुत्थी को सुलझाने के लिए तो भगवान भोलेनाथ ही कुछ कर सकते हैं वो देखिए भोलेनाथ आ गए देवर्षि नारद आज कैलाश पर क्या हुआ मेरे दोनों पुत्रों में किस विषय पर बहस हो रही है अच्छा हुआ प्रभु आप आ गए इन दोनों को अब आप ही समझाइए मुझे आज्ञा दीजिए प्रभु अब मैं चलता हूं नारायण नारायण पिताश्री मैं गणेश से बड़ा हूं इसलिए यह आम फल मुझे ही मिलना चाहिए पिता श्री आप ही बताइए मैं कार्तिकेय से बड़ा

(10:26) हूं ना इसलिए यह फल मुझे ही मिलना चाहिए देख लिया दोनों ही अपने आप को बड़ा बनाने पर उतारू हैं मेरे पास एक हल है तुम्हें उसके लिए एक कार्य सिद्ध करना होगा पिता श्री आप आज्ञा दीजिए पल भर में ही मैं वह कार्य पूर्ण कर लूंगा तो कार्य है पृथ्वी की परिक्रमा करने का तुम दोनों में से जो भी सबसे पहले तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले कैलाश पर्वत पर लौटेगा उसे ही बड़ा भाई होने का अधिकार प्राप्त होगा वही विजेता भी ब और दौड़ के विजेता को उसके इनाम के रूप में फल मिलेगा फिर तो विजेता मैं ही बनूंगा माता श्री पिता श्री मुझे आशीर्वाद

(11:08) दीजिए कार्तिकेय तुरंत अपने दिव्य वाहन मोर पर सवार हो गए और आकाश में उड़ते हुए चले गए उन्होंने अपने रास्ते में आने वाले हर पवित्र स्थल का दौरा किया और देवताओं से प्रार्थना की भगवान गणेश जानते थे कि वह भारी हैं और उनकी सवारी चूहा कार्तिकेय के मोर जितना तेज नहीं दौड़ सकता अगर वो दुनिया का चक्कर लगाते हैं तो अपने भाई को कभी नहीं हरा पाएंगे उन्होंने अपनी बुद्धि का उपयोग किया और अपने माता-पिता को एक साथ बैठने के लिए कहा माता श्री पिता श्री क्या आप दोनों वहां एक साथ विराजमान हो सकते हैं पुत्र गणेश तुम पृथ्वी की परिक्रमा में नहीं जा रहे हो क्या तुम्हें

(11:48) प्रतियोगिता में भाग नहीं लेना पार्वती हमारे दोनों ही पुत्र बहुत बुद्धिमान और होनहार हैं गणेश इस समय जरूर कुछ और ही विचार मन में सोच रहा गणेश जी ने अपने हाथ जोड़े और अत्यंत भक्ति के साथ भगवान शिव और देवी पार्वती के समक्ष चक्कर लगाने लगे उन्होंने तीन बार परिक्रमा की और जीत के पुरस्कार की मांग की माता श्री यह प्रतियोगिता तो मैंने जीत ली पर पुत्र तुम तो पृथ्वी के भ्रमण पर गए ही नहीं पिताश्री जन्म धारण करने वाली प्रत्येक संतान के लिए माता-पिता के चरणों में ही पूरा संसार विद्यमान होता है माता-पिता ही अपनी संतान के लिए त्रिलोक समान होते हैं हैं माता

(12:30) श्री के आंचल की छाव और आपके स्नेह की गोद मेरे लिए पूरी पृथ्वी के समान है जहां आप दोनों की सेवा करने से मुझे सर्व सुख प्राप्त होते हैं मेरा लाल मेरा गणेश पार्वती वेद पुराण के हिसाब से गणेश की बात सही है इसलिए गणेश को ही बड़ा भाई माना जाएगा कार्तिकेय जब परिक्रमा करके वापस लौटे तो उन्हें भी सारी बात का पता चला वह भी गणेश की बुद्धिमानी से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रेम से गणेश को गले लगा लिया उसके पश्चात माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों को वह दिव्य आम मिल बांटकर खाने के लिए दिया [संगीत]


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